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फिर आखिरकार वह महत्वपूर्ण समय आ ही गया जिसका सेट और उसके संगठन के मेंबरों को पिछले कई दिनों से इंतजार था । सब बहुत रोमांचकारी छत थे, रोमांचकारी भी और रहस्य से भरे हुए भी कोई नहीं जानता था अगर कुछ घंटों में क्या होने वाला है । खेल शुरू हुआ, पत्थर बिछाए जाने लगे और रविवार की खून भी हुई । शाम थी । जैसे ही पांच बजे इंडियन ब्लॅक स्टेशन बैगन ताबूत देने के लिए सफदरगंज एयरपोर्ट के विशाल मार की में जाकर रुकी । स्टेशन बैगन में उस वक्त छत्तीस पालीवाल के अलावा छत्रपालसिंह नाम का एक बेहद लम्बा चौडा ड्राइवर भी मौजूद था जो हरियाणा का रहने वाला था और जिससे कंधे पर हमेशा एक दोनाली बंदूक लगी रहती थी तो बंदूक सरकारी थी और म्यूजियम की तरफ से उसे इसलिए हासिल हुई थी ताकि कोई भी खतरा देखते ही वो उसका इस्तेमाल कर सकें । लगभग दस मिनट बाद ही शेर और चीते की खालों के दोनों काबू स्टेशन बैगन के बॉक्स पोषण में रख दिया गए । फिर छत्रपालसिंह के सामने ही जगदीश पालीवाल ने दरवाजे पर पीतल का भारी भरकम ताला लगाकर चाबी अपनी जेब में रखें । उसके बाद स्टेशन ऍम तूफानी रफ्तार से म्यूजियम की तरफ दौड पडे छत्रपालसिंह पूरी तन्मयता ऍफ कर रहा था । वैसे भी वो दिल खुश आदमी था । हमेशा बस रहता, उसकी बराबर में बैठे जब बीच पालीवाल ने रियरव्यू ने देख लिया था । एयरपोर्ट से ही सफेद राॅकी पीछे लग गई है लेकिन अपना फासला तय करती रही वो भी मुश्किल से एक किलोमीटर भी नहीं चली होगी । जगदीश पालीवाल ने एक का एक स्टोर से संस्कारी भरकर अपना सिर पकडा और फिर एकदम से ड्राइविंग सीट पर ढेर होता चला गया तो सीधा छत्रपालसिंह की गोद में जाकर गिरा । सब्जी सब्जी छत्रपालसिंह के हाथ पांव फूल गए । उसने जल्दी से स्टेशन वॅाक, अप्लाई किए के हो या सब्जी पालीवाल कुछ नहीं बोला वो जख्मी स्टार्ट की बहुत ही पूरी तरह हफ्ता रहा तो उस ओर से और कुछ तो बोलो साहब जी के हो गया जी छत्रपालसिंह पूरी तरह दहशत सादा हो उठा था मेरे बिस्तर में बहुत हो रहा । छत्रपाल पालीवाल पीडा से पूरी तरह कर हकर बोला ऍम फटा जा रहा है सिर दर्द में इतनी बुरी हालत साहब जी ये कुछ साधारण सुंदर नहीं छत्रपाल को पीडा से और पूरी तरह छटपटाए कभी कभी फॅसा है तो तुम काम करोगे छतरबर और हुकुम करो, सब हो तो फॅमिली यही प्रॉपर हो जाएंगे । बेचारा छत्रपाल घबरा तो पहले कभी चुका था । उसकी आंखें बडी तेजी से चारों तरफ खून गई । आस पास के इलाके में क्या नष्ट की दुकान तो क्या कैसी भी कोई दुकान नहीं थी । हाँ, पांच छह सौ गज के फासले पर उसी कॉलोनी जरूर दिखाई दी । अगले ही पर को बदहवास स्थिति में पैदल ही कॉलोनी की तरफ दौड पडा । साॅस जो मंथर गति से चलती थी, वैगन से आगे निकल गई थी । छत्रपालसिंह के पूछ कर रही टर्न होकर दोबारा बैगन के नजदीक पहुंची । फिर सेंट्रो में से बेहद आनंद फॅार निकला । जगदीश पालीवाल भी बडी चुस्त व्यवस्था में वापस सीट पर बैठ चुका था । पलक झपकते ही ट्यूशन पांडे ने जगदीश पालीवाल से चाबी हासिल की । फिर उसने तोडकर बॉक्स पोषण का दरवाजा खुला । उसके बॉक्स पोषण का दरवाजा खोलते हैं । सेंट्रो में पहले से तैयार बैठे दर्शक पाटिल और कुलभूषण तुरंत ऍम और डकैती में काम आने वाला कुछ जरूरी साजो सामान लेकर फुर्ती के साथ सेंट्रो से बाहर निकले और फिर चीजें की तरह दौडते हुए बॉक्स पोषण के भीतर घुस गए । उस वक्त दोनों ने अग्निशमन कर्मचारियों के ड्रेस पहन रखी थी । दोनों के बॉक्स पोषण में घुस रही ऍम लगा दिया । चाबी जगदीश पालीवाल को सौंपी गई । उसके बाद वो पहले की तरह ही आनंद फॅार बैठ गया । ऍम ये कई हो गई । मुश्किल से एक मिनट में ही सारा काम हो चुका था । थोडी देर बाद ही छत्रपालसिंह की वापसी हुई । उस साल की तरह रहा था बीच पालीवाल को बिलकुल ठीक ठाक अवस्था में सीट पर बैठे देखकर चौंक गया आपका सिद्धार्थ ठीक हो गया । साहब जी ऍर में है रानी थी । हाँ छतरपुर तो जाते ही सबका धर्म पडे । आश्चर्यजनक हम से ठीक हो गया था मैंने तो पीछे से कोई आवासीय दीदी अच्छा तुमने सुना ही नहीं और तुम फॅमिली आया । छत्रपालसिंह ऍम पालीवाल की तरफ बढा दी । कोई बात नहीं ऍम में रखी है फिर फिर कभी काम आएगी । चल चलती से म्यूजियम चलो अगले ॅ इंडियन म्यूजियम की तरफ भागी जा रही थी । छह बजने में उस समय दस मिनट बाकी थे । ऍम म्यूजियम के विशाल प्रांगण में जाकर रुक गए । जगदीश पालीवाल के लिए वो सबसे ज्यादा नाजुक झडते ऍम सरदार गुरचरण सिंह और छत्रपालसिंह उन दोनों ने मिलकर बैगन के बॉक्स पोषण जैसे वो तो ताबूत उठा रहे हैं, लेकिन ताबूत उतारने में उन्हें अपनी भरपूर ताकत का इस्तेमाल करना पडा । सब चीज छत्रपालसिंह एक ताबूत उतारते ही पूरी तरह आपने लगा कि पक से आते आते थे भारी कैसे हो गई थी? ऍम बढाया पापे सरदार गुरुचरण सिंह अपनी दाढी पर हाथ फेरते हुए बोला ऍम तो नहीं कुछ दिन ऍम छत्रपालसिंह ऍफ पर हंसी छूट गए । पालीवाल हिमेश करा दिया । इस तरह मजाक में ही वो पास आई गई हो गई । दोनों ताबूत उठाकर हॉल नंबर तीन के नजदीक लाए गए । सरदार गुरचरण सिंह थे । हॉल का वाला खोलना चाहता ताला नहीं खुला ऍम भाकर अपने हाथों की कारीगरी दिखाने में सफल हो चुका था सरदारपुर चरण सिंह ने । फिर कोशिश नहीं, लेकिन इस बार भी उसे असफलता ही नहीं क्या हुआ? पांॅच हालांकि ऐसी नहीं खुल रहा है । पता नहीं शाजी गुरचरण सिंह के चेहरे पर उलझनपूर्ण भाव है । पांच बजे जब मैंने ताला बंद किया था तब तो सब कुछ ठीक ठाक था । प्रतिशत भी क्या हो गया? गुरचरण सिंह से एक लाइक कोई जवाब दे देना बना छतार जी छत्रपालसिंह थोडा फॅमिली मेरे को दिखाना जी मैं देखने । सुरक्षा ॅ सरदार गुरजंट सिंह ने चाबी और अच्छा छत्रपालसिंह को सौंप दिया । अगले ही पल जेंडे जैसा शक्तिशाली छत्रपालसिंह पहुँच गया । जबकि पालीवाल के चेहरे पर अब सस्पेंस फुल भाव उभर आए थे । छत्रपालसिंह ने बे इन्तहां कोशिश की चाबी की मूड पकडकर खूब जोर लगाया लेकिन आखिरकार तालाब से भी नहीं खुला क्यूँ छत्तीस फॅमिली चिंता जाहिर की । यहाँ रखेंगे ताबूतों को शाजी एक सरदार गुरचरण सिंह बोला अभी अभी एक काले वाले को बुलाकर लाता हूँ । उसने पाँच मिनट तो खोल देना है । सरदार ने पूरी योजना में एक का एक रिकॅार्ड पानी बच्चों का तो किसी ने नहीं सोचा था । नहीं ऍम ऐसी गलती कभी मत करना । गुरुवचन सिंह जी इस सारे काले वाले एक नंबर के बदमाश होते हैं । उन्होंने एक पर जिस वाले की चाबी बना ली, दोबारा उसी की डुप्लीकेट खुद ब खुद बना लेते हैं तो वो तो मालूम है इस साल में कितना कीमती सामान रखा रहता है । अगर यहाँ कभी चोरी हो गई तो तुम्हारी आफत आ जाएगी ठीक होने साहब । छत्रपालसिंह ने फौरन सहमती में गर्दन हिलाई । हमारे गांव में सब सुनो । एक बिल्कुल ऐसा ही केस हो गया हूँ । फिर क्या करें? सरदार बोला करना क्या है इन ताबूतों को रात भर के लिए किसी भी सुरक्षित जगह पर तो सुबह सॉल्व ताला तोडकर जब मैं ताला लगाया जाएगा । कभी ताबूतों को भी इसके अंदर रख देना जी चंगी जगह तो बस ये ऍम को रात भर के लिए रखा जा सकता है । कौन सी ऍम ठीक छह बच्चे उन दोनों ताबूतों को हॅूं कर दिया गया । इस तरह दशक बॉटल और कुलभूषण सिक्योरिटी के इतने बडे तामझाम को भेदकर सहजीवी हॉल नंबर चार में घुसने नहीं सफल हो गए । वो हॉल में बंद हो गए थे लेकिन किसी को पता तक नहीं था की थोडी ही देर बाद वहाँ इतना बडा हंगामा होने वाला है । फिर योजना का अगला चरण शुरू हुआ । हॉल में बंद होने के बाद सबसे पहले दशक पाटल अपने ताबूत के तख्ते उखाडकर बाहर निकला । फिर उसके पीछे पीछे कुलभूषण भी निकला । जैसा कि स्वाभाविक था फॉल सीलिंग की छत और ऍम दीवारों के पीछे छिपी स्वचालित । उन्होंने उनके ऊपर कोरिया नहीं बरसाई । ताबूतों से बाहर निकलते ही तो दोनों शीशे के बॉक्स की तरफ बढेंगे । उसमें तुम पांच रखा था । उसकी कीमत कई अरब रुपये थे । पलक झपकते ही वह दुर्लभ ताज दशरथ पार्टी के हाथों में था । उसी पर कुलभूषण शीशे के बॉक्स में पीतल का वो नकली ताज रख दिया जिसे उन्होंने जामा मस्जिद के बिना बाजार से खरीदा था । इस तरह बिना किसी मुश्किल के बिना किसी बडे हंगामे के मुताज चोरी हो गया । अब उन्हें उस दुर्लभ ताज को लेकर सिर्फ उस हॉल से बाहर निकलना बाकी था । हालांकि वो काफी मुश्किल काम था लेकिन वो भी हुआ कुशलतापूर्वक । वहाँ से भाग निकलने की योजना रात के दस बजे से शुरू हुई । योजना काफी हंगामाखेज थी, हंगामाखेज भी और चल दहला देने वाली भी । जैसे ही रात को दस बजे ऍम और कुलभूषण ने अपने साथ फ्लाइट फॅसे तेल हॉल के अंदर ही अंदर चारों तरफ छोडना शुरू कर दिया । इतना ही नहीं फिर टाॅक लगा दी । फौरन चार नंबर हॉल के अंदर तो हूँ करके आग लगने लगी तो तेजी से बाहर निकलने लगा । आप आप ऍफ होने की वजह से उस वक्त अपनी चरम सीमा पर दी जब एक का एक चारों तरफ आप आपका भीषण पोला हाल बच गया । सबके इधर से उधर भागने लगे । बाहर तैनात है सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरुचरण सिंह के गानों में भी ऐसे ही उसको ला हल्की आवाज बडी ऍम के अन्दर की तरफ फायदा क्या हुआ? ऍर से पूछा था क्या हुआ तो फॅसने पूरी तरह बौखला हुए कहा तो बहुत बहुत पूरी तरह आग लगी है लेकिन कैसे? गुरुचरण सिंह के भीतर पडेंगे । अरे कैसे लगी आग नहीं सब मगर खुद हो रहा है वो आपकी लगता निकल रही है सब फॅमिली तरफ दौड पडा ऍम था अध्यारोपित भीषण आपकी लगते हैं ऍफ साफ नजर आ रही थी सरदार गुरचरण सिंह को एक का एक न जाने क्या सूझा किसने तोडकर तो सभी वायॅर शुरू कर दी फिर की बदौलत हॅाल बिछाया गया था । बडा ही पूरा सिक्यूरिटी सिस्टम हो गया लेकिन बधावा सीखी आलम ने उठाए गए इस कदम से सिर्फ तीन हजार ऍम शहर ऍम कर दिया गया ऍफ कर दिए गए ऍसे घर भाॅति फाॅर मचाता अन्दर की तरफ होगा । फायरब्रिगेड आ गई तो फाॅर्स बचा रहा था जैसे उत्तर खुशी चली आ रही हो फॅमिली जिनके प्रांगण में आकर रुक गई । फिर उस ऍम के अंदर से दो अग्निशमन कर्मचारी इस फुर्ती से बाहर हो गई और मुझे ही उन्होंने पानी का एक एक मोटा पाइप अपने हाथों में ले लिया । आपकी डर लगी है उनमें से अग्निशमन कर्मचारी हालत फाडकर चला ऍम जल्दी वहाँ पहुंच हूँ जल्दी ऍम कर्मचारी ऍम पडेगा सर पर हॅास्टल लगा होने की वजह से उनको ऍम गया था । पीठ पर ऍम क्या बनी थी उसे ऍम थी । बडी फॅालो चार नंबर हॉल के नजदीक पहुंचकर सिटी वांचन में खडा खडा है पर मैं सबको चलकर रात हो जाना है सरकार । गुरुचरण सिंह जो अनाज खट्टे इस हाथ सबसे बुरी तरह खिलाया हुआ था उसके ऍम दरवाजा खोल दिया । इतना ही नहीं हल्का दरवाजा खोलते ही वो अपनी जान की परवाह किए बिना व्यक्ति का आग में उसके भीतर कूद गया । फिर वो फॅसा हुआ पूरा पास के नजदीक खडा हुआ फॅसने देखा की दुर्लभ बात अपनी जगह पर सुरक्षित मौजूद हैं तो फॅमिली दुर्लभता के पास ये ऍम अगर आज कुछ ताज को चुराने दुनिया की कोई भी ताकत उसके सामने आ गई तो अकेला ही उसे तहस नहस कर डालेगा । अपनी तरफ करने के प्रति पूरी तरह समर्पित भाई गुरचरण सिंह उसमें दुर्लभ बाज को ध्यान से देखा होता तो मालूम पडता ऍम की बाजी लगाकर भाग खडा है तो कभी कर चोरी हो चुका है । उधर सेट दीवान चंद्र दर्शन पांडे वहाँ एक नया ही नाटक खेल रहे थे तो पाइप से निकलते पानी के मोटे धारी को आप पर बरसाने की बजाए इधर उधर वार ऊपर मार रहे थे और यही वजह थी पूछने की बजाय हर पल और भीषण रूप धारण करती जा रही थी । उन दोनों की नजर ऍम कुलभूषण पर भी पड चुकी थी । उन दोनों के चेहरों पर सफलता की चमक विद्यमानता बेहद खुश थे । ऍम जमघट इकट्ठा हो गया । तब अपना खान फोड सायरन बजाती हुई ऍम के प्रांगण ना पर होगा देखते ही देखते हैं बहुत चारों तरफ अग्निशमन कर्मचारी ही कर्मचारी नजर आने लगे तो फॅमिली और ट्यूशन पांडेय को जैसे उसी पल का इंतजार था । वो अग्निशमन कर्मचारियों के भीड का फायदा उठाकर वहाँ से खडे हुए और भूषण और दर्शक पाटिल क्योंकि अग्निशमन कर्मचारियों के ट्रस्ट नहीं थे इसलिए उन्हें वहां से भागने में कुछ खासी परेशानी नहीं हुई । सबने यही समझा कि उनकी फॅार का पानी खत्म हो गया है इसलिए वो वापस जा रहे हैं । बहरहाल सारे सुरक्षा प्रबंध रखे रह गए म्यूजियम के बाहर दिल्ली पुलिस के जब थे कि चलते खडे रह गए और खूब चार पांच सिर्फ चार आते हैं । उनके बीच से उस बेहद मूल्यवान दुर्लभ ताज को नहीं हुए । उससे भी ज्यादा डूब मरने की बात ये थी कि किसी भी उस बाकी कानोकान भनक तक नहीं थी कि वह तो लगता चोरी हो गया
Sound Engineer
Voice Artist
Writer