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फिर वही -01 in Hindi

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3 K Listens
AuthorSaransh Broadways
विनीता और आलोक प्‍यार की मदहोशी में उस मंजिल तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्‍हें होश नहीं रहता। लेकिन आलोक ने इस भूल को खूबसूरती के साथ संवार लिया और दोनों ने अपनी दुनिया बसाई। जब उनका बेटा गुंजन बड़ा हुआ, तो इतिहास ने एक बार फिर अपने आप को दोहराया, पर नए जमाने का गुंजन आलोक की तरह जिम्‍मेदार और वफादार नहीं था। उसने लिंडा के साथ प्‍यार का नाटक किया और बदनामी के मोड़ पर लाकर छोड़ दिया। क्‍या लिंडा ने हार मान ली? क्‍या गुंजन उसे अपनाएगा? आज के युवा जीवन में मूल्‍यों के बदलते मायने को पेश करती है यह उपन्‍यास।
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आप सुन रहे हैं कुछ है कहानी का नाम है फिर वही जिसे लिखा है रमेश गुप्त ने आर जे आशीष चैन की आवाज में हुआ है सोने चौवन चाहे बहुत विधिता के पावों के नीचे से जैसे सभी खिसकते हूँ हो गया । इसकी आशंका तो थी पर ऐसा हो जाएगा, ऐसा उसने कभी नहीं सोचा था । अभिनेता ने अपने को संभालने की पूरी कोशिश की । वो रसोई घर में खडे होकर खाना बना रही थी । उसे लगा उसकी टांगे कब कब आ रहे हैं । थोडी देर और खडी रहती तो बेजान कोरिया की तरफ आम से नीचे फर्श पर गिर जाएगी । उसने आता फूटकर रखा था, पर न जाने क्यों उस आते थे । विचित्र सी पतलू आने लगी थी । वो फर्श पर बैठ गई । घुटनों में मुझे आलिया उसे लगा । उसके पेट में कडवा और ऍम ऊपर उठ रहा है । किसी भी क्षण तरह तक पहुंच करूँ, फूटकर बाहर निकल आएगा । मैंने क्या आता? घुस गया । उसे मांझी की आवाज सुनाई दी । उसे महसूस हुआ कि उत्तर देने के लिए श्रम खोला तो ये वीभत्स कडवाहट बाहर छोड पडेगी । हरी क्या मूड को ताला लग गया है? पापा के लिए एक नमक अजवाइन का पराठा बनाना है तो क्या करें । उसका जी तो पूरी तरह घबरा रहा था । हल्की हल्की सी चक्कर आ रहे थे । अच्छा ना उसे दूध चलने की बदबू आई । उसने चाय के लिए दूध उबालने के लिए गैस पर रखा ही था । हो ना हो दूध फोन कर बाहर निकल गया है । वो ठीक है । उतनी उसे महसूस हुआ । जैसे कुछ महत्वपूर्ण उसके अंतर में चटक गया है तो भूल गया था । गैस हो चुकी थी । उसने शीघ्रता से गैस का बॉल बंद कर दिया था । पता नहीं उसको क्या हुआ है । रोज नए नए लक्षण सीख दी जा रही है । उसे माॅस् स्वर सुनाई दिया रहे । किसी डॉक्टर के पास ले जाकर उसके कानों को दिखाओ ना? हाँ उसे कम सुनाई देने लगा है । उसमें सुनीता का स्वर भी सुना । अभिनेता रसोई घर में और ठहरना सकें । उसका अंतर उम्र पडा है । व्यर्थ में रसोई घर को कंधा करने से फायदा ऍम की । अगर आगे और वहाँ तक पहुंचते पहुंचते उसका सब कुछ बाहर आ गया । वो स्टेशन पर चुकी हुई थी । पीली कडवी कसैली सी को चीज बाहर निकल चुकी थी । उसके गले और नाक में चरमराहट से मच रही थी । आंखों से आंसू निकल आए थे । पापा उसकी पीठ चला रहे थे । पापा किस नहीं भरे । स्पोर्ट्स से भूत भूत होगी । पापा ही तो घर में जिनके सहारे वो जिंदा है कुछ शांति हुई है । पापा ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा ऍम और उल्टी आ रही है । नहीं चल एक बडी रायॅल करते हैं । अभिनेता ने सोचा और कुल्ला करके वो वहाँ से हटाई है कि बरसात का मौसम भडक गंदा होता है । मैं एक दम खराब हो जाता है । कोई चीज नहीं पडती । खानपान में थोडा ध्यान रखने की जरूरत होती है । बेटा पापा उसकी बहुत पकडकर उसे भी डर ले चलेंगे । तभी ऍम कर खडी थी उनकी आंखों में रोज की चिंगारियां फट रही थी । उसके अंदर आता देखकर बोली अरे कैसे पकडकर ला रहे हैं । लगता है जैसे हाल की जो अच्छा हो बीवी मिला जहाँ चीज को लगाम दो अपनी कुमारी बेटी के लिए ऐसा कहते तो मैं नहीं आती बहुत शर्म के बारे में हिन्दू बर तो तुम्हारी चाहती है । बात करते मरने की धमकी देती हूँ । अरे लडकी की तबियत खराब है नहीं और प्यार की दो बोल तो दूर रहे । विनिता माँ की जंग वाणी को सुनकर तलमले आ गई हूँ । कहीं दुर्दशा की भविष्यवाणी सकता ना हो जाए तबियत खराब है खाने पीने में बदपरहेजी करेंगे । बकरियों की तरह छोले भटूरे ॅ चलती रहेगी । फिरौतियां नहीं होगी तो क्या होगा? वृता ये झूठा आरोप बचा नहीं सके और डेढ स्वर में बोली कसम ले लो, मैं बाजार की कोई चीज नहीं खाती है और मैं तो घर से जो लंच पैकेट में जाती हूँ उसी में संतोष कर लेती हूँ । तो फिर घर की चीजें ही ज्यादा कम ही होंगे । विनीता ने कोई प्रतिवाद नहीं किया । वो चुप चाप पलंग पर लेट गयी । उसकी आंखें मूंद नहीं, उससे बडी शांति से महसूस हो । अब तो मुझे ही रसोई घर में मारना पडेगा । बडबडाती हुई मांझी रसोई घर में चली गई । इस बात है नेता काम चोरी करने के लिए तबियत खराब होने का नाटक हमेशा सफल रहता है । सुनीता ने हल्के स्वर में कहा तुम चुप रहो सुनीता ऍम दिया । फिर वो कुकडेश्वर में बोले तो तो भी क्या होता जा रहा है । सुनीता तुम्हे तो कोमल और मृदु स्वभाव का होना चाहिए । इस कर्कश और कठोर प्रकृति का ताल में पहले ही तुम विनीता ने आंखे खोली है । उसने पापा के मुख पर उभरी दयनीयता और बेचारगी को भांप लिया तो सुनीता से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए थे । अपनी बात को अधूरा ही बीच में छोड दिया । विनीता ने सुनीता की और देखा उसके मुख पर कसाव था विनिता ने नहीं में पर अनुराग परेश्वर में कहा मुझे कम से डर नहीं लगता । मैं तो समझती हूँ काम करना पूजा है । अकर्मण्यता तो एक सजा है । रहा बीमारी का नाटक सुदी जानबूजकर क्या कोई छुट्टियाँ कर सकता है? मुझे क्या कोई कुछ करें मेरा तो इस घर में मुंह खोला पाप है । सुनीता ने कुकडेश्वर में कहा हूँ बेटी है तीन लोगों के पत्तों पर ध्यान मत दिया कर ये तो चौबीस घंटे घर में बैठकर चारपाई तोडने वाले लोग क्या समझेंगे? घर और बाहर की जिम्मेदारियां निभाना कितना मुश्किल काम है । है विनीता कोसिस क्यों की आवाज सुनाई दी । उसने देखा सुनीता हो रही थी उसके समझ में नहीं आया । आखिर उसमें होने की क्या बात नहीं । तभी लगता । बाहर से खेलकर आई । उसने सुनीता को रोते हुए देखा तो उसकी गर्दन में दोनों पानी डालकर छूट गई तो प्यार भरे स्वर में बोली अच्छी थी । यूज हो रही हूँ तो मैं किस हमारा । सुनीता ने लता को झटका देकर पडे कर दिया । फिर क्रोध में भरकर ॅ सारे कपडे गंदे कर दिए । पता नहीं कहाँ धूल मिट्टी में खेलती रहती है । लगता सब पकाकर एक और खडी हो गई । अच्छा लगता है मेरे पास आ जाओ । विनीता नहीं लगता के उतरे । चेहरे को देखा, उसे दया आ गई । जनता को फटकार के बाद प्यार मिला तो तोडकर विनीता से निपट गई । पता नहीं सुनीता को क्या होता जा रहा है । पापा के स्वर में गाडी उदासी थी, होता है । अब बडी दीदी की शादी कर दो । लता ने बडे भोलेपन और सहज रूप से कह दिया । सामान्य परिस्थितियों में लता की शब्द खुशी की लहर बनकर सबको भी हो जाते हैं । पर लगाने अनजाने में बहुत रूप से एक भयंकर बम विस्फोट कर दिया । उसके धमाके से सब स्तब्ध रह गए । फॅमिली है हैं । सुनता लगभग पच्चीस वर्ष की हो गई है । उसकी आयु की जितनी भी लडकियां उस मोहल्ले में हैं, सबकी शादियाँ हो चुकी है और वहाँ बन चुकी है, सुनता हूँ लेकिन देना करेगा । वो सुंदर है, पीछे नहीं । लक्ष्य पूरा रंग हैं । जबरदस्ती यौन आकर्षण है । पापा ने अपना पैतृक मकान दहेज में देने का निर्णय तक कर लिया है । लगभग अस्सी हजार रुपये कीमत है उस मकान की । वहीं तो सोचती रही और गलती रहे हैं । उस ने पापा के मुख पर उभरते विशाल और असहायता की काली सारे देखे तो करने जब तक उठा हूँ किससे होगी सुनीता की शादी सुनीता इस्पोर्ट है पोलियो से पीडित एक नवयौवना इसकी तुम तांगे बेकार है । उसे तो खुद सहारा चाहिए । वो कभी किसी का सहारा नहीं बन सकती । तभी माँ पापा के लिए पराठा और चाय ले आई । वेदिता नहीं कर बट बदल ली और लेटे लेटे ही खिडकी से बाहर झांका । काली काली घटाएं । छत्तीस से उमड घुमड कर उस आकाश की और पढ रही थी जो उसके घर के ऊपर था । काम बहुत नहीं मुझे देखते ही करवट बदल नहीं इसका बस चले तो मेरा मूड ही ना देखें । माँ वॅार बदली पर लगभग चीख पडी । चीख बाद कहकर मान ईश्वरीयता को देखा । बोली तुझे क्या हुआ हमने मैं भी पराठा होंगे । बडी भूख लगी है । लता बीच में टपक पडी सुविधा कुछ नहीं बोली बस रोधी । अरे ये लोग मुझे जिंदा थोडे ही रहने देंगे । बेटी कहती हुई माँ तेजी से कमरे के बाहर निकल गई । इस झूठे दोषारोपण से फॅमिली आ गई, पर उसमें अपने को सही कर लिया । बहुत थके हारे तब डर जाये हैं । उन्हें नाश्ता कर लेना चाहिए । पलंग के पास ही मेज पर पेट रखी थी उस प्लेट में रखा था पराठा पराठे की फॅमिली था के नथुने मैं खुशी उसका जी फिर से मचलाने लगा । उसके अपनी चुन्नी के पलूशन ना आपको दस कप दवा लिया । तापान अनमनी से पराठा खा रहे थे । लता दौड कर रसोई घर में चली गई थी और सुनीता कोने में बैठी सिसक रही थी । बाहर बाहर गलत रहे थे । रह रहकर बिजली करना चाहती थी । गहरी अंधियारी चाहते हैं तब तथा बडी तीस बरसात होगी । अभिनेता को लगा उसका तब घुटने लगा है । उसने नाक से चुनने डाली और आटे के कुछ कडे से टुकडे प्लेट में पडे थे शायद बाबा के कमजोर हूँ । तुम्हें दवा नहीं पाए थे । चुनने के हट नहीं पराठे का एक तेज काम का ललिता के नथुनों में जा घुसा हूँ । ऍम हूँ क्या हुआ बेटी पापा उसकी छटपटाहट से आशंकित हो गए । विनिता कुछ नहीं बोली । अंदर से उमडती खुमती मितली को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगे । एक ग्यारह चाहे लेले बेटी नहीं था, किसी चीज पर इच्छा नहीं कहकर विनीता तेजी से उठी और स्टेशन पर पहुंच गई । एक बार फिर पापा उसके करीब और प्यार से पीठ सहलाने लगे । ऐसा क्या खा लिया तो उन्हें भी नहीं कुछ भी तो नहीं खाया पापा तो फिर कैसा अजीब कैसे हो गया? वृता जानती थी पर कुछ भी कहने का साहस नहीं जुटा पा रही थी । वो ही बन कुछ दिन रही थी । उसके हिसाब से तो और नेता को लगा उस की आशंका एक भयावह सच्चाई भी बदलती जा रही हैं । विजेता ने खुल्ला किया और पलंग पर आकर लेट गई तो उसकी आंखें मूंदें पर फिर शांति नहीं मिली । उसने देखा उसके इर्द गिर्द काली काली छाया सी नाच रही है । उसे डरा धमका रही है । वो एक भीषण धमाके की प्रतीक्षा में तम असहायक मृतप्राय ऐसी होती जा रही है । चाॅस डॉक्टर को दिखाकर दवा दिलाई हूँ । पापा ने भर स्वर में कहा डॉॅ ऍफ गई नहीं, डॉक्टर के पास नहीं जाएगी । कहीं कुछ ना कुछ उल्टा सीधा बता दिया तो चल उठना । हाँ जल्दी चले जाओ, कहीं कमाओ । बेटी मर गई तो हम लोग भूखे मर जाएंगे । मौजूदा क्रोध में भरकर कहा नहीं तो मैं क्या हो गया देने की माँ और जीतती नहीं । कितना खराब मौसम चल रहा है । इसमें है ना या आंत्रशोध होना । मामूली सी बात है क्या रोग की रोकथाम करना पत्ते वाली नहीं । पापा अब मतलब चिंतित हो रहे हैं । कुछ कुछ नहीं हुआ है । बिलकुल ठीक हूँ । वीरता ने साहस जुटाकर कह दिया देशी तुम लोगों की मर्जी मुझे क्या मेरी जो समझ में आया मैंने कह दिया आगे तुमलोग जानो । तुम्हारा काम जाने कहकर पापा उठे और कमरे से बाहर चले गए हूँ । छह तबाह की जरूरत हूँ, चली जाए कहीं ऐसा ना हो कि गंगा आनी थी और भागीरथी के सिर्फ बडी कहीं रात में और ज्यादा तबियत खराब हुई तो मेरी फॅमिली ने करके स्वर में कहा पता नहीं हाँ तुम बीच में इतना क्यों बोलती हूँ? बहुत देर बाद सुनीता बोली और माँ को एक नीति सी लडकी थी । क्या करूँ फॅमिली जवान मारी पश्चिमी रहती ही नहीं ऍम चिंता मत करो । कोई खास बात नहीं । रात को खाना नहीं खाउंगी तो कल तक सब ठीक हो जाएगा । इससे तो चलता ही रहता है । बाबा का मन थोडा कमजोर हो गया है । विनिता ने आंखे खोली और सैनिक स्वर में कहा वो जानती थी उस स्वयं अपने को ही नहीं घर के सारे लोगों को झुठला रही है । दीदी पांच नंबर में चलना है । लता रसोई घर में अपना पराठा खत्म करके आई और सुनीता की पीठ पर चलते हैं वो इसलिए सुनीता ने पूछा हूँ । आज टीवी पर चित्रहार आएगा ना? वहाँ मैं तो भूल ही रही थी बुलाऊं चित्र को लता ने पूछा मम्मी चली जाये? सुनीता ने वहाँ से पूछा चली जा बेटी सारा दिन घर में पडी पडी सडती रहती है । कहकर मांझी फिर रसोई घर में चली गई । लता तोडकर चित्र को बुला नहीं । सुनीता ने दोनों का सहारा लिया और लंगडाती हुई पांच नंबर में चली गई । अपने अंतर में उबलती कुलबुलाहट को दबाती हुई अभिनेता चुप चाप पलंग पर पडी रही । विनीता पलंग पर आखरी मुद्दे पडी थी, पर नींद नहीं आ रही थी । उसके बगल में लगा लेती थी । तीनों उस कमरे में होती थी । सुनीता की चारपाई अलग नहीं बदलता । उसकी चारपाई पर ही होती थी । पास के दूसरे कमरे में मम्मी और वापस होते थे । लगता भी कुछ देर पहले ही हुई थी । चित्रहार देखकर लौटी थी । खाना बिना खत्म करके कितनी देर तक चटर पटर करती रही थी । चित्रहार के गानों के विषय में बडी दीदी से कितनी देर तक बाते करती रही थी । पीडिता को आश्चर्य हुआ था । लगता अभी आठ नौ वर्ष की है नहीं । पुरुष फिल्मों और उनके गानों के विषय में कितना ज्ञान हो गया है । जरा ट्यून बाजी नहीं की वो फौरन बता देती है । पीछे हम गाना है फिल्म अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और गायकों के नाम से । वो खूब परिचित है । अक्सर विनीता उलट जाती है । आखिर ये नई पीढी सिनेमा से इतनी प्रभावित क्यों हो गई थी? शायद सुनीता की भी आग लग गई थी । परिनीता की आंखों में नींद कहा एक साल शायद है किसी भयंकर विषधर की तरह । कुंडली मारकर उसके अवचेतन मन पर बैठ गया था । अब क्या होगा? भविष्य की कल्पना करके देने का काम नहीं उठ कर बैठ गई उसका । जीशान था अच्छा हुआ । उसने रात का खाना खोल कर दिया और रात में जरूरी होती है और मम्मी पापा के नींद में देखना पडता है । पापा तो शायद कुछ ना कहते हैं और मम्मी मम्मी जरूर खरीखोटी सुनाते हैं । कमरे में अंधेरा था । अंधेरे में ही विजेता उठी और खिडकी के पास जाकर खडी हो गयी । बाहर घटाटोप अंधेरा छाया हुआ था व्यक्तियों पर पडने वाली तब तब की आवाज से लगा वर्ष हो रही है । रह रहकर बिजली पडती थी और बादल करते थे । अच्छा हूँ अचानक सौर की बिजली चमकी । उसे लगा उसके आंखों के सामने पुरुष मुख उभर आया है । मृतक एक तीर निश्वास छोडी और करती हुई से बोली हाँ, कि क्या हो गया लोग तो अपनी क्या क्या है? अब मैं क्या करूँ? तभी उसे बराबर के कमरे से कई स्वर सुनाई पडेंगे । मुखर्जी हटाई और दोनों काम रुक बीच लगे दरवाजे से सटकर खडी हो गई । उसे मम्मी और पापा की बात साफ सुनाई दे रही थी । सुनीता को कब तक? इस तरह घर में बिठाया रहोगे । मांझी के स्वर में करना हूँ । सुशीला बडी अभागी है बेचारी हम कर ही कह सकते हैं । अरे मुझसे उसकी पीडा नहीं देखी जाती हूँ । हमारे करने में कौनसी कसर है कितनी दौड धूप की अखबारों में विज्ञापन दिए तुझे तो मालूम है कि अपने साथ काम करने वाले मिस्टर गहराना के लडके के लिए भी बातचीत चलाई । गहराना कलर का गूंगा बहरा है । सोचा है तो मान जाए । उसे अस्सी हजार के मकान का लालच भी दिया । पर लडके ने सुनीता को देखा तो घबरा गया तो क्या बेचारी अब इसी तरह उम्रवर्ग हमारी बैठी रहेगी तो भी बताओ ना क्या करें? सुनीता बागी है जब वक्त आएगा उस की हो जाएगी परिष् विनीता के बारे में क्या सोचा इसे ही निकालो । बडी बहन के बैठे रहते हैं छोटी की शादी करोगी । अगर सुनीता की नहीं होगी तो कैसे जन्म भर घर में कोहली बिठाए हो गई हो तो मैंने नहीं कहा । पर जरा सोचो सुनीता पर क्या बीतेगी? प्रतिनि था पर क्या बीत रही है ये भी कभी सोचा है । उस पर क्या बीत रही है तो ही समझ सकती है । देख नहीं रहे । उसका रूपरंग बनने लगा है । रंग फीका पडता जा रहा है । आंखों के क्रिकेट काली चाहिए पडने लगी है । दो चार वहाँ से भी ऊपर निकला हैं । हर समय मरी मरी सी रहने लगी है । अरे वो सब तो थकान के कारण है । दिन भर दफ्तर में काम करती है । सुबह शाम घर का धंधा पीती है । ऊपर से तुम्हारी लगता डाट फटकार रहती है । थकेगी नहीं तो ताजी बनी रहेगी तो सोचते हो मुझे उसे डांटने फटकारने में खुशी होती है । ये लडकी जात है । दबाकर नहीं रखोगे तो हाथ से निकल जाएगी दबाने के लिए और प्रेम से भी काम लिया जा सकता है । वो तो तुम करते ही हो । मैं भी वैसा करने लगी तो देख लेना आज छह निकल जाएगी हूँ । खैर ये बताओ देने के लिए क्या करना है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है । देख लो उसके रहने से काफी लाभ है । तीन । चार सौ रुपए ले ही आती है । फिर घर के काम काज में भी पूरा सहारा है उसका । वो चली गई तो समझ लो एक तरफ आय में कमी, दूसरी तरफ बिना नौकर रखें तुम्हारा गुजारा नहीं होगा । उस पर सौ रुपए महीने का खर्च अलग से । विनीता का मन वितृष्णा से भर गया तो शर्म नहीं आती । ऐसा सोचते हैं जो कुवारी लडकी तो मैं जिंदगी भर कुमारी रहकर अपनी कमाई खिलाती रहेगी । भी रही मतलब नहीं था तो भारी बुड्ढी तो भ्रष्ट हो गई है । अभिनेता और साहस में जुटा पाई वहाँ खडे रहने का उसकी टांगे कप कप आ रही थी । शायद आक्रोश था क्या? घटना वृता वहाँ से हटाई । वो पलंग पर आकर लेट गयी । उसके सामने रहस्य के अनेक पर्दे खुल गए थे । पापा एकदम पेट की तरह है । ऊपर से स्निग्धता । प्रेम और दया के खुद की एक हम किसी परत है अंदर है अनुपात में कहीं बहुत बडी एक सख्त कुडली मांझी एक नारियल है । ऊपर से आक्रोश, क्रोध और संतुलन का सख्त आवरण पर भीतर से बुलाया मीठी जिस तरह से वो उससे हमेशा बिगडती रहती है कि आंटी फटकारती रहती है । उसे देखकर तो लोगों को लगता है कि वह उस की असली नहीं, सौतेली माँ है हर माह के अंतर मैं उसके प्रति अस्सी प्यार है । वो उसे डांटती है । पर इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कूटनीति है । पहली बात तो ये है कि वह पापा के लाड प्यार भरे व्यवहार और अपने व्यवहार को संतुलित करना चाहती है । उन्हें भय है कि कहीं सब तरफ से लाड प्यार पाकर विनीता बिगडना जाएगा । दूसरे मांझी सुनीता की तरफ से बेहद उदास और चिंतित रहती हैं पहली संतान और वो भी बचपन से ही खतम हो गई । कितना इलाज करवाया कितना पैसा पर पास क्या पर सब यार रे लडकी की जात है अंतर पर एक असहाय पूछा बनकर बैठी हुई है । ऐसी स्थिति में कौन ऐसा है जिसे क्रोध आ जाए, तीसरे शायद वो उस पर बिगड कर परोक्ष रूप से सुनीता को सुख और आत्मसंतोष देना चाहती हैं । उसके हमेशा देखा है जब की माचिस को डाटती फटकारती हैं । सुनीता का मुख पर एक तुलसी चमक कोहरा दी है । शायद उसमें सुनीता का भी क्या? तो दिन भर घर में बडे बडे उसे असहायता का बोझ छटपटाता रहता है । इस असहायता से जन्मी हैं । शाम दूसरों की पीडा । सुनीता को सुख दी जाती है । शायद उसकी खुद की पीडा का भार कम हो जाता होगा । यहाँ तो सब ठीक है पर आज आज पाता के अंतर्मन के इर्द गिर्द लिपटी कंधे माननी चाहिए । उसमें देख लिए हैं । पापा उसके विवाह के पक्ष में नहीं क्यूँ इसीलिए कि वह घर के लिए उपयोगी है, महत्वपूर्ण है और उसके चले जाने से लोगों को असुविधा होगी । विनीता उदास हो गयी । उसका मन अवसाद के मुझे सब तब गया कई लोगों से उपयोगी, महत्वपूर्ण और आवश्यक होने की सजा देंगे । उसे कुछ वर्ष पहले की एक घटना याद आ गयी । पापा को ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ था । अपने दफ्तर में तो बहुत कुशल और योग्य व्यक्ति माने जाते थे । उनके पीछे काम करने वाले सारे लोग उनसे खुश थे । उनका अब सर्दी उनसे प्रसन्न था । इसी बीच बाबा की एक नए पद पर नियुक्ति हो गई । इस प्रकार से वो उनकी पदोन्नति थी । दो सौ रुपये मासिक की वृद्धि होनी थी । पापा किस तरह की का एक कारण था? उनकी कार्यकुशलता, मृदु स्वभाव, गोबल और सफल मानवीय संबंध । वास्तव में ये तरक्की पापा के गुणों के लिए एक पुरस्कार थी । पर जब पापा को नई नियुक्ति के लिए छोडने का प्रश्न उठा तो उनके अक्सर में साथ कह दिया, मैं मिस्टर गुलाटी को किसी भी कीमत पर नहीं छोड सकता । यूनिट का सारा काम चौपट हो जाएगा । प्रसाद मेरे भविष्य का मामला है । मुझे दो सौ रुपये की तरक्की मिल रही है । कुछ भी हॅूं तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी ब्रांच पैड चाहिए । मुझे तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले पद के लिए कोई योग्य और कुशल व्यक्ति नजर नहीं आता । पापा जैसे ऍम फर्श पर आ गिरे तो फिर देना है बहुत अनुनय विनय की अफसर के हाथ पांव जोडे पर अफसर ने एक न सुनी । आर्कर पापन तेज स्वर में कहा तो आप मुझे मेरी योग्यता और कुशलता के लिए सजा दे रहे हैं । ऍम सर दफ्तर में ये एक बडी दुर्घटना मानी जाएगी । कुशल और योग्य कर्मचारियों को हतोत्साहित करने, उनके मनोबल को नष्ट करने में आपका कितना भारी योगदान रहेगा? मेरा विश्वास पीछे सर कोई भी कर्मचारी योग्य और कुशल होने का साहस नहीं कर पाएगा । पापा हार गए, न जाने कितने दिनों तक वो टूटे टूटे खोल खोल रहे हैं । इंसान को बोलने का वरदान मिला है । पर क्या को इतनी जल्दी भी भूल जाता है? अभी कुछ दिन पहले ही जो अनुचित हजार उनको खुद मिली थी, वहीं सजा वो उसको देना चाहते हैं । अभिनेता छटपटा रही है तो वह केवल इन लोगों के सुख का माध्यम मात्र है । उससे अधिक कुछ नहीं । पर इस नहीं समस्या के संदर्भ में उसका क्या होगा? भविष्य की कल्पना करके उसका रूम रूम कहाँ था? जब मम्मी पापा ये सुनीता को पता चलेगा की वो तब क्या होगा? विनीता लेटी में रह सकता कोई पर फिर उठकर बैठ के क्या ये सच्ची नंगी पहुँच सकता है अथवा कोरा भ्रम? यह केवल आधारहीन आशंका इस आशंका का आधार है । साथ ही इस प्रकार जी घबराना और मितली आना एक नंगी वास्तविकता का सूचक है । छह भी उसे माँ से विरासत में ही मिली है । जब लगता हुई थी तो वो पीएम पडती थी । लता होने को थी । तब वहाँ का कैसा हाल हुआ था, उसे खूब अच्छी तरह याद है । एक दिन माँ को उल्टियां शुरू हो गई थी । उनका खाना पीना छूट गया था । बुरा हाल हो गया था तो बहुत कमजोर हो गई थी । दो तीन दिन के अंदर ही मांग के प्रांत उनकी आंखों में आ गए थे । कभी इकरा उसने मम्मी पापा की बातों को चोरी छिपे सुना था । अच्छा तुम्हारा ये हाल नहीं देखा जाता । सुशीला पापा ने कहा कुछ भी बडी शर्म आती है । दोनों लडकियों सयानी और समझदार हो गयी हैं, उसके सामने ही सब शोभा देता है । तो किस सब्जेक्ट में पैसा दिया आपने? मैं तो कहती हूँ मुझे किसी लेडी डॉक्टर के पास ले चलो और इस झंझट से छुटकारा दिला दो । कैसी बातें करती हो? सुशीला अरे क्या तुम्हारे स्वास्थ्य काबिल है तो फिर कैसे चलेगा डॉक्टर से दवा दिलवा दूंगा सब ठीक हो जाएगा, तू चिंता मत करो । पिछले दोनों बार तो ऐसा कुछ नहीं हुआ । अब की बार मारी के आग लग गयी । पापा ने पल भर को छोटा फिर वह अभ्यास परेश्वर में बोले रेस्ट जिला लगता है इस बार अपनी मनोकामना पूरी हो जाएगी । पिछली बार लडकियाँ हुई सब कुछ सामान्य और सहज रहा हो । इस लडका होगा तभी सब कुछ असमान्य सा है । कहते हैं लडके शुरू से ही माँ बाप को कष्ट देते हैं तो बडी लगन लगी है लडकी की बढाने हाल करेगा पैदा हो कर तो इस उम्र में हुआ अभी तो हम लोग कौन बैठे रहेंगे उसका सुख घूमने के लिए किसी हरी हरी बातें करती हूँ । वंश चलाने के लिए परिवार में एक लडका तो होना ही चाहिए । तो फिर बुढापे में देखभाल करने वाला कोई तो इस बार तो एक लडका दही तो सबसे बडा एहसान होगा तुम्हारा तो क्या पिछली चक्कर में मुझे झंझट में पता है । हाँ ऍम मेरे हाथ की बात है । पापा मौन हो गए । दोनों में एक मौन समझौता हो गया था तो पीते की लालसा में मम्मी ने अपनी बेहाली को खुशी से स्वीकार कर लिया था तो तीन महीने बाद मम्मी की तबियत गडबड चलती रही हूँ । वहीं बिजलियाँ चक्कर, भूख न लगना, आटे की बदबू आती है और मम्मी पुष्टि कर देती हूँ । सु कर कटा हो गई न खाना पीना । बस हर वक्त चारपाई पर पडे रहना वो तो दवाओं और फल वगैरह ने उन्हें जीवित रखा हुआ था वरना इन सब का दुष्परिणाम उसे ही भुगतना पडा है । घर के सारे काम की जिम्मेदारी, उस पर आप बडे श्रमता का काम, अस्वस्थ मम्मी की सेवा, पापा की देखभाल फिर कॉलेज जाना । इन सबके बीच उसे पढाई के लिए व्यक्ति कहाँ मिलता था । उसने जिस बात की आशा की थी वहीं हुआ । हायर सेकेंड्री में प्रथम श्रेणी आई थी और बी । एम एस । तीसरी श्रेणी पर मम्मी पापा ने जिस चीज की आशा की थी वो नहीं मिलेगा । लगाने आकर सारी मनोकामनाओं पर तुषारा खास कर दिया । वेदिता फिर लेट गयी कुछ भी होगा । बता आ गई पर ही मित्र लियां मम्मी ने विरासत मुझे देती हैं । क्या थी आशंका आधारहीन और निर्मूल हैं । शायद नहीं । मैंने सोचा उस आशंका का आधार है तो सुबह शाम हूँ जो आलोक के साथ उसके कमरे में कुछ भी थी ।

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विनीता और आलोक प्‍यार की मदहोशी में उस मंजिल तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्‍हें होश नहीं रहता। लेकिन आलोक ने इस भूल को खूबसूरती के साथ संवार लिया और दोनों ने अपनी दुनिया बसाई। जब उनका बेटा गुंजन बड़ा हुआ, तो इतिहास ने एक बार फिर अपने आप को दोहराया, पर नए जमाने का गुंजन आलोक की तरह जिम्‍मेदार और वफादार नहीं था। उसने लिंडा के साथ प्‍यार का नाटक किया और बदनामी के मोड़ पर लाकर छोड़ दिया। क्‍या लिंडा ने हार मान ली? क्‍या गुंजन उसे अपनाएगा? आज के युवा जीवन में मूल्‍यों के बदलते मायने को पेश करती है यह उपन्‍यास।
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