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भाग दो बुआ का आना । आज हमारे घर एक औरत आई और सभी परिवार वाले उनके स्वागत और सेवा में जुड गए । इधर आ बेटा अभी दादी बुआ के पहुँच हो, शिखर माने । मुझसे कहा शेखर मामा के कहते ही मैं भारत के पास गया और उनके पैच होने लगा । बस बस बेटा बेटे तो माँ के गले लगाते हैं, उनके पैर नहीं छूटे । आप उठो और मेरे गले लग जाऊँ । उस औरत ने कहा! और फिर मैं कुछ हिचकी चाहते हुए उनके गले लग गया । दिल को ठंडक पड गई तो मैं पहले लगा कर ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने बेटे चीजों को गले लगा रही हूँ । मैं पता है मैं कौन हूँ नहीं । मैंने कुछ धीरे से बोला ऍम हमारे पिता की बुआ हूँ और उस हिसाब से मैं तुम्हारी दादी बुआ लगी । हमारे पिता का नामकरण भी मैंने ही किया है । वो ये सब उसे कैसे पता होगा । आप कई सालों के बाद तो घर पर ही हैं । शिखा माने कहा था बैठे हम सही कहती हूँ काफी सालों के बाद आई हूँ और शायद मैंने आने में बहुत देर कर दी है । मैं अंतिम बार चीजों को भी नहीं देख पाई । क्या करूँ बीमारी ही ऐसी थी जिसने मुझे हिलने डुलने भी नहीं दिया । क्या हुआ था बुआ जी शिखर माने । पूछा बेटी क्या बताऊँ? एक बीमारी हो तो उसके बारे में जिक्र करूँ । दुनियाभर की सारी बीमारियाँ मुझे एक ना एक बार लग चुकी हैं । इसके बाद हुआ अपनी सारी बीमारियाँ एक एक करके बताने लगी बस करो बुआ जी, अब ये बताओ कि आप तो ठीक होना ठीक ही हूँ । जो समझ लो कि बस गिनती के दिन बचे हैं, ऐसा क्यों बोल रही हूँ? गोवा जी ऐसे ना कहूँ तो क्या करूँ? ऐसा क्या हुआ? बुआ जी लगता है आप मुझे कुछ छुपा रहे हो । वीडियो चबाने वाली कौन सी बात रह गई है? मतलब वो सब बाद में मैं कौन सा कहीं जा रही हूँ । कुछ दिनों के लिए यहीं हूँ । हम सभी के पास सबकुछ बताउंगी लेकिन उससे पहले मैं तुम सभी के बारे में जानना चाहूंगी । हम सभी के बारे में मतलब आप हमारे बारे में क्या जानना चाहेंगे? तो मैं भी पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ । मेरा इशारा किस तरफ है । हम जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश कर रही हूँ । बुआ जी में सच में नहीं समझ पा रही हूँ कि आप क्या कहना चाहती हूँ तो और तुम्हारा परिवार मुक्ता से मेलजोल क्यों बढा रहा है? मैं शायद पता नहीं कि उसने चीज हूँ और उसके परिवार के साथ कैसा व्यवहार किया था । अच्छा ये बात है बुआ जी, आपने तो मुझे डरा ही दिया था । मैंने सोचा पता नहीं वो कौन सी बात है जिससे आप हमसे नाराज है? नाराजगी नहीं हैरानी कह सकते हो मुझे तुम लोगों से किसी किस्म की कोई नाराजगी नहीं है । मैं तुम से नाराज क्यों होंगे? तुम तो मेरे मायके वाले हो, मेरे अपने हो । मुझे तो मुक्ता से मिलजुल रखने से हैरानी है । और सबसे ज्यादा हैरानी तो इस बात की है कि तुम लोगों ने उससे मेलजोल ही शुरू नहीं किया बल्कि उसको अपने घर के पास रहने दिया । वाजी लगता है आपको मुक्ता को लेकर बहुत गलत फहमियां हैं । ऍम मुझे हैरानी है कि तुम लोग उससे मेलजोल दोबारा शुरू करने के लिए बान कैसे गए? जरूर उसने कोई जादू टोना किया होगा? जादू टोना हाँ, जादू टोना और इसमें हैरान होने वाली कौन सी बात है वो और उसकी माँ है ही । ऐसी जादू टोना करने वाली जादूगर नहीं हुआ जी, मैं आपकी मानसिकता समझ सकती हूँ तो आप जिस मुक्ता के बारे में बात कर रही हैं वो पहले जैसी मुक्ता नहीं रही तो मुझे ज्यादा मत समझा हूँ । मैं उससे पहले से जानती हूँ । मेरी माँ तो तुम सभी से दूरी बना लो पर ना वो तुम सब को बर्बाद कर देगी । बुआ जी आपको मुक्ता को लेकर बहुत गलत फहमी है और रात तीन गलतफहमियों को दूर करने के लिए आपको मुक्ता के देखी ये किताब पढ नहीं होगी । शिखा ने झट से पास की आलमारी में पडी मुक्ता की किताब बुआ को देते हुए कहा क्या है ये किताब है? हाँ वो तो पता है मैं इसका क्या करूँ । आपको इसके तहत को पढना होगा जिससे की आप मुक्ता के बारे में अपनी मानसिक सोच को बदल सकें । मैं जानती हूँ आप मुक्ता को मुझसे कहीं पहले से जानती हैं लेकिन जिस मुक्ता के बारे में मैं जानती हूँ, मैं चाहती हूँ कि आप भी एक बार उससे मिले और उसके बारे में अपने विचार नहीं नहीं । मैं नहीं पडूंगी मुझे कुछ नहीं पढा हुआ जी ऐसा मत बोलिए आपको मेरे कहने पर एक बार इसको पढना होगा । ठीक है ऐसा कर मेरे लिए जाकर एक कप चाय लिया तब तक मैं तेरी किताब को पडती हूँ । शिखा माँ के ज्यादा जोर देने पर बुआ मुक्ता के लिखी आत्मकथा को पढने के लिए तैयार हो जाती है । भुआ के मन में मुक्ता के बारे में इस प्रकार के नकारात्मक विचारों का आना स्वाभाविक था क्योंकि उन्होंने उस मुक्ता को देखा था क्योंकि अपने परिवार वालों विषेशकर अपनी मौसी की एक कठपुतली बनकर चीजों के घर में रह रही थी और उन्हीं के इशारों पर नाच रही थी । मुक्ता की मौसी उसे अपनी बातों में फंसाकर उससे मनचाहा काम करवा रही थी । उस समय मुक्ता को इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि वो अपनी मौसी के कहने पर ठीक हूँ और उसके परिवार वालों के साथ जो कुछ भी कर रही है वो उसके हित में नहीं है । इससे वो अपना ही घर बर्बाद कर रही है । उस समय तो जब कभी भी वह चीकू और उसके परिवार पर हावी हो जाती तो उसे वो अपनी जीत समझती लेकिन वो इस बात को मानती है इसका चीकू और उसके परिवार वालों के साथ ऐसा व्यवहार करना उनकी जीत नहीं बल्कि उस की सबसे बडी हार थी । वो हार जो धीरे धीरे उसको नारकीय जीवन जीने की और ले जा रही थी । कुछ समय के बाद एक आवाज शिखा का ध्यान खींचती है ओस और देखती है वो आवाज बुआ के किताब बंद करने की आवाज भी क्या हुआ? बुआ जी लगता है तो किताब अच्छी नहीं लगी । नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं है । तो फिर अपना किताब पढनी बंद कर दी तो वहीं किसने कहा कि मैंने किताब पडती बंद कर दी है तो फिर आपने किताब को ऐसे क्यों बहका मेरा मैंने किताब को फेंका नहीं बल्कि रखा है । मैंने उसे पूरा पढ लिया है । वाह सच में आपने उसे पूरा पढ लिया है । था तो कैसी लगी किताब यानी मुक्ता की कहानी । बेटा मुक्ता के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती लेकिन इस किताब में उसने जो कुछ लिखा है अगर वह सच है, बहुत अच्छी बात है और इससे भी ज्यादा अच्छी बात ये है कि उसने अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर लिया है । बुआ जी वो अपने गुनाहों का प्रायश्चित अब तक कर रही है । मैं कुछ समझी नहीं । मैं बताती हूँ वो अकेली एक संस्था को चला रही है जिसका नाम है घर बचाओ संस्था । अपनी संस्था में उन लोगों के पारिवारिक झगडों विषेशकर पति पत्नी के झगडों का निपटारा करती है । क्या सच में वो ऐसा कर रही है क्योंकि क्या आप को मेरी बात पर विश्वास नहीं नहीं? बेटी मेरे कहने का ये मतलब नहीं था । अगर मुक्ता सच में ऐसा कर रही है तो वो बहुत ही सही कर रही है बाकी उसके बारे में जो मुझे थोडी बहुत गलत कहनी थी । उसकी ये किताब पढकर दूर हो गई । मैं भी उससे मिलना चाहूँगी था तो उसके बाद मैं शिखर और बुआ तीनों मुक्त माँ के पास उनके घर चले गए । मुक्तात्मा घर में अकेली थी और जैसे ही मैंने उनके घर के दरवाजे की घंटी बजाई तो तुरंत दरवाजा खोलने आ गयी । दरवाजे पर सबसे पहले मुझे खडा देखकर वो मजाकिया लहजे में बोली अरे वापी को बेटा तो कब से घंटे मारकर अंदर आने लगा । क्या बात है? कुछ नहीं वो आपसे कोई मिलने आया है । कौन है ये कहते हुए मुक्ता वहाँ दरवाजे के बाहर देखने लगी और तभी बुआ अचानक से उसके सामने आ गई । पहचाना क्या? बुआ ने मुक्ता से पूछ रहे हैं बुआ जी क्या मैं आपको कभी बोल सकती हूँ । ये कहकर मुक्ता बुआ के पैर छूने लग जाती है । लेकिन बुआ मुक्ता को उठाकर आपने पहले लगा लेती है और कहती है बेटी है तो मेरी बेटियाँ पैर नहीं छोडती बल्कि गले लगती हैं । तुम्हें याद है आखिरी बार यानी आज से पहले मैं तुम से कम मिली थी । प्याज है तो बता बता फिर कब और कहां मेरे घर पर । और बस बस अब इसके आगे कुछ मत कहना । बहुत बुरा दौर था जो बीत गया । अब मैं तुम्हारे साथ उन बातों का जिक्र नहीं करना चाहती है । पता है जब मैंने तुम्हारे बारे में पहले सुना था तो मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आया था । उस वक्त उस वक्त खुद मुसीबत में थी तो कुछ नहीं कर पाए । सोचती थी कि जब कभी भविष्य में मौका मिलेगा तो तुमसे मिलूंगी और बीते हुए उस दौर के बारे में बात करेंगे तो किसी से पता चला कि तुम वापस चीकू के घर आ गई हूँ । तो भारी चीज उनके परिवार के साथ सुबह वगैरह हो गई है । यकीन मानो मुझे चीज उनके परिवार खासकर शिखा पर बहुत गुस्सा आया था । हूँ । हाँ, गुस्सा । वो इसलिए कि जिस औरत की वजह से चीकू और उसके परिवार वालों को इतनी परेशानियों का सामना करना पडा । इसकी वजह से एक नदी से जान पर मुसीबतों का पहाड टूट पडा क्योंकि अपने बच्चे की खातिर हुई है चीजों का परिवार उस औरत को कैसे अपना सकता है? लेकिन लेकिन क्या बुआ की बात सुनकर मुक्तानां चुपचाप सिर झुकाए उन्होंने घर की जैसे बैठी थी और जब बुआ ने छोटी से मुस्कान के साथ लेकिन शब्द कहा वो चौक गई । लेकिन जब यहाँ आकर शिखर से तेरे बारे में सुना और तेरी किताब को पडा मेरी सोच तेरे बारे में बिल्कुल बदल गई है । सच में तुम नहीं जानती कि तुम ने क्या किया है । हमने अपने गुनाहों का पश्चाताप करके अपना जीवन सुधार लिया है । ये कहकर बुआ ने मुक्तानां को गले लगा लिया । कुछ समय के बाद सुना है तुम कोई संस्था चला रही हो जी बुआ जी, अब तो सारा जीवन उसी को समर्पित कर दिया है । जिस गलती को करके मैंने अपना सारा जीवन बर्बाद किया है वह गलती किसी और से ना हो इसलिए ये घर बचाव नाम की संस्था चला रही बेटी तो बहुत अच्छा काम कर रही है । मेरी भी ऐसी एक समस्या थी जिस वजह से मुझे और मेरे परिवार ने करीब सात आठ साल तक बहुत परेशानियों का सामना करना पडा था । इस वजह से मैं शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत प्रताडित भी हुई थी । ऐसी समस्या हुआ जी बेटी और तुम से क्या छुपाना मेरे छोटे देवर विजय की शादी शुदा जिंदगी में हुई परेशानियों की वजह से हमारे पूरे परिवार को बहुत कुछ झेलना पडा था । वो छोटा लडका ना हाँ अजय से छोटा विजय क्या हुआ था । बेटी पहले तो शादी के लिए मानता नहीं था । जब कभी मान जाता तो मौके पर शादी से इंकार कर देता हूँ । कई बार तो उसने सगाई करने के बावजूद भी शादी करने से इंकार कर दिया था । ऐसा कई बार हो चुका था । इस वजह से हमारी रिश्तेदारी में काफी बदनामी हो चुकी थी । इसका नतीजा यह हुआ कि हमारा कोई भी रिश्तेदार विजय के रिश्ते के बीच में आना नहीं चाहता था । हरेक देना अजय को किसी से पता चला कि इसका यानी विजय का किसी लडकी के साथ प्यार का चक्कर चल रहा है । इस वजह से वो ये सब कर रहा है । मेरे फूफा ने उससे बात कहा कि अगर उसके साथ शादी करना चाहता है तो कर ले या हमने हम में से किसी को कोई ऐतराज नहीं होगा । लेकिन क्या आपने लडकी पक्ष के बारे में कोई जांच पडताल नहीं कर पाई । बेटी सच कहूँ तो यही सबसे बडी गलती हो गई । इसके पीछे सबसे बडा कारण था कि हम शादी जल्दबाजी में कर रहे थे । जल्दबाजी में वो क्योंकि तो क्या मैं था कि कहीं इस बार भी वो शादी करने से इंकार कर रहे हैं । लेकिन आपको लडकी वालों के बारे में पर जांच पडताल तो कर लेनी चाहिए । नहीं तो गलती हो गई । बेटी हमें लडकी वालों के बारे में किसी भी प्रकार की जांच पडताल करने का समय ही नहीं मिला है । वो तो इतने लालची किस्म के लोग होंगे । इस बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे । लेकिन अब लडकी वाले लालची हैं । इस बारे में आपको पता कब और कैसे चला? शादी के बाद नहीं बेटा लडकी वालों के बारे में तो हमें शादी के पहले ही पता चल गया था और इसके बावजूद भी आपने विजय की शादी उस परिवार में होने दी । दरअसल शादी के कुछ दिनों पहले ही हमें लडकी के परिवार के बारे में पता चला था । हुआ यूं था की मैं और तेरे फूफा जी उनके किसी दोस्त के घर शादी का न्यौता देने के लिए गए । सुबह तो बातों में उन्होंने लडकी और उसके परिवार के बारे में पूछा । हमने उनको बता दिया मेरे फूफा का दोस्त, लडकी और उनके परिवार वालों को अच्छी तरह से जानता था । इस वजह से उसने हमें उस परिवार के साथ रिश्ता जोडने से मना कर दिया । लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए क्यों? जवाब को लडकी और उसके परिवार वालों के बारे में पहले ही पता चल चुका था । आपको इस रिश्ते से पीछे हट जाना चाहिए था । वो कहते हैं ना कि जब आपने पर पढना पडता है तो कुछ दिखाई नहीं देता । उस समय हमें सिर्फ विजय की शादी दिख रही थी । उस समय हमारा सारा परिवार चाहता था । एक बार किसी न किसी तरह विजय की शादी हो जाए । उसके बाद जो होगा देखा जाएगा क्योंकि करीब दस बारह लडकियों को ठुकरा रहे हैं और सगाई वगैरह टूटने से हमारे सभी रिश्तेदारों में काफी बदनामी हो रही थी । हम इस बदनामी से बचने के लिए सबको जानकर भी अनजान बनकर विजय की शादी कर रहे थे । ऍम फिर क्या विजय की शादी होते ही हमारे घर में मुसीबतों का आगमन शुरू हो गया । हमारे घर में रोज किसी ना किसी बात पर झगडा होने लगा । झगडा लेकिन चुप और इस बात पर विजय की पत्नी की वजह से और रोज किसी ना किसी बात को लेकर परिवार के सभी सदस्यों के साथ झगडा करने लगती है । अभी घर के काम काज को लेकर तो कभी रोटी सब्जी जैसी छोटी छोटी बातों को लेकर । लेकिन क्यों ऐसा क्यों करती थी? फिर चाहती क्या थी वो सिखाने यानी बुआ से पूछा मैं बताती हूँ चाहती क्या होगी । यही ना की विजय को उसके घर परिवार चालक कर दिया जाए और फिर अकेले उसके साथ ऐसी जिंदगी व्यतीत की जाए जिसमें विजय के परिवार की कोई तक नंदाजी ना हो । तो बुआ जी सही कहा । मुक्ता ने जवाब दिया हाँ बेटी है वो तो ऐसा ही चाहती थी । बुआ जी मेरे पास घर परिवार संबंधी जितने भी केस आते हैं उनके झगडे के मुख्य कारण ज्यादातर यही होता है । यानी उनके झगडे की मुख्य जड यही होती है और एक बात और बता दूँ नवविवाहिता औरत ये सब अपनी मर्जी से नहीं करती । ये सब उसके अपने मायके में बैठे किसी रिश्तेदार के कहने या समझाने से ऐसा करती है । मायके में बैठा उसका रिश्तेदार जिनमें से ज्यादातर उसकी मौसी हुआ चाची ताई होती है । वो अपने घर से ही नवविवाहिता के परिवार में दखलंदाजी करके उसको अपने इशारों पर मैं चाहती है । कुल मिलाकर नवविवाहिता का सारा कंट्रोल मायके में बैठे उसके रिश्तेदार के हाथों में होता है । अब है उसकी गलत सलाह । सही नवविवाहिता अपना ससुराल वहाँ पर बैठ जाती है । बेटी ठीक कह रही हूँ हुआ हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही था । तो हमने समय रहते मौका संभाल लिया था । वो कैसे? वो अक्सर लडाई झगडा करके अपने मायके चली जाती थी और फिर हम उसको मनाकर यानी उस से माफी मांग कर उसे वापस ले आते थे । ऐसा कई बार हो चुका था लेकिन जब पानी सिर से ऊंचा उठ गया तो हमने जीवन का सबसे कठोर कदम उठाने का फैसला किया । वो क्या सबसे पहले तो हमने विजय को समझा बुझाकर अपनी तरफ क्या? क्योंकि विजय के कहने पर ही हम उसकी पत्नी को बार बार मायके से लेकर आते थे । लेकिन एक दिन जब वो झगडा करके अपने मायके गई तो हमने उसे वापस घर लेकर आने से साफ मना कर दिया जिससे उस ने हम पर तलाक का केस दाखिल कर दिया है । फिर क्या बडी हमने करीब दस साल तक केस को चलने दिया लेकिन विजय को उससे तलाक नहीं लेने दिया । ऐसा क्यों? शिखा ने हैरानी से पूछ बेटी इसके पीछे कई कारण थे तो बुरी नहीं थी । पूरा उसका समय चल रहा था । हम जानते थे । किस तलाक के फैसले के पीछे किसी और का हाथ था? किसका लंबा चलने की वजह से बहू के सभी रिश्तेदार जो कि शुरू शुरू में तो बहुत उछल कूद कर रहे थे कि मैं ऐसा कर देंगे वैसा कर देंगे । वो सभी समय के साथ साथ पीछे हट गए और कुछ ही सालों के दौरान बहू और उसके माता पिता अकेले पड गए । पिता की इस दौरान मृत्यु हो गई और अंत में माँ बेटी और उसका एक भाई अकेला पड गया विजय की कोई ऍम वगैरह हाँ उसका बेटा था वो अपने साथ ले गई थी । फिर फिर क्या जब तक बहु के पिता जिंदा से तब तक तो वह सभी केस में बढ चढकर भाग लेते थे । लेकिन पिता की मृत्यु के बाद धीरे धीरे सभी पीछे हटते गए । फिर बात तो काफी लम्बी चौडी है अगर करने लगी तो ये खत्म होने का नाम नहीं लेगी । कुल मिलाकर दस साल की लंबी लडाई के बाद हमने बहु को उसकी गलती का एहसास करवाया और इसको वापस लेकर उसे दोबारा अपने परिवार में शामिल किया । वही अभी तो हमारे पास समय कम है लेकिन एक ना एक दिन में आपसे विजय के केस के बारे में विस्तार से जरूर जानना चाहूंगी । मुक्ता ने कहा वो मैं विजय की किस पर कहानी लिखना चाहती हूँ जो कि समाज को प्रेरणा देने का काम करेगी । पीती अगर ऐसी बात है तो किसी समय क्यों? मैं तो मैं भी सारा कुछ बता दूँ हुआ अभी तो अब आई हैं कुछ हमारे पास रुकेंगी आज नहीं कभी समय निकालकर में आपसे जरूर पूरी कहानी होंगे । ठीक है जैसी तेरी मर्जी मूलत का घर क्यों बैठे हुए हो? कुछ नहीं बस ये कुछ देर अकेला छोड दूँ । अब ये सब जाने बाजी मेरे साथ मेरा लक्ष्य मैं जब कभी भी उदास होता हूँ, आपको छूट विचार करना होता है तो घर से कुछ दूर तालाब के किनारे बैठ जाता हूँ और अपनी उदासी को दूर करने की कोशिश करता हूँ । एक दिन वहाँ से कुछ खटपट होने के बाद मैं तालाब के किनारे बैठा था कि वृंदा मुझे ढूंढती हुई आई और कहने लगी मैं कब से तो यहाँ घूम रही हूँ और तुम यहाँ पर बैठे हुए हो । क्या हुआ और बताओ ना? क्या बात है, बात क्या है? कुछ नहीं । बात क्या हो सकती है । कई रोज की किचकिच मुक्ता माँ बोलती है कि तुम वकील बनू और उनके साथ आकर बैठा करूँ मैं शेखर मामा बोलती है की कि मैं अपने पिता के नक्शे कदम पर चलो और हकलाने वाले लोगों की मदद क्या करूँ? मुँह चलता रहता है? हाँ है तो जीवन में आती जाती रहती हैं लेकिन तुम दिल छोटा मतलब तुम बताओ तुम क्या करना चाहते हो? पता नहीं तो मुझसे गुस्से में बात कर रहे हो । मैंने क्या किया है बिहार में गुस्से में बात नहीं कर रहा हूँ । मुझे सच में नहीं पता कि मैं क्या करना चाहता हूँ इस बारे में काव्या दीदी की क्या राय है मेरी उनसे इस विषय पर बात हुई । नाम एक बार बात हुई थी तो क्या बोलती है? काफी दीदी कहती है कि मैं किसी की बात सुनकर अपने दिल की बात ऍफ दिल करता है मैं वो करूँगा । ये भी ठीक है तो तुम्हारा दिल क्या करता है? मेरे कहने का मतलब है कि तुम क्या करना चाहते हो? सही बात दोनों तो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । रिलीज गलत बात है । लगता है वो देखो तुम्हारी दसवीं कक्षा की पढाई खत्म होने को आ रही है और इसके बाद तुम्हें अपना जीवन यापन करने के लिए जो भी काम करना है तो उन है उसका चुनाव दसवीं कक्षा पास करने के तुरंत बाद से ही करना है । पिछले तुम्हारे पास समय बहुत कम है । यही तो समस्या है । इस समय बहुत कम है । मैं अभी तक अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पा रहा हूँ । लोग और मेरे रिश्तेदार सभी मुझे मेरे पिता जी की छवि देखते हैं । ये नहीं जानता हूँ कि मैं तो उनके चरणों की धूल के बराबर भी नहीं हूँ । मैं क्यों कहते हैं? अगर रोक तुम्हें तुम्हारे पिताजी की छवि देखते हैं तो उसमें बुरा क्या है? सुना है वह हकलाने वाले लोगों की मदद कर के एक सामाजिक कार्य करते थे तो भी अपने पिता की बराबरी करके ऐसा कुछ सामाजिक कार्य कर सकती हूँ । पिताजी हकलाने वाले लोगों की मदद इसलिए कर देते थे क्योंकि किसी समय तो खुद बहुत हट लाते थे और हकलाहट जैसी समस्या के दर्द को उन्होंने बहुत करीब से जाना है । मैं ना खिलाता हूँ और ना ही मेरे साथ । ऐसा कुछ हुआ है कि मैं हकलाहट जैसी समस्या के बारे में जान सकता हूँ । फिर मैं पकड आने वाले लोगों की मदद कैसे कर सकता हूँ? ये तो कोई बात नहीं हुई तो हकलाते नहीं हो तो तो मैं इस बारे में कुछ समझ नहीं सकते । वो डॉक्टर लोग जो किसी बीमारी का इलाज करते हैं, क्या उन्हें इस बीमारी के इलाज के बारे में उस बीमारी से पीडित होने के बाद चलता है? तुम्हारे कहने के अनुसार दिल का मरीज है, वही दिल का इलाज कर सकता है । ये तो कोई बात नहीं हुई तो मेरे पिता जी की बेज्जती कर रही हूँ, वहाँ खिलाते थे तो वही हकलाहट के विषय पर जानते थे ऐसी मैं नहीं ऐसा तो तुम स्वयं कह रहे हो हो तो मुझे गलत मत समझो । मेरे विचार तुम्हारे पिता जी के बारे में गलत बिल्कुल नहीं थे और न ही मैंने उनके बारे में कुछ गलत बोल कर उनकी किसी प्रकार से कोई बेज्जती नहीं कर रही । हकलाहट की समस्या को समझना और उसे समझकर लोगों की सेवा करना, ऐसा उन्हें भगवान का दिया उपहार था । लेकिन ये नहीं कि उनकी सेवा ऐसा कोई कर ही नहीं सकता । तो मगर चाहूँ तो तुम भी हकलाहट की समस्या को समझकर लोगों की सेवा कर सकती हो । लेकिन अगर सेवा ही करता रहूंगा तो जीवन में चार पैसे कैसे कमाऊंगा? अपना जीवन यापन कैसे करूँगा? मैं ये मानती हूँ कि जीवन में पैसे का होना बहुत जरूरी है लेकिन जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता तो मैं अपने पिता जी का उदाहरण ही देखता हूँ । अगर वो पैसे के पीछे भागते और हकलाहट की समस्या से पीडित लोगों की मदद करके समाजसेवा ना करते तो कि आज नहीं कोई याद करता हूँ है इस बारे में बातचीत फिर कभी करेंगे । मुझे अभी नहीं जाना है । ये कहकर वृंदा वहाँ से चली गई । लेकिन जाने के बाद मेरे सामने कई सवाल खडे कर गई । अपने इन्ही सवालों के साथ में अपने घर पहुंच जाता हूँ और वहाँ बुआ जी शिखर वहाँ से कुछ बातें कर रही होती हैं । शिखर बेटी मैंने जरा मंदिर जा रहा है तो मेरे साथ चलेगी वही मैं जरा व्यस्त हूँ, ऐसा करती हूँ को आपके साथ भेज देती हूँ । आपको कार में मंदिर ले जाएगा । ठीक है बेटी जैसा तुमको हूँ तो बेटा मेरे बुआ जी को मंदिर ले जा । ठीक है माँ माँ के कहने पर मैं बुआ जी को मंदिर ले जाता हूँ लेकिन मेरा ध्यान किसी और तरफ होता है । घर से मंदिर कुछ दूर होने की वजह से कार में कुछ समय लग जाता है और उस समय के दौरान हुआ जी मुझसे बातें करने लगती हैं और चुनाव फिर बेटा जी आजकल क्या कर रहे हो? कुछ नहीं बस आपको मंदिर लेकर जा रहा हूँ । उसके बाद दोस्तों के साथ कहीं घूमने की योजना है । मैंने मजाकिया लहजे में कहा बेटा मेरे कहने का ये मतलब नहीं भविष्य के बारे में तुम्हारी क्या योजना है? बारिश के बारे भी भविष्य के बारे में वही सच कहूँ तो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या किया जाए । मुक्का मार कुछ कहती है शेखावाटी कुछ कहती है और काव्या दीदी कुछ और ही कहती हैं । समझ में नहीं आ रहा किसकी बात को सुना जाए और किसकी बात को माना जाए । इतना कुछ समझी नहीं । कौन क्या क्या कहता है जरा खुलकर बता मुक्तात्मा चाहती हैं कि मैं एक वकील बन हूँ क्योंकि पिताजी वकील बनना चाहते थे परंतु वो किसी कारण वश नहीं बन पाए जिस वजह से मुक्त आना चाहती है कि मैं वकील बन कर उनका सपना पूरा करूँ और उनके पास जो घर परिवार संबंधित केस आते हैं मैं उसमें उन की मदद करूँगा । ठीक है । वो बैठी कहती है शिखा क्या चाहती है? शिखर बात चाहती है कि मैं हकलाहट की समस्या से पीडित लोगों की मदद करके अपने पिताजी के सामाजिक कार्य को आगे बढाने में उनकी मदद करूँगा । देखा की बात भी सही है और काव्या करे सब ने क्या कहना है । काव्य दीदी कहती है कि मैं हम दोनों की बात को ना सुनते हुए अपने दिल की आवास पर्सन हो । उनका कहना है कि मैं आत्ममंथन करूँ और उस आत्ममंथन का जो भी नतीजा निकले उसपर अमल करूँ । आप क्या का कहना भी ठीक है । बुआ जी क्या ये भी ठीक है । वो भी ठीक है, आपको सबको सही बता रही हैं । आप की नजर में तो सब कुछ सही है । सभी सही कह रहे हैं लेकिन मैं ये कैसे जानता हूँ कि कौन मेरे लिए सही कह रहा है । बेटा जी तुम समझ नहीं पा रहे हो । जब तुम समझ पाने की स्थिति में होगी खुदबखुद समस्या होंगे ये तो कोई जवाब नहीं हुआ । मैं बच्चा तो नहीं रहा कि कुछ भी समझ नहीं हूँ वो दोनों तो अपने अपने स्वास्थ्य के लिए मुझ पर ये सब हो रहे हैं । आखिर मेरी भी तो की जिंदगी है । मेरी भी तो कोई मर्जी होनी चाहिए कि नहीं । बेटा जब तुम कह रहे हो बिलकुल सही है लेकिन काल्पनिक दुनिया और वास्तविक दुनिया में कुछ तो फर्क होता है ना तो सच्चाई को पहचानना होगा । हम इसे पहचान नहीं पा रहे हो । जिस दिन तुम अपने आपको पहचान लोगे और अपने जीने की वजह को जान हो गए, अपने जीवन के मकसद को जान लोगे तब तक नहीं । ये सब मतलब की बातें नहीं करनी पडेगी । वजह सच कहूँ तो आपने जो कुछ भी कहा है मेरी समझ के बाहर था । मेरी कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर रात कहना क्या चाहती है । अगर ऐसी बात है तो सरल शब्दों में मेरी बात को ध्यान से हूँ । सबसे पहले बात आती है तो भारी मुक्ता माँ की क्योंकि तुम वकील बनने को कह रही हैं क्योंकि सही भी है इसके कई कारण है । पहला ये कि मुक्ता को अपना सामाजिक कार्य करने के लिए किसी अपने की जरूरत है और इस समय तुमसे ज्यादा नजदीकी अपना कोई नहीं है । इसलिए वह तुम पर वकील बनने का दबाव डाल रही है । दूसरा कारण ये है कि मुक्ता तुझे मैं चीकू का अक्सर देखती हैं और जो काम तुम्हारा पिता यानी चीज पूछना कर पाया तो तुम से करवाना चाहती हैं और फिर जीवन यापन के लिए तो वो भी तो कुछ न कुछ करना ही है । व्यापार करो या फिर नौकरी करो उसको करोगे । हिना वकील बनने में क्या बुराई है? इसके बाद बात करते हैं शिखा की जो तो मैं हकलाहट की समस्या से पीडित लोगों की मदद करने को कह रही है । ये भी सही है क्योंकि तुम उसी को के बेटे हो जिसने अपनी सारी जिंदगी हकलाहट की समस्या से पीडित लोगों की मदद करने में लगा दी । मेरे ख्याल में तो मैं अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चलना चाहिए और उनके इस समझ कार्य को आगे बढाना चाहिए । आपकी बात रही काव्या की तो बिल्कुल सही कह रही है तो मैं आत्मंथन करके अपने दिल की आवाज सुननी चाहिए क्योंकि जिस काम में तुम्हारा मन नहीं लगेगा अगर वो काम काम से जबरदस्ती करने को कहा जाएगा तो ये सही नहीं होगा । मान लो अगर तो मुक्ता के कहने पर वकील बन जाते हो लेकिन तुम्हारा मन कहीं और है यानि तुम कुछ और करना चाहते हो तो तुम से वकालत सही ढंग से नहीं हो पाएगी । या फिर तुम शिखा के कहने पर चल हो गए लेकिन उसमें भी तुम्हारा मन नहीं होगा तो तुम अपने पिता के बनाये नाम को मिट्टी में मिला हो गए तो आपकी बात बिल्कुल सही है । तीन । सच कहूँ तो मुझे कुछ समझ में नहीं आएगा । पीडा अभी कुछ मत सोचो, भगवान पर भरोसा हो वो तो मैं जरूर सही रास्ता दिखायेगा । लेकिन अगर मैं अपनी बात करूँ तो मेरे हिसाब से मुक्ता और शिखा दोनों सही कह रही है । आपने कहने का क्या मतलब है? दोनों काम एक साथ कर सकता हूँ, नहीं कर सकते हैं । वकील बन कर वकालत के साथ हकलाहट की समस्या से पीडित लोगों की मदद भी कर सकती हूँ । अब इस विषय पर फिर कभी बात करेंगे तो मंदिर आ गया है और पहले वहाँ जाकर आते हैं । बाकी एक बात हूँ तुम सुनना सभी की मर्जी अपनी करना है । लेकिन अपनी मर्जी करने से पहले क्या सही है, क्या हालत है उसके बारे में जरूर जान लेना क्योंकि अब सभी की नजरें और सारा दारोमदार ही पडता है । बुआ जी से मेरे मन की बात कहकर मेरा मन तो कुछ हल्का हुआ लेकिन उनकी कही बातों ने मेरे मन में एक तूफान साला दिया क्योंकि मेरे भविष्य के बारे में बातें घर पर अक्सर होती रहती थी । मुझे क्या करना है इसका फैसला मेरा पैदा होने से पहले कर दिया गया था । लेकिन मैं क्या करना चाहता हूँ, इसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था । वैसे शिखर मा के कहने पर पिताजी के रास्ते पर चलने का विचार किया जा सकता था, लेकिन इससे पहले मुझे हटना, हार्ट की समस्या के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी घटना करनी थी और इसमें मेरी मदद खुद शिखा माही कर सकती थी और मुक्ता माँ चाहती थी, वह भी बुरा नहीं था । यानी मैं वकील बन सकता था । लेकिन क्या मैं सच में वकील बन सकता था? सवाल का जवाब मुझे अपने आप से जानना था । फिर मैंने अब सब कुछ भगवान के भरोसे छोड दिया था और बुआ के साथ मंदिर में जाने लगता हूँ । हालांकि इससे पहले भी मैं इन सब बातों को लेकर परेशान रहता था, लेकिन बुआ जी की बातें सुनकर मैं और भी सोचने को मजबूर हो गया । कुल मिलाकर मुझे अपने लक्ष्य निर्धारित करने का फैसला जल्द से जल्द ले रहा था । मैंने अपने जीवन में क्या करना है? यानी मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, इस बारे में अभी कुछ साफ नहीं था । मैं भगवान से हर रोज यही प्रार्थना करता था कि वह मुझे जीवन के लक्ष्य को निर्धारित करने में मेरी मदद करें । एक दिन में काव्या दीदी के पास बैठा था । अवधि पडने में व्यस्त थी । मैंने उसे कहा थी अब से बात करते हैं क्या हुआ भाई क्या बात करनी है? नहीं बंदा के बारे में तो नहीं? काव्या ने मजाकिया लहजे में कहा, दीदी आप भी ना ऐसी कोई बात नहीं है तो सौर बात है क्या? बात को बहुत गंभीर लग रहे हो । बात हुई है क्या? वही दीदी हर रोज की कहानी कौनसी अब बॉल भी दे देती । मैं अपना भविष्य को लेकर चिंतित हूँ कि दसवीं कक्षा को पास करने के बाद आगे क्या किया जाए । फिर इसमें चिंता करने की क्या बात है जो तुम्हारा मन करता है । यही तो मैं समझ नहीं पा रहा कि मेरा मन क्या करता है । मुक्ता महा वकील बनने को कहती है । शिखा माँ चलाने वाले लोगों की मदद करने को कहती है । समझ में नहीं आता कि किस की बात को सुन ये कोई मुश्किल बात नहीं । हम दोनों काम एक साथ भी कर सकते हो । वकालत की पढाई करके वकील बन कर भी हकलाहट की समस्या से पीडित लोगों की मदद कर सकते हो । लेकिन लेकिन क्या लेकिन मुझे घबराहट की समस्या के बारे में कुछ भी तो नहीं पता । मैं लोगों की मदद कैसे करूँगा तो उसके बारे में खोज पडताल करूँ । पिताजी ने भी तो मेरे हिसाब से मुझे लगता है कि तुम्हारा इनमें से कुछ भी करने का दिल नहीं करता । नहीं ऐसी बात नहीं है । बस कुछ दिलचस्पी वगैरह नहीं है । मुझे पता है देखो मैं तुम्हारी बडी बहन हूँ और एक टोस्ट । मैं तो अपनी सलाह हूँ । अगर तुम मानो तो बोलो दीदी इसमें ना मानने वाली की आवाज है तो ऐसा करो । कुछ दिनों तक लगातार तुम शिखर और मुक्ता माँ के साथ उनके क्लिनिक में बैठा करो । इससे क्या होगा? इस से ये होगा कि तुम्हारी दिलचस्पी इन दोनों के काम की और बढेगी और तुम उन पर ध्यान देना शुरू कर देंगे । मेरी मानो तो आज से ही नहीं बल्कि अभी से कुछ दिनों के लिए शिखा मामा के पास जाना शुरू करता हूँ । क्यों मुक्ता माँ के पास क्यों नहीं? क्योंकि मुक्ता वहाँ के पास आने वाले के सभी तुम्हारी समझ में नहीं आएंगे । इसके लिए अभी तो मैं कुछ वक्त लगेगा । ठीक है जैसा तुम का हूँ, ऐसा ही करके देखता हूँ । शायद यही करना मेरे लिए अच्छा हूँ । मुक्ता दीदी की बात में दम था । उन्होंने जो भी कहा मुझे सही लगा मैं उनके कहे अनुसार ही काम करने लगा । यानी मैं रोजाना कुछ समय निकालकर शिखा माँ के पास उनकी क्लिनिक में जाने लगा । यहाँ वहाँ राहत की समस्या से पीडित लोगों की मदद किया करती थी । शुरू शुरू में तो मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि मैं छब्बीस से कमा के पास गया । किसी व्यक्ति या बच्चे को हटाते हुए देखता । मैं अपनी हंसी को नहीं रोक पाता था । मेरे इस व्यवहार की वजह से मुझे कई बार श्रीधामा की डांट का सामना भी करना पडता था । लेकिन जब मैंने हकलाहट की समस्या के पीछे के दर्द को महसूस किया, मेरी यही हसी एक गंभीर सोच में बदल गयी । वो सोच तो मुझे हकलाहट की समस्या के पीछे छिपे दर्द के बारे में सोचने को मजबूर करती रही । धीरे धीरे समय कुछ करता गया और मेरी दिलचस्पी हकलाहट की समस्या की और बढने लगी । एक दिन में रोजाना की तरह शेखर मामा के पास बैठा था । मैंने वहाँ से पूछा मैं आपको कितना समय हो गया है? यह बनाने वाले लोगों की समस्या को देखते हुए क्यों क्या हुआ? तो ये सब के पूछ रहा है । अरे बस ऐसे ही अच्छा ये बताओ जब आपने पहली बार कोई हकलाने वाला देखा था, आपने उसके बारे में क्या सोचा था? मतलब मैं तुम्हारी बात को समझे नहीं । मतलब जैसे मैं मैं पहली बार उससे लडके को हकलाते हुए देखा था तो मेरी हसी निकल गए थे । इसी प्रकार जब आपने पहली बार किसी को ऐसे हम कराते हुए देखा तो क्या आपकी भी हँसी निकल गई थी? नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ था क्योंकि तो की पहली बार जिन्हें मैंने हकलाते हुए देखा था वो मेरे पिता यानी मेरे नाना थे । क्या नाना जी हकलाते थे उन्हें भी हकलाहट की समस्या से । इस वजह से मैं उनसे नफरत करती थी । नफरत क्यों? क्योंकि लोग उनके हकलाने का मजाक बनाते थे और जिस वजह से मेरी सारी सहेलियाँ मेरा मजाक बनाते थे । आपकी सहेली आपका मजाक बनाती थी । मेरे पिताजी हकलाते थे और मेरी सहेलियां मुझे अकलू की बेटी कहकर मेरा मजाक बनाती थी । उसके बाद कुछ देर माँ चुप हो गई । उनकी आंखों में आंसू थे । शायद किसी पुरानी बातों को याद करके वो खामोश हो गई थी । मैंने बातचीत को बदलने के लिए ऐसे में माँ से पूछा हाँ पिताजी के पास किसी हकलाने वाले का कोई के साथ था तो वो उसे कैसे हाल करते? पिता मुझे किसी काम से बाहर जाना है । मैं जा रही हूँ वहाँ की तेरे पिताजी की डायरी पडी है । इसमें राहुल का नाम एक केस है इसे पढ लेना । शायद तुझे तेरे सवालों का जवाब मिल जाए । ये कहकर महा तुरंत वहाँ से चली गई । शायद मेरी किसी बात से उनके कोई पुराने जख्म ताजा हो गए होंगे । मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था । लेकिन इसमें मैं अपनी गलती बिल्कुल नहीं मानता । मुझे मेरे नाना जी के हकलाने के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं था । मैं तुरंत से पिताजी की डायरी उठाकर राहुल नाम के शख्स के केस के बारे में पडने लगा । क्योंकि इस प्रकार से था राहुल का केस बात उन दिनों की है जब मैंने हकलाहट के अध्यापक के तौर पर कार्य करना अभी शुरू हुई किया था । शुरुआती दिनों में मैं हकलाहट के विषय पर लेख लिखता है और अपने शहर के अखबारों में उस लिए कुछ पाने के लिए भेजता । साथ में ये भी छप्पा देता कि अगर किसी भाई बंधु हो, अगला हाथ से संबंधित कोई समस्या है, वो भेज मुझसे संपर्क कर सकता है । मैं अपनी तरफ से जितना हो सके उसके हकलाहट की समस्या को हल करने में उसकी मदद करने का प्रयास करूंगा । रोजाना की तरह एक रोज मैंने एक ले पाॅड स्टैमरिंग के नाम से लिखा । इसको लोगों ने बहुत सारे गामा क्योंकि मैंने ले कैंप में अपना नाम और मोबाइल नंबर लिखा हुआ था ताकि अगर किसी को हक राहत संबंधी कुछ समस्या हो तो वो मुझसे संपर्क करने में कोई भी परेशानी न महसूस करें । तभी शाम के समय मुझे मेरे मोबाइल पर एक फोन आता है । फोन एक औरत था । वो अपने छोटे बेटे राहुल की हकलाहट की समस्या को लेकर परेशान थी । उसने मुझे राहुल के हकलाहट की समस्या से अवगत कराया । मैंने फोन पर ज्यादा बातें होने और अपनी व्यस्त दिनचर्या का हवाला देकर उनसे अगले दिन राहुल को मुझसे मिलवाने का आग्रह किया और उन्होंने मेरे इस प्रस्ताव को स्वीकार कर अगले दिन राहुल को लेकर मुझसे मिलने मेरे घर पर आई और राहुल की समस्या के बारे में विस्तारपूर्वक बताने लगी । राहुल के हकलाहट की समस्या एक आम तौर पर होने वाली समस्या थी, जिसको समझने में मुझे जरा भी देर नहीं लगी । उन्होंने बताया कि जब राहुल लगभग पांच वर्ष का था, उसे बोलने में कठिनाई होने लगी । पहले तो हम समझ नहीं पाए कि राहुल को क्या बीमारी है तो हमने अपने पारिवारिक डॉक्टर से राहुल के बारे में बात की । जैसा कि आमतौर पर होता है कि डॉक्टर मरीज की बीमारी न समझ पाने की अवस्था में कोई भी दवाई देकर उस पर तजुर्बे करता है और अगर वह मरीज ठीक हो जाता है तो वो ये पता लगाते हैं कि वह मरीज उसकी कौन सी दवाई से ठीक हुआ है ताकि अगली बार अगर ऐसा कोई मरीज उनके पास आता है इसको पहले बडी वाली बीमारी हो, समूह उसे वही दवाई देते हैं । डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप है । हमारे देश में डॉक्टर के पेशे को बहुत इज्जत के साथ देखा जाता है । मैं इस पेशे की दिल से जब करता हूँ परन्तु मेरी मुराद उन डॉक्टरों से हैं क्योंकि मरीज की बीमारी को अपनी आमदनी के रूप में देखते हैं और उन्हें मरीज में काम और मरीज के पैसों में ज्यादा दिलचस्पी होती है । राहुल के साथ भी ऐसा ही कुछ होता है । उसकी माँ ने बताया है कि वो लोग बहुत से डॉक्टर के पास गई परंतु वहाँ उन्हें समय और पैसा बर्बाद करने के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ और आखिरकार थक हारकर उन्होंने राहुल को भगवान भरोसे छोड दिया । उन्होंने बताया कि राहुल की आयु इस समय चौदह वर्ष है और उसके हकलाहट की समस्या इतनी ज्यादा है कि उसकी बातें समझ नहीं आती है । जिस वजह से वो अपने स्कूल और अपने मित्रों के बीच एक मजाक का पात्र बन गया है । उनके द्वारा बार बार उसका मजाक बनाए जाने के कारण वो स्कूल जाने से कतराता है । इस वजह से उसका पढाई नहीं बहुत नुकसान हो रहा है तो हमेशा अलग थलग रहता है और अकेले में ज्यादा सोच सकता है । अगर वो राहुल को अपने किसी रिश्तेदार के यहां कोई विभाग, शादी या किसी फंक्शन में ले जाती हैं तो वहाँ भी वह सबसे अलग रहता है । मैंने उन्हें डॅालर्स बनाते हुए कहा कि वह राहुल की चिंता ना करें । उसकी इस प्रकार की गतिविधियां, उसकी हट, राहत की समस्या की वजह से और जैसे जैसे उसकी हकलाहट की समस्या खत्म होगी साथ ही उसकी इस प्रकार की गतिविधियां भी समाप्त हो जाएंगी । मैंने राहुल से कुछ सवाल किए परंतु वो मेरे सवालों का जवाब नहीं दे पा रहा था । अच्छा तो मुझे घबरा रहा था । इतने में उसकी माँ ने उसे काटने के अंदाज में उसे मेरे सवालों का ठीक ढंग से जवाब दे नहीं हूँ । मैंने राहुल की परिस्थिति भापकर, उसकी माँ और भाई को बाहर जाने को कहा । उन के बाहर जाते ही मैंने राहुल से बातचीत करनी शुरू करेंगे और कुछ ही समय के अंतराल में मैंने राहुल को अपने विश्वास में ले लिया । बहुत से निसंकोच और बेधडक होकर बातचीत कर नहीं रहा अपनी बातचीत उसमें वो सब बातें बताई जिनसे मैं पहले ही अपनी निजी जिंदगी में रूबरू हो चुका था । यानी राहुल को अपनी हकलाहट की समस्या के कारण जिन सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड रहा था उन सब समस्याओं से मैं व्यक्तिगत तौर से वायॅस जिससे मुझे उसकी समस्या को समझने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पडी । कुछ देर बातें करने के बाद मैंने उसे हकलाहट क्या है, क्यों पैदा होती है उसके बारे में विस्तार से बताया और पास में पडी है किताब को पडने के लिए कहा । किताब पढने की शुरूआती चरण में वह हकलाने लगा । घर मैंने उसे कम गति परन्तु ऊंची आवाज बंद पडने को कहा और शब्द को लम्बा खींचकर पडने से कहा उदाहरण के तौर पर रायॅल माँ में राम नवमी तो है वह हाँ मैं हूँ मेरे साहब और पडता है । कुछ देर इस प्रकार पढते हुए वो बिना किसी रुकावट के किताब को पडने लगा और उसके बाद मैंने उसे गाना सुनने को बोला । कुछ देर शर्म आने के बाद उसने गाना शुरू किया वो बिना रुकावट के यानी हटवाये बिना गाना गा रहा था । मेरे लिए इसमें हराने वाली कोई बात नहीं थी क्योंकि हकलाहट की समस्या से जूझ रहे व्यक्ति विशेष को सिर्फ बोलने में यानि अपनी बात को कहने में परेशानी होती है । हम तो अगर कोई गीत कराना हो तो बिना किसी रुकावट के गा लेता है और इस बात से मैं भली भांति परिचित । कुछ देर बातें करने के पश्चात मैंने उसकी माँ को बुला । उन्होंने राहुल की आठ लाहट की समस्या को काबू करने संबंधी सलाह दी है क्योंकि किताब को धीरे धीरे और ऊंची आवाज में पडने और खाली समय में जीत गाने को लेकर थी और उसके साथ ही मैंने राहुल को सांस को काबू करने संबंधी कुछ व्यायाम बताए जिनका जिक्र मैं असर करता रहता हूँ । राहुल की माँ को उपरोक्त गतिविधियां करते रहने और एक सप्ताह के पश्चात फिर आने को कहकर उनसे विदा ली । एक सप्ताह के पश्चात राहुल मेरे पास आया । मैंने उससे बातचीत की परंतु उसकी समस्या जो की तिथियों स्थिर थे । कुछ देर बातें करने के पश्चात मैंने पिछली बार की बताई हुई क्रिया दोहराने को कहा । यानी किताबें, पढना, गीत, गाना और सांस को काबू करने संबंधी बताए गए व्यायाम को करने को कहा और साथ ही अगले सप्ताह आने को कहा । सिलसिला लगभग एक डेढ महीने चलता रहा परंतु राहुल की समस्या अभी भी जो कि क्यों स्तर बनी हुई थी, जो आप राहुल से ज्यादा मेरे लिए परेशानी का विषय बनी हुई है क्योंकि हकलाहट के अध्यापक के तौर पर बनी हुई मेरी साख दांव पर लगी हुई थी । एक दिन की बात है, राहुल की मां राहुल को लेकर मेरे पास आई और शिकायती लहजे से मुझ में राहुल की हकलाहट की समस्या के बारे में बात करने लगी । पहले तो मैं चुपचाप उनकी बातें सुनने लगा । उसके बाद मैंने उनसे राहुल के बारे में विस्तारपूर्वक बताने को कहा और राहुल के परिवार के हर एक सदस्य के राहुल के साथ उनके व्यवहार को बताने को कहा । इस बातचीत से जिन जिन बातों का खुलासा हुआ, उससे मेरी राहुल की समस्या को हल करने में आसानी हो गई । राहुल के हकलाहट की समस्या के काबू मेरा आने का असल कारण मेरी समझ में आ चुका था तो उसी के पारिवारिक सदस्यों के द्वारा राहुल से किए उनके व्यवहार में छपा था । राहुल के परिवार में कुछ पांच सदस्य थे । राहुल के माता पिता के अलावा उसकी सात साल की छोटी बहन और एक बडा भाई था । इस की आयु लगभग पंद्रह सोलह साल के आसपास थी । राहुल जब कभी भी हकलाता उसके पिता उसको डांट लगाते थे और उसे सही ढंग से बोलने के लिए कहते थे । शायद उन्हें लगता था कि राहुल जानबूछकर सही ढंग से नहीं बोल रहा । अपने पिता द्वारा उसे लगाई गई डांट की डर की वजह से उसकी हकलाहट की समस्या काबू में आने के बजाय और भी बढ रही थी । उसकी छोटी बहन राहुल के हकलाने की नकल करती और जब कभी राहुल के साथ उसकी लडाई होती है, समूह से चढाने के लिए उसकी खूब नकल उतारती है । छोटी होने की वजह से वो सभी की लाडली थी जिस वजह से कोई भी उसे जानता नहीं था और न ही उसे राहुल को चढाने से रोकता । उसके उलट सभी उसकी इस हरकत का मजा लेते हैं । परिणामस्वरूप राहुल हीन भावना का शिकार होने लगा था जिस वजह से ही वो अकेला रहने लगा और ज्यादातर चुप रहने लगा । जब भी कभी राहुल बात करते समय हकलाने लगता उसका बडा भाई उसकी बातों का अंदाजा लगाकर उसकी बात को पूरा कर नेता बेशक एक तरह से वो राहुल की मदद कर रहा था परन्तु राहुल उसके व्यवहार को अपनी छोटी बहन के व्यवहार के समान ही देखता हूँ । इस वजह से उसके व्यवहार में चिडचिडा बनाया गया था । वो बात बात पर गुस्सा करने लगा था और हर वक्त गुस्सैल और चिडचिडा सा रहने लगा जिस वजह से उसके हकलाहट की समस्या और भी बढने लगी थी । राहुल की माँ से उसकी समस्या के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया की वो अपने आप को असहाय महसूस करती है क्योंकि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी । एक माँ होने के नाते वो राहुल के लिए परेशान जरूर थी पर अब तो उन्हें उसकी समस्या को काबू करने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था । मेरे सामने राहुल के हकलाहट की समस्या के कारण की तस्वीर साफ हो चुकी थी और समस्या के हल के लिए सबसे पहले मैंने उसके पिताजी को मुझसे मिलने के लिए कहा । मैंने उन्हें अगला हट और डर के बीच के आपसी संबंध के बारे में विस्तारपूर्वक समझाया और साथ ही राहुल को उसके हकलाहट के कारण डांटने से मना नहीं किया । फिर बारी आई उसकी छोटी बहन की जो कि बार बार उसकी हट राहत की नकल उतारकर उसे चढाती और सबके सामने नहीं सकती करती । मैंने उसे और उसकी माँ को बुलाया । नकल उतारने के कारण होने वाली हकलाहट की समस्या के बारे में बताया । जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूँ कि हकलाहट की किस मुख्य तैयार दो प्रकार की होती है । पहली जन्मजात फट, लाहट और दूसरी किसी की नकल उतारने से होने वाली हकलाहट की समस्या । मैंने इसकी बहन को समझाया कि अगर उसने अपने भाई यानी राहुल के हकलाहट की नकल उतार नहीं बंद नहीं की वो भी इसी समस्या का शिकार हो सकती है और जैसा की अक्सर होता है, नकल उतारने से पैदा हुई हकलाहट की समस्या जल्दी काबू में नहीं आती हूँ । उसकी बहन ने मुझे वचन दिया कि वह भविष्य में इन सब बातों का ध्यान रखेगी और आइंदा से कभी भी राहुल के हकलाहट का मजाक नहीं बनाएगी और साथ ही उसने माँ को समझा दिया कि उसके बडे भाई को कहते हैं कि अगर कभी राहुल अपनी बात को पूरा नहीं कर पाता हूँ उसकी मदद न करें । चाहे जैसे भी हो, राहुल का अपनी बात को खुद पूरा करने देना चाहिए । साथ ही उन्हें निम्नलिखित बातों पर अमल करने के लिए कहा राहुल को मेरे द्वारा बताये गए दिशा निर्देशों का पालन करवाएँ । दो । अगला हट के विषय पर राहुल को कभी भी डांट फटकार ना लगाएं । राहुल की तुलना कभी भी किसी और के साथ न करें । चाहे जहाँ तक हो सके घर में माहौल खुशनुमा बनाए रखें । पांच । बात बात पर राहुल को शाबाशी देते रहे । छह । मेरे द्वारा बताये गये व्यायामों को नियमित तौर पर करवाएँ । साल अगर कहीं वो बोलते समय हकलाने लगता है उसकी बात को काटे नहीं बल्कि उसके बाद उसे खुद ही पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे । आज किताबे पडने और गाना गाने से हकलाहट की समस्या भर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है । इसलिए उसे बार बार किताबें पढ नहीं और गाने गाने के लिए प्रेरित करेंगे । ना हो चाहे उसके ग्राहक की समस्या काबू में आप भी सकती है परंतु गुस्से, डर और पेंशन की स्थिति में ये समस्या फिर से उभरकर सामने आ सकती है । इससे जहाँ तक हो सके राहुल को ऐसी परिस्थितियों से धूल ही रही हूँ । मेरे द्वारा बताये गए दिशा निर्देशों को सुनने के पास क्या राहुल और उसकी माँ ने मुझे विराली आज राहुल की उम्र पंद्रह वर्ष के आस पास है और उसके हकलाहट की समस्या में पहले के मुकाबले काफी अंतर रहा है । यानी राहुल ने अपनी हकलाहट की समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया है । राहुल के परिवार वाले इसका सारा श्रेय मुझे देते हैं परन्तु ये में जानता हूँ राहुल का अपने पूरे परिवार की मदद के बना अपनी हकलाहट की समस्या पर काबू पाना मुश्किल था । राहुल अगर अकेला अपनी हकलाहट की समस्या पर काबू पाना चाहता हूँ, शायद ना कर पाता है क्योंकि उसके हकलाहट राहुल की समस्या नहीं थी । हकलाहट बार बार पैदा हो रही और साथ ही बढ रही थी । ये उसकी समस्या थी और जाने अनजाने हकलाहट के बढने के लिए उसके परिवार के सदस्य ही जिम्मेवार थे । उसके पिता का उसे उसकी हत् राहत की वजह से डांट लगाना और उनकी डांट लगाने से राहुल का डर जाना या फिर उसकी छोटी बहन का उसकी हकलाहट का मजाक बनाकर बार बार चढाना दोनों कारण काफी थी । राहुल के हटना हट की समस्या को बढाने के लिए मैंने राहुल की समस्या को काबू करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया । बस उसकी समस्या के ज्यादा बढने के कारणों को ढूंडा और उन कारणों को खत्म कर दिया । आज राहुल अपनी मेहनत और अपने परिवार वालों के सहयोग की वजह से पहले से काफी अच्छे ढंग से बोल रहा है । मैं उसका सारा श्रेय उसे और उसके परिवार वालों को देना चाहूँगा ।
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