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मेरा उकाब -1 in Hindi

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17 K Listens
AuthorRohit Verma Rimpu
यह कहानी एक ऐसे लड़के के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है जो कि हकलाहट की समस्या से परेशान है | और अपनी समस्या की वजह से उसे कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है | उसे गाने का शौक है लेकिन उसके परिवार वाली खास करती है उसकी सौतेली मां उसके इस शौक को अनदेखा कर देती है और हर समय से किसी ना किसी प्रकार से प्रताड़ित करती रहती है | जिस वजह से उसका यह शौक उसका एक सपना बनकर रह जाता है | लेकिन वह हार नहीं मानता और अपने दोस्तों की मदद से वह किस प्रकार अपने मकसद में कामयाब होता है | यह जानना बहुत ही दिलचस्प होगा Voiceover Artist : RJ Hemant Author : Rohit Verma Rimpu
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अच्छा आप सुन रहे हैं कुकू एफएम पर रोहित वर्मा रिंपू की लिखी कहानी मेरा होगा और मैं हूँ ऍम सोने जो मन चाहे पाठे पं काज तो बेटा पंकज बेटा किधर है तो पंकज बेटा पंकज की माँ अपने बेटे पंकज को ढूंढने के लिए आवाज ही लगा रही होती है । वह काफी देर से उसे ढूंढ रही होती है परंतु वो कहीं नहीं मिलता है । आखिरकार थक हारकर वह अंतिम बार जोर से अपने बेटे पंकज का नाम पुकारती है । परंतु पंकज का फिर भी कोई जवाब नहीं आता । उसकी माँ थक हारकर उसे ढूंढते हुए घर की छत पर बने कमरे में देखती है और पंकज वहाँ पर होता है । पंकज वहां बैठ कर अपने गेदार के साथ गायन का अभ्यास कर रहा होता है । पंकज को गिटार के साथ गाते देख उसकी माँ उस पर गुस्सा होती है और कहती है कि ये देखो मैं कितनी देर से पंकज पंकज चला रही हूँ और ये लालसाहब की अपना तंबूरा लेकर यहाँ सबसे छिपकर अपना गला फाड रहे हैं । ऍन अगर एक मिनट के अंदर अंदर तो नीचे नहीं आया तो तेरा ये तंबूरा उठाकर में बाहर फेक देंगे । ये है पंकज यानी कहानी का मुख्य पात्र इससे पहले की कहानी को शुरू करें । हम हम पंकज और जिंदगी के बारे में कुछ बातचीत कर लेते हैं और इस दौरान हम उसके परिवार के बारे में भी कुछ जान पहचान कर लेते हैं । पंकज के परिवार में पंकज के अलावा उसके पिता, उसकी सौतेली माँ और उसका एक छोटा सौतेला भाई चेतन और एक छोटी सौतेली बहन सपना रहते हैं । पंकज के पिता की शहर के मुख्य बाजार में किराने की दुकान है और उसी किराने की दुकान के ऊपर वो अपने परिवार के साथ रहते हैं । पंकज की सौतेली माँ रिश्ते में उसकी दूर की मौसी भी लगती है । दरअसल हुआ यूं कि जब पंकज की उम्र करीब एक साल के आस पास ही तो पंकज की मां काफी बीमार हो गई थी । पंकज के पिता ने उनका बहुत इलाज करवाया लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नजर नहीं आया । एक दिन पंकज की माँ ने उसके पिता से कहा, सुनो जी अभी कुछ समय पहले डॉक्टर साहब यहाँ आए थे और मेरे स्वास्थ्य की जांच करते हुए उन्होंने कहा कि मैं कुछ ही दिनों की मेहमान हूँ । तुम चिंता मत करो । हम किसी और डॉक्टर के पास जाएंगे और तुम्हारा इलाज अच्छे से करवाऊंगा तो जल्द ही स्वस्थ हो जाओगी? नहीं ऐसा नहीं होगा । मुझे पता है कि मैं अब कुछ दिनों की ही मेहमान । आप मेरी एक बात मानोगे पंकज की माँ से ये सुनकर वो खामोश से हो गए । शायद वही सच्चाई को उनसे पहले जानते थे । कुछ समय के बाद उन्होंने उदासी भरे लहजे में कहा, बोलो तुम क्या कहना चाहती हूँ । मेरा बचना नामुमकिन है तो उनका जभी बहुत छोटा है । आप इसकी देखभाल नहीं कर पाओगे । अगर मेरी बात मानो तो आप दूसरी शादी कर लो । ये तुम कैसी कैसी बातें कर रही हूँ । भगवान ने चाहा तो तुम जल्द स्वस्थ हो जाओगी । आप भी जानते हो कि ऐसी बातें मन को समझाने के लिए काफी अच्छी हैं लेकिन असलियत में ऐसा कुछ नहीं होगा । मेरी डॉक्टर से सारी बात हो चुकी है । मैं अब ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं बच्चों की । मैं चाहती हूँ कि मेरे मरने के बाद तो मेरी मामा जी की लडकी तो मन से शादी करेंगे लेकिन लेकिन क्या? लेकिन क्या तो मारे मामा जी इस बात के लिए मान जाएंगे और फिर उनसे इस बारे में बात कौन करेगा? क्योंकि अगर आज मेरे माता पिता जिंदा होते तो ये बात कर लेते हैं । लेकिन तुम तो जानती हूँ कि जब से उनकी मृत्यु हुई है तब से मैं अकेला पड गया । उनके सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं था । उनके पर लोग सिद्धार्त एहि मेरे बाकी के रिश्तेदारों ने भी मुझसे मोहन मोड लिया था । वो सब तुम मुझ पर छोड दो, तुम बस हाँ हूँ और बाकी का काम मुझ पर छोड दो । मैं खुद मामा जी से इस बारे में बात कर लेंगे । कुछ देर बहस बाजी के बाद पंकज के पिता शादी के लिए राजी हो जाते हैं क्योंकि पंकज के पिता के माता पिता की मृत्यु के कारण उसके परिवार से इस बारे में बात करने वाला कोई नहीं होता तो पंकज की माँ ही अपने मामा से बात करती है क्योंकि पंकज के पिता के माता पिता की मृत्यु के कारण उसके परिवार से इस बारे में बात करने वाला कोई नहीं होता तो पंकज की माँ ही अपने मामा से बात करती है और आपने रहते अपने पति की शादी की बात अपनी मामा की बेटी से करवा देती है । इसके कुछ दिनों बाद पंकज की मां परलोक सिधार जाती है और जैसा की पहले से तय होता पंकज के पिता अपनी पत्नी यानी पंकज की माँ की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद दूसरी शादी कर लेते हैं । पंकज के पिता ने ये शादी अपनी पत्नी की बहन से ये सोचकर की थी कि वह उसके छोटे बच्चे यानी पंकज की देखभाल अच्छे से करेगी । लेकिन सब कुछ उस की सोच से विपरीत होता है । पंकज की सौतेली माँ सच में उससे सौतेले जैसा व्यवहार करती है । शादी के कुछ दिनों तक तो वह पंकज की देखभाल करती है लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वो उसे अनदेखा करने लगी । पंकज के प्रति उसके व्यवहार में काफी कठोरता थी । बेशक वो रिश्ते में उसकी सौतेली माँ थी लेकिन वो एक रिश्ते से पंकज की मौसी भी थी । लेकिन इस दोहरे रिश्ते के बावजूद वो पंकज को प्यार नहीं करती थी । कुल मिलाकर वो उसे अपना नहीं सकी । इस बात को लेकर पंकज के माता पिता में अक्सर झगडा होने लगा था तो पंकज की माँ बहुत ही गुस्सैल स्वभाव की थी जिस वजह से वो पंकज के पिता से किसी ना किसी बात पर झगडती रहती थी । दूसरी तरफ पंकज के पिता ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की । यहाँ तक कि अपनी पत्नी के स्वभाव के बारे में उसके माता पिता यानी अपने साथ ससुर से भी कई बार बात की लेकिन पंकज की मां किसी की नहीं मानती थी । अपने माता पिता के समझाने से वो कुछ दिनों तक तो ठीक रहती है लेकिन उसके कुछ दिनों के बाद ही वो फिर से अपने स्वाभाविक रूप में आ जाती है । पंकज के पिता अपनी पत्नी के इसको सेल स्वाभाव और हर समय झगडते रहने की वजह से बहुत परेशान थीं । समय गुजरता गया पंकज के पिता अपनी पत्नी का स्वाभाव तो नहीं बदल सके लेकिन उन्होंने अपना स्वभाव बदल लिया । उन्होंने अपनी दिनचर्या में बदलाव कर लिया और अपने ही घर में समय कम बिताने लगे और अपने आप को अपनी दुकान के काम में व्यस्त कर लिया । पंकज के पिता सुबह चार बजे के आस पास वोट जाया करते और आधे पौने घंटे में नहा धो कर अपने मंदिर वाले कमरे में बैठ जाया करते हैं और लगभग एक से डेढ घंटा पूजा पाठ किया करते । पूजा पांच के बाद वो अपनी किराना की दुकान खोल लेते हैं और लगभग सारा दिन वही बैठे रहते हैं । वो रात को भी बहुत ही देर से दुकान को बंद करते । दुकान के ऊपर घर होने की वजह से वह चाहकर भी घर नहीं जाते हैं । घर आकर वो बिना किसी पारिवारिक सदस्य से ज्यादा बात किए । कोई मिलाकर वो अपनी पत्नी के गुस्सैल स्वभाव को नजरअंदाज करने की कोशिश करते रहे । लेकिन जब कभी पानी सिर से ऊपर उठ जाता है तो वो अपनी पत्नी का विरोध भी करते थे । पंकज की माँ को उनकी दुकान पर आने की सख्त मनाही थी । वो इसलिए क्योंकि उनकी दुकान शहर के व्यस्त बाजार के ठीक बीचोंबीच थी और पंकज के पिता अपनी पत्नी के स्वभाव को अच्छी तरह से जानते थे । वो नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी दुकान में आकर व्यस्त का झगडा करेंगे जिससे कि उनकी दुकानदारी पर खराब असर पडे । अपनी पत्नी के स्वभाव की वजह से उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर आना जाना और मेलजोल लगभग बंद कर दिया था और न ही उनके घर में उनका कोई रिश्तेदार आता जाता था । जिस वजह से वो लगभग अकेले पड चुके थे । लेकिन इस बारे में उन्होंने कभी भी भगवान से कोई शिकायत नहीं की । वो इसे भगवान की मर्जी समझकर जिंदगी काट रहे थे । बातों बातों में मैं अपना परिचय देना तो भूल ही गया । दोस्तों मेरा नाम मोहित शर्मा है और मेरा पंकज के साथ दूर दूर से कोई रिश्ता नहीं था । बिल्कुल सही कहा मैंने की मेरा पंकज और उसके परिवार के साथ दूर दूर से कोई संबंध या रिश्ता नहीं है तो फिर हम दोनों दोस्त कैसे बनेगा? हुआ यूं कि बहुत साल पहले मैं अपने माता पिता के साथ रेलगाडी द्वारा हरिद्वार जा रहा था । कुछ देर के बाद एक आदमी अपने परिवार के साथ हमारे डिब्बे में चढ गया । मैं रेलगाडी के डिब्बे के ऊपर की जगह पर बैठा था । रेलगाडी में बहुत भीड होने की वजह से उस आदमी ने अपने दो साल के बच्चे को मेरे साथ बैठा दिया । वो बच्चा कोई और नहीं बल्कि पंकज था । वो बहुत शरारती था जिस वजह से मैंने और पंकज अपने पूरे सफर के दौरान बहुत मौज मस्ती की । पंकज अपने आस पास के लोगों की नकल उतारकर सबका मनोरंजन कर रहा था । कभी वह चाय बेचने वाले लडकों की नकल उतारता तो कभी समोसा वगैरह बेचने वालों की नकल उतारता । पंकज की उन नटखट शरारतों ने वहाँ बैठे सभी सहयात्रियों का मन मोह लिया था और शायद इन्हीं शरारतों की वजह से मेरी दोस्ती पंकज से हो गई । पंकज से मेरी दोस्ती की वजह हम दोनों के परिवार काफी घुल मिल गए थे । संयोग वर्ष हम दोनों परिवार हरिद्वार में एक ही सराय में ठहर गए जिससे हमारी दोस्ती और भी गहरी हो गई । हरिद्वार से अपने घर आने के बाद हम दोनों परिवारों में एक दूसरे को फोन करने का सिलसिला शुरू हो गया । पंकज की मां काफी मिलनसार स्वभाव की थी और उन्होंने हमें कई बार अपने घर आने का न्यौता भी दिया । लेकिन हम अपने निजी जिन्दगी में व्यस्त होने की वजह से बार बार उनके न्यौते को टाल देते थे । एक दिन की बात है हमें एक होना है । मैंने फोन उठाया और कहा चलो जी कौनसा बोल रहे ऍम बेटा क्या मेरी बात मोहित से हो रही है? मैं पंकज का पिता बोल रहा हूँ । हाँ जी नमस्कार अंकल जी बोलिये मैं मोहित बोल रहा हूँ बेटा वो बात ऐसी है कि पंकज की माँ का देहांत हो गया । वो कब हुआ ये अंकल जी बेटा आज सुबह हुआ है और तुम अपने परिवार को भी इस बारे में बता देना । पंकज की माँ की अचानक मृत्यु की खबर सुनकर मैं हैरान हो गया और मैंने फोन पांच खडे अपने पिता को पकडा दिया । क्या हुआ भाई साहब, ये सब अचानक कैसे हो गया? पिता जी ने पंकज के पिता से पूछा कुछ नहीं भाई साहब । पंकज की माँ बहुत दिनों से बीमार थी और फिर भगवान की मर्जी को कौन टाल सकता है । कल सुबह उनका संस्कार है । अगर आप आ सकते हो तो जी भाई साहब, आप चिंता ना करें, हम कल सुबह जरूर आ जाएंगे । पंकज के पिता से बात करने के बाद मेरे पिता ने फोन बंद कर दिया और उदास लहजे से कहा, बेटा ये तो बहुत बुरा हुआ । हाँ पिताजी बुरा तो हुआ है, लेकिन इसमें हम कर भी क्या सकते हैं । शायद भगवान की यही मर्जी हूँ । बेटा तो एक काम कर क्या? बेटा तो अभी के अभी पंकज के घर की ओर रवाना हो जाए और उसे जाकर संभाल । वो क्यों? पिताजी मेरा तो समझ नहीं रहा । बेन माँ के बच्चा है । उसे तो समझ नहीं होगी कि उसके साथ क्या हुआ है । मेरी बात मान और देर मत कर । जल्दी से पंकज के पास पहुंचकर देखो से ठीक है पिताजी लेकिन आप सब बेटा हम कल सुबह पंकज के घर पहुंच जाएंगे । पिताजी के कहने पर मैं तुरंत ही पंकज के घर की ओर रवाना हो गया । कुछ समय के बाद मैं पंकज के घर पहुंच गया और घर पहुंचते हैं । पंकज को उसके पिता ने पकड लिया । उधर, पंकज के घर का माहौल बहुत अजीब सा था । एक तरफ जहां पंकज की माँ की मृत्यु की वजह से मातम का माहौल था, वहीं दूसरी तरफ पंकज के पिता की दूसरी शादी के चर्चे हो रहे थे । पंकज के पिता की शादी उनकी साली से होने जा रही थी । ये बात मुझे कुछ अजीब लगे, लेकिन मैं चाहकर भी इसमें अपनी दखलंदाजी नहीं कर सकता था । वहाँ आए कई लोगों ने पंकज के पिता से मेरे बारे में पूछा तो पंकज के पिता मेरी और पंकज की पहली मुलाकात की कहानी सुनाने लग जाते है । खैर, मैं वहाँ तीन चार दिन तक रुका और पंकज के पिता के साथ रहकर पंकज की देखभाल और वहाँ के काम काज में उनका हाथ बताया तो मैंने अपना ज्यादातर समय पंकज के साथ ही बताया, घर आकर मेरा दिल नहीं लगा और मेरा ध्यान पंकज की ओर ही था । मैं ज्यादातर समय उसके बारे में ही सोचता रहा । उसकी सोच में मैं ऐसा मग्न हो जाता है कि मुझे अपने आस पास की कोई खबर नहीं रहती । एक दिन पिताजी ने मुझे कोई काम बोला तो मैं उन की बात सुन नहीं पाया तो पिताजी मुझे डांटने के लहजे से बोले हैं मोहित क्या हुआ? कहाँ हो? पिताजी की आवाज सुनकर मैच हो गया और कहा कुछ नहीं पिताजी बेटा मैं कब से तो मैं बुलाया जा रहा हूँ, लेकिन तुम मेरी बात ही नहीं सुन रहे । कहाँ खोये रहते हैं वो आज कल कहीं नहीं पिताजी कहीं नहीं से तुम्हारा क्या मतलब? मुझे पता है जब से तुम पंकज के घर से आया हूँ, गुमसुम से रहते हूँ बेटा उसके बारे में सोचना बंद करो और अपने भविष्य के बारे में सोच पंकज की चिंता तो उसके परिवार और भगवान पर छोड दो । उसके भाग्य में जो लिखा होगा वही उसे मिलेगा । तो मैं क्या मैं उसका भाग्य नहीं बदल सकते । लेकिन पिताजी बेटा बात को समझा कर हम उनके परिवार में ज्यादा दखलंदाजी नहीं कर सकते । आखिर हमारा उनसे रिश्ता ही क्या है? पिता जी अब कैसी बातें कर रहे हो? दोस्ती इंसानियत नाम का कोई रिश्ता नहीं होता । बेटा तो मेरी बात को समझ नहीं पा रहे हैं तो मैं भी बच्चे हो । समय रहते तो खुद समझ चाहोगे बाकी पंकज के बारे में मैं तुमसे यही कहूंगा कि जिस परिस्थितियों में तुम्हारा बस नहीं चलता है, उन परिस्थितियों को भगवान के भरोसे छोड आपके कहने का क्या मतलब है? मेरे कहने का ये मतलब है कि पंकज या उसके जीवन के बारे में तुम चिंता करके अपना जीवन बर्बाद मत कर रहे । तुम चाहकर भी इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं । तुम पंकज को भगवान के भरोसे छोड दो और फिर उसका पिता है । उसकी माँ उन्हें उसकी चिंता करने दो परन्तु महत्व सौतेली हैं । सौतेली है तो क्या हुआ? माँ तो माँ है ना । और फिर सुनने में आया है कि वह उसकी माँ बाद में बनी । पहले उस की मौसी थी । मेरा दिल कहता है कि वह जरूर उसका ख्याल रखेगी । तो ये सब फालतू की चिंताएं छोड दो और अपने भविष्य की ओर ध्यान दो । पिताजी ये सब कहकर वहाँ से चले गए और मैं पंकज को भगवान भरोसे छोडकर अपना काम करने लग गया क्योंकि पिताजी अपनी जगह सही कह रहे थे । जिन परिस्थितियों में मेरा बस नहीं चल सकता उन परिस्थितियों को भगवान के भरोसे छोड देना चाहिए । कहानी को आगे बढाते हैं पंकज के पिता जी ये शोर शराबा संकर वहाँ आ जाते हैं और उनसे पूछते हैं क्या है भाई? सुबह सुबह ये तुम दोनों ने कैसा शोर मचाया हुआ है । आखिर बात क्या है कोई मुझे भी तो बता दो । इससे पहले की पंकज कुछ पोलिस पंकज की मां बोलने लगती है ये खुला साथ मैं कितनी देर से बुला रही और ये मेरी बात का जवाब देने के बजाय यहाँ ऊपर छिपकर बैठा है और अपना ये तंबूरा से लेकर गला फाडता । जब इससे कुछ पूछो क्या? बात करो तो पापा करके इसके मुझे आवाज तक नहीं निकलती है और यहाँ पानी की तरह गाना गा रहा है । मैं तो पहले कहती थी ये सब ऐसा बोल कर बहानेबाजी करता है ताकि हमें से कोई काम करने के लिए ना कहें । आप मानो या ना मानो पापा पर सब ड्रामेबाजी है । ये बिल्कुल ठीक ठाक बोल सकता है । बस हमारे सामने ही ऐसी ड्रामेबाजी करता है । ये सब सुनने के बाद पंकज वहाँ से सीधा अपने कमरे की ओर चला जाता है । वो अपने कमरे में जाकर दरवाजा अंदर से बंद कर लेता है और जोर जोर से रोने लगता है । दोस्तों पंकज की हकलाहट की समस्या के बारे में तो मैंने आपको कुछ बताया नहीं । पंकज को हकलाहट की समस्या है यानी वही रुक रुककर बोलने की समस्या और ये समस्या क्या है, ये कैसे पैदा होती है और पंकज को ये समस्या कैसे हुई? आइए इस बारे में कुछ बात कर लेते हैं । हकलाहट की समस्या क्या है इस बारे में तो शायद आपको पता ही होगा । अगर नहीं तो एक बार फिर से बता दूँ कि जो लोग बोलते समय रुक जाते हैं यह किसी भी शब्द को बार बार दोहराते हैं । वो हकलाहट की समस्या का शिकार होते हैं । उदाहरण के तौर पर जब पंकज से उसका नाम पूछा जाता है तो वह डर जाता है और अपना नाम बोलते समय पंकज की जगह तो पसंद बोलता है । पंकज भी हकलाहट की समस्या का शिकार होता है । बात करते हैं कि उसे ये समस्या क्यों? किसी भी व्यक्ति को हकलाहट की समस्या होने कि वजह क्या कारण उस की विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करता है । पंकज को बचपन से ही अपनी सौतेली माँ की डांट का सामना करना पडता है और इसके साथ साथ उसके पिता का नजरंदाज करना भी उसके जीवन में बहुत असर करता है । पंकज के रिश्तेदारों का उसके घर में कम आना जाना, उसका लगभग सारा दिन अकेला अपनी सौतेली माँ के पास रहना और सारा दिन उसकी बेवजह डांट का सामना करना उसकी हकलाहट की समस्या के पैदा होने का एक बडा कारण माना जा सकता है उसके स्कूल में भी उसका कोई दोस्त वगैरा न होना जिससे की वो अपने मन की बात कर सके और घर में हर समय लडाई झगडे का माहौल होने की वजह से हर समय एक डर के साए में जीने को मजबूर होना । छोटे भाई बहन भी उसका ज्यादा साथ नहीं दे पाते थे क्योंकि वो भी अपनी माँ के गुस्से से डरते थे । वो बेशक उनकी सगी मां थी लेकिन आपने ऍम भाव होने की वजह से तो उन्हें यानी पंकज के सौतेले भाई बहन को भी हर समय बेवजह डांटती रहती थी लेकिन इसके बावजूद वो उनमें पक्षपात जरूर करती थी । यानि सगे और सौतेले में फर्क जरूर क्या करती थी । ऐसी परिस्थिति में पंकज अपना आत्मविश्वास खो देता है और हकलाहट जैसी समस्या का शिकार हो जाता है ।

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Sound Engineer

यह कहानी एक ऐसे लड़के के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है जो कि हकलाहट की समस्या से परेशान है | और अपनी समस्या की वजह से उसे कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है | उसे गाने का शौक है लेकिन उसके परिवार वाली खास करती है उसकी सौतेली मां उसके इस शौक को अनदेखा कर देती है और हर समय से किसी ना किसी प्रकार से प्रताड़ित करती रहती है | जिस वजह से उसका यह शौक उसका एक सपना बनकर रह जाता है | लेकिन वह हार नहीं मानता और अपने दोस्तों की मदद से वह किस प्रकार अपने मकसद में कामयाब होता है | यह जानना बहुत ही दिलचस्प होगा Voiceover Artist : RJ Hemant Author : Rohit Verma Rimpu
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