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मंथन अध्याय 05 विकास in Hindi

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AuthorPrabhu Mandhaiya
Manthan Written by Prabhu Dayal Madhaiya Narrated by Ashok Vyas Author : प्रभु दयाल मंढइया 'विकल' Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Ashok Vyas
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मंथन अध्याय पांच विकास भारत वर्ष धर्म प्रदान देश है, इसीलिए भारतवासी सहज रूप से अंधविश्वासी भी हैं, किंतु हम ही उसकी दीवाने नहीं है । हम जैसे करोडों अरबों और भी उसके मस्ताने इस दुनिया में मौजूद हैं । यदि हम अपनी सीमा से बाहर झांक कर देखें तो पता चलेगा कि उसकी सत्ता का सिक्का पूरे संसार में धडल्ले से चलता है । कोई देश चाहे कितना भी विकसित हो, कितनी उन्नति कर चुका हो, चाहे वहाँ के निवासियों में कितनी भी भौतिकता आ गई हो और वे अपने समस्त कार्य बुद्धि कौशल से निष्पादित करते हो, तथापि वे वह सर्वशक्तिमान कोई प्रतीक कार्य का एड मास्टर मानते हैं । यदि बिना किसी लाग लपेट के हम पूरी ईमानदारी के साथ अपने दिल की बात करें तो हम पाएंगे किस्सों में से तो व्यक्ति ही उसकी सत्ता को स्वीकार करते हैं, जब उसके सम्मुख नतमस्तक हैं । ये और बात है कि बहुत चकाचोंध की अंधी दौड में उन्हें उसकी पूजा अर्चना का समय नहीं मिल पाता हूँ अथवा सिक्कों की चमक से दुनिया आई उनकी आंखें ईश्वर का सोम में स्वरूप को न देख पाती हूँ । किन्तु एक सीमा ऐसी भी आती है जब मनुष्य नशे के कैसे ले कुंड से निकलकर प्रकृति की नैसर्गिक शीतलता में निश्चेष्ट लेता रहना चाहता है । बहुत एक विकास के तर मोदक कर्ज पर पहुंचे लोग आज भौतिकता के संतरा से मुक्ति पाने के लिए निर्जन शांत स्थान में मेडिटेशन द्वारा शांति की खोज में भटक रहे हैं । भारत ही नहीं, अन्य देशों में भी धर्मावलंबियों की कमी नहीं है, बल्कि धर्म के मामले में अन्य ने एक देश कट््टरता की सीमा तक अंधविश्वासी है । उसका शासन प्रशासन सब धर्म द्वारा ही संचालित होते हैं । धर्मा विरुद्ध आचरण उनके लिए अक्षम में अपराध है । धर्म के नाम पर वे कुछ भी कर सकते हैं और इन अर्थों में धर्म का सीधा संबंध ईश्वर से है अर्थात ईश्वर में उनकी अटूट आस्था है । ईश्वर में आस्था होनी भी चाहिए क्योंकि वही तो श्रृष्टि का रजक विनाशक और नियामक है । वही कार्य है, वही गर्म है, वही करता भी है । मनुष्य तो उसकी लीला को मूर्त रूप देने के लिए नियमित मात्र है । मैं तो उसके महानाटक का एक पात्र है और उसके निर्देशों में ही मैं अभी नहीं करता है । जब तक निर्देशक चाहता है, उसे न चाहता है और जब उसकी इच्छा होती है वहाँ उसे मंच से विलुप्त कर देता है । मनुष्य अपनी औकात जानते हुए भी अपनी स्थिति से भलीभांति परिचित होते हुए भी उसके कार्यव्यापार में अपनी टांग अडाने से बाज नहीं आता है । उसके रहस्यों को जानने का प्रयत्न करता रहता है और इसी सतत प्रयास की लगन के कारण वह नहीं नहीं खोज कर पाया है । जडेजा अथवा चेतन प्रतीक का रहस्य जानने के अतिरिक्त वैगरह उपग्रहों के विषय में सोचता है श्रम के उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित कर वेस्ट मस्त भूमंडल पर दृष्टि लगाए बैठा है । न जाने किस क्षण है, क्या कर बैठे कुछ भी निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता क्योंकि उसके एक बटन दबाने मात्र से उसके स्वचालित प्रक्षेपास्त्र हजारों किलोमीटर दूर जाकर प्रलय कर सकते हैं । यह वैज्ञानिक विकास का ही प्रतिफल है । हीरो सीमा नागासाकी में आज भी खास नहीं होती । ऍफ में जहर की वर्षा हुई और भोपाल गैस त्रासदी में हजारों लोग अकाल कालकलवित हो गए थे । किंतु वैज्ञानिक विकास का ये एक पक्ष है । इसका दूसरा उज्ज्वल पक्ष कहीं अधिक महत्वपूर्ण तथा प्राणी मात्र के कल्याण हित उपयोगी और आनंददायक है । एक समय ऐसा भी था जब मनुष्य किसी सब्जी विशेष या फल का एक वर्ष में एक निश्चित अवधि में उप कर पाता था किंतु आज वैज्ञानिक विकास के कारण कोल्ड स्टोरेज के माध्यम से दिल चाहिए । खाद्य सामग्री का जब इच्छा होता, आनंद लिया जा सकता है । अंडा, मांस, मछली का अचार, चटनी, मुरब्बे, मक्खन, ब्रेड बंद डिब्बों में पैक ताजा तैयार मिलते हैं । घर में खाओ या दुकान में रेलवे स्टेशन या पार्क में कहीं भी इच्छा अनुसार खडे, खडे या चलते फिरते भी खा सकते हैं । वस्त्राभूषण, भवन निर्माण, यातायात, दूर संचार अथवा चिकित्सा किसी भी क्षेत्र को ले लो, मनुष्य ने प्रत्येक क्षेत्र में ही कीर्तिमान स्थापित किए हैं । पता नहीं अनुमान जीने पहाड उठाया था या नहीं, किन्तु मनुष्य ने यथार्थ में पहाड के ऊपर पहाड रखकर विशाल पर आमिर अवश्य बना दिए हैं । मानव निर्मित गगनचुंबी भवन चांद तारों से बात करते प्रतीत होते हैं । ये सब मनुष्य की अपनी उपलब्धियां हैं और अपनी इनकी उपलब्धियों के बल पर मनुष्य ने ईश्वर तथा उसकी भूमिका को अलग कर हासिल पर डाल दिया है । मैं ईश्वर के सहारे की अपेक्षा अपनी शक्ति, अपनी बुद्धि के सहारे को अधिक सार्थक और कारगर मानता है । एक समय था जब मनुष्य प्रति कार्य में ईश्वर की सहायता की आशा लगाए रखता था । वह समझता था कि यदि परम पिता परमेश्वर की कृपा से समय पर वर्ष हो गई तो उसके और उसके बाल बच्चों के भरण पोषण का जुगाड हो जाएगा । किंतु आज रहे ईश्वर की कृपा से होने वाली वर्षा की प्रतीक्षा में हाथ पर हाथ धरा बैठा नहीं रहता । मैं नलकूप तथा स्प्रिंकल के द्वारा अपने खेतों में आवश्यकता अनुसार वर्ष कर लेता है । जो फसल साल में एक बार पैदा होती थी, आज वैज्ञानिक विकास के कारण साल में दो दो बार तैयार होती है । नीबू में संतरा और संतरे में माल्टे का संक्रमण करके एक नया फल किलो तैयार कर लिया गया है । फल ही किया यहाँ तो एक व्यक्ति का गुर्गा दूसरे व्यक्ति को और दूसरे की तीसरे चौथे को लगा दी जाती है । खून तो मनुष्य के लिए पानी के सवाल हो गया है । किसी भी चौक चौराहे पर या सरकारी अस्पताल में जितना चाहूँ खून बहा सकते हो, भूखा बैठा आदमी सौ दो सौ रुपये में बोतल भरकर खून देने को तैयार बैठा मिल सकता है । किसी के बच्चा ना हो तो अनाथालय से अपनी पसंद का बच्चा लिया हो, नहीं तो बच्चा पैदा करने के और भी कई उपाय उपलब्ध है । बूढों अपा ही जो लाचारों को गोली मार दो अथवा जिंदा ही समुद्र में फेंक आओ ताकि मछलियों को चारा मिल सके और आप लौटते समय स्वस्थ तथा युवाओं के लिए मछली की गाडी भर ला सकें । ये मनुष्य की पाशविकता नहीं, वैज्ञानिक विकास से समुन्नत मस्तिष्क, सामान्य प्रतिक्रिया तथा आधुनिकता की आवश्यकता है । मानवी विकास की पराकाष्ठा यह है कि जड, चेतन, गोचर अगोचर को जान लेने के दम बने मानव को स्वयंभू बना दिया है । आपने समस्त कार्य अपनी सुविधा अनुरूप करने लगा है और उनके निष्पादन का लेशमात्र भी श्री ईश्वर के खाते में डालने को कतई तैयार नहीं है । मैं अपने समस्त कार्य व्यापार में श्रम का पुरुषार्थ ही नहीं मानता है, किंतु कभी कभी मानवीय विकास की सीमा पर जब संडे कोने में फस जाता है तो वह विवश होकर उसे पुकारने लगता है । उसकी सत्ता को सिरोधार्य कर उसे स्वयं से सिस्टम मान लेता है । उस सीमा पर उसका समस्त विकास, संपूर्ण अहंकार, जिद्दी बालक के वेड्स हट के समान धराशाही हो जाता है और मनुष्य श्रम को मूढ मति कुमति मानकर उसे अगोचर सबका प्राणपति स्वीकार कर लेता है । अंततः वह यह भी मान लेता है कि चाहे वह सब कुछ कर सकता है, किंतु वह वह नहीं कर सकता, जो वह कर सकता है । बस यही तक मानव विकास की सीमा है । इससे आगे ऐसा हो जाता है

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Manthan Written by Prabhu Dayal Madhaiya Narrated by Ashok Vyas Author : प्रभु दयाल मंढइया 'विकल' Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Ashok Vyas
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