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अगले दिन शाम को संजय को पुलिस हिरासत से छोटा था । हमारे वकील घनशाम दिवाली कागजी कार्रवाई के लिए वहीं थे । नी तूने मुझे सुबह से ही अपने घर बुला लिया था । संजय पुलिस हिरासत से लौटने वाला था इसलिए डी तो उसकी अगवानी के लिए घर को सजा रही थी । उसके हावभाव को बडे करीब से गौर कर रहा था । ढलती दोपहर के साथ नीतु के दिल की धडकन अचानक पडने लगी । उसके व्यवहार में उतावलापन और आंखों में चमक थी । आपने अक्सर कहाँ करता था कि जब आदमी इस तरी से प्यार करता है तो वो अपनी जिंदगी का बहुत छोटा सा हिस्सा उसे देता है । लेकिन जब स्त्री प्यार करती है तो अपना सब कुछ दे देती है । नीतू ऐसी ही स्त्रियों में से एक थी । संजय ने तिरस्कार, नफरत और अनदेखी के अलावा उसे कभी कुछ नहीं दिया था । मगर नीतु के लिए संजय उसकी दुनिया थी जिसकी अगवानी में वह सुबह से बिना रुके अपने छोटे से घर पर इधर से उधर भागे जा रही थी । बस करो नहीं तो मुस्कराकर कहा घर अच्छा लग रहा है । इसे और कितना चमका होगी तो शर्मा कर मेरी और देखने लगे और खासकर बोलिए मैं घर नहीं जा रही हैं । राज देख रही हूँ कि पूरा घर कैसे बिखरा पडा है । सूचना यू से थोडा व्यवस्थित कर दो । संजय को ऐसा घर देखकर शायद अच्छा ना लगे । लेकिन हम सुबह से इसी में लगी हूँ । पता है ना । हाँ हाँ पता है राज को मेरी और देखने लगी । फिर उसे शायद याद आया कि हम दोनों ने सुबह से कुछ नहीं खाया । तेजी से मेरी और बडी और हस्कर बोली जांच आपके अभी तक कुछ नहीं खाया । ना हो मैं भी कितनी वो लग कर हूँ । तो मेरे सामने पडी कुर्सी पर बैठ गई । मेरी हथेलियों पर अपनी हथेलियां रखते हुए बोली सौरी आज मुझे याद ही नहीं रहा । अब इस पांच मिनट रुकी । मैं आपके लिए कुछ बनाए दे रही हूँ । वो अचानक उठकर कुर्सी से खडी हो गई । आपको नूडल्स तो पसंद है ना आपके लिए । वहीं बना दूँ जी ऍम उसका बडा लेकिन की आपको याद है कि सुबह से आपने भी कुछ नहीं खाया । हाँ हाँ, याद है वो हंस पडी मगर मुझे भी भूख नहीं है । नहीं मैं हैरान नजर उसकी ओर देखा । शाम के पांच बजने वाले हैं । ही देखिये आपने वो उसने घडी की और देखा तो शर्मा समय का तो पता ही नहीं चला । चलिए उसी में थोडा अपने लिए भी बना लेंगे साथ ही खा लेंगे । वो पलट कर किचन की और बडी किचन में घुस नहीं उसके शरीर पर जैसे पंख लग गई हूँ । मुश्किल से पांच सात मिनट गुजारे होंगे । उसने गर्म नूडल्स के दो प्लेट सजा करने इस पर रखती है और कुर्सी पर बैठे हुए बोली था ये राहत जी मैंने प्लेट को अपनी और खींचते हुए कहा । फिर हम दोनों बिना एक दूसरे से कुछ कहे देर तक खाते रहे । पता नहीं हमारे पेट पर नौं कितने थे या फिर खाने की स्पीड भी दी थी । जहाँ जाना उसमें आवासीय उसकी और देखने लगा । मुझे समझ नहीं आ रहा है कि संजय मेरे सामने आएगा तो मैं खुद को कैसे संभाल पाऊंगी । पता नहीं उसे नजर मिलने की हिम्मत जुटा भी पाऊंगी या नहीं तो संजय होता है । जैसे ही आप उस की शादी के बाद भी उसे अपने घर पर मिल चुकी हैं । हार आज मिल तो चुकी हूँ मगर तब वो मेरा नहीं था । उससे क्या फर्क पडता है । नहीं तो वो किसी का भी रहा हो तो संजय ही हाँ हाँ तो मगर कुछ कहते कहते होगी । फिर बात को घुमाते हुए धीरे से बोले छोडी ना आज नहीं समझेंगे । हमने खाना खत्म कर लिया । वो दोनों बेटों को समेट रही थी और किचन की ओर चल पडी । उसकी और तक देखता रहा । उसके हावभाव को बारीकी से समझने की कोशिश कर रहा था । यहाँ पहुंचाना ठहर गई । मेरी और घूमते हुए बोली मैंने कल शाम कुछ खरीदारी की थी कि आपसी देखना चाहेंगे कि बिलकुल आउट कर खडा हो गया । ठीक है अब हाथ धो लीजिए फिर आपको दिखाती हूँ उसमें किचन के सिंक में दोनों गंदी प्रेट्र की हुआ और दीवार पर टंगी तोलिये से हाथ पहुंचती हुई मेरी और देखा आ जाएंगे । अपने बेडरूम में घुस गई । उसके पीछे पीछे मैं भी चला गया । वो अलमारी के पास खडी होकर एक बार फिर मेरी और देख रही थी । उसके होठों पर मुस्कान ऐसे बिखर गई थी जैसे मध्यम रोशनी में कोई कमल खिल उठा हो । आज उसने कहा मुझे नहीं पता कि मैं क्या कर रही हो मगर एक बात करूँ आपसे मैं उसकी और प्रश्न पूर्ण निगाहों से देखने लगा । वो अपनी बात जारी रखते हुए बोले जब संजय को पाने की उम्मीद नहीं थी तो ना तो मुझे ऐसे उत्सुकता थी और ना ही ऐसा उतावलापन । मैंने उसे अपनी किस्मत समझकर उससे अलग रहकर जीना सीख रही थी । मगर अब देखो जब उसे पाने की उम्मीद जगी है तो इंतजार नहीं हो रहा है । कहते हुए उसने अलमारी खोली और एक बडा सा बॉक्स निकालकर स्तर पर रख दिया । ये क्या है? मैंने पूछा तो वहाँ पडी खुद ही खोल कर देख लीजिए, लेकिन है क्या? कहते हुए मैं छुट गया मेरी और एक तक देखे जा रही थी । मैंने बॉक्स ढककर उठाया तो हैरान रह गया । बॉक्स श्रंगार के सामान से भरा हुआ था तो चूडियां, महंगी लिपस्टिक बंदी संदूर और मैं जाने क्या क्या नहीं तू की और देखने लगा । आपको भी इन चीजों का शौक है । मैंने पूछा क्यों? मैं भी तो और ऍम नहीं रहा है उससे मेरी बात बीच में कार्ड होली बचपन में जब मैं अपनी माँ के हाथों में बारह पंद्रह चूडियां होटों पर ढेर सारी लिप्सिंग और मांग के इस छोर से लेकर उस छोड तक सिंदूर भर्ती देखती थी तो गुस्से से लाल पीली हो जाया करती बनाते हुए कहती की क्या माँ आप भी ये क्या करती हूँ? इतनी चूडियों के बोर्ड से आपका हाथ नहीं दुखता और ये सिंधु जी इतना लम्बा भरना जरूरी है क्या इसी थोडा सा भी तो लगाया जा सकता है । इस पर जानते हो क्या कहती थी वो खास कर कहती हैं कि तुम अभी बहुत छोटी हो तो नहीं समझता हूँ ये सब ये चूडियां ये सिंदूर सुहाग की निशानी है जो किस्मत वालों को ही मिलती है । और जब मैं रूट कर कहती की माँ में दसवीं में पढ रही हूँ अब इतनी छोटी नहीं हो तो हस कर कहती जानती हूँ । तभी कहती हूँ कि जल्दी ही तो ये सब कर होगी । माँ की इस बात पर मैं टूटकर कहती कि नहीं मैं ये सब कभी नहीं करूंगी । मैं किसी के लिए अपनी मांग में इतना सिंधु लपेटकर नहीं रह सकती । और फिर आज देखी राज्य इसी सिंदूर चूडियों के लिए में कितनी उतावली हूँ । सच कहूँ सुहागन होने का सिर्फ अहसास मेरे अंदर धरती से आकाश तक का गुरूर भर दिया है । समझ सकता हूँ मैंने कहा तभी अचानक मेरे फोन की घंटी टनटन आउट उन मेरे वकील का था । मैंने फोन उठा लिया हूँ । मैं नीतू जी के घर के नीचे खडा हूँ आप जरा नीचे आ जाइए । उस ने कहा की आवाज में कुछ भारीपन था अरे अपनी चेकिंग बडे ऊपर चाहिए । मैंने हसते हुए कहा और सब्जी कहा है । आप नीचे आ जाइए । उस ने दोहराया फोन कर दिया । उसकी इस अप्रत्याशित व्यवहार पर भी सनसेट देखा । मैं अभी नीचे करा रहा हूँ । मैंने नीतू से जैसे तैसे कहा और लगभग ढाकने कदमों से बाहर के अलग का । लगभग पंद्रह मिनट बाद जब वापस लौटा तो मेरी आंखें भरी हुई थी । मैं थके हुए कदमों से सीरिया चलता हुआ जाकर भी तू के सामने खडा हो गया । उसने मेरी और नहीं देखा । मैंने रुंधे हुए गले से पुकारा लेकिन फॅमिली और ध्यान नहीं दिया । तो बे खबर अपने होठों पर जमाने भर की मुस्कान सजाए हुए हाथों में चूडियां डालती रही नहीं, तू दोबारा पुकारा । उसने अपनी नजरे उठाई । उसकी नजर जैसे ही मेरी आंखों में उबल रहे, समंदर पर पडी, उसके हाथ से चूडियाँ छूटी और कई टुकडों में पटकर फर्श पर बिखर गई । थोडी देर तक हवा वो मेरी और देखती रही । फिर बडी मुश्किल से उसके होट खुले । मेरी और बढते हुए बोली यहाँ क्या हुआ? संजीव ही तो है ना । मैं कुछ कह नहीं पाया तो वह मेरे कंधे को झकझोरने लगी । बोलो नाराज संजय ठीक है ना, अब आप कुछ बोलते क्यों नहीं? पुलिस के द्वारा किए गए सकता और इलाज में भी लापरवाही नहीं फॅस । जोर से चिन्हट पडा अब वो इस दुनिया में नहीं रहा । मेरी बात सुनते ही जैसे एक किसी ने उसके शरीर से उसके प्राण निकले हो । वो बेजान उसी की तरह मेरे कपडों पर लटक गई । उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकली होने की भी नहीं । मैंने फिर उसे कोई सांत्वना नहीं दी । पट रही नजरों से मैं तेल पक फर्श पर बिखरी टी चूडियों की और एक तक देखता रहा । मेरे सामने पूरी दुनियाँ एक पूरा युग समाप्त हो चुका था ।
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