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तो बात पांच जनवरी का अंतिम सप्ताह । सुबह का वह इतनी भयंकर सर्दी क्या बर्फ गिर रही है फिर इतने चप्पल निकाल दी । शाम को कसकर लपेट क्या ओर से भेजी ठंडी मखमली घास पर उसने अपने दोनों पहुँच दिखाए ही थे कि वह चौपडे एकदम ठंडा ऍम दिल के लिए नहीं ले साहब कस बारें मौत के खतरे पार्टी पर जैसे ठंडी शहर उसके सारे शरीर में लहर गई । उसे लगा मन पर बडे बडे ग्लेशियर चलते हुए आकर कर रहे हैं और उसके खून में जितनी भी गर्मी बच्ची थी, ऊपर स्किन शिलांग के नीचे आकर कुचल गई है । तो आप पर चंचला उठी उसके टांगो में छुट्टियाँ सीलिंग रही थी अपने वार्ड के सामने खास के मैदान में बडी बेंच पर वह बैठी हुई अपनी चारों और के माहौल को देख रही थी । कितना बडा ऍम लौट के किनारे पर कांटेदार तारों की बाड फिर मेंट्रो कितनी चहल पहल ऍम उधर जामुन के पेड के नीचे दो बच्चे लुकाछिपी खेल रहे थे और उनकी आया मजे से पेड के तने का सहारा लिए सो रही थी । एक कम्बखत रामकली मेरी बेबी को जरूर सर्दी लगा के मानेगी मुझे और उसे इतनी सर्दी में बाहर निकाला है । अभिनेता बडबडाई बर्फ के पत्तों पर मातृत्व की धन्नी नंदी को दालें चलने लगी तो उसने देखा सामने रामकली खडी है पांच में है प्रणाम बच्चा गाडी और हम में है उसका बेबी कोरे कोरे लालिमा लिए छोटे छोटे हाथ पैर बडे बडे लाल कार घुंगराले पूरे पाल नीली आंख हैं उसने शौक को कसकर अपने शरीर चपटा । रिया और बौखलाकर बोली अंकल इधर रामकली प्राम कोटा खेलती हुई उसकी और आ रही थी । वो भटकती हुई निगाहों से चारों तरफ देख रही थी । एक जवान औरत और उसकी उंगली पकडकर अटकता हुआ चल रहा एक ढाई तीन वर्ष का पाला लाल फूल वाले पौधे के पास बैठी सूखी रोटी कुतरती एक बुढिया भटके हुए हैं । अभी बर्फ गिरेगी, ठंड जीत जाएगी और गर्मी हार जाएगी । भटके हुए लोगों का अस्तित्व हमेशा हमेशा के लिए बर्फ की वादियों में खो जाएगा । कई मेमसाहब इतनी सर्दी में तो बेबी को हिंसा । आप अंदर चलकर बिस्तर पर लेटी आपकी तबीयत ठीक नहीं है । विनीता ने रामकली को देखा और उसकी आंखों में रीते आकाश का सूनापन भर गया । रामकली अकेली थी । कहाँ थी प्राम कहाँ था उसका बेबी को लगभग ठीक पडी ब्लॅक कहाँ अभी भी उसी का इंतजार है । मैं ऐसा कब आएगा । वो जिंदगी और मौत का किसी पता मेमसाहब ठगी क्षेत्र हिंसी बैठी रही । तभी उसने अपने कंधे पर किसी के हाथों का स्पर्श महसूस किया । कैसी तथ्य तभी नहीं रिटर्न पलट कर देखा । उसकी चेतना लौटाए । उसने आलोक को पहचान लिया । बिगडकर बोली थी रात को आप मुझे यहाँ के लिए छोडकर कहाँ चले गए थे? फॅमिली ऍम सब की तबियत कैसी रही? आलोक ने आया से पूछा । रात भर दर्द से छटपटाती रही । पता नहीं क्या बात है । दर्द उठता है । कुछ देर रहता है, शांत हो जाता है । रात को डॉक्टर नहीं आई थी । जी हाँ, अब कैसा महसूस करती है भी नहीं । आलोक ने विजेता के पास बैठे हुए कहा । सुबह से महम साहब कुछ परेशान हैं । उत्तर दिया रामकली ने क्योंकि नहीं क्या बात है हूँ । होता है कुछ घर ले चलो । रामकली अंदर कमरे से ज्यादा शीशे का ग्लास उठा लाना । आलोक बोला ग्राम खाली गिलास क्या आलोक में थर्मस पैसे गिलास में चाहे तो डेली और से विजेता को पकडाते हुए बोला पहले चाय पी लो तो ले लाया हूँ । अपने हाथों से बनाई है । रिसर्च चाय पीने लगी । उसे लगा शर्दी कुछ कम हो गई है और उसके नीचे हुए सहयोग शितल से पढते जा रहे हैं । आलोक ने जेब से पैसे निकालकर रामकली को दिए और बोला तुम भी बाहर जाकर चाय पीया । ग्राम काली चली गई । फॅमिली अब कैसा लग रहा है? नहीं, काफी स्वस्थ महसूस कर रही हूँ । सुबह तो लग रहा था लोग जैसे में ठंड के कारण चमचा होंगे । मैं तो ऐसी चेतनाशून्य हो गई थी । मालूम मानो किसी ने पुरुष रहे से मेरी चान खींचकर पहाड निकली हो । चीज क्या है? दस दिन पहले भी तीन दिन तुम हॉस्पिटल में रह रहे हैं और अब भी जब झूठे दर्द थे, अब क्या हो गया? निश्चित तारीख से भी दो दिन हो गए हैं । विजेता को आरोप के सामने तो नहीं । बहुत सुरक्षा महसूस हो रही थी । मुस्कुराकर बोली लडका होगा लोग वो कैसे? निश्चित तारीख से दिन ऊपर हो जाए तो लडका ही होता है । अच्छा भी नहीं । अगर लडका हुआ तो क्या नाम रख होगी? विविध धरती सुनकर फैसला करेंगे क्या मतलब रोज ढेरों नाम सुनने को मिलते हैं । उसी में से एक अच्छा सा नाम चल लेंगे । वैसे मुझे अभी रास्ते में बहुत खूबसूरत नाम सुझाया क्या? कुंजन सच पहुँच बहुत खूबसूरत नाम है । चाहे खत्म हो गई । आलोक ने धर्मस् और गिलास पेंच पर रख दिया । दोनों खास में टहलने लगे । वो अनायास विनीता ठिठककर खडी हो गयी । उसका मुंह विकृत हो गया । क्या बात है? आलोक ने मुस्कुराकर पूछा आप ऑफिस जा रहे हैं? मृतकों जैसे बोलने में कष्ट हो रहा था । अगर कहो तो ना जाऊँ, छुट्टी ले लीजिए, ले लूंगा । पर क्या आलोक बात को अधुरा छोड दिया । उसे धीरे से मुस्कुरा दिया । देखिए मेरी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो रही है और आपको मजाक सूझ रहा है । घर पर बात क्या है? दर्द की लहरें उठ रही है । मेरे अंतर्मन अभिनेता आलोक उसके कंधे पर हाथ रखकर नहीं भरे । स्वर में कहा तो सृजन में जुटी हो । हर सृजन इसी पीडा के माध्यम से होता है । मृतक पीडा से कराहने लगेगी, आलोक नहीं । उसे अपने दोनों हाथों से संभाला और अंदर वॉर्ड में ले गया । वनिता को पलंग पर लेटाकर उसने सोचा का है । फॅमिली डॉक्टर आकर अभिनेता की परीक्षा कर ली थी तो कभी एक नर्स आई और लोग को कमरे से बाहर चले जाने का आदेश दिया । लोग बाहर आ गया और बरामदे में खडे होकर नर्स जाने की प्रतीक्षा करने लगा । कोई दस मिनट बाद नर्स बाहर निकली और तेजी से अपनी ड्यूटी रूम की और लग भग गई ऍसे पूछना चाहा कि विनिता की तबियत कैसी है? फॅसने उसके प्रश्न को सुना अनसुना कर दिया । उसके चेहरे पर घबराहट थी और जिस तरह अपनी ड्यूटी रूम की और भागी थी उससे स्पष्ट था की विंटर के केस में कोई चलता हो गई है । आलू अपने दरवाजे से अंदर छाता, सुनीता दर्द से कराह रही थी । तभी नर्स लौटाई । साथ में थी एक लेडी डॉक्टर सिस्टर मेरे ठीक हैं । आरोप ने पूछा नर्स ने कोई उत्तर नहीं दिया । वो लेडी डॉक्टर के पीछे पीछे कमरे के अंदर घुस गयी । आलोक चंद्रा खडा था अगले दस मिनट जिसे दस युग की तरह पीते थे । तभी लेडी डॉक्टर बाहर निकली । आलू के पास आकर बोली आप जनता के पति हैं । हाँ जी देखिए हमें पूरी कोशिश की पर ऍम की चिंता की विवाद नहीं है । सिजेरियन करना होगा । आप का मतलब ये दिन तक का ऑपरेशन करना होगा । देख इसमें कोई घबराने की बात नहीं है । आजकल तो मामूली सी बात है । आप मेरे साथ आइए । आपको कुछ कागजों पर दस्तखत करने होंगे । आलू लेडी डॉक्टर के साथ हो लिया विंता कि चेतमा लौटाई कितना युग बीत गए हैं । उसके बाद शरीर हल्का हल्का सा हो रहा था पीडा का जो हर उतर गया था, छोड गया । एक हल्की सी खुमारी एक नशीला सा निंदा पर कर्कश पीडा महा शांति में बदल चुकी थी । आलोक बेहद उदास अब बाहर कॉरिडोर में चहलकदमी कर रहा था । उसके समझ में नहीं आ रहा था । फिर नहीं के मम्मी पापा आएंगे या नहीं । उसने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था । उसने विंटर से सलाह मशविरा किया था । अभिनेता की भी यही रही थी कि पापा को उनके दफ्तर में फोन कर दिया जाए कि विनीता अस्पताल में पडती है और सिजीरियन डिलिवरी होगी । पापा को फोन कराया था । पिछले आठ महीनों में उन्होंने कितना संघर्ष किया । वो विद्रोह करके घर छोड आए थे और शादी कर ली थी, जिसमें मुश्किल से आठ दस दोस्त सम्मिलित हुए थे । विजेता की तरफ से कोई नहीं आया था । तब से अब सब कुछ ठंडा रहा नहीं । उधर से लोग इधर आए और नहीं वो लोग उधर गए । मृतक कई बार उदास होती तो आलोक कहता नहीं नहीं, उन लोगों ने घर के दरवाजे बंद कर दिए हैं । जिस दिन खोल देंगे, हम लोग चल पडेंगे । अब तो सब ठीक था और विनीता की ऐसी अवस्था में आलोक को पहल करनी ही पडी । उसका स्वर सुनकर पापा कैसे चौके थे । कितना हम बोले थे कि उसने विनीता कपूर हाल बता दिया तो वो सिर्फ उतना ही बोले थे । अच्छा शिला सके है तुम्हारे पास और कुछ नहीं । तभी आलोक ने देखा मेन गेट से वह सब के सब आ रहे हैं । पापा मम्मी लगता । सुनीता तो मम्मी पापा का सहारा लेकर मुश्किल से चल पा रही थी । मेरी पच्चीस कैसी है? मेरी बच्ची मम्मी के पास आकर उत्सुकता से पूछा पापा नहीं बडे जीजा क्या हुआ है लडका या लडकी? सुनीता ने मुस्कराकर पूछा आप खुद अंदर जाकर देख लीजिए । आलोक ठंडे स्वर में कहा, सब लोग अंदर गए । आरोपी पीछे पीछे हो लिया । ॅ आखों से चारों तरफ देखा क्या शाम हो गई थी क्या इसी कारण उसके चारों और धुल्ल कैसा अच्छा रहा था । उसके पलंग को घेरकर ढेर सारे लोग खडे थे । उनके चेहरे पर खुशी से क्यों खेल रहे हैं? विजेता को लगा उसकी आखिर थक गई हैं । उसने उन्हें फिर बंद कर लिया । भ्रष्ट लोग से पूछा मैं नहीं आई है ना हम लोग आ गए हैं । मेरी बच्ची हाँ चुकी और अल कम्बल को खींच कर उसकी गर्दन तक ले गई । फिर बोली ऐसी हालत में हवा से बचना चाहिए । लेकिन अच्छी तरह बोले ऍम! वो तो नाना जी बन गए । सुनीता बोली तो तो मम्मी नानी हो गई । लता ने सुनीता का साथ दिया । लोग सबसे अलग थलग खडा लज्जित सा लग रहा था । एक बात है लता की मांग बिल्कुल आलोक पर गया है एकदम ताजा गुलाब के फूल जैसा बेटी जरा देख तो बगल में कौन है? ऐसा गुलाबी रंग है नन्ने नन्ने हाथ पाँव रेशम के रोने जैसे सुनहरे बाद नीली आंखें होता है तो ऐसी थी में धीमे जिस रुनझुन रुनझुन घंटियां बज रही हूँ । विनिता को माँ शब्द साफ सुनाई पड रहे थे । उसने अपनी बगल में लेते हुए नवजात शिशु की और देखा एक नहीं जिंदगी उसके आलू का प्रतिरूप उसकी और आलोक के मधुर प्यार का अमर स्मृति चिन्ह उस बच्ची चाहा कि वो उस गुलाब के फूल को चूल्हे पर लज्जावश । वो ऐसा नहीं कर सके । वो एक उस नंदीश इशू की और देख रही थी । उसे लग रहा था मोटी मोटी बर्फ की परतों को भेदकर एक खूबसूरत गुलाब हो गाया है और अपनी कोपलों को फैलाकर मुस्कुरा रहा है । हाँ, कुछ गर्मी लग रही है कहते हुए विनीता ने अपना कम्बल उधार थका । लता की माँ तो भारी बेटी तुमसे बाजी ले गई । पीडिता पापा का उल्लासपूर्ण स्वर स्पष्ट चल रही थी । वो कैसे? पहले प्रयास में ही उसने आलोक को बेटा दे दिया । विनीता मुॅह लडकी, गर्दन और ज्यादा लटक गई सब तो शर्म करो चीज हर जगह सॉरी भाई । खुशी में कुछ ख्याल नहीं रहा तो मम्मी पापा खुश हैं । फॅमिली तरह सोचा और वो खुद उसे और क्या चाहिए? आलोक जैसा पति मिल गया और अब मातृत्व प्राप्त हो गया । उसकी जिंदगी पूरन हो गई । उसके लिए उसके घर के दरवाजे भी तो खुल चुके थे । अब अपसी और क्या चाहिए? विनिता ने कनखियों से आलू की और देखा तो धीमे से मुस्कराई सुख के भो जैसे उसकी आंखें मूंद गई । रात के दस बच गए, फिर भी आलू नहीं लौटा । शुरू कुछ खास बात है । विनीता बैठी सोचती रही । रामकली बैठी उगता रही थी । उसने कुंजन को दूध पिलाकर सुला दिया था । अब वो खाना बनाने की प्रतीक्षा कर रही थी । विनीता अनुमान लगा रही थी, कितनी देर हो गयी है । हवा लोग घर से खाकर ही आएंगे । माओ नहीं इस तरह बिना खाए पीये तो देश जैसे रही । रिटर्न गौर से रामकली के उखडे हुई चेहरे को देखा और बोली तुम जाकर सोजा बहुत रात हो गई है । पर साहब तो भी नहीं आए हैं । कहाँ जायेंगे उनके लिए खाना शायद वो खा कराएंगे । फिर के लिए बना दूँ । चार पराठे से कर रखते हैं । फिर तो खाना खा के चली जाएगी । रामकली उठ कर चले गए नहीं था, उस जी से बैठी रही है । अखिलेश जी के खास बात थी जिसके लिए पापानि आलोक को बुलाया है । अनूप ने भी कमाल किया है । जब कर बैठ गए हैं घर की तो कुछ फिक्री नहीं । सुबह जल्दी उठता है । कल से दफ्तर भी जाना है । तीन महीने की मेटरनिटी लीव खत्म हो रही है । कितना विचित्र लगेगा इतने दिन बाद दफ्तर जाना । इतने छोटे बच्चे को छोडकर दस कर जाना भी एक समस्या है और वो लोग सुखी है । उन्हें इस विषय में कोई दिक्कत परेशानी नहीं । सहयोग से रामकली जैसी कुशल नौकरानी मिल गई है । अनुभवी आया है । चालीस रुपये महीना लेती है । तभी दरवाजा खुला । विंटर देखा आलू का आ गया है । बूट बैठे उत्सुकतापूर्वक आयोग के मुख पर उभरे भावों को पडने की कोशिश करने लगी । आलोक चुप चाप पलम पर बैठ गया । विजेता भी फांसी बैठकें हल्के शुरू में बोली सुना हुआ है । कोई खास बात थी कुछ खास तो नहीं । सुनीता ने थोडी समस्या खडी कर दी थी । क्यों? क्या हुआ दीदी को पता नहीं कौन सी दवा खाली, ज्यादा मात्रा में बस बच गई हूँ तो क्या अस्पताल ले जाना पडा? पुलिस केस ना हो जाए इस डर से । पापा उसे हॉस्पिटल नहीं ले गए । किसी प्राइवेट डॉक्टर से ही इलाज करा लिया । अब किसी खतरे से बाहर है । पर दीदी जैसा क्या क्यों? आलोक ने कोई उत्तर नहीं दिया । चुप चाप गंभीर से बैठे । कुछ सोचता रहा अपने सिर को विनीता के कंधे पर टिकाकर आयुक्त ने गहरी सांस लें और बोले सुनीता की व्यथा को सिर्फ पंगू लडकी ही समझती है । जी मानती हूँ पर अपनी और पंगुता को था मानकर अपने आप को नष्ट कर रहा हूँ । कहाँ की बुद्धिमानी है? संसार में ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इस तरह के अभिशाप को अपने साहस, आत्मविश्वास और दृढता से वरदान में बदला है । ठीक है, कल तुम भी होगा ना जाना तो होगा ही, पर दीदी नहीं ना बडा गलत पैटर्न चुन लिया है । अपनी जिंदगी में आलोक ने मौन रहना ही उचित समझा । शुरू से ही कर्कश, असहिष्णु और अनुदार रही है । आरोप में जैसे को सुना ही रही हूँ अपने विचारों में खोया हुआ था । फिर जैसे उन्हें कुछ यहाँ आ गया । अपने हक से बातें करते हुए से बोले, फिर मन पर बडा हो अच्छा सा रहता था । कई बार सुनीता के बारे में सोचता था तो मन पूरी तरह उदास हो जाता था । परसो सक्सेना से बात हुई थी कौन? सक्सेना? अरे वही पीपी ब्रांच के सेक्शन ऑफिसर हाँ, उससे क्या बात हुई? उन्होंने बताया था कि मेहरौली में कोई प्राकृतिक चिकित्सक है, जिसने पोलिया से प्रभावित बहुत से लोगों को ठीक कर दिया है तो उन्हें दीदी को दिख रही है ना । मैं भी यही सोच रहा हूँ । ठीक है कल शाम हम दोनों घर चलेंगे । पापा को ये सुझाव देंगे शायद तो मान जाएंगे । अरे इसमें ना मानने की क्या बात है । प्रयत्न करना और असफल हो जाना । कृत न करने से लाख गुना अच्छा है । कुछ देर के लिए मौन छा गया । कमरे में आलोक ने वीरता के बालों में उंगलियां फंसाई और दो पल उनसे खेलकर उपन्न पर लेट गया । कपडे नहीं बदलने बदलेंगे, खाना लगाओ तुम्हारे ख्याल से ससुराल वाले अपने इकलौते दामाद को यही बिना खाए चले आने देते हैं तो साथ क्यों नहीं कहते कि ससुराल में दावा थोडा करा रहे हो तो मैं खा लिया । कहाँ आपका इंतजार कर रही थी? धर्म करेगी बेडा गर्क हो । इस पतिव्रत धर्म का ग्यारह बजने लगे हैं और अब तक भूखी बैठी हैं । कहते हुए आलोक उठ गया । फिर विनीता को दोनों खातों से पकडकर खींचते हुए वो उठी ये जल्दी खाना खत्म कीजिए । मुझे बहुत जोर की नींद आ रही है । सारा दिन तब तक करके थक जाता हूँ आप कपडे बदली है । मैं अभी आई कहती हुई विनीता रसोई घर में चली गई । जैसे ही आलू कपडे बदलकर पालन की और बडा ऍम आलोक हैरान रह गया । आश्चर्य भरकर बोला इतनी चलती खा बी आई पुरुष करना होगा और नारी का खाना चलती ही होना चाहिए । ये प्रवचन रहने दीजिए । फिर जैसे आलोक को कुछ याद आ गया । पलंग पर लेट कर वो बोला कल सुबह तो मैं भी ऑफिस जाना है । जी हाँ इसीलिए तो कहती हूँ सो ये और सोने दीजिए । आलोक मुस्करा दिया विजेता आलोक की बगल में आकर लेट गयी । गुंजन के रोने का स्वर सुनकर पीडिता क्या खुल गई । कमरे में अंधेरा था । पलंग के पास अच्छे पालने में पडा । कुंजन बराबर रोहित जा रहा था । नेता उठी उसने बत्ती जलाई । पौने छह बज रहे थे । रामकली रोज सुबह साढे पांच बजे दूध तैयार करके गुंजन को पिला देती थी । कुंजन को अपनी पहली फीड मिल चुकी है । फिर क्यों हो रहा है? पीडिता ने सोचा और वो पालने के ऊपर छूट गई । गुंजन हाथ पाँव फेंक रहा था और पूरी तरह हो रहा था तो बार बार अपने छोटे छोटे कोमल हाथों को भूमि डाल रहा था । तो क्या ये भूखा है? विजिटर्स सोचा और झुककर गुंजन को गोद में उठा लिया और ये क्या तो सारे कपडे गीले किए हुए हैं । सर्दी लग रही है तभी हो रहा है ऍफ जल्दी से उसके लिए कपडे उतारे तो लिया उसका शरीर पहुंचा, पाउडर लगाया और नए कपडे पहना दिए पर कुछ जान करो ना जारी था विंटर उसे गोद ले लिया हुआ था । फिर भी उन लगातार रोहित जा रहा था तो हर बार वह प्रमुख उसके वक्ष में कडाई दे रहा था । तो क्या कुंजन धोखा है? रामकली से पूछना चाहिए वो रिटर्न रामकली को आवाज नहीं कोई उत्तर नहीं मिला तो नहीं जाने देखा । जाली की अलमारी के ऊपर दूध का डब्बा और कुछ जान कि दूध की बॉटल बिल्कुल उसकी जगह रखी थी जहाँ रामकली ने उन्हें कल रात को रखा था । इससे साफ था की सुबह दूत नहीं बना था । गुंजन को लिए हुई विनीता रसोई घर में गई और गैस पर पानी उबलने के लिए रख दिया । आजकल ना रामकली के रंग ढंग बदल गए हैं । काम में भी काफी लापरवाही करने लगी है । छोटे बच्चे का काम है अगर टाइम पर नहीं तो क्या फायदा । छह बज रहे हैं और मेम साहिबा अभी तक उतर कर रही आई हैं । पीडिता ने सोचा और आक्रोश ना भर गई । रामकली ऊपर छत पर बनी बरसाती में रहती थी । मेहता ने सोचा क्यों न वहाँ जाकर से जगह दिया जाए । पानी के उबलने में अभी कुछ देर थे । गुंजन को गोद में लिए ही विनिता ऊपर पहुंचे । बढ साथी को देखकर वो एक दम घबरा गई । रामकली बार नहीं थी । उसका सामान भी गायब था । तो क्या रामकली नौकरी छोड कर चली गई है? अभी तक तेजी से नीचे उतर आई । रामकली चली गई है । कहीं कुछ सामान तो नहीं उठा? ले नहीं वो रिटर्न पलभर में सारे घर का मुआयना किया । सब सामान जहाँ का कहा था रामकली है । इस तरह चुप चाप नौकरी छोडकर क्यों चली गई? पीडिता सोच में डूब गए । अरे से जाना था तो बता कर जाती है । अगर वो कई क्यों? परसो तो से महीने के रुपये दिए थे और उसने कहा था जिसकी तन्खा बढाकर पचास कर दी जाए । उस ने ये भी कहा था कि डॉक्टर शुरू उसे फौरन पचास रुपए देने को तैयार हैं । अभिनेता ने अगले महीने उसका वेतन बढाने का फायदा किया था, फिर भी चली गई । जरूर डॉक्टर स्वरूप के यहाँ ही गई होगी । विनीता रसोई घर की चौखट पर उलझी सी खडी थी । तभी उसने देखा पानी उबल गया है । मेहता चारपाई के पास गई और कुंजन को आलोक की बगल में लिखा दिया । पलंग पर लगता ही कुंजन पूरी तरह रोने लगा । आलू क्या खुल गई? उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा ये सुबह सुबह क्यों हो रहा है? अरे जरा सम्भालो अपने बेटे को मैच का दूध बना करती हूँ तो दूध बना कर ला रही हूँ । रामकली को क्या हुआ? वो चली गई । चली गई । कहा ऍम में नौकरी छोड गई है । कहती हुई विनीता रसोई घर में चली गई । विनीता रसोई घर में गुंजन का दूध बना रही थी । बराबर उसे कुंजन के रोने का स्वर सुनाई पड रहा था । विजेता ने दूध की बॉटल तैयार की और उसे आलोक के पास ले जा कर बोली कुछ जान को दूध भिलाई । मैं आपके लिए चाय बना कर रहा हूँ । नहीं अब क्या होगा? होना क्या है? अभी तक जाते ज्यादा चोट आ गई । रामकली के बिना आलोक में गुंजन को गोद में लिटा लिया और उसके अंदर से बहुत लगती है । चाहे लेकर आती हूँ ललिता दो प्याली चाय बना रहे हैं । उन्हें पलंग के पास पडी मेज पर रखकर वो बोली लाइए नहीं मिला तो मैं चला रहा हूँ ना । ऍम अभिनेता आलोक के पास ही पलंग पर बैठ गई । रंजन शांत होकर दूसरी रहा था । आलू और विनीता इस अप्रत्याशित घटना के धक्के से आक्रांत और आशंकित थे । घर में नौकर रही फिर नन्हे मुन्ने कुछ जिनको किसके भरोसे छोडकर दोनों दफ्तर जाएंगे । अब क्या होगा भी नहीं । हम लोग ऑल्टरनेट ट्रेन पर दफ्तर जाएंगे । एक दिन आप दिन में फिर आप मजाक छोडो नहीं । हम जैसे कार्यशील दंपत्ति के लिए एक भयंकर समस्या है । मैं छुट्टी बना लेती हूँ तो नौकरी छोड के नहीं देती । मैं ऍम फिर बोली चाय मजाक कर रहे हैं नहीं नहीं नहीं मैं सीरीज कह रहा हूँ । ये संभव है क्यों? फिर कभी बताओगे तो फिर गुंजन को ट्रैक में डाल देते हैं । वहाँ कौन देखभाल करता है? हमें गुजरात की मिट्टी पलीद नहीं करानी । क्रैश में डालकर तो फिर अब नानी के पास छोड दें अपनी गुंजन की हरी गुंजन की । मैं अपने उत्तरदायित्वों का भार किसी और के कंधों पर डालने के लिए तैयार नहीं तो छोडिये नौकरी चौकरी का झंझट घर बैठे और पानी बच्चों को जी नहीं ऐसा नहीं होगा तो फिर कैसे करेंगे और मैं एक हफ्ते की छुट्टी बडा लेती हूँ । इस हफ्ते में कोई नौकरी नौकरी मिल ही जाएगा ना मिला तो ऍफ का काल नहीं पडा है । वहीं होगा कि चालीस की जगह पचास देने पडेंगे । बस आलोक चुप हो गए । चाय के लिए वर्ष हो हम तो आपके रॉक के सामने ऐसे ही ठंडे पड जाते हैं । बस की क्या जरूरत? कुंजन दूध पी चुका था, अब शांत और संतुष्ट था । आलोक से पलंग पर लेटा दिया । फिर विनिता के गाल पर चिकोटी काटकर बोले यही हाल रहना तो जल्दी बच्चे पालने की कला जाएगी । अभिनेता मुस्कुराकर रह गई
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