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खुशबू के वकील इकबाल अंसारी ने मुकदमे को जिस तरीके से तोड मरोड कर अदालत में पेश किया, उसे समझने के बाद पंखुडी को पाने की मेरी उम्मीद टूट कर बिखर चुकी थी । कितनी आसानी से उसने साबित कर दिया कि मैंने कभी पंखुडी को प्यार नहीं किया । भगवान जानता है कि मेरी बेटी पंखुडी मेरे लिए क्या था? मेरा तो भारत से सवाल था कि क्या कोई मुझे बता सकता है कि इन चार सालों में खुश भी में पंखुडी के लिए क्या किया था? मेरी सिर्फ इतनी गलती है कि मैं उसका पिता हूँ । मान नहीं, मैं समझ नहीं पा रहा था की अदालत निर्णय पर कैसे पहुंच गई की बेटी पालन पोषण सिर्फ माँ ही बेहतर कर सकती है, पिता नहीं । अदालत के सामने कटघरे में घुटनों पर बैठकर फिर गन्दा रोया अगर मेरी आवाज किसी के कानों तक नहीं पहुंच पाई । अदालत मुझे पुरुष होने की सजा सुना रही थी और न्याय की देवी आस में पट्टी बांधे हुए भरी अदालत में अन्याय होते हुए देखती रही । मैं बता नहीं सकता कि उस दिन पहली बार मुझे अपने पापा की कमी कितनी महसूस हुई । अगर वहाँ होते तो मैं यकीन से कहता था कि वह पूरी अदालत मेरे सामने समर्पित हो जाती है । मेरे आंसू की कीमत मेरे रुलाने वाले को चुकानी पडती । मेरा बहुत मन रोने लगा । मैं हाथ जोडकर जज के सामने चिंघाड । बडा मान्यवर ये सरासर मुझ पर गलत आरोप लगाया जा रहा है । मेरा भगवान जानता है की पंखुडी को मुझ से ज्यादा प्यार और सुरक्षा दुनिया में कोई नहीं दे सकता । मैं पंखुडी को पाने के लिए, अपने घर को अपनी सारी दौलत को छोडने के लिए तैयार हूँ । पहले कुछ अपनी पंखुडी दे दीजिए । लॉर्ड मिस्टर संजय कौनसे घर की बात कर रहे हैं एक बार बीच में ही बोल बडा इनके पास लखनऊ शहर में कोई अपना घर नहीं है । उसने अपनी इमेज से उस पेपर उठाए और जब साहब को थमा दिए । ये जिस घर की बात कर रहे हैं, दरअसल वो मेरी क्लाइंट खुशबू के नाम पर है और उसकी मालकिन भी वही है और ये पेपर उसके सबूत हैं । वर्जन था वो घर मेरे पापा ने हमें शादी के उपहार के रूप में दिया था । दिया होगा मिस्टर संजय मगर वो मेरी क्लाइंट खुशबू के नाम पर है । इसीलिए उस घर पर कानूनी तौर पर अब उनका अधिकार है इकबाल नहीं । अदालत को संबोधित करते हुए कहा मैं चुप हो गया । चंद घंटों के भीतर देखते ही देखते मेरी पूरी दुनिया उजड गई । मेरी पत्नी किसी और की क्लाइंट बन गई । मेरी अपनी बेटी मुझ से छीन कर उसकी माँ को दे दी गई और वह घर आपको घर जिसे मेरे पापा ने बडे प्यार से हमारी जिंदगी की शुरुआत के लिए हमें गिफ्ट किया था, वो मेरा नहीं रहा । इस वक्त जब नहीं किराये के कमरे में चटाई डाले हुए लेता हूँ, सोच रहा हूँ स्त्रियों के बारे में सोच रहा हूँ क्या वाकई पीडित हैं अपन थोडी उसने अदालत के सामने क्यों नहीं कहा कि मैं पापा के साथ जाना चाहती हूँ । मैं पापा के साथ रहोगी । वो मुझे बहुत प्यार करती है । खटखटाओ जी का एक मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई तो मैं उठ कर बैठ गया । दरवाजा खुला हुआ है । कटाई बैठे बैठे ही मैंने कहा अगले पल दरवाजे के पट खोले तो मैं चौंक गया । एक लम्बा चौडा इंसान मेरे सामने खडा था ये वही काला कोठारी इंसान था तो अदालत में उछल उछल कर खुशबू की तरफ से दलीलें पेश कर रहा था । क्या किसी आई हूँ? बहुत कर खडा हो गया उसने मेरी बात सुन तो मुस्कुरा पडा और फिर रहते हुए बोला ऍम चल कर अपनी फॅमिली को ले आओ । मुझे वो लडकी बिल्कुल पसंद नहीं है, जो बडी जल्दी ऍसे । दस बारह दिनों में ही अदालत में तो उछल उछल कर दलीलें पेश कर रहे तो उसकी संजय बंगडी को पाना खुशबू की चाहत थी मेरी नहीं । मेरा तो सिर्फ एक इम्तिहान था । मैंने पास कर लिया । मुझे खुशबू चाहिए थी और वो मुझे मिल गई । उसने अपने आखिरी वक्त को धीरे से कहा और वहाँ से निकल गया को पाने के लिए । अंदर ही अंदर मेरे दिल पर चारों शूल चुप सोचने लगा खुशबू के और कितनों से रिश्ते हैं ।
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