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मेरी अर्धांगिनी उसकी प्रेमिका - 03 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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मुझे शीघ्र ही दिल्ली पहुंचना था । भैया के पास कुछ खास वक्त नहीं गुजार पाया । स्टेशन पहुंचकर मुझे लगा कि शिव जी को फोन कर लेना चाहिए । टीवी मेरा इंतजार कर रही होगी । फिर कल से उसे दो तीन कॉल से ज्यादा क्या भी तो नहीं था । पर कितनी चिंतित होगी मैं पीसीओ की और बडा उन पर शिविर जो कुछ बताया उस पर बाल भर के लिए मुझे तो विश्वास नहीं हुआ । मैं खुशी से हफ्ते हुए चला । श्री क्या तुम सच बोल रही हूँ । जी शिविर मुझे फोन पर बताया कि संजय हमारे घर आ गए हैं और मेरा इंतजार कर रहे हैं । मैं आ रहा हूँ संजय को घर पर ही रोक कर रहा हूँ । मैंने जैसे तैसे रिसीवर रखा । ट्विटर पर फोन का बिल देखा । उसमें दो रुपए अंकित था । मैं हडबडी में जेब से पांच का सिक्का निकाला । दुकानदार को थमाएं और आगे बढ गया । उस दिन मुझे पहली बार ऐसा लग रहा था कि दिल्ली कितनी दूर है । मैं अपने दोस्त से मिलने के लिए पागल था । जैसे जैसे शाम ढलते ढलते में घर पहुंच गया । मुझे घर पर जनरेटर की आवाज सुनाई पडी है । वो लाइट भी मन ही मन बडबडा । अगले पल मेरी उंगलियां लाइट बोर्ड पडती । अंदर डोरबेल चिल्ला उठी । कुछ ही पलों में शिविर मेरे सामने थी । नजरें टकराई तो मेरे दिल पर सलाह फट पडा । मुझे कह रही थी अब दरवाजा भी खुलेगा । ये यही शर्म आती होगी । मैंने हस्कर कहा । वो हाँ! जैसे उसे इकाई की याद आ गया हूँ । वो हंस पडी । दरवाजा खुलते ही मैंने उसे अपनी बाहों में झपट लिया । संजू का है ऐसा मुझे याद आया । गैस्ट्रो में बैठे हुए हैं । कुछ लिख रहे हैं दिख रहा है । मैंने हैरानी शिवि की ओर देखा । तभी अचानक मुझे याद आया कि वह क्या लिख रहा होगा । डायरी दिख रही किससे बचपन से ही आदत थी । मैं लंबे कदमों से लांघता हुआ गेस्ट रूम की और बढ गया । दरवाजे पर कदम रखा तो एक एक मेरी जान निकल गई । एक दुबला पतला इंसान मेरी निगाहों के सामने बैठा हुआ था । मैं हैरान उठा । क्या वो सब अच्छा ही है? मैं चन्द क्षणों तक तक उसकी और देखता रहा । संजू फिर अचानक मैंने आवाज दी वो मुड कर मेरी और ऐसे देखा जैसे मुझे जानता ही ना हो । मुझे लगा की डायरी लिखते लिखते अपने खयालों में डूब गया होगा । लेकिन देर तक जब अपनी धसी धंसी निगाहों से मेरी और बस ताकता रहा तो मुझे बोलना पडा क्या? संजू मैं हूँ तुम्हारा दोस्त राज्य राजू में और आज उसके सूखे हुए होठों पर ठीक ही से मुस्कान दौड पडेगी । मैं पहचानता हूँ या तो मैं अपना परिचय देने की जरूरत नहीं है । उस समय उसका ये व्यवहार मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था । मैं सारे रास्ते सोचता आया था । जब इतने दिनों बाद मिलेंगे तो कॉलेज के जमाने की तरह कुछ झपट कर मुझे पड जाएगा । देश पर तेजी से सब तब आएगा और फिर इतने दिनों से खबर ना लेने के लिए शिकवा शिकायत करेगा, नाराज होने को अभिनय करेगा । लेकिन उसने उसने क्या किया? ठीक से बोला भी तो नहीं । उस वक्त मैं अपने सारे सपने समेटकर वही दरवाजे पर दफन कर दिया और अपने गले में फंसी टाइको ढीली करते हुए आगे बढ गया । मैं जैसी उसके इतना करीब पहुंचा की वो मुझे छुपाता तीव्रता से उठा और छलांग लगाकर मेरे बदन से निपट गया । उसके मुझे अचानक एक सौ सत्तर चीख निकली और आके पे पानी उडेल उसने शुरू कर दिया । कैसे हो गया? संजू कहते हुए मेरा भी गला रोज गया मेरे रिवाॅल्वर सुने तो अपनी बाहों में मुझे और भी कर लिया और चिंघाड करो पडा । कहने लगा उस पर सारे झूठे आरोप लगाए गए हैं । मैंने कुछ नहीं किया । राज्य कुछ नहीं नहीं, कुछ नहीं किया मैंने उसे पचास हो राज्य पीस बचालो मुझे । संजय मेरी बाहों का प्रस्ताव पडता चला गया । ये बच्चा हो गया नहीं, नहीं बचाऊंगा फिक्र मत करो । कुछ देर किसान तो ना के बाद वो मुझ से अलग हो गया । पेट संजय उसका कंधा पकडकर मैंने उसे सोफे पर बैठा दिया । उसके दाहिनी हथेली चेहरे के सामने मुडी हुई थी । उसकी आंखों को देख नहीं पा रहा था । उसकी आखिरी शायद आंसूओं को अब भी नहीं था । हम पा रही थी संजय मैं थोडा उठा हो जिंदगी की एक बार उधर जाने से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती । राज्य सही कहा करते थे की जिंदगी को गंभीरता से लोग अंधे बनकर आधुनिकता के पीछे मत भागो और राइट दिन यही जिंदगी तो मैं तबाह कर देगी । देखो राज्य मेरी जिंदगी में मुझे सचमुच तबाह कर दिया । मैं खामोश रहा । पंखुडी को कितनी बेरहमी से मारा गया है पर मैं जानता हूँ ये कब किसने किया है मगर फिर भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा हूँ । हम ये है कि कपिल के चंद दिनों में ही पीडित गुनहगार बना बैठा है और उन अगर पीडित संजय तुम सब जानते हो की पंखुडी को किसने मारा है? हाँ मैं जानता हूँ किसने अचानक तेज थोडा बताओ बताओ संजय किसने मारा है? बालन जारी लंबी सांस भरते हुए देखा मेरी तरफ महाराज उसी ने मारा पंखुडी को वही है हत्यारा वही है ऍम । उसका नाम सुनते ही मेरा माता हो गया । अंसारी के लिए काम करने वाला उस वृद्ध का वो वाकया मेरी आंखों के सामने नाश्ते लगा महानुभाव मैं समझता हूँ साहब से मिलना संजय साहब के लिए और परेशानी खडा करने जैसा होगा । यही तो कहा था उसने । उस वक्त मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था । मैंने उस साल की सूरत क्यों नहीं देखी? संजय मैंने से बुखारा तुम कैसे कह सकते हो कि पंखुडी का कातिल वहीं है । कुछ दिनों तक संजय मेरी और एक तक देखता रहा । उसके चेहरे के भाव तीव्रता से बदल रहे थे । थोडी देर की खामोशी के बाद उसने कहा उसने अंसारी खुल गया था मेरे पास । वो कहने लगा कि वो लडकी मुझे जरा भी पसंद नहीं है । चलकर उठा लाओ से वरना आप हाँ तो तुम गए नहीं । मैं उस समय नहीं गया उसने शाम को बुलाया था । जब तुम पंखुडी के पास पहुंचे थे तो क्या हुआ? हो सकता है मर चुकी थी मेरे ही बेडरूम में उस वक्त खुशबु का हाथ पता नहीं शायद हाँ फर्स्ट थी । मैं इस से पहले अपनी बेटी को एक एक उठाकर उसकी लाश पर अपने आंसू बहा पाता । उसी एक खाई वहाँ पुलिस आ गई । फिर जो घटनाक्रम उसने बताया, उससे मैं बात अंसारी की साजिश समझ गया । अभी मैंने पुकारा आ रही हूँ । अंदर से आवाज आई अगले पर हाथ में चाहे की प्लेट था में शिविर मेरे सामने खडी थी । मैंने कुछ कहा नहीं, मगर चाय की ही तो मुझे तमन्ना थी तो हूँ शिविर एक सांस में मैं उसके नाम को कई बार दोहरा गया । मुझे बहुत प्यार आया था । संजय चाहे मैंने चाय का कप उसकी और बढाते हुए कहा चौक कर देखा । वेरी और पालक उठते ही पानी की चंद बूंदे फर्श पर टपक पडेंगे । इस बार मैंने कुछ नहीं कहा । उसने चाय थाम ले, नमकीन और बिस्किट के ब्राॅन उसकी और सरकारी पेट पर रखे हुए दूसरे कब को शिविर मेरी और बढा दिया तो भारी चाहिए । प्रश्न पूरक निगाहों से मैंने देखा उस क्या मीरा का पंद्रह किचन में हैं । हालांकि भी छठी की वो मेरे पास बैठ कर चाहिए । मगर शायद संजय की वजह से उसके अंदर को झिझक थी । देर तक हम चाय पीते रहे । हमारे बीच कोई संवाद नहीं हुआ । सिर्फ खामोशी, खामोशी और खामोशी । संजय मैंने काफी देर बाद उसे पुकारा । अब आगे का क्या प्लान है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा । मैं क्या करूँ? कहाँ कैसे? बच्चा खुद को? पुलिस मेरे पीछे पागल कुत्ते की तरह पडी हुई है । मेरे पास बहुत क्षमता नहीं बची भागने के लिए । मेरे यार मेरी चौहान रूपडी तो मैं परेशान होने की जरूरत नहीं है और नहीं कहीं जाने की जरूरत है । नहीं रुक मेरे घर पर अब मैं दौडूंगा जो करना होगा मैं करूंगा । मैं कानून तुम्हारे लिए खुद करुंगा । मेरा इतना आश्वासन सुनते ही वो भाव को उठा मेरे हाथों को अपनी हथेली में भरते हुए बोला क्या चीज आजकल तो वैसे ही हो । शराबी नहीं बदले । इतना तो होते हुए भी वही भरी आंखों से मैंने कहा दौलत इंसान को नहीं बदलती, सिर्फ रहने के ढंग को बदल देती है तो मेरी और देखने लगा राज्य में कभी कभी सोचता हूँ कौन हो तुम ऍम गुरूजी खुद भगवान क्या कहूँ सचमुच बहुत मसीना वाला हूँ । हर किसी को तो भरे जैसा दोस्त मिले उसके उस वक्त की बातों पर मुझे रोना आ रहा था । मेरे जरा से आश्वासन पर उसने अपने सर पर कितने बडे एहसान का पुलिंदा रख लिया था । संजय मैं कानून से लड सकूँ । इसके लिए मुझे पूरी घटना के बारे में विस्तार से जानने की जरूरत है । क्या तो मुझे इसके बारे में कुछ बता सकते हो । तू पलभर लिए खाली खाली आंखों से मेरी और देखता रहा । उसके आगे हम भी मिली थी । कहते हो तो से बोला राज्य मेरे होटल में इतनी हिम्मत नहीं बची है कि मैं तोहरे सामने उन भयानक वालों को दोबारा कह सकते हैं । तो प्रश्न सूचक निगाहों से मैंने उसकी ओर देखा तो उसने मेरी और अपनी डायरी बढा दी । बोला हो सकता है कुछ परिस्थितियों के दबाव में आकर में तुम्हारे सामने झूठ बोलता हूँ । मगर एक डायरी डायरी मेरी जिंदगी की घटनाओं का संग्रह है । झूठ नहीं बोलेगी इससे पढ लो समझे मैं चौंक पडा कि तुम्हारी जिंदगी के व्यक्तिगत और सार्वजनिक घटनाओं का पुलिंदा है । इसे मैं कैसे पढ सकता हूँ । आज तक मैंने तुमसे कोई बात नहीं हो पाई है । तो तुम आज ऐसा कह रहे हो । उससे भरी भरी नजरों से मेरी और देखा उनसे पढ सकते हो । मैंने अपनी फॅमिली उसे डायरी थाम ले । बातों ही बातों में घंटों गुजर गए थे । उस दौरान शिविर पार भी बाहर नहीं आई । बेचैन हो उठा । एक मिनट मैंने संजय से क्षमा मांगी और अंदर चला गया । शिविर आंगन पहुंचकर मैंने आवाज से जी आती हूँ फॅार मेरे कानों को छुआ तो मैं कहाँ था? मैं उसके रोने के कारण को समझ पाता । उससे पहले वाकर मेरे सामने खडी हो गई । लाला हैं मुरझाया चेहरा भेजी भीगी पलकें शायद वो भी रो कराई थी, हो रही थी । मैंने पूछा तो एकदम से आकर मेरे बदन से चिपक गई । किसी अनहोनी की आशंका पर मेरा बदन थर्रा उठा । श्री मुझे कोई गलती हो गई क्या? मैंने पूछा आप ऐसा मत कही उसकी पकड और मजबूत हो गई । ये मेरी खुशनसीबी है कि आप मेरी जिंदगी में आए हैं । मैं उसे खुद से अलग करने की कोशिश की और वो और मजबूती से मुझे जकड रही थी । रोते हुए बोली क्या इन सब मेरी करने लायक कुछ भी नहीं हैं जिससे मैं आपके आंसू को अपनी आंखों में भर लो वो सिसक उठे की आज मैं आपके आवासों को नहीं देख पाती ये आप जानते हैं ना खाशी जनता हूँ नहीं होने के कारण को समझ गया । वो दुखी थी संजय के हालात पर । मगर शायद उससे भी ज्यादा मेरी बेबसी पर क्यों इतनी अच्छी है? मैंने एक बार फिर उसे गले से लगा लिया । मेरी बाहों का कैसा बडा तो वह कसमसा उठी । कोई नया मौका नहीं था मेरे लिए । इसके पहले भी किसी बात को लेकर यदि मेरी आंखों में पानी की एक बूंद भी आती है तो शिविर की आंखें और उस पडती

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Voice Artist

सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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