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रात को लगभग बारह बजने वाले थे । खुशबू तब तक घर नहीं पहुंची । उसे देर हुआ करती थी । मगर ये उसकी हत्थी जहाँ तक मुझे याद है वह नौ दस बजे तक अक्सर आ जाया करती थी । उस दिन मैंने सोच लिया था कि आज वो हर कुछ कर जाऊंगा तो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था । अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा है । मेरे छह बजे के आस पास उसके ऑफिस में फोन करके पता किया की वह वहाँ से निकल चुकी है । लगभग छह घंटे से वो कहाँ है उसके साथ है । मैंने बंगडी को खाना खिलाने के बाद स्तर पर सुनने के लिए ले गया लेकिन वो नहीं हुई । दरअसल उसे मम्मी और पापा के बीच में सोने की आदत थी । मैं उसे लेकर बरांडे में आ गया । लगभग सवा बारह बज रहे थे । एक किसी के पैरों की आहट सुनाई दी । मैं आंखे फैलाकर दरवाजे की और देखा । अंधेरा और रोशनी की जरूरत को पार करती खुशबू चली आ रही थी । उसके हाथ में कुछ कागज का टुकडा था जिससे वो लहरा रही थी । कुछ पल गुजरे तो वो ही का एक बरामदे की रोशनी में दाखिल हुई । ना उससे कुछ दूर कुर्सी पर बैठा हुआ हमारे नजरिए मिली तो वहीं ठहर गई और हाथ में लहरा रहे कागज को पडने लगी । प्रेमपत्र होगा अपना अंदर ही अंदर मैंने सोचा मेरे दिल की धडकन नहीं का एक रफ्तार पकड रही थी । वो पत्र पड चुकी तो तेजी से मेरी और बडी मैं उसके चेहरे से अपनी नजरें हटा ली । पंखुडी उसने पुकारा । पंखुडी मेरे पास ही एक खिलोने में व्यस्त थी । मम्मी पंखुडी एका एक खिलौना छोड कर उसके और भागे खुशबू से गोद में उठा लिया । उस दौरान उसकी नजरें पर फिर मेरी नजरों से टकराई । उसके चेहरे पर दरिया संकोच का तीस दिन का भी नहीं था । मैं इस से पहले कुछ पूछता । उसने पंखुडी के नन्हें हाथों में उस कागज को थमाते हुए बोली, लोग अपने पापा को उनका प्रेमपत्र दे दो । बोलना दिल्ली से आया है । दिल्ली से तेजी से कुर्सी से उठा और लगभग कर पंखुडी के हाथ से चपट लिया । सब्र नहीं हो रहा है । जरा भी मेरी और टूटकर ऐसे देखिए जैसे गुना उसने नहीं मैंने कर दिया हूँ । मैंने कुछ नहीं कहा । चंद क्षण होता तो उम्मीद थी और देखती रही । फिर अपने बॉस को वहीं खडे खडे दरवाजे के सामने ही रखे बैड पर फेंक कर पात्रों की और चली गई । पत्र प्रियंका था जिससे अपनी मौत के दो दिन पहले ही लिखा था तो इतने समय बाद मुझ तक पहुंच पाया । प्रिया को मरे हुए एक महीने से भी ज्यादा हो चुका था । फिर इतने दिन कहाँ था? ये पत्र शायद खुशबू के पास हो सकता है कि मुझे पहुंचने में देरी हो गई हूँ । भारतीय डाक है, कुछ भी हो सकता है । मैं पत्र को लेकर बैडरूम चला गया । संजय कैसे हो तुम? उम्मीद है ठीक हो गए आज इतनी इतनी बात खत्म कर रही हूँ । बुरा मत मानना बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से खत्म नहीं लिख पाई । वैसे तुमने भी तो नहीं लिखा । मुझे शिकायत कर रही हूँ । बुरा मत मानना । हम जानते हो ये मेरी आदत है । संजय तुम सच कहते थे । सुधाकर बहुत अच्छे इंसान है । शायद उससे भी ज्यादा जितना तुम ने मुझे बताया था । मैं सचमुच उनकी बहुत जॉब करती हूँ और वो भी मुझे जान से जाना चाहते हैं । लेकिन पता नहीं क्यों मैं आज भी नहीं समझ पा रही हूँ कि तुम मेरे क्या होगा । दोस्त जो भी हो उसी रिश्ते से तो मैं बता रही हूँ । अपने जीवन के बारे में आपने आज के बारे में संजय मैं अतीत को बनाने की कोशिश में अपने वर्तमान में फंस गई हूँ । इससे निकलने का मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है । आपने स्वच्छ के साथ अकेली पड गई हूँ और अब उससे निकलने के लिए अकेले ही लड रही हूँ । जानते हो क्यूँ? क्योंकि स्वच्छ के बारे में मैं सुधाकर को भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हूँ । मैं नहीं जानती कि जो कुछ मैं बताने जा रही हूँ उसे जानकर तो मेरे बारे में क्या सोच हो गई । मगर फिर भी बता रही हूँ शादी के तीन साल बाद भी जब हमारे कोई बच्चा नहीं हुआ तो मुझे बहुत दुख हुआ । हम दोनों नहीं अपना अच्छा कब करवाया तो पता चला कि सुधाकर कभी बात नहीं बन सकते । इस खबर ने मुझे अंदर तक तोड कर रख दिया । संजय मैं तो मैं हर हाल में बोलना चाहती थी और उसके लिए मुझे ढेर सारे बच्चे चाहिए थे । तुम्हें याद है? मैंने तुमसे कहा भी था ताकि मैं उन में व्यस्त हूँ । मैं काफी दिन तक खुद में घूमती रही और कर भी क्या सकती थी । जब ऊपर वाला ही बारिश के पानी में आग लगा दे तो मैं बंजर ही बन होंगी । पता नहीं । भगवान कभी कभी इतना बेरहम क्यों हो जाया करता है? खासकर मुझे लेकर मैंने तुम्हें पाना चाहते तो नहीं मिले तो मैं बोलने के लिए बच्चे चाहिए थे । बच्चे नहीं मिले तो कब तक ऊपर वाले की कठपुतली बनकर नाश्ते रहती हैं । मैंने उस को चुनौती देने का फैसला किया । मुझे ये बात लिखने में संकोच हो रहा है पर सच्चाई से कब तक नहीं बोलती फिर होंगे । मैंने बच्चे की ख्वाइश में अपने पडोसी युवक का सहारा लिया और उसमें सफल भी हुई । अब इस वक्त जब मैं तो खत्म देख रही हूँ, उसका कर मेरे पेट में हुआ है । हालांकि मैं कुछ दिनों तक इस बात को सुधाकर से छुपाती नहीं मगर ये कैसा सब था । इसको एक ना एक दिन सामने आना ही था । मैंने सुधाकर को ये बात बता दी । सुधाकर बहुत अच्छा इंसान है । वो मेरे मातृत्व के सामने छुट गया और बच्चे को अपना नाम देने के लिए तैयार हो गया । मगर मेरी बदनसीबी देखो । संजय अभी दूसरा व्यक्ति मेरे पीछे पड गया तो मेरे पडोसी का दोस्त है । वो चाहता है कि मैं उसके साथ थे । वही सब करूँ तो मैंने अपने पडोसी के साथ करती रही हूँ । उसने मुझे धमकी दी कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो दुनिया के सामने मेरे सच को उजागर कर देगा । हालत में मैं क्या करती है? मैं एक औरत हूं और तुम जानते हो कि औरत होना क्या होता है । मुझे जिंदगी का वह जहर भी पीना पडा तो दोनों दोस्त वापस में दुश्मन बन गए हैं और मैं दो गैरमर्दों के बीच लगातार फस रही हूँ किसकी सुनी हूँ और किसकी नहीं कुछ कुछ समझ नहीं आ रहा है । मैं अपने इस मजबूरी को सुधाकर से भी नहीं कर पा रही हूँ । संजय तो वैसे मेरी कमजोरी भी कह सकते हो फिर भी पूछ रही हूँ बताऊँ अभी क्या करूँ कौन सा रस्ता पकडो और किसी छोड दुनिया के डर से अब मैं अघोषित वैश्या बन कर रह गई हूँ । बहुत घबरा रही हूँ कर रही हूँ कि एक बच्चे की बारिश में फस्ट और आखिर कब तक क्यों घसीटती रहेगी मेरी ये जिंदगी क्या होगा इसका हूँ छोडो संजय मेरी बातों को मेरी जिंदगी ऐसी है कि मैं चाहकर भी इन सबसे बडा तो नहीं सकती । तो बताओ तुम कैसे हो? कैसे कट रही है हमारी अच्छा तो बहुत खुश हो गए खुशबू लडकी ही ऐसी है दोस्त जो है हमारी एक बात बताओ संजय की अब भी वो लडकी लगती होगी और बन गई होगी ना अब तक कभी से मिलवा होगी मुझे मुझे अब तक माफ कर पाई अभी नाराज है वहाँ एक बात पूछनी को बोल रही हूँ जब तक तुम बच्चों की तीन तैयार कर पाये कि नहीं क्या देना है तुमने क्रिकेट टीम तैयार करना चाहते थे । मुझे हमारी बहुत याद आती है । मैंने गुस्से में तुम्हारा फोन नंबर भी अपने मोबाइल से हटा दिया था ताकि तुम्हें फोन भी ना कर पाऊँ खत के नीचे में अपना नंबर लिख रही हूँ कभी कभी फोन कर लिया कर ना खत समाप्त होते ही मैं चिंघाड करो । पडा जो भगवान कभी कभी सब बहुत किसी के लिए इतना कठोर हो जाया करता है बस करो अब इतना भी मत रहो एक एक दरवाजे पर खडी फॅसा देखा पंखुडी अपने पापा को कितना दुख हो रहा है उन्हें दूसरे के दर्ज में कभी कभी हमारे लिए भी रो लिया करो, खुश हो मैंने अपनी लाल आंखों से उसकी और देखा चिल्ला क्यों रहे हो? क्या गलत कहा है मैंने कहती हुई वह पंखुडी को वहीं दरवाजे पर छोडकर बरामदे की और पलट पडी पंखुडी दौडती हुई मेरी खोदी में आ गई ना धीर तक बिस्तर में पौधे बुलेट आ रहा तो उस तरह प्रिया की जिंदगी के बारे में पंखुडी मेरे बगल में चुप चाप लेटी रही । संजय एक बार फिर खुशबू का कर्कश स्वर भेद गया । मेरे कानों को अब पढे ही रहोगे क्या? मुझे भूख लगी है? चल कर खाना निकालो कहती हुई वो कमरे में घुस आई । मैंने कोई जवाब नहीं दिया । रात गुजर गई । मैंने सुबह सुबह उस पत्र को न्यायालय को पोस्ट कर दिया था । जी यकीन था प्रिया का ये पत्र सुधाकर की रिहाई का सबसे ठोस सबूत साबित हो सकता है ।
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