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वक्त तेजी से गुजर रहा था । पढाई, परीक्षाएं और फिर शादी की तिथियां । शादी से पहले एक दिन अचानक मेरे पापा मेरे कमरे पर आ धमके । उन्हें अपने सामने पाकर मैं राम था । सालों बाद आज मैंने उन्हें देखा था । एक दो बार उन्होंने मुझे फोन जरूर किया था मगर मैंने उसे कुछ ज्यादा बात नहीं की । मैं उनसे बहुत नाराज था । उन्होंने मेरी मम्मी को बहुत तकलीफ थी । मां के अंतिम यात्रा में भी वो अपना बिजनेस छोड कर नहीं पाए । मैं बिस्तर से उठकर खडा हो गया तो मेरी माँ के अच्छे पति कभी नहीं बन पाए थे । मगर चाहिए तो मेरे पापा मुझे अभिवादन में उनके पैर छूना चाहिए था । लेकिन नफरत इतनी थी कि मैं चाहकर भी उन के सामने झुक नहीं पाया । अंदर आने के लिए नहीं होगे । उधर से पर ही खडे रहे और शादी होने वाली है । बडे हो गए हो । तुम काम से इतनी शिष्टाचार की तो उम्मीद कर ही सकता हूँ । अब यहाँ तक आ गए हैं तो कौनसी तक भी आ सकते हैं । मैंने अपनी नफरत नहीं छोडी तो तुम अभी नाराज हो । मुझ से वो कुर्सी पर बैठे हुए बोलेगा । तुम्हारी माँ को गुजरे हुए सालों हो गए कब तक उन पुरानी गलतियों के लिए मुझे जलील करते रहोगे । पता नहीं वो फेरते हुए मैंने कहा थोडी देर तक मेरी और देखते रहे । फिर कमरे में इधर उधर नजर दौडाते हुए बोले प्रदेश कमरे में एक्टर नहीं होती । इस बात के पूछ रहे हैं मुझे तो वही मुझे नहीं होती तो शादी ही से करोगे नहीं । मैं एक नया घर किराये पर खोल रहा हूँ और पापा क्या उसे भी किराये पर खोज रहे हो । मैंने अर्थपूर्ण निगाहों से उनकी और देखा । उनकी आंखों में अच्छा सुना था । थोडी देर की छुट्टी के बाद बोले अच्छा ये बताओ शिक्षा मैं बोला हूँ या तो बुला हो गई रिक्शा क्योंकि तो मैं भी घर चल रहे हो । अचानक उन का स्वर्ग हो गया तो भरा अपना घर तुम्हारा इंतजार कर रहा है । और हाँ, हमारी शादी भी वहीं से होने वाली है । जी नहीं, मैं नहीं जा पाऊंगा । पीस मुझे मजबूर मत करिए तो ठीक है । मैं यहाँ ठाठ जाता हूँ । उस की जरूरत नहीं है । इतनी हमदर्दी आपको मेरी माँ के साथ दिखानी चाहिए थी । ऑफ पॉप और अचानक भडक उठे संजय तुम कब तक गुजरे हुए कल को अपने सर पर होते रहोगे? मैं लाख बुरा सही मगर तो हमारी मर्जी के खिलाफ । मैंने तो मैं अपने पास आने के लिए कभी मजबूर नहीं किया । तुम हमेशा कहते रहे तो मैं मेरी शकल पसंद नहीं है । मैं तो मैं कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाई । लेकिन संजय अब शादी कर रहे हो और मैं तुम्हारा बाप हूँ । मेरे भी कुछ अपने अरमान हैं । ठीक है उसके स्वर में लाचारी छा गई तो भारी सामने गिडगिडा रहा हूँ । माफी मांग रहा हूँ । अब तुम चाहते हो कि तुम्हारे पैर छू तो वह भी कर सकता हूँ वो लोग फिर वो देर तक कुछ कहते रहे और मैं बिना किसी सवाल जवाब के उन्हें सुनता रहा । अचानक मेरी निगाहों उनकी आंखों पर गई तो मैं तब उठा वहाँ से भरी हुई थी । मैं आपसे पहले उन्हें कभी इतना लाचार नहीं देख पाया । मैं खुद को रोक नहीं पाया । चपट कर उनके सीने से चिपक गया हूँ । डर के मारे मेरे मुंह से चीख निकल गई । पापा मेरा और मेरी पढाई का खर्च उठा रहे थे । इससे ज्यादा हम लोगों के बीच और कोई रिलेशन नहीं था । इतने सालों में न वो कभी मुझसे मिलने आए नहीं । मैंने कभी कोशिश की शायद इसलिए की माँ की करीबी मुझे कभी उन के करीब जाने नहीं देती थी । उनके आंसू देर तक मेरे कंधे को होते रहे
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