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मंथन अध्याय 02 जिज्ञासा in Hindi

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8 K Listens
AuthorPrabhu Mandhaiya
Manthan Written by Prabhu Dayal Madhaiya Narrated by Ashok Vyas Author : प्रभु दयाल मंढइया 'विकल' Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Ashok Vyas
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मंथन, अध्याय दो जिज्ञासा जिज्ञासा मानव स्वभाव की तीव्रतम प्रवृत्ति है अभूत बालक जिज्ञासा वस, चिलचिलाती लाल अंगारों को पकड लेता है । नीचे क्या है की जिज्ञासा उसे बोरवेल के खुले घंटे में ले पडती है । संपूर्ण ब्रह्मांड रहस्यमय है । चांद सितारे, बादल, बिजली तथा समुद्र, ऊंचे पर्वत, फूल और पौधे सब मानव जिज्ञासा के प्रेरक है आकाश ऊंचाई मापने वाले पक्षी हवा में कैसे उडते हैं था? समुद्र की गहराई में विचरण करने वाली मछलियां पानी में कैसे रह पाती है? क्या नीले आसमान के आगे भी कुछ है? यदि आगे कुछ नहीं है तो ईश्वर कहाँ रहता है? क्या वह अपने सब काम अकेला ही करता है? क्या उसके सैंकडों आंखें और हजारों हाथ हैं? उनके आदेश के बिना पत्ता भी नहीं हिलता ना एकत्रित कर लिया । किंतु कैसी विडंबना है की अपार धन, अपार साधनों, अपार खाद्यानों के बावजूद संसार की अधिकांश जनसंख्या दाने दाने को मोहताज है । विवष आदमी फुटपाथ पर सोता है, रोजगार की तलाश में मारा मारा फिरता है और जानवरों से भी बदतर जीवन बिता कर समय से पूर्व ही छटपटाकर दम तोड देता है । ये सच है कि मनुष्य ने आशा तीन तो वैज्ञानिक प्रगति की है । उसने भ्रम मांड का रैशेज जान लिया है । उसने ऐसे ऐसे उपकरण बनाए हैं की सोच कर ही आश्चर्य होता है । उसका सालों का काम अब घंटों और महीनों का सैकेंडों में होता है । एक बटन दबाने मात्र से तो हजारों लाखों मील से जुड जाता है । पलक झपक थी, फैक्ट्रियां स्थान के थान कपडा उबलने लगती है । मगर फिर भी विश्व की आधी से ज्यादा जनता एक लंगोटी के अभाव में नंगी रहती है । दुनिया के भंडारगृह खाद्यानों से अटे पडे हैं । मगर लोग एक जून सूखे चल लेने के लिए तरसते हैं । चिकित्सा के क्षेत्र में मनुष्य कहाँ से कहाँ पहुंच चुका है किंतु अधिकांश लोग साधारण उपचार के अभाव में छटपटाकर दम तोड देते हैं । इसमें दोष विज्ञान की प्रगति का नहीं है । साधन शक्ति सत्ता संपन्न गिने चुने लोगों की उससे स्वार्थ ता का है । मनुष्य ने तो चेचक प्लेग भेजा । टीवी तो उसके सब कामों का हिसाब किताब कौन और कैसे रखता है? जीव जंतु पेड पौधे बनाने वाली उसकी फैक्ट्री कितनी बडी है, क्या किसी ने उसे देखा है? नहीं तो फिर आश्चर्य, महा आश्चर्य, महान जिज्ञासा मनुष्य कैसे देखे उसे कैसे जाने उसे विकेट समस्या है । जिज्ञासा आविष्कार की जननी है । मानव जिज्ञासा ने प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ को तार तार कर के रख दिया । गिद्ध के पंख लगाकर आदमी पहाड से कूद पडा । यदि उस की जिज्ञासा के कारण पच्चीस पचास लोग मारे भी तो क्या आज विपक्षियों को पीछे छोडकर हजारों मील प्रति घंटा की रफ्तार से आकाश को भेदकर अंतरिक्ष में घूमता है और वहाँ मनुष्य के आवास की पुरजोर कोशिश में लगा हुआ है । समुद्र तल का विचित्र वैश्य उसने जान लिया है और जीवों की उत्पत्ति के मूलाधार बीज की उसने खोज कर ली है । वह जान गया है कि वनस्पतियों में क्लोरोफिल तथा जीवों में रक्त से जीवन गतिमान होता है । पेड पौधे अपनी जडों से पानी और पत्तों से प्रकाश ग्रहणकर संसेशन क्रिया द्वारा जीवित रहते हैं । मानव मस्तिक एक बहुत शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर है, जिसमें खरबों शब्द संग्रह की क्षमता है, किंतु ये सब जो इतना सरल, सहज स्वाभाविक जान पडता है, मानव के निरंतर संघर्ष का परिणाम है । मानौ जिज्ञासा का ही प्रतिफल है । कहानी कहने सुनने का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है । राजा रानी खानी पडी राजकुमारों की कहानी रामायण, महाभारत, अली बाबा, चालीस चोर, हितोपदेश के हिरण और मोर सब छोटी बडी कहानियाँ तो कहते हैं कहानी में जिज्ञासा होती है । जिज्ञासा मनुष्य में उत्सुकता पैदा करती है । अब आगे क्या होगा यही विचार उसे बांधे रखता है । जिज्ञासा ही मनुष्य को नई नई पुस्तकें पडने और फिल्में देखने की प्रेरणा देती है । पहाड पर चढने के बाद तो आदमी पहाड से बडा हो जाता है । महिला ने बच्चे को जन्म दिया है । बच्चा कैसा होगा? काला या गोरा उसे देखने की जिज्ञासा पूरे परिवार को होती है । वहाँ पर गया या बात पर आंखें तो दादा जैसी है लेकिन नाना नानी जैसी ये नानी क्या होती है? माँ की माँ को नानी कहते हैं । जैसे पिता के पिता को दादा जिज्ञासा ही है जो आज के वेस्ट मनुष्य को मंच खत्म होने तक पैट बॉल तथा पेवेलियन पिस से बांधे रखती है । अहमदाबाद की एक मस्जिद की दो मीनारें एक साथ खेलती हैं । कश्मीर में केसर की खेती होती है और कस्तूरी एक विशेष प्रकार के हिरण की नाभि में होती है । अच्छा ये तो कमाल की बात है । कभी मौका मिला तो जरूर देखेंगे । स्विट्जरलैंड संसार की सबसे हसीन जगह हैं । जान पर आदमी पृथ्वी की अपेक्षा छह गुना अधिक शक्ति से काम कर सकता है वेरी गुड । फिर भी ये लोग अभी तक इस नरक में पडे हैं । काश नील आर्मस्ट्रांग के बदले में चांद पर गया होता । अभी बात को बहुमत से मान लिया गया है कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है । ईश्वर सर्वशक्तिमान है, उसे सर्वशक्तिमान को देखने की जिज्ञासा मानव को आदिकाल से ही खींच रही है । ऋषि मुनियों ने संसार के ऐश्वर्या के स्थान पर उसे अधिमान दिया है और समस्त सुविधाओं को त्यागकर वनों कंदराओं, पहाडों की निस्तब्धता में एकाग्रचित उनकी उपासना की । जिसकी साधना में जितना ही अटूट विश्वास रहा, उसने उतने ही निकटता से उसका साक्षात्कार क्या तपस्या के द्वारा ही मनुष्य जान पाया है कि ईश्वर को देखने के लिए बाहर चक्षु नहीं, मन की आंखें खोलनी पडती है और मन की आंखें केवल आस्था एवं समर्पण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है । सांसारिक लोग इसीलिए उस शुक्ला का दर्शन अनुभव नहीं कर पाते । प्रति मनुष्य में उसे देखने की जिज्ञासा तो है, किंतु समर्पण आस्था नहीं । कबीर जैसे ज्ञानी संतों ने गृहस्ती की चक्की में पिसते हुए भी उससे तादात में बनाए रखा । नानक ने सब कुछ तेरह ही तेरह मना और उसका उसी को समर्पित कर श्रम प्रत्येक बंधन से मुक्त हो गए । साधारण व्यक्ति उतनी निष्टा उतनी श्रद्धा नहीं जुटा पाता । इसीलिए वह असमंजस की स्थिति में लटका रहता है उस की जिज्ञासा कभी शांत नहीं होती । मनुष्य में जिज्ञासा नहीं होती तो वह भी अन्य प्राणियों के समान पृथ्वी का बोझ ही बडा था और मौसम जरूरत के अनुसार परिस्थितियों से अनुकूल करके जी लेता । लेकिन मनुषि विवेकशील प्राणी है । जन्म से लेकर मृत्यु क्यों तक के सब रहस्यों को जानने की उसकी जिज्ञासा है । मैं सब कुछ खोल खोल कर देखना चाहता है कि प्राणी के किस किस ढंग से क्या क्या काम होता है । कभी कभी मानव मस्त िक्ष में प्रश्न उठता है कि यदि मनुष्य के शरीर पर बाल ना होते अथवा उसे बार बार नाखून काटने की आवश्यकता नहीं होती तो उसका क्या बिगड जाता है? यदि जन्म के समय ही बच्चों के मुंह में दांत होते और वह अपनी चड्डी नैप्किन खुद संभाल सकता । जिज्ञासा तो आदमी की यह भी है कि आदमी से आदमी का ही बच्चा क्यों? हाथी शेर कबूतर मोर का क्यों नहीं? पानी का बहाव ऊपर से नीचे की और ही क्यों होता है? ऊंचाई की और चढते समय आदमी झुककर क्यों चलता है? क्योंकि छोटे बडे की यही पहचान है । फलदार वृक्ष ही नीचे की और झुकता है । उथले पानी में कंकड फेंकने से टीचर ही उछलता है । मोदी नहीं, बिजली चले जाने पर फैक्ट्री बंद हो जाती है क्योंकि मशीनें काम नहीं करती । मानव शरीर एक अद्भुत मशीन है । यह रक्त नाम की बिजली से चलती है । रक्त भोजन से बनता है । मानव मशीन बनाने वाला बहुत चतुर है । उसने हर चीज में किफायत की है । नाम का ये यन्त्र खाने पीने, बोलने, प्यार करने जैसे अनेक काम कर सकता है । आंखें हेडलाइट का कैमरे का टेलीविजन का काम करती है । बैकलाइट की जरूरत आदमी को नहीं है । ना कान, हाथ, पैर मानव शरीर के आधार है । बीज से फसल पैदा होती है । इसीलिए बीस की सुरक्षा अनिवार्य है । उसे परतों में छुपा कर रखा जाता है । जो बीस का महत्व नहीं जानता, वहाँ संसार का सबसे अभागा प्राणी है । पेट न होता तो कुछ नहीं होता लेकिन पेट में मत जाइए । आप पेट अनंत रहस्यों का था, भंडार है । दुनिया भर के तमाम रहे । शो के रहस्य पेट में भरे पडे हैं जिन्हें जानकर भी जिज्ञासु आदमी का पेट कभी नहीं भरता । मासूम बालक में जिज्ञासा होती है कि उसका छोटा भाई बहन कहाँ से आया । सामान्य तेरे बच्चे से कह दिया जाता है कि उसकी मम्मी अस्पताल से लाई है एक जिज्ञासा अनंत जिज्ञासाओं को जन्म देती है । जब बच्चे अस्पताल से ही मिलते हैं तो उसकी मम्मी एक ही बच्चा क्यों लेकर आई? बच्चे के लिए मम्मी का ही अस्पताल जाना क्यों जरूरी है? ये काम तो पापा भी कर सकते थे । घर का सब सामान तो पापा ही लेकर आते हैं । अस्पताल से बच्चा लेकर आई है इसीलिए मम्मी बीमार पड गई है । लेकिन गई थी तब तो अच्छी बाली थी । खूब फूली हुई मगर अब तो नेम पिचक गई है जैसे हवा निकल गई हो । बच्चे बनाने वाले मशीन कैसी होगी ये तो जरूर देखनी चाहिए । सरकार पिक्चर चिडिया अगर सब जगह तो मम्मी से साथ लेकर जाती है । फिर मैं मशीन दिखाने अस्पताल क्यों नहीं ले गई? अगर मम्मी उसे साथ लेकर जाती तो वह इससे भी सुन्दर लडकी छांटकर लाता । खूब गौरी चिट्ठी लाल लाल बडी बडी आंखों वाली, गोलमटोल पडोस वालों की भूमिका जैसी अर दस साल की आयु के बालक पांचवी छठी कक्षा में मानव शरीर और उसकी कार्यप्रणाली का अध्ययन करने लगते हैं । बच्चे बनाने वाली मशीन का रहस्य उनके सामने प्रकट होता है तो फिर अनेक जिज्ञासाएं जन्म लेती है किंतु बालक अपने शारीरिक विकास के कारण अनेक प्रश्न पूछने में संकोच कर जाता है । अपने से बडों का भय, संकोच अथवा अन्य कारणों से जब बालक की जिज्ञासा का समाधान नहीं हो पाता तो वह अपने हम उम्र से पार्टियों, मित्रों का सहारा खोजता है और श्रम ही अपनी समस्या से निपटता है । आयु के इस पडाव पर ही बच्चे को सही दिशा, समुचित शिक्षा की आवश्यकता होती है । कच्ची मिट्टी को मन चाह आकार दिया जा सकता है । पक्के घडे को पीटने से उसके टूटने की संभावनाएं अधिक रहती है । मनुष्य की प्रथम पाठशाला घर और गुरु होती है । अभिभावक की अपने बच्चों को सुसंस्कार, मान मर्यादा, त्याग, प्रेम और राष्ट्रीयता की शिक्षा देकर अच्छा नागरिक बना सकते हैं । जिज्ञासा है तो गति है, प्रयत्न है, उत्साह है, ललक है, सर्वज्ञ स्थिर हो जाता है । जड और चेतन में ही अंतर है । माँ बनने की जिज्ञासा में महादान न जाने क्या क्या झेल जाती है । पहाड के उस पार देखने की जिज्ञासा में आदमी मौत से खेल जाता है । साइनाइट का स्वाद और परमाणु बम का आविष्कार क्या सहज ही हो गया था । मसीहा कहलाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगानी पडती है । ईश्वर के रहस्य की जिज्ञासा लिए आदिकाल से प्रयत्नशील मानव नित नई खोज करता रहा है । मगर जिस सिरे को वह पकडना चाहता है, वही उसके हाथ नहीं आता । ईश्वर भी कमाल करता है । उसके हर काम में रहस्य होता है । मानव उसके रहस्यों के भ्रमजाल में उलझा उन्हें सुलझाने की जिज्ञासा में जीवन भर लगा रहता है । मनुष्य अब तक जो कुछ जान पाया है वह ईश्वर के रहस्यों का फॅस भी नहीं है । ये और बात है कि मानव अपने अल्पज्ञान के दम पर ही मनुष्य को सबसे बडा हेड मास्टर समझने लगा है । मैं क्यूट की नाक में नकेल डाल सकता है, समुद्र तल से मोटी ला सकता है, चांद पर झंडे गाड सकता है, नकली दिल लगाकर आदमी को चलता कर सकता है और उसका पीठ फाडकर बच्चा निकाल सकता है । मगर बच्चों गूंगे को जुबान दे सकते हो । जन्मजात अंधे को आठ और बहरे को कांदे सकते हो । चलो इतना ही बता दो कि तुम्हारी मृत्यु किस दिन होगी । लेकिन तुम भी जिद्द के पक्के हो । लगे रहो बेटा जी भरकर आविष्कार करो, परमाणु जीवाणु बम बनाओ । दिन रात नए नए चैनल शुरू करो । तबियत से बच्चे पैदा करो । मैं भी मौका देखकर तुम्हारी टांग खींच लूंगा । जनसंख्या विस्फोट से नहीं तो प्रदूषण से तुम्हारे हथियारों से नहीं तो प्रलय से एक साथ ही सबको निपटा दूंगा । उस तक पहुंचने के लिए प्यारे बहुत एडियाँ रगडनी पडेगी िनट तुम कौन हो, क्या हो कैसे हो, तभी तो सामने आओ नहीं नहीं ।

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Voice Artist

Manthan Written by Prabhu Dayal Madhaiya Narrated by Ashok Vyas Author : प्रभु दयाल मंढइया 'विकल' Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Ashok Vyas
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