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Audio Book | hindi | Literature
16 minsधर्म लॉक एक संदेही परमात्मा । एक बडे आदमी ने परमात्मा की प्रशंसा में गीत लिखें । गीतों ने पुस्तक का रूप लिया । पुस्तक को सत्ता का सहारा मिला । पुस्तक की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गई । लेखक को राजकीय सम्मान मिला । वो सम्मान पाकर खुश हुआ । लेखक प्रतिदिन प्रातः शहर को जाता तो मार्ग में एक बूढा संशय से देखता हूँ और मुस्कुरा देता । बूढे ने एक दिन लेखक से पूछ लिया, क्या आपने परमात्मा की प्रशंसा नहीं? जो गीत लिखे हैं उन के कारण आप सम्मानित हुए हैं और क्या वास्तव में ही अपने परमात्मा को जान लिया है? लेखक बूढे व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता और सोचने पर मजबूर हो गया । गीत तो मैंने परमात्मा को जाने बिना ही लिख दिए हैं । सत्ता के सहारे से जो सम्मान मुझे मिला है, वास्तव में मैं उसका अधिकारी नहीं । एक रात भारी वर्षा हुई । प्राथमिक मौसम साफ हो गया । लेखक दिनचर्या के अनुसार शहर के लिए निकला । उसने सूरज को निकलते हुए देखा है । तालाब नहीं । सूरज का प्रतिबंध पड रहा था । उसने तालाब में सूरज को देखा । उसने छोटे छोटे गड्ढों में भी सूरज के दर्शन किए । फिर उसे पेडों के पति पर बडी पानी की बूंदों में भी सूरज दिखाई दिया । उसने खास पर उस को देखा जिन में भी हो गये सूरज का रूप चमकता हुआ दिखाई दिया । उसने देखा कि ओ उसका से लेकर तालाब का पूरा तल सूरज के प्रकाश से प्रकाशमान है । लेखक अब परमात्मा को पहचान चुका था । माँ कहती थी संसार में प्रत्येक जड चेतन परमात्मा का ही रूप है । सभी पदार्थों में उसको प्रेम के माध्यम से देखा जा सकता है । यही उसका परिचय है । चंदा बाटे चांदनी सूरज बांटे धूम जो भी नया निहारते सब ईश्वर करूँ संतुष्टि किसी गांव में एक सेट रहता था तो बडा सारे और दयालु था । छेड खेती के साथ साथ व्यापार भी करता था । इसलिए अन्य ग्रामीणों की अपेक्षा स्टेट की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी । गांव के बाहर बहुत से गरीब, किसान और मजदूर रहते थे । जिनको यदा कदा थोडे बहुत पैसों की जरूरत पडती है तो वह सीट के पास आते हैं और अपनी जरूरत के मुताबिक रुपये पैसों की मांग कर दें । सेट उन्हें निराश नहीं करता । चिट किसी को उधार दिए गए रुपये पैसे पर किसी प्रकार का लाभांश भी नहीं लेता था । इस कारण से सेट के पास रुपया, पैसा मांगने वाले कुछ ज्यादा ही आने वाले थे । छेड की पत्नी को सीट की ये बात अच्छी नहीं रखती थी । जब से नहीं रहा गया एक दिन में बोली जिस हिसाब से आप लोगों में नहीं पैसा बांटते हैं, इस तरह से खजाने भी खाली हो जाते हैं । छह । शांत मुद्रा में बोला देखो मनेश्वर ने दिया है तभी हम जरूरतमंदों की सहायता कर सकते हैं । यदि हमारे पास कुछ नहीं होता तो हम किसी की सहायता कैसे कर पाते हैं । हमें तो परमेश्वर का धन्यवाद देना चाहिए कि हम किसी की सहायता करने हेतु सक्षम हैं । सेठ की पत्री अपने पति की बातों से संतुष्ट हुई और स्टेट द्वारा किए जा रहे भलाई के कामों में उनकी मदद करने लगे । माँ कहती थी धन दौलत आनी जानी है । अगर आप किसी की सहायता करने में सक्षम हैं तो अवश्य करेंगे । जरूरतमंद की सहायता करने से आप संतुष्टि मिलती है । निर्बल निर्धन उपेक्षित दिन ही नादान । जिनको इनका ध्यान है वो पाता सम्मान । रिजर्व परिवर्तन नगर के बाहर एक फकीर अपनी कुटिया में रहता था । जाडे की रात एक छोर उसकी खुफिया में चोरी करने के उद्देश्य से गुस्सा अकेले ध्यान में था । टूर आराम से कुटियां को टटोलता था । वकील जब ध्यान से निवृत हुआ तो उसने चोर को देखा और उसे उस पर दया आ गई । उसने चोर को कहा ट्राई चिराग के पास कुछ रुपए हैं और कोने में एक कम्बल भी है । उसे ले जाओ चोर फकीर के कहने के मुताबिक रुपये और कम्बल तुरंत अपने कब्जे में किए और चलता बना । दूर थोडी दूर ही गया था कि सिपाहियों ने उसे पकड लिया । पूछताछ के दौरान तोडने मान लिया कि रुपया और कम्बल उसने फकीर की कुटिया से चुराए हैं । तोर पर मुकदमा चला न्यायालय में फकीर को साक्षी के तौर पर बुलाया गया । फकीर से चोरी के विषय में पूछा गया तो फकीर बोला हूँ श्रीमान यह व्यक्ति मेरी कुटिया में आया था । जाडे की रात थी । उसके बदन पर कपडा नहीं था । इसका पेट कमर से मिलता था । मैं समझ गया कि ये भूखा भी है । उस दिन मेरा शुभचिंतक मुझे कुछ रुपये और एक कंबल ले गया था । मुझे लगा कि इन रुपयों और कम्बल की जरूरत मुझसे ज्यादा तो इसको है । मैंने खुद ही इस व्यक्ति को ये रुपये और कम्बल दिए थे । फकीर की बात सुनकर चोर को बरी कर दिया गया । अगले दिन दूर फकीर के पास आया । उसने दीक्षा ली और फकीर का शिष्य बनकर परिश्रम से अपने परिवार का पालन पोषण करने लगा । माँ कहती थी दया और प्रेम से भटके हुए लोगों का निर्णय परिवर्तन करके उन्हें सीधे और सच्चे मार्ग पर चलने के लिए मजबूर होना पडता है । जबकि घृणा से अपराधवृत्ति बढती है । सूरत से सो ही दिवस सजे चंद्रसेना सादा दिलों को सींचती सज्जन जनकीबात स्वर्ग एक राजा ने अपने दरबार में धर्म सभा का आयोजन किया । विद्वानों ने ये लोग तथा पर लोग के विषय में व्याख्यान दिए । अधिक विद्वानों का मत था संसार तो उम्मीद है मृत्यु लोग तो केवल दुःख भोगने के लिए है । सच्चा सुख तो सत्तर करने से वर्ग में ही प्राप्त होगा । राजा ने विद्वानों की बात सुनी और मंत्री को आदेश दिया इन विद्वानों को इसी समय स्वर्ग पहुंचाने की व्यवस्था करो । मंत्री ने छमा मांगते हुए कारण पूछा । राजा बोला महापुरुष विद्वानों ने सदैव सब काम किए हैं । इनका कहना है संसार में क्या है और संसार में कष्टों के सिवाय कुछ नहीं । स्वर्ग सब कर्मों से मिलता है । इन सच्चे लोगों को मृत्यु के बाद तो स्वर्ग मिलना निश्चित है । मैं इन विद्वानों को मित्तियां जगत के पृष्ठों से छुटकारा दिलाकर स्वर्ग में पहुंचाकर उन्नीस कमाना चाहता हूँ । मंत्री राजा की बात से सहमत हुआ और उसने विद्वानों को तत्काल खत्म करने का आदेश दे दिया । मृत्यु को सामने खडा देखकर सभी विद्वान अपने प्राणों की रक्षा की प्रार्थना करने लगे । मांग कहती थी अपने प्राणों की रक्षा की भीक मांगने वाले विद्वानों से राजा ने पूछा, आप नित्य जगत के प्रश्नों को छोडकर अब स्वर्ग के सुख भोगने की इच्छा क्यों नहीं करते हैं? सभी विद्वान एकमत होकर बोले खराब है । हम तो लोगों के समक्ष केवल किताबों की बातों का बखान करते हैं । जब की मृत्यु को निकट देखकर हमें ज्ञात हुआ, इस वक्त तो इसी संसार में है और सुख भी जीवन में है । स्वर्ग नर्क के भेद में दो पडता देखा मानव जीवन स्वर्ग है । इच्छाओं को बार बदलाव हूँ । सूफी संत राबिया की कुटिया चंदन में थी । राबिया जब इबादत करती है, जंगल के सभी पशु पक्षी कुटिया के पास एकत्रित हो जाते हैं । एक दिन सब हसन राज्य से मिलने गए । राबिया उस समय इबादत में थी और अनेक पशु पक्षी राबिया के पास बैठे थे । उन को बहुत अच्छा लगा हूँ । तो जैसे ही फॅार के पास गए सभी पशु पक्षी वापस जंगल की ओर चले गए । जब राधिया इबादत से फारिग हुई तो हसन ने पूछा हूँ, तुम इबादत में थी तो तुम्हारे पास अनेक पशु पक्षी बैठे थे, किंतु मुझे देखते ही सब जंगल की ओर चले गए । राबिया हसन से कहने लगी, आज तुमने क्या खाया था? ऍम बोले, रोटी और गोश्त राधिया कहने लगी तो मैं जानवरों को अपना भोजन बनाते हो तो ये तुमसे प्यार कैसे कर सकते हैं? राबिया के बाद उनकी समझ में आ गई । ऐसा माना जाता है कि इसके बाद से हसन शाकाहरी हो गए । वहाँ कहती थी, प्रेम की भाषा को सभी जीव जंतु भी समझते हैं । जब हम किसी भी पशु पक्षी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हैं, वो उसका बदला प्रेम के रूप में ही देते हैं । प्रेम रूप दरियाव में जो डूबा एक बार अपना सा लगने लगा । उसको सब संसार शरमाया एक व्यक्ति एक फकीर के पास गया और अनुरोध करने लगा कि मैं गरीब हूँ, मेरे लिए कोई ऐसा रास्ता बताएँ, मेरी गरीबी दूर हो जाये भी बोला तो मेरे पास चलाना । तब मैं तुम्हारी गरीबी दूर करने का कुछ उपाय करूंगा । अगले दिन जब व्यक्ति फकीर के पास गया तो फकीर बोला तो मेरी व्यापारी से बात हुई है । वो तुम्हारा एक हाथ एक लाख रुपये नहीं और दूसरा हाथ दो लाख रुपये में खरीदना चाहता है । यदि तुम सहमत हो तो हमारे दोनों हाथों के तीन लाख रुपए मिल सकते हैं । व्यक्ति बोला बहुत ये नहीं हो सकता कि मैं अपने हाथ देश हूँ । फिर बोला कोई बात नहीं, मैं कोई दूसरा उपाय सोचता हूँ । अगले दिन व्यक्ति जब फकीर से मिला फकीर बोला एक व्यापारी तुम्हारी दोनों आंखें बीस लाख में खरीदना चाहता है । यदि सहमत हो तो मैं बात करूँ । व्यक्ति बोला कि ये नहीं हो सकता कि मैं अपनी आंखें तीस लाख में बेचता हूँ । माँ के जाती थी फकीर व्यक्ति को उसके अंगों की कीमत बताता रहा हूँ । किन्तु व्यक्ति किसी अन्य को बेचने के लिए सहमत नहीं हुआ । और ये बोला जब शरीर के अंगों के रूप में करोडों को सरमाया तुम्हारे पास है तो तुम गरीब कैसे हो सकते हो? सादेक जिसके पास में है लाखों का माँ कितना बडा कमाल है । समझ रहा कन्नान समर्पण किसी सज्जन व्यक्ति को डाकू ने गुलाम बनाकर एक बादशाह के हाथों देश दिया । पांच शादी सारे था । उसने गुलाम से पूछा है तो क्या खायेगा तो हमने कहा जो मालिक खिलाएगा । बच्चा ने फिर पूछा तो क्या करेगा? गुलाम ने कहा जो मालिक कर वायदा अच्छा ने पूछा तेरी क्या अच्छा है? गुलाम ने उत्तर दिया हूँ जो मालिक की इच्छा वही मेरी इच्छा । गुलाम की बातें सुनकर बादशाह सोचने लगा हूँ ये व्यक्ति सांसारिक मालिक के प्रति कितना समर्पित है । इस की कंपनी कोई इच्छा ही नहीं है । मैं मैं अपनी इच्छाओं को सम्मानिक के ऊपर थोपने का प्रयास करता हूँ । मेरी जो चाय पूरी नहीं होती है उन के कारण मुझे दुख होता है और यही मेरे प्रश्नों का कारण है । यदि मैं भी परमेश्वर की छान सा अपना जीवन बिता होंगे ही मुझे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा । माँ कहती थी अपने मालिक के प्रति समर्पित रहने वाले व्यक्ति से सांसारिक मालिक खुश रहता है । उसी प्रकार आपने उस माले यानी परमेश्वर के प्रति समर्पित रहने पर और ईश्वर भी प्रसन्न रहता है और यदि मनुष्य सुख और तो दोनों को ही ईश्वर का प्रसाद माने तो उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा । त्याग, समर्पण, प्रेम का रखा अगर व्यवहार फिर जिससे चाहे मिलो, वही करेगा । ज्ञान सच्ची के बाद प्रसिद्ध सूफी संतरा दिया आपने एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में पानी लिए जा रही है । लोगों ने राबिया से पूछा की आग और पानी को लेकर कहाँ जा रही हो? क्या बोली मैं स्वर्ग को आग से जलाकर और नर्क की आपको पानी से बुझाकर स्वर्ग और करता अस्तित्व ही समाप्त कर देना चाहती हूँ, लेकिन आप ऐसा दू करना चाहती हूँ । लोगों ने पूछा हूँ हम ये बोली कुछ लोग स्वर्ग के लालच में तथा कुछ लोग नरक के भय से इबादत करते हैं । लोग निष्ठा, प्रेम, अनुग्रह और समर्पण के साथ उधर से नहीं जोडते । मैं परमात्मा और मनुष्य के बीच लालच और भय समाप्त कर देना चाहती हूँ जिससे लोग खुदा के बाद और प्यार मोहब्बत उसकी तैयार प्रभु और एहसान के लिए करें । पिछली लालच और भय के कारण नहीं । माँ कहती थी खुदा की सच्ची इबादत उसके प्रति समर्पण में है । भैया लालच के कारण की गई इबादत सच्ची इबादत नहीं हो सकती । स्वर्ग नर्क के चक्र में उलझा है संसार जीवन तेरह स्वर्ग में पांच सभी को क्या गुरु के पास किसी गांव में एक महिला रहती थी । उसका एक पुत्र था जिसका देखा उसने बडी धूमधाम से किया था । पुत्रवधू अत्यंत सुशील, सुंदर और संस्कारित थी । कुछ दिन सास और बहू का समय बडे ही प्रेम के साथ बीता तो कुछ दिन बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव आने लगा । बहु सास की कुछ बातों से सहमत नहीं थी, लेकिन सास माँ अपनी हर बात को ऊपर रखना चाहती थी । इस कारण महिला अपनी पुत्रवधू की आलोचना करती और पडोस की महिलाओं से उसकी कमियां गिनाते हुए कहती, ऐसी बहुत भगवान किसी को न दें । महिला एक साध्वी से प्रभावित थी और उसे अपनी गुरुमाता मानती थी । गुरुमाता एक बार गांव में आई तो महिला ने गुरुमाता से भी बहु की आलोचना करते हुए यही बात दोहराई । भगवान ऐसी बहुत किसी को न दें । गुरुमाता गांव से दूर एक आश्रम में रहती थी । गुरु माता ने महिला को समझाया कि वह बहु को आश्रम में भेजते हैं । वहाँ पर साध्वियों के साथ रहकर तुम्हारी बहू का हृदय परिवर्तन हो जाएगा । महिला इसके लिए राजी हो गई और बहुत गुरुमाता के साथ आसाराम चली गई । एक सप्ताह बाद गुरु माता महिला के पास आई और बडे दुख के साथ बताया कि दो दिन पूर्व तुम्हारी पुत्रवधू की सर्पदंश से मृत्यु हो गई । पुत्रवधू की मृत्यु की खबर सुनकर महिला रूदन करते हुए पुत्रवधुओं की अच्छा यहाँ गिनवाने लगी । गुरुमाता महिला को समझाते हुए बोली, जब तुम्हारी बहू में इतनी अच्छाइयाँ हैं तो हम बहू को बुरा क्यों कहती हो? गुरु माता ने महिला को बताया कि तुम्हारी बहुत जिंदा है और तुम्हें सबक सिखाने के लिए ऐसा किया गया था । गुरु माता की बातों का असर महिला पर पडा और वो बहु के साथ प्रेम से रहने लगी । माँ कहती थी परिवार के सदस्य जब एक साथ रहते हैं तो उन्हें एक दूसरे की कमियां नजर आने लगती हैं । जब की आपस की खूबियों पर ध्यान देकर घर में प्यार से रहना चाहिए । कोमल मधुर सुहावना रिश्तों का ऐसा प्रेम ना पनपेगा वहाँ जहाँ नहीं विश्वास
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Sound Engineer