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प्रथम परिचित बहुत दो सरिता को हबीब ने धोखा दिया था । दोनों ने परस्पर ये निश्चित हुआ था कि दोनों घर से रूपया लेकर शिमला चलेंगे । एक सप्ताह भर वहाँ आनंद से रहेंगे । तरंत अपने बडों को विभाग करने की बात बताकर उन्हें कॅालिंग हो गई । बात पर संतोष कर लेने पर विवस कर लेंगे । जगह जी से अंबाला पहुंचते पहुंचते गाडी बिगड गई हुआ एक मोटर गैरेज में दे दी । मोटर कंपनी वालों ने देखकर बताया की छह सात घंटे लगेंगे । उस समय कंपनी की वर्षों बंद हो गई थी । विवस हो गाडी मोटर कंपनी को देख वे उस रात अंबाला छावनी रेलवे स्टेशन पर वेटिंग रूम में रह गए । सरिता जनाना वेटिंग रूम में ठहरी और हबीब मरदाना वेटिंग रूम में रहते दोनों मिले तो हबीब ने सरिता को बताया कि वह अपना पर तो जल्दी जल्दी में भूल आया है । इस पर यह निश्चित हुआ कि सरिता के पास जो पांच सौ रुपया है उससे काम चलाया जाएगा । शिमला पहुंचकर अभी जगह ही लोट जाए और अपना रुपए ले आए । अभी मोटर की मरम्मत का दाम देने के लिए हबीब ने सरिता से रुपए ले लिए और उसके पास केवल दस रुपये छोड दिया । अभी ब्रेकफास्ट के समय मोटर कंपनी में गया और आकर बताने लगा की मोटर का एक पूजा टूट गया है । जो दिल्ली से आएगा वो दिल्ली जा रहा है और साइकल तक पुर्जा लेकर आ जाएगा । अब अगले दिन ही वे यहाँ से जा सकेंगे । संहिता ने कह दिया था कि वे अब शिमला नहीं मसूरी जाएंगे । शिमला के लिए उसके मन में रूचि नहीं रही थी । हबीब साइकल तक नहीं लौटा । इस समय रामसुख दिखाई दे गया । डूबते को तिनके का सहारा मिला । अभी वह अवीद की प्रतीक्षा में थी पर तो अभी रात के आठ बजे तक भी नहीं आया । रात का खाना खाने के बाद उसने राम शुभ के साथ मसूरी जाने का निश्चय कर लिया । उसके लिए वेटिंग रूम में और अधिक देर तक ठहरना कठिन हो रहा था । वेटिंग रूम की संरक्षिका उससे बार बार पूछ रही थी कि वह किस गाडी से जा रही हैं । मसूरी में भी पांच दिन तक प्रतीक्षा करती थी । जब हबीब दिखाई नहीं दिया तो उसने घर लौटने का विचार प्रकट कर दिया । घर पहुंचकर भारी मानसिक थकावट अनुभव कर रही थी । रात भर आराम कर उसको अपनी मान प्रतिष्ठा की चिंता लगने लगी । आते हैं खाते कल जब माँ उससे मिलने के लिए आई तो वह रो पडी । मोहनी ने कुछ ताडना के भाव से कह दिया सरिता एक मूड होता तो हम कर चुकी हूँ और दूसरी यह कर रही हूँ कि रो रोकर अपने भागने का रहे । शिष्य सभी नौकर चाकरों को प्रकट कर रही हूँ । देखो यह आवश्यक है कि तुम ऐसा प्रकट करो । तुम हमारी ही स्वीकृति से राम सबके साथ मसूरी गई थी और वहाँ से शहर का आनंद लूट कर आई हूँ । यही बात हमने यहाँ विख्यात कर रखी है और तुम्हारी सवाल में भी कहीं है तो तुम्हारे पिता आज तुम्हारे विवाह की थी थी, निश्चित करने जा रहे हैं रन तुम उसने इससे साहस पकडकर का । मैं वहाँ भी बहुत पसंद नहीं करती हूँ । ऍम क्या दो से प्रेमचंद दोस्त कुछ नहीं, कम से कम मैं नहीं जानती पर हम तो मेरा मन वहाँ विवाह करने को नहीं चाहता तो कहाँ युवा करने को तो तुम्हारा मन चाहता है । अभी भी से करता था परंतु परंतु मैं कहती कहती रुक गए । सरिता की अनुपस्थिति में अभी आप की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली गई थी और हम को अपने पिता के घर में उपस्तिथ देख साथ ही काले जाते देखा । मैं चिंता कर रहे थे । सरिता का है अब सरिता की कथा रामसुख सुन और सरिता को हबीब से विवाह की बात करते सुन मोहनी ने पूछ लिया परन्तु क्या आम बताओ तो क्या कहना चाहती हूँ । अब मैं नहीं जानती कि वह कहाँ है । मैं जानती हूँ की मैं कहा है अपने बाप के घर में हैं और आनंद से कॉलेज जाते है । सुना है वह अपने साथियों के साथ बहुत होते उडा रहा है । उसके घर वाले अथवा उसके साथ ही तुम्हारे उसके साथ जाने की बात नहीं जानते हैं । इस व्यवस्था में मैं नहीं जानती कि क्या करूँ । मेरा कहना मानो चुपचाप विवाह के लिए तैयार हो जाओ । मुझको विश्वास है कि तुम उनके वहाँ सुख हूँ और यदि विवाह के पश्चात झगडा हो गया तो और अब हम द्वीप के साथ झगडा हो गए हैं । तो देखो सरिता प्रेम के साथ विवाह में एक ओर तुम्हारे माता पिता बैठेंगे और दूसरी ओर उसके भी माता पिता होंगे । जब झगडा होगा वे अथवा हम सुलह करा सकेंगे । पर हबीब के साथ युवा के पचास झगडे और कौन सुलह करा सकते हैं । एक बार और समर्थकों इस भूल को तो हम छिपाने में सफल हुए हैं । इस बार रामसुख भी गाडी से होता हुआ अंबाला पहुंच गया था । परंतु दूसरी बार ऐसा कुछ नहीं हो सकता । सरिता हो गई । मोहनी ने आगे कहा अब तुम कॉलेज नहीं होगी । विवाद तक कोठी से भी नहीं निकल सको । इतनी बडी घटना हो गई तो इसके रहस्य को सिवाय नंदलाल, महेंद्र, मोहिनी और राम सबके अन्य कोई नहीं जान सका । सरिता का विवाह हो गया । इस घटना को दस वर्ष व्यतीत हो चुके थे । सरिता के घर में अब तीन बच्चे थे और वह अब अपने आप से सर्वथा संतुष्ट प्रतीत होती थी । जब भी वह पिता के घर आती और राम सबके सामने आती तो आप ही नीचे कर लज्जा से लाल हो जाती थी । रामसुख उसकी जीप को मिटाने के लिए कह देता हूँ । भगवान हमारी बिटिया को सौभाग्यवती रखें । दस वर्ष से ऊपर हो चुके थे । आज फिर रात के समय मालिक की मोटर रामसुख के द्वार पर रात के समय आई थी । रामसुख द्वार पर खडा विचार करता रहा था की मोटर आई और चली भी गई । क्या बात हो सकती है । जब मैं कुछ नहीं समझ सका तो भीतर आ गया । दिसंबर की रात थी, बाहर सक सर्दी थी । घर में उसकी पत्नी सरस्वती किसी की प्रतीक्षा कर रही थी । पति के आने पर उसने पूछ लिया कौन था जी पता नहीं चला । वोटर कोठी से बाहर जाती हुई दिखाई दी है । इस पर सरस्वती ने कहा राधा अपने कमरे में नहीं है, कहीं टी पेशाब के लिए गई होगी । सरस्वती पेशाबघर देख आई थी । उस ने कह दिया वहाँ नहीं मेरा मन धक धक कर रहा है । दैनिक फिर देखो ध्यान से देखो, सरस्वती गई और भलीभांति दिखाई कहीं दिखाई नहीं दिए । रामसुख ने अपने लडके को आवाज दी । शिवलाल वो शिमला वो अपनी पत्नी के साथ एक पृथक कमरे में सो रहा था । दो तीन बार आवाज देने पर मैं उठ कर आया तो पिता ने पूछ लिया राजा को देखा है, अपनी गोष्ठी में होगी । नहीं है तो मैं नहीं जानता । अपनी बीवी से पूछो । सिविल लाल की पत्नी सुखमनी कोर्ट जी के द्वार के पास अपने स्वसुर की बात सुन रही थी । उसने सिर का कपडा नीचा किया और सामने आकर बोली बाबा अभी अभी मोटर की बोर हो रही थी । राधा उसमें चली गई है । कहाँ चली गई है? छोटी बहू के साथ मेरा अनुमान है तो पहले कुछ बात हुई है । कभी मैं कई दिन से उसको छोटेबाबू के साथ घुस पूछ करते देख रही थी तो उन्हें बताया क्यों नहीं हम सब तो बाबू जी के घर वालों से मिलते जुलते और बातें करते हैं । मैं कैसे जान सकती थी कि कुछ विशेष बात है राम शुकोर सरस्वती तो वो टुकुर सुखमणि को देखते रहेंगे । राम सूखने गहरा साथ छोडकर कहा ये तो एक बहुत बुरी बात हुई । मैं बडे बाबू जी को कुछ नहीं कह सकता । इतने वर्ष उनकी नौकरी की है । अब बुढापे में उनके विरुद्ध आरोप लगा हूँ । बाबा हो नहीं नहीं कहा आप क्या कहेंगे मुझको तुम यह है कि बडे बाबू इसमें हमारा सहयोग मान हम को दोषी समझेंगे । कदाचित हम सबको यहाँ से निकाल देंगे । रुकवानी की बात सत्य प्रतीत होती थी । सरस्वती का तो कहना था मुझको इस बात में विश्वास नहीं आता । इरादा छिनाल हो सकती है । कुछ बात है जो हम समझ नहीं सके और इसमें कल्पना कर रहे हैं । इस पर सुखों देने का बाबा ज्यादा बहुत सुन्दर लडकी है इसलिए छोटेबाबू ने कोई अनहोनी बात नहीं की । विचार करने के बाद तो यह है कि अब ज्यादा होगा क्या हमको बाबू के सामने क्या करना चाहिए ये सब व्यस्त है । सरस्वती का कहना था प्रतीक्षा करो मैं कहाँ गई है, क्यों गए जब तक है जान लोग क्या करें, क्या हो ये सब व्यस्त की बातें इसने सबको चुप कर दिया । सब वहीं बैठ गए और दिन चढने की प्रतीक्षा करने लगे । रामसुख तो मन में राम नाम का जब कर रहा था । सरस्वती मन में विचार कर रही थी कि राधा आएगी और कोई उचित कारण अपनी घर से अनुपस् थिति का बता सकेंगे । शिवलाल क्रोध से लाल पीला हो रहा था । वो मन में ज्यादा को मारकर जमना जी में बाहर देना चाहता था । सुखमणी ज्यादा के भावी जीवन के सुख में होने के विषय में कल्पना कर रही थी ।
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