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मेरी अर्धांगनी उसकी प्रेमिका - 65 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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जब पैदा बाय उस हालत को अपने घटिया चुटकुलों से हटाने की कोशिश कर रहा होता है तो उस वक्त वो खुद अंदर ही अंदर रो रहा होता है । मैंने आखिरी दिनों में ऐसा करते हुए अक्सर अपने पापा को देखा था । मुश्किल का वक्त मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए अक्सर कहा करते थे चिंता मत करो मैं होना और उनके इस भरोसे पर मैं सचमुच चिंता मुक्त हो जाता । मगर वही चिंता और उन्हें चलाने लगती महीने बचपन से उन्हें देखने के लिए मुझे अपनी नजर दे दी थी और मैंने सालों तक उसी नजर से देखता रहा । सोचता हूँ की खुशबू अगर यही पंखुडी के साथ करें तो मैंने उचककर पंखुडी के चेहरे की और देखा तो खुशबू और मेरे बीच में लेटी हुई चयन से हो रही थी । उस दौरान मेरी नजरिये निद्रा में डूबे हुए खुशबू के चेहरे पर भी गई । मैं परेशान हो उठा । पता नहीं क्यों शायद इसलिए कि मुझे नहीं नहीं आ रही है या फिर इसलिए हो रही है । राहत का पहला पहर पीटने वाला था । मगर मेरी आंखों में नींद का खतरा भी नहीं था । कमरे में फैली धीमी रोशनी के बीच मैं छत पर लगातार घूम रहे पंखे को देखता रहा । मन में था, कुंठा थी । इनका इतना उठकर बैठ गया । गर्दन घुमाकर खुशबू की ओर देखा तो मन एक घंटा से भर गया । पूरी था कुछ करके भी चैन से हो रही है और मैं मैं क्या कर रहा हूँ? मेरा चैन कहाँ गया? उस वक्त अचानक मेरा खून खौल उठा । एक बार तो लगा कि अभी उसका कडा खोल दो या फिर उसके जिसमें इतने चाकू भोग दो, किसका बदन खंड खंड हो जाए? मैं कभी हाँ बिस्तर से उतरा और पांच रखी अलमारियों में कुछ खोजने लगा । मगर क्या याद नहीं आ रहा था । कुछ देर तक पूछता रहा मुझे वहाँ कुछ नहीं मिला तो पहनता हुआ मैं रसोई की तरफ बढ गया । सब्जी की टोकरी मेरे सामने थी । चाकू मेरी आंखों में अचानक चमकाई । हाँ यही तो खोज रहा था । मैंने टोकरी चाकू उठाया और सीधे बैडरूम पहुंच गया । खुशबू गहरी नींद में थी । मैं थोडी देर खडा उसे देखता रहा । फिर अकस्मात ही मेरा आपका और खर्च पहला चाकॅलेट क्या उत्तर अब कर मेरी और देखी और मैंने अपने हाथ से उसका मूड हवा लिया । फिर खर्च न जाने कितनी आवाजे हुई । उसका बदन लहूलुहान हो गया । बिस्तर पर पूरी तरह खून ही खून बिखर गया । मगर मेरे मन की पीडा अब भी शांत नहीं हुई । मैंने बडी बेरहमी से चाकू उस के स्तरों में घुसेड दिया । थोडी देर तक मैं अपनी लाल आंखों से उसके तहस नहस हो चुके बदन को देखता रहा । उसकी सांसे थम चुकी थी । उसके बदन का कौन सा सबसे ज्यादा पैसा? इसकी प्यास ने मेरे घर को छोड दिया । कुछ अचानक याद आया तो एक बार फिर मैंने झटके में बीस हो चाकू चला दिए । पापा अचानक पंखुडी उठकर बैठ गई । मैं हडबडाकर उसकी और देखा । उन रहता हूँ । उसके नीचे तक चला गया था । वो अपने खून से भी चुके हाथों को उठाये हुए मेरी और एक तक देख रही थी । फिर अचानक उसकी निगाह खुशबू पर बडी तो जोर से चीख पडी । मम्मी को क्या हुआ? उन को खुद ही रहा है । कुछ नहीं पीता । कुछ नहीं । मैं लगभग कर खून से सने हुए, अपने हाथों की बिना परवाह किए हुए उसे गोदी में उठाकर बाहर की और भागा । तभी अचानक रूम सडक पर एक जान पहचान आवाज गूंजी तो पुलिस पुलिस फिर मुझे चीख निकल गई । क्या हुआ संजय करवा लेते हुए खुशबू तो मेरी और देखी तब सपना था । कुछ सपना था अचानक उठ कर बैठ गया । मिस्टर को थोडी देर तो देखता रहा । मेरा पदन कहाँ रहा था? संजय खुशबू भी उठकर बैठ गई । लाइनलाॅस मैंने हफ्ते में कहा अगले पल पूरी कमरे में रोशनी बिखर गई । मैंने पंखुडी की और गौर से देखा । वह हो रही थी । खुशबू मेरे घबराहट देखकर डर गई । उसे कुछ नहीं सूझा और उसने मुझे अपनी बाहों में भरकर अपने दुपट्टे से मेरे माथे का पसीना पहुंचने लगी । कुछ बुक नहीं कौन सा था । मैं भी तो उसके चेहरे की और देखता रहा ।

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सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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