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तो अध्याय नौ उसे दिल्ली से आए हुए छह महीने बीत गए थे और हर दिन उसके बिताने के लिए एक बोझ की तरह था । बहुत बार वो दिल्ली लौटना चाहता था लेकिन उसकी माँ उसे कुछ दिन और रुकने के लिए बाध्य कर देती थी । एक दिन दो व्यक्ति आए और उसके पिता से कुछ गंभीर विषय पर बातें की । यदि भी उसके पिता ने उसे कुछ नहीं बताया भी उसे अपनी माँ से जानने में सफल हो गया । जिसमें उत्साहित होकर उसे बताया कि वो उस की शादी के बारे में बात करने आए थे और ये सुनकर वो उदास हो गया और अपनी माँ से कहा कि वो उसके पिता को उस मामले को आगे न ले जाने की सलाह दे क्योंकि वो इसपर सोचने के लिए कुछ समय चाहता है । उसे निर्णय लेने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए । ये सुनकर उसकी मां स्थल थी और उसे बिना कोई उत्तर दिए वो किचन में घुस गई । शायद वो अपनी उदासियों से छुपाना चाहती थी । दो दिन बाद जब अमर बाजार से लौटा तो सामान्य नहीं लग रहा था । उसका चेहरा व्यक्त कर रहा था कि उसने कुछ निर्णय ले लिया है क्योंकि उसके चेहरे पर दृढता का भाव था और वो अपने निर्णय के प्रति विश्वस्त लग रहा था । वो सीधे रसोई में गया जहाँ खाना बना रही थी उन्होंने अपना सिर उसकी तरफ थोडा जब उसने रसोई में प्रवेश किया तुरंत उसका चेहरा पढा और फिर से अपने काम में लग गई जो उसके आने से पहले कर रही थी । ऐसा लग रहा था की उन्होंने उसके अपने पास आने को ज्यादा अहमियत नहीं दी । मुझे आपसे कुछ कहना है । उसने कहा किया उसने अपना काम रोकते हुए पूछा और उसकी तरफ उत्सुकता से देखा मैं दिल्ली जा रहा हूँ । उसने कहा लेकिन तुम्हारे पिता घर पर नहीं है वो दो तीन बाद लौटेंगे और मैं जल्दी लौटाऊंगा लेकिन मेरा वहाँ एक बार जाना जरूरी है । क्यों आपकी बहु के लिए किया । उसने आश्चर्य से पूछा मैं सही होमा और बाकी मैं तो वापस आने पर बताऊंगा । इतना कहकर वो अपनी माँ को दुविधा में छोडते हुए रसोई से बाहर चला गया । जब वो स्टेशन पहुंचा उसने टिकट के लिए लंबी लाइन देखी लेकिन वो किसी प्रकार से एक टिकट लेने में सफल हो गया और उसके बाद जल्दी से प्लेटफॉर्म पहुंचा जहां जल्द ही ट्रेन आने वाली थी । कोई हम सफर पाने के लिए प्लेटफॉर्म पर घूमता रहा लेकिन पूर्ण रूप से असफल हो गया । इसलिए वो बेंच पर बैठ गया जो कि पहले से ही यात्रियों से भरी हुई थी लेकिन उनमें से एक ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया और उसी वहाँ बैठने के लिए कुछ जगह दे दी । लगभग दस मिनट तक इंतजार करने के बाद उसने अपनी ट्रेन की घोषणा सुनी और एक अच्छा डिब्बा प्राप्त करने के लिए खुद को तैयार करने के उद्देश्य से खडा हो गया । जब ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंची वो जल्दी से डिब्बे में चढ गया जिसमें बहुत ज्यादा भीड नहीं थी और खिडकी के बहुत ज्यादा निकट बैठे एक आदमी के बगल में सीट लेने में कामयाब रहा । कुछ मिनट बाद ट्रेन चलने लगी और डिब्बे में शोरगुल कम हो गया । उसने पढने के लिए एक फॅमिली और इसके कुछ पेज पलटने के तुरंत बाद इसे बंद कर दिया क्योंकि मैग्जीन से उसे आकर्षक महसूस नहीं हो पा रहा था । और जब ट्रेन दोबारा से अगले स्टेशन पर रुकी वो आदमी क्योंकि खिडकी के बहुत पास बैठा था, ट्रेन से नीचे उतरने के लिए खडा हो गया और उसने खुशी से वो सीट हासिल कर ली । बाहर से आती हुई ठंडी हवा ने उसके चेहरे कुछ हुआ और उसका मूड फ्रेश कर दिया । उसे तब अपनी बोरियत काम करने के लिए खिडकी से बाहर देखा । प्लेटफॉर्म पर बहुत भीड थी । कुछ यात्री डिब्बे में सीट पाने के लिए इधर उधर दौड रहे थे । उस दृश्य से उनका तनाव कम हुआ और उसने आरामदायक महसूस किया । कुछ मिनट बाद ट्रेन ने फिर चलना शुरू कर दिया और खिडकी के रास्ते डिब्बे का वातावरण ज्यादा ठंडा और सुखद हो गया । तब उसने आराम के लिए अपनी आंखे बंद कर ली । उसी याद था जब पहली बार दिल्ली जा रहा था । कम्पार्टमेंट में इस तरह भीड की और उस समय भी किसी तरह उसे खिडकी के बहुत पास एक सीट मिल गई थी । वो दिल्ली के लिए एक अजनबी था और वह खुद को वहाँ कैसे जिस करेगा ये उसके लिए बहुत कठिन था लेकिन उसे इसके बारे में नहीं सोचा और जब कभी भी सवालों से बेचेन करते हैं बैठे बैठे ही सोने की मुद्रा में अपनी आँखे बंद कर लेता । उसके सामने एक व्यक्ति बैठा हुआ था जो बहुत सभ्य लग रहा था क्योंकि जब भी वो कोई खाने की चीज खरीदता वो उसके सामने रखता । शायद उसने उसके चेहरे के भाव द्वारा उसकी स्थिति को पढ लिया था । क्या तुम पहली बार दिल्ली जा रहे हो? क्या तुम ने ही उसने पूछा था तो कहाँ ठहर होगे? मुझे नहीं मालूम । अमर ने जवाब दिया और डिब्बे की छत की तरफ देखे । लगा क्यों? क्या वहाँ तुम्हारा कोई रिश्तेदार नहीं है? नहीं । ये सुनकर वो आदमी शांत और गंभीर हो गया । कुछ समय बाद ट्रेन एक स्टेशन बरूकी और अमन ने कुछ के लिए खरीदें । क्यों? उसने उनमें से कुछ खेलो साध्वी को दिए तो उसने बिना किसी संकोच के उन्हें स्वीकार कर लिया । हालांकि इससे पहले जब उसके अंदर के सामने कोई चीज रखी थी तो उसे लेने से मना कर दिया था । तुम्हारे नाम क्या है? अमर मेरा कमलेश है । उससे बिना पूछे ही कहा । तब वहाँ कुछ समय के लिए वे चुप हो गए और उसके बाद भी कमलेश था जिसने एक बार फिर बातचीत शुरू कर दी । मैं भी तुम्हारी तरह घबरा रहा था । जब मैं पहली बार दिल्ली जा रहा था लेकिन मुझे एक फायदा था । मेरे एक रिश्तेदार मेरे साथ थे तो बहुत कोओपरेटिव थे और उनके प्रोत्साहन ने मुझे वहाँ सब समस्याओं का सामना करने की हिम्मत दी और अब में अच्छी तरह से सेटल हूँ । मेरा एक परिवार है मेरी पद कि मेरा बेटा और मैं अमरीका सुनकर मुस्कुराया । लेकिन उसके चेहरे के भाव से ही साफ झलक रहा था कि उसने अभी तक आपने दुख पर विजय नहीं पाई थी । कुछ मिनट बाद कमलेश ने दुबारा कहा, मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ । ये भी तुम चाहो तो तुम कुछ दिनों के लिए हमारे साथ रह सकते हो । मेरा मतलब है जब तो जॉब नहीं मिल जाती । अमर ने उत्तर में कुछ भी नहीं कहा । वो केवल शून्यता से देखता रहा । वास्तव में दिल्ली में आश्चर्य पाना बहुत कठिन है । उसने उसे दोबारा से समझाते हुए कहा कि अच्छा होता यदि वो उनके साथ ठहरता । क्या आपकी पत्नी इसका विरोध नहीं करेगी? अमर नि संदेह व्यक्त करते हुए कहा, हर गेम से ही मेरे किए का कभी विरोध नहीं करती । वो मेरी बहुत सहायता करती है और मेरी सफलता उसकी सहायता का ही परिणाम है । कमलेश ने खुशी से उत्तर दिया, आप बहुत भाग्यशाली है, नहीं तो ऐसी पत्नी इन दिनों मिलना दुर्लभ है । मैंने उसके उत्तर का समर्थन करते हुए कहा
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