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मेरी अर्धांगनी उसकी प्रेमिका - 47 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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सुहागरानी शादी की पहली रात खुशबू द्वारा मेरा इंतजार करना मेरा पहुंच रहा हूँ, उसे छोडा । प्यार करना उतना ही स्वाभाविक ढंग से हुआ था । किसी की अक्सर सुहागरात में हुआ करता है । लेकिन मेरे दिमाग में घुसे हुए कई सवाल मेरे हाव भाव में फिर भी चलते रहे । खुशबू मेरी जांघों में सर रखकर लेटी हुई थी । फॅसा उसके बालों को सहला रहा था । वो हमारे दांपत्य जीवन की पहली रात थी । इसलिए उस वक्त मैं उससे कोई भी अस्वाभाविक सवाल नहीं करना चाहता था । लेकिन मीटू का चेहरा मेरी आंखों के सामने ऐसे घूम रहा था कि चाहकर भी खुद को रोकना मुश्किल लग रहा था । मेरी शरारती उंगलियाँ पालों के झुरमुट से सकती हुई उसके गले को स्पर्श की तो चौक कर मेरे चेहरे की और देखी । उसके होठों पर गुलाबी मुस्कान तैर बडे बंदे में मुझे भी मुस्कुराना बडा किसी ने कुछ नहीं बोला । वो कुछ दिनों बाद मेरी खामोशी टूटी । एक बार फिर उसकी नजरें मेरे चेहरे पर बडी । हमारी शादी में मेरे कॉलेज की एक लडकी आई थी तो जानती उसे नीतू की बात कर रहे हो । वो मेरी सहेली है । वो एक का एक उठकर बैठ गई । मगर तो ये सब क्यों पूछ रहे हूँ । कब से जानती हो सही अब स्कूल के जमाने से ही साथ साथ पढे हैं । मैं चुप हो गया । शायद इसलिए कि मुझे मेरे सारे सवालों का जवाब नहीं होता था या फिर इसलिए किसके आगे और कुछ पूछना उनके नहीं था । बातों से उसका ध्यान हटाने के लिए जैसे ही मेरी शरारती उंगलियाँ उसके गले के नीचे उतरी तो एक का एक कसमसा उठी । उसने शर्मा कर मेरी और देखा और फिर बिस्तर पर नागिन सी सडक हुई । मेरी छाती पर अपने वोट रखती है । मैं सिहर उठा । तभी एकाएक पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया । कुछ देर बाद रोशनी लौटी तो हम थक चुके थे । हमारी सांसे अनियंत्रित थी और हम दोनों एक दूसरे से नजरें नहीं मिला आ रहे थे । पता नहीं क्यों जबकि हम दोनों पति पत्नी थी । कमरे में देर तक खामोशी छाई रही । संजय काफी देर बाद वो बोली वक्त को तो देखो कभी यहाँ हम कितना डर डर कराया करते थे और आज देखो कैसे बेक खबर पडे हैं एक ही बिस्तर पर ना किसी के आने का डर है ना यहाँ से निकलने की जल्दी आज ये घर हमारा है । हम दोनों का आशियाना मैंने उसके और करवट लेते हुए उसके बदन के ऊपर अपने हाथ का घेरा बना लिया । इस बार उसकी आंखों में शर्म नहीं देखी । धीरे समझ कराई और फिर मुझे अपनी और खींचते हुए किसी बेल की तरह मुझसे लिपट गई । उसकी गर्म स्वास्थ्य मेरी छाती को जलाने लगी । संजय एक बात मुझे तुमसे डिकाॅय बोल, बडी कुछ हूँ, दिल धडक उठा ना जाने मेरे मिस्टर राज का जिक्र कर बैठे । क्या मैं जिंदगी भर तुम से ऐसे ही प्यार पाने की उम्मीद रख सकती हूँ । मेरी उंगलियों में अपनी उंगलियां फसादी हुई बोली हूँ अंतिम सांस होता तो सच कह रहे हो ना । वो बलपूर्वक मेरे बादल से निपट गई । उसकी थोडी मेरे सीने में चुके हैं । क्या कर रही हूँ? मैं जरा पीछे की कोशिश कर रहा था । लेकिन उसने कसाब काम नहीं किया । नहीं पहले बताओ । उसने बच्चों की तरह जब करते हुए कहा हाँ, मैं धीरे समझ करा दिया । वो अचानक चुप हो गई । मैंने भी कुछ नहीं कहा । हम तीर तक खामोश पडे रहे ना मुझे नींद आई, उसने सोने की कोशिश की । हमारे हाथ किसी अन्यंत्र जानवर की तरह एक दूसरे के बदन को यहाँ वहाँ छोटे रहे । वो ऍम मेरी और देखने लगे तो बताया नहीं किया है कि तुम भी हमेशा यही संजय एक आम लडकी की तरह वो भावुक हो उठे । मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोली हम शादी कर चुके हैं तुम से अब तुम्हारे बगैर हम कुछ भी नहीं है तो तुम्हारी वजूद में ही हमारा वजूद है । संजय और जिंदगी भर रहेगा और मेरा गुजरा होता तो जानती हो ना मेरे कल के बारे में । हाँ संजय एकाएक उसके होट भेज गए । उन से अलग होकर सीधे लेट गयी । कुछ पल खामोश रहने के बाद कहने लगी हाँ संजय हम जानते थे मगर आज से सब भूल गए । हमें कुछ नहीं याद रखना और सच कहें संजय अब तुम भी भूल जाओ हमें तुम्हारी गुजरे हुए कल से कोई मतलब है ही नहीं । अब आज पर भरोसा करते हैं और आज पर ही जीना चाहते हैं । स्वच्छ ऍम मैंने आंखे बंद कर रही हो सकते हैं । तेजी से पलटते हुए उसने मेरे होने को चुन लिया । हमें पता है हर किसी का कुछ ना कुछ गुजरा हुआ कल होता है । इसका मतलब ये तो नहीं की बच्ची जिंदगी को भी उस की नींव पर टिका दी जाएगी । उस की बात सुनते ही मेरे साल से जैसे किसी ने सालों से रखे हुए बोझ उठाकर एका एक कहीं बाहर फेंक दिया हूँ । लंबी सांस भरते हुए मैंने उसकी और देखा हूँ इन करोगी कि प्रिया संजय उसने अपने उंगली मेरे वोटों से सडा भी इस वक्त नहीं प्लीज पिया का नाम तो बिल्कुल नहीं । मैं उस लडकी का नाम तुम्हारे मुझसे नहीं सुनता हूँ । उसके आखिरी शब्दों में सिर्फ और सिर्फ नफरत थी अभी चंद पहले मुझ पर प्यार लुटाने वाली औरत के अन्दर अचानक जरा सी बात पर इतनी नफरत कहाँ से आ गई? मैं भी समझने की कोशिश कर ही रहा था । अचानक मेरे मित्र राज का कहा हुआ एक वाक्य मुझे याद आ गया और तैयार करने के लिए बडी है समझने के लिए नहीं मुझे तो पूरा बडा संसार में हर किसी का कुछ न कुछ गुजरा हुआ कल होता है दिल का बोझ थोडा हल्का हुआ तो अकस्मात ही खुश्बू केशव दिमाग में कौन पडे सवाल उठा हर किसी का क्या मैं हूँ का भी ख्याल अचानक मुझे कांटो सच उठा खुशबू करवट बदल चुकी थी लेकिन मेरा पुरुष वाला दिमाग सक्रिय उठा । किस हद तक पता होगा उसको गुजरा हुआ कल क्या हो उस हद तक जैसे की मेरा प्रिया का या फिर नीतू का फिर अचानक ऐसा सुबह की सचमुच सबका तो था पूछना कुछ गुजरा हुआ कल उसका भी होगा, जरूर होगा । मैं जरा उस खुशबू की और देखा उसकी बल्कि बनती । उषा सोने की कोशिश कर रही थी या फिर हो गई थी । मैंने अपने बर्फीले हाथ उसके बाहों में रखा तो उसने बल्कि खोलती उसके चेहरे पर दबी हुई मुस्कान फिर से लौट आई । वो तो मुस्कुराने का अभिनय करते हुए बोला तो बिना करवट बदले गर्दन कुमार कर मेरी और देखने लगी । तुमने अभी कहा था ना, हर किसी का कुछ न कुछ गुजरा हुआ कल होता है । मैंने डरते लडते धीमी आवाज ना पूछा । हाँ तो उसकी आंखें एक गोल हो गई हर किसी का यानी की मेरे हूँ सूखे जा रहे थे क्या? तो तुम्हारा भी मेरी मनोदशा देखे तो खिलखिला बडी उठकर बैठेंगे । बोली संजय मैं भी तो जानी हूँ, इस दुनिया में रहती हूँ । मेरा भी तो गुजरा हुआ कल हो ना उतना ही स्वाभाविक है जितना कि तुम्हारा । फिर तो मुझे लेकर इतना परेशान हो रही हूँ । परेशान मैं इतना बडा नहीं, खुशबू और ऐसा नहीं है । मैंने जबरदस्ती हंसने की कोशिश की । चम्मच छोडो तक मेरे चेहरे के बदलते रंग को देखती रही । फिर अचानक करवट लेकर अपनी बल्कि गिरा ली है । मुझे भी लेना पडा । वैसे भी जागने की मेरे पास कोई वजह नहीं थी । संजय अचानक खुशबू उठकर बैठे और मुझे झकझोरते हुए बोली क्या तुम सच मुझे मेरे पास के बारे में जानना चाहती हूँ? नहीं, मैंने यूँ यूँ पूछ लिया था ना । उस की इस प्रतिक्रिया पर स्वच्छ मुझे डर गया था । वो थोडी देर तक एक तक मेरी और देखती रही । जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी वो उन्होंने लेट गयी ।

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सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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