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मेरी अर्धांगनी उसकी प्रेमिका - 63 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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रात का दूसरा तहर दबी पहुँच गुजर रहा था । एक डोरबैल चिल्ला उठी मैं चौंक कर जग मेरी निगाहें दीवाल पर टंगी घडी पर गई । रात के दो बज रही थी पहुँच सकता इतनी रात को मैंने बिजली का सोच क्या कमरे में रोशनी बिखेरते ही पंखुडी कि आखिर हो गयी खुशबू अब भी सो रही थी । पापा को बोली और उसका पडी मैं झुककर अपने हो तो उसके गाल छोडिए । बेटा तुम सोचा मैंने कहा तो पंखुडी पुणे से लेट गयी जिससे वो मुझ से इतना प्यार पाने की चाहत में जगह थी । अपने कमरे से निकलकर सीढियां उतरते हुए तटवासी की और बडा दरवाजे के पीछे लगी । बाहर लाइट की सोच थी मेरे स्विच दबाते ही दरवाजे के बाहर एक का एक रोशनी बिखर गई । मेरा शरीर उसी समय कहाँ उठा जब दरवाजे पर खडा व्यक्ति रोशनी बिखेरते ही झटके से पीछे अंधेरे की और हट गया । हो सकता है रात को क्यों है? कुछ दिनों तक मैं सोचता रहता हूँ हिम्मत जुटाकर मैंने पूछा कौन है बाहर मैं संजय बाहर शाॅल मैंने आपको पहचाना नहीं । इधर इधर रोशनी में आइए । मेरी आवाज सुनी तो चौदह दिनों के लिए रोशनी में आया और फिर उसी झटके से लौटते हुए अंधेरे का सहारा लेकर खडा हो गया । मैं उसे पहचान नहीं पाया । बिखरे बाल उल जलूल कपडे आंखों पर बडा सा चश्मा पता नहीं कौन है मैं तो मैं नहीं जानता । हाँ तो जहाँ से कहते हुए मैं पडा रुपये निश्चित । संजय एक बार फिर वो इंसान रोशनी की और थोडा हम सुधाकर हैं । डॉक्टर सुधाकर प्रिया के पति सुधाकर उसके और गौर से देखा तो सुधाकर ही था । अरे सुधाकर बाबू, आप मैं चौंकते हुए बोला इतनी रात को यहाँ लखनऊ में हाँ मिस्टर संजय अपनी पहले दरवाजा को लिए पुलिस मेरे पीछे पडी हुई है और पीछे रौशनी भुजा दीजिए । मैंने बढकर दरवाजा खोल लिया । दरवाजा खुलते ही सुधाकर तीव्रता से भीतर घुसा ना । उसे लेकर सीधा गस्टो पहुंच गया । ऍम मैंने पूछा ऍम नहीं नहीं मिस्टर संजय परेशान मत हुई है । इस वक्त खाने पीने की कोई जरूरत नहीं है । आपने पनाह दे दी । मिली इतना ही काफी है । कैसे हो सकता है आप मेरे घर में हो फिर भी मैं कुछ लेकर आता हूँ । मैं अंदर चला गया । जब लौटा तो अलमारी सब बिस्कुट के पैकेट और पानी के बॉर्डर लेकर गेस्ट रूम में पहुंच गया । पैसा संजय भी वजह को देख कर दी । उसके सूखे होठों के बीच से रोक ही हंसी फूट पडी रहे । इसमें दिक्कत की क्या बात सुनाकर? बाबू आप मेरे मेहमान है । मेरी और खाली खाली नजरों से देखने लगा । ॅ उसकी तरफ बढा दी । उसने बिना कहे प्लेट से बिस्कुट उठाकर अपने भूमि डाली । उसका दिमाग भी कोई तूफान था जिसकी खामोश आंखों में दिख रहा था । इस कैसे हो गया सुधाकर बाबा? मैंने पूछा मेरे सवाल उसके कानों में टकराया तो मेरी और भरी भरी नजरों से देखने लगा । मैंने जो पडा है वह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है । किसने किया ही सब? मुझे उम्मीद थी कि वह प्रतिक्रिया में कुछ कहेगा, अपनी सफाई देगा या गुनाह कबूल करेगा, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया । उदवीर तक खामोश बैठा मूल्य पडे दस कोट ऐसे चलता रहा जैसे उसे निकलना भूल गया हो और लीजिए ना? मैंने कहा तो वो अच्छा मैं भावुक हो था । उसने अपने आँखों से चश्मा उतारते हुए मेरी और देखा । उसकी आंखें नम हो गई थी । खुद को संभालने के लिए पानी का क्लास उठाया और एक ही स्वास्थ्य में कट गया । संजय खाली गिलास रखते हैं । उसने कहा, पीएम वास्तव में जितनी गलत थी, इतना गलत मैंने उसे कभी नहीं समझा । मैंने कुछ नहीं कहा हाँ बताइए । मिस्टर संजय उस ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा ऍम जीवन में संतान की इतनी जरूरत होती है कि अगर पति सक्षम न हो तो पत्नी किसी गैर मर्द के सामने अपना दामन अपनी जब सिर्फ इसलिए समर्पित कर दे कि उसे संतान चाहिए । हाँ चौपड अब अभी क्या कह रहे हैं? सुधाकर बाबू ऍम प्रिया के खत्म का मुख्य कारण यही था । वो बच्चा चाहती थी और वो असक्षम पति नहीं था । मेरी मेडिकल रिपोर्ट कहती हैं कि मैं आप नहीं बन सकता था और मेरी कमजोरी का उसने ऐसा हल निकाला । उसने बच्चे के लिए मेरे पडोसी का सहारा लेने की कोशिश की । इसमें वो सफल भी रही । उसके पेट में गर्भ आ गया तो झूठ नहीं कहूंगा विश्व संजय इस मामले में प्रिया ने ईमानदारी भी दिखाई । उसने मुझे इस पूरे मामले को बताया तो मैंने उससे कोई शिकायत नहीं की । मैं इस तरीके मातृत्व की उत्कंठा को भलीभांति समझता हूँ । उसकी खुशी के लिए मैंने जिंदगी का ये जहर मैं सिर्फ दिया बल्कि उस का साथ देने का वायदा भी किया और मैं देता भी तो उस वक्त मैंने पूछा उन लोगों ने मारती अब से क्यों मेरे पूरे बदन में झुनझुनी कर गई । मेरे अलावा प्रिया के और दो लोगों के साथ संबंध थे । अचानक उसकी आंखों से पानी की चंद बूंदे उछल कर फर्श पर टपक पडेंगे । उसने बल्कि झुक काली । थोडी देर खामोश रहने के बाद उसने खुद को संभाला और कौनसी आवाज में बोला जी शुक्रिया । मेरी प्रिया उन्हीं के बीच मिस कर रहे हैं । आप जानते हैं अगर मर्द एक बार औरत के शरीर को पाले तो वो उसे अपनी संपत्ति समझने लगता है । प्रिया के शरीर पर अपने हक की इसी खींचातानी में उन्होंने उन्होंने से मार डाला । कर बाबू मेरी निगाहें तक उसके चेहरे पर अटक कर रह गई । उसमें रोमांस अपनी आंखें पहुंची पर लंबी लंबी सबसे खींचते हुए मेरी और देखा और बोला अगर आप प्रिया की लाश देखते तो समझ चाहते कि इतनी पे रहने से उसे मारा गया । मेरे ही घर में घुसकर आपने बचाने की कोशिश नहीं की । उस वक्त मैं ऑफिस में था नहीं किया गया था । मैंने हैरान होते हुए उस की और देखा । दोपहर में महिलाबाद शाजी लौटाऊं इलाज देखी है मैंने । मैंने बोला तब तो आप उनकी जवानी से रूबरू हुए । हो गए जी मेरी आंखों के सामने एक बार फिर प्रियंका वह जख्मी बदन खुलने लगा । इतनी खूबसूरत गुलदस्ते का इतना पूरा मेरी आंखों में पानी की बूंदे उत्तराई सुबह के लगभग पाँच बजने वाले थे । सुधाकर सोफे पर बैठे बैठे हो गया, लेकिन मुझे नहीं नहीं आएगा । मैंने उसके हाथ को हिलाते हुए बोला । आकर बाबू नींद की दरिया में डूब इंसान भरी एक की आवाज में उठकर बैठ गया और फटी पडी निगाहों से मेरी और देखने लगा । इससे पहले वो कोई सवाल करता । मैंने कहा पांच बच गए हैं । इस लाकर बाबू जल्दी उजाला होने वाला है । मेरी आशा को समझा तो उस पर खडा हो गया । धीरे से बोला अगर आपको तकलीफ हो तो क्या मैं आज यहां ठहर सकता हूँ । आपको पता है कि मेरे सगे संबंधियों के यहाँ किसी पागल कुत्ते की तरह पुलिस मुझे खोज रही होगी । यही जगह जहाँ उनके पहुंचने की संभावनाएं नहीं है, उसके स्वरूप में तेज भाषा ला जारी थी । मैं कुछ देर तक सोचता रहा । उस वक्त पुलिस का लफडा मेरी आंखों के सामने घूम रहा था और ऐसे मामलों में मैं जान बूझ कर नहीं फंसना चाहता था । मैंने उसे पनाह देने से इंकार कर दिया । मेरी खामोशी देखी तो बिना छत भर भी देरी किए हुए वहाँ से निकल गया । अगले ही दिन अखबारों में उसकी तस्वीर छप गई । पुलिस नहीं उसे हिरासत में ले लिया था ।

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सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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