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मेरी अर्धांगनी उसकी प्रेमिका - 57 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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बुधवार की सुबह थी । हम दोनों छुट्टी पर थे । मुझे लगा सारे गिले शिकवे दूर करने के लिए सबसे बेहतर मौका है । हमें कहीं उन्होंने निकलना चाहिए । कुछ दूसरे जब मैंने अपनी इच्छा जाहिर की तो वह चौंक पडी । उसका चौकन् शायद अस्वाभाविक नहीं था, क्योंकि जब से हम लखनऊ आए थे कि शायद पहला मौका था जब मैंने अपनी तरफ से घूमने की इच्छा जाहिर की । खुशबू जब तक रुकने की हद तक नहीं आ जाया करती, तब तक कहीं बाहर निकलने की योजना नहीं बन पाते हैं । कुछ भी जल्दी जल्दी नहाकर अपने गिरे वालों को झटकती हुई आई और बेडरूम में रखी हुई मेकप टेबल के सामने खडी हो गई । मैं और पंखुडी पहले ही तैयार हो चुके थे, इसलिए मैं हॉस्टल में लगे सोफे में बैठकर अखबार पडता हूँ । उसके तैयार होने का इंतजार करने लगा । बंगडी मेरे पास ही अपने खिलौनों के साथ खेलने में व्यस्त हो गई । काफी देर तक कुछ भी नहीं आई तो मैंने पंखुडी से कहा । मीटर जाकर देखो तो मम्मी क्या कर रही हैं? उन्हें बुला लाओ नहीं, हम नहीं जाएंगे । मम्मी अच्छी नहीं है । मुझे प्यार नहीं करती । रुकने का आग्रह करते हुई पंखुडी ने मेरी और देखा । मेरे पास आकर कहने लगे तो आपका आप हमें बहुत प्यार करते हैं फॅार उसे अपनी गोद में उठा लिया और से गानों को चूमते हुए बोला आप आप को बहुत प्यार करते हैं । मेरे सीने से चिपक थोडी देर तक दुलार करती रही और मैं उसे वहीं छोडकर तेज कदमों से बैडरूम पहुंचा तो दंग रह गया । खुशबू बिलकुल तैयार थी । मगर उलझाने क्या? आईने के सामने खडे होकर खून घूमकर हर कोने से खुद को देख देख कर मुस्करा रही थी । इससे पहले की मैं उसकी हरकतों का कुछ तथाकथित समाज शास्त्रियों की नजरों से मतलब निकालना शुरू करता । उसके कंधों को मैंने अपने दोनों हाथों से थाम लिया । मुझे ईकाई आईने में अपने पीछे देखकर वह शर्मा गई । मुस्कुराकर बोली तो जानते हो ना की इस तरह चोरी से किसी लडकी के कमरे में घुसना पूरी बात है । जानती हूँ मैं मुस्कुरा बडा मगर साढे बात अब आपको लडकी नहीं रही हैं । पत्नी है हमारी और हमें इस तरह की हरकतों का पूरा अधिकार है सब्जियाँ चीन नहीं तो बिजली गिरफ्तार से मेरी और भूमि फिर हफ्ते में बोली ऐसा कोई अधिकार नहीं है तो के जी से अपनी बाहों में भर लिया । उसके आंखों में देखते हुए बोला जानती हूँ इस तरह देर तक आइना को देखने का मतलब क्या होता हैं? क्या होता है वो बच्चों से खिलखिला उठे उसे किसी से बिहार मैं अपनी बात जानबूझकर बीच में ही छोड दिया और उसके चेहरे पर बनती बिगडती भावभंगिमाओं को गौर से देखने लगा । क्या देख रहे हो? अचानक उसके होम छूट गए तो तुम कहना क्या चाहते हो? वो उपपरियोजना भरी निगाहों से मेरी और देखने लगी । पल भर पहले उसके होठों पर तैरती मुस्कान यहाँ यहाँ गायब हो गई ही की तो भी हम से प्यार हो गया । हाॅट तुमसे बिहार हो गया है । वो हकला पडी थी फिर खुद को संभाल पाई तो कहने लगी हम तो तुमसे हमेशा से प्यार करते हैं । अगले कुछ घंटों में हम चिडिया घर पहुंच गए । शीर हाथ, भालू और अनेक प्रकार के पक्षियों और जंतुओं को देखते हुए हम आगे बढते गए । पंखुडी मेरी गोद में थी । हम देर तक इधर उधर घूमते रहे । संजय इधर देखो सफेद बंदर । खुशबू हैरान होते हुए बोली आप करीब से देखते हैं । हम करीब पहुंचे तो बंदरों का एक झुंड बडी तेजी से हमारी और दौडा थोडी का चेहरा खेल उठा । संजय भी शायद कुछ खाना चाहते हैं । खुशबू गोली क्या खाएंगे हमारे पास तो फॅमिली के अलावा ऐसा कुछ नहीं है जो इन्हें खिलाया जा सके । फॅमिली खिलाते हैं खुशबू मेरे हाथ से मूंगफली का कुछ हिस्सा अपने हाथ में लेकर जैसे ही जाल के करीब पहुंची जगह सारे बन्दर उसकी और टूट पडे । संजय तुम भी खिलाओ ना । उजाल के अंदर मूंगफली फेंकते हुए बोली मैंने मूंगफली से भरी हथेली जाल के अंदर बढाई तो फिर जो नजारा देखा उस पर कुछ देर मुझे यकीन नहीं हुआ । मेरी और एक भी बंदर नहीं आया । मैंने कुछ हूँ की और देखा मेरा आशय समझ को हंस पडी । बहुत मैंने हसते हुए कहा । लगता है इंसानों की तरह बंदर भी खुबसूरत लडकियों पर बहुत जल्दी फिदा हो जाते हैं । तो ऐसा था खुशबू ढाका मार्कस पडे तो शर्माते हुए बोली ये भी तो इंसान के पूर्वज भी हैं । कुछ मूंगफली व्यक्ति हुई मुझ से कुछ दूर निकल गई थी । पंखुडी अब भी मेरी ही घूमती थी बेटा । मैंने कहा अब कुछ देर के लिए पैदल चलिए देखो पापा के हाथ दर्द करने लग गए । उनको भी एक अच्छी बच्चे की तरह मेरी गोदी से उतरकर जमीन पर खडे हो गई । मुझे कुछ राहत सी महसूस हुई । मैं अपने हाथों को झगडते हुए इधर उधर चहलकदमी करने लगा । अभी कश्मार मेरी निगाहें व्यक्ति पर जाकर ठहर गई । लगभग तीस पैंतीस साल का युवक बडी तल्लीनता से खुश्बू की और देखे जा रहा था । पिछले अचानक कैसे ऐसा हुआ कि उसको मैं देख रहा हूँ । कोई का एक मुस्करा पडा और बोला आप समझे समझे मुझे अजीब सा लगा और वह चलता हूँ, मेरे पास आ गया । अब चिडियाघर देखने आए हैं हम कर तुम कौन हो? अपनी चलते मुझे दशक की बेटी बहुत प्यारी है क्या ना मिस्टर थोडी मगर तुम कौन हो? कैसे हो? पंखुडी बेटा पूछते हुए उसमें पंखुडी को अपनी गोद में उठा लिया । मैं हैरान नजरों से उसकी और देखता रह गया तो थोडी देर तक कंपनी कुल लाड करता रहा । फिर एकाएक उसे मेरी गोद में थमाकर वहाँ से चला गया । संजय चलो यहाँ से अभी खुशबू ने आवाज भी पीछे मुडकर देखा । खुशबू मेरे पीछे खडी बडी घनत् में गांवों से लौटते हुए उस युवक को खुल रही हैं । पता नहीं वो कौन था । उन की उस घटना के बाद मुझे खुशबू के इस बारे में कुछ भी पूछने की मत नहीं पडेगी ।

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Sound Engineer

Voice Artist

सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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