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पंचम परिच्छेद: भाग 4 उन्माद की चिकित्सा in Hindi

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AuthorNitin
कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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हूँ । कहानी उन्माद की चिकित्सा हूँ । ये घटना वाराणसी कि महात्मा परमानंद योगी के रूप में प्रख्यात थे । यह क्या आती है? कानोकान फैल रही थी । उन के विषय में ये कहा जा रहा था कि वे योगी है और सिद्धि प्राप्त किये हुए व्याख्यान भी जो ध्यान तथा तो अच्छा पर ही दिया करते थे । पवित्रा गंगा के तट पर दस सासों में घाट पर खडे हुए । वे अपने भक्तों को बताया करते थे कि एक योगी चाहे तो पृथ्वी को भी अपनी धुरी से बुलट सकता है । तो मैं चाहे तो आकाश में सूर्य को बांध सकता है तो इतने बडी बात पर उनके भग विश्वास भी करते थे । ऐसा कहा जाता था कि स्वामी जी चकित कर देने वाले चमत्कार कर चुके हैं । छाती इतनी अधिक थी की नीति के व्याख्यान के अनंतर सहस्त्रों की संख्या में नर नारी बालू रद्द उनका आशीर्वाद लेने आ जाया करते हो । स्त्रियाँ अपने रोगों बच्चों के लिए स्वास्थ्य मांगने आती थी, धनी मानी दीर्घायु के लिए याचना करते थे और निर्धन धर्म धान ने के लिए महात्मा जी का जीवन तो वाराणसी भर में क्या था? भी बिहार के एक संपन्न जमींदार के इकलोते पुत्र थे । नाम था अशोक । बहुत ही लाड प्यार में उनका लालन पालन हुआ था । छोटी व्यवस्था में ही दिवा हो गया । पत्नी अभी पति के घर में नहीं आई थी कि अशोक ने एक तब सी बाबा की कथा सुनी हूँ है । कहा जा रहा था कि वह इच्छानुसार आकाश में उड सकता है, भूमि के भीतर के देश को जान सकता है । जो कहता है हो जाता है इसका थाने बाला का शोक के मन पर इतना प्रभाव जमाया कि वह तब सी बाबा के दर्शन की लालसा करने लगा और एक दिन उस से मिलकर जो और सिद्धि प्राप्त करने के लिए घर से निकल गया । पत्नी धनसंपदा मैं समझता था सिद्धि के पश्चात् तो उसके पांव में लोटपोट होने लगी । उसके मन में बहुत बडी बडी महत्वाकांक्षाएं थी और मैं समझता था की सिद्धि प्राप्त करने पर वे सहज में ही पूरी हो जाएगी । सबसे बाबा तो मिले नहीं, परंतु अनेक अनेक साधु हिमालय की कंदराओं में मिले और उन्होंने उसको आशीर्वाद दे दिया तथा योग का मार्ग बता दिया । वह स्थान स्थान पर जहाँ किसी सिद्ध का समाचार मिलता जहाँ पहुँचता हूँ और जो कुछ उस से मिलता श्रद्धा तथा भक्ति से ग्रहण कर उस पर अभ्यास करने लगता है । वर्ष पर वर्ष व्यतीत होता है और अशोक जो तब तक महात्मा परमानंद बन चुका था । भारत भूमि के कोने कोने में भ्रमण कर चुका था । उसने योग के विषय में कुछ सीखा भी था । कुछ कहीं से कुछ ही से और अभ्यास भी किया था । मैं समाधि हो जाने की प्रक्रिया का अभ्यास करने लगा था । इस पर भी वह उस व्यवस्था से कहीं दूर था, जिसकी आकांक्षा लेकर वह घर से निकला था । तो अब उसे निराशा और अरुचि होने लगी है । वह जीवन व्यर्थ गया, समझने लगा था । जितनी आशा से घर से निकला था, उसके अनुमान में निराशा ही हुई थी । एक दिन में उत्तरकाशी में गंगा के तट पर खिन मन एक पत्थर पर बैठा था और आपने पर्यटनों का निरीक्षण कर रहा था । वो उस व्यर्थ ये जीवन पर पश्चताप कर रहा था । वो अपने को अत्यंत कलांतर को कर रहा था । इस समय वह पैंतीस वर्ष का युवक था । ऍम चाहिए की ओर से परिपूर्ण परंतु निराशा से छितिज एक का एक । उसको कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि उसके सामने कोई अति प्रकाशमान वस्तु गंगा के जल से निकल रही है । उस और रोकने से कुछ आकार बनता दिखाई देने लगा । तेजी दिल्ली उसे उस प्रकाशपुंज में शंख चक्र जटाधारी भगवान विष्णु का खाना बनता दिखाई देने लगा है । वे सतर्क बघवार की मूर्ति पर मुझे इस सब कुछ का और समझने का यत्न करने लगा । भगवान के सुंदर चित्ताकर्षक प्रकाश में बिकने पर मैं अपने आप को भूल गया हूँ । उसका शोध और उसकी निराशा विलीन हो गई और मैं आज शाम भगवान् की ओर देखने लगा । प्रकाश इतना अधिक था कि आंख खुलती नहीं नहीं परंतु मैं अनुभव कर रहा था की सब कुछ देख रहा है । अपने को गंगातट को प्रकाशवान परन्तु वेक से बहती हुई गंगा की धारा को और उसके ऊपर खडी भगवान की मूर्ति को भगवान उसके समीप पहुंचे और उसके सिर के ऊपर हाथ रखा है, उस को आशीर्वाद देने लगे । भगवान की होड सडक नहीं रहे थे परंतु मैं सुन रहा था भगवान कह रहे थे जो चाहते थे पाजी वो तुम शुद्ध हो । योगी हूँ संसार तुम्हारा है परमाणु । इस आशीर्वाद से क्या दिक्कत हो गया? और कृतज्ञता से भरा हुआ मैं झुककर प्रणाम करने लगा । मैं भूमि पर लुढक गया । वो अचेत होकर भूमि पर पढा रहा है । उसको चेतना हुई है । वहाँ एक साधु की आश्रम में पडा था । सब उसको जीवित देख प्रसन्न थी और जब उसने देखने वालों को बताया कि भगवान के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त कर चुका है तो सब मुस्कराते हुए उस की ओर देखने लगे । मैं अपने में अद्भुत शक्ति का संचार पाता था । उसने अपने सारे बल्कि परीक्षा भी ली भी पत्थर जिसको दस दस मनुष्य भी कठिनाई से लड सकते थे वो थोडे पे अपने से ही उठाने लगा था । उसमें वहाँ चाल तभी बढ गई थी वे कई दिन बिना सोचे बिना खाये पी है निरंतर चलता हूँ दिख चुका था हरिद्वार में तो उसको ये भी समझाया कि लोग उसको देखने, उसके चरण स्पर्श करने और उसका आशीर्वाद प्राप्त करने पंक्तियां और आने लगे हैं । स्वेच्छा से लोग उसकी सेवा सुश्रुषा तथा उसके दर्शनों को आई भीड का प्रबंध करने के लिए एकत्रित हो जाते थे । वहाँ एक घटना घटी । कुछ लोग एक लडके के बच्चों को संस्थान घाट को लिए जा रहे थे । महात्मा जी गंगा घाट की ओर जा रहे थे । उनके बस जान उनके साथ थे । महात्मा जी ने अर्थी को देखा और एक वक्त की ओर देखकर कह दिया है तो जीवित हूँ ये जीवित कोई चलाने के लिए जा रहे हैं तो अब तो नहीं ये बात तो मृतक संबंधियों को कही तो ये सब काम करते हुए वो मूड की भर्ती देखने लगे । अर्थी रोक दी गई है । डॉक्टर बुलाया गया और लडका जीवित घोषित हो गया । इस समय तक महात्मा परमाणु तो घाट पर जा पहुंचे थे । लोग जिसने सुना भागे भागे स्वामी जी के दर्शनों को आने लगे । लोगों ने आशीर्वाद तो आप करने वालों ने और आने का नहीं । प्रश्न करने वालों ने माँ को इतना तंग कर दिया कि वे हरिद्वार छोड भाग खडे हुए परंतु उनकी ख्याति उनसे आगे ही आगे जा रही थी । जब वाराणसी पहुंचे वे सिद्धि होगी । इस वक्त तक पहुंचे हुए महात्मा प्रसिद्ध हो चुके थे । महात्मा परमानंद भी अब अपने को भगवान के वार से युक्त एक असीम शक्ति का स्वामी समझने लगे थे । अब अपना आशीर्वाद ऍफ ही देते रहते थे । किस किस को उनका आशीर्वाद बोलता था ना कठिन परंतु उनकी ख्याति उत्तरोत्तर बढ रही थी । एक दिन स्वामी जी दशाश्वमेधघाट पर अपना प्रवचन देकर रोड रहे थे कि बाजार में दो साल लडते दिखाई दी है । एक स्वेत रंग का था दूसरा कृष्ण वर्ल्ड का । दोनों की सिंह परस्पर जुडे हुए थे और वे एक दूसरे को धकेल रहे थे । स्वीट सान बलवान था और कृष्ण लगभग पीछे हट रहा था । एक का एक स्वीट साल का पापा ऑफिस स्लाॅट ऍम ने उत्साहित हो उस पर आक्रमण करने के लिए भाभा की गर्जना की । स्वीट साल उठा और अपने बल पर विश्वास से भरा है । भीड जाने के लिए फोन कारे मारने लगा । इस समय स्वामी जी को एक चमत्कार दिखाने की सूची वे दोनों के बीच खडे हो गए और कुछ ओवर में कहने लगे अरे मूर्खो बस करूँ लडना ठीक नहीं देखो मैं कहता हूँ शांत हो जाओ स्वीट और कृष्ण । दोनों स्थानों ने समझा कि ये कोई तीसरा सांड उनमें आ खडा हुआ है तो उन्होंने समझा कि ये उनसे दुर्बल हैं । दोनों अपना क्रोध उसपर निकालने के लिए कुछ पर पिल पडे । एक्शन के लिए तो स्वामी जी ने दोनों के सिंहगड उनको रोकने का यत्न किया परंतु अग्रेषण स्वीट सामने महात्मा जी को सिंगों में उठा और उनको घायल कर हवा में उछाल दिया । महात्मा जी घायल रख से लगभग अचेतावस्था में अस्पताल में पहुंचा दिए गए । कई दिन पश्चात उन की संज्ञा लोड नहीं । उनकी दो पसलियां टूट गयी थी और पलस्तर लगा दिया गया था । उनको ठीक होने में दो मास लग गए । पहले भक्तों को स्वामीजी तक जाने की स्वीकृति नहीं थी । पीछे स्वामी जी जो अपनी शक्ति की सीमा देख चुके थे और जिनका विमान आपने सिद्धि प्राप्त योगी होने का विलीन हो चुका था, लज्जित हो भक्तों को मुक्ति खाने से इंकार करते थे । एक दिन अस्पताल के डॉक्टर ने कह दिया महाराष्ट्र आप के भक्त आपके दर्शनों के लिए एक बहुत बडी संख्या में बाहर खडे हैं । अब तो आप सब प्रकार से सोचते हैं, आप उनसे मिल सकते हैं । महात्मा जी ने एक्शन पर विचार किया और तब कहा उनसे कहूँ मैं बाहर ही आता हूँ । डॉक्टर कहने गया तो स्वामी जी ने अपना कमंडल और डोरी उठाई और अस्पताल के पिछवाडे की ओर चल पडे । नर्स और लोगों ने समझा कि लघुशंका के लिए जा रहे हैं परन्तु गए और लापता हो गया । दर्शनाभिलाषी खडे खडे हैं । प्रतीक्षा में उप कर रहे थे और महात्मा जी बिहार अपने पिता के गांव की ओर जा रहे थे । उनका पागल पन जा चुका था और पंडित बालक की बाटी सुधर गए अनुभव करने लगे थे ।

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कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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