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बेटिकट मुजरिम से अरबपति बनने की कहानी - Part 15 in Hindi

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8 K Listens
AuthorSaransh Broadways
बेटिकट मुजरिम से अरबपति बनने की कहानी writer: राजीव सिंह Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Rajeev Singh
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है । पंद्रह वर्ष में राज्य विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले ठाकुर साहब चुनावपूर्व लहर के साथ चलते हुए दूसरी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो गए । उनका ही कदम सफल रहा । पार्टी ने उन्हें चुनाव लडने के लिए टिकट दे दिया । उनकी नई पार्टी पिछडे और अल्पसंख्यक वर्गों की थी इसलिए वह उच्च वर्गों के वोट बैंक में बैठ बनाना चाहती थी । हालांकि चुनाव का टिकट उन्हें मुफ्त में नहीं मिला था । उस टिकट को हासिल करने के लिए ठाकुर साहब ने अच्छी खासी राशि पार्टी फंड में दान दी थी । उस राशि की व्यवस्था करने के लिए उन्हें अपनी पचास एकड जमीन बेचनी पडी । जमीन बेचने को लेकर हवेली की औरतों ने बहुत चल पो मचाई । बारह गांव में पहली बार किसी जिम्मेदार ने अपनी जमीन बेचीं थी । ठाकुर मंगलदेव सिंह ने दो दिनों तक खाना नहीं खाया । उन के अनुसार परिवार की प्रतिष्ठा पर पहुंचाई बबुआ को इस निर्णय से कोई फर्क नहीं पडा था क्योंकि उसे खेती में दिलचस्पी नहीं थी । वो खुद का कोई व्यवसाय शुरू करना चाहता था । जैसे ही ठाकुर साहब ने जमीन का सौदा किया, उनसे व्यवसाय शुरू करने के लिए पैसे की मांग करने लगा । ठाकुरसाब से मना नहीं कर सके बबुआ ने गांव के पास पीठ बनाने का एक भट्टा लगा लिया तो दो महीने बाद उसने एक सीमेंट बनाने की कंपनी से डीलरशिप प्राप्त कर ली और सलीमपुर में एक दुकान खोल ली । धूंआधार चुनाव प्रचार करने और पानी की तरह पैसे बहाने के बावजूद ठाकुर साहब चुनाव हार गए । ऊपर से उनकी पार्टी राज्य में सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें भी नहीं जुटा पाई । इस चुनाव में उनके एक करोड रुपए खर्च हो गए । चुनाव से पहले उन्होंने जो पार्टी छोडी थी वो सप्ताह में आ गई । अब उस पार्टी में वापस जाने का तो सवाल ही नहीं था । विधानसभा चुनावों के बाद ग्राम पंचायत चुनाव में उनकी जीत एकमात्र राहत की बात थी । ठाकुर साहब नहीं अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं में कटौती करके खुद को गांव की राजनीति तक सीमित कर लिया । गांव में लगातार दो साल कम बारिश होने से कृषि पैदावार को बहुत बडा नुकसान हुआ । उन परिस्थितियों में गरीब अनुसूचित वर्ग के परिवारों के लिए ग्रामीण आवास की सरकारी योजना ठाकुर साहब के लिए वरदान के रूप में सामने आई । वीडियो साहब ने उन्हें मीटिंग के लिए अपने ऑफिस परवाह केन्द्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित वर्ग के लोगों को आवास उपलब्ध करवाने के लिए धन की मंजूरी दी थी । वीडियो और संबंधित ग्राम पंचायत के प्रमुखों को फंड संवितरण और एक अनुपालन रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया । इस योजना के तहत प्रत्येक परिवार को पक्के घर बनवाने के लिए अस्सी हजार रुपये की निर्धारित राशि दी जानी थी । राशि ग्राम पंचायत के खाते में जमा होनी थी और उसके संवितरण की जिम्मेदारी गांव के प्रमुख की थी । उन्हें लाभार्थियों के अंगूठों की छाप लगी । रसीदों के साथ सरकार को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी । वीडियो ने ठाकुर साहब के साथ एक सौदा किया । सौदे के तहत ठाकुर साहब को उन्हें तो लेके नब्बे परिवारों की अंगूठा लगी रसीदें और हर संवितरण के लिए रिश्वत के तौर पर दस हजार रुपये देने थे । शेष राशि ठाकुर साहब के विवेकाधिकार पर थी । गिरी बाबा और ठाकुर साहब के अन्य विश्वासपात्रों ने खबर फैला दी । ठाकुर साहब अपने अथक प्रयासों और सरकार से अनुमति के बाद तो ले के लोगों के लिए पक्के घर की एक योजना लेकर आए हैं । उन्होंने तारीख की घोषणा की जब तो ले के निवासियों को पक्के घर बनाने के लिए सीमेंट और इंटर दी जानी थी । निर्धारित तारीख की सुबह बीडी ऑफिस सहित एक लाख हवेली में आया तो ले के लोग उत्साहित होकर हवेली में घटना हो गए तो ललचाई नजरों से सीमेंट की बोरियों को देख रहे थे । बुआ की एजेंसीज आई थी । एक घंटे बाद ठाकुर साहब की मौजूदगी में क्लर्क एक एक करके सब के नाम पुकारना लगा । गरीब अशिक्षित टोले वालों को सीमेंट की दो दो बोरियां पकडा दी गई और बहुओं के कारखाने से बीस बीस हजार इंटर उठा लेने के निर्देश दे दिए । उन सब को दस दस हजार रुपए भी दिए गए । उसके बदले उन्होंने पन्द्रह बुरी सीमेंट पचास हजार तो और दस हजार रुपए नगद की पावती हो प्रमाणित करते कागज पर अपने अंगूठों के निशान लगा दिए । ठाकुर साहब द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में लिखा था, सच्ची भावना में इस योजना के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए पैसे के एवज में सीमेंट और ईंटों का वितरण किया गया । उसमें कहा गया, यदि होने नगद राशि दी जाती तो योजना का उद्देश्य पूरा नहीं होता और संभावना थी कि वो लोग उन पैसों को शराब और जुए नोएडा देते हैं । फिर भी एक आपके घर के निर्माण में होने वाले फुटकर खर्चों के लिए प्रत्येक लाभार्थी को दस हजार रुपए दिए गए । दस हजार रुपयों का एक हिस्सा ईटों की ढुलाई में खर्च हो गया । बबुआ का कारखाना टोले से सात किलोमीटर दूर था । दो बोरी सीमेंट पचास वर्ग फीट का एक छोटा सा कमरा बनाने के लिए भी पर्याप्त नहीं थी । हालांकि नदी किनारे बालू की प्रचुरता ने इस कमी को पूरा कर दिया । बालू के पैसे नहीं लगने थे । किसी प्रकार तो ले के निवासियों ने पत्ते घर बना लिए । हालांकि बीस हजार ईंटों से छत जमीन से छह फीट से ऊपर नहीं जा सकती । छत अभी भी अप्रैल ही बनी थी । सुहागपुर इस योजना को कार्यान्वित करने वाला पहला गांव था । बाद में सुहागपुर के आस पास के गांव प्रमुखों ने भी ठाकुर साहब के कार्यान्वन का तरीका अपना लिया । हुआ ने शोध नौ से खूब पैसा कमाया । उसने न सिर्फ उन गांवों को सीमेंट और इंटर बेची, बल्कि प्रत्येक लाभार्थी को पचास हजार सीटें और पंद्रह बोरी सीमेंट दिए जाने की ग्राम पंचायत को जारी की गई । रसीदों पर भी भारी कमीशन कमाना नहीं ठाणे की दिसंबर का प्रारंभ था । नया महीना शुरू हो गया था, लेकिन गोधरा को सिमी से कोई सूचना नहीं मिली तो उसने पूछा । शमी ने बताया कि उसे सुहागपुर से कोई अंतर्देशीय पत्र नहीं मिला । उतना नहीं सोचा । चाहत आने में देर हो गई होगी या अंतर्देशीय ट्रांजिट हो गया होगा । जब उसे अगले महीने की तीस तारीख तक सेमी से कोई सूचना नहीं मिली तो उससे अपने मई बाबा की चिंता होने लगी । हुई तो बात थी । उस वक्त गुडगांव में था । नई दिल्ली से जाने वाली पहली ट्रेन में बैठ गए और सेवान से एक घंटा पहले गोरखपुर स्टेशन पर उतर गया । शाम हो गई थी इसलिए ऍसे मिलना मुश्किल था । गोरखपुर से उसने टैक्सी ले ली । वहाँ से सुहागपुर की दूरी एक सौ तेईस किलोमीटर थी जब ड्राइवर सुहागपुर जाने वाले कच्चे रास्ते पर पहुंचा । रात के दस बज चुके थे । सडक अभी भी कच्ची थी । उस देखकर गोधरा को गुजरात के गांवों की पक्की सडकें याद आ गई, जिनसे वो अहमदाबाद से उदयपुर सडक मार्ग से जाते समय हो जाता था । सुहागपुर के रास्ते में उसे दाहिनी और स्तर तालाब याद आया, जहां उसने अपना को हमारे होया था । अपने स्कूल के सामने से गुजरते हुए उसके मन में अपने राज्य के प्रत्येक गांव और कस्बे में स्कूल कॉलेज खोलने की इच्छा जाग्रत हुई । यही वह स्कूल था जिसमें उसके सपने को घोषित किया था । गांव में अपने सबसे करीबी सहयोगी जामुन के पेड को देखकर से करेक्टर का दौरा याद आ गया । उसका मन हुआ रुक कर कुछ देर उसके नीचे बैठ जाए । सर्दी की रातों में गांव रात को आठ बजे तक सो जाता था । चांदनी रात थी । सरसों और गेहूं के घुटनों तक की फसलों ने गांव में उसका स्वागत किया । टैक्सी अभी भी गांव से पचास मीटर दूर थी जब गांव के कुत्तों ने भौंकना शुरू किया । टोला गांव के दक्षिणी छोड था । एक काला कुत्ता टैक्सी के साथ साथ दौडने लगा । उभाव भी रहा था । टैक्सी उसके घर तक नहीं जा सकती क्योंकि बीच में बहुत पतली गली थी । काले कुत्ते ने भौंकना बंद कर दिया और आगे के दो पैर फैलाकर बैठ गया होता । गोदना को पहचान गया । उसके साथ चलने लगा । लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकले । इस बात का संकेत था कि गांव में रात के समय भी यात्री वाहन आते रहते थे । जब गोदना ने गली में प्रवेश किया तो रास्ते में पक्के हर देखकर हैरान हो गया । जगह नहीं थी, लेकिन झोपडी को नहीं थी । जो साढे तीन साल पहले छोडकर गया था । उस की झोपडी की छत पुआल से बनी थी । लेकिन यहाँ एक ठोस छत वाला घर था । साढे तीन साल पहले किसकी झोपडी में दरवाजा पता नहीं था । सिर्फ बोलियों को सिलकर बनाया गया । एक पडता लडका था और जहाँ एक घर था, जिसमें टीम का पूरा दरवाजा था । योजना हो रही थी, लेकिन उस कुत्ते को नहीं जो दरवाजे के सामने बैठ गया था । गोदना ने दरवाजे के पास जाकर धीरे से पुकारा भाई एक माँ को नींद से जगाने के लिए बेटे की दूसरी आवाज की जरूरत नहीं होती, चाहे वो कितनी गहरी नींद में क्यों ना हो । योजना अंदर से जवाब आया । महीने दरवाजा खोला । पीछे से बाबा भी आ गए । दोनों के मुझे एक साथ निकला गोदना तो दोनों ने अंदर आकर दरवाजा बंद कर लिया । वाइॅन् जुलाई को इतनी रात को गोधरा को देखकर भयभीत हो गई थी । उतना अपने मई बाबा को सामान्य करने में कुछ वक्त लगा । माइने उसे खाने के लिए पूछा । वो ना ने इंकार कर दिया । लेकिन माइक्रो जानती थी कि वह भूखा है । उसके पास तो रोटियाँ बच्ची थी । जब उन्हें गर्म करने के लिए कैरोसीन का स्कूल चलाने लगी तो वो इतना बोला भाई गर्म करने की कोई जरूरत नहीं है । हम ऐसे ही खा लेंगे । उनको प्यार से दो माईने प्याज जमीन पर रखकर मुट्ठी से फोड दिया । बोलना ने देखा कि दीवाल और छप्पा पक्के हो गए थे, लेकिन जमीन अभी भी कच्चे थी । हमको दो महीने से अंतर्देशीय क्यों नहीं मिल रहा है? गोधरा ने मई से पूछा वही बाबा की और देखने लगी जो कमरे के अंधेरे कोने में बैठे थे । ठंड समझने के लिए उन्होंने अपने शरीर को सिकुड लिया था । वो अपना खुद को कोसने लगा कि वह बाबा के लिए गर्म लोग क्यों नहीं लाया । उसने अपना पुलोवर उतारा और बाबा के पास जाकर उन्हें पहना दिया । उसने देखा कि बाबा रो रहे थे, खुशी से रो रहे थे । अपने बेटे को देखने की खुशी से वो सब चिट्ठी आग में जल गई । महीने कारण बताता हूँ आप कैसे कब क्या हुआ । लगभग साढे तीन माह पहले हम एक दिन हम दोनों खाना खा के हवेली चले गए । सवेरे हमने हमारे बाबा को डाक के डिब्बे में डालने के लिए चिट्ठी दी थी । हम वो चिट्ठी का मंडल वापस अपने बक्से में डालना भूल गए और वो स्टोर के पास रह गई । दो घंटे बाद सोमी सरकार का दौडते हुए हवेली में आए और बोले की अपनी झोपडी में आग लग गयी थी तो फिर का समय था और सब पडोसी काम पर गए थे । हम लोग खाली टिन का बक्सा बता पाए, क्योंकि वह रूप से दूर था । हम लोगों ने घर के से बनाया । मालिक ने मदद की । बाबा गोदना को ठाकुर साहब के एहसानों की याद दिलाने का मौका कभी नहीं चूकते थे । गोधरा पूरी बात जानने के लिए भाई की और देखने लगा । मालिक ने टोले में सबको पक्का मकान बनाने के लिए ईटा सीमेंट और दस दस हजार रुपए दिए । हमने सीमित ले लिया और रीड की ढुलाई का इंतजार कर रहे थे, तभी झोपडी जल गई । मालिक यहाँ कोटे से ज्यादा सीमेंट और इरिटेट दी । पूरे टोले में सिर्फ हमारी छत पर की है । उन्होंने हमें ईटों की ढुलाई का इंतजाम भी कर दिया । हमें घर बनाने में एक महीना लग गया । तब तक हम मालिक के फार्म हाउस में रहे । हम हमें शाम का एहसान मानेंगे । वो हमारे लिए भगवान है । हमें उन का नाम खराब नहीं करना चाहिए । मई का इशारा बबुनी की और था । उसे लगता था कि बहुत ही से शादी करके गोदना ठाकुर साहब और उनके परिवार की बनानी का कारण बन जाएगा । और क्या क्या हो रहा है । गांव में गोधरा बबुनी के बारे में कुछ सुनना चाहता था । दो साल से गांव में सूखा पड रहा है । बरसात के देवता अपने गांव से शायद खुश नहीं है । फसल खराब होने से हम लोग के राशन में कटौती हो गई है । सबको बहुत मुश्किलों का सामना करना पडा । जितना राशन हम लोग को मिलता है उसके बदले और कुछ नहीं आ सकता । पहले हम लोग अपना पेट भरना है तो ले के आदमी काम के लिए शहर जाने लगे हैं । गांव की दुकानों में राशन के बदले नहाने और कपडे धोने का साबुन, चीनी, चाय इत्यादि मिल जाती थी । माइक हम तुम्हारे लिए जो पैसे छोड गए थे वो खर्च क्यों नहीं किया तुम लोगों ने अरे तुम्हारे बाबा ने कभी पैसा खर्च नहीं किया है इसलिए उनको डर लगता है । उनको लगता है कि पंसारी उनको ठग लेगा । ऊपर से वो मालिक की इतनी इज्जत करते हैं कि नहीं चाहते हैं । उन को मालूम पडेगा कि हम लोग इतनी दिक्कत में हैं कि तुम्हारा दिया पैसा खर्च कर रहे हैं । कोबरा को अपने बाबा पर बहुत तरस आ रहा था । वो जानता था कि वो उनका रवैया बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकता था । बाबा एक बार एक बार उसको छोड सकते थे लेकिन ठाकुर साहब को नहीं । गोधरा उनके लिए पचास हजार रुपए लेकर आया था । उसमें वो पैसे मई को दिए । मेरे पास इतना पैसा कहाँ से आया? मायने कभी तेरे पैसे नहीं देखे थे । गोधरा ने उसकी बात टाल दी और अकोला की ओर मुड कर बोला बाबा! अगर ठाकुर साहब और सीमेंट और हीट नहीं देते, वो इस पैसे जमीन पक्की करवा लीजिएगा और घर के चारों ओर चारदीवारी और सामने दालान बनवा लीजिए । लेकिन भगवान के लिए पक्की जमीन और चाहरदिवारी जरूर बनवा लीजिए । बाबा कुछ नहीं बोले । गोदना ने मई से कहा भाई, हमें पार्सल भेजेंगे, जिसमें सौ अंतर्देशीय होंगे । हम पहले की तरह हर महीने एक चिट्ठी डाक में डाल देना । डाकघर में फोन लग गया है । महीने ऐसे कहा जैसे वह कोई संकेत कर रही हूँ । हरखू काठा का बिटुआ सूरत से फोन करके उनसे बात करता है । भाजपा नंबर है डाकघर के फोन का की खबर संकर बोलना उत्साहित हो गया । हम को कैसे मालूम होगा तुम कल डाकघर जाकर पोस्टमास्टर साहब से पूछ लेना । उसे तो ये भी नहीं मालूम था कि हर टेलीफोन कनेक्शन का एक नंबर होता है । मैं हमको सवेरे वापस जाना है तो तुम खाली एक रात के लिए आए हो । मई जब हम को तुम लोग की चिट्ठी नहीं मिली तो हमको तुम दोनों की चिंता हो गई थी । हम लोग ठीक ठाक देखकर हमारी चिंता चली गई । हम खुश है । तुमको हमलोग की चिंता होती है तो तुम हम लोग के साथ क्यों नहीं रहते? अंतर रहना चाहते हैं लेकिन हम जानते हैं कि बाबा किसी हालत में हमारे साथ शहर चलकर रहने को तैयार नहीं होंगे । उसने एक उम्मीद के साथ बाबा की और देखा, लेकिन अकोला कुछ नहीं बोला । फरमाई तू तो जानती है । गांव में रहकर हम अपना सपना पूरा नहीं कर पाएंगे । होने लगी उसका बडबडाना चालू हो गया । अरे हर माँ का सपना होता है अपने बेटे की शादी देखने का । अपने पोते पोती का मुंह देखना था । उनके साथ खेलना चाहती है । हम को तो पता भी नहीं कि हमारा सपना है । जिंदगी में पूरा होगा भी की नहीं । वो इतना सोचने लगा कि उसकी माँ का सपना कितना छोटा था । फिर वो ये भी सोचने लगा कि कितना असहाय था वो । उसका छोटा तो सपना भी पूरा नहीं कर पा रहा था । फॅमिली में सब लोग कैसे हैं? उसने माहौल बदलने का उद्देश्य से पूछा । वैसे भी उसे शायद ये प्रश्न पूछना था वो बडे लोग हैं । उनको कहा हो सकता है बरसात, गर्मी, ठंडी सूखा । इस अब हम गरीब लोगों को परेशान करता है । बुआ ने अपना व्यापार शुरू कर दिया है । बबुआ छह महीने से दिल्ली में है । उसने रुककर गोधरा की और देखा की सोच रहा था कि पिछले छह महीने से वह कंपनी से सिर्फ चालीस किलोमीटर दूर था । मई आगे बोली और सहायक और दे दिया ठाकुर साहब पर बहुत की दूसरी शादी का जो डाल रहे हैं । झुककर गोधरा के चेहरे के बदलते हम देखने लगी । वो जानती थी कि गोधरा का हवेली का हालचाल पूछने का मतलब किया था । उसने सफाई से अपने बेटे की जिज्ञासा शांत कर दी तो अकोला के सामने सीधे सीधे कुछ नहीं कह सकती थी । अगर उसको मालूम पड जाता है कि गोदना बबुनी से प्यार करता था तो शर्म के बारे नदी में कूदकर जान दे देता हूँ । बाकी की रहा गोदना सुबह का इंतजार करता रहा । वो जल्दी से जल्दी बरगुना से मिलना चाहता था । उसे उससे कितनी सारी बातें पूछनी थी । उसने देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी इसलिए छोड दी थी क्योंकि उसे लगा था कि वह नौकरी उसे बबुनी से शादी करने लायक नहीं बनाएगी । सर्दियों में रहते लंबी होती है क्योंकि सूरज देर से निकलता है । हालांकि वो आपने मई बाबा के साथ था फिर भी हो रहा तो उसे बहुत लम्बी लग रही थी । सूरत निकलने से पहले उसने गांव छोड दिया था ।

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बेटिकट मुजरिम से अरबपति बनने की कहानी writer: राजीव सिंह Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Rajeev Singh
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