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भूत का घर विभाग एक श्रीकांत प्रजापति जी भयाना नामक काम में किराये के मकान में स्थायी हुए पेशे से शिक्षक है । श्रीकांत स्कूल में काफी लोकप्रिय शिक्षक हैं । स्कूल में पढाने के बाद तो बच्चों को अपने घर पर ट्यूशन पढाते हैं । अभी दो साल पहले उनका तबादला हो चुका है पर जब वो भटियाना में थे तब उन्हें अपने किराये के घर में बेहद भयानक ऍम उत्तराखंड के टिहरी जिले में पडता था । शहर से काफी दूर होने के साथ साथ एक पहाडी इलाका था जहाँ उच्च शिक्षा के लिए अच्छे कॉलेज का भाव था । उनका परिवार देहरादून में ही रहता था क्योंकि बहुत शैक्षणिक सुविधा और बच्चों के पढने के लिए अच्छे कॉलेज है । ये घटना उनके तबादला होने से लगभग दो वर्ष होती है । तब पिछले चार सालों से भटियाना गांव में किराए के मकान में अकेले ही अपनी जिंदगी का पहिया चला रहे थे । उस दिन कुछ अजीब सी बाते हुई अचानक उन के मकान मालिक ने उन्हें कपडा खाली करने को कहा । इसके पीछे कारण यह था कि मकान मालिक की पुत्री का विवाह तय हो गया था और विवाह की तिथि अगले ही वहाँ को सोलह तारीख को निर्धारित हुई थी जो पास ही के गांव झाम में तय हुआ था तो वहाँ की तैयारियों को मद्देनजर और जगह के अभाव का हवाला देकर उन्हें कमरे को छोडने का निवेदन किया गया था । श्रीकांत जी भी बडे उस वाले व्यक्ति उन्होंने यहां चार वर्षों से भी ज्यादा वक्त दिया था और मकान की मंदबुद्धि वाली पुत्री को किसी तरह इंटरमीडियट तक की शिक्षा पूर्ण करवाने में और तीन करवाने में इन का बहुत बडा हाथ रहा हूँ । अचानक कमरा छोडने की बात उनके दिल पर खास करके आनंद फाइनल में श्रीकांत जी ने अगले ही दिन अपना कमरा शिफ्ट कर लिया क्योंकि बलियाना गांव के दूसरे छोर पर ही था । हालांकि वहाँ आस पडोस में दो सौ मीटर की दूरी पर भी किसी का नहीं था । मगर उनके ऐसा अकेलेपन का साथ देने के लिए घर के बगल में ही बडा ॅ और चीड के कुछ ऊंचे ऊंचे वृक्ष जरूर विराजमान है । उन्होंने अपनी शिक्षा बोर्डिंग स्कूल से की थी जिसकी वजह से नहीं अमित सब अच्छे बजे उठना और सारे कार्यों को खुद ही वक्त रहते संपन्न करते थे । यही दिनचर्या आज फिर उनकी जिंदगी का बडा हिस्सा बन चुकी थी । दूसरे शब्दों में ये भी कहेगी ये अपने कार्यों में कितना उलझे रहते आस पडोस की जिंदगी में क्या चल रहा है, इस की सलाह से भी सुपुर्द नहीं रहती है । कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी । नहीं कमरे में आए हुए हैं । उन्हें अभी चंद्र दिन हो गए थे । अभी बार की एक शाम को अपनी आराम कुर्सी पर बैठकर सुस्ता रहे थे । अचानक उनकी बीमारी का बल्ला अपने आप धाम से खुल गया । इस्लामाबाद से वो चौंक गए फॅार महसूस हुआ क्योंकि उसका हूँ कोई हवा नहीं चल रही थी और घर पर तो वो अकेले ही रहते थे । उठकर हमारी का पालना घर से बंद कर कुर्सी की ओर जाने लगे । तभी उन्हें महसूस हुआ कि किसी ने उनका नाम पुकारा और आवास हमारे के अंदर से आ रहे हैं । इस भयानक घटना से श्री कांची बुरी तरह डर का उन्हें वही खडे खडे पसीने आने लगे और पूरी तरह से आपने लगे । हालांकि वो विज्ञान विषय के शिक्षक थे और इन सब कोई चलो बातों पर विश्वास नहीं करते थे । तो ऐसे हालात का खुद सामना हो तो सारी की सारी तक विसंगत सस्ते में धरी की धरी रह जाती है । करते उन्होंने पीछे मुडकर देखा तो हमारी कर पल्ला धीरे धीरे चल रहा था । ऍफ से कोई तक का दे रहा हूँ । आपके ऍसे हुए श्रीकांत थोडी फॅमिली रहे हैं । तभी अचानक मनमानी से खडा कला हुआ बाहर आने लगा । ये सब घटनाएं देखकर श्रीकांत जी की चीजें निकल गए । श्रीकांत चित्तौड कर घर के बाहर है । उन्होंने सोचा के मकान मालिक को ये सब बाते जाकर अभी बता दें उत्तर अनिषा करके मकान मालिक के पास चाहे मकान मालिक इस वक्त अपनी दुकान पर ही रहते हैं । दुकान को उन्होंने अपने घर के दाहिने हिस्से में बना रखा था । श्रीकांत चेहरे पर भाई मन में आप ये दुकान की तरफ पड चले । अभी कुछ ही दूर चले थे कि उनके सहन में बिचारा आया क्या की सही रहेगा? मैं विज्ञान का हो फॅस पर है की बातें की तो लोग उनका मजाक बनाएंगे और वो काम हंसी के पात्र बन जाएगी । फॅमिली मन का पहन यही सोचते सोचते उनके खत्म रखकर उन्हें इस बात का टाॅस नहीं हुआ कि वह चलते चलते मकान मालिक की दुकान के सभी पहुंच चुके थे । गुरूजी प्रणाम सही है क्या परेशानी है का? मालिक ने उनके मंतव्य को दिखाते हुए पूछा । नहीं नहीं तो कुछ भी नहीं । मैं तो बस टहलने के लिए निकला था तो इस तरह से आ गया श्रीकांत ऍम सब आने की सफल कोशिश की कुछ चाहिए तो बता दीजिएगा । मैं आप के कमरे पर ही भिजवा दूंगा । कहते हुए मकान मालिक किसी दूसरे ग्राहक को सामान दिन मजबूत हो गए । श्रीकांत भी लगभग दौडते कोई कमरे की तरफ चलती है । फांसी में भी कमरे को खुल्ला ही छोड कर भाग पडे थे । उन्होंने मन ही मन में प्रचार किया की कुछ भी हो उन्हें एक बार चक्कर जरूर देखना चाहिए । क्या पता कि मन का बहन की वो अब उनकी चाल में पहले से नहीं समझा सकता है । उन्होंने अपने विचारों से खुद को मजबूत किया था । कुछ छत पर चाहती थी, कमरे के अंदर दाखिल हो गए । उन्होंने देखा कि अलमारी बिल्कुल सामान्य स्थिति में अपनी जगह खडे हैं । उन्होंने मत करते ऍम हमारी को अपने दोनों हाथों से एक ही झटके में खोल कर पीछे अखबारी में जमा धूल के और कुछ भी नहीं था कि देखकर उन्हें बेहद अच्छा हुआ लेकिन उससे कहीं ज्यादा सुकून मिलता है । अच्छा हुआ कि उन्होंने मकान मालिक को ये बात नहीं बताई तो बेकार में उनकी खेती होती है और हंसी का पात्र बनते हैं सो अलग । जब की जल्दी खाना बनाया और स्तर पर सोने चले गए । उन्होंने मन से इस घटना को मानसिक थकान का प्रभाव समझकर फलाना ठीक समझा और गहरी नींद के आगोश में समा का हमेशा की तरह सुबह सुबह उठकर दैनिक को सम्पन्न करने के बाद के समय से विद्यालय चलेगा । शाम को थके हारे घर आते हैं और रात का खाना बनाने में लग जाते हैं । चिकन के साथ अफेयर का स्वाद लेने के बाद स्तर पर जाकर पसंद है हूँ । इस घर का आवाज से अचानक शाॅ उन्होंने देखा इस धमाके के साथ पिछली कट गई थी । मोबाइल उठाकर देखा तो खडी ठीक पा रहे बचने का इशारा कर रहे थे । बिस्तर से उठने के बाद मोबाइल कपडा हवाई चालू करने के बाद वो कमरे का दरवाजा खोलकर देखते हैं । दरवाजा खोल रही तो कर रहे जाते हैं सामने ट्रांसफॉर्मर में शोर्ट सर्किट होने की वजह से भयंकर आग लग गयी थी और ऍम करके चल रहा था । पानी मारकर कमरे के भीतर उठा के लोग हैं । चलाने के लिए मोमबत्ती भी नहीं । मन ही मन बहुत को कोसने हॅूं । इतने लापरवाह कैसे हो गए कि मोमबत्ती लेने की भी खुद बना रही है । अगली सुबह जल्दी उठो और सुबह बच्चों को ट्यूशन पढाने के बाद स्कूल की तरफ रवाना हो गए तो हमेशा के तहत हारे कमरे में प्रवेश होते हैं और खाना बनाने के बाद कुछ वक्त पिछली का इंतजार करते हैं और मन मारकर मोमबत्ती के प्रकाश में अकेले कैंडल लाइट डिनर करने के बाद बिस्तर पर लुढक चाहते हैं । मध्यरात्रि को उनको एहसास होता है क्योंकि जाती पर बहुत भारी बदन रखा हुआ है तो जैसे मान लो कोई उनकी छाती पर ही बैठा हुआ हूँ । वो खुलकर देखते हैं तो कोई भी उन्हें दिखाई नहीं देता । कमरे में चारों तरफ और अंधेरा पसरा हुआ है । उन्होंने कोशिश की अपने हाथ को उठाकर छाती तक ले जाए और पता करें की ऐसा क्यों हो रहा है । लेकिन उनका यह प्रयास असफल रहता है । वो अपने हाथ तो दूर उतने पलक झपकाने के अलावा और कुछ भी करने में अपने आपको असमर्थ साबित हो रहे हैं । लगभग पंद्रह से बीस मिनट तक लगातार हाथ उठाने और उठकर बैठने की लगातार कोशिश करते रहे लेकिन हर बार उन्हें असफलता ही हाथ लग रही थी । हाँ, हमारे वहाँ पसीने से तर हो जाते हैं । उनके सोचने समझने की शक्ति खत्म होती जा रही थी । उनकी समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है तो लाख प्रयत्न करने के बाद भी बस उंगलियाँ हिला पा रहे थे । धीरे धीरे उनकी छाती पर दबाव बढता ही जा रहा था । अपमानों लग रहा था की बस दम घुटने ही वाला है और अपने अंत का बस मुकदर्शक बनकर इंतजार कर रहे हो । इस अप्रत्याशित हरकत में उनके सोचने विचारने की शक्ति भी उनसे छीन ली थी । उन्हें एक बात तो समझ में आ गई थी कि पिछले कुछ दिनों की घटनाएं उनके लिए किसी अनहोनी होने का शराब जिसको उन्होंने हमेशा ऍम किया था । उन्हें इस चीज का भी मलाल था कि अब जब उन्हें इस बात का विश्वास हुआ है तो बहुत देर हो चुकी है । उनकी सबसे मुखर नहीं लगी थी और चेहरा बिल्कुल स्वस्थ हलाल हो चुका था । आंखों की पुतलियों बाहर आने को पेप्सी देख रही थी और कोर्ट भाई के कारण धर धर कहाँ रहे थे । श्रीकांत जी ने हार मान दिया और उनकी आंखे बंद होने लगी । उन्होंने आॅर्ट समस्या से बाहर आने की गुहार लगाने लगे । उनके शरीर में आ जाना कहीं से ऊर्जा मिली और फिर बुदबुदाते हुए पचरंग पांच पडने लगेंगे । निश्चय प्रेम प्रति जाते हैं विनायक करे सनमान तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करें हनुमान ऍम प्रभु अरज हमारे क्या बाॅधते । भूत प्रेत सबका आप श्रीकांत जी जैसे ये मंत्र बोलने के बाद अपनी आंखें खोली तो देख कर चकित रहेगा । एक जो भी चमके लिए होंगे उनके और चमकती हुई प्रतीत हुई जो उस खाले साई की थी जो उनकी छाती पर लगभग आधे घंटे से सवार था । अब श्रीकांत जी को उसके हल्की हल्की आकृति दिखने लगे थे उन्होंने ये देखते ही सोलह सौ उसे बजरंगबाण का मंत्रोच्चारण करने में लगता हैं । मंत्रोच्चारण करते ही अच्छा तो असर शुरू हो गया । थोडी देर में उन्हें बाहर हिंदा का एहसास हुआ और उन्हें अगले ही बल्कि महसूस हुआ कि अब उन्हें उस भारी वजन का एहसास नहीं हो रहा था । नहीं, आपको अदृश्य दान दिख रहा था । श्रीकांत जी ने सोचा कि ये बात अपने धर्म पत्नी को बताते हैं जो देहरादून में बच्चों के साथ रहते थे । तो जब खडी पर नजर का तो अपने आप करो क्या? दीवार खडी पर नजर दौडाई तो रात्रि के ढाई बजे का हो रहा था । इस वक्त थी रात को फोन करना उन्होंने उचित नहीं समझा । उन्होंने नेशनल किया कि सुबह सूर्यास्त के बाद सारी आपबीती बता देंगे । बहरहाल इस घटना के कारण उन की नहीं तो कपूर हो गई थी तो सुबह का इंतजार करने लगे । प्रसाद करते करते उनके दिमाग में ख्याल आया कि अगर मैं फोन करके इन सारी घटनाओं को बताऊंगा तो बच्चे ही परेशान हो जाएगी । श्रीकांत जी नेटवर्क शक्ति से काम दिया और है निश्चय क्या? क्या क्षति बार का दिन है । चुनाव होते हाथ उनके लिए सुबह ही निकल जाए और खुद इन सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष बताते यही सब सोचते सोचते कब सुबह हो गई उन्हें । इसका ऐसा ही नहीं हुआ । अचानक दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई । बेमन से वो बिस्तर से उठे और तरफ से की तरफ सावधानी तो पढ चले तो उन्होंने जैसी दरवाजा खोला तो देखते हैं कि ट्यूशन वाले कुछ बच्चे आए हैं । उन्होंने बच्चों को दो दिन का अवकाश करने को कह दिया । दरवाजा खोल करते है ना तो जाने की तैयारी में जुट गए हैं ।
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