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मैं फूलों की फोन की घंटी बजती रही । सुखचैन सिंह अपनी बहाव में बह रहा था । फोन मिनटभर की छुप के बाद फिर बोल पडा । सुखचैन ने फोन की तरफ देखा, लेकिन उठाया नहीं । चार घंटे का मार्कर फोन रुक गया । उस छठी फिर बोल उठा । सुखचैन ने सोचा कि जरूर उसके पुत्र रवि का होगा । सवेरे ही वह सुखचैन को टोरंटो आने के लिए कह रहा था । सुख चैन ने सोचा कि कहीं सच महीने टिकट बुक कर दे । उसने आंखें पहुंची और गलत साफ करके फोन उठा लिया । ये उसकी बेटी नवी का फोन था । बैडमिंटन से यद्यपि सुख चैन से अपनी आवाज को साधारण करने की पूरी कोशिश की थी, पर बेटी से अपनी मनोदशा छुपाना सका । बच्चे तो यही लगता है । मैं बिल्कुल ठीक हूँ । ये सुखचैन ने कई बार कहा पर बेटी की तसल्ली नहीं करवा सका । वो बार बार कुछ दिनों के लिए उसको बैडमिंटन आने के लिए कहने लगी । उसने तो ये भी कह दिया कि वह दोबारा सरिया जाती है । सुखचैन सिंह ने उसको रोक दिया । बोला बच्चे में ठीक हूँ तो अपने परिवारों की और ध्यान दो । नवी उसको अपना ख्याल रखने और समय से खाने पीने के बारे में कहती रही । उसने सुखचैन कभी बाहर घूम फिर आने की ताकीद की, ताकि उसका ध्यान दूसरी तरफ हो जायेगा । सुखचैन अपने को जब्त करता हुआ हुंकारा भरता रहा, पर फोन रखती, उसका बांध टूट गया । जब जीत क्यों? क्या तुम्हें मेरे साथ ऐसा कहते हुए वह बुक्का फाडकर होने लगा । कुछ देर वो इसी तरह हल्का होता रहा । फिर अपने आप को इकट्ठा करके वह गुसलखाने की और चला गया । कुछ देर गुनगुने पानी के छींटे अपनी आंखों पर मारे आंखों का खारापन खत्म होने पर नहीं आ रहा था । रसोई में जाकर फ्रिज खोला । सारे फल और सब्जियां वैसे के वैसे ही पडी थी, जिससे पिछले हफ्ते रवि और नवी लॉक कर रख गए थे । सुख चैन न सर ब्रेड और दूध ही इस्तेमाल किए थे । उसका कुछ भी खाने को दिल नहीं मानता था । जब भूख अधिक ही बेचैन करने लगती तो ब्रेड का टुकडा खा लेता । कोई भी काम करने का उसका दिल नहीं करता था । उसके भाई ने भी कहा था की रोटी वो उनकी तरफ खा लिया करें और सुख चैन ने कह दिया था तो मैं तो पता ही है । मैं खुद ही खाना बना लेता हूँ । जब तुम्हारा मन करें, इधर आ जाया करो हम यही बनाकर खा लिया करेंगे । गत सप्ताह तक सभी आते रहे थे, जब जीत के दाह संस्कार के बाद रवि और नवी भी चले गए थे । अफसोस प्रकट करने वाले भी आना बंद हो चुके थे । सो, मंगलवार को एक्का दुक्का लोग आए थे तो वहाँ संस्कार के दिन नहीं आ सके थे । लेकिन कल और आज तो कोई भी नहीं आया था । इन दो दिनों में उसको जिंदगी अधिक गर्त लगने लग पडी थी । सुखचैन ने चाय बनाने के लिए फ्रिज में से दूध की कैरी निकली । भूख उसको बिल्कुल नहीं थी । उसको याद आया कि रात में भी उस ने कुछ नहीं खाया था । नहीं, सवेरे उठकर उसने नाश्ता किया था । ब्रेड के दो टुकडे टोस्टर में रख दिए । टोस्टर में चार पीस रखने की जगह भी है । उसमें वो चार पीसी रखता था । जिस दिन उन्हें ब्रेड का नाश्ता करना होता है, परन्तु उसको तो स्तर की दो खाली जगह बहुत ही अजीब लगी । उसका मन फिर भराया । उसने टोस्टर और नहीं ना किया और नहीं चाय बनाने के लिए चूल्हा जला । लिविंग रूम की खिडकी के पास जा खडा हुआ बाहर की और देखता रहा । बाहर कहाँ सूख चुका था, जब जीत की बीमारी के कारण सुखचैन घास की तरफ ध्यान नहीं दे सकता था । सितंबर का दूसरा हफ्ता शुरू हो गया था । बरसात होने अभी शुरू नहीं हुई थी । पत्ते गिरने प्रारंभ हो गए थे । मेपल के पत्ते चेहरों और बिखरे हुये थे । सुखचैन को आस पास सूना सूना लगा । रात में भी रोटी खाने के वक्त सुखचैन सिंह के भीतर सुन पसरती गई थी । उसने इससे छुटकारा पाने के लिए शराब की बोतल खोल ली थी । खाली घर उसको काटने को दौडता था । उसको लगा जिससे वो किसी उधर बियाबान में घूम रहा हूँ । उसने उठकर सारे घर की एक एक बत्ती जलाई । अपने शयन कक्ष में चला गया जब जीत वाली आराम कुर्सी की और देखता रहा । ये कुर्सी उसने जब जीत के बीमार होने के बाद ला कर दी थी खाली पडी कुर्सी के बाहों पर हाथ फेरता रहा । एक पल उसको लगा कि जब जीत सच में कुर्सी पर बैठी है छत से कुर्सी के उस तरफ हो गया जहां खडे होकर वो जब जीत के मुंह में चम्मच से शुभ डाला करता था की दवाई की गोली देता था या फिर उसके उल्टी करने पर बर्तन लेकर खडा हो जाता था । एक बार तो उसने करीब कोई बर्तन ना होने की स्थिति में अपनी ओक में ही उल्टी करवा ली थी । उस दिन जब जीतने कुछ होश में आने के बाद अपनी आंखें भर ली थी । फिर बोली मैं तो तुम्हारे पर बोझ करेंगे, दुखी देती हो ना तो हैं नाची ते ऐसा मत बोल । सुख चैन ने कहा था सुखचैन को जब जीत के वो शब्द याद आ गए तो कुर्सी के पैरों की तरफ बैठ गया । बुला जीते मुझे कोई दुख नहीं खाते रहा बल्कि अब अकेला दुखी होता हूँ क्यूँ चली गई मुझे अकेला छोडकर खाली कुर्सी पर माथा टिकाकर फूट फूटकर रो पडा हूँ, चली गई जीता तो ऐसी तो ना थी लम्बी लम्बी सिसकियां भरता वहीं बिछे गलीचे पर ही टेडा हो गया । जब भी जब जीत अस्पताल से घर लौटा करती कोई सी गलीचे पर लेता करता था । पिछले तीन महीनों से वो कई बार अस्पताल में दाखिल हुई थी और कई बार उसको अस्पताल से छुट्टी मिली थी । जब भी उल्टियाँ बंद होती अस्पताल वाले घर भेज देते हैं । पहले दिन तो सुखचैन उसको अस्पताल के पिछवाडे से लेकर गया था ताकि जगजीत कैंसर यूनिट के बोर्ड न पडे और जब जीत कौन सा शहर में नहीं थी । पिछले चालीस साल का साथ था उसका शहर के साथ और सुख चैन के साथ सुखशिंद्र उसको बताया की भोजन नली में कोई नुकसान है जो मामूली से ऑपरेशन करके ठीक हो जाएगा । शाम तक सुख शान अपने आप के साथ जूझता रहा । क्या हो गया था कुछ जीत के सामने ऐसी कोई बात नहीं करना चाहता था और उसको खुद ही इस पर यकीन नहीं हो रहा था । उसका अंतर्मन हाहकार कर रहा था कि ये क्या हो गया । उन्होंने तो रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए कई सारी प्लानिंग बना रखी थी । जब जीत में दो साल पहले ही साठ साल की उम्र में रिटायरमेंट ले ली थी । सुख चैन की रिटायरमेंट को तो अभी पूरा महीना भी नहीं हुआ था कि जगजीत कोटियां लग गई थी । कैंसर की स्टेज इलाज से ऊपर निकल चुकी थी । अब तो दर्जा उल्टियों का इलाज था । जितने भी दिन जब जीत के पास है कभी घर पर कभी अस्पताल घर होते हैं तो सुख चैन नीचे गलीचे पर ही पड जाता । जब जीत भी उसको कई बार कहकर थक चुकी थी कि कम से कम घटना तो उछालो । सुखचैन का एक ही जवाब होता है गद्दे पर पडने के बाद मुझे नींद आ जाएगी तो कौन दवा देगा? यदि रविया नवी आए होते तो कहते कि वह राहत में जाते रहेंगे, पर सुखचैन उनका कहाँ भी न मानता । जगजीत करवट भी बदलती तो झट से उठकर बैठ जाता हूँ । फर्श पर टेडे हुए । सुखचैन को लगा जैसे जगजीत की दवाई का वक्त हो गया हो । वो हडबडाकर उठा बिस्तर की और देखा जहाँ जब जीत लेता करती थी, कुछ देर सूनी आंखों से खाली बिस्तर की और देखता रहा । फिर उसकी निगाह नाइट टेबल पर रखे गुलदस्ते पर चली गई । ये गुलदस्ता जगजीत की मौत के बाद तू बैंक वालो ने भेजा था, जहाँ जगजीत सवेरे चार घंटे वॉलंटियर काम करती थी । जब जीत के शब्द सुखचैन को याद हो गए । उस ने कहा था क्रिसमस के करीब तुम भी मेरे साथ चला करो । फट बैंक सुखचैन के जवाब से पहले ही बोली थी को खाना खिलाकर मन को जो तसल्ली मिलती है ना उसका कोई मुकाबला नहीं । मुझे तैयार करके खुद से आगे सुख चैन से कुछ नहीं सोचा गया । उसके भीतर दर्द की लहर उठी । अपनी आंखों के कोई को पूछता हुआ उठ खडा हुआ बेडरूम के दरवाजे में खडा रहा । उसकी समझ में नहीं आया । क्या करें तो बोतल की तरफ गया । वो कॉफी टेबल पर पडी थी । गिलास भरकर उसके अंदर फेंका और सोफे पर पीठ िकाली । टांगे खुद ब खुद ही आदत के अनुसार कॉफी टेबल पर टिक गई । उसकी निगाहें पैरों के पास पडी । बोतल पटेल गई इस जगह पर जब जीत के पैर हुआ करते थे । शाम को सैर करने के बाद वो इसी तरह बैठे होते । सुखचैन ने सोफे के कोने से तीस लगाई रखी होती और जगजीत लव सीट पर बैठी होती । टीवी देखते हैं । जब जीत साथ साथ उनकी कोटियां भी होने जाती । कभी कभी उनके पैर एक दूसरे से शरारत भी करते हैं । पर वो दिन तो चुके थे । सुखचैन उन दिनों को वापस लाना चाहता था कि उसके बस में नहीं था । उसने देवसी के साथ खाली लव सीट की और देखा । उसकी आंखें फिर छलक आई । इनके अंदर की नमी अभी सूखने का नाम ही नहीं ले रही थी । जब जीत हो गए, ग्यारह दिन भी चुके थे । किसी के सामने ये आंखे बिल्कुल भी नहीं चल की थी । हम जरूर होती थी । यहाँ तक कि दाह संस्कार के वक्त भी । वह नवी को अपने साथ लगाकर दिलासे देता रहा था और हज अकेले होते ही छलक छलक पडती थी । जब जीत की बीमारी के दौरान ये एक दिन उसके सामने ही चल की थी । दर्द से जगजीत करा रही थी । उसके मुख्य सुखचैन ने भी हाई नहीं सुनी थी । दर्द के साथ बेहाल हुई को देख सुखचरन अपने आप को रोक नहीं सकता था । जैसे ही जगजीत को दर्द कम हुआ उसने कहा था आपकी आंखों में पानी उत्साह नहीं जाता हूँ । कडा करो अपने आप को तो फॅमिली थे और अब आप अभी कुछ महीने पहले की तो बात थी । शहर करने गए हॅूं में से उन्हें तीन चार दिन कोई भी नहीं दिखाई दिया था । पडोस में पूछ पडताल करने पर उन्हें पता चला की तहरीर को स्टॉप हो गया था और वह हॉस्पिटल में है । फूलों का गुलदस्ता लेकर वहर इनका पता लेने अस्पताल गए थे । ऍम का हाथ अपने हाथों में लेकर एलेक्स नी रहा रहा था । वापस लौटते हुए सुजॅय देते हुए कहा था फिर इनके सामने अपने आपको तगडा रखा कर तो ठीक हो जाएगी पर ये ठीक नहीं हुई थी । सुखचैन कोशिश करता हूँ कि जब जीत के सामने मन करा रखे पर अब मान पर पकड ढीली हो गई थी तो बहुत देर सोफे पर ना बैठ सका । उसके भीतरी खालीपन ने उसको बेचेन कर रखा था और रसोई की और चला गया । वहाँ खडे होकर दोनों जन खाना तैयार करते थे । सुख चैन लहसुन प्रयासशील देता । अगर खाना बना रहा होता तो जगजीत उसको सामान पकडाती । जब जीत के बिना रसोई सुखचैन वहाँ कुछ पर ही ठहरा और एक कमरे में से निकलकर दूसरे में चला गया । उसको मन हो रहा था की कोई उसकी अपनी बाहों में ले ले । शराब में अपने आगोश में लेकर उसको बेसुध कर दिया । सवेरे उठते समय फिर सुख चैन की आंखे नम थी । बेध्यानी में भी रात बहकी रही थी । आंखों के कोनों पर वही आंसुओं के धारे दिखाई देती थी । अंदर संस्थान था खिडकी के रास्ते । बाहर भी उसको एक जो फैली लग रही थी । उसकी निगाहें चॅू की तरफ से आ रहे गुरदयाल सिंह और नाहरसिंह पर बडी पाक से लौटे होंगे । उसने सोचा सुखचैन के चित्र में आया की यदि जगजीत जिंदा होती तो उसने नहीं जाते हुए देखकर चाय के लिए आवास लेकर बुला लेना था । कई बार तो वह निकलते गुजरते खुद ही आ जाते हैं । वो कहते हैं कि उनका अच्छी चाय पीने का दिल करता है । ये सुनकर जगजीत को चांस चढ जाता तो फ्रिजर में से समूह से अ स्प्रिंग रोल भी निकाल लेती हूँ । जब जब जीत बीमार थी उसकी खबर लेने आते तो वह सुख चैन से कहती खुली पत्ती वाली चाय बनाना जी जी वही लाइक करते हैं । उस समय ये बहुत नाना करते पर जब जी चाय के बगैर जाने नहीं देती थी । उन्हें अपने घर की और बढता देखकर सुखचैन दरवाजे की और बडा सुख चैन ने उन्हें अंदर आने के लिए कहा और वो अंदर नहीं आएगा । बच्चों को स्कूल से लाने का टाइम हो गया है फिर आएंगे । गुरदयाल सिंह बोला आप हमारे पास में चला करो मन दूसरी तरफ हो जाता है ना हाथ । सिंह ने कहा कर तो कुछ नहीं सकते पर अपना ख्याल रखो । गुरदयाल ने कहा तो कुछ मिनट तक इस तरह की बातें कर के चले गए । दूसरों को अतुल देना बहुत आसान होता है । पर आपने पर जब पडती है तब पता चलता है सुख चैन ने दरवाजा बंद करते हुए सोचा । फोन की घंटे फिर से बचने लगी । फिर नवी का फोन था तो बोला डैडी में देखना चाहती थी कि आप कहीं की नहीं । बच्चे बस जा रहा हूँ । लंच कर लिया रखा है । टोस्टर में ब्राइड डैडी प्लीज तीस का ख्याल रखो ऐसे ठीक नहीं । मैं देखती हूँ मैं आप ही आ जाती हूँ । वीकेंड तक बच्चे तुम्हारे पहले ही कितने चक्कर लगाते हैं । दो महीनों में ठीक हूँ । मैं खाकर जाता हूँ बस बाहर मेरी इतनी फिक्र मत करो । फोन रख कर सुखचैन ने टोस्टर का बटन दबा दिया और बाहर जाने के लिए कपडे बदलने लगा । जबरन ही ब्रेड के अंदर डाली बुर्की भूमि फूलने लगती । खाकर वो घर से बाहर निकल गया । उसके पैर खुद ब खुद उस रहा की और चल पडे जिस पर वो और जगजीत सालों से सैर करने जाते रहे थे । चॅू और बढ गया । बच्चों के स्कूल से लौटने का वक्त हो गया था । क्रॉसिंग गार्ड टेड अपना स्टॉप साइन वाला बोर्ड पकडे बच्चों को चौरासी एवन्यू पार करवा रहा था । उसकी घरवाली ऍम काॅपियों पर कुछ बोल रही थी । सुखचैन ने आदत अनुसार उन्हें हाथ हिलाकर हाय कहा । उसके दिल में है कि जी जगजीत होती तो किसी के पास खडी हो जाती है और वो दोनों बनती की बातें शुरू कर देती । सुखचैन के दिमाग में जगजीत की बात आ गई । वही जोडी को देखकर कभी कभी कहा करती । इन्हें देखकर मुझे गीत याद आ जाता है और खेलने ही चल ले चरखा मेरा जी थे तेरे हाल नौं दे वहाँ ले चल चरखा मेरा जहाँ तेरे हाल चलते हैं कभी वो कहती है आप भी टेड की तरह वॉलंटियर काम करना शुरू कर दो मैं पांच बेटी बोलती रह करूंगी याद करके सुख चैन नहीं एक आह भरी तरह उसी से प्रभावित होकर ही जगजीत भी नवजन्में बच्चों के लिए टोपियां और स्वेटर बुनने लगी थी । जब पंद्रह बीस बोल लेती तो अस्पताल जाकर दान करती है । तारे सी भी ऐसा ही करती थी । सुखचरन अभी कुछ ही कदम चला था । किस के करीब से गुजरती और आपने उसको सच्चे अकाल कहा । वो अपने पोते को स्कूल से लेने चली थी तो बोली थी जी मुझे तो अभी भी लगता है जैसे बहन जी यहीं कहीं खडी हूँ । मतलब आंखों से उनका हस्ता खेलता चेहरा एक तरफ होता ही नहीं । सच में ईश्वर बहुत बुरा किया । चलो जितना उसके साथ था था और क्या कह सकते हैं आप अपना ख्याल रखो भी चीज चले गए । उनके साथ जाया नहीं जाता कहकर वो और आगे बढ गई । कैसे बताऊंगा बाकी की जिंदगी हर कोई सुझाव देने बैठ जाता है । सोचता हुआ सुखचैन आगे चल पडा है । एक सौ बावन स्ट्रीट की और चढाई करते हो उसका सांस फूलने लगा । उसका दिल किया की वापस मिल जाए । घर भी तो काटने को दौडता था । सोच कर चलता रहा तो नहीं । वोंग आपने पिक अप ट्रक में से गारबेज बैग निकाल रहा था । जैसा कि सुख चैन की आदत थी । उसने उसको भी हाथ हिलाया । वो सडक के इर्दगिर्द बिखरे कूडे कचरे को उठाने की तैयारी कर रहा था । बच्चों के स्कूल से लौटने के बाद वो एक सौ अडतालीस स्ट्रीट से लेकर एक सौ बावन स्ट्रीट तक पैदल चलकर चक्कर लगाता हूँ । चलते चलते यदि उसे कहीं क्यूरा दिखाई देता है तो उसे उठाकर वह बैंक में डाल लेता । ऍम ऊपर उसके नाम की पट्टी लगी हुई थी । जिसपर लिखा था ये पडोस वोंग परिवार द्वारा साफ रखा जाता है । सुख चैन को याद आया की जब जीतने उसको कहा था की रिटायरमेंट के बाद वो भी किसी गली मोहल्ले को सांस रखने की जिम्मेदारी लेंगे । दिल की दिल में ही रहते हैं । सोच कर सुखचैन ने वहाँ भरी तो उसने सोचा कि सारा कुछ वैसे का वैसा ही चल रहा है । सिर्फ उसकी दुनिया ही उजड ही है । ऍम स्ट्रीट से मुद्दा और बढ गया । उस तरफ सडक की ढलान शुरू हो गई । एलेक्स के घर के पास पहुंच रही उसके पहले अपने आप धीरे हो गए । फॅमिली को छानना छोडकर सुख चैन से आगे बढकर मिला । सुखचैन का हाथ दबाते हुए बोला तो मैं अच्छा किया की घर से बाहर निकले । सुख चैन की आपके नाम होने लगी थी तो उसने अपना मूड दूसरी तरफ कर लिया । लडते होटों को उसने कैसा खंखार कर कुछ बोलने की कोशिश की, पर उसे कुछ भी बोला नहीं गया था । अंदर बैठते ही फॅसने कहा । तब तक सुखचैन ने अपने आप को संभाल लिया था । बोला नहीं, मैं ठीक हूँ तो अपना काम करूँ । मैं तो अपने आप कुछ बगीची में ही व्यस्त रखता हूँ । तो मैं तो पता है कि अगर इनको कितना प्रेम का फूलों के साथ हाँ तो हरी तो फुलवाडी पहले से भी ज्यादा भर गई है । नहीं हाँ, ये कौनसी के फूल नहीं लगाए हैं कि हर साल लगाने पडते हैं । फिर इनकम लगाया करती थी । इस बार मैंने ज्यादा लगा दिए । फॅसने घर के सामने रखे गमलों की ओर इशारा किया, जिसमें हल्के नीले और सफेद फूल थे । फिर इनको इनकी महत्व बहुत पसंद थी । कहकर वह संतरी पत्तियाँ जिनके बीच का स पीला था, वाले फूलों की ओर हाथ करके बोला ये पैट्रिका है । ये फूल और इन को बहुत पसंद थे । फिर प्याजी फूलों की और संकेत करता हुआ बोला, ये ब्लैक बदलो भी नहीं आए हैं और इनका मन भरता, रंग खाइए । फिर कुछ सुख चैन की और मु करके बोला, मुझे पहले फूल पौधों का अधिक शौक नहीं था, बस फिर इनके साथ देने के लिए लगा रहता था । अब जब मैं बगीची में काम करता हूँ तो मुझे लगता है जैसे मेरे अंग संग हो सुजॅय और देखा । उसे पता नहीं चला कि अलग सी आपकी तरह थी या उनमें चमक थी । सुखचैन कुछ देर वहाँ और खडा रहा एलेक्स की और देखता रहा । चीनी का ढंग खोज लिया इसने । उसने मनी कहा, सुख चैन फूलों की तरफ देखने लगा । उसको लगा जैसे उसके अंदर की सुनना कम होने लगी हो ।
Writer
Sound Engineer
Voice Artist