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भाग - 03 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
लड़की की शादी होते ही और उसके ससुराल चले जाने पर किस तरह अपने पराए और पराए अपने हो जाते हैं, रिश्‍तों के इस भंवर को बीना न समझ सकी। और उसकी इस नासमझी ने पति-पत्‍नी के बीच दरारें आ गईं। उनके फूलों से सुखद जीवन में कांटों की चुभन पैदा कर दी। यह बात बीना को बहुत देर से समझ में आई कि उसके दांमपत्‍य जीवन में कटुता लानेवाली कोई और नहीं उसकी अपनी मां ही है। छोटी-छोटी बातों से गृहस्‍थ जीवन में किस तरह विष घुलता है और कैसे इससे बचा जा सकता है… इस उपन्‍यास में बड़ी रोचकता से बताया गया है। Writer: रा. श्याम सुंदर
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भारत तीन शादी के बाद एक हफ्ते के लिए बीना के मायके वाले राकेश के यहाँ आते रहे और बीना की ससुराल वाले उसके मायके जाते रहे । वैसे भी शादी में आए हुए नाते रिश्तेदार जब अपने अपने शहर जाने लगे तब इस विचार से की फिर जाने का भेंट हो । इसीलिए वर वधुओं को देखने वाले आती या उन्हें निमंत्रित करते थे । लेकिन जब शादी की भीड चली गई और जब बीना के मायके वाले बडे ही नाटक के ढंग से छोटे मोटे बहाने बनाकर आने लगे तो दमयंती को उनका आना खलने लगा । जब उसने सुना कि कौशल्य देवी इस राह से मार्केट जा रही थी और बेटी का मूड देखने चली आई है । दमयन्ती बिगड उठे कौशल्या देवी अगर कुमार पार्क से रोज दिन में दो चार बार सुबेदार शतरंज जोर से गुजरेगी तो दिन में दो चार बार बेटी का मुँह देखने चली आएंगी । ये तो किसी घर में ताक झांक कर देखना हुआ कि कोई क्या खाता है और क्या पहनता है । दमयंती का जोर से बडबडाते हुए देखकर राकेश ने कहा वहाँ धीरे से बोलो कहीं बिना सुन ली ये क्या बेटी देकर ऐसा पीछा कर रहे हैं जैसे हम उनकी बेटी को सुबह सुबह आ रही हूँ । हमारी भी शादी हुई थी । हमारी माने भी विदाई में बडे बडे मोती से आंसू बहाये थे । मगर मजाल है जो हफ्ते में एक बार से भी ज्यादा हमारे मोदी पाई हूँ । पहले हफ्ते में एक बार हमें बुलाकर हमारा मोड देख लेती थी । फिर पखबारे में एक बार बुलाने लगे । टी त्यौहार पर कभी हमारे ससुराल आई हूँ तो बात और है मगर कभी ऐसे ओछे बहाने बनाकर आइयो मुझे तो याद नहीं पडता जानती हूँ । हफ्ते पखवारे की ये छुट्टी भी हमें बडी मिनट अर्जुन के बाद मिलती थी । तेरी दादी बिगड उठती थी और कहती थी कि बेटी का इतना पीछा अच्छा नहीं और यहाँ तो मोटर में अगर घंटों बैठ कर बातें करती है बेटी का इतना पीछा करना अच्छा नहीं फिर बेटियाँ तो पराया धन होती है । उनका कन्यादान करने के बाद ये इतना पीछा किया कन्या हमें देखभाल कर दी है । हम उनकी बेटी को भगाकर नहीं लाए हैं जो इस तरह पीछे कर रही है जिसे चोर का पीछा किया जाता है । दमयन्ती बढ बोली थी और वो बात कर दे थकती नहीं थी । वैसे तो वर्षों से राकेश नाम इनती के साथ रहता आया है फिर भी राकेश को लगता है कि जब कभी किसी का कोई जिक्र छिड गया तो दमयंती ने उस बात को रबड की तरह खींच दिया जैसे लडकी रबर बैंड का एक छोड दादू में फंसाकर दूसरा छोड अंगुलियों में थाम लेते हैं और टून टून बजाते हैं । वैसे ही दमयंती भी बात को खींच खींच कर लम्बा चौडा कर के अपना राग अलापती रहती है । कभी कभी तो वह खींच उठता है उसके लिए बात छोटी वह दो टूक होनी चाहिए । वह रामायण महाभारत की तरह कोई भी घटना लम्बे ब्यौरे के साथ सुनने पर खूब उठता है । वैसे तो उसे माँ को बहुत बार टोका बीता माँ बात को इतना लम्बा चौडा क्यों बना रही हूँ? भेज भी दमयंती का स्वभाव नहीं बदला था । अब जब राकेश की शादी हो गई और उसे दमयंती को इतना लंबा प्रलाप करते देखा तो उसी पसीने छूटने लगे । वो आशंकित हो उठा कि कहीं बीना सुन लेगी तो जाने कौन सम महाभारत छिड जाएगा । इसलिए वो उठकर बाहर गली में घूमने निकल जाता है । पहले तो राकेश को लगा कि दमयंती बडबोली है लेकिन शादी के बाद उसे लगा कि दमयंती बडबोली ही नहीं, उसे अंटशंट बकने की भी आदत है और वो जो बोलने लगती है तो लोगों की परवाह नहीं करती और न तो यही देखती है कि कौन से बात की इस जगह पर बोली चाहिए । जहाँ भी जहाँ जब भी जहाँ जिसके सामने जी जहाँ वो बक नहीं लगती है । इसका नतीजा यह हुआ कि दमयंती वह बीना बात बात पर भडकने लगी । शादी हुए अभी एक माह भी नहीं हुआ था कि या तो तू तू मैं छेड जाती थी या फिर दमयंती सुखमणी उठाकर कोने में बैठी बुदबुदाकर पडी रहती थी और पूछने पर भरे बादल की तरह टनटन आंसू बरसाकर बीना के विरुद्ध चार्ज शीट पेश कर देती थी । उधर बीना खाना पीना छोड कर ही लेती बडी रहती थी और राकेश कुछ पूछने जाता था तो हाँ रूकती थी दमयन्ती पर यही अभी योग लगती थी कि दमयंती को उसके मायके के बारे में उच्च नीच भला बुरा कहने का कोई अधिकार नहीं है । इत्तेफाक से जब दोनों एक दूसरे को दोषी ठहराते हुए राकेश से न्याय की भीक मांगने लगती तो राकेश का माथा चकरा जाता । वो अपने आप को तराजू के काटे की जगह पर महसूस करता था और सोचता था कि अगर किसी एक की तरफ ज्यादा झुकने लगेगा तो दूसरा उस पर पक्षपाती होने का अभी योग लगा देगा । वैसे उसे लगता था कि कभी माँ की बातों में वजन है तो कभी बीना की बातों में वजन है और वह इस धर्मसंकट में पडने से बचने के लिए घर से बाहर निकलकर चला जाता था और पिक्चर देखकर या इधर उधर घूम घाम कर काफी रात गए लौट आता था । लेकिन इन सब बातों का राकेश को कुछ ढाई हाल सुनाई नहीं दिया । अक्सर दमयंती बीना के मायके वालों की धज्जियां उडाने के लिए मूंग की दो खोले बैठी रहती थी । वैसे भी कौशल्या देवी कभी जामुन पुडिंग बनाती या उनके यहाँ बम्बई के बीच आ जाते हैं या उसे सूरत के फूल मिल जाते तो बेटी को दे जाना नहीं भूलती थी, हैं ले आई बेटी को भी देते हैं लेकिन ये बात गुरूद्वारे में जाकर कह देती थी और दमयंती को कोई गुरूद्वारे में मिल जाता और टोंट करने लगता है तो क्या है? राकेश की माँ तुम तो रोज राकेश के ससुराल का माल उडा रही हूँ । सुना है रोज में माल पहुंचाया जा रहा है । तब दमयंती गुरूद्वारे में चुप रह जाती । मगर जब घर पे बीना होती और दमयंती की कोई सहेली बैठी रहती और राकेश के ससुराल से कुछ आ जाता तो वह फर्श पर पटक कर बिफर उल्टी देख लो । ये आए हैं आज की गोलियों जितने जामोद या ये आए हैं अच्छे से सूरन के फूल और अपनी सहेली को दमयंती उन सब चीजों का ब्योरा देने लगती जो जो चीजें शादी के बाद आई होती । इतना सुनकर बीना रोने लगती और राकेश दोनों में से किसी को चुप नहीं कर पाता था । आखिर एक दिन बिना तीज के दिन खाना खाने मई की गई और रात को नहीं लौटी । दूसरे दिन भी जब नहीं लौटी तो राकेश परेशान हो उठा । वो ससुराल चला गया । वहाँ कौशल्या देवी ने कोई बात नहीं छेडी सिर्फ बताया कि पिछले रात यु ही बिना को गहरा लिया था और जब निश्चित अवधि के लिए बिना को वही ढल जाने के लिए कह दिया है । राकेश झट भाग गया की माँ से होती निरंतर झडप से बचने के लिए कौशल्या देवी बीना से किनारा कर लेने के लिए कह रही है । लेकिन राकेश जिसकी नई नई शादी हुई थी और शादी हुए अभी दो महीने भी नहीं हुए थे और जिसने विवाहपूर्व नारी की बेहद गंदगी ना जानी थी उसके लिए अपनी पत्नी से दूर रहना दोपहर हो गया । रात को जब वो सोता तब उसे अपने जुडवा पलंग का बगल का खाली हिस्सा देखकर या अलमारी की रोड पर झूलती साडियो वो कोटिया देखकर बिना की याद आ जाती है । जब कुंवारा था तब एक तकिया, सीने से दवाई और एक जांगू के बीच दवाई होता था । लेकिन तब की बात और थी । अब तो झुंझलाकर राकेश तक ही फेंक देता । उसी रात रात भर बीना की देह अगर और उसकी घनी काली अल्को का अंधेरा सताने लगता । उसकी रातें करवटे बदलते बदलते गुजर जाती । दमयंति ने जब राकेश को खोया, कोई ऐसा देखा तो वह कडक कर रह गई । हाय जवान बेटे को कैसी बहु मिली है । जोबिया के बाद दो महीनों में ही माइके चली गई और आज छह दिन होने को आए हैं । लौटने का नाम ही नहीं ले रही है । बैठे बैठे दमयंती को आपने विगत जीवन का एक वाकया याद आ गया । वैसे तो जब दमयंती का दिया हुआ था तब वह शिकारपुर में मदरसे में पढ रही थी और उस अभूत उम्र में वो बिहार के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी । जब भी जहाँ भी ससुराल चली जाती थी और जब भी जहाँ था तो मायके भाग आती थी । उसे कभी माँ के साथ कभी सास के साथ सोने में बडा मजा आता था । तब तीर्थ दास की उमर भी चौदह साल थी । चार साल न जाने कैसे बीत गए । फिर जब उनका गौना हुआ तो तीस दास उसे मायके भेजने पर बिगड होते थे । एक बार दमयंती जब दूर दक्षिणी देसावर से लौटे अपने भैया के कारण रात को मायके में ठहर गई तो दूसरे दिन तडके ही उसके ससुराल से खबर आएगी । तीर्थ दास को जोरों का बुखार है । घबराओ ठीक और हडबडाकर लखी डर से तांगा करके मेंडू की हवेली चली गई । लेकिन जब तीर्थ दास को देखा तो उसकी हैरानी की सीमा ना रही । तीस दास चल फिर रहे थे । सात से पूछने पर उन्होंने कहा कि नहीं तो बहुत है । तीन से पूछती हूँ तुमने संदेशा भेजकर क्यों बुलवा लिया । लेकिन दमयंती ने कहा जाने दीजिए मांझी हूँ । जब रात को छत पर वो अपने कमरे में गई और उसने तीस हजार से पूछा तो उन्होंने कहा तो ये बुखार कौन उतारेगा? और दमयंती को अपनी बाहों में भेज लिया । आज भी दे ट्वेंटी की आंखों के सामने वो दृश्य खून जाता है । हाई कहीं मेरी वजह से तो बहुत मायके नहीं चली गई है । राकेश का उतरा चेहरा देखकर वो विचलित हो थी और जब राकेश रात को देर से आने लगा और एक आध बार उसके मुंह से सिगरेट की बदबू आने लगी तो दमयंती असमंजस में पड गई । उसने अपने बाल धूप में नहीं बताए हैं । वो काम की तरफ जानती है और ये भी जानती है कि तृप्त काम की अवस्था क्या होती है । फिर जब किसी को किसी का चस्का लग जाता है तो वो उसके लिए मारा मारा फिरता है । जब तक जवानी का जोश कम ना हो जाए तब तक कोई कैसे अपने साथी से जुडा हो सकता है । ये उम्र ही ऐसी होती है । इन्हीं दिनों दमयंती के बडे भैया दयाल बम्बई से आ गए । वो बम्बई में कपडे की थोक दुकानों के दलाल थे और अक्सर उगाई और ऑर्डर लेने के लिए दक्षिण का दौरा करते थे । उस साल में दो चार बार बैंगलौर आते थे । इस बार सीजन माना गया था और काफी उधार बकाया रह गया था । इसलिए वो इतनी जल्दी आ गए थे । वरना वो शादी के बहाने जब बंगलौर आए थे तभी ऑर्डर ले गए थे और उगाही करके गए थे । इस बार जब मुंबई वापस लौटने लगे तब उन्होंने दमयंती से कहा, बहन तुम भी बम्बई चलो हवा पानी बदलने के लिए बहुत दिन हुए तो मुंबई नहीं आई और फिर मैं वहाँ बच्चे भी बहुत याद करते हैं । दरअसल जब राकेश की शादी हुई थी तब दयाल के बच्चों के फाइनल एग्जाम थे और वह शादी पर नहीं आ सके थे । सिर्फ दयाल अकेले ही आया था । दमयंती ने कहा, मेरा भी जी यही चाहता है । फिर चलो ना सोच किस बात का? हाँ, यहाँ बीना भी नहीं है । राकेश ने डोका अरे मेरे जाते ही बिना भी भागी भागी आएगी । मतलब क्या है? तुम्हारा भरी बीटा कुछ भी नहीं । यही बहुत ममता खींच रही है । भतीजे भतीजी होगी बस इतना ही । लेकिन तो फिक्र मत कर । मैं तीनों को पहले बुलवा लेती हूँ, फिर चली जाऊंगी । राकेश खुश हो उठा । माँ जा रही है तो क्या बीना जो आ रही है । फिर माँ कौन कंधार जा रही है? यहाँ बम्बई तो जा रही है जब जी जहाँ उसे बोल वाले का या खुद बीस पच्चीस दिन रहकर वापस चली जाएगी । दमयंति ने नीचे उतरकर हॉस्टल से बिना के मायके को फोन किया और बीना से कुशल क्षेम पूछकर कहा, बेटी, मैं अपने भैया के सात मुंबई जा रही हूँ अब तुम आ जाओ । हाँ अभी आ रही उमाजी और फिर शाम को बिना आ गई और बिस्तर बंधवाने में दमयंती का हाथ बटाने लगी । उससे दमयंती के लिए रह में खाने के लिए जी चुपडी रोटियां बनाई और दो समूह मिक्सचर बना कर दिया । फिर जब वो रेलवे स्टेशन पर छोडने गई तब उसके घर भर में अकेले रहे जाने का स्वांग नहीं भरा और उसको आंखों से दो बूंद आंसू भी टपक पडेंगे । कौशल डीवी ने भी एक किलो बर्फी दमयंती को भेंट की । राकेश सरकती हुई ट्रेन में माँ को देखकर उदास हो उठा और दयाल मामा से आशीर्वाद लेते वक्त उसने भर्राए गले से कहा मामाजी माँ को जल्दी भेज दीजिएगा । दयाल मुस्कुरा कर रहे गए । अकेले घर में लौटते वक्त राकेश को माँ की या तो जरूर आई लेकिन जब बीना ने उसे अपनी बाहों में भेज दिया तो जैसे सुखसागर में किलो दे भरने लगा । राकेश के पहले तो सोचा की बीना को जब उसके बगैर अकेले घर में बैठना पडेगा और जब उसे दीवार खाने को दौडेगी तब वो उस से माँ को बुला लेने के लिए कहेगी । पैसे भरसक घर पर ही रहता था और जब देखता कि दोपहर के बाद एक ही पीरियड है तो पीडित भी पहले ही डिसमिस कर देता था और घर चला जाता था ताकि घर पर बैठे अकेली बीना ऊबना उठे । फिर वो चाट खिलानी उचित कुमार पेट के लिए जाता था या दो सौ खिलाने एम डी आर ले जाता था । शाम को सुविधा शतरंज रोड यह क्या गोडा रोड पर चहल करने के लिए उसे ले जाता था या फिर रात को इडली बडा डोसा खिलाने शराब काट डाली । ज्यादा था ऐसे एक कान के शब्दों में वह अपेक्षा करता की बीना शायद माँ को वापस बुला लेने के लिए कह देगी । लेकिन उसकी निराशा की तब सीमा नहीं रही जब उसने देखा की बीना उसकी माँ को नहीं अपनी माँ की चर्चा छेडे हुए हैं । अगर वो एक दिन अपनी माँ की सूरत ना देख पार्टी तो चिंतित होकर होटल से फोन करके माँ को कुशल शेम पूछ लेती हूँ । तब राकेश सोचने लगता काश बिना आपकी माँ का जितना ख्याल रखती है उतना उसकी माँ का भी खाया । जबकि क्या बीना अभी भी अपनी माँ को अपना और उसके बाप को पर आया ही समझती है? क्या साहस होने मात्र से उसी स्नेहा नहीं करना चाहिए और माँ होने के नाते कुछ पर असीम प्यार वह विश्वास उडेल देना चाहिए । ऐसा तो नहीं की बीना को दमयंती ने दुख दिए हैं या उसे सोए जुब आए हैं पिंक फिर क्यों वो उसे इतना नफरत करती है । वो तो ऐसा नहीं करता । अपनी सास को उतना ही अपना समझता है जितना वो अपनी माँ को समझता है । उसके लिए सात होने के नाते वो पढाई नहीं है । कभी कभी तो वह सोचने लगता है कि उसकी सास भी ममता की मूर्ति है । कौशल डिवीजन अपने बच्चों के लिए कपडे खरीदने जाती है तो उसके लिए भी कपडे खरीद करती है और मौका देखकर इस बहाने से उसे कभी चार कमीजों का कपडा थमा देती है तो कभी तेरी कोर्ट की पैंट पकडा देती है । कभी चार रुमाल देती है तो कभी चार बनियान । इतना ही नहीं उसे बम्बई के उसके साइज का रेनकोट मंगवा कर दे दिया । घर पर भी जो कुछ स्पेशल बनता है वह दामाद बेटी को खिलाने के लिए चली आती है । ऐसी कोई चीज नहीं जो हमें छोडकर खाती हूँ । बहुत कमंडल के ताजे फल हो या काबुल का सूखामेवा । जब तक वो उन्हें नहीं खिलाती है तब तक उनके हलक से नीचे नहीं उतरता । जब राकेश देखता है कि मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करके थोडे में इससे थोडा इन्हें खिलाने चली आती है तब उसका सिर श्रद्धा से नत हो जाता है । एक बार जब सवेरे आठ बजे के लगभग कौशल्या देवी चिकन पुलाव का पैकेट लिया और बोली वे सवेरे ही उठकर कंटोनमेंट गए थे और वहाँ खुद खाकर नाले वाले के पास से हमारे लिए भी ले आए तो मैंने सोचा कि हाथ को भी दो को और खिलाडी वैसे नाले वाले की दुकान पर उसने पुलाव कबाब खाया है, बहुत स्वादिष्ट बनता है । मगर जब देखा कि इतनी सी भी चीज उनके हलक से नीचे नहीं उतर दी है तो उसकी आंखें नम हुआई अचानक राकेश को अपनी माँ की आज सक आने लगी । हरित पिछले दो महीनों में दमयंती ने उसे एक ही खत्म लिखा है । उससे भी सकुशल पूछने वह खुश प्रसन्न होने की चार पंक्तियां लिख छोडी है । उसके बाद दमयंती ने एक भी खत्म नहीं लिखा है । माँ के बगैर दो महीने गुजर भी गए । जाने कैसे कितने दिन माँ को देखे बिना गुजर गए माफी कैसे रह पाई होगी । इतने दिन उसकी सूरत देखे बगैर जब यहाँ रहते वक्त किसी दिन देर से आता था तो कितनी बेचैन होती थी । अब उससे कैसे बिछुडकर रह पाई होगी । वहाँ राकेश लेटर पेड और कलम लेकर खत लिखने के लिए मेज पर रुक गया । खत लिखते समय उसने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं की माँ भी बीना के कारण घर छोड कर चली गई हैं और जब तक बिना घर पर है तब तक माँ भाई के यहाँ से आएगी ही नहीं । नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा । ऐसा हुआ तो लुका छुपी का ये खेल उसके लिए ऐसे है उठेगा वो शुद्ध हो उठा । ये लोग समझते क्यों नहीं की बेटा मां और पत्नी की पटरियों पर ही चल सकता है । पटरियां थोडी सी भी इधर उधर हुई नहीं कि बेटे के लिए जीना मुश्किल हो जाता है । जब बिहार के बाद बेटी होकर भी पीना आपकी माँ की सेहत की छाया नहीं छोड सकती तो जैसे अब की माँ की इसमें यहाँ हाँ चल की छाया छोड दे । उसे लगा शायद हाँ अपेक्षा करती होगी कि राकेश उसे लौटाने के लिए लिख भेजेगा । वृद्ध हो या जवान नारी नारी ही है । वो मान मनोवल की प्यासी रहती हैं । राकेश ने दमयंती को लौटाने के लिए खत लिख कर दिया और ये भी जोड दिया की बी नाम यहाँ अकेली हो गई है और तुम्हें हरदम याद करती रही है । इन दिनों राकेश को डाकिये का इंतजार रहता है । वैसे तो राकेश के नाम पर इतनी डाट नहीं आती, कभी कबार भूले बिसरे, किसी रिश्तेदार की कुशल क्षेम कि चिट्टी क्या बिहार मूरत के निमंत्रण पत्रिका आ जाती है । वो कुछ कहानी की मासिक पत्रिकाओं का चंदा भी देता था इसलिए कभी कभी पत्रिकाएं भी आ जाती थी । बैठा नाश्ता कर रहा था । बीना पीठ अच्छी बना लेती है, उसमें थोडा सा सांबर का मसाला और काजू के साथ उबालकर तेल डाल देती है तो बीडी बहुत स्वाद देती है और राकेश अंगुलियां जात कर खा लेता है । वैसे मिर्च ज्यादा नहीं खाता है लेकिन फिर भी जीत के स्वाद के कारण निकल जाता है । लेकिन दमयंती एक कोर मुंह में डालकर सीसी करने लगती थी और उसकी नाक की नौ पर पसीने की बूंदें उभर आती थी और उसकी आंखों के आंसू निकल आते थे । बहुत इतनी और वो झट एक घुट पानी पी लेती थी । आज भी राकेश की उपपीठ खाते वक्त माँ की याद आ गई और उसने सोचा कि माँ को खत ले के भी पंद्रह बीस दिन हो गए मगर उसने अभी तक जवाब ही नहीं दिया । क्या कारण होगा? कहीं माँ बीमार तो नहीं है? नहीं नहीं । अगर बीमार होती तो दयाल मामा जरूर इतना देते । फिर शायद वह नाराज हो गई हो । उसमें कहीं ऐसा निर्णय तो नहीं कर लिया है कि जब तक इस घर में बीना रहेगी तब तक वो अपने भैया की यहाँ ही रहेगी । इन दिनों वो अपने आप को एक अजीब कश्मीर कश्मीर आता है । लगता है कि एक किनारा जरूर टूटकर रहेगा । उसकी जिंदगी की शांत नदी, माँ और पत्नी के दो फूलों के सीमित थी । बह रही थी । तब ऐसा लग रहा है कि जरूर एक किनारा टूटकर रहेगा और उसकी जिंदगी बिखर कर रह जाएगी । कभी कभी इस विचार मात्र से वो घबरा उठता था । तीन दिन की आवाज सुनकर वो था उसे सोचा कि शायद डाकिया होगा । लेकिन एक खात्में, फोन का क्रेडिट और दूसरे हाथ में वायर पट्टियां और न जाने क्या क्या लिए । दो आदमी द्वार पर खडे थे, क्या चाहिए? उसने पूछा हम टेलीफोन फिक्स करने आए हैं मेरे यहाँ चकित होकर राकेश ने पूछा जी हाँ, लेकिन हमने टेलीफोन के लिए एप्लाई तो नहीं किया था । आपने टेलीफोन के लिए अप्लाई नहीं किया था, पर आपको टेलीफोन टेंशन हो गया । उन आगंतुकों में से एक नहीं विस्मित होकर कहा अरे घनचक्कर कई एड्रेस पडने में भूल ही हो गई । दूसरे आदमी ने कहा नहीं देखो यही तो है इस मकान का नंबर । ये देखिए आप के लिए ऍम ऑर्डर और ये फिक्सेशन ऑर्डर कहकर उसने पडोसी बढा दी । ये देवी जी यही रहती है । पहला बोला राकेश ने पर्ची लेकर देखी मकान का नंबर और गली का नाम तो ठीक है, लेकिन बीना ने अपने नाम पर टेलीफोन के लिए प्रार्थना पत्र दिया । सेंशन ऑर्डर कब आया और फिक्स डिपॉजिट के रुपये उसने कब अदा किए और कैसे अदा किये? अब तक वो इन सब बातों से अनभिज्ञ हो रहा था । जान पूछ कर उसे कहीं अंधेरे में तो नहीं रखा गया है । वो चीज उठा बिना तीन क्या है? इतनी चीखते चिल्लाते की हूँ? बीना आई और उससे रुष्ट होकर पूछा ये सब क्या है? किससे पूछकर तुमने टेलीफोन के लिए दरख्वास्त दी थी? राकेश ने खा जाने वाली नजरों से बीना को देखकर पूछा एक बार बीना से है मुझे फिर गिराती । स्वर में कहा पिताजी के इंफ्लूएंस से टेलीफोन जल्दी मिल रहा था । मान ने सोचा कि उसे भी बार बार आने की तकलीफ नहीं उठानी पडेगी और मुझे भी पंद्रह सीढियाँ नीचे उतरकर होटल में जाकर फोन करने की जरूरत नहीं पडेगी । वैसे भी तुम्हें मेरा होटल में जाकर टेलीफोन करना अच्छा लगता है । बकवास बंद करो । मैं पूछता हूँ कि तुम्हें टेलीफोन लगवानी की जरूरत कैसे हुई? तुम्हारे पैसों से नहीं लगा रही । मेरे पास अपने पैसे पडे थे । उसी वैसे मैंने फिक्स डिपॉजिट आदि के लिए रुपये भर दिए थे । मैं जान दी थी कि तुम से होंगी तो तुम इतने रुपये नहीं जुटा पाओगे । राकेश को लगा कि उसे किसी ने करारा चाटा मार दिया है । वो तिलमिला उठा । उसकी आंखे तिलमिला उठी और उसके जबडों में जुंबिश होने लगी लेकिन वो होटल नीचे चुप रह गया । टेलीफोन वाला चाटुकारिता के स्वर में बोला आपका नसीब अच्छा है भाई वरना टेलीफोन इतनी जल्दी किसी को नहीं मिलता है । कम से कम तीन साल लोगों को इंतजार करना पडता है । कहाँ लगाए? दूसरे ने पूछा । बिना ने मुस्कुराते हुए राकेश की तरफ देखकर पूछा कहां लगाई डाले राकेश के शरीर में जैसे चिंगारी हो गई । मुझे पूछती हूँ जहन्नुम में लगवा दो । उसने तीखे स्वर में कहा और वह अपनी जूते पहनकर घर से बाहर निकल गया । दोनों कर्मचारियों को ड्रॉइंग रूम में ले जाकर बीना ने कहा यहाँ इस कोने में लगा तो दोनों कर्मचारियों ने बोल से कनेक्शन लेकर टेलीफोन लगा दिया और बख्शीश लेकर चले गए । उनके जाने के बाद बीना नहीं नए चमचमाते टेलीफोन को ऐसे गोद में उठा लिया जिसे माँ अपने प्रथम नवजात शिशु को बडे ही लाड प्यार से गोद में उठा लेती है । उसने झट अपनी माइकी का नंबर मिलाकर धडकते हुए कहा हूँ । दूसरी तरफ से कौशल्य देवी ने टेलीफोन उठाया और उसे बधाई दी । वीणा ने थोडी देर माँ को ब्यौरेवार बताया कि कैसे टेलीफोन वाले टेलीफोन लगाते रहे । फिर उसने कहा मगर माँ को बहुत नाराज होकर चले गए । इसमें नाराज होने की क्या बात है । तुमने उसे फिक्स डिपोजिट के रुपयों के बारे में तो कुछ नहीं बताया ना । मैंने तो कह दिया कि मैंने अभी रुपयों में से डिपॉजिट के रुपये जमा कर दिए थे । बस इतना ही ना तो और कुछ तो नहीं बताया ना कि तुम्हारे पास और कितने रुपये हैं । नहीं तो बताना भी नहीं वरना बताने की डेढ होती है । बस फिर किसी ना किसी बहाने ये मर्द रुपये एक लेते हैं और वापस लौटाने का नाम ही नहीं लेते हैं । ये भी मुझे जाने कितनी बार जाने कितने रुपए ले चुके हैं । मगर लौट आते ही नहीं । मांगती हूँ तो बस टालमटोल करते रहते हैं । इनका ये हाल है तो राकेश का क्या हाल होगा । वो तो नौकरी पर लग जाने के लिए कह चुका है । इसलिए उसे अपनी जमा पूंजी मत बताना । इन मर्दों की सीईओ के गुप्त धन पर बुरी नजर रहती है । ठीक है मांग सवेरे से तुम आई नहीं । अब तो आ रही हो ना अब नहीं । अभी तारा के लिए महाराज जाने वाले हैं । उसे चार छह लडकों के जो पते दिए थे उनमें से सबकी दरियाफ्त करने पर एक का खानदान हमें बहुत पसंद आया है । देखो लडका कैसा है तो आज नहीं आओगी । माँ नहीं नहीं शाम को आई हूँ । अच्छा फोन रख दु दो बिना ने फिर अपनी उन सहेलियों के फोन नंबर मिलाएं जिनके पास टेलीफोन था । जब सबको फोन कर चुकी तब उसका जी जहाँ की वह राकेश के कॉलेज में भी फोन करके उसे जल्दी घर लौट आने के लिए कह देगा । आज उसकी खुशी का कोई सीमा नहीं थी । उसके हाथ तो जैसे जादू की छडी लग गई थी । घर में अकेली बैठे बैठे वो अक्सर ऊंट जाया कर दी थी । तब उसका जी चाहता था कि किसी के साथ बैठकर जी खोल कर पाते करें । उसे तमिल, तेलुगु या कन्नड ज्यादा नहीं आती थी । इसलिए वो पडोसियों से बातें करने में हकलाने लगती थी और घर आकर चारदीवारी से घिरी घुटी घुटी बैठी रहती थी । उसे कभी कभी लगता था की ये चारदीवारी ही रह गई हैं उससे बातचीत करने के लिए । अब तो वह जब भी चाहे जिससे भी चाहे बातचीत कर सकती हैं । कपडे बदलकर कहीं दूर जाने की भी जरूरत नहीं है । बिना ने डायरेक्ट्री में से राकेश के कॉलेज का फोन निकालकर मिलाया तो उसे जवाब मिला कि राकेश कॉलेज ही नहीं आया है । वो निराश हो थी । खुद तो टेलीफोन नहीं लगवाया । अगर उसने अपने पैसों से टेलीफोन लगवा लिया तो इसमें राकेश को नाराज होने की क्या जरूरत है । उसी लगा की काफी देर से उसने टेलीफोन तो कई किए मगर उसे कोई भी फोन नहीं आया है । आएगा भी कैसे लोगों को उसके फोन का नंबर मालूम पडे । तब ना उसने वो नंबर लगवाया जिससे वो खुद अपने ही नंबर पर घंटी बजती है । घंटी सुनते ही बिना किलक उठी और उसने चोंगा उठा लिया । हैलो हैलो कहकर वह स्वयं ही मुस्कुरा पडी । तारा के लिए सुंदर महाराज ने जो लडका सुझाया था वो किशन चंद का बेटा था और वह मेरे ससुर के रहने वाले थे । मैसूर में उनकी अगर बत्ती की फैक्ट्री थी । लडका दिखाने के लिए सुंदर महाराज, मोदी राम, कौशल्या देवी और पीतांबर को मैसूर ले गया और वहां उन्हें सीधा फैक्ट्री ले गए । किशनचंद खुद एक कमरे में बैठ कर अगरबत्ती का मसाला तैयार करवा रहे थे । अक्सर अगरबत्ती का मसाला बनाने की विधि को गुप्त ही रखा जाता है । उसमें जो कुछ मिलाया जाता है और जिस अनुपात में मिलाया जाता है उसका फार्मूला अति गोपनीय रहता है और हर एक बच्चे का मालिक अपने सामने अगर बत्ती का मसाला तैयार करवाता है वो बंद कमरे में बैठ कर किसी से अगर बत्ती की मार्केट बनी रहती है । किशनचंद की फैक्ट्री का नाम हिंदुस्तान भर में मशहूर था और उनकी फैक्ट्री में बनी गुलाब अगर बत्ती और रात की जानी अगरबत्ती काफी तादाद में देखती थी । जब मोतीराम मैसूर किशनचंद की अगर बत्ती फैक्ट्री में गए तब किशनचंद कमरे में बैठकर मसाला तैयार करवा रहे थे और उनका बेटा मनोहर बेटा हिसाब किताब एक रखा था । मनोहर ने झट अपना कैबिन कर्मचारी से खुलवाकर उन्हें उसने बिठाया । उनके लिए एक कर्मचारी को मिठाई लाने के लिए दुकान पर भेजा और दूसरी लडकी को कोको कोला लाने के लिए दौडाया । फिर उसने अपने धंदे की बारी सुनाते हुए बताया कि पढने में उसका चार नहीं था और उसने मैट्रिक भी पास नहीं किया था कि वह बिजनेस में उतर पडा । कौशल्या देवी को इस बात का रंज भी नहीं हुआ । वैसे भी वो कहती थी कि पढकर डिग्री लेकर चार्ज नहीं है क्या चार पैसे हो, सुख सुविधाएं हो यही बस । वैसे भी उन्होंने देखा कि किशनचंद की अपनी ऍम है और वो उनके कोपर में उन का आलीशान बंगला है । किशनचंद अपने कमरे से निकले और टंकी के सामने साबुन के हाथ धोकर जब आए तब तक और मिठाई आ चुकी थी । किशन चंद्र ने खाने के लिए अनुरोध किया तो लिया टीवी सब कुछ आ उठी हम कैसे खायेंगे कल अगर बेटे का इस रात के बेटे से हो गया तो अभी तो नहीं हुआ है ना । हाँ भाईचारे के हिसाब से लीजिए । मोदी ने नि संकोच मिठाई का खतरा उठा लिया और मुँह में डाल लिया । कौशल्या देवी बिगड उठी ये क्या क्या हरे भाई कन्यादान के बाद बंदिश लगा देना हम तो खाने दो हस्ती मोतीराम ने कहा खिलाएंगे तो सादा तो आप खा लीजिए कहकर किशनचंद नी कुकू खोला बढा दिया । इतने में घंटे बज उठी और दोपहर के भोजन के लिए पचास आदमी कारखाने में से निकल पडे । कौशल्या देवी उन्हें देख कर दंग रह गए । जब किशनचंद ने उनसे घर चलने के लिए कहा और कौशल देवी मना कर के लगी तो उन्होंने अपने घर पर फोन किया और फिर उनकी धर्मपत्नी ने कौशल्या देवी को सहेली समझकर घर आने के लिए निमंत्रित कर दिया । बना बनाया तो पहले से ही हमें तो सिर्फ तमाशा देखना है । किशनचंद ने गंभीर होकर कहा जब जब जहाँ जहाँ नाते की दूरी बंद जानी होगी तब तब खुद ही बन जाएंगे । किशनचंद अपनी दोनों गाडियों में कौशल्या देवी, मोतीराम, पितांबर, सुंदर महाराज और मनोहर को बिठाकर अपने बंगले ले गए । बंगले पर ड्रॉइंग रूम में रेडियोग्राम, डाइनिंग रूम में ब्रिज और किचन में गैस्ट्रो और बेडरूम में वॉडरोब देखकर कौशल्य देवी प्रसन्नता से नाच उठे । लौटे वक्त जब लडका लडकी दिखाने की रस्म अदायगी के लिए दिन मुकर्रर किया गया तो कौशल्या टी वी बार बार यही सोचने लगी कि काश उसने उतावली करके बीना को राकेश से ना बांदिया होता और उसके लिए भी ऐसा ही घर ढूंढ लिया होता । एक बेटी के नसीम में इतना इश्वरीय, इतनी सुख सुविधाएं और दूसरी की नसीब में सिर्फ अभाव ही अभाव उनकी आंखों से आंसू ढुलक पडे और उन्होंने अपने आंचल से चेहरा पूछ लिया । माँ का बांद्रा मन वो अपनी संतान को एक से बढकर दूसरे को सुखी संतुष्ट देखना चाहती है और अपनी संतान को सुख संपन्न देख कर अपनी आंखें ठंडी कर लेती है । इस बात की कौशल्या देवी को अत्यधिक खुशी थी कि तारा बिना से भी ज्यादा सुखी संपन्न घराने में जा रही है और इस बात का दुख भी था की बीना को सुखी संपन्न घराना नहीं मिला । माँ का बाबरा मान अपनी बडी बेटी के लिए कल आपने लगा और वह सोचने लगे कि काश बिना को उस कंगले दरिद्र पंडित के मत्थे ना मट्टी । वो अपनी आपको गुनेहगार महसूस करके बिलख नहीं लगी ।

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लड़की की शादी होते ही और उसके ससुराल चले जाने पर किस तरह अपने पराए और पराए अपने हो जाते हैं, रिश्‍तों के इस भंवर को बीना न समझ सकी। और उसकी इस नासमझी ने पति-पत्‍नी के बीच दरारें आ गईं। उनके फूलों से सुखद जीवन में कांटों की चुभन पैदा कर दी। यह बात बीना को बहुत देर से समझ में आई कि उसके दांमपत्‍य जीवन में कटुता लानेवाली कोई और नहीं उसकी अपनी मां ही है। छोटी-छोटी बातों से गृहस्‍थ जीवन में किस तरह विष घुलता है और कैसे इससे बचा जा सकता है… इस उपन्‍यास में बड़ी रोचकता से बताया गया है। Writer: रा. श्याम सुंदर
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