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भाग - 04 in Hindi

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817 Listens
AuthorSaransh Broadways
लड़की की शादी होते ही और उसके ससुराल चले जाने पर किस तरह अपने पराए और पराए अपने हो जाते हैं, रिश्‍तों के इस भंवर को बीना न समझ सकी। और उसकी इस नासमझी ने पति-पत्‍नी के बीच दरारें आ गईं। उनके फूलों से सुखद जीवन में कांटों की चुभन पैदा कर दी। यह बात बीना को बहुत देर से समझ में आई कि उसके दांमपत्‍य जीवन में कटुता लानेवाली कोई और नहीं उसकी अपनी मां ही है। छोटी-छोटी बातों से गृहस्‍थ जीवन में किस तरह विष घुलता है और कैसे इससे बचा जा सकता है… इस उपन्‍यास में बड़ी रोचकता से बताया गया है। Writer: रा. श्याम सुंदर
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भारत चार गुरूद्वारे में वचन लेना था इसलिए मोतीराम ने राकेश को फोन किया था । जब राकेश सवेरे कालिक जाने लगा तो बिना नहीं उसे याद दिला दिया । दोपहर को आ रहे हो ना क्यों उसके माथे पर सिकुडने बढाई तारा के लिए आज बात पक्की होनी है ना तो ऐसा करो । तुम हुआ हूँ तो मैं नहीं चल सकूंगा क्यों? आज एक जरूरी मीटिंग मीटिंग अटेंड करना जरूरी है हूँ । वहाँ जाना जरूरी है । तुम नहीं चलोगे तो मैं भी नहीं जाउंगी । मत जाना कहना जहाँ पर भी राकेश नहीं कह सकता हूँ अब ठीक है तुम तैयार रहना चलेंगे । दोपहर को राकेश आ गया बिना मेकप कर रही थी । दोनों जब कपडे बदलकर बाहर निकले हैं तब चार बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे । ॅ नहीं । हर कोई कार स्कूटर में आएगा और हम ऑटो रिक्शा में बिना चले गुरुद्वारा नजदीक ही था । फिर भी राकेश नहीं जाती हुई ऑटोरिक्शा को रोक लिया और वो दोनों पांच मिनट में धर्मशाला पहुंच गए । धर्मशाला के बाहर कई कार्य और स्कूटर खडे थे तो जाकर हॉल में बैठ गया हूँ । हॉल खचा खच भर गया था । चार बच गए थे । फिर भी शायद लडके वालों की तरफ से कोई विशिष्ट मेहमान आने वाला था इसलिए वजन की रसम रोक दी गई थी । वहाँ विशिष्ट व्यक्ति हाथ बढाता हुआ आया और बोला और रास्ते में गाडी खराब हो गई थी । वहाँ मैं तो घर से वक्त पर निकल चुका था । पहले दहेज गए हुआ हूँ और फिर कडा प्रसाद बांटा गया और उपस् थित लोगों को मिठाई आदि खिलाकर फलों का रस पिलाया गया हूँ । और तो की तरफ से सर गुड दिए लिए जाने लगे । थोडी देर के बाद लोग उठ खडे हुए । वर वधू की तरफ के रिश्तेदार और पहचान वाले आपस में बधाइयां देने लगे । हर एक के हाथ में अब उनकी जेबों से निकलकर उनकी गाडियों की तालियाँ झूलने लगी और जो आपने अपनी जूते पहनकर सीरिया उतरने लगे । सडक पर जिनकी गाडियाँ नहीं थी उस सिर झुकाए पटरी पर दुबक कर भागने लगे । भर भर के कारें स्कूटर स्टार्ट होने लगे और लोग एक दूसरे से होड लगाकर भागने लगे । आप घर में आए होंगे मनोहर की किसी तोंदिल रिश्तेदार ने अपनी गाडी का दरवाजा खोलते हुए राकेश से पूछा अब नहीं । राकेश ने दृढ स्वर में कहा तो वहाँ स्कूटर पर आए होंगे जी नहीं मेरे पास कोई गाडी नहीं है । कहते कहते राकेश के गाल आशक हो ठीक है चलिए मैं आपको छोड दूँ । जी नहीं शुक्रिया हमारा मकान फांसी है । हम खुद चले जाएंगे । पीतंबर सररकार जीजा जी एक मिनट ठहर चाहिए । अभी गाडी फुल होकर जा रही है । ड्रॉप करके दस मिनट में आ जाएगी । मैं आपको ड्रॉप दे दूंगा । बिना खडी रही राकेश ने सोचा यही तो मकान है । थोडी सी दूरी पर पैदल भी जा सकते हैं । अब चलो चलेगा दो बोला कैसे ऍम तेरे घूरकर बीना ने पूछा पैदल नहीं तो ऑटो रिक्शा में चलते हैं । कोई देखेगा तो क्या कहीं का? बीना ने धीमे स्वर में कहा अरे बीना तुम खडी क्यूँ? स्टेरिंग पर बैठे चश्मा ही ने कहा बिना मुस्कुरा पडे भैया गाडी ले गए हैं, अब जाएंगे । वैसे हमारे स्कूटर वर्क शॉप में पडा है । बिना ने बडी नाटकीयता से कहा ऍम हमारी गाडी वैसे भी खाली जा रही बैठो । हम ग्राउंड दे देते हैं । ब्लॅक जाओ कहकर उन्होंने पीछे का दरवाजा खोल दिया । हम आपको उस तकलीफ दे रहे हैं । कह कर वो बैठ गई और उसे राकेश को इशारे से बैठ जाने के लिए कह दिया । राकेश अपने होठ भेजता हूँ । कार में बैठ गया । घर कहाँ है यही सुविधा शतरंज रोड पर वैसे मकान की तलाश में लगे हुए हैं । कमरा पार किया शांति नगर में मिल जाए तो शिफ्ट कर ले । ये तो बहुत पुराना मकान है । आजकल मकानों की तंगी हो गई है । क्या भारी क्या पेश की हो गई है । गनीमत है कि अभी रिहाइशी मकानों पर पगडी नहीं आई है यहाँ वरना बम्बई हो जाता । बैंगलौर हमारा अब कौन सा काम है यहाँ भीड भाड ये ऍम, ये मकानों की तंगी अब तो यहाँ भी गंगनचुंबी दस मंजिल इमारतें बनने लगी है । यही रोक दीजिए बस आपका मकान आ गए । बीना ने उतरते हुए कहा चलिए हमारी झोपडी में चलकर जलपान कीजिए । फिर कभी दरवाजा खोलते वक्त बीना नहीं झटका तो चुपचाप क्यों बैठे रहे और क्या करता हूँ? तो मैं तो फटाफट उनका जवाब दे रही थी तुम्हारी क्या? जवान नहीं है तो क्या सोचेंगे तो जाएंगे क्या? कार में ड्रॉप तुमने जहाँ था और तो महीने ॅ दिया और क्या कार में ड्रॉप देने के लिए उन्हें हाथ जोड हूँ । मत जोडों हाॅरर क्या बन गए कि बात बात पर लेक्चर झांडे लगते हूँ । क्लास में तो विद्यार्थी को तमीज से खाते होंगे पर यहाँ व्यवहारिक बातों की तरफ भी तुम्हारा ध्यान नहीं जाता जैसे कि उन्हें झूट कह देना की हमारा स्कूटर वर्क शॉप में पडा है और हम शांति नगर या कुमार पार्क शिफ्ट होना चाहते हैं । यही ना चार अक्षर पडने से कोई पंडित नहीं हो जाता और उसकी समाज में चाक नहीं बन जाती है उसे समाज में अपनी साख बनाए रखने के लिए अपना एक्साइडिट कायम करना पडता है । तुम क्या जानो की समाज में उठना बैठना क्या होता है तुम्हारी तो संगत है उन होंगे पंडितों से और इन पोती पोतियों से मैं ऐसे समाज में पसंद नहीं करता हूँ जो अपने आप को ऊंचा कुली समझता है और जो कार बंगले वाले को ही इज्जत की नजर से देखता है और बाकी लोगों को है दृष्टि से देखता है । मानता हूँ कि हम सिंधियों ने अपना जीवन स्तर बढा लिया है और शानू शौक अच्छे रहते हैं । लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि जिसके पास रुपया पैसा है, जिसके पास कार बंगला है वह इंसान है वहीं सिर ऊंचा करके चल सकता है और दूसरे जो गरीब मध्यवर्गीय परिवार के हैं उन्हें ये ऊंचे घराने के लोग हे दृष्टि से देखें । वे भी साले सिर नीचा किए अपने भाइयों के पास से खिसक जाते हैं । ऐसे कापुरुष लोगों पर मैं देख कार भेजता हूँ । वे इंसान नहीं आधुनिक सभ्यता के गुलाम है और सुन लो तुम्हें ये जो झूठ बोल कर अपनी जी पी डवी आकांक्षाओं को जाहिर कर दिया है । उन पर मुझे तरस आता है क्योंकि मैं कभी भी तुम्हारी ये दोनों इच्छाएं पूरी नहीं कर पाऊंगा । मैं हेकडी में फिरते इन सफेद बगुलों की अंधी होड में अपनी गर्दन नहीं तोडूंगा । बिना ने राकेश को वितृष्णा से देखा और वह रसोई में जाकर खाना बनाने लगी । वैसे तो राकेश काफी जल समारोह में जहाँ जहाँ सिंधी भाई बंधु का जमघट होता है, वहाँ पर जाता रहा है और उसने ये महसूस किया है कि सिंधी उनको विशेष इज्जत देते हैं । जिनके पास कार स्कूटर हो या बंगला ब्लाॅक हो उसे ये भी गौर किया है कि कच्चे उम्र के सिंधी युवकों की एकमात्र इच्छा प्राया यही रहती है कि खूब गवाकर स्कूटर कार खरीद ले और युवतियों की इच्छा रहती है कि वे कार्ब अगले वाले पति पाएगा । उसने कई युवकों को इसी आकंक्षा में जीते देखा है की मैं भी खूब कमाकर बडा साहूकार बनेगा । वो ढूंढे भी उन युवकों को नहीं ढूंढ पाया जो कहे कि मैं पढकर बडा आदमी बन होगा तब उसे जैसी होती है । इस जांच की धमनियों में सिर्फ एक ही तरह होती है पैसा, पैसा, बस पैसा, पैसे । कभी उसे अपने आपको स्कूटर काल यह बंगला ना होने से इतना मालिक नहीं महसूस किया था जितना कि आज उसे महसूस किया । आज तो उसे ऐसा लगा कि गेंद की तरह कभी इधर कभी उधर फेक दिया जा रहा है जो आज पहली बार उसके मन में अपनी जाती । भाइयों के प्रति बेहद घृणा घनीभूत हो, ठीक है, जाती सिर्फ कर स्कूटर को देखती है, चमकदार को देखती हैं, चार पैसों को देखती है, आदमी की पहचान से सादा अछूत रह जाती है । इस समाज में जो सौ तिकडमें करके चार पैसे कमा लेता है और जो कार बंगला ले लेता है वहीं आदमी गहराता है और जो ये सब हासिल नहीं करता है वो न कारण कमल चाहिए, सुस्त समझ लिया जाता है और उसकी समाज में कोई इस सत्ताबू नहीं होती है । वो छटपटा उठा माँ लोग कोई दिक्कत नहीं जानता । झूठ फरेब नहीं जाता और सच्चाई इंसाफ शराफत से रहना चाहता है और अगर उसके पास कार बंगला नहीं है तो क्या भी नहीं है? क्या उसकी इज्जत ही नहीं होनी चाहिए? क्या उसे है दृष्टि से देख कर उसे नाकारा जाहिर ही समझ लेना चाहिए । ये कैसा समाज है जो पढे लिखे लोगों की कद्र करना नहीं चाहता हूँ और कार बंगला वालों को सिर आंखों पर बिठा लेता है । जो सीरत नहीं सूरत देखना चाहता है । जो आडंबर देखना चाहता है और ऊपरी चमक दमक से ही भूला रहता है, ऐसे समाज में रहने से उसे कट कर रहना ही बेहतर है । उस दिन तारा की शादी से पहले मोतीराम ने रोटरी क्लब में डिनर पार्टी दी थी । अंग्रेजी के यू के आकार में हॉल में मेट सजा दी गई थी और मेरे जो की दोनों तरफ कुर्सियां पडी थी । मेजों पर सफेद मेजपोश बिछाया हुआ था । डाई तरफ एक कोने में दो मेरे पडी थी और वहाँ दो चार वेटर खडे मेज पर रखी विभिन्न आकार की बोतलों से शराब गिलासों में डालकर मेजों पर बैठे लोगों को पेश कर रहे थे । दाई तरफ एक कोने में चार एक मेरे बडी थी और वहाँ पर धीरे धीरे खाना से जाया जा रहा था हूँ । आप क्या करते हैं किशनदास राकेश से पूछा जी मैं लेकिन चार हो लाॅज । किशन दास ने एक घूट चढाते हुए पूछा वो क्या होता है डैडी मास्टर है । मनहोर ने गिलास खाली करते हुए कहा मास्टर कहते हुए किशन राज के चेहरे पर शिकन ने बढ गई । वहाँ स्कूलों में मास्टर को मास्टर कहते हैं और कॉलेज में मास्टर को । लेकिन वो प्रोफेसर कहते हैं । मनोहर ने कहा प्रोफेसर भी नहीं मेरा मतलब है हेड ऑफ डिपार्टमेंट पांच बैठे एक स्थूलकाय व्यक्ति ने पूछा दो चार घूट पीने के बाद ही उसकी आंखें मूंदी जा रही थी । जी नहीं क्या पगार मिलती है आपको? किशन दास ने पूछा साढे पांच सौ साढे नौं बस मनोहर ने पूछा दो चार दिन में भी कर लेता हूँ, एक सौ हर पड जाते हैं फिर भी क्या हुआ? हमारे बंगले का भाडा ही छह सौ है तो मुझे किसी करती हूँ । खाए वृद्धि कहा गुजर बसर हुई जाता है कुछ और क्यों नहीं कर लेते? किशन दास ने पूछा बहुत क्या करूँ जैसे कि कोई बिजनेस । मनोहर ने कहा जी जरूरत नहीं महसूस करता हूँ है दुकान धंदा जमाने के प्रेम पाँच में ना भी पढो तो आप अपने ही क्षेत्र में काफी रुपया पैसा कमा सकते हैं । पिताम्बर ने और एक पैग लेते हुए कहा जी मैं कुछ समझा नहीं । रुपया पैसा कमाना कोई खेल नहीं है । इसमें तो सौ तिकडम, सौ झूठ चोरिया करो तभी कहीं पैसे बनते हैं । ये सब जीजा जी से नहीं होगा । सारा ने कहा भाई ठीक है, हम इन्हें बिजनेस के क्षेत्र में उतरने के लिए नहीं कहते हैं । परसों पी तू समझा रहा था कि राकेश चाहे तो यू छुट्टियों में चार पैसे कमा सकता है कैसे? पिताजी बीना ने अपनी यूज लेते हुए कहा, भाई राकेश ट्यूशन तो करता ही है, चार की करे या चालीस की । क्यों वो एक ट्यूटोरियल खोलकर कक्षाएं चलाई । अखबार में बडा सा विज्ञापन देते और निश्चित सफलता की गारंटी का लेबल चिपकाकर विद्यार्थियों को आकर्षित करेगा । मैंने सुना है कि इस तरह की संस्थाओं को सरकार भी सहायता दे दी है । फिर हिंदी के लिए तो राज्य व केंद्र सरकार अनुदान दे ही रही है । मैं एक उपमंत्री को जानता हूँ, हम उसे अप्रोज करेंगे । दो चार साल अगर यू खूब भाग पहुंच चलाएगा तो इसके पास पैसा ही पैसा है । मोदी राम ने अपना ग्लास खाली करते हुए कहा रेड आईडिया बीना की लग उठी । किशनदास ने वेटरों को कॉकटेल सर्व करने के लिए कह दिया । वीटर दौडा दौडा गया और वह जिन ऍम ब्रांडी व्हिस्की और बीएस ही बोदली उठा लाया और हर एक के गिलास में बारी बारी से डाले लगा । अब तक राकेश की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया था कि वह क्या पी रहा है । जब सब लोगों ने अपने अपने ग्लास भरवाये तब वेटर ने जो ही उसके गिलास में शराब उडेली चाहिए तो उसे गिलास पर हाथ रख दिया । किशन दास ने बोतल अपने हाथ में लेते हुए कहा, आप कॉकटेल ना लेना चाहिए तो विस्की ब्रांड जी या बीयर ही लीजिए । जी शुक्रिया । मैं शराब नहीं पीता । राकेश बोला कभी नहीं । मनोहर ने उच्च होकर पूछा जी, कभी नहीं पी कर तो देखिए । बडा मजा आएगा । डॅडी थोडी सी दे दीजिए । मनोहर ने किस अंदाज से कहा भाई, जो नहीं पीता हूँ, उनसे जबरदस्ती मत करो । मोदी राम ने अपने बेटे से गिलास टकराते हुए कहा बेटा कोको कोला दे दो, फिर तो सिगरेट भी नहीं देते होंगे स्थल काये । व्यक्ति ने अपना सिगरेट सुलगाते हुए कहा जी नहीं हाँ, तो बडे सात्विक पुरुष लगते हैं भूल से कलयुग में पैदा हो गए हैं तू काये । व्यक्ति ने कहा और एक ढाका गूंज उठा आपको डैडी का आइडिया कैसा लगा? बीना नहीं तली हुई मछली का टुकडा खाते हुए पूछा कौन सा वहीं ट्यूटोरियल वाला आइडिया राकेश को ऐसा लगा कि जैसे वो चारों तरफ से घिर गया है और घबराने से लगा है । उसे लगा जैसे पुराने जमाने में शत्रु किसी जा जा के किले को घेरकर अवरोध कर दिए थे और तरह तरह के बाडों से वो सीढी लगाकर किले पर फताह पाना चाहते थे । उसी तरह ये लोग भी उस पर अनवरत आक्रमण साहब करके उसके मन को अपने निर्थक तर्कों से जीत लेना चाहते हैं । इतना सोच कर ही जैसे उसका स्वाभिमान जाग उठा और उसने सोचा कि अब वो डटकर उनके प्रश्नों को अपने जवाबों से तोड दे । फिर उसे लगा कि इन लोगों के सामने क्या अपना तर्क पेश करना । ये तो नशे में चूर होते जा रहे हैं और कोई उसकी बाद ध्यान देकर भी नहीं सुनेगा । इससे तो वह चुप रह जाए तो अच्छा नहीं नहीं छुट्टी का मतलब होगा उनकी बातों से सहमत होना । जबकि उसे उनकी बातें और तीन लगती है । फिर क्यों वो अपनी सफाई पेश कर दी? उसने हम कार कर अपना गला साफ किया और जिसमें वाणी में कहा देखिए आज मैं जो कुछ भी करता है अपने मन के संतोष के लिए करता है । ये दौड, धूप, ये कर बंगला ये सब अपने आप को संतुष्ट करने के लिए उपलब्ध करता है उसे इससे एक प्रकार का सुख मिलता है इसलिए वो करता है और हर कोई अपने अपने सुख संतोष के लिए किसी माध्यम को ढूंढकर अपने अपने क्षेत्र में कूद बढता है । मैं समझता हूँ मैंने जो करियर चुना है वो मेरी आत्मा को संतोष देता है । दूसरों की नजर में मेरा कैरियर कैसा है ये जानने की मुझे कोई उत्सुकता नहीं चुकी । मैं जो कुछ भी करता हूँ मैं सिर्फ अपने संतोष के लिए करता हूँ । कुछ लोग रुपये पैसों के लिए जानवरों की तरह दौड धूप करते हैं और रुपयों के लिए हाय तौबा मचाते हैं । इसी में शायद उन्हें कुछ मिलता होगा लेकिन मुझे ये क्रीज लगता है और न तो मुझे रुपये पैसों के लिए हाई तो वही पसंद है और ना आएगी । अंधीदौड मुझे कुछ मिल रहा है उससे मैं संतुष्ट हूँ और उसी सौ तिकडम सौ चोरियां, झूठ करने की जरूरत नहीं महसूस होती है । जी ने महसूस हो वो करें । तालियाँ बज उठी और लोग वहाँ वहाँ करने लगे । राकेश को लगा कि उपस् थित लोगों ने उधर विद्यार्थियों की तरह बीज भाषण में तालियाँ बजा दी है और हूटिंग कर रहे हैं । उससे जलती हुई नजरों से सबको देखा और उसके जबडों की जुंबिश बढने लगी भाई लेक्चरर है क्या बोलते हैं आखिर विद्यार्थियों का दिमाग खोलते हैं बडी मेहनत करनी पडती होगी आपको सुना है आज कल के लडके मास्टर आॅफ हूँ की कोई जब नहीं करते हैं उन्हीं के सामने यू सिगरेट फूक धुआं उगल देते हैं कहकर किसी ने धृष्ट होकर राकेश की तरफ धोने का गोला दाग दिया । राकेश तिलमिला उठा । धोनी के कारण उसकी आखिर चलने लगी और उसने आदरणीय नेत्रों से सबको देखा उसका जी जहाँ की सबके ऊपर ठोक कर चला जाएगा । फिर बिना की तरफ देखकर वह कुछ बूझ आ गया । वही तो है जो यहाँ लाई है उसी के कारण ही दो उसे यहाँ आना पडा है और उसी के कारण ही तो उसे आज इतना कुछ सहना पडा है । अगर बिना की इन लोगों में दिलचस्पी ही नहीं होती तो वह इन लोगों के बीच छुट्टी बैठी ही नहीं । इनका अंधानुकरण करके कुर्ती पहनती बत्ती आती नहीं । उसी का झुकाव इन लोगों के प्रति सादा से रहा है । शादी के पहले तो उठाई शादी के बाद भी बना हुआ है । किसी की शह पाकर तो आज ये लोग उसकी खिल्ली उडा रहे हैं । अपना ही पक्ष दुर्बल हो तो सामने वालों से कैसे टक्कर ली जाए । कितने सालों से है अब यहाँ बीस बाईस साल से और मैं समझता हूँ कि आपका बाईस हजार भी बैंक बैलेंस नहीं होगा । बाईस साल और किस अंदाज की गर्दन हिल गयी । बहुत होते हैं । लोगों ने दो दस पंद्रह सालों में वो गुड खिलाकर दिए हैं कि हैरान रह जाना पडता है । दस पंद्रह साल पहले में सिर्फ दस हजार लाया था और आज मेरे पास कार है, बंगला है, अच्छा खासा चलता कारोबार है और एक तुम्हारे पिता थे जो खुद तो ठंडे आदमी ही थे । तुम भी संतोषी लगते हैं । राकेश ने पूछना चाहा कि आखिर आपकी इतनी तरक्की कैसे करे लेकिन उसे इस की जरूरत नहीं पडी । किशन दास ने बहते हुए स्वर में कहा पहले तो मैं अपने वह अपने रिश्तेदारों के नाम से इम्पोर्ट लाइसेंस लिए और मुनाफे पर जियो के क्यूँ बेच दिए तो जापान की जरी की तस्करी की । फिर जब देखा की धरपकड बढ गई है तो मैंने अगरबत्ती का कारखाना खोल दिया । अगरबत्तियां बनाने का फार्मूला इधर उधर से जानकर माल बनाया और बाजार में भेजा तो खपती नहीं हुई । फिर जब देखा कि हमारा माल मसूर अगर बत्ती वालों के सामने नहीं टिक पाएगा तो मैंने वहाँ के मैनेजर को दो सौ रुपये ज्यादा पगार का लालच देकर अपने कारखाने में बुला लिया । जब उसने मुझे सब कुछ सिखा दिया तो मैंने उसे लात मारकर भगा दिया । हम तो मेरा माल पूर्वी देशों को भी निर्यात होता है भाई हमने भी एका एक पैसा दादो से पकडकर जोडा है । शिकारपुर से जब हम यहाँ आये तब हमारे पास किया था कुछ भी तो नहीं । फिर जैसे जैसे व्यापार करने लगे, कपडे का व्यापार किया नहीं पाला तो झट कम बदल दिया और फिर दिन रात लगे साइकिल चलाने और लगे बडे ब्याज का धंधा कर में फिर जब देखा की वो भी हमें राज नहीं आ रहा है और पार्टियां फील हो रही है । तो अब जो दुकान है बोली दरअसल दुकान के मालिक पर हमारा दस हजार बकाया था और उसके पास देने के लिए फूटी कौडी नहीं थी । उसने हमें वह दुकान ले लेने को कह दिया । मगर हम क्या जाने बोल्ड क्या होता है और मतलब क्या होता है । इसलिए हमने उसे वर्किंग पार्टनर बना लिया और उससे हुनर सीखने लगे । जब हम माहिर हो गए तो हमने उसका मकसद को निकाल भारतीय फिर उस रेस बात को रखते भी कैसे? हमारी दुकान में से चोरी छिपे माल बेचकर वो पैसे अपनी जेब के हवाले करने लगा था और घुडदौड पर लगाने लग गया था । झट हमने पितांबर की पढाई छुडाकर उसी दुकान पर लगा दिया । तब मैट्रिक में जा ही रहा था । वैसे भी उसका पढाई में चार नहीं था इसलिए उसे दुकान पर लगा दिया । हम एक से दो हो गए और दुकान खूब चलने लगी । कोई तकलीफ नहीं हुई । पहले तो उसका मकसद के हवाले हजारों का माल छोड कर जाना पडता था इसलिए उसे चोरी का मौका मिल जाता था । मोदी राम ने कहा मेहनत करने वो दिमाग लगाने में क्या कुछ नहीं होता, लेकिन स्तान को चमन और नरक को स्वर्ग बनाया जा सकता है । टूल् काये व्यक्ति ने कहा राकेश का दिमाग भन्ना आने लगा । उसे जब देखा कि लोग अपने अपने ग्लास खाली करके खाने की मेज पर जाकर अपनी अपनी प्लेट में खाना उठाने लगे हैं तो वो भी उठकर उस तरफ जाने लगा

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लड़की की शादी होते ही और उसके ससुराल चले जाने पर किस तरह अपने पराए और पराए अपने हो जाते हैं, रिश्‍तों के इस भंवर को बीना न समझ सकी। और उसकी इस नासमझी ने पति-पत्‍नी के बीच दरारें आ गईं। उनके फूलों से सुखद जीवन में कांटों की चुभन पैदा कर दी। यह बात बीना को बहुत देर से समझ में आई कि उसके दांमपत्‍य जीवन में कटुता लानेवाली कोई और नहीं उसकी अपनी मां ही है। छोटी-छोटी बातों से गृहस्‍थ जीवन में किस तरह विष घुलता है और कैसे इससे बचा जा सकता है… इस उपन्‍यास में बड़ी रोचकता से बताया गया है। Writer: रा. श्याम सुंदर
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