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माँ कहती थी - 02 (विचार जीवन संदेश) in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
Maa Kehti Thi Written By Mumtaz Khan Narrated By Ashish Jain. अतीत जैसा भी हो उसकी स्मृतियाँ मधुर होती हैं। यदा-कदा ये स्मृतियाँ अमूल्य धरोहर बनकर जीवन का निर्माण करती हैं। इस काल खण्ड में वर्तमान भौतिकवाद के प्रभाव में आकर पूंजीवाद की भेंट चढ़ता प्रतीत होता है । लोक संस्कृति जो जीवन दर्शन के रूप में अपने बड़ों के अनुभव से पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त होती थी निरंतर ह्रास की ओर अग्रसर है। मेरे अतीत की स्मृतियों में, वे सीख वाली लोक कथाएँ भी है जो मैंने माँ से सुनी थी। बातें साधारण थीं पर उन बातो में संपूर्ण जीवन प्रतिम्बिबित था। लोक कथाएँ जो बड़े-बूढ़ों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी संतानों को सुनाई जाती रही हैं| writer: मुमताज खान Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Mumtaz Khan
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विचार जीवन संदेह व्यवहार एक ग्रह मुख्यमार्ग पर बचा था । मुख्यमार्ग पर ही ग्राम के बीच एक पूरा अपनी झोपडी में रहता था । उसने झोपडी के आसपास फूलों के पौधे तथा छाया था और रक्षा भी रोपित किए हुए थे । मुख्य मार्ग से गुजरने वाले यात्री बूढे की झोपडी के पास कुछ देर रुककर प्रकृति के सौन्दर्य का आनंद लेते थे । एक दिन खुद सवार झोपडी के पास आकर रुका । उसने शीतल जल दिया । कुछ देर आराम किया । फिर बूढे से पूछा आवाज मैं ग्राम ने बचना चाहता हूँ । कृपया बताएं ग्राम के लोग कैसे हैं? थोडा बोला बेटे जिस ग्राम से तुम आ रहे हो उस ग्राम के लोग कैसे थे और सवारने कहा बाबा, उस ग्राम के लोग बहुत बुरे थे । उन्हीं के कारण मुझे वो ग्राम छोडना पडा । बूढे ने खुद सवार को समझाया । ग्राम के लोग तो उस ग्राम के लोगों से भी बुरे हैं जिसे तुम छोड कर आ रहे हो । अभी तो में ग्राम से बाहर रहता हूँ । बूढे की बात सुनकर और सवार आगे चला गया । थोडी देर बाद झोपडी के पास एक बैलगाडी आकर होगी । गाडी में एक भरा पूरा परिवार सर वर था । गाडीवान ने पूरे से पूछा आवाज हम इस ग्राम में बचना चाहते हैं । क्या बताएँ ग्राम के लोग कैसे हैं बूढे ने फिर वही प्रश्न क्या भैया जिस ग्राम को आप लोग छोड कर आ रहे हो उस ग्राम के लोग कैसे थे? गाडीवान भारी मन से बोला बाबा प्रोग्राम तो स्वर्ग था । वहाँ के लोग देवता थे । नदी की बाढ ने ग्राम को बर्बाद कर दिया । अभी कुछ दिन में स्थिति सामान्य हो गई तो हमारा परिवार उसी ग्राम में रहना पसंद करेगा । ढूढे ने गाडीवान को करे लगाया और सम्मानपूर्वक बोला ग्राम के लोग तुम्हारे ग्राम के लोगों से भी अच्छे हैं । यहाँ तो मैं और भी अधिक सम्मान मिलेगा । माँ कहती थी एक अन्य व्यक्ति बूढे की बात सुन रहा था । उसने बूढे से पूछा बाबा भूत सवार को अपने इस ग्राम के लोगों को बहुत बुरा बताया है जबकि गाडीवान को इस ग्राम के लोगों के बारे में अच्छा बताया । ऐसा क्यों? बूढा बोला बेटे अच्छा आदमी अपने आस पास के वातावरण को अपने व्यवहार से अच्छा बनाता है । जब कि बुरा वह झगडालू प्रवृत्ति का आदमी अपने आसपास के परिवेश को खराब करता है । समाज अच्छे के लिए अच्छा है और बुरे के लिए बुरा सबकुछ दूसरों के प्रति व्यवहार पर ही निर्भर है । नफरत को नफरत मिली, मिला प्यार को प्यार सादिक जैसे आप हैं वैसा सब संस्था सितारे एक ज्योतिषी सितारों का अध्ययन करने के लिए दूरबीन से आसमान को देखते हुए चल रहा था । गहरे गड्डे में जा गिरा हूँ । हँसी एक बूढी औरत अपने दो बेटों के साथ खेत में काम कर रही थी । वो बेटों के साथ खड्डे की और थोडी और बेटों की सहायता से ज्योतिषी को गड्ढे से बाहर निकाला हो । काफी रात हो चुकी थी । बूढी और अपने ज्योतिषी से कहा बेटा इस समय कहाँ जाओगे तो चोट भी लगी है । अच्छा हो कि आज हमारे परिवार के साथ ही आराम करलो । ज्योतिषी ने बूढी औरत की बात मान ली है । बूढी औरत उसे अपने घर ले गई और से अच्छा भोजन कर रहा हूँ तथा आराम की भी उचित व्यवस्था की । अगले दिन जब ज्योतिषी अपने घर जाने लगा तो बोला हूँ माता जी मैं ज्योतिषी हो । सितारों की गति और प्रभाव का मुझे भारी ज्ञान है । मैं आपके पुत्रों के भविष्य का लेखा तैयार करके दोबारा होगा पूरी और गोली मेरा जब चाहो आ जाना घर में तुम्हारा स्वागत होगा, लेकिन मेरा मेरे पुत्रों के भविष्य का लेखा लेकर बताना क्योंकि हम वर्तमान में विश्वास करते हैं इसलिए भविष्य की चिंता नहीं करते हैं । आसमान में देखने वालों को अपने पैरों के पास के ही करते दिखाई नहीं देते । पूरी औरत की बात सुनकर ज्योतिषी बहुत शर्मिंदा हुआ । माँ कहती थी भविष्य की चिंता छोडकर वर्तमान में जीना शेयर्स कर है । वर्तमान में किया गया परिश्रम ही भाग्य का निर्माण करता है । भाग गया हमारे कर्म की खेती है । हम जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल पाते हैं । निश्चित ठोकर खायेगा वो पत्थर के पास जो धरती पर चल रहा देख रहा आता नहीं कमाई दिल्ली का सुल्तान नसीरूद्दीन बहुत इमानदार था । वो राजकोष का एक भी पैसा अपने व्यक्तिगत प्रयोग में नहीं लगता था । अपने व्यक्तिगत खर्चों के लिए स्वयं कार्यकर्ता था । उसके महल में अब्दुल नाम का एक सेवक था । वो सुल्तान की भांति ईमानदार महंती और अपने कार्यों के प्रति समर्पित था । उसकी सज्जनता के कारण सुल्तान ने उसे अपने विशेष सेवकों में स्थान दिया था । सुनता अब्दुल के सेवाभाव से प्रसन्न था । एक दिन अतुल नहीं सुल्तान से अपने घर परिवार के पास जाने की अनुमति मांगी । सुल्तान ने अब्दुल पूछा, अब हम घर जाओगे तो तुम्हें वेतन की आवश्यकता होगी । वेतन तुम राजकोष से ले लेना चाहोगे या मेरे व्यक्तिगत कोष से अब्दुल में प्रसन्न होकर कहा, जहाँ बना मैं अपने को सौभाग्यशाली समझूंगा । मुझे वेतन आपके व्यक्तिगत कोष से मिलेगा । सुल्तान दें अपनी कमाई में से एक टाका अब्दुल को देकर से घर जाने की अनुमति दे दी । अब्दुल उदास मन से अपने गांव की ओर चल दिया । उसने एक ताकि के अनार खरीदें और सोचने लगा कि यदि मैं राजकोट से ही वेतन लेता तो ठीक रहता हूँ । रास्ते में अब्दुल एक उपनगर में होगा । नगर में घोषणा हो रही थी कि अमीर की एकलौती बेटी बीमार है । उन्होंने कहा है कि वह केवल अनार खाने से ही ठीक हो सकती है । अब्दुल की दयालुता ने उचित समझा वो अमीर की बेटी की जान बच जाए इसलिए उसने सारे अनार अमीर की पुत्री को दे दिए । अमीर की पुत्री अनार से स्वस्थ हो गई है । इस पर अमीर बहुत खुश हुआ । उसने बहुत ही धन दौलत घोडों पर लादकर एक सेवक के साथ अब्दुल को भेंट की । माँ कहती थी, मेहनत और ईमानदारी की कमाई देर सवेर अच्छा फल अवश्य देती है । कहावत भी है कि मेहनत और ईमानदारी में सदैव बरकत होती है । सच्चाई के साथ में बना रहा जो नहीं उसके काज संवारता ईश्वर बाहर आने भलाई बहुत पुराने समय की है जब ग्रामीण क्षेत्रों में आने जाने के साधन उपलब्ध नहीं है । लोग को सौ पैदल चलकर यात्रा करते हैं और रात हो जाने पर जो भी बस्ती रास्ते में पडती उसी में विरादरी विश्राम करते हैं । यात्रा करने वाले अपना भोजन साथ लेकर चलते थे । सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में एक किसान अपने पुत्र पुत्रवधुओं के साथ रहता था । उस किसान का घर गांव के ऐसे स्थान पर था जहाँ से राहगीर हो कर गुजरते थे । घर के पास भाग में हुआ था और राहगीरों के विश्राम के लिए उचित स्थान भी था । जब किसी राहगीर को गांव के निकट रात हो जाती और राहगीर किसान से वहाँ रात बताने के लिए अनुरोधकर्ता तो किसान खुशी खुशी रात बिताने की अनुमति दे देता है । किसान की पुत्रवधू बडी ही सुसंस्कारित थी । उसका नियम था । जब उसे अपने यहाँ किसी राहगीर के ठहरने की सूचना मिलती है तो वह स्वयं भोजन की व्यवस्था करती । यदि यात्री अपने पास भोजन होने की बात कहता तो किसान की पुत्रवधू ये कहकर भोजन आपके पास है उसे अगले पडाव पार कर लीजिएगा । राहगीर को अपना ही भोजन करती किसान के निस्वार्थ सेवा भावना तथा पुत्रवधू के अतिथि सत्कार की बाद टूट दूर तक फैल गई । एक बार किसान को लंबी यात्रा पर जाना पडा । किसान ने पुत्रवधू से कहा बेटी मुझे यात्रा पर जाना है । मुझे रास्ते के लिए भोजन दे देना । पुत्रवधू ने कहा पिताजी आपके रास्ते का भोजन मैंने पहले ही भेज दिया है । जहाँ भी आप रुकेंगे आपको भोजन वहीं पर मिल जाएगा । किसान पुत्रवधू के बाद का विश्वास करके यात्रा पर चल दिया । दोपहर के समय वो आराम के लिए गांव में रुका । लोगों ने उसका परिचय पूछा तो किसान ने अपना परिचय दिया तथा गांव का नाम भी बताया । थोडी देर बाद ही किसान के लिए भोजन आ गया । दोपहर का भोजन करने के बाद वो उन्हें यात्रा पर चल दिया । समझा होने पर वह जिस ग्राम में होगा वहाँ भी उसे अच्छा भोजन मिला । किसान को यात्रा के दौरान किसी भी समय भोजन की परेशानी नहीं हुई । यात्रा से वापस लौटने पर किसान ने अपनी पुत्रवधू से पूछा बेटी, मुझे यात्रा में समय से पहले ही भोजन मिलता रहा । तुमने इतने स्थानों पर मेरे लिए भोजन कैसे भेजा? इस पर पुत्रवधू बोली, पिताजी जवाब अपने घर पर आए अतिथियों का आदर सत्कार करते हैं तथा प्रेमपूर्वक भोजन कराते हैं । समाज आपका भी आदर सत्कार अवश्य करेगा । हमारी भलाई हाँ हमारे आगे आगे चलती हैं । इसके मैंने कहा था कि आपका भोजन मैंने आगे भेज दिया है । माँ कहती थी किशन की पुत्रवधू कि अतिथि सत्कार के कारण पूरे गांव की छवि अच्छी बनी । जहाँ भी किसान अपने गांव का नाम बताता लोग सोचते हैं किस गांव में तो अतिथियों का बडा आदर सत्कार होता है था । उस गांव के प्रत्येक व्यक्ति को आदर मिलना चाहिए । इसलिए किसान को यात्रा के दौरान यात्रा में परेशानी नहीं हुई । नहीं नहीं भलाई का बदला भी समय भला ही मिलता है । लोगों का करके भला बिना गरज की थी । नेकी का बदला तुझे सादा मिलेगा नहीं मानव मान के आया हूँ । मुख्यमार्ग पर राज भवन का निर्माण कार्य चल रहा था । भारी भरकम पत्थर तोडे जा रहे थे । सैकडों मजदूर पत्थर तोडने में लगे थे । एक यात्री वहाँ से गुजरात उसने पत्थर तोडने वाले एक मजदूर से पूछा भाई क्या कर रहे हो? मजदूर के माथे से पसीना पहुंच और धरती से आवास में बोला रोजी रोटी का जुगाड कर रहा हूँ । यात्री आगे बढ गया । उसने एक अन्य मजदूर से पूछा भाई क्या कर रहे हो? मजदूर ने तमतमाए चेहरे से यात्री की और देखा और क्रोधित होकर बोला हमें दिखाई नहीं देता पत्थर तोड रहा हूँ यात्री कुछ और आगे बडा उसने एक और मजदूर से वही बात पूछ रहे हैं क्या कर रहे हो? मजदूर गर्व की मुद्रा में बोला राजा का महल बना रहे हैं यात्री कुछ और आगे बडा उसने एक अन्य मजदूर को पत्थर तोडते हुए देखा । वो पत्थर तोड देते हुए पायो जी महीने राम रतन धन पायो की धूम गुनगुना रहा था । यात्री ने मजदूर से पूछा भाई पत्थर तोडने में तुम्हें राम रतन धन कहाँ से मिल गया? मजदूर बोला मेरे हाथ पर मेरी आंखें मेरे जी वहाँ मेरे कान मेरा समूचा शरीर प्रभु के दिए हुए रतन ही तो हैं । यदि प्रभु प्रदत्त भारत में मेरे पास में होते हैं मैं पत्थर कैसे तोड पाता बडा आभारी हूँ मैं उस प्रभु का इतने बडे बडे पत्थरों को तोडने का कार्य उससे ले रहा है । यात्री कुछ और आगे बढा पूछना देखा कि एक मजदूर शांत भाव से पत्थर तोडने में व्यस्त है । यात्री ने उस मजदूर से भी पूछा क्या कर रहे हो? मजदूर कुछ नहीं बोला और अपने कार्य में लगा रहा । यात्री ने मजदूर से फिर वही प्रश्न किया लेकिन मजदूर कुछ नहीं बोला और अपना काम करता रहा । यात्री के तीसरी बार वही बात पूछने पर मजदूर बोला मैं काम में व्यस्त हूँ, मेरा समय बर्बाद न करें । माँ कहती थी कहानी में जैसा कार्य करने वाले पांच लोगों की महाराष्ट्र थी, भिन्न भिन्न है । पहला अपने कार्य को अपने ऊपर भार समझता है । इसकी परिणति परेशानी है, उदासी है । दूसरा अपने काम को छोटा ही समझता है । इसकी परिणति तनाव है, ग्रोथ है । तीसरा अपने कार्य पर गर्व करता है, जिसकी परिणति अभिमान है, अहंकार है । चौथा अपने कार्य को प्रभु के आभार के साथ अपना दायित्व मानकर करता है । जिसकी परिणीति संतोष है, शांति है । पांचवां अपने कार्य को शांत व सहज भाव के साथ करता है, जिसकी परिणति समर्पण है, आनंद है । मानव मन की सोच के भिन्न भिन्न आया हूँ । आप समर्पित भाव से करते रहिए । काम सुखी आग नहीं, किसी देश नहीं करा जाता हूँ । वो राज्य के लिए सदैव चिंतित रहता था । उसकी चिंता दुख में तथा दुख रोग में बदल गया । राजगद्दी होने राजा का हर प्रकार से उपचार किया तो दुखी राजा के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ । परिवार में एक दिन थकी राय, उसमें सारी बात समझे और राजा से बोला महाराज अब बिल्कुल स्वस्थ हो जाएंगे यदि आप एक दिन के लिए किसी सुखी आदमी की कमी । इस पहले राजा ने अपने मंत्रियों, उपमंत्रियों, दरबारियों यहाँ तक कि सुरक्षाकर्मियों और सेवकों से भी कहा हम में से जो पूरी तरह सुखी हो वो एक दिन के लिए अपनी कमी तेरे तो राजा जिससे भी ये बात कहता है वही अपने टुकडे होने लगता है । अंत में राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि दूर दराज के गांवों में जाकर किसी पूरी तरह से सुखी आदमी की कमी लेकर आए । सुरक्षाकर्मी ग्रामीण क्षेत्रों में भी जिस व्यक्ति से पूरी तरह सुखी होने की बात करते हैं वहीं जीवन में कुछ न कुछ अभाव की बात करता हूँ । सिपाही एक दूर दराज के ग्राम से गुजर रहे थे । उन्हें घर से ढाकों की आवाज आई । सफाई वहीं रुक गए । ढाकों से लग रहा था कि ये अवश्य किसी सुखी आदमी का घर है । सिपाहियों ने दरवाजा खटखटाया है । घर के अंदर से आवाज आ रही है कौन है? सिपाहियों ने कहा हम राजा के सिपाही है और ये जानना चाहते हैं कि क्या पूरी तरह से सुखी है । घर के अंदर से आवाज आई है । ईश्वर की कृपा से पूरी तरह से सुखी हूँ ये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ । दवाइयों ने कहा हम आपकी कमीज की आवश्यकता है । कृप्या अपनी कोई भी कमी हमें दे दीजिए । घर का मालिक बाहर आया और बोला छमा करे भाई, मेरे पास कमीज नहीं है । सिपाहियों ने देखा कि वास्तव में उसके पास कमी नहीं थी । माँ कहती थी जिसके पास जितना अधिक है उतना ही दुखी है क्योंकि उसकी उतनी ही समस्याएं, दुख सुख केवल हमारी इच्छाओं के कारण है । अच्छा संतुष्ट होने पर सुख मिलता है । जब की इच्छा पूरी नहीं होने पर दुख की अनुभूति होती है । राजा सब कुछ होते हुए भी दुखी था, जबकि ग्रामीण के पास कुछ भी न होने पर वो सुखी था । कालचक्र उलझा रहा । मान के दस्तावेज और उनके सुख देखकर हम दुख रहे । सही मध्य एक सज्जन पुरुष काटल विश्वास था, जो भी होता है वो परमात्मा के द्वारा ही घटित होता है । इसलिए वह बात बात पर कहता था कि जो होता है वह ईश्वर ही करता है । दूसरा शादान वृत्ति का मनुष्य उस सज्जन पुरुष का मजाक उडाता और उसे सबक सिखाने की फिराक में रहता है । गर्मी का मौसम था । सज्जन पुरुष पेड की छाया में आराम करने लगा तो उसे नींद आ गई । अचानक उसके सिर में कुछ लगा और वह पीडा के कारण नींद से जाग गया । इधर उधर देखने पर उसी चारपाई के पास एक पत्थर दिखाई दिया । शायद वही पत्थर सोते समय उसके सिर में लगा था । सज्जन पुरुष ये जानने के लिए कि पत्थर कहाँ से आया, इधर उधर देखने लगा । शैतान वृत्ति का मनुष्य सज्जन पुरुष को देखकर बोला क्या देख रहे हो? सज्जन पुरुष बोला मैं ये देख रहा हूँ कि ये पत्थर किसने मारा? शैतान वृत्ति वाला मनुष्य व्यंग्य करते हुए बोला तुम तो कहते हो जो करता है ऊपर वाला करता है । पत्थर भी ऊपर वाले ने ही मारा होगा । इस पर सज्जन पुरुष कोयला ये सही है की मुझे पत्थर ऊपर वाले के आदेश से ही लगा परंतु मैं ये जानना चाहता हूँ इसका माध्यम कौन बना? माँ कहती थी मनुष्य को सुख दुःख, लाभ हानि सब परमात्मा की कृपा से मिलते हैं । किन्तु इन सब के लिए माध्यम मनुष्य ही बनते हैं । प्रयास करना चाहिए कि हम केवल भलाई के लिए ही माध्यम बने न की बुराई के लिए । जैसा आपने वास्ते मुझे नहीं स्वीकार किसी और के साथ मैं मत कर वो व्यवहार मूल्यांकन किसी चित्रकार के पुत्र को भी चित्रकारी का शौक था । उसने कई अच्छे मित्र बनाए, जिनके लिए उसे पुरस्कृत भी किया गया । चित्रकार के पुत्र नहीं अत्यंत लगन और मेहनत से चित्र बनाया और पिता को दिखाते हुए कर उससे बोला, पिताजी क्षेत्र में कोई कमी हो तो कृपया बताएं, जिससे कि मैं उस कमी को दूर कर सकते हैं । उत्तर की बात में ही इनकार था । उन्होंने कहा था, बेटे जनता का मूल्यांकन सही होता है । पता उचित होगा कि इस चित्र को नगर के चौराहे पर लगाकर लोगों से अनुरोध करो । इस चित्र में यदि कोई गलती हो तो उसे चिन्हित कर दें । पुत्र ने पिता के आदेश का पालन करते हुए चित्र चौराहे पर लगातार तदानुसार अनुरोध भी लिख दिया । अगले दिन जब चित्र को देखा गया तो उस पर लोगों ने इतने निशान लगा दिए थे । चित्र का वास्तविक रूप ही समाप्त हो गया । उतरने चित्र को देखा तो उसे दुख हुआ और सोचने लगा कि मैं जनता की नजर के मानक स्तर के चित्र बनाने के लिए सक्षम नहीं की सोच कर वो उदास रहने लगा । पुत्र को उदास देखकर पिता ने कहा, हम पहले जैसा ही एक और चित्र बनाओ और उसे चौराहे पर लगाते हुए इस बार लोगों से अनुरोध करूँ इस क्षेत्र में जो कमी हो उसे ठीक कर दें । पुत्र ने उन्हें पिता के आदेश का पालन किया हूँ । चित्रा चौराहे पर लगाते हुए तदानुसार अनुरोध भी लिख दिया । अगले दिन ये देखा गया कि चित्र को किसी ने भी हाथ नहीं लगाया था । चित्र जो का क्या था? माँ कहती थी पिता पुत्र को समझाया । किसी वस्तु में कमी निकालने वाले लोग ज्यादा होते हैं और सुधार करने वाले फिर ले ही होते हैं । इसलिए आलोचना और प्रशंसा पर ध्यान दिए बगैर अपने कार्य को पूरी लगन और विश्वास के साथ करना चाहिए । फैलेगा एक दिन सुनो सारे जगह मेनू अगर सफलता आपकी अहंकार से दो हूँ । मांग एक सीट ते आलू और दानी धाम । वो जरूरतमंद लोगों की यथोचित सहायता करता था । उसके दयालु स्वभाव की चर्चा दूर दूर तक होने लगे । उसके अंदर पर जो जाता है खाली हाथ नहीं लौटता । एक निर्धन ग्रामीण को जब इसकी जानकारी हुई वो भी उससे सहायता लेने के उद्देश्य से नगर की और चल दिया । कई दिनों का रास्ता तय करने के बाद ग्रामीण स्टेट की हवेली पर पहुंचा तो उसे पता चला कि सेट पूजा के लिए मंदिर गया है । ग्रामीण में सोचा यदि सेट से मंदिर से ही सहायता मांगे तो मंगा धन मिल सकता है । इस विचार को लेकर वो मंदिर की और ही चल दिया । मंदिर में पहुंचकर ग्रामीण ने सीट को प्रार्थना करते हुए सुना भगवान मुझे और अधिक धन अदालत में जिससे मैं लोगों की अधिक से अधिक सहायता कर सकती हूँ । ग्रामीण ने स्टेट की प्रार्थना सुनकर सोचता हूँ मैं वहाँ स्टेट से क्यों मांग । मैं भी उसी भगवान से मांगूंगा । इससे सीट मांग रहा है । ये विचार करते हुए ग्रामीण स्टेट से बिना कुछ मांगे ही अपने गांव लौट आया । माँ कहती थी सबको देने वाला परमेश्वर है । सांसारिक लोगों से सहायता मांगने पर मनुष्य को अपमानित होना पडता है । जबकि परमेश्वर से मांगने पर कभी भी अपमानित नहीं होना पडता है । दया धर्म के नाम पर दुनिया करती स्वान उसको जो भी मांगना खुद ईश्वर से मार जीवन दान एक बादशाह यहाँ किसी दूसरे देश का सैनिक बंदी था । राजा अपने सैनिक के साथ बंदीग्रह का निरीक्षण करने गया तो उस बंदी ने अपनी भाषा में राजा को अपशब्द कहे । राजा ने विद्वान मंत्री से पूछा ये बंदी यहाँ कहता है? मंत्री ने उत्तर दिया महाराज याद की प्रशंसा करता है आपकी कीर्ति और अधिक पहले ऐसी आपके लिए भगवान से प्रार्थना करता है । खुश हुआ और बंदी को आजाद करने का आदेश दिया था । अभी ये दूसरा मंत्री जो बंदी की भाषा को समझता था । बोला राज ये बंदी अपनी भाषा में आपको भला बुरा कहता है । राजा बोला ठीक है, लेकिन मुझे पहले वाले मंत्री की बात अच्छी लगती है । जीवन दान महादान होता है । माँ कहती थी यदि निस्वार्थ झूठ बोल कर किसी सच्चे व निर्दोष व्यक्ति की जान बचती है तो ऐसी स्थिति में झूठ बोलना भी पांच की श्रेणी में नहीं आता । मिला नहीं तो उसको शिला मत कर । मीत मलाल ने की, सबके साथ कर और दरिया में डाल सुंदरता घने जंगल में किरण रहता था । जंगल में घूमते घूमते उसे प्यास लगी । पानी पीते समय जलाशय में उसने अपनी छाया देखी तो सोचने लगा कि मेरे सीन कितनी सुंदर है, परन्तु मेरी टांगे कितनी पतली तथा कुरूप है । कितना अच्छा होता यदि मेरी टांगे भी मेरे सीमा की भारतीय सुंदर और मजबूत होती है । फिर ये सोच रहा था कि उसे शिकारी कुत्ते दिखाई दिए । शिकार की नियत से उसी की और आ रहे थे । वो अपनी जान बचाने के लिए दौडने लगा । किरण दौडता रहा और कुत्ते उसका बराबर पीछा करते रहेंगे । दौडते दौडते वो एक ऐसे स्थान पर जा पहुंचा, जहां घनी झाडियां घनी झाडियों में छिपकर जान बचाने के उद्देश्य से जैसे ही झाडियों में उसने घोषणा चाहा, उसके सीन झाडियों में उलझ गए । फिर झाडियों में फंसे अपने सींगों को निकालने का प्रयास करता रहा । इस बीच शिकारी कुत्तों नया कर से दबोच लिया । किरण फिर सोचना लगा भजन टांगो को बुरा कहता था । उन्होंने मेरी जान बचाने में मेरा कितना साफ दिया । जबकि जिन सिंह को मैं सुंदरवास अच्छा समझता था, वो मेरी मृत्यु का कारण बने । माँ कहती थी ईश्वर प्रदत्त तब तक एक वस्तु की अपनी उपयोगिता है तथा जीवन में हमें परमात्मा से जो भी मिला है, सहज स्वीकार करना चाहिए । बुरा नहीं कुछ भी यहाँ सब रब का वरवाद । जो भी कुदरत से मिला, उसका कर सम्मान सोच कुंभ कर चाह पर मिट्टी की सुराही बना रहा था । सुराही बनाते बनाते अचानक उसमें मिट्टी को चरम का रूप दे दिया । तेलम बनाकर जैसे ही कुंभकार ने चिलम को सुर्खियों के साथ रखा तो चिलम कुमार से कहने लगे, आप चुराही बना रहे थे । मैं मिट्टी के रूप में सोचती थी कि सुराही बनकर जीवन भर जल्द से भरी रहूंगी । जल कोशीथल करोंगे और लोगों की प्याज हो जाऊंगी तो आपने मुझे सुराही बनाते बनाते चिलम का रूप दे दिया । अब मैं जीवन भर आग से जलती रहेंगे । कुंभकार सहजभाव से बोला, सुराही बनाते बनाते मेरे मन में चिलम बनाने का विचार आया और मैंने अपना विचार बदल दिया । चिलम, पीडा, भाव से बोली, परन्तु महोदय, आपके विचार बदलने से मेरा तो पूरा जीवन ही नरक हो गया । माँ कहती थी मानव जीवन विचारों का ही परिणाम है । अच्छे विचार मनुष्य को सद्मार्ग पर ले जाते हैं और समाज में प्रतिष्ठित करते हैं, जबकि नकारात्मक विचार समाज में अपमानित करते हैं । दूसरों के प्रति हमें सदैव सकारात्मक विचार ही रखना चाहिए । अंतर्मन की सोच ही जीवन का आधार सादिक रखिए । आप भी हरदम शुद्ध विचार और वर्तमान तीन मित्र लंबी यात्रा के लिए चले । साथ में खाने पीने का सामान भी रखा और तीनों ने तय किया कि जहाँ पर भी भोजन समाप्त हो जाएगा, वहीं से वापस लौट आएंगे । यात्रा के दौरान एक दिन उन्होंने देखा उनके पास सिर्फ इतना ही खाने का सामान बच्चा है तो केवल एक ही व्यक्ति की भूख मिटा सकता है । तीनों ने आपसी सहमती से निर्णय लिया कि बचे हुए भोजन पर उसी का अधिकार होगा तो रात में सबसे अच्छा स्वप्न देखेगा । तत्पश्चात तीनों में फ्रेश हो गए । आपका तीनों मित्र अपने अपने सपने के बारे में बताने लगे । पहले ने कहा मैंने सोचा एक देवता देखा जिसमें मुझसे कहा कि तुम एक सम्मानित परिवार से हूँ । हमारा भूतकाल अत्यंत गौरवपूर्ण रहा है । पता इस भोजन पर तुम्हारा ही अधिकार है । दूसरे ने कहा मैंने सुप्रीम एक दिव्य पुरुष को देखा । इस ने मुझसे कहा कि तीनों में से तुम ही बुद्धिमान हो तो बडी जिम्मेदारी मिलने वाली है । इसलिए भोजन पर तुम्हारा अधिकार है । तीसरा बोला न तो मैंने कोई स्वप्न देखा और नहीं मुझे किसी देवता या दिव्य पुरुष के दर्शन हुए । मेरी नींद टूटी तो मुझे भूख लगी थी । मेरे मन ने मुझसे कहा कि उठो और भोजन की तलाश करो । मैंने भोजन की तलाश की । मुझे भोजन मिल गया और मैंने बहुजन कर लिया । माँ कहती थी कुछ लोग अपने भूतकाल में अटक कर रहे जाते हैं तथा कुछ भविष्य की कल्पना में खोई रहकर अपना समय बर्बाद करते हैं, जबकि वर्तमान में जीना श्रेयस्कर है । कल बीता सो कल हुआ अगला कल अनजान वर्तमान में जो जिया वही बना महान परिणाम । एक राजा अपने विश्वासपात्र मंत्री के साथ शिकार की तलाश में जंगल में घूम रहा था । अचानक राजा का पैर किसी पत्थर से टकराया । राजा मूवेबल गिरा और उसका इतना टूट गया । मंत्री ने राजा को तसल्ली देते हुए कहा, ईश्वर जो भी करता है ही करता है । हो सकता है आपकी स्पष्ट के पीछे कोई भलाई हूँ । राजा को मंत्री की बात बुरी लगी और राजा ने मंत्री को पद से हटा दिया । कुछ दिन बाद राजा पुणे शिकार के लिए गया । शिकार की तलाश में वो अपने साथियों से भी छोड गया । वो साथियों की खोज में घने जंगल में दूर निकल गया । जंगल के बीच आदिवासियों की बस्ती थी । उन्होंने राजा को बंदी बना लिया और राजा की कुल देवता को बलि देने के लिए अपने मुखिया के समक्ष प्रस्तुत किया । मुखिया ने राजा का टूटा हुआ देखकर कहा अंगभंग वाले व्यक्ति की बलि नहीं दी जा सकती । हजार की जान बच गए । सकुशल अपने राज्य में लौटने पर राजा ने अपने मंत्री को बुलवाया और उसका सम्मान किया । माँ कहती थी घटना का परिणाम केवल परमात्मा के हाथों में है । जो घटना वर्तमान में अशुभ लगती है उसका परिणाम शुभ भी हो सकता है । जबकि वर्तमान में जो शुभ लगता है उसका परिणाम अशुभ भी हो सकता है तथा प्रत्येक सुख दुख को सहज स्वीकार करने में ही भलाई है । जीवन भर दुख में रहा हूँ धन के लिए अधीर सब मालिक पर छोडकर सुख सेजिया फक्की संबंध एक मजदूर में एक आमिर के यहाँ मजदूरी की आमिर ने मजदूर को पूरी मजदूरी नहीं नहीं मजदूर आमिर के घर बराबर चक्कर लगाता रहा परंतु आमिर के दिल में दया नहीं आई । वो मजदूरी का भुगतान करने के बजाय मजदूर को डांट कर भगा देता । मजदूर शहर कोतवाल के पास गया । कोतवाल रहमदिल और नहीं एक इंसान था । उसने मजदूर की पूरी बात सुनी और कहा कल मैं उस अमीर आदमी के घर के पास से गुजरेगा, वही मिलना हो । अगले दिन कोतवाल सिपाहियों के साथ आमिर के घर के पास से गुजरा हूँ तो अमीर भी कोतवाल के सम्मान के लिए बाहर आ गया । मजदूर आमिर के घर के पास ही खडा कोतवाल ने मजदूर को अपने पास बुलाया, उससे हालचाल पूछा और आगे चला गया । आमिर ने मजदूर को कोतवाल के साथ बात करते हुए देख लिया । अगले दिन अमीर आदमी मजदूर के घर गया और उसकी पूरी मजदूरी का भुगतान कर दिया । माँ कहती थी मजदूर में कोतवाल से पूछा श्रीमान आपने अमीर को टोका तक नहीं और उसने मेरी मजदूरी मेरे घर पर आकर अदा कर दी तो वो सवाल बोला, मेरा भाई ताकतवर के साथ संबंध भी ताकतवर माने जाते हैं । मैंने आमिर को दिखाते हुए तुम्हारा हालचाल पूछा । वो समझ गया हूँ तुम्हारे मेरे साथ अच्छे संबंध है । उसने सोचा यदि में मजदूर की मजदूरी का भुगतान नहीं करूंगा तो तुम मेरे माध्यम से मजदूरी वसूल कर लोगे । इसलिए आमिर ने तुम्हारी मजदूरी देने में ही भलाई समझी । सबसे रखे व्यवस्था सब से दुआ सलाम जिनके अच्छे वास्ते रुपये में उनके कम परिस्थिति एक राजा अपने मंत्री के साथ राज्य के भ्रमण पर था । आषाढ मास की तेज गर्मी में राजा ऐसे खेत के पास से गुजरात जिसमें जुताई करने से बडे बडे दे ले हो गए थे । ना जाने देखा कि तीस धूप में युवा किसान बडे बडे ढेलों पर ही गहरी नींद में हो रहा है । राजा मंत्री बोला तो हो ही धरतीपुत्र कितना कर्मठ है तो पहली में भी ढेलों पर आनंद हो रहा है । मंत्री बोला हर आज मनुष्य परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है । ये किसान राज महल में होता तो ये भी राजकुमारों जैसा हो जाता है । राजा मंत्री की बातों से सहमत नहीं हुआ और मंत्री के विचारों की सत्यता जानने के लिए राजा ने युवा किसान को महल में बुलाया और उसे भी राजकुमारों के समान सुख सुविधाएं दी जाने लगी । वहाँ किसान को महल में रहते रहते जब काफी समय बीत गया तो उसे सोने के लिए ऐसा बिस्तर दिया गया । इसके गद्दे में रोटी के साथ साथ बिनौले यानी कपास के बीच भी थे । जब वो इनका दों परसोया तो प्रार्थना उसने अपने सेवक से शिकायत की । गत्ते में कुछ चुभता था, मुझे रात भर नींद नहीं आई । युवा किसान की ये बात जब राजा तक पहुंची राजा को मंत्री की बात से सहमत होना ही पडा । माँ कहती थी मनुष्य परिस्थितियों का दास है बहुत सुखसुविधाओं में पालने वाले ना जो तथा सीमित साधनों में जीवन यापन करने वाले कर्मठ हो ही जाते हैं । कर्म बिना कुछ ना मिले कर दिल में विश्वास कर देते बेकार सब से अदा भोगविलास विरोध एक राज्य का राजा बडा ही अत्याचारी था । वो जनता की सुख सुविधाओं का बिल्कुल ध्यान नहीं रखता था । बाल के आधार पर जनता से धन एकत्रित करता था । राज्य का मंत्री न्यायप्रिय था वो राजा को समझौता की महाराज राज्य की सारी जनता आपकी संतान के समान है । जनता पर अत्याचार करना उचित नहीं है । राजा को मंत्री की बात बुरी लगी और उसने मंत्री को बंदीगृह में डाल दिया । मंत्री के तीन पुत्र थे । तीनों ही अपने पिता के समान न्यायप्रिय थे । अपने पिता के बंदी होने पर एक बेटे ने राजा के विरुद्ध खुला विद्रोह किया और राजा के सैनिकों के द्वारा मारा गया । दूसरे पुत्र ने राजा के अत्याचारों का जनता के बीच प्रचार प्रसार किया । राजा ने उस बंदीगृह में डाल दिया । तीसरे पुत्र ने राज्यसभा से त्यागपत्र देकर राजा से संबंध विच्छेद कर लिया और देश छोडकर चला गया । माँ कहती थी जब बंदीग्रह ने पुत्रों के विषय में मंत्री को पता चला तो उसने पहले पुत्र के कार्य कोशिश, दूसरे पुत्र के कार्य को सामान्य तथा तीसरे पुत्र के कार्य को नाम ने बताया चलिए सच के रास्ते भले मिले आधा नहीं सांच को आंच है बिल्कुल सच्ची बात शब्द राज महल में नए राजा का राज्यभिषेक था मैं राजा युवा था । राज्यभिषेक उत्सव में राजा को प्रजाजन सभा साहब मंत्रीगण यथोचित भेंट प्रस्तुत कर रहे थे । एक दरबारी कवि ने राजा की प्रशंसा में कई कविताएं पडी । कविताएं राजा की शौर्यगाथा का व्याख्यान कर दी थी । कार्यक्रम संपन्न हो जाने पर राजा ने बहुत सारी जनकल्याणकारी योजनाओं की घोषणा के साथ अपने कोषाध्यक्ष को निर्देशित किया । कल के दरबार में कभी को उसकी अच्छी कविताओं के लिए सौ स्वर्ण मुद्राएं देकर सम्मानित किया जाए । राजा की घोषणा सुनकर कभी की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा । वो फूला नहीं समाया । उसने अपने परिवार को राजा की घोषणा के विषय में बताया था । फिर सगे संबंधियों को भी इसकी खबर दी । कभी अपने होने वाले सम्मान से कितना खुश था कि वह रात भर सो नहीं पाया और अगले दिन समय से पहले ही दरबार पहुंच गया । राजा का दरबार लगा । राजा ने लोगों की बात सुनी । मंत्रिगण पर सभा सांसदों को निर्देश दिए गए और दरबार समाप्ति की घोषणा कर दी गई । उसके बाद राजा के सम्मुख कोषाध्यक्ष नहीं कभी को प्रस्तुत करते हुए बीते कल की घोषणा के बारे में याद दिलाते हुए कहा कि महोदय कभी को सौ स्वर्ण मुद्राएं देकर सम्मानित करने हेतु हूँ । मुझे निर्देशित किया था । अब कभी महोदय को सौ स्वर्ण मुद्राओं के साथ सम्मानित कर दिया जाए । राजा ने कहा, कभी महोदय ने शब्दों से हमें प्रसन्न किया था । हमने भी ऐसे शब्दों से प्रसन्न कर दिया । हिसाब बराबर माँ कहती थी । शब्द मानव मन को प्रभावित करके उसके दुःख सुख का कारण बनते हैं तथा प्रशंसा के शब्द सुनने पर बहुत अधिक प्रसन्न तथा निंदा के शब्द सुनने पर विश्वास नहीं होना चाहिए । हर लेते हैं पीर को दे जाते हैं वहाँ बडा जटिल है दोस्तों शब्दों का बर्ताव साधारण एक फकीर जंगल में कुटिया बनाकर रहता था । वो सदैव लोगों की भलाई करता । उसकी भलाई की चर्चा दूर दूर तक फैल गई थी । नगर के वरिष्ठ अधिकारी ने जब उसके बारे में सुना उसके मन में भी खीर से मिलने की इच्छा हुई । जब अधिकारी लोगों से फकीर के बारे में सुनता तो सोचता फकीर किसी विशेष वेशभूषा में व्यक्तित्व आकाशवाणी होगा । नगर अधिकारी फकीर से मिलने गया । घोष ने देखा की कुटिया के पास एक बूढा व्यक्ति फूलों के पौधों की निराई कर रहा है । अधिकारी के सहायक में बूढे व्यक्ति से कहा नगर के वरिष्ठ अधिकारी फकीर से मिलना चाहते हैं । रुपया उन्हें अधिकारी से मिलने की सूचना दे देगी । पूरा आदमी अंदर गया । उसने खुरपी को रखा और कपडों पर बडी धूल को झाडकर बाहर आया और बोला कहीं महोदय मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? नहीं इस कुटिया में रहता हूँ । अधिकारी के मुंह से निकला तो बिल्कुल साधारण है । माँ कहती थी अधिकारी की बात सुनकर फकीर ने कहा इस साधारण होकर जीना ही बडी बात है । लोग धन, धर्म, जाति, कुल ज्ञान आदि का अहंकार लेकर जीते हैं जो दुःख का कारण बनता है । मिट्टी होकर है क्या मिट्टी को मजबूत मिटटी से इस प्यार के मिलते कहाँ समूह हूँ ।

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Maa Kehti Thi Written By Mumtaz Khan Narrated By Ashish Jain. अतीत जैसा भी हो उसकी स्मृतियाँ मधुर होती हैं। यदा-कदा ये स्मृतियाँ अमूल्य धरोहर बनकर जीवन का निर्माण करती हैं। इस काल खण्ड में वर्तमान भौतिकवाद के प्रभाव में आकर पूंजीवाद की भेंट चढ़ता प्रतीत होता है । लोक संस्कृति जो जीवन दर्शन के रूप में अपने बड़ों के अनुभव से पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त होती थी निरंतर ह्रास की ओर अग्रसर है। मेरे अतीत की स्मृतियों में, वे सीख वाली लोक कथाएँ भी है जो मैंने माँ से सुनी थी। बातें साधारण थीं पर उन बातो में संपूर्ण जीवन प्रतिम्बिबित था। लोक कथाएँ जो बड़े-बूढ़ों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी संतानों को सुनाई जाती रही हैं| writer: मुमताज खान Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Mumtaz Khan
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