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मेरा दोस्त राज अक्सर कहा करता था कि और तो और मौसम में कुछ खास फर्क नहीं होता । इन्हें समझने की कोशिश में वक्त बर्बाद मत करूँ । मौसम अच्छा है, उसका मजा लो, प्रतिकूल है, जीने में तकलीफ हो रही है तो ये नए शहर चले जाइए क्योंकि आप उसे बदल नहीं सकते । शादी के कुछ दिनों बाद से लेकर उसे नौकरी मिलने से पहले तक कुछ होगा । दिन बदिन खुद पर ध्यान देना कम कर दी जा रही थी । पांच । सब रहे हैं या नहीं चेहरे पर मैं कब है कि नहीं कपडे कैसे पहन रखे हैं । इन सब बातों की वो परवाह नहीं क्या करती है? आपको पंखुडी की देखभाल में खुद को इतना व्यस्त कर लेती है कि अगर शोर मचाकर में खुद का अहसास न कराता तो कब का? मैं किसी बंद पडे कमरे के किसी कोने की रखी एक ऐसी ब्रैंड बन जाता । इसका इस्तेमाल तो हो रहा है लेकिन उसकी परवाह किसी को नहीं है । मगर नौकरी मिलने के कुछ दिन के बाद से ही अचानक उसके सुभाव में आया परिवर्तन हैरान कर देने वाला था । अब खुद के सौंदर्य को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो गयी । सजने संवरने के बाद दर्पण के सामने खडे होकर देर तक खुद को निहारना, हंसना, मुस्कुराना खुद में ही रीत जाना और सुबह ऑफिस जाने से पहले उसका ये सब करना जैसे उसकी आदत में शामिल हो गया हूँ । हालांकि मुझे उसका खूबसूरत दिखना पसंद था मगर न जाने क्यों कुछ वक्त से उलझन होने लगी थी । खासकर राज की बात याद करके एक बार रात में किसी घटना का जिक्र करते हुए कहा था, घर से निकलते वक्त और तों का सजना संवरना अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि दुनिया की हर औरत सुन्दर दिखाना चाहती है । मगर सजने संवरने के बाद देर तक खुद को एक तक देखते रहना, आईने के सामने हंसना, मुस्कुराना जरूर अप्रत्याशित है जो बताता है कि वो प्यार बाहर तलाश रही है या तलाश चुकी है । मेरा दिल धडक उठा लेकिन मैंने मन को संभाल लिया । हो सकता है राजकीय समाज शास्त्र की बातें किसी दूसरी औरतों के लिए सच हो मगर खुश हूँ । उस पर मेरा अच्छा विश्वास था । वो ऐसा कुछ नहीं कर सकती है । उसको ऑफिस मेरे ऑफिस की तुलना में थोडा दूर था । वो मुझ से लगभग पंद्रह बीस मिनट पहले ही घर से निकल जाया करती । इस दौरान उसकी सबसे खास बात ये थी कि वो हर सुबह घर से निकलते वक्त मुझे किस करना नहीं भूलती । आप वक्त के साथ एक बदलाव जरूर आया । पिछले कुछ दिनों से मैं भी महसूस कर रहा था । खाना बनाने के प्रति उसका व्यवहार काफी हद तक बदल चुका था । अब वह खाना बनाने से काफी हिचकिचाया करती । कभी कभी तो हंसी हंसी में कह भी दिया करते हैं कि संजय अच्छा खाना तुम पका हो गई क्या? क्यों नहीं मुस्कराकर कहता और मैं पक्का भी लिया करता चाहे तो अक्सर नहीं बनाया करता । इन सबके बीच हम खुद एक भरोसेमंद आया के सहारे बडे लाड प्यार से पढ रही थी । अब तक वो तीन सामन देख चुकी थी । उसकी तोतली आवाज घर के गलियारों में गुजरा शुरू हो चुकी थी । एक खुशबू ऑफिस से काफी देर से आई और आते ही मेरे गालों को चूम लिया । हालांकि कोई पहला मौका नहीं था जब उसने ऑफिस से लौटने के बाद मुझे चूमा हो । अगर राहत जाने क्यों मुझे उसके किसमें प्यार कम और रिझाने वाली अदा ज्यादा लगी । धीरे धीरे डेढ से आने पर अक्सर वही करने लगे । कई बार तो रात के दस ग्यारह बज जाते हो जाने में मैं उससे देरी के बारे में पूछताछ उससे पहले ही वह बिफरते हुए कहने लगी संजय नहीं नौकरी नहीं करूंगी क्यों? मेहरान होकर पूछता तो मुझसे लिपटकर कहने लगते हैं । मुझे देर से आना अच्छा नहीं लगता और वह पटेल ऍम के बाद भी कुछ ना कुछ काम मुझे दे ही देते हैं । उस दिन उनकी बात सुनी तो मुझे हसी आगे मजबूत दूसरों की नौकरी ऐसी होती है हमें खुद को एडजस्ट करना पडता है । तुम परेशान मत हो जिनमें पंखुडी को संभालने के लिए आया रहती है और शाम होते होते तो मैं दिया जाता हूँ तुम्हें कुछ देर सी सही फिर ऐसा कभी कवार ही तो होना है । थोडा बहुत ऍफ कर लोगी तो तरक्की के लिए और रास्ते खुल जाएंगे । ऍम वो खिलखिलाकर एक बार पुनः मेरे गालों को चूम रही थी । मुझे लगता तो बुरा मान होंगे तो सचमुच बहुत अच्छे हो रहे इसमें बुरा मानने की कौन सी बात है? खुशबू मैंने मुस्कुराकर कहा हम जो कुछ भी कर रहे है पंखुडी के भविष्य के लिए कर रहे हैं । पैसे भी पापा की कंपनी पर उनके पार्टनरों ने कब्जा कर लिया है । अब अगर हम लोग छोटी छोटी बातों को लेकर घर में बैठ जाएंगे तो हमारे अपने भविष्य का क्या होगा? खान संजय मगर तीस तुम कभी मुझ पर शक मत करना । कहते हुए वो मेरे बाहों में सिमट आई मत करना । मतलब मैंने अपना असर हो जाए । बिना वजह ही इस बात को बात में शामिल करना मुझे हैरान तो कर गया । मुझे कुछ समझ नहीं आया । वैसे भी सब जानते हैं । मुझे समाज शास्त्र में कुछ खास दिलचस्पी नहीं है । रात से बात करता वो जरूर इसके भी कुछ ना कुछ मायने निकाल ही देता है ।
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