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मंथन अध्याय 03 खोज़ in Hindi

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AuthorPrabhu Mandhaiya
Manthan Written by Prabhu Dayal Madhaiya Narrated by Ashok Vyas Author : प्रभु दयाल मंढइया 'विकल' Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Ashok Vyas
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मंथन अध्याय तीन खूझी भ्रमण में अनगिनत नक्षत्र है । सूर्या आपका गोला है । इसका भारी तापमान छह हजार डिग्री सेंटीग्रेड है । आठ ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं । ग्रहों के उपग्रह होते हैं । चूहे की आयु छह माँ और हाथ की आयु साठ वर्ष होती है । दुनिया में सफेद हाथी भी पाए जाते हैं । अमेरिका की खोज कोलंबस ने की थी । अमेरिका आज एड से त्रस्त है । एड्स भयानक संक्रामक महामारी है । एडिसन ने बिजली के बल्ब का आविष्कार किया था और जगदीशचंद्र बसु ने बताया था कि पौधों में भी जीवन होता है । विश्व के प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल परीक्षण इंग्लैंड में हुआ था, जिससे उत्पन्न बच्चे को लुई ब्राउन नाम दिया गया । मनुष्य के अविष्कारों खोजों की सूची बहुत लंबी है । उसकी शताब्दियों की मेहनत को अंगुलियों पर नहीं गिना जा सकता । आधुनिक विज्ञान से पूर्व दी प्राचीन भारत में वैज्ञानिक विकास चरम पर था । युद्ध के पश्चात भगवान श्रीरामचंद्र ने विश्वस्त सहयोगियों के साथ रावण के पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे थे । महाभारत काल में महाराज धृतराष्ट्र को युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाने के लिए संजय द्वारा प्रतीक रूप से रेडियो टेलीविजन के उपयोग का वर्णन मिलता है । उनके तात्कालीन अगली बार आज के प्रक्षेपास्त्र तो थे । ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई? ईश्वर कहाँ छुपा हुआ है? मनुष्य आदि काल से ही उसे देखने को लालायित है । उसे पाने की जिज्ञासा में मन उसे निरंतर प्रयत्नशील रहा है । ईश्वर की खोज में उसने जड, चेतन, छोटे बडे सबको उथल पुथल कर डाला । एक एक जीव का पधार का शुक्र अध्ययन किया । जीव की उत्पत्ति, विकास और मृत्यु का कारण खोजा । अपने अनुसंधानों से उसने जाना कि साहब के काम नहीं होते और लोमडी सबसे चालाक जानवर है । मनुष्य एक गुरूदेश भी जिंदा रह सकता है । पानी में बिजली और पत्थर में आग विद्यमान है । चंदन में फूल और गन्ने में फल नहीं लगते है । जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है तथा प्रदूषण ही श्रृष्टि के विनास का प्रमुख कारण है । विज्ञान सिद्ध करता है कि प्रत्येक वस्तु किसी पूर्व वस्तु का कार्य रूप है तथा प्रतीक वस्तु किसी अन्य वस्तु या वस्तुओं का कारण है । मौलिक वस्तुओं को विज्ञान कारण तत्वों का नाम देता है । विज्ञान अपनी खोज के आधार पर बताता है कि हम उस घटना किस प्रकार गठित होती है । जिस घटना की पुनरावृत्ति पुष्ट रूप में सिद्ध हो जाती है, उसके आधार पर नियम बन जाता है । किंतु इन नियमों का नियामक कौन है? जो होता है, क्या वह होता है अथवा उसका करता कोई और है, ये निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता । भ्रम मान सूर्य और पृथ्वी की उत्पत्ति कब और किस प्रकार हुई? वे सदा रहेंगे या समाप्त हो जाएंगे । यदि उनका विनाश होगा तो कब और किस प्रकार होगा? विज्ञान तो केवल इसका अनुमान लगा सकता है । जहाँ तक करन तत्व उस का साथ देते हैं, विज्ञान बताता जाता है । याद की सीमा के पश्चात विवश होकर चुप हो जाता है, किंतु कोई है जो इससे आगे भी जानता है । कौन है वह, क्यों आई ना उसकी याद कोई न जिज्ञासा मैंने गूढ रहस्य चलो कोई बात नहीं, आप तो अपने हैं, बता देता हूँ । अरे वही है ना अपना ईश्वर । भगवान, अल्लाह, गार्ड बस इससे आगे कुछ नहीं । और इसी प्रकार एक सीमा ऐसी आती है जहाँ ईश्वर और विज्ञान मिलते हैं । शायद भूतल और समुद्र तट की सीमा के समान ब्रह्मांड अंधकार रूप से उपचा था और उसी में लीन हो जाएगा । ब्रह्मांड की पृष्ठभूमि मलतब ध्वनि जारी रहती है । ये ध्वनि ब्रह्मांड का अभिन्न अंग है । ज्ञानियों का मत है कि सर्वस्व भगवान से उत्पन्न हुआ है और उसी में लीन हो जाएगा । भगवान ज्ञानरूप तथा कालरूप हैं । काल कभी समाप्त नहीं होता । श्री सब बिना शील है । अतः भगवान अनंत है । भगवान ही कार्य है । भगवान ही कारण वही जगत है । वहीं काल यदि कहीं कुछ है तो वह शब्द रूप सर्वशक्तिमान ही है । उसी का चिंतन किया जाना चाहिए, किंतु उसका चिंतन भी किसी शब्द विशेष नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह अव्यक्त है । ओमकार सुष्टि में श्रेष्ठ है । हम कार का सहायक कार हटाकर कौनसे उसका चिंतन किया जा सकता है । वैज्ञानिक आधार पर यदि ऍम को लंबे फ्रांस के साथ उच्चारित करें तो केवल मंद मंद ध्वनि ही शीर्ष रह जाती है, जो भावना की गूंज के समान है । विज्ञान इस ध्वनी को हमिंग साउंड कहता है । जब प्रकृति शांत होती है, कोई अन्य ध्वनि अथवा कोलाहल नहीं होता है और राहत का सन्नाटा होता है, तब ऐसी ही ध्वनि शीर्ष होती है । यही ध्वनि परम तत्व का संकेत देती है और यही ध्वनि प्रलय के पश्चात भी बची रहती है । अंतिम सत्य वह जो अंत भी बचा रहे, ध्वनि सदेव रहती है । अतः ये भ्रम स्वरूप है । इसीलिए उसकी स्तुति ओम द्वारा की जा सकती है । योग द्वारा मन की इस स्थिति को लाना ही इस ध्वनि में लीन होना है और इस ध्वनि में लीन होने को ही ब्रह्म के साथ सहयोग होना कहा जाता है । ईश्वर अथवा भ्रम अथवा परम तत्व की प्राप्ति ही मनुष्य का अंतिम लक्ष्य रहा है । मनुष्य के लिए धर्म ही ज्ञान था और ज्ञान ही मौका प्राप्ति का विज्ञान । आज भी व्यवस्था के क्षणों में मनुष्य उसे सहायता के लिए पुकारता है, किंतु वैज्ञानिक प्रगति ने धर्म दर्शन और विज्ञान के क्षेत्र विभाजित कर दिए हैं । जहाँ धर्म तथा दर्शन प्रति कार्य के निमित्त में परम तत्व को देखता है, वहीं विज्ञान प्रतीक कार्य के कारण तत्वों को उत्तरदायी मानता है । यही कारण है कि जैसे जैसे भौतिक विज्ञान का विकास होता गया, भ्रम तत्व में मनुष्य की आस्था कम होती चली गई । विज्ञान ने अपने अनुभवों के आधार पर प्रकृति के नए सिद्धांत बनाए । उसने जाना इस संसार में शक्तिशाली को ही जिले का अधिकार है । निर्मल का विनाश अपरिहार्य है । शक्ति की दौड में मनुष्य ने अपनी विवेकानुसार परिस्थितियों के अनुरूप हथियार बनाए । आज की खोज से उसके जीवन में चेतना आई और पहिए के आविष्कार ने मनुष्य को गति दी । धातु की आविष्कार ने मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया । आत्मरक्षा के पश्चात धीरे धीरे उसमें अन्यों पर अपना आधिपत्य जमाने की भावना भी उत्पन्न हुई और वह खुरपी भावडा कुल्हाडी से आगे बढकर दीर तलवार और तो प्रक्षेपास्त्र बना था चला गया । आज मैं जल थल नभ में अपना बर्चस्व स्थापित कर प्रगति का स्वामी होने का दावा करता है । उसने संसार को बारूद के ढेर पर खडा कर दिया है किंतु प्रकृति के अबूझ रहस्य आज भी उस की जिज्ञासा के विषय है । वैज्ञानिक मानते हैं कि हमें दिखाई देने वाला आकाश ब्रह्मांड का कुछ अंश मात्र है । ऐसे असम के आकाश ब्रह्मांड में समय हुए हैं । हमारे आकाश में दिखाई देने वाला सूर्य एक छोटे से तारे के समान है । सूर्य से अनंत गुना बडे अनेको तारे इस आकाश में गतिमान हैं । इस छोटी से दिखाई देने वाले सूर्य में हमारी पृथ्वी जैसी तीस लाख प्रतियां समझा सकती है । जिस ब्रह्मांड में ऐसे असंख्य आकाश विद्यमान है, उसकी कल्पना ही रोमांचकारी है तथा इस ब्रह्मांड का स्वामी कल्पनातीत है । प्रकृति के रहस्यों की जहाँ कोई सीमा नहीं है वहीं मनुष्य की खोजों की भी कोई गिनती नहीं है । निरंतर अनुसंधानों से मनुष्य ने जान लिया है कि ग्रहण क्यों होता है । वो काम जो आते हैं समुद्र में आने वाले ज्वारभाटे का क्या कारण है? जीवन मृत्यु का आधार क्या है? जी, चक प्लेग छह रोक जैसी महामारियों का उपचार उसने खोज लिया । कृत्रिम गर्भाधान से वह संतानोत्पत्ति कर सकता है । परीक्षण नली में वह मानव शिशु को जल्दी सकता है । मनुष्य के गुरुदेव फैल हो जाने पर भी मैं उसे डायलिसिस पर जिंदा रख सकता है किंतु मौत को सदा के लिए टाल नहीं सकता । इस अंतिम सत्य को उसे अन्ततः स्वीकार करना ही पडता है और विज्ञान की अंतिम सीमा पर पहुंचकर वह हाथ खडे कर देता है । मनुष्य के जीवन हेतु वैज्ञानिक भी ईश्वर अल्लाह, वाहेगुरु गौर से प्रार्थना को विवश हो जाता है । मैं परम शक्ति से याचना करने लगता है । ईश्वर की खोज में मनुष्य ने अनंत कस्ट सहित आदिकाल से ही वह उसे कण कण में खोजता रहा है । अपनी निरंतर खोजों के पश्चात वह यही जान पाया है की प्रकृति का नियमन करने वाली कोई परमशक्ति है तो अवश्य किन्तु क्या है? कहाँ है, कैसी है वह नहीं जान पाया है । जब तक मनुष्य में परमशक्ति के किसी ने किसी रूप में कहीं न कहीं होने का विश्वास बना रहता है, मनुष्य की आस्था भी बनी रहती है किंतु जब वह प्राकृतिक घटनाओं की कारण तत्व के आधार पर छानबीन करने लगता है तो मैं श्रम के निष्कर्षों को अधिक तर्कसंगत पाता है और उन घटनाओं के संचालन में से परम शक्ति की भूमिका को निकाल देता है । वह मानता है कि हिम से जल और जल से वाष्प बनकर उन्हें बर्फ बनने के ठोस कारण है । एक निश्चित तापमान पर जल के जमने और गैस रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया आरंभ होती है । किसी सिद्धांत के आधार पर मनुष्य ने रेफ्रिजरेटर तथा बायलर का आविष्कार किया । एक निश्चित तापमान पर कठोर धातु कीगल जाती है । प्रहलाद भक्त आदमी क्यों नहीं चले? वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता किंतु आस्थावान व्यक्ति परमशक्ति साली भगवान की इस लीला से चमत्कृत है तथा उपकृत है । वह तो इस बात को भी पूर्ण श्रद्धा और विश्वासपूर्वक मानता है कि नरसिंह भगवान् खम्बा फाडकर निकले थे । उनमें उस समय नर और सिंह दोनों उपस्तिथ थे । हनुमान जी ने सूर्य को अपने मुंह में छिपा लिया था । स्वस्ती का रचियता प्रलय काल में, सुख निद्रा में फिर भैया पर शयन करता है । विष्णु भगवान् के अनुसार प्रलय काल में भगवान तीनों लोगों को ग्रसित करने के पश्चात शेष शैया पर चयन करते हैं और उसके बीत जाने पर उन्हें संसार की सृष्टि करते हैं । जान से जो वर्ग अमरदेव निश्चिंत ए मनो वजह संभव तब प्रमाण हिता हम रात्रि कदम तेरे रजत पुणा किंतु यहाँ शेर से शेषनाग नहीं प्रलय के पश्चात का बाकी अभिप्रेत है । प्रलय काल में दिन होता है रात भूमि आकाश अर्थार्थी केवल महाशून्य क्योंकि प्रलय काल में सब शांत होता है इसलिए वह रात के समान है क्योंकि रात को सब विश्राम करते हैं इसीलिए भगवान को भी सोया हुआ माना गया है । कभी ने अलंकार रूप में कहा है कि प्रलय काल के बाद बचा शेष कुंडली मारे हुए सबके समान है तथा प्रश्नकाल में भगवान के लिए कोई काम नहीं है । इसी लिए विशेष भैया पर चयन करते हैं जबकि इसका प्रतिकात्मक अर्थ अत्यंत व्यापक है तथा यही बात अन्य रूपकों पर भी लागू होती है । ज्ञान भगवान का परम तत्व पर आधारित है । ज्ञान और विज्ञान में कोई भेद नहीं है । ज्ञान हो, विज्ञान हो, दोनों का परम लक्ष्य प्राणी मात्र का कल्याण तथा परम तत्व को प्राप्त करना है । मार्ग भिन्न भिन्न हो सकते हैं किंतु दोनों की मंजिल तो एक ही है । भगवान ही कार्य है और भगवान ही कारण है । वहीं जगत है वही काल है, वहीं व्यक्ति है । वही अव्यक्त सब उसके रूप है और काल ही उसका परम रूप है । इन अर्थों में भगवान केवल एक नियम है, समय है, उसका प्रभाव है और यही अंतिम सत्य है । किसी की खोज में धर्म और विज्ञान लगे हैं किंतु इस अंतिमरूप का सत्य अज्ञेय है और अगले ही रहेगा । आस्था के बिना उसका अनुभव तथा अंतर्दृष्टि बिना उनका दर्शन असंभव है । विज्ञान चाहे कण कण को चीर डाले किंतु उसे पा नहीं सकता जबकि वह सब में है और सब कुछ उसमें है हूँ ।

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Manthan Written by Prabhu Dayal Madhaiya Narrated by Ashok Vyas Author : प्रभु दयाल मंढइया 'विकल' Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Ashok Vyas
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