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फिर वही -07 in Hindi

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344 Listens
AuthorSaransh Broadways
विनीता और आलोक प्‍यार की मदहोशी में उस मंजिल तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्‍हें होश नहीं रहता। लेकिन आलोक ने इस भूल को खूबसूरती के साथ संवार लिया और दोनों ने अपनी दुनिया बसाई। जब उनका बेटा गुंजन बड़ा हुआ, तो इतिहास ने एक बार फिर अपने आप को दोहराया, पर नए जमाने का गुंजन आलोक की तरह जिम्‍मेदार और वफादार नहीं था। उसने लिंडा के साथ प्‍यार का नाटक किया और बदनामी के मोड़ पर लाकर छोड़ दिया। क्‍या लिंडा ने हार मान ली? क्‍या गुंजन उसे अपनाएगा? आज के युवा जीवन में मूल्‍यों के बदलते मायने को पेश करती है यह उपन्‍यास।
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भारत साल विनीता बरामदे में कुर्सी पर अनमनी से बैठे थे । उसकी गोद में बाल मनोविज्ञान पर एक पुस्तक पडी थी । उस पुस्तक के एक दो पृष्ठ पडती और फिर गुंजन के विषय में सोचने लगती हैं जिंदगी भी कैसी अनबूझ पहेली है । एक समस्या हल होती है । दूसरी समस्या जन्म लेती है । एक से एक जटिल समस्या उस दिन शनिवार था । तीन बजे ही घर आ गई थी । उसके दफ्तर में शनिवार को आधे दिन काम होता है । पर आलू को दूसरे शनिवार कि पूरी छुट्टी मिलती है और शेष सारे शनिवार पूरे लगते हैं । वो नेता सामने बच्चों के मैदान में बच्चों को खेलता हुआ देख रही थी । लॉन के सिरे पर खेलों के पेडों के पास नाली के ऊपर बनी लाल ईंटों की पुलिया पर बैठा था । गुंजाने एक दम ऍम सोच में डूबा हुआ था । उसके हो चिपके हुये थे । सोनी निगाहें कभी मुख्य सडक को नापती तो कभी बच्चों के पार्क में कुछ तलाशने लगती आकाशवाणी पार्क बच्चों की तालियों और किलकारियों से गूंज उठा । तेईस नंबर में रहने वाला बबलू सी साल से लड कर पाने के चहबच्चे में जा गिरा । उसका साउंड राय का नया देकर टीचर से चल गया था । सारे खेल हम गए बच्चों के लिए मनोरंजन का मसाला छुट गया तो तालियों की गडगडाहट और हँसी के पटाखों से सर अब पार्क पहुँच गया । खुशी के कारण बच्चे कागज के रॉकेट छोडने लगे । बत्तीस नंबर वाला तो अपने कुत्ते को गेम से खिला रहा था । बबलू कच्छे भरा मुख और उसके कपडों पर लगी टीचर देखकर बच्चे बहुत खुश हो रहे थे । पर वजन वृहतर गौर से देखा, उसका कलेजा कैसा गया? कुंजन के होठों पर मुस्कान नहीं तैयारी तो वैसा ही प्रस्तर मूर्ति जैसा बैठा रहा । बबलू अपने घर चला गया शायद कपडे बदलने के लिए । तभी पार्क से दौडती हुई दोषी आई और कुंजन का हाथ पकडकर बोली चलो आइस पाइस खेलते हैं । दोषी के पीछे पीछे बंटी आया और कूट कूटकर बोला आव्रजन झूला झूलेंगे ट्वेंटी के पीछे पीछे आई कुक को वो बोली आॅटो खेलेंगे फिर आया । सुंदर बोला ऍम फ्लाइट पर उठे चढते हैं । देखिए कौन पहुँच जाता है बच्चों की टोली गुंजन का घेराव की ये खडी थी । पर हर बार कुंजन ने सिर हिलाकर मना कर दिया । वो मौन तटस्थ और चिंतित सा खोया खोया बैठा रहा । मम्मी ने पिटाई की है । गुंजन क्या पापा ने खर्चे के पैसे नहीं दिए । स्कूल में किसी बच्चे से झगडा हो गया था । ऍम पूरा नहीं हुआ क्या? गुंजन के हर साथी ने उस सपने बुद्धि के मुताबिक उस से न खेलने का कारण पूछा । कुंजन चुप किसी भी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं । सारे बच्चे निराश होकर वापस लौट गए । अब तो कपडे बदल कर लौट आया था । अब सारे बच्चे दो टोलियों में बढकर पिटठू खेलने लगे । अमेरिका अनमनी से बैठी रही । तभी उसने कलाई पर बंदी कडी में देखा । साढे पांच बज रहे थे । यानि उनके दूध पीने का वक्त हो गया था । रामकली भैया जी का दूध तैयार हो गया । विनिता ने आवाज दी जी बीवी जी अभी लाये । रामकली गिलास में दूध लेकर आ गयी । वो दूध बाहर लॉन में ले जाने वाली थी कि विनता ने कहा अरे रामकली बाहर खुले में दूध नहीं पिलाते, उसे अंदर लेता हूँ । रामकली ने गिलास वनिता को पकडाया और बाहर जाकर गुंजन से बोली । अंदर चलो भइया जी दो किलो गुंजन यंत्रवत उठा और रामकली के साथ भी चला गया । लेवॅल मिले । विनिता ने बाएं हाथ से गुंजन के पीठ थपथपाई और सीधे हाथ से उसे दूध पिलाने का उपक्रम करने लगी । गुंजन ने बिना कुछ कहे सुनाई अपने दोनों हाथों से क्लास पकडा और दो चार घूंट में ही सारा दूध पी लिया तो बच्चों के साथ क्यों नहीं खेलते? मेरे बेटे गुंजन पल भर को प्रस्तर मूर्ति साथ खडा रहा । फिर विनीता के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही गर्दन लडका है । वो बाहर चला गया और वहीं जाकर बैठ गया जहाँ पहले बैठा था । दोषी के गेंद लगी और वह गिर गई । खेल से निकलना पडा उसे तो गुंजन के पास अगर बैठ गए गुंजन तोषी के आसमानी रंग के चमचमाते प्रॉपर टांगे खुला भी पूरा और करीब से बंधी । उसकी तो चोटियों को एक तक देखता रहा । तोशी ने अपना एक खास उसके कंधे पर रख दिया । फिर वो मुस्कुराकर बोली तुम खेलते क्यों नहीं? आॅक्टा है । कुंजन मोहन ऍम बोलते क्यों नहीं? कुंजन फिर भी कुछ नहीं बोला । सिर्फ डूबती निगाहों से पार्क की और देखता रहा । आज दोपहर को हमसे गुडिया टूट गई तो मम्मी ने खूब डांट लगाई । देखो कान खींचे, दो चपत लगा दी । फिर भी हम मजे से खेल रहे हैं तो मैं पता नहीं क्या हो गया है । खेलते हो बोलते हो । हर समय को मिशन से रहते हो । कुंजन की आंखों में एक झंड को नीली सी चमक पैर गई । उसने पहले तो दोषी के माथे पर झूलते हुए आगे की कटे हुए बालों को देखा । फिर हौले हौले उसके कोमल कानों को सहलाने लगा । बडा अच्छा लग रहा था उसे । फिर भूल अलग कर पूछ बैठा, शास्त्र ही मम्मी तुम्हारी कान खींचे नहीं था, जैसे गहरे पानी में टूटते ढूढते ऊपर आ गई । कुंजन का मोहन टूट चुका था तो बोलता है तो जैसे अमृत के झडने कलकल छलछल करके बहने लगते हैं और नहीं तो क्या? अभी तक दर्द हो रहा है तो श्री बोली गुंजन के गले में जैसे कई प्रश्न उभरे और फस कर रह गए । शायद तो हिचकियां भी उभरे पर बाहर नहीं हो पाई । अचानक दोषी जीओटी खुशी से उतरती हूँ । भाग खडी हुई । गुंजन ने उसका हाथ पकडा हुआ था । तोशी अपना हाथ छुडाकर भाग गई थी । फिर भी कुंजन का खाली हाथ पहला का फैला रह गया । तभी विनीता ने देखा आलोक आ गया है आलोक का स्कूटर गेट के पास ठीक वहीं पर आकर होगा जहाँ कुंजन बैठा था । अलोक स्कूटर बंद करते स्टैंड पर खडा कर दिया । फिर गुंजन को दोनों हाथों से ऊपर उठा लिया । एक पर गेंद की तरह से ऊपर उछाला फिरसे सीने से लगाकर प्यार कर लिया । कुंजन को उसकी जगह बैठाकर आलोक ने नहीं भी के स्वर से पूछा । जब कैसे बैठे बेटे खेलते क्यों नहीं? कुछ दिन कुछ नहीं बोला । मन नहीं आ गई । कुछ दिन फिर भी नहीं बोला । सिर्फ हाँ व्यक्त करने के लिए सर को आगे पीछे लुडका दिया । जो पीलिया फिर वही सर की आगे पीछे लुढकर । अब रीता का कलेजा कर सकते हैं कि क्या हो गया है । उसके इकलौते बेटे होगा कि कैसी अशुभ चुप लगी है । उसे एक पप्पू है । उसके पापा के पास भी स्कूटर है । सुबह दफ्तर जाते हैं तो जब तक आप को स्कूटर पर बैठाकर एक राउंड लगा दे, वो दफ्तर नहीं जा सकते हैं । शाम को लौटते हैं तो पप्पू उनसे निपट जाता है । चौकलेट टॉफी और खिलौनों की मांग करता है । स्कूटर पर बैठाकर लंबा राउंड लगाने का अनुरोध करता है । सारे कार्य एक नॉर्मल बालक करेगा ही तो गुंजन क्यों नहीं करता? आलोक ने गुंजन को गोद में उठाया । एक हाथ से अपना बैंक उठाकर वो अंदर आ गया । आज बडी देर कर दिया आपने विधिता के हो टोपर थी कि सी हंसी उभरी और शीघ्र ही हो गई । देखो हम अपने बेटे के लिए क्या कह रहे हैं? आलोक ने विनीता के प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं दिया । उन्होंने गुंजन को गोद से ठीक होता है अपना बैग खोला । उसमें से टॉफी, बिस्कुट, चॉकलेट के पैकेट निकालकर कुछ दिन की और पढा दिए है । एक खेलो ने निकाला स्कूटर पर सवार लडका चाबी लगाओ और स्कूटर चलने लगता है । आलू खर्च पर बैठ गया । उन्होंने खिलाने को चाहती लगाई और स्कूटर फर्श पर दौडने लगा । वाॅटर को देखा । खुश हो गई और गुंजन वीतरागी सा खडा था । शून्य दृष्टि से कमरे के बाहर पार्क की और ताक रहा था । स्कूटर की दशा गडबडा गई । कुछ दीवार से टकराया उस हट गया । कुंजन धीमे धीमे कमरे से बाहर आया और ईटों की उसी पुलिया पर जाकर बैठ गया । आलोक उठा उन्हें डालसा आराम कुर्सी पर बैठ गया । अवसाद के मुझे से आंखें मूंद गयी । वो सोचने लगा हो उसका इंजन को क्या हो गया है? पता नहीं क्यों हर वक्त महात्मा बुद्ध की तरह उदास चंद्र हो ऐसा रहता है अकेला बेटा तो और ऐसा अजनबी साहब, बेहतर ट्रेन दो प्याले बहुत निकलती हुई कर चाय ले आई । आलोक ने आंखे खोली । डूबती निगाहों से चाय को टका विनीता पांच ही बडी कुर्सी पर बैठ गई । आयोग की उदासी सच्ची थी । कोमल छोडने बोली पीछे चाहे पी लीजिए आलोक ने भी निर्विकार भाव से चाय की प्याली उठा लेंगे । वो नहीं कि गुंजन को क्या हो गया है । नहीं तो खुद समझ नहीं आ रहा लोग एकदम ऍम होता जा रहा है । इतने डॉक्टर को दिखाया पर शारीरिक दृष्टि से तो उसे कोई रोक नहीं । मैंने बाल मनोविज्ञान पर कई पुस्तकें पर डाली और कोई सूत्र हाथ नहीं लग पाया । दफ्तर में कुछ दिन का चित्र होने लगा । अपना सिस्टम होसला बता रहा था कि राजौरी गार्डन में कोई नई लेडी डॉक्टर आई हैं । विदेश में बाल मनोविज्ञान पर कोई विशेष शोध करके तो उसे भी दिखा देते हैं । मैंने घोषणा उसका नाम बता ले लिया है । फोन पर उससे टाइम ले लेंगे । ठीक है अभी ना फोन कर लेंगे । ठीक है । कहती हुई विधिता उठी और फोन के पास रखी डाॅक्टरी उठा लाये । आलोक ने अपनी बुशर्ट की जेब से कागज निकाला और उसे विनिता की और बढा दिया । फॅमिली में डॉक्टरों की सूची में लेडी डॉक्टर चोपडा का नाम खोजती रहे हैं, पर वह नहीं मिला । फॅमिली में तो उसका नाम नहीं है । शायद होगा कि डाॅक्टरी डेढ वर्ष पुरानी है, उसके फोन है । उसने वन नाइन सेवन से लेडी डॉक्टर चोपडा का फोन नंबर पता किया । फिर डॉक्टर से संपर्क स्थापित कर लिया । उन पर बातें करके वो आई और बोले, ट्राॅफी है कहती है जब चाहे आ सकते हैं । आप लोग तो अभी चलते हैं । क्या ख्याल है तुम्हारा? ठीक है । शुभ काम में देरी करने से फायदा ठीक है । तुम तैयार हो जाओ । मैं कुंजन बुलाता हूँ । कहते हुए लोग बाहर चला गया । रात के साइड पंख समेटकर पांच पर उतर आए थे । चीन चीन कार रुक गई । बेहतर को जोर का धक्का लगा । कार रीगल के चौराहे पर खिची स्टॉप की मोटी सफेद रेखा को पार कर चुकी थी । पडता भी लालबत्ती हो गई । ब्रेक के लगने के बावजूद मेरी तक शरीर में जो कहती थी, उसके कारण उसे आगे की और करना था । पर ले जाने कैसे वह दाहिनी और मिस्टर पुरी के कंधे पर भडक गयी । शौपिंग कहती हुई वह संभली और सीधे बैठ गए । स्वर्ण हमलोग निकल सकते थे, पर मैं उस पार खडे कांस्टेबल को अपना अपमान करने का मौका नहीं देना चाहता था । मिश्रपुरी ने अनायास ब्रेक लगाने की कैफियत दे दी । अभिनेता और मिस्टर पूरी दोनों ही जल्दी में थे । दोनों को ऑफिस में कुछ कारण सिद्धि हो गई थी । मिश्रपुरी का बहुत था । उन्होंने दफ्तर के कई लोगों को डिनर के लिए आमंत्रित किया था । उसमें विनीता भी थी और उस ने निमंत्रण स्वीकार नहीं किया । का स्टॉप पर खडी थी । तभी सीधी तरफ से गजरे वाला आया कंधे पर पार्टी देना पटल की कमी नीचे गंदा सा पट्टी वाला चाहिए क्या टीचर भरी आंखें होटों के किनारे से बहती पानकी तरती पी की लकीरें रूखे उलझे बार रीता का मन वितृष्णा से भर गया । मुक्की कोमल रेखा विकृत हो गई ऍम फॅमिली लीजिए उस बंदे आदमी ने गुजरा कार के अंदर कर लिया ले लीजिए ना? मिश्रपुरी ने आग्रह किया विधिता ने अनिच्छा से गजरा पकड लिया । उसका दूसरा हाथ अपने विदेशी पाँच से चिपक गया । तभी पत्ती हरी हो गई । पीछे से कारों के कौन शोर मचाने लगे । मिश्रपुरी ने कहाँ स्टार्ट कर दी ऍफ ऐसे कार्यों को करीब बढ जाएगा । गजनीवाला रोकता पीसता चीज तो चलता कार के पीछे भाग रहा था गति की जीत होती है कार काफी आगे निकल गई गजरे वाला बहुत पीछे रह गया हूँ पीजेंट कहीं का पूरी पुत्रदायक विजेता के मन में एक अपराध भावना खर्च किए जा रही थी । उसे महसूस हो रहा था कि कचरा नहीं पीछे अवैध शिशु का शव है । उसने कचरे को कार से बाहर उछाल दिया । दूसरे वाले का करुण क्रंदन अब भी उसके कानों में गूंज रहा था । ऍम बात पूछूं जी जरूर पूछे । आप डिनर पर नहीं आ रही हैं । उसका मुझे अफसोस है । पर सच पानी मिश्रपुरी मुझे तो सोच है । खास मजबूरी होगी । जी हाँ, एक बहुत बडी मजबूरी है क्या मैं जान सकता हूँ । फॅमिली तक पल भर को उदास हो गई । कुछ ठंड मौन रहने के बाद बोली मेरे छह सात साल का बेटा है । पता नहीं क्या हो गया है । हर वक्त गुमसुम चिंता में डूबा सा रहता है । खाने पीने, खेलकूद छोड दें । पहनने, घूमने फिरने, सिनेमा, संगीत किसी भी चीज में उसका मान नहीं रहा था । अब ऍम घटना के ढकते से स्तंभित सा रहता है । हर वक्त बॅाल करोगी पर्सन देखा मिश्रपुरी बार बार कार चलाते हुए कनखियों से उसकी और देखते हैं और मुस्कुराते हैं उससे फिर कहना शुरू किया ना हसना नरोना आवश्यकता नहीं, बहुत बच्चों जैसी कोई बात नहीं । दिल्ली के बहुत डॉक्टर को दिखाया । कई बाल रोग विशेषज्ञों से भी सलाह नहीं तो कोई बीमारी नहीं । उसे सब लोग नॉर्मल बताते हैं । कुंजन मेरे लिख समस्या बन गया है । सस्ती है की उसी की वजह से मैं नहीं आती जाती नहीं दफ्तर के बाद सारा समय उसी के साथ व्यतीत करना पसंद करती हूँ । ऍम लगता है जीवन की कोई विशेष स्थिति उसे चुप कर गई है । मैं भी यही सोचती हूँ पर कौन सी स्थिति यही समझ में नहीं आता । थोडा गंभीरतापूर्वक सोचिए की कुंजन मेरे लिए जिंदगी कि सबसे बडी समस्या बन गया है । समझ में नहीं आता क्या करूँ हूँ मेरी समझ में आ गया है तो तो फॅमिली आज नहीं क्योंकि मुँह मुलाकात तो हो जाए तो अभी चलिए ना खास्ता क्षमा चाहूँगा । आपको पता है कि टनल का सारा इंतजाम करना है । विंटर के हो तो तक एक प्रश्न तो पूछना पाई । नौकरों पर पूरी तरह निर्भर नहीं किया जा सकता है । शाम को आना था पर न जाने क्यों नहीं आ पाई । शालिनी हम आपकी जी हाँ पत्नी ऍम टीचर है वहाँ के पब्लिक स्कूल में आप यहाँ और वहाँ यही तो है आज के भौतिक समृद्धि के दायरे में । पंद्रह जीवन का एक भयंकर अभिशाप वृता के घर के पास आकर मिस्टर पुरी ने कार रोक दी । वो उतर पडी और औपचारिकता निभाने की खातिर वाली फॅमिली । जी हाँ चलते में हूँ घर का भी चाहिए । पूरी चले गए । पीडिता अंदर लॉन्ग खुशी चारों तरफ सन्नाटा था । साढे सात बज रहे थे । फॅमिली अंग प्रत्यंग में समाज थकान को दूर भगाना चाहती थी । अपने बालों पर हाथ फेरते ही उसके सारे शरीर में उत्तेजना भरी सरसराहट रहेंगीं । ड्राइंगरूम खुला था । दरवाजे पर पहुंचकर उस पर देख । इसका तो छल्लो में लगी छोटी छोटी घंटियां ऍम के फर्श पर अकेली रामकली बैठी थी । सारा घर भाई भाई कर रहा था । उसे देखते ही रामकली खडी हो गई । साहब कहाँ है? बुरी तरह सोफे पर बैठे हुए पूछा । वो आप के घर गए हैं कब शाम को दफ्तर से आए थे । एक कप चाय पीकर सीधे वहीं चले गए । अच्छा कब तक आने का कह रहे हैं । आठ बजे तक आ जाएंगे और भैया जी कहाँ है? उन्हें भी साथ ले गए हैं क्या? गुंजन चलेगी जी हाँ विनीता कोई अकेलापन कांच की फिर जैसा हो गया । चाहे जो भी जी लिया । रामकली रसोई घर में चली गई । वृता नेपाल को सेंटर टेबल पर रख लिया और वो सोफे पर लगभग रिची गयी । उसका मन उदास हो गया । कितने दिन हो गए । मम्मी के पास गए हुए किस स्तर पैसे देता है । तो क्या हर वक्त ऐसा उलझाए रखता है कि कहीं आने जाने का ना तो मन करता है और फुर्सत मिलती है । मम्मी पापा भी जाने क्या सोचते होंगे राम काली चाय का प्याला ले आई उसे सेंटर टेबल पर रखकर वो बोली कुछ खाने को राउंड बीबी जी नहीं ट्रॅवेल के पास वर्ष पर बैठ के फॅमिली ज्यादा उठाकर एक चाय का भरा और सुखद अनुभूति से अभिभूत होकर आंखे मूंद । एक खुशखबरी चुनाव भी जी राम कडी द्वारा की गई है । अप्रत्याशित घोषणा सुनकर विनीता चौक गई । उसने आंखें खोली और उत्साहपूर्वक पूछ बैठे । क्या आज भैया जी और हमारी बातें हुई क्या सच कुछ भी जी तो सच कह रही है । उत्तेजित हो विनीता खडी हो गयी । सच कह रही हूँ । आज भैया जी ने अपने दिल की सारी बातें हमको बता दूँ तो यहाँ के रही रामकली कब बताई? दोपहर को स्कूल से लौटकर क्या कहा? हमने भैया जी से पूछा कि वह किसी से बोलते क्यों नहीं? तो उन्होंने जवाब दिया हमारी सबसे कुट्टी है । हमने पूछा क्यों? तो बोले तो शी के मम्मी टोशीकी कान खींचती है । हमारी बम्बई हमारे काम क्यों नहीं खींचती? आप की मम्मी के लिए खूबसूरत निक्कर जीती हैं । हमारी मम्मी हमारे लिए निक्कर क्यों नहीं थी? संतोष की मम्मी सारे दिन उसके साथ घर रहती हैं । हमारी मम्मी हमारे साथ क्यों नहीं रहती? शाम रोज रात को अपने पापा के साथ एक ही बिस्तर पर होता है । हमारे पापा हमें क्यों नहीं अपने साथ एक ही बिस्तर पर सुलाते । मम्मी ट्वेंटी बडी है उन्हें खिलाते हैं अपने साथ बस कर रामकली बस कर का चीज बडी हो गई तो कुंजन के मन की गुत्थियों में ऐसी ऐसी उनकी कांटे भरे हैं । मेरी तरह सोचा और वो खुद लग गई हूँ । खाने में क्या बनेगा? फॅमिली साहब और भैया जी को खाना है, वो लोग क्या करेंगे? हम दोनों को ही खाना है तो बना ले कुछ भी बता दीजिए ना । सिर्फ मत खाओ जो भी चाहे बना लेंगे । रामकली मुस्कुराती हुई चली गई । आलोक लौट आया था घर पर सब ठीक था । गुंजन खा पीकर हो चुका था । आज विनीता ने उसे आलोक के पलंग पर ही सुना दिया था । वही तभी थकी हारी लेती थी । वो मुझे हुई सी गुंजन की समस्या के बारे में सोच रही थी । आलोक पलंग के पास ही पडी । हम कुर्सी पर बैठा कोई पत्रिका पड रहा था । अचानक उसने पत्र का एक और रखती और ऍम क्या सोच रही हूँ । भजन के बारे में ज्यादा सोचने से क्या फायदा? जैसा चल रहा है । चलने दो । वहाँ नानाजी नानी जी वगैरह से बोला था । नहीं मेरी समझ में कुछ दिन की समस्या आ गई हैं । क्या वो अकेलापन महसूस करता है? उसके साथ चाहिए? डालो हम दोनों अपने अपने कानून में इतने व्यस्त रहते हैं कि उसकी और ध्यान ही नहीं दे पाते । तो फिर मुझ को माँ का प्यार चाहिए तो हमने नौकरी छोडने का फैसला किया है । आप भी कमाल की बातें करते हैं । जो भी कोई बात हुई तो तुम मानोगी कुंजन को साथ चाहिए । जी हां तो मेरे सुझाव है माॅब देखो पूरा तो नहीं होगी ही रही हम लोग उसे भयंकर गलती हुई पर अभी वक्त है । उस गलती को सुधारा जा सकता है क्या मिनी गंजन की कंपनी के लिए दूसरा बच्चा खत्म कर दिया आपने? रीता ने आलोक की बात बीच में ही काट दी । उसमें हाथ की क्या बात है? आप इस स्टेज पर ना बाबा ना मेरे बस का ये सब झंझट नहीं । रंजन के होने के समय की पीडा को याद करती हूँ तो अब भी तो रोंगटे खडे हो जाते हैं । हर एक भी नहीं ये तो मातृत्व के वरदान का प्रसाद है ना बाबा ना मुझे माफ कीजिए, मुझे नहीं चाहिए । प्रसाद बस गुंजन की हजारी उम्र हो तो फिर वजन को नाना नानी के पास कुछ दिन के लिए छोड दें । अच्छी नहीं । मैं आपको पहले ही कह चुकी हूँ कि मैं अपने उत्तरदायित्वों का बोझा खुद ही उठाना पसंद करूंगी । तो फिर क्या सोचा सोचा तो है पर पता नहीं आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी । बताइए तो सही टोना गुंजन को नैनीताल के पब्लिक स्कूल में भर्ती करा दिया जाएगा । आलोक बाल भर को संबित रह गया । हम लोग इतना खर्चा तो करने की स्थिति में है ही हूँ । खर्चे की बात नहीं सोच रहा था भी नहीं है कि हमारा कुंजन अकेला इतनी दूर हॉस्टल में रह सकेगा । हरी क्यों नहीं? और भी तो हजारों बच्चे रहते हैं । देख लो दिखा लो हमारे दफ्तर भी मिस्टर पूरी हैं । उनकी पत्नी वहाँ टीचर है । मैं उनसे डिटेल्स में सब पता कर लूंगी । यदि आपकी इजाजत हो तो ठीक है, नहीं हूँ । ये भी करके देख लोग विधिता के मन की खिंचता शिखर पड गए ।

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विनीता और आलोक प्‍यार की मदहोशी में उस मंजिल तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्‍हें होश नहीं रहता। लेकिन आलोक ने इस भूल को खूबसूरती के साथ संवार लिया और दोनों ने अपनी दुनिया बसाई। जब उनका बेटा गुंजन बड़ा हुआ, तो इतिहास ने एक बार फिर अपने आप को दोहराया, पर नए जमाने का गुंजन आलोक की तरह जिम्‍मेदार और वफादार नहीं था। उसने लिंडा के साथ प्‍यार का नाटक किया और बदनामी के मोड़ पर लाकर छोड़ दिया। क्‍या लिंडा ने हार मान ली? क्‍या गुंजन उसे अपनाएगा? आज के युवा जीवन में मूल्‍यों के बदलते मायने को पेश करती है यह उपन्‍यास।
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