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धार तीन । पिता जी की सोच अच्छा फिर बहू मैं चलती हूँ तो अभी आप कहाँ जाने के लिए तैयार हो गई हूँ घर जाने के लिए और कहा घर तो चाहिए आपका घर नहीं नहीं । शिखर बेटी ऐसी कोई बात नहीं है । ये भी मेरा ही घर है । लेकिन लेकिन क्या काफी दिन हो गए हैं और फिर विजय का फोन भी आया था । घर आने के लिए बोल रहा था । जिंदा रही तो फिर जरूर आउंगी । वजह कैसी बातें कर रहे हो? अरे मारे आपके दुश्मन आपने कभी पीकू की शादी अपने हाथों से करनी है । अरे बेटी, मेरा कौन दिल मरने को कर रहा है । हम तो क्या करूँ । इस उम्र पर किसी का बस नहीं चलता । हम मरने की उम्र भी तो हो चुकी है और मेरा बस चले तो पीकू तो क्या इसके बच्चों की शादी भी में अपने हाथों से करना चाहूंगी? ममता बेटी अपना ख्याल रखना हाँ बुआ जी जरूर और हाँ आपने जो मुझसे कहा था वो याद है ना कि वो भी भूल गए क्या पास मुझे पता था आप अपना वादा भूल जाओगे । मुक्ता बेटी तो मैं तो पता ही है कि मेरी उम्र ज्यादा हो चुकी है और इस उमर में ज्यादा कुछ याद नहीं रहता है । अरे कहीं तुम विजय की कहानी के बारे में बात तो नहीं कर रही? हाँ बुआ जी कॉमेडी उसे मैं बिल्कुल नहीं बोली । मैं जब भी कभी समय मिले तो मेरे पास आ सकती हूँ । लेकिन जरा जल्दी आने की कोशिश करना जल्दी क्यों हुआ? जी अरे नहीं, मैं उससे पहले भगवान को प्यारी हो गई तो तुम्हारी कहानी वाली किताब शुरू होने से पहले ही बंद हो जाएगी । बुआ जी, आप भी ना ठीक है, मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगी । आप चिंता ना करें । विजय की कहानी तो मैं जरूर लिख होंगे । फिर ठीक है आपको बेटा हम भी अपना ख्याल रखना और जो बात मैंने समझाई है उस पर जरूर गौर करना चीज वाली ठीक है । फिर मैं चलती हूँ । रिपोर्ट क्या हुआ को आपको बस स्टैंड तक छोड देगा । ये ठीक रहेगा । मैं रास्ते में अपने गुरूजी के आश्रम भी होंगे । कितने सालों से मैं उनके आश्रम में नहीं गई । कौन से गुरुजी, बुआ जी, दयाल गुरु के आश्रम अब ये कहा है तो उनके बारे में नहीं जानती होगी । उनका हमारे शहर में तो बहुत बडा आश्रम है लेकिन आपके शहर में अभी बन रहा है । लेकिन वो आपने तो कभी उनके बारे में कोई बात नहीं । बात नहीं की से तुम्हारा क्या मतलब है कि आपने तो उनके बारे में कभी बताया नहीं । अब इसमें बताने वाली क्या बात है? मैंने और मेरे पूरे परिवार नहीं । उनसे नाम दीक्षा ली हुई है । फिर आप मुझे जाने दो समय भी काफी हो गया है और फिर जाते जाते गुरु जी के दर्शन करते हुए भी जाना है । ठीक है वो मैं आपको बुलाती हूँ, आपको कार में छोड आएगा । कुछ देर बातें करने के बाद बुआ जी मेरे साथ बस स्टैंड की और निकल पडे बोलो जी किस और जाना है बेटा पहले तो दयाल गुरु जी के आश्रम की और जाना है और ये कौन है? बुआ जी ऍम गुरु जी के बारे में नहीं जानते हैं । नहीं कौन है ये और क्या काम करते हैं बेटा ये बहुत बडे संत हैं । हमारे शहर में इनका बहुत बडा आश्रम है और देश विदेश में न जाने इनके कितने आश्रम है । अब इनका एक भव्य आश्रम तुम्हारे शहर में भी बन रहा है । अब यहाँ आई हूँ तो बाबा जी के इस आश्रम के दर्शन जरूर करना चाहती हूँ । हुआ जी आप भी किन किन बातों पर विश्वास करने लग गई हैं । क्यों मीटर क्या बुराई है इन बातों में? धर्म है हमारा । हमें अपने धर्म की पालना करनी चाहिए । बाबा जैसे लोग जो हमें धर्म का मार्ग दिखाते हैं वो पूजनीय होते हैं । उनकी पूजा करनी चाहिए । बुआ जी इन सब बातों में मैं आप से किसी प्रकार की कोई बहस नहीं करना चाहता हूँ । आपको उस बाबा के पास जाना है । शौक से जाओ । मुझे उन में कोई दिलचस्पी नहीं है । बेटा ऐसा नहीं बोलते हैं, जिस बाबा के बारे में तुम ऐसा बोल रहे हो । शायद हम उनके बारे में कुछ नहीं जानते हैं और अगर तुम उनके बारे में जान जा हो गई, उनके बारे में कभी ऐसा नहीं बोलोगे । ऐसी क्या खास बात है आपकी दयाल गुरु में बेटा जी ऐसी बहुत सी बातें हैं जो उन्हें बाकी के साधु संतों से अलग करती हैं । जैसी जैसे कि उनके जन्म को ही ले लो । दयाल गुरु का जन्म अज्ञात है । यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है । मतलब मैं तो समझा नहीं । मतलब ये कि दयाल गुरु जी के जन्म के बारे में संशय है । कहा जाता है कि वह करीब नौ सौ साल तक जिंदा थे । गुरूजी के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग अलग मत हैं । कुछ लोग उनका ढाई सौ साल तो कुछ लोग पांच सौ साल जीवन मानते हैं । मैं नहीं मानता हूँ ये कैसे हो सकता है । कोई इंसान नौ सौ से हजार साल कैसे जिंदा रह सकता है? बेटा बिल्कुल ऐसा हो सकता है । कठिन तपस्या और भगवान की भक्ति से कुछ भी संभव है । उनके भक्तों के अनुसार गुरु जी अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बडे प्रेम से मिलते थे और सब को कुछ ना कुछ प्रसाद अवश्य देते थे । साथ देने के लिए गुरूजी अपना हाथ ऐसे ही खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल मेरे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे । लोगों के मुताबिक वो किसी महिला के डर से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे । यमुना के किनारे वृन्दावन में वह तीस मिनट का पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे । गुरूजी को जानवरों की भाषा समझ में आती थी तो खतरनाक जंगली जानवरों को पलभर में काबू में कर लेते थे । लोगों का मानना है गुरु जी को सब पता रहता है कि कब कौन कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई । गुरूजी का जीवन बहुत सरल और सौम्य था । वो फोटो, ऍम रेट और टीवी जैसी चीजों को देख अचम्भित रह जाते थे । वो उसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे । लेकिन आश्चर्य की बात ये थी उन का फोटो नहीं बनता था । वो नहीं चाहते तो रिवॉल्वर से गोली नहीं चलती थी । उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था । हमारे शहर में गुरु जी का बहुत बडा आश्रम है और तुम्हारे शहर में भी बन रहा है । बुआ जी अपने गुरु के बारे में बातें करती रही और मैं उनकी बातों को अनदेखा करने की कोशिश करता रहा । मैं इन सब बातों पर विश्वास नहीं करता था । वो शायद इसलिए क्योंकि मैं हर बात को आंख बंद करके विश्वास करने के बजाय पहले उसे विज्ञान की कसौटी पर पडता हूँ । बुआ जी जो बातें अपने गुरूजी के बारे में बता रही थी, वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं थी । जैसे कि उन के अनुसार उनके गुरु नौ सौ से हजार साल तक जीवित थे और उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था । लेकिन इसके बावजूद मैं बुआ जी के साथ इस विषय पर कोई बहस नहीं करना चाहता था क्योंकि मेरी और बुआ जी की उम्र में काफी अंतर था और अगर मैं उन्हें को समझाने की कोशिश भी करता तो जाहिर है वह मुझे बच्चा समझकर मेरी बातों को अनदेखा करते हैं और फिर उनकी निजी सोच थी । मैं उसे बदलना भी नहीं चाहता था । मैं चुपचाप उनके साथ उनके गुरु जी के नए नए आश्रम में चलने के लिए मैंने हामी भर दी । कुछ समय के बाद हम आश्रम में पहुंच गए । आश्रम का नजारा मेरी सोच से कहीं अलग क्योंकि आश्रम जैसी किसी जगह का नाम आते ही मेरे जहन में जो उसकी छवि बनी हुई थी, वो छडी असल में इसके बिलकुल विपरीत थी । आसाराम लगभग तीन या चार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था, जहां अलग अलग छोटी बडी, कई इमारतें, आश्रम के मुख्य इमारत किसी पांच सितारा होटल से कम नहीं थी । क्या हुआ? क्या देखे जा रहा है? बुआ जी ने मुझे कहा कुछ नहीं, बस आपके गुरुजी का आश्रम देख रहा था । देखा ना कितना विशाल और सुंदर है । अरे ये तो कुछ भी नहीं । गुरुजी का जो मुख्य आश्रम हमारे शहर में है तो इस से भी कई गुना बडा और विशाल है । उसके सामने कुछ भी नहीं है । इसके बाद बुआ जी अपने गुरु कि ख्याति का बखान करने लग गई और उनकी दयालुता के बारे में बडी बडी बातें करने लग गई । लेकिन मुझे एक बात परेशान कर रही थी वह यह कि इन लोगों को ऐसी विशाल इमारतें जिन्हें वह आश्रम कहते हैं उसे बनाने की जरूरत क्यों पडती है और अगर बना भी लेते हैं तो उससे बनाने के लिए उनके पास पैसा कहाँ से आता है । यकीनन हम जैसे बेवकूफ लोग ही होंगे तो इन जैसों के झांसों में आकर अपनी धन संपदा इन पर लौटा देते होंगे । मुझे इन सब से क्या लेना देना, ये सब तो अपने अपने विचारों का निर्भर करता है और मेरे विचार में और गुरु के भक्त यानी बुआ जी के विचारों में बहुत पर वही आश्रम को तीर्थस्थान समझकर घूम रही थी और मैं उसी स्थान को एक मनोरंजन के साधन वाली जगह समझकर उसका लुक्स ले रहा था । हमेशा बेशक मुझे सब अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मैं इन सब बातों को लेकर बुआ जी से बहस नहीं करना चाहता था । कुछ देर वहाँ घूमने के बाद हम लोग वहाँ से बस स्टैंड की और रवाना हो गए और बुआ जी को बस में बैठाकर उनसे विताली बुआ तो चली गई लेकिन ना लेकिन उनके गुरु की बात है और उनकी धन दौलत जैसे कई सवाल मेरे दिमाग में हलचल मचाने के लिए छोड गए । जैसे कि बुआ जी के अनुसार उनके गुरु की उम्र के बारे में सही से पता नहीं ढाई सौ पांच सौ साल या पर नौ सौ साल तक भी हो सकती है । ऐसा हो सकता है जैसे कि इनके पास इतनी धन दौलत कहाँ से आई और क्यों आज इससे की उन्होंने लगभग हर शहर में उतने बडे बडे आश्रम बना डाले । अगर वह सन्यासी हैं तो उन्हें इतनी धन दौलत और इतनी विशाल इमारतें जिन्हें वहां हम कहते हैं, उस की क्या जरूरत है? मैं वहाँ से घर आ गया । अपने कमरे में जाकर चुपचाप बैठ गया । अभी शिखर ना मेरे कमरे में आई और मुझे यूं चुपचाप बैठा देख उन्होंने मुझे पूछा क्या हुआ अभी को? बेटा चुपके से अपने कमरे में आकर क्यों बैठ गए हो? कुछ नहीं रहा बस ऐसे ही पिता कुछ बात तो है । तुम्हें पता है ना कि तुम मुझसे कोई बात छुपा नहीं सकते हैं । कोई खास बात नहीं हमारा वो मैं बुआ जी को छोडने गया था तो रास्ते में वो अपने किसी धार्मिक गुरु के नए बन रहे आश्रम में लेकर चले गए । फिर लेकिन तुम इतने गुमसुम होकर के बैठे हुए हो और तुम्हारे गुमसुम होने की ये वजह तो हो ही नहीं सकती है । बात क्या है वो वहाँ पहली बात तो ये है कि जैसा आप सोच रहे हैं मैं कोई कुमकुम या उदास होकर के नहीं बैठा हुआ । मेरे कुछ देख कर उसके बारे में सोच कर धारण हो गया हूँ । ऐसा क्या देखा है जिसके बारे में सोच करता हूँ, हैरान हो गए हो । यही की वो आश्रम तो बस नाम का आश्रम था । भाव आश्रम में किसी पांच सितारा होटल के जैसी सारी सुविधाएं मौजूद थे । वो आश्रम बहुत बडी जगह में फैला हुआ है । जगह जगह पर सुंदर फूलों के बागीचे लगे हुए थे । बाल मिलाकर बहुत ही सुख सुविधाओं से लैस था, जिससे वो कोई धार्मिक जगह, काम और घूमने फिरने और शहर गाह जैसी जगह ज्यादा लग रही थी । बस इतनी सी बात तो इसमें हैरान होने वाली क्या बात है? आजकल के आश्रम तो ऐसे ही बडे बडे होते हैं । इसमें ज्यादा हैरान होने वाली क्या बात है? लेकिन हाँ बेटा मैं तुम्हारी हैरानगी की वजह समझ सकती हूँ क्योंकि आखिरकार तो मैं अपने पिता यानी चीजों का ही खून हो । हमारी ये सोच हमें विरासत में जो मिली है । ऐसी सोच के पीछे पिताजी कैसे आ गए? बेटा शायद हम नहीं जानते हैं । हमारे पिता भी ऐसी ही सोचते थे । वो भी बात बात पर इन धार्मिकता की आड में छोटे व्यापारियों के खिलाफ बोला करते थे । धार्मिकता की आड में छिपे व्यापारियों से आपका क्या मतलब है? और पिताजी की क्या सोचती बेटा धार्मिकता की आड में छिपे व्यापारियों से उनका मतलब बोलो । इनका काम धर्म की आड लेकर यू कहलो कि भगवान का नाम लेकर भोले भाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं और काम दक्षिण के रूप में उनसे पैसे लोग थे । तुम्हारे पिताजी ऐसे लोगों के सख्त खिलाफ थे और जब भी उन्हें कभी मौका मिलता है तो ऐसे लोगों के खिलाफ अपने विचार जरूर देते हैं और लोगों को ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह देते हैं । लेकिन हाँ ऐसे लोग खोले वाले लोगों को अपने झांसे में कैसे ले लेते हैं । ऐसे लोग किसी के पास नहीं जाते बल्कि लोग ही बेवकूफ होते हैं । उनके झांसे में आने के लिए इन लोगों के पास खुद चलकर आ जाते हैं । लेकिन क्या सभी धार्मिक लोग ऐसे होते हैं नहीं लेता हूँ । सभी लोग ऐसे नहीं होते । वो जैसे ही समझ भी होते हैं लेकिन लोग लोग उनके पास जाना पसंद नहीं करते । वो क्यूँ क्योंकि लोगों को उनकी बातें पसंद नहीं आती । भोग्यो ऐसी बातें करते हैं वो मैं तो मैं एक उदाहरण द्वारा समझाती हूँ । एक बार एक बूढी औरत गलती से असली संत के पास चली गई और अपने बहु की शिकायत करने लगी । कहा की बहु ने बेटे को बस में कर रखा है, कुछ खिला पिला दिया है । इन जानती है उसकी कार्ड चाहिए । फिल्म मतलब फिल्म मतलब की या जादू टोना हूँ । अच्छा फॅमिली वाले संतरे । क्या कहा असली संते कहा कि माता जी या बूढी हो गई है । भगवान के भजन कीजिए बेटा जिंदगी भर आपके पल्लू से बता रहा अब उसे जो चाहिए वो खुद रतन उसकी बीवी के पास है । आज की बहूऍ नहीं जानती अगर आपकी बेटे से वाकई मोहम्मद है तो जो औरत उसे खुश रख रही है से आप भी खुश रहिए । फिर फिर क्या बूढी और घर वापस आकर उस असली बाबा को को सही है तो हकीकत बयां कर दी । जबकि वो चाहती थी कि बाबा कहे कि हाँ हमारी बहुत रोना टोटका जानती है । बाबा उसे होना तोडने का उपाय बताते और पैसा लेते लेकिन बाबा ने ऐसा नहीं किया । फिर क्या हुआ? फिर क्या होना था? बाबा की बात शंकर वो और अब और जल भुन गयी वो क्यूँ? क्योंकि इस औरत वो नकली बाबा चाहिए असली नहीं । ऐसे एक औरत भी असली बाबा के पास चली गयी । कहने लगी सास ने ऐसा कुछ कर रखा है कि मेरा पति मुझसे ज्यादा अपनी माँ की सुनता है, उसी का कहाँ मानता है । फिर असली बाबा ने क्या कहा? इसलिए बाबा ने कहा हम तो कल की आई हूँ अगर तुम्हारा पति माँ के जब करता है, माँ की बात मानता है फख्र करो के तुम श्रेष्ठ पुरुष की बीवी हूँ हम पतिदेव से ज्यादा सेवा अपनी सास के क्या करूँ हमसे भी भगवान खुश होंगे । फिर वो और अभी उस बूढी औरत की जैसे उस असली बाबा को को सही थी क्योंकि वो चाहती थी कि बाबा उसे कोई ताबीज मंत्र लिखकर दे । इसे वो मुझे खोलकर चला रहे हैं ताकि वो अपने पति को अपने पश्चिमी कर सके । मगर असली बाबा ऐसा कुछ भी नहीं किया और इसके उलट उसे ही नसीहत दे डाली । उसे भी असली नहीं नकली बाबा चाहिए था । इसी प्रकार एक व्यक्ति था । उसे कैंसर हो गया और वो भी असली बाबा के पास पहुंच गया और असली बाबा से कैंसर के इलाज के बारे में पूछने लगा । बाबा ने उसे डांटकर कहा, भाई इलाज कराओ, भूत से भी कहीं कोई बीमारी अच्छी होती है । हमारे पास तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नहीं है । हम रूहानी बीमारियों का इलाज करते हैं, आपके लिए प्रार्थना कर सकते हैं लेकिन इलाज तो आपको करवाना ही पडेगा । चाहूँ अस्पताल हूँ । फिर क्या हुआ? हो रहा क्या है? उसे भी वो असली सनसेट हो गई और उसके बारे में सबको कहने लगे की ये नकली बाबा है । नकली सब है होंगी है वह आवाज आ रहा वो कुछ जानता मानता नहीं है । ऐसे ही एक और महाशय चले गए असली समझ के बाद और कहने लगे बन्दे ने घाटा जा रहा है तो दुआ कर दो संतरे का दोबारा से क्या होगा? बंदे पर ध्यान दूँ हम जैसे बाबा फकीरों के पास बैठने की बजाय दुकान पर बैठ हूँ । बाजार का जायजा लोग क्या चल रहा है हो हमारा कारोबार कैसे चलता है? वो वहाँ से भी सबसे खूब चलेंगे क्योंकि वो भी चाह रहे थे कि बाबा कोई दुआ पड देंगे या कुछ शादी वगैरह बना कर दे देगी ऍम इस तरह के लोगों को झूठे दिलासे नहीं देते । इसलिए बेटा जी लोगों को असली बाबा ऍम इश्वर के असल बंदे नहीं चाहिए । उन्हें तो नौटंकी करने वाले ढोंगी बाबा लोग चाहिए नहीं । फकीरों और साधु संतों की हलचल इसीलिए संसार में ज्यादा है तो ये लोग झूठ सुनना चाहते हैं । झूठ पर यकीन करना चाहते हैं । झूठे दिलासों में मुझे ना चाहते हैं । दो लाख बार कह दिया ये बाबा फर्जी है, वो वाला होंगी है लोगों को वही वाला ढोंगी बाबा चाहिए तो बीमारी ठीक कर देंगे, ताबीज बना देंगे, पैसा लेता रहे । जो असली संत होगा वो आपको झूठा दिलासा नहीं देगा बल्कि आपको सही रहा बताएगा । हाँ आपने तो मेरी आंखे खोलते हैं मेरा असल में तेरी आके मैंने नहीं बल्कि तेरे पिता जी खूने खोली है ये उन्हीं के विचार से । मैं तो बस उन्हें तो हरा रही थी । कुछ देर बातें करने के बाद माँ वहाँ से चली गई और मैं काफी देर तक ही सोचता रहा । क्या सच में ऐसे ढोंगी बाबा या झूठे संतों को बनाने के पीछे भोले भाले लोगों का ही हाथ होता है? ऐसे और भी कई सवाल थे जो मेरे दिमाग में हलचल मचा रहे थे लेकिन मैंने उनके बारे में सोचना बंद किया और अपना सारा ध्यान हकलाहट की समस्या को समझने में लगाने लगा हूँ ।
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