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भाग सोलह बिहार इतने सारे कपडे पहने हुए थे और इस वक्त तो आश्रम में बाहर नल के पास पर बंद हो रही थी । अचानक गाडियों के रखने की आवाज नहीं । उसका ध्यान मुख्यद्वार की तरफ खींचा । अगले ही पल उसे सादे कपडों में कुछ लोग पुलिस के साथ आते दिखाई दिए । उसने मुझसे भाई की संस्कारी निकल गई । अभी बहुत अंदर जाने के लिए तेजी से उठी थी कि उनमें से एक युवक बोला निहारिका चीज तब आपको और छिपने की जरूरत नहीं है । वह था निहारिका हैरान परेशान से असमंजस भरे हालत में खडी हो गई । अमर चौदह और इंस्पेक्टर उसके सामने खडे हुए हैं । समय सब पता चल चुका है । ऍसे हुए बोला आपको यहाँ अपने की क्या जरूरत थी? जो कुछ हुआ उसमें आपकी क्या गलती थी? पता है आपके खाते हैं, आपके घर वाले कितने परेशान थे? निहारिका सर झुकाए खडी रहेगी । अमर ने इस बटर को शांत रहने का इशारा किया और निहारिका के नजदीक पहुंचा तुम्हारे ऊपर क्या कुछ नहीं है । मैं समझ सकता हूँ किसी हम इंसान के लिए उसे सही पाना आसान नहीं है पर हम एससी की तरह लेना चाहिए । सब कुछ छोड कर भाग जाना सोल्यूशन नहीं है । मुझे नहीं जाना । वापस पैसे रखते हुए बोली मैं कभी खुद को माफ नहीं कर सकती । मेरी वजह से दो लोगों ने अपनी चरण करवाई । मैरीकाॅम जिस के आस पास रहने वालों का सिर्फ बुरा होता है । दूसरों की गलतियों के लिए खुद को दोष देना गलत है । तुमने किसी को प्यार किया और तुम्हें धोका मिला । इसमें तुम्हारी गलती नहीं है । बाकी जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था और उसके लिए खुद को दोष देना गलत है । हूँ रन नेता मुझे धोखा दिया था पर मनोज की क्या गलती थी वो तो सिर्फ मेरी मदद कर रहा था । मुझे मरा समझकर उसने भी खुद को मार लिया । उस प्यार को दुत्कारने वाली मैं कितनी खुद कर सकते अहसानफरामोश थी उसके साथ जो हुआ वो एक व्यक्ति जनून और हालातों का नतीजा था अगर उसने ठीक से तो मैं क्या होता है न? अब सब अगर है तो बोली होती तो जानता था कि तुम सर पे होती थी तो किसी कि मदद भी नहीं ले सकता था । क्योंकि पहले ही पोकरण के करके के अपराध तले दबा हुआ था पैसे तो हरी सांस क्या बात करी थी जी शायद क्योंकि मुझे जब होश आया तो मैं सोच तोड से सबसे लेने लगी थी । ऐसा लग रहा था की गले में कुछ अटका हुआ है । उल्टी भी हुई थी मेरे मनोज को ढूंढा तो उसे पैड पर हमेशा के लिए सोते हुए पाया । उसका सोसाइटी लेटर पढने के बाद तो मुझे उमर जाने की इच्छा हो रही थी । हिम्मत नहीं कर सके । मैंने फैसला किया मैं सबसे दूर हो जाऊँ, कहीं गायब हो जाऊंगी हमेशा के लिए । तभी जावेद जामवंत रायता परिवार के साथ वहां पहुंचा । निहारिका के मैंने दौड कर उसे गले लगा लिया । पूरी तरह से हो रही थी उसी बच्चे हमने तो सोचा था ऍम तो बैठी को मंदिर तो मेरे साथ रहने वाला कभी ठीक नहीं । राॅबर्ट मैं लडकियों ये क्या बकवास कर रही है । ऐसा नहीं बोलते तो हमारी लाडली है । जब से तो हमारे जीवन में आई है हमारी सर तरक्की हुई ऍम कितना बडा है चावल थाई की आंखों में आंसू है । उसने अपनी बेटी को गले से लगा लिया । लेकिन बाद अगर आप कभी इस तरह हमें छोड कर नहीं जाएगी । निहारिका दी कुछ जवाब नहीं दिया । जावेद अमर और चौवन उन्हें छोड कर दो रह गए । अमर ने सिगरेट का पैकेट निकाला और खुद एक लेकर एक जावेद को दिए । फिर सुलगाते हुए बोला, चलो ये केस अंत में एक अच्छे लोग पर समाप्त हुआ । कम से कम लडकी तो न मिल गई । जावेद और सहमती में से मिला है । ये देख रहे हैं जावेद ने जेब से टिकट निकाल कर अमर और उनका दिखाया ट्रेन का टिकट । जॉन बोला फिर पडने लगा जम्मू एक्सप्रेस पठानकोट की टिकट करण गेरेवाल और निहारिका जावेद ने हामी भरी । संडे के ही टिकट जिस दिन ये पूरा कांड हुआ, दैनिक रन निहारिका को अपने साथ पठानकोट ले जाने वाला था । हमार के चेहरे पर हवाइयां उड रही थी । मतलब उसके मन में निहारिका को धोखा देने का कोई इरादा नहीं था । मैंने मैंने ऐसा अनुमान लगाया था । जॉन बोला और तुम्हारा अनुमान ठीक थक जावेद थोडा छोडते हुए बोला अपने माँ वाली दोस्तों के दबाव में अपहरण के लिए तैयार हुआ होगा पर मन से वो उसके लिए तैयार नहीं था । असलियत में मोदी हारिका को लेकर सीधे स्टेशन पहुंचता । इस तरह कौन से भी बच जाती और शायद फिर उसका शादी का प्लान होगा या वो निहारिका को पठानकोट में अपने घर वालों से मिलवाना चाहता हूँ । ऍम चौन निहारिका को देखते हुए बोला अगर उस से मालूम पडा तो सोच भी नहीं सकते । उस पर क्या बीतेगी? जावेद जवाब के पूरा किया मालूम पडना भी नहीं चाहिए । कहते हुए हम अपने टिकट के तो अपने टुकडे कर दी है । कुछ फल तीनों के बीच चलती रही फिर अपने कार्यों की तरफ चल रही है ।
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