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पंचम परिच्छेद: भाग 1 बेसुरे स्वर in Hindi

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AuthorNitin
कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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है । फॅमिली सुरेश मुदगलकर नमस्कार आप सुन रहे हैं गुरूदत्त लिखित कामना कहानी ब्लॅक रमेश बहुत ही उदार, उन्मत विचारों वालो योग था । उन्नति का साधारण तैयार हूँ । अर्थ पश्चिम आते हैं । आचार विचार माने जाते हैं । उसने विवाह तभी क्या जब उसने अनुभव किया कि अब वह अपने परिवार का भली पर का भरण पोषण कर सकता है । उसने अपनी पत्नी का चयन भी अपनी इच्छानुसार क्या ऍम विभाग में डिप्टी ट्रैफिक ऑफिसर था और जिस कन्या का उसमें चयन किया था वह रेलवे कर्मचारियों के कन्या विद्यालय में अध्यापिका उस लडकी का नाम था नीला जो होगा नाम से ही स्पष्ट है । भारतीय ईसाई थी िवासी पूर दोनों ने निर्णय किया था कि दोनों अपने अपने संप्रदाय पर स्थित रहेंगे और कोई भी एक दूसरे की सम्प्रदाय और जीवन मिमांसा के विषय में कुछ नहीं गए । वास्तव में रमेश किसी पंथ का अनुभव भी नहीं था । नोटिस कर वह अपनी पत्नी के ईसाई पथिक व्यवहार ने असीम आस्था पर हंसी करता था । नीला जब भोजन करने बैठ थी तो भोजन प्रारंभ करने से पूर्व कुछ दिनों तक मैं आंखे मूंदकर वोटों से कुछ बुदबुदाया करती । हमें इसको इससे हंसी आया करती थी । नीला नियमित रुपये गिरजाघर भी जाए करती थी । इस पर भी वे दोनों परस्पर बहुत प्रेम से रहते थे । इस प्रकार वे प्रसन्न थे तो भाई जीवन के दो वर्ष बाद उनके घर में प्रथम संसदीय हुई है । ये कन्या थी । जीवन का प्रथम विवाद हुआ । इसके नामकरण नीला चाहती थी कि उसका नाम रोजी रखा जाए और रमेश का चयन था । ललिता नीला ने पूछा, रोजी नाम में तुम्हें आपत्ति क्यों? इसलिए ये सब अंग्रेजों का है और हम भारतीय है । किंतु भारत की कोई भाषा तो है नहीं, वहाँ क्यों नहीं देखो? सभी भारतीय भाषाओं का आधा संस्कृत है । कहते हैं संस्कृति भारत की भाषा कहीं जाती है । मैं संस्कृत नहीं जानती है । कोई बात नहीं । हम नीति ही उसके रूप का प्रत्याख्यान करते रहते हैं । ललिता उसी भाषा का सब । फिर भी मुझे रोज ही नाम बहुत पसंद है और मुझे ललिता देखिए । हमने भी वहाँ से वो नहीं किया था कि हम एक दूसरे के मामलों में कोई दखल नहीं देंगे । ये तो ठीक है । मैं तुम्हारे किसी भी मामले में दंगल नहीं दे रहा है । और तो लडकी तो मेरी भी उतनी है जितनी तुम्हारी । इस प्रकार अंत में यही निर्णय हुआ कि नीला उसे रोजी नाम से को कर सकती है । रमेश ललिता के नाम से हमें समझता था की ये है पथिक विजय नहीं ये तो जातीय बात है । दूसरे बच्चे के नामकरण के अवसर पर भी ऐसा ही हुआ । कन्या के जन्म के दो वर्ष पश्चात उनके घर पर एक पुत्र उत्पन्न हो । पिता ने उसका नाम सुरेश रखता है और माता नहीं जो इससे भी बडा झगडा बच्चों के सौरभ प्रथम स्कूल भेजने पर हुआ । रमेश चाहता था कि ललिता को किसी हिंदी स्कूल में भेजा जाये और नीला बच्चों को अंग्रेजी स्कूल भेजना चाहती थी । नामकरण की भर्ती ये बात इतनी समझ नहीं थी बच्चों की शिक्षा पर ही उनके जीवन का आधार होता है और नीला इस विषय में मान नहीं सकी । उसने कहा मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरी बच्ची दास जाती की भाषा तथा चलन सीखने में अपने समय का अपव्यय कर रहे हैं । ये तो रमेश के लिए भी सहन करना कठिन हो गया । उसने कहा इसका अभिप्राय तो ये हुआ की तुमने एक दास जाति के व्यक्ति से विभाग क्या है । किसी दास से प्रेम करना अथवा उसके प्रेम द्वारा प्रेम क्या जाना तो बडी लज्जास्पद बात है तो तुम तो हर समय मुझसे अंग्रेजी में ही बात करते हो । कुछ भी हो । मैं हिंदुस्तानी हूं और चाहता भी यही हूँ कि मेरी संतान भी वैसी मैंने तुम श्याम को भारतीयों से कुछ कुछ समझती हो और ये अच्छा होता है कि तुम अपने से निम्न श्रेणी के व्यक्ति से विवाह नहीं करती है । किंतु मैं तो तुमसे प्यार करती थी और अब भी उसी तरह प्यार करती हूँ । कोई अपने से निम्न श्रेणी के व्यक्ति को प्यार क्यों नहीं कर सकता है? मैंने तो तो मैं हर प्रकार से आपने बराबर ही समझा है । ये तो हमारे बच्चों के भविष्य की बात है तो उन्होंने कैसा बनाना चाहती हूँ । मेरी तो इस विषय में आकांक्षा है कि वे डॉक्टर बनी तो ऑफिसर बनने, इंजीनियर बने या कम से कम किसी सरकारी विभाग में । कुछ पद पर तो अवश्य ही प्रतिष्ठित हूँ । जो तुम्हारी आकांक्षा है, मैं उसका विरोध नहीं कर रहा हूँ । मैं के लिए चाहता हूँ कि मेरी संस्कृति को व्यवसायिक शिक्षा की अधिक भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं जीवन मिमांसा का प्रशिक्षण भी भली बातें प्राप्त हो तो जिस प्रकार तुम चाहती हो, वैसे ये संभव नहीं है । इस प्रकार दोनों किसी बात पर सहमत नहीं हो सकते हैं । इस कठिनाई से निकलने का एक ही मार्ग रह गया की पत्नी को स्वतंत्रता दी जाए कि वह लडकी को जिस प्रकार चाहे बनाओ और पति लडकी को जैसा बनाना चाहिए बना लो । इस प्रकार घर में दो धडे बन गए । एक का झुकाव भारतीयता की ओर था और दूसरे का पाश्चात्य सभ्यता की ओर । रमेश का सादा यही यत्न रहता था की दोनों में से किसी प्रकार समझौता हो जाए किंतु नीला के मस्ती में ये बात समाप्ति ही नहीं थी कि पश्चिमी जीवन में मनसा में कोई सुधार भी हो सकता है । इस प्रकार वर्ड्स बीते गए और इसके साथ ही दो घरों की खाई भी बढती गई । तो इस पर भी पति पत्नी को जो चीज साथ रखी हुई थी वह था उनका कानूनी और यौनाकर्षण और ये भी शीघ्रता से कम होता जा रहा है । अंत में एक दिन वह अपेक्षित संकट भी आपको स्थित हुआ । ललिता की आयु इक्कीस वर्ष की हो गई थी और अन्य ईसाई कन्याओं की भर्ती वह भी स्टोनोग्राफर बन गई । उसको रेलवे ऑडिटेड जनरल की पीएम की नौकरी मिल गई और निरंतर उसके साथ निरक्षण प्रवास पर रहने लगे । सुरेश ने बीए करने के बाद इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश ले लिया था । एक दिन ऐसा वो घर आया और रोजी के विषय में अपनी माँ से पूछने लगा हाँ जानती हो ललिता कहा है हाँ मैं अपने आप सर के साथ प्रवास पर है किन्तु मैं तो यही इसी नगर में है । इससे उसकी माँ को कुछ चिंता हूँ । उसने ऑडिटर जनरल को फोन कर अपनी लडकी के बारे में जानना चाहते हैं । वहाँ से उत्तर मिला कि पिछले चार दिन से वह लापता हैं । नीला ने जब उसे ये कहा कि चार दिन स्कूल वह यह कहकर गस्ती चली थी कि वह प्रवास पर जा रही है तो उस ऑफिसर ने बताया एक सप्ताह से तो कहीं गया ही नहीं । तब मिला नहीं । अपने लडके से पूछा कि उसको वह किस प्रकार विधि हुआ की लडकी अपने काम पर नहीं गयी । लडके ने बताया कि उसने उसको किसी परिचित व्यक्ति के साथ रेलवे स्टेशन पर देखा है । जब रमेश को इस स्थिति से अवगत किया गया तो वह केवल हस दिया और उसने सुरेश को का सुरेश तुम्हें ललिता के विषय में चिंता करने की आवश्यकता नहीं मैं जानता हूँ की क्या होने वाला है । मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी बहन का विचार छोड क्योंकि भद्रपुरुष होगा मिलने । जब हमें इससे कहा कि ललिता के विषय में पता लगाया जाए तो उस ने कह दिया ये सब व्यस्त है । उसको शिक्षा ही इस प्रकार की मिली है कि जिससे वह स्वस्थ हूँ, विचरण करेंगे । मुझे भी विश्वास है कि वह वापस आ जाएगी । बात यहीं पर समाप्त हो गई । रोज वापिस आई तो उसके पांच मार्च का गर्भ था । मार निश्चित नहीं कर सकी । क्या करें और लडकी चुपचाप अपने कमरे में रहने लगे । पिता को जब पता चला की लडकी वापस आ गई है तो उसने उस मकान में रहना उचित नहीं समझा । मैं सुरेश और दो अन्य बच्चों को साथ लेकर दूसरे मकान में रहने चला गया । नीला इससे बहुत उत्तेजित हुई और स्पष्टीकरण के लिए रमेश के पास जा पहुंची । रमेश ने कहा, मैं अपने बच्चों के मन में ये बात नहीं बैठने देना चाहता हूँ कि मेरी दृष्टि में भी लगता का क्रियाकलाप उचित ही है । किंतु अब उसका क्या होगा? कुछ नहीं उसके बच्चा होगा और मैं उसका पालन पोषण करेगी । क्या तुम्हारे मन में उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं है? मैं तो समझती हूँ कि उसका बहिष्कार करने की अपेक्षा इस समय उसके पास रहकर उसको स्वान तो ना दे । प्यार से उचित मार्ग पर लाना अधिक उपयुक्त होगा । मैं तो उसको अभी भी प्यार करता हूँ और अपने मन में उसके लिए गहन साहनुभूति भी रखता हूँ तो उसके साथ ही केवल उसके लिए अपने अन्य बच्चों से नहीं नहीं तोड सकता । उनके मन में ये धारणा बैठाना भी मूर्खता होगी कि वे सब समाज की अपेक्षा जीवन के क्रिया कलापों होगी । पुनरावर्ती करें आपने अभी बहुत की अधिक सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं । मेरी समझ में तो तुम्हारी बात नहीं आई । तुमने ये कैसे कह दिया कि इस विपत्ति के समय ललिता से सहानुभूति रखने से अन्य बच्चों के प्रति तुम्हारा प्यार कम हो जाएगा । तुम समझ नहीं सकते मिला तुम्हारी शिक्षा किसी हिंदुस्तान की भारतीय नहीं हुई । मेरे मस्तिष्क में सदाराम का सीता को वन में भेजने का उदाहरण रहता है । हिंदुओं ने राम के उस करते हुए पर कभी ये नहीं कहा कि इससे सीता के प्रति राम का प्रेम और सहानुभूति सीन हो गई थी । व्यक्ति की अपेक्षा समिट का हित सर्वदा महत्वपूर्ण माना जाता है । ये बरता है । हम उस प्रागैतिहासिक युग में तो नहीं रहते हैं । हमेशा और नीला के सह अस्तित्व का ये अंतर था । दोनों अलग रहने लगे । सबसे छोटी लडकी रानी नहीं अपने पिता से पूछा । पिताजी हाँ! चली हो गई क्योंकि वह केवल और माया थी । जीवन में बनने वाली शक्ति जोन आरक्षण के अतिरिक्त कुछ हो रहा है । उसके बिना स्वर्ण बी एस । ही रहते हैं हूँ ।

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कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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