Made with in India
मुझे शाम को वापस लखनऊ लौटना था । ट्रेन के निकलने में काफी वक्त था हूँ । मैंने खुद से सवाल किया आपने जॉन्सटाउन के घर पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था । आप आगे जाने के बाद से उस घर में में कभी नहीं गया । उसके निचले वाले हिस्से में मैंने अपने दोस्त किशन को कोचिंग चलाने की अनुमति दे दी थी । ऊपर का हिस्सा घर के सामान से भरा हुआ था । प्रिया के घर में मैं नीतू से चार सालों बाद पहली बार मिला था । अगर हालात अच्छे थे कि हम दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई । मैंने टैक्सी पकडी और सीधे उसके घर उतर गया । दरवाजे पर बैठने वाला इंसान बदल चुका था । मुझे दरवाजे की ओर आते देख को खडा हो गया तो उससे मिलना है । आप को उसने पूछा नहीं तो देखने पर मैंने पूछा तो थोडी देर तक मेरी और खुद जा रहा है । फिर बोला आपका नाम संजय पाठक हूँ । आशा तो घर पर ही कोई काम था । आपको बहुत सवाल जवाब करते हो तो मैं डाक्टर कहा आप कर दीजिए साहब । पुस्तक बताते हुए बोला नौकरी ही ऐसी है, अभी रुकिए मैं अंदर जाकर पूछ कर आता हूँ । एक तो अंदर की अलग का । फिर अचानक ठहरकर मेरी और देखने लगा । ऑस्कर बोला तो नहीं साहब मुझे आप पर भरोसा है । आप इधर जाइए । ऍम दरवाजा पार करके जैसे ही मैंने गलियारे पर कदम रखा, अकस्मात आवाज आई, मैंने पलट कर देखा । एक पचास पचपन साल के अधेड औरत मेरे सामने खडी थी । कॅश मैं था पांच छह साल बाद मैं फॅमिली में घुसा था और जहाँ तक मुझे याद है कि इससे पहले उस अधेड स्त्री से मैं कभी नहीं मिला । नीतू ऊपर अपने कमरे में हैं । इधर सीढियों से चले जाओ । उसने कहा अचानक मेरी निगाहें ऊपर बॉल करने की और गई तो मैं सहन गया । नीति सामने बॉलकनी पर होने के बाल चुकी हुई मेरी और देख रही थी । हमारी नजरें मिली तो कुछ करा बडी मगर उसकी वो सीखी से मुस्कान देर तक नहीं तेरी नजरों से ऊपर आने का संकेत करते हुए धीरे से बोली आजाओ संजय हाँ बेटा, ऊपर जरूर मैं नाश्ता वहीं भी जाती हूँ । अभी तो स्त्री ने कहा उसकी आवाज में मेरे लिए मातृत्व ठूस ठूस कर भरा हुआ था जी । मैं उसकी प्यार से लगभग आंखों कि और देखता हुआ अभी धीरे धीरे सीढियाँ चढ ही रहा था कि अचानक एहसास हुआ कि वहाँ पर सिर्फ हम तीन लोग नहीं थे । कुछ और भी थे जो मेरी और बडी उत्सुकता से देख रहे थे । सब की नजरों से बचने की कोशिश करता हुआ सीधे नीतु के पास पहुंच गया । नहीं तो मुझे अपने सामने पाकर पूरी देर तक पथराई आंखों से तक देखती रही । उसका चेहरा भावना था जिसमें ना उत्सुकता थी ना आप रात मैंने जब हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढाया, वो चौक पडी जिसे अभी भी होश में आई हो, उसका प्रख्यात नहीं बढाया । आपने सूखे हुए हो तो में रुकी । हंसी भरते हुए बोली कैसे हो? संजय ठीक हूँ मैंने अपने हाथ समय के लिए तुम जी रही हूँ । उसके नीचे खडे लोगों पर निगाह दौडाते हुए कहा ये सब मुझे ऐसी को देख रहे हैं । मेरी निगाह अभी नीचे खडे लोगों पर चली गई । मेरे घर भगवान जो आएँ हैं । मैचों पडा भगवानी तो हो तो क्या यहाँ वहाँ फिर थी । मेरी निगाहें लौट कर नहीं तो की आंखों में ठहर गई । ऍम कहती हुई वो पलटकर कमरे की और बढ गई । उससे वक्त उसने दरवाजा खुला छोड दिया । उसके रूखे व्यवहार पर हैरान था । पीछे पीछे मैं भी अंदर चलाया । उजाकर धर्म से सोफे पर बैठे उसकी नजरे सामने खाली पडे, सोफे की और दौड लगाते हुए आई और मेरे चेहरे बडा थक गई । मैं कुछ देर तक नीतू की और देखता रहा कि शायद वो कहेगी की पहचान मगर वो चुप नहीं बैठने के लिए नहीं होगी । आखिर में मुझे उसे शिष्टाचार की याद दिलानी पडी । संजय मुझे अब ये भी कहना होगा जरूर मेहमान हूँ ऍम उसमें भरपूर निगाहों से मुझे देखा । कुछ पल खामोश रहने के बाद बोली भगवान को कौन कहता है, क्या हो और बैठो हमारी आत्मा में एक उसमें अपनी पलकें झुका ली । उसकी आंखों से पानी की चंद बूंदे उभरकर भी फर्श पर टपकी । वो उठकर एक कमरे के पीछे वाले दरवाजे की और भाग है । मैं भी कुछ समझ पाता उससे पहले एक का एक जोरदार तो दवा हुआ । वजन का स्वर्ण कानों को चीज का हुआ । उस हवेली की दीवारों के बीच कहीं दफन सा हो गया । मैं हर बडा और उसकी और लगता वो एक कमरे का सहारा लिए हुए खडी हो रही थी । मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह ऐसे अचानक किस बात पर रो पडी क्या पागल पन है? नहीं तो मैं भी कंधों को पकडकर खींचने का प्रयास कर रहा था और वो और भी मजबूती से खम्बे से निपट गई । रोते हुए बोली संजय आज हमें मतलब को जी भर के रो लेने दो । हमें शायद तुम्हारे सामने रोकर हमें थोडी तसल्ली मिल जाए तो हम भी खडे रहे हैं नहीं, आंखे भी नम हो गई । कितने दिनों बाद तुमसे मिले हैं । कुछ बात नहीं करूंगी । हमसे करेंगे । संजय खुद को संभालते हुए वो एक मेरी और पार्टी उसके आखिर लाल हो चुकी थी । दोबारा कर सोफे पे बैठी मैं खडा ही रहा । अब बॅाय नीतू कुछ हंसने की कोशिश कर रही थी । यहाँ फिर आरती जला हूँ । नहीं नहीं उस की जरूरत नहीं है । मैं उसके सामने पढे सोफे पर बैठ गया । हम देर तक खामोश बैठे रहे । बात कहाँ से शुरू करें शायद अभी इस बात का फैसला नहीं हो पा रहा था । संजय एक खामोशी टूटी छोडी नहीं होता था । हम समझ नहीं पा रहे हैं कि तुम्हें इतने करीब देखकर हम क्या करें । तुम यहाँ आए इसलिए हसी या फिर इस बात पर हुए की तो अभी चले जाओगे । कहते हुए वह फिर से हंसने की कोशिश कर रही थी मगर आंसू नहीं संभाल पाए । तपाक से एक रूम फर्श पर गिर गई । उसने झटके से उस पर पैर रखा है । अपनी बात जारी रखते हुए बोली है तो वो सब छोडो बताओ तुम कैसे हो? आज कर दुबले होते जा रही हूँ । खाते पीते नहीं हो क्या? पहले तो तुम बहुत मोटे थे, कितना भगवत किया करते थे । अब तो तुम बिल्कुल खामोश रहने लगे हूँ । पहले दो हफ्ते भी बहुत वो पे रुके हुए बोले जा रही थी । संजय तुम भी तो कुछ कहूँ कुछ बताओ । अपने बारे में कुछ पूछो हमारे बारे में मौका मिले बोलने का । तब तो मैं पूरी मासूमियत के साथ मुस्कराकर बोला मेरी बात का अर्थ समझ पाई तो मुझे नहीं तो पत्ते से चेहरा छुपाते हुए बोली तो अब भी नहीं सुधरी । संजय सुधरेंगे भी नहीं क्यों सुधारने वाला कोई है ही नहीं । कुछ चुप हो गई । शायद उसका अपना स्थित उसके सामने आ गया था । उसी वक्त एक छोटी सी लडकी कमरे में दाखिल हुई । उसके हाथों में नाश्ते की प्लेट और पानी का क्लास था । यहाँ एक्टर मेस की और संकेत करते हुए नहीं तो बोली वो नाश्ता रख कर लौट गई । लोग नाश्ता करो । उसने कहा और फिर खुद ही सेब की भागों को उठाकर छिलने लगी । इस घर में सब निकम्मे होते जा रहे हैं । अब देखो ना बिना छिले हुए सेव रखती, तुम्हारे सामने रहने दो, नहीं तो ऐसे कुछ के साथ ही खाता हूँ । उसका छिलका हेल्दी होता है । अच्छा तो मेरी और ऐसे देखिए जैसे मैंने भौतिक विज्ञान का नया सूत्रों से बता दिया होगा । तुम भी खाओ ना ऍम को नीतू की और बढाते हुए कहा मैं बाद में खाने की तुम खाओ अरे मेरी फिक्र ना करो । संजय आज इस घर में दिवाली मनाई जाने वाली है । क्यों बच्चों पडा घर में काम जो हैं । कुंभ पागलों की तरह बातें क्यों कर रही हूँ? मैंने पूछा नीचे तुम्हें जो औरत मिली थी जानते हो कौन है? कभी मिले हो से नहीं मेरी माँ अच्छा ना एक और फिर उसकी आगे चल चलाए । जानते हो संजय तो कई बार मुझे भी नहीं । पहचान पार्टी एक बार तो पापा को पर मेरे कमरे में आने से रोक दिया मगर अभी तुम्हें तो तुम्हारे लिए उनका ये व्यहवार देखकर मैं हैरान थी तो ऐसे पहचान लिया जैसे तुम वर्षों से जानती हूँ । इन मैं तो उनसे कभी मिला ही नहीं । वही तो उन्होंने तो मैं हमेशा तस्वीर में ही देखा है । फिर भी हो गया है क्या हुआ है, कैसे बताओ संजय उन्हें क्या हुआ है? कहते हुए कोई बात फिर संभावित हो गयी । लम्बी लम्बी सबसे खींचते हुए बोली द रेसर वो पापा की तरह मजबूत नहीं है । इसीलिए टूट के मतलब अपनी एकलौती बेटी को कभी विदा नहीं कर पाई ना । इसीलिए सब अपनी शादी नहीं की । बीस साल से मेरे गले पर अटक करेंगे । कुछ कोई जवाब नहीं दिया । बस खाली खाली नजरों में मेरी और देखते रहेंगे । मैंने तो कह रहा हूँ मैं कुछ पूछ रहा हूँ । हाँ तो क्या जवाब दो । संजय उसने अपनी नजरे झुका ले । मैं थोडी देर तक उसके खामोश छोटों की और देखता रहा तो नहीं बोली मुझे जब नहीं रहा गया तो सोफे से उठा उसके कदमों के पास वर्ष पर घुटनों के बल बैठ गया । उसने मुझे रोकने की कोशिश भी नहीं की । पता नहीं कहाँ हो गई थी तो फॅमिली वो चौक कर मेरी और देखते हैं क्या सोच रही हूँ? मैंने पूछा नहीं तुम? मैंने कहा तो मुस्कुराने लगी ऍम थोडी देर बाद उसने कहा मैं तो जितना निष्ठुर समझती थी तो उतना हो नहीं । अच्छा ऍम मैं सोचा करती थी कि ये जानते हुए भी कि मैंने शादी नहीं की, तुमने कोई असर नहीं हुआ । इतने निष्ठुर होता हूँ लेकिन तुम्हे तो कहते कहते हुआ अचानक होगी । थोडी देर तक एक तक मेरी और देखती रही । फिर बोली संजय तुम्हें कभी जानने की कोशिश नहीं की कि मैं कहा हूँ किस हाल में हूँ? नहीं क्यों? संजय इतना बडा अपराध तो हम ने नहीं किया था । राहत की कोई बात नहीं थी । नहीं तो अचानक में भावुक हो उठा और बोला अच्छा इसलिए मैं अपने खुशहाल जिंदगी में व्यस्त था । इसलिए कि अपनी बदहाल जिंदगी को समेटने में इतना वक्त लग गया की मुझे फुर्सत नहीं मिली । धीरे सूट कर सोफे पर बैठ गया । इससे पहले की वह मेरी जिंदगी के तार छेडती । मैंने कहा इस बातें अब जरूरी नहीं है तो बताओ तुमने तक शादी क्यों नहीं तो नहीं मिले ना, इसीलिए मत करो । मुझे शादी ना करने का कारण जानना है । शादी बहुत बडी बोली सब की तरह तुम भी अगर शादी पर यूरज कर समझे शादी के सच में जीवन के लिए कितना जरूरी है हूँ लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं लगता । उसने कहा मैं अक्सर सोचा करती हूँ राधा के बारे में, मीरा के बारे में और संजय राधामीरा ही क्या हमारे किताबें ऐसी बहुत से नामों से भरी पडी हैं । जीवन जीवन में कभी शादी नहीं की । फिर भी उन्होंने जीवन क्या है? बेहतर तरीके से किया । ऐसे ही हम भी ले लेंगे । तो इस सब बातें किताबों के पन्नों में बहुत अच्छी लगती है । असल जिंदगी में ऐसा संभव नहीं है । हाँ, अगर तुम राधा की बात करती हूँ तो राधा से इंसान नहीं थी । वो ईश्वर का रूप थे और तुम उनका इंसान होनी थी हूँ । फॅमिली झल्लाहट थी चल हम तुम्हारी बात मान लेते हैं । उसको सर भारी था । हम राधा बनकर नहीं जी सकते तो ना लेकिन मेरा वो तो इंसान थी ना । संजय उसे तो ईश्वर करूँ । नहीं कहोगे तो मेरे स्वर का कंपनी अब कुछ और मुखर था । इस तरह भावनाओं में बह जाने से प्राकृतिक आवश्यकताएँ नहीं बढ जाती हैं और नहीं ईश्वर के नियम बदल जाते हैं । ईश्वर द्वारा बनाई गई हर छोटी बडी चीज का अपना एक फर्ज होता है और तुम उस पर से मूड नहीं कर सकती । जिंदगी बहुत बडी होती है ना चाहकर भी एक दिन तो में उन्हीं राहों में फिर से लौटना पडेगा । पूरा करना पडेगा उन फर्जों को और तब से क्या करोगी? तुम जानती हूँ समाज में जीना मुश्किल हो जाता है । संजय मैं जानती हूँ तुम क्या कहना चाहते हूँ? मगर एक बात याद रखना तुम्हारे सामने बैठी हुई ये लडकी इतनी कमजोर नहीं है कि वह शारीरिक भूख के सामने घुटने टेकते और न ही विदेशियों की जिंदगी के पीछे दौड लगाने वाली आधुनिक अंधी बंदा है । जिसको लगता है कि जिसमें दिखाना आधुनिकता की पहचान है । मैं भारतीय नारी हूँ । एक ऐसी नारी जो खुद तो चल सकती है मगर दामन में एक चिंगारी भी नहीं छिटक नहीं देगी । प्रेम में पागल ये बदन अगर एक बार तुम्हारे सामने बेपर्दा हो चुका है तो अब जिंदगी के किसी भी मोड पर किसी के सामने बेपर्दा नहीं होगा । नहीं तो मैं जानता हुई आदर्शवादी बातें कहने में बहुत अच्छी लगती है । सुनने वाले को भी बेहद प्रभावित कर देती है । लेकिन इन का कोई भविष्य नहीं होता पाते हैं । इंदौर के साथ बदलना ही होगा । फिलहाल दो हजार तीन में जी रहे हैं । हम नारी समाज बहुत आगे निकल चुका है । उसके बीच सोच के साथ नहीं किया जा सकता । बेशक संजय मैं इनकार नहीं कर रही हूँ । नारी समाज आगे निकल चुका है । उसने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा मगर जरा करीब से झांक कर तो देखो उस समाज को वो अंदर से कितना खोखला है । किसी की जिंदगी में स्थायित्व नजर आता है तो मैं पति पत्नी पुराने कपडों की तरह बदल रहे हैं । एक दूसरे को और उनके बच्चे संजय पति पत्नी के अलग होने पर पशु के बच्चों की तरह बंटवारा किया जाता है । उनका कल शादी, आज तलाक, ये किसका परिणाम है । अगर तुम फिर भी इसे समाज कहते हो तो मैं खुश हूँ कि मैं इस समाज का हिस्सा नहीं हूँ । उसका चेहरा मुद्दे जित होता था । अपनी बात जारी रखते हुए वह फिर से बोली संजय मैं भी उसे ही हूँ या नहीं । क्या मैं बच्चे को जन्म नहीं दे सकती या खूबसूरत नहीं हूँ मगर भी इस समाज में मुझे ठुकराया क्यों? संजय भी तो मैं उसे वहीं रोक लेना चाहता था । इसीलिए ना कि क्षण भर के लिए झटके । फिर आंखों में आंसू भरते हुए बोली मैं छोटे कपडे नहीं पहन सकती । बहन सी टाइप देखती हूँ । नीतु तो संजय इसमें मेरा क्या कसूर अगर मेरी परवरिश ही ऐसी हुई है । क्या बोल रही हो तुम? संजय मैं जानती हूँ की तुमने प्रिया या खुशबू को क्यों चुना? बोलो सच है या नहीं? अच्छा ठीक है । मैं चलता हूँ तो ना उसे और नहीं उकसाना चाहता था । आउट कर खडा हुआ क्योंकि मुझे उसकी बातें बिल्कुल अच्छी नहीं लगी तो बुरा मान गए । मेरी बातों का मुझे खडा होते हुए देखा तो एक है । उसकी उत्तेजना गायब हो गई । चेहरा पीला पड गया तो फिर से उठते ही रोहांसी आवाज में बोली हम से कुछ नहीं पूछेंगे कि हम किस तरह जी रहे हैं । आजकल क्या कर रहे हैं? कहाँ रहते हैं वो? ट्रेन का वक्त होने वाला है । मैंने घडी की ओर देखते हुए कहा जानती हो मुझे आज ही लौटना है । मुझे भी तो लौटना है । संजय लेकिन मैं कल निकलेंगे यहाँ से अगर तुम्हें दिक्कत ना हो तो रात यही रुक जाओ । कल साथ चलेंगे कहाँ? लखनऊ मैं चुप पडा । तुम लखनऊ होगी । हाँ कोई काम था वहाँ नहीं । संजय में वही रहती हूँ । एक छोटी सी नौकरी मिल गई है । तुम लखनऊ में जॉब करती हूँ । मेरा वो खुला का खुला रह गया । कब से आप किस जगह पर तो भारी आसपास ही उसने कहा मन की तसल्ली के लिए उसी में लगी रहती हूँ । तुम मेरे घर में जानती थी । हाँ, खुशबू और पंखुडी के बारे में भी अपने आखिरी और फौजों को गुजरा । धीरे से बोली मैं एक तक उसकी और देखता रह गया । घबराहट थी या खुशी कहना बहुत मुश्किल था ।
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Writer
Voice Artist