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ए क्या जब गोदना ने प्राथमिक स्कूल समाप्त कर लिया तो दुनिया से पूछा कि वह आगे पढना चाहता था या नहीं । उतना नहीं आगे पढने की इच्छा जाहिर कर दी । लाला हरदयाल माध्यमिक विद्यालय हिंदी माध्यम का निकटतम स्कूल था । वो साहब के सिफारिशी पत्र के साथ एक गार्ड गोदना का दाखिला करवाने उसे स्कूल ले गया । वो उतना को दाखिला मिल गया । जाति प्रमाणपत्र की सहायता से एक बार फिर उस की स्कूल फीस माफ हो गई है । सेंट कोलंबस स्कूल नहीं कक्षा आठ तक बबुआ को छेड लिया । स्कूल की एक नीति थी । इसके माध्यम से बबुआ कक्षा आठ तक पहुंच गया । अब शिक्षा के अधिकार के तहत सरकार ने कक्षा आठ तक के छात्रों को पास करना अनिवार्य कर दिया था । कक्षा आठ की वार्षिक परीक्षाओं से पहले प्रिंसिपल उसके अभिभावकों को मिलने वाला दे दिया । उनसे मिलने स्कूल पहुंच प्रिंसिपल उन्होंने बताया कि बबुआ की प्रगति बहुत धीमी और अब वह उसे स्कूल में नहीं रख सकते हैं । ऍसे बहुत गिनती की लेकिन वो नहीं माने । उस शाम दिया ने कुमार साहब कोई बात बताई और उनसे सिफारिश करने के लिए कहा तो साहब ने मना कर दिया । उन्होंने बबुआ को हिंदी माध्यम के स्कूल में डालने की सलाह दी । ठाकुर साहब के चल सा दे दिया बबुआ को आगे भी अंग्रेजी स्कूल नहीं पढाना चाहती थी उन्नीस सौ बयासी की गर्मियों में जब गोधना को लाला हरदयाल माध्यमिक विद्यालय की कक्षा नौ में दाखिला मिला तब दुनिया ने दो हजार रुपये की कैपिटेशन फीस देकर बबुआ का दाखिला सेंट पीटर्स पब्लिक स्कूल में करवा दिया । उतना ने आसानी से कक्षा नौ पार कर ली, लेकिन बबूआ खेल हो गया । हालांकि उनके पास किया जा सकता था, लेकिन उसकी क्लास टीचर में सलाह नहीं । उसके अगले साल की बोर्ड परीक्षाओं के लिए बेहतर नींव तैयार करने के लिए उसे कक्षा नाव में ही एक साल और पढना चाहिए । इस प्रकार गोदना बबुआ से एक साल आगे निकल गया । हालांकि वह एक साल छोटा था । कक्षा बस की परीक्षा में गोदना राज्य की मैरिट सूची में चौथे स्थान पर रहा हूँ । मेरिट सूची में जगह बनाकर उसने राष्ट्रीय योग्यता छात्रवृत्ति के लिए अर्हता प्राप्त कर लेंगे । उसे सौ रुपए महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की गई । बहने किसी तरह परीक्षा पास कर लेंगे, लेकिन नौवीं कक्षा में दोबारा पडने से उसे दसवीं में कोई मदद नहीं मिली । वो अगले साल बोर्ड परीक्षाओं में फेल हो गया, जबकि गोंडाने ग्यारहवीं कक्षा पास करेंगे । उन्नीस सौ पच्चीस की गर्मी की छुट्टियों में वो इतना और बबुआ के साथ दीदी अभी सुहागपुर आए वो रणविजय सिंह बबुनी की शादी से दो दिन पहले पहुंचने वाले थे धन विजय भारतीय वायुसेना में पायलट बनने का प्रशिक्षण ले रहा था । उसे छुट्टी नहीं मिली थी इसलिए वह परिवार के साथ नहीं आ सकता था । ठाकुर साहब ने बबुनी की शादी को और बलवंत शाही के साथ तय कर दी । बलवंत शाही ठाकुर प्रभुनाथ शाही के छोटे बेटे थे । बडे ठाकुर शाही देवरिया जिले के ही रुद्रपुर गांव के मुखिया गई । उठाकर सूरज देवसिंह से कहीं अधिक बडे जमींदार है । वो न सिर्फ सात सौ एकड खेतों के स्वामी थे बल्कि चीनी मिल के भी मालिक थे । बलवन शाही के मामा केंद्र सरकार में मंत्री थे और उन्होंने विवाह समारोह में शामिल होने की हामी भर दी । उनके साथ कई अन्य नेता भी आने वाले थे । इतने प्रतिष्ठित परिवार के साथ संबंध चुना था और साहब के लिए गर्व की बात थी लेकिन साथ ही उन्हें चिंता भी हो रही थी । वो व्यवस्था में कोई कमी नहीं छोडना चाहते थे । समृद्ध ठाकुर परिवारों में व्यवहारिक समारोह, धन और हैसियत का प्रदर्शन करने के अवसर होते थे उन सभी रिश्तेदारों को जो उच्च पदों पर आसीन होते थे, विशेष रूप से राजनीति । ये सिविल सेवाओं में महीनों पहले से विभाग में उपस्थित रहने का आग्रह किया जाता था । ठाकुर साहब के पिता जिनके एक समय राज्य के अवलंबी मुख्यमंत्री के साथ अच्छे संबंध थे, व्यक्तिगत रूप से लखनऊ उन्हें निमंत्रण देने गए । हालांकि पिता तो दोनों ही जानते थे कि वह नहीं आएंगे । इसलिए उन की ओर से एक ही प्रमुख व्यक्ति के आने की पुष्टि हुई थी और वो थे और रणविजय सिंह । ठाकुर साहब ने इस बात की पूर्ति अन्य चीजों से कर दी है । उन्होंने गिरी बाबा को बनारस भेजकर सर्वश्रेष्ठ लडकियाँ बनवाई । बनारस के पारंपरिक कोठे कब तक शैली की उत्कृष्ट लडकियों के लिए प्रसिद्ध थे । पटना के प्रसिद्ध सत्तू हलवाई की पेशगी में अच्छी खासी रकम देकर सात दिनों के लिए रखा गया है । तीन दिन वैवाहिक समारोह के लिए और चार दिन रिश्तेदारों के लिए । ठाकुर साहब ने सत्तू को विशेष रूप से निर्देश दिया था कि वह वर्दीधारी वेटर नियुक्त करें । उन दिनों बडा तीन दिन रखती थी । इन तीन दिनों में उनके रहने और खाने पीने की व्यवस्था करना लडकी वालों की जिम्मेदारी होती थी । शाही साहब ने पुष्टि कर दी थी की बरात में कम से कम तीन सौ लोग होंगे चाहिए परिवार के सदस्य हवेली के मुख्यद्वार के ऊपर बने मेहमानों के दोनों कमरों में ठहराए गए थे । उन दिनों महिलाएं बराब के साथ नहीं आती थी । अन्य बरातियों को स्कूल की हमारा और उसके आसपास बने अस्थाई तंबू में ठहराया गया । बिजली गांव के लिए दुर्लभ चीज थी । वैसे भी बिजली की आपूर्ति सिर्फ दिन के समय सिंचाई के लिए होती थी इसलिए बीस जनरेटरों की व्यवस्था की गई । चार हवेली के लिए और बाकी स्कूल और तुम लोगों के लिए तम्बू और स्कूल की इमारत में पंखे और लाइटें लगाई गई थी । आम के बगीचे में नृत्य कार्यक्रम के लिए खंबों के सहारे एक विशाल पांडाल खडा किया गया था । भर्तियों के मनोरंजन के लिए हाथियों की दौड भी आयोजित की गई थी । ठाकुर साहब के अनुरोध पर पडोसी गांव के ठाकुरों ने अपने हाथ भेज दिए थे । सभी बरातियों ने नदी के किनारे सात हाथियों की दौड का लुफ्त उठाया तो पता नहीं क्यों लेकिन गोधरा को शादी के कार्यक्रमों में मजा नहीं आ रहा था । उसे एक साल पहले गर्मी की छुट्टियों में बबुनी से हुई बातचीत याद आ रही थी । बहुत उसे ढूंढते हुए शाम के वक्त उसकी झोपडी में आ गई थी । हालांकि उस समय उसे सोलह साल की लडकी थी लेकिन उसे गोधरा के साथ रहना अच्छा लगता था । वो नदी के किनारे टहलने चले गए थे तो नई दिल्ली में कब तक रहोगे । बबुनी ने पूछा तो बातचीत किस दिशा में जाने वाली थी? इस बात से अनजान गोदना ने पूछा । बहुगुणा ने कहा उसके उसके साथ खेलने की आ जाती है । बोलना ने जवाब दिया कि वह कलेक्टर बनने के बाद ही वापस आएगा । बहुत ही नहीं चढाते हुए कहा था कि वो अपने पापा से बबुआ को वापस बुलाने के लिए कहेगी ताकि गोधरा को भी वापस आना पडेगा । उतना कोई मजाक अच्छा नहीं लगा और कुछ नहीं बोला । बबुनी को अपनी गलती का एहसास हो गया था । उसने गोद में से माफी मांग ली थी । भगनी ने पहली बार उसके लिए अपनी भावनाएं व्यक्ति थी । कहा था कितना अच्छा होता हूँ । अगर दोनों जीवन भर साथ नहीं पाते । गोदना ना उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था और मजाक में कहा था कि अगर वो कलेक्टर बन गया तो मालिक से उसका हाथ मांग लेगा । बबुनी ने इस बात को गंभीरता से लेते हुए आशंका जताई थी पता नहीं उसके पापा मानेंगे या नहीं । योजना को जवाब मालूम था लेकिन उसने बबुनी की आशंका का जवाब नहीं दिया था । आपको एक साल बाद बबुनी की शादी हो रही है और वो अभी तक कलेक्टर नहीं बना तो दूर से उन्होंने तो को आम के बगीचे में बने पंडाल में नाचते हुए देख रहा था । अचानक उसके पेट में खलबली दुखने लगी और अपनी झोपडी में चला गया । रास्ते में हवेली में जगमगाती रोशनी को देखकर उसका मन और खराब हो गया । उनतीस मई ऍम बबुनी विदा होकर रूद्रपुर अपने नए घर में चली गई । वो इतना उसके जाने से पहले उसकी एक झलक भी नहीं देख सका ।
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