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अध्याय दस अमर को दिल्ली पहुंचे हुए एक हफ्ता बीत गया था और वो लगातार एक उचित जॉब पाने की कोशिश कर रहा था । चौथे दिन उसके पास बस के किराए के लिए पैसे नहीं थे और इसलिए वह बाहर जाने में संकोच कर रहा था और कमलेश क्योंकि सुबह से उसकी गतिविधियों को देख रहा था इस बात को समझ गया था । क्या आज तुम अपना भाग्य आजमाने नहीं जाऊ? के उसने पूछा । अमर ने अपनी कमल उसकी तरफ की ताकि वो उसके चेहरे का भाव नहीं पढ सके । हाँ, मैं जाऊंगा अमनी जवाब दिया लेकिन थोडी देर हो रही है । जल्दी से तैयार हो जाओ । हम दोनों साथ जाएंगे । उससे सलाह दी । अमर एक शब्द में नहीं कह सका और जाने से पहले अपनी फाइल को लेने के लिए गया । मेरे विचार से आज तुम भी जॉब मिल जाएगी । कमलेश ने उसे आशान्वित करते हुए कहा लेकिन अमर ने कुछ उत्तर नहीं दिया । जब कमलेश बस से उतरने वाला था उसने अमर को पचास रुपए देते हुए कहा यदि उसे एक जॉब मिल जाती है तो भावी और चिंटू के लिए मिठाई खरीद ले और अपना पहला वेतन मिलने के बाद इसी लौटा दे । अमर कुछ कहना चाहता था लेकिन इससे पहले ही वह बस के दरवाजे की तरफ पड गया । अमर इंटरव्यू के लिए आए हुए उम्मीदवारों की संख्या को देखकर था लेकिन एक आशा की किरण उसके हिंदी में अभी भी प्रकाशित हो रही थी क्योंकि उसने कमलेश की आंखों में उसके लिए सफलता का विश्वास देखा था । इसलिए उसे विश्वास था शायद भगवान उसकी इस संबंध में सहायता करें क्योंकि उसे इसकी बहुत जरूरत थी । लेकिन जो कुछ भी उन्होंने कहा था वो केवल से खुश करने के लिए था और यदि उसे ये जॉब नहीं मिली तो दिल्ली में कैसे अपना जीवन बिताएगा । कितने समय तक वो कमलेश की सहानुभूति पर जीवित रहेगा जिससे शायद भगवान ने उसकी सहायता करने के लिए भेजा था । कुछ मिनट बाद वो साक्षात्कार कक्ष से बाहर आया लेकिन वो खुश था क्योंकि उसे जॉब मिल गई थी इसलिए वह सीधे मिठाई की दुकान पर गया । जब घर पहुंचा तो उसने चिंटू को दरवाजे पर खडा पाया । शायद अभी अभी पास के मैदान से लौटा था । जहाँ कॉलोनी के बच्चे खेला करते थे, जल्दी पी है । वो केवल कक्षा में था तब भी वो एक परिपक्व इंसान की तरह बातें किया करता था । उसे मिठाई के डिब्बे के साथ देखकर वह चाहेगा और उसकी तरफ ये कहते हुए दौडा आप कोई जॉब मिल गई है ना? अंकल हाँ मुझे मिल गई लेकिन तुमने से जाना । उसने बहुत प्यार से पूछा मैं मिठाई के डिब्बे को देखकर जान गया और इतना कहकर मुझे गोद में बहुत बडा बच्चे बहुत संवेदी होता है । वो जानता है परिवार में क्या चल रहा है और चुप रहकर तथा उत्सुकता से ये निरक्षण करता है क्योंकि बडे लोग कहते हैं या करते हैं इसलिए कहा जाता है कि घर का आंगन बच्चे की पहली बार चला होती है अंकल की । आपको मालूम है मैंने असेंबली में भगवान से आपकी जॉब के लिए प्रार्थना की थी जब सारे छात्र प्रार्थना के समय अपनी आंखे बंद करके भगवान को धन्यवाद दे रहे थे । लेकिन मैंने आपको सुबह बहुत दुखी देखा था और पिछली रात को पापा ने मम्मी को बताया था कि आपकी चौक की बहुत जरूरत है इसलिए मैंने भगवान से इसके लिए प्रार्थना की । कल में असेंबली में भगवान को धन्यवाद के है दूंगा । ये सुनकर अ मैंने उसके कोमल कार पर एक चुम्बन लिया और मिठाई का डिब्बा दे दिया अपनी जॉइनिंग की । पहले दिन से ही वो अपने सहकर्मियों पर प्रभाव जमाने में सफल रहा और शीघ्र ही वो उनके साथ इस तरह से घुल मिल गया मानो वो लंबे अरसे से उनके साथ हूँ । समय बीतता गया और इसके साथ ऑफिस में उसकी प्रसिद्धि भी बढती गई । काम के प्रति उसकी ईमानदारी और वफादारी उसे उसके बॉस की नजर में पसंदीदा बना दिया जो की फैक्ट्री के मालिक भी थे । केवल छह महीने के बाद उसे प्रोन्नित कर दिया गया और वो अपने बॉस की बहुत करीब आ गया तो कभी कभी किसी काम के लिए या फिर जब कभी बहुत से अपने घर में अपने साथ रखना चाहते थे तब अपने बॉस के आवास पर भी जाने लगा । वास्तव में वे अपने बिजनेस की तरक्की के लिए उस पर बहुत ज्यादा निर्भर रहने लगे थे । एक दिन अमर खुद बॉस के यहाँ कोई फाइले नहीं जाना था जो कि बहुत महत्वपूर्ण थी और उस दिन की मीटिंग के लिए जरूरी थी । उसने घंटी बजाए और वहाँ इंतजार किया, दरवाजा खुला लेकिन इसे उस नौकरी नहीं खोला था जो कि आमतौर पर खोलता था । इसे एक युवा लडकी ने खोला था जिसमें खूबसूरत कपडे पहने थे । जैसे कि वो कहीं बाहर जा रही थी । उसने उसकी तरफ संदिग्ध दृष्टि से देखा और अमर समझ गया कि वह क्या चाहती थी । मेरा नाम अमर है । मैं ऑफिसियल्स पीली फाइल को लेने आया हूँ, जो सर भूल गए हैं । उसने कहा तो तुम अमर हूँ अंदर और जब घर में घुसा उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और उसे ड्राइंग रूम में बैठाया । तब वो ये कहते हुए चली गई प्लीज कुछ इंतजार करूँ । मैं अभी वापस आ रही हूँ । जब कुछ समय बाद वापस आई उसके हाथों में दो फाइल थी पहली पीली तथा दूसरी हरी । उसने उसे पीली वाली फाइल पकडा दी और हरी वाली को खोलने लगी । उस समय तक नौकर वह चाहे तथा नाश्ते के साथ आ गया था । अमर को उन्हें लेने में संकोच हुआ लेकिन उसने उसे इस तरह से आगरा किया कि वह से मना नहीं कर सका । तब उसके उसे एक कागज दिखाया और खुशी के साथ उससे बोली, मिस्टर अमल । मुझे वाद विवाद प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार मिला है और इसका अध्यक्ष आपको जाता है । कैसे? उसने आश्चर्य से कहा, केवल दो दिनों पहले जब मैंने आपके द्वारा सुधार किया गया भाषण देखा तो पहले तो मुझे ये सोचकर गुस्सा आया कि तुम ने ऐसा करने का साहस कैसे किया । लेकिन जब मैंने से पूरा पढा तो मैं उन सुझावों को देखकर आश्चर्यचकित थी जो तुमने उस पर लिखी थी । वास्तव में उससे मुझे बहुत सहायता मिली और मैंने प्रथम पुरस्कार जीता । यदि गलती से मैं अपने भाषण को ऑफिस के दूसरे का उसके साथ नहीं मिला देती तो वैसे सही नहीं करते और तब मुझे पुरस्कार भी नहीं मिलता । अमर ने उसकी तरफ आंशिक रूप से अपराधी की तरह तथा आंशिक रूप से प्रसन्न होकर की दृष्टि से देखा । वो कुछ कहना चाहता था लेकिन वह शर्म के कारण या फिर उस से पहली मुलाकात के कारण अपनी होट नहीं हिला सका । तब कमरे में शांति छा गयी । वो चुप चाप अपनी चाय पीने में व्यस्त था और वो सोच रही थी कि कमरे की निरस्त था को दूर भागने के लिए उससे क्या पूछना है । तभी अचानक उसने पूछा आप के कितने बच्चे हैं? क्या अमन ने उसे उत्तर देने के बजाय पूछा मेरा मतलब है आप शादीशुदा हो क्या? नहीं तो उसने अपने सवाल में सुधार क्या नहीं ॅ हुआ हूँ । उसे शर्माते हुए उत्तर दिया । ये सुनकर उसने अपने अधिक खुलेपन को पहचाना और तब उसने महसूस किया कि वो अपनी सीमा को पार कर गई थी । वो खडी हुई और कहा वो वास्तव में मेरा मतलब है लेकिन वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर सके क्योंकि उसे अपने पछतावे को व्यक्त करने के लिए कोई उचित शब्द नहीं मिला । उस समय तक अमर अपनी चाय समाप्त कर चुका था और उस से जाने के लिए अनुमति मांगी लेकिन वो कुछ नहीं कह सके और दूसरी तरफ उसने उसकी अनुमति का इंतजार नहीं किया और मेन गेट की तरफ चल पडा । सुबह की दस बज गए थे लेकिन अमर को कोई बस नहीं मिल पा रही थी । वहाँ यात्रियों की भीड थी लेकिन कोई बस वहाँ नहीं आ रही थी शायद अपनी मांगी पूरी करवाने के लिए । बस चालकों की हडताल की अमर के लिए ऑफिस समय से पहुंचना बहुत जरूरी था लेकिन उसे उस समय ऑफिस पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा था । पैदल जाना भी उसके लिए संभव नहीं था क्योंकि ऑफिस वहाँ से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर था । इसलिए वह घबराकर और अधीरता से एक बस का इंतजार कर रहा था क्योंकि पूर्णत्या असंभव लग रहा था लेकिन वो आशा न होते हुए भी आशा कर रहा था । तभी कार जिसके शीशे टिंटेड थे, वहाँ आई और एक झटके के साथ हो गई । कुछ यात्री सहायता पाने की दृष्टि से कार की तरफ दौडे । लेकिन जब कार का दरवाजा खुला ये अमर था । जिसे कोई आशा बंदी क्योंकि वो उसके बॉस की पुत्री थी । उसने एक प्यारी मुस्कान के साथ उसे देखा और ये उसके लिए काफी था की उस की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई थी । लेकिन दूसरी तरफ दूसरे यात्रियों को उसके भाग्य से एशिया हुई उनमें से एक अपनी एशिया पर नियंत्रण नहीं कर पाया और फुसफुसाया क्या शानदार नसीब है तो शायद मैं उसकी जगह होता । अमर ने इसे सुना लेकिन नजर अंदाज कर दिया और उसने भी उसने खुशी से कार का दरवाजा खोला और बिना कुछ पूछे बिना उसे ड्राइवर की सीट के बगल में बैठने दिया और तब उसने का स्टार्ट कर दी जोकि एक झटके के साथ आगे बढ गई । मानव से चलने से पहले हल्की सी छलांग लगाई हूँ आपको बहुत बहुत धन्यवाद मैडम । अमर ने खुश होकर कहा लेकिन जल्दी ही तो आश्चर्य सके था जब उसके चेहरे का भाव बदल गया । इसमें गुस्से और दुख का रूप ले लिया । ना ही उसने उसके धन्यवाद का उत्तर दिया । वो लगातार आगे की तरफ देख रही थी । तब कुछ मिंटो के बाद उसने चुप्पी तोडी मिस्टर अमर । मुझे लगता है आपको मेरा नाम नहीं मालूम है कि आपको पता है नहीं मैं उसने जल्दी से जवाब दिया । मेरा नाम शालिनी है और मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे मेरे केवल नाम से बुलाओ । बिना मुझे मैडम संबोधित करते हुए । लेकिन इस संबंध में कोई प्रश्न पूछे की जरूरत नहीं है । इसलिए मुझे केवल शालनी कहकर बुलाओ । उसने उससे एक अधिकार के साथ कहा उसके शालिनी लेकिन तो मुझे कहानी जा रही हूँ । उसने आश्चर्य से पूछा जब उसके ऑफिस की तरफ जाने वाली सडक को छोड दिया वो उसकी आश्चर्य पर मुस्कुराई और बोली मैंने वास्तव में आज के लिए तुम्हारा अपहरण कर लिया है । इतना कहकर उसने उसके चेहरे का भाव पडने के लिए उसके और देखा । लेकिन उसने पाया कि उसके चेहरे पर आधार या दुख का कोई निशान नहीं था । वो भी मुस्कुरा रहा था । शायद वो उसके साथ से खुश था । उस ने भी उसकी तरफ देखा और तब कहा लेकिन तुम्हारे पापा मुझे ऑफिस समय से न पहुंचने के लिए डाटेंगे और मेरा वेतन भी काट लेंगे । यदि मैं ऑफिस नहीं गया तो और ये सब केवल तुम्हारी मजा किया हरकतों के कारण होगा क्योंकि मैं वापस से बात करी होंगी । इतना कहकर उसे सडक के किनारे काहलो की और मोबाइल फोन पर अपने पापा से बात करने लगी । वो उससे कुछ कहना चाहता था लेकिन कह नहीं पाया क्योंकि उस समय तक उनके बीच बातचीत शुरू हो गई थी । लेकिन उसे जल्दी छोड देना उस एक मीटिंग अटेंड करनी है । वो की पापा मैं उसे जितनी जल्दी संभव हो सकेगा उतनी जल्दी खुद ऑफिस लिया होंगे । शालिनी ने उत्तर दिया और अपने पापा की अनुमति प्राप्त करने के बाद उत्साह से चाहेगी । अमर भी मुस्कुराया क्योंकि अब वो ऑफिस के तनाव से मुक्त हो गया था । लेकिन शालिनी व्यहवार पर उत्पन्न हुए अपने शक को नहीं त्यागा सका । कार तेजी से चल रही थी और सुखद अहसास उनके चेहरे पर छा रहे थे । अचानक कार यूनिवर्सिटी के हाथ में पहुंची और इससे पहले कि वह से कुछ कहता कि एक झटके के साथ रुक गए । पहले शालिनी कार से उतरी और तब उसे दूसरा दरवाजा खोला और अमर संकोच के साथ नीचे उतरा । शालिनी बहुत खुश दिखाई दे रही थी । उसने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया और उसके साथ आगे जाने का इरादा क्या? लेकिन जल्दी वो अपने कुछ मित्रों से गिर गई थी जो बहुत ही खुले और स्पष्टवक्ता थे । काये शालिनी । तुम कैसी हो अच्छे धन्यवाद उसे जवाब दिया केवल अच्छी नहीं बहुत अच्छे । दूसरे ने हसते हुए कहा शालिनी भी उनके साथ ऐसी और ये कहते हुए अमर की तरफ मुडी आप हैं । लेकिन इससे पहले कि वो वाक्य पूरा करती है, उनमें से एक नहीं उसे अमर कहकर संबोधित किया । ये सुनकर सभी मुस्कुरा दिए । अमरी सुनकर स्तब्ध था, लेकिन उसने इस प्रकट नहीं किया और कहा, आप कैसे हैं आप सब? और तब सब खुशी से उत्तर दिया आप कैसे हैं उसका उनसे परिचय करवाने के लिए । शालिनी को एक के करके अपने मित्रों के पास जाता हुआ देखकर उसने महसूस किया कि वह कितनी की तरह थी, क्योंकि बगीचे में बारी बारी हर एक फूल पर बैठी है । अंत में उसने कहा, अब हमें वापस चलना चाहिए । क्यों? क्या बूट गए हैं? शालिनी ने उत्सुकता से पूछा । नहीं, हरगिज नहीं । आप की कंपनी में होने से कौन इनकार करेगा? लेकिन उसने धीरे से उत्तर दिया । यह सुनकर वह मुस्कुराए और उसे सहमती देने के लिए सिर्फ हिलाया ।
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