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तीन बब्बू अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में संघर्ष कर रहा था जबकि गोधरा अपनी कक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा था । वार्षिक परीक्षाओं में वो अपनी कक्षा में प्रथम आया । कोना की खुशी का ठिकाना नहीं था । वो अपने सपने की और कदम बढा रहा था । उस बात से और उत्साहित था कि वो लोग गर्मी की छुट्टियों में गांव जा रहे थे । राइट बाबू ने गांव ले जाने आए थे । पिछले साल के विपरीत इस बार गोदना के लिए स्लीपर क्लास में एक सीट आरक्षित थी । सेवान रेलवे स्टेशन कर रही है । पिछले साल से कुछ अगर नहीं था । सिर्फ समय अलग था । इस समय सुबह ग्यारह बजे थे । अकोला सामान और गोदना को ले जाने के लिए एक बैलगाडी लेकर आया था । सामान में से दो अटैचियां और बोरियाँ घट गई थी । जैसे ही बबुआ नारायण बाबू डिब्बे से बाहर निकले, नारायण बाबू ने उत्साहित स्वर में ठाकुर साहब को सूचना दी । भबुआ अंग्रेजी बोलते हैं । तब तक ठकुराइन ने अपने चौदह वर्षीय बेटे को उठाकर उसके कालों और माथे पर चुंबनों की बौछार करनी शुरू कर दी और रोते रोते बोलती जा रही थी । बबुआ बबुआ गोदना देख रहा था । वो जानता था की मई भी उसके साथ ऐसा ही करेगी । बबुनी कोई नाटक में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वाकर गोदना के पास खडी हो गई अगर वो उसका दोस्त था । नारायण बाबू का उत्साह ठाकुर साहब को हस्तांतरित हो गया था । उन्होंने बहुआ से पूछा या तो सच में अंग्रेजी बोलते हो? बहु आने जवाब में अंग्रेजी वनवाला के पहले चार ऍम बोल दिए ए बी सी डी मेरी खुशी से ठाकुर साहब की आखिर भी गई । बहुत अपनी जेब से कुछ पैसे निकले और आस पास मौजूद सभी नौकर और कुलियों को तमाशा देखने के लिए रुक गए थे । दो दो रुपये बात दिए गोधरा उसके बाबा को भी दो दो रूपये मिले । ठाकुर साहब ने पहली बार अंग्रेजी के अक्षर सुने थे, वो भी अपने बेटे के मुझ से हुआ । पूरे छब्बीस अक्सर बोलना चाहता था । लेकिन ठाकुर साधनों से रोक दिया, बाकी के कल की दावत के लिए छोड दो । कल शाम को हमें इस उपलब्धि का जश्न मनाएंगे नारायण बाबू की और मुड कर बोले बाबू, सभी पडोसी गांवों के मुखियाओं को निमंत्रण भेज दीजिए । सबको निमंत्रण देने के लिए आज ही अपने आदमी भेज दीजिए और इतने आदमी लगाइए । ज्यादा से ज्यादा गांव में न्यौता पहुंच जाएगा । इन सब ठाकुरों को बबुआ की अंग्रेजी सुनने दीजिए, बहुत बडा जश्न होना चाहिए । ठाकुर साहब के पास उस जश्न के आयोजन का एक और कारण था । वर्षों की तपस्या के बाद सत्तारूढ पार्टी ने भी राज्य विधानसभा चुनावों के लिए अपना उम्मीदवार चुना था । उन्नीस सौ अस्सी के वसंत का मौसम था । राज्य विधानसभा भंग कर दी गई थी और चुनावों की घोषणा हो चुकी थी । राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन था ठाकुर मंगलदेव सिंह रहे । बीस वर्ष पहले इसी सत्तारूढ पार्टी के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा का चुनाव लडा था जिसमें आजादी के बाद सही लगभग पूरे समय देश पर शासन किया था लेकिन वो चुनाव हार गए थे । पार्टी ने स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते उन्हें अवसर दिया था लेकिन दोबारा जोखिम नहीं उठाया तथा भी सत्तारूढ पार्टी के प्रति परिवार का प्रेम बना रहा । उस शाम की दावत में बयालीस गांवों के मुखिया शामिल हुए । ठाकुरसाब कोई देखकर खुशी हुई कि प्रत्येक आमंत्रित व्यक्ति रावत नहीं मौजूद था । प्रथम दृष्टया सबने ठाकुर साहब के साथ एकजुटता दिखाई थी क्योंकि चुनाव से पहले उनके पक्ष में एक सकारात्मक संकेत था जबकि तथ्य अन्यथा था । जश्न शाम को सात बजे शुरू हुआ और आधी रात के बाद तक चला । मेहमानो शाम शराब की पंद्रह बोतले खाली कर रही हैं । सभी नौकर उत्सुकता से उन पोत्रों को खाली होते देख रहे थे । इसलिए नहीं कि वो उन बोतलों के अंदर की शराब देना चाहते थे, बल्कि उन्हें तो ब्रांच की खाली बोतलें चाहिए थी । खाली कांच की बोतलें उनके घर के बर्तनों का हिस्सा होती थी, जिसमें पानी भर कर रखते थे । उसमें से पीने के लिए यह सुबह खेतों में भर कर ले जाने के लिए गोदना उस दिन दो बुद्ध ले पाने में कामयाब हो गया । एक उसने अपनी दिल्ली की यात्रा के लिए संभाल कर रख ली । उस शाम का मुख्य आकर्षण बबूआ का अंग्रेजी बोलने का प्रदर्शन था । खराब का दूसरा दौर शुरू हुआ । उठाकर साहब ने घोषणा की, आज हमारे लिए बहुत गर्व का दिन है । हमारे वरिष्ठ में पहली बार किसी ने अंग्रेजी सीखी है । अब हम स्वदेश चमत्कार को अपनी आंखों से देखेंगे । वो बबुआ की और देखने लगे । बहुत चुपचाप खडा रहा । ठाकुर साहब उसे राजी करने में लग गए । सन्नाटा छाया हुआ था । अगर बबुआ नहीं बोलता तो गोधरा को उम्मीद थी ठाकुर साहब उसे अंग्रेजी बोलने के लिए बुलाएंगे । अगर उसमें भी तो अंग्रेजी के अक्षर और कुछ एक शब्द सीखे थे । तो लेकिन ठाकुर साहब ने उसे नहीं बुलाया, बल्कि धैर्य खाकर जोर से चिल्लाए हुआ उनका चलाना काम कर गया । बहुत मैंने अपना मुंह खोला । ए बी सी डी खुश होकर ताली बजाते हुए ठाकुर साहब अपने मेहमानों की और देखने लगे । उनके कुछ मेहमान भी ताली बजाने लगे । ठाकुर साहब ने अपने हाथ उठाकर सबसे शांत रहने का निवेदन किया और बुआ की और उम्मीद से देखने लगे । बहु आगे बोला ईएफजी एच तो बोलता गया आई जे के एल रुक गया । सब लोग खोलकर बहुओं को देख रहे थे । बहुत टेबल पर रखे पानी भरे जगह और गिलासों की और देखा था और साहब उनकी बात समझ गए तो चलाए अनिला उसके लिए चार नौका दौड कर उसके लिए पानी ले आए । पानी पीने के बाद हुआ, आगे बोलना शुरू किया उसने पूरी वह हमारा बोलने में करीब दस मिनट लगाए और बदले । मुझे ढेर सारी तालियां मिली । चुनाव में ठाकुर साहब के निकटतम प्रतिद्वंदी से श्यामबिहारी तिवारी उस क्षेत्र में समाज में दो जातियों के बीच द्रवीकरण था । ठाकुर और धवन बाकी सब सिर्फ इनमें से किसी का अनुसरण करते थे । ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच के संबंध कभी अच्छे नहीं रहते थे । चाहे चुनाव हूँ या नहीं । कभी कभी उनकी आपसी दुश्मनी एक सूरत मोड ले लेती, इसका अंजाम हत्या तक पहुंच जाता । चुनाव अभियान के दौरान सीधी मुठभेड होना सामान्य बात थी । उनके समर्थन जो आम तौर पर चुनाव प्रचार के समय नशे में होते थे, अपने नेता के प्रति वफादारी साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे । ठाकुर साहब बिछडे चुनाव नहीं भूले थे पिछडी जाति के उम्मीदवार की जिसमें चुनाव लडने की हिम्मत दिखाई थी और जिसके एक विशेष जाति के वोट बैंक को प्रभावित करने की संभावना थी । चुनाव प्रचार के दौरान एक भीड द्वारा निर्दयतापूर्ण क्या कर दी गई थी? अज्ञात संदिग्धों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया । मामले की सुनवाई अभी भी होनी बाकी थी । नामांकन की तारीख से पहले गिरी बाबा ने हवेली में बेल्जियम की बनी दो लाइसेंसधारी दुनाली बंदूकों की सर्विसिंग कर दी । गिरी बाबा ठाकुर साहब का ड्राइवर भी था और अंगरक्षक कोई विशेषज्ञ लाठीवार था । गिरी बाबा एक बंदूक लेकर चलता था । उसने अगले एक महीने के लिए दस और लाठी बाद रखनी है । भीमा ने जो भी बाबा और ठाकुर साहब दोनों का विश्वासपात्र था, दूसरी बंदूक लेकर चलने की जिम्मेदारी उठानी ठाकुर साहब को बिना लाइसेंस की एक कोर्ट पाइथन रिवॉल्वर लेकर चलना पसंद था । कुंवर रणविजय सिंह के पिता नहीं तो सेना के अवकाशप्राप्त कर्नल थे । ठाकुर साहब को वॉलवर्ड भेंट की थी । जैसा कि करना चाह कटा हुआ था उन्होंने पूरी वॉलवर्ड बांग्लादेश युद्ध के दौरान दुश्मनों सुश्री नहीं थी । ठाकुर साहब एक पडोसी गांव के मतदाताओं के लिए भी सुहागपुर में मतदान केंद्र बनवाने में कामयाब हो गए । उन्हें मतदाताओं की संख्या की परवाह नहीं थी । उनके पहलवान शाम चार बजे तक वहाँ रुके रहे । उसके बाद उन्होंने सभी अनुपस्थित मतदाताओं के बदले वोट डालती हैं । भगवान ने चालीस वोट डाले तो वो थक गया तो हमारे भी चार वोट डाले । उसे तो पता भी नहीं था कि वोट डालने का अधिकार पाने में उसे अभी आठ वर्ष बाकी थे । वो अपने नाखून में लगी शाही देखकर बहुत खुश था । उन दिनों बूथ कैप्चरिंग यानी बूथ पर कब्जा उन क्षेत्रों में सामान्य बात थी । उसके अलावा ये बूथ कैप्चरिंग का नरम संस्करण था, जहां बंदूकों का उपयोग करने की जरूरत नहीं होती थी । उनके प्रतिद्वंदी के पास भी ऐसे नरम बूट थे । ऐसे कुछ चार बूट थे तो किसी के क्षेत्र में नहीं थे । इन बूथों के दस हजार वोटों में से अधिकांश पिछडे समुदायों से थे । गिरी बाबा ने इन बूथों पर कब्जा करने की जिम्मेदारी लेंगे । जब गिरी बाबा मतदाताओं को डराने के लिए हवा में गोलियां चलाने लगा । उस स्थिति हिंसक हो गई । विरोधी भी गोलियां बरसाने लगे । सीआरपीएफ की एक बटालियन ने आकर स्थिति को समय से काबू में कर लिया । धीरी बाबा और उनके तीन साथियों को और विरोधी कैंप के चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया । उस शाम आठों ने रुस्तमपुर पुलिस स्टेशन में साथ बैठकर शराब पी । अगली सुबह पुलिस ने बिना कोई मामला दर्ज किए उन्हें रिहा कर दिया । गोलीबारी के बाद कोई मतदाता वोट डालने नहीं आया । जिला कलक्टर नहीं उन बूथों पर पुनर्मतदान का आदेश दे दिया । परिणाम वाले दिन ठाकुर साहब अपने गैंग के साथ मतगणना शुरू होने से पहले तहसील के दफ्तर पहुंच गए । श्यामबिहारी तिवारी भी अपने दलबल के साथ वहाँ मौजूद थे । जैसे जैसे विभिन्न क्षेत्रों की मत पेटियां खुल रही थी, ऍम होने लगा था कि उनके ठाकुर मित्रों ने उन्हें धोखा दिया है । दोपहर तक परिणाम स्पष्ट होने लगा था । डैडी कैंप में बोल बनने लगे थे और हवा में रंग उन्हें लगा था । उदास ठाकुर साहब वहाँ से चले आए । वो पूरी तरह से चुनाव हार गए थे और साथ ही अपनी प्रिय सत्तारूढ पार्टी का विश्वास भी
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