Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
निर्मला अध्याय - 11 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

निर्मला अध्याय - 11 in Hindi

Share Kukufm
6 K Listens
AuthorSaransh Broadways
Nirmala written by Premchand Narrated by Sarika Rathore Author : Premchad Producer : Saransh Studios Author : Premchand Voiceover Artist : Sarika Rathore
Read More
Transcript
View transcript

निर्मला अध्याय क्या रहा? रुकमनी ने निर्मला से कोरिया बदलकर का क्या नंगे पांव ही मदरसे जाएगा? निर्मला ने बच्चे के बाल गोटे हुए कहा मैं क्या करूँ? मेरे पास रुपये नहीं रुक्मणी गहने बनवाने को रूपये जुडते हैं । लडकों की जूते के लिए रुपये में आग लग जाती है । दो तो चले ही गए । क्या तीसरे को भी बुला रुलाकर मार डालने का इरादा है । निर्मला ने एक सांस खींचकर कहा जिसको जीना है जियेगा जिसको मारना है मारेगा मैं किसी को मारने जिलाने नहीं जाती । आजकल एक ना एक बात पर निर्मला और रुक्मणी में रोज ही छडप हो जाती थी । जब से गहने चोरी हो गए हैं निर्मला का स्वभाव बिल्कुल बदल गया है । वहाँ एक के पकौडी दाद से पकडने लगी है सी आराम रोते रोते चाहे जाने देते हैं मगर उसे मिठाई के लिए पैसे नहीं मिलते हैं । और यह बर्ताव कुछ सियाराम ही के साथ नहीं है । निर्मला स्वयं अपनी जरूरतों को टालती रहती हैं । होती जबतक फटकर तारतार ना हो जाये, नई धोती नहीं आती । महीनों सेल का तेल नहीं मंगाया जाता । पान खाने का उसे शौक था । कई कई दिन तक पानदान खाली पडा रहता है । यहाँ तक की बच्ची के लिए दूध भी नहीं आता । नंदनी से शिशु का भविष्य विराट रूप धारण करके उसके विचार क्षेत्र पर मंडराता रहता । मुझे जीने आपने कुछ संपूर्ण तैयार निर्मला के हाथों में सौंप दिया है । उसके किसी काम में दखल नहीं देते । न जानी क्यों उससे कुछ डब्बे रहते हैं । वहाँ अब बिना नागा का छह ही जाते हैं । इतनी मेहनत उन्होंने जवानी में भी ना की थी । आंखें खराब हो गयी है । डॉक्टर सिन्हा ने रात को लिखने पढने कि मोमो नियत कर दी है । पाचन शक्ति पहले ही दुर्बल थी । अब और भी खराब हो गई । डंडे की शिकायत भी पैदा हो चली है । पर बिचारे सवेरे से आधी आधी रात तक काम करते हैं । काम करने को जीत चाहे जाना चाहिए । तबियत अच्छी हो या न हो, काम करना ही पडता है । निर्मला को उन पर ज्यादा भी दया नहीं आती । वहीं भविष्य की भीषण चिंता उसकी अंतरिक सद्भावों को सर्वनाश कर रही है । किसी भिक्षु की आवाज सुनकर झल्ला पडती है । वहाँ एक कौडी भी खर्च करना नहीं चाहती । एक दिन निर्मला ने सी आराम को भी लाने के लिए बाजार भेजा । बोंगी पर उनका विश्वास नहीं था । उससे अब कोई सौदा नामांक थी । सी आराम में काट कपट की आदत थी औनेपौने करना न जानता था । पढाई बाजार का सारा काम उसी को करना पडता । निर्मला एक एक चीज को तोलती ज्यादा भी कोई चीज बोल में कम पड की तो उसी लौटा दी थी सियाराम का बहुत सा समय इसी लोड फेरी में बीत जाता था । बाजार वाले उसी जल्दी कोई सौदा ना देते हैं । आज भी वही नौ बताई सी आराम अपने विचार से बहुत अच्छा गी । कई दू कारण से देख कर लाया लेकिन निर्मला ने उसी सूंघते ही का ही खराब है लौटाओ । सीयाराम झुँझलाकर कहा इससे अच्छा गी बाजार में नहीं है । मैं सारी दुकानें देखकर लाया हूँ । निर्मला तो मैं झूठ कहती हूँ सी आराम ये मैं नहीं कहता लेकिन बनियां अब जी वापस ना लेगा । उसने मुझे कहा था जिस तरह दिखाना चाहो यही देखो माल तुम्हारे सामने हैं । बोहनी बातें के वक्त में सौदा वापस लाल होगा । मैंने सूंघकर चक्कर लिया, अब किस मुंह से लौटाने जाऊँ । निर्मला ने दादा पीसकर कहा जी में साफ चर्बी मिली हुई है और तुम कहते हूँ कि अच्छा है मैं इसे रसोई में ना ले जाउंगी । तुम्हारा जी चाहे लौटा दो, चाहे खा जाओ ठीक ही हांडी । वही छोडकर निर्मला घर में चली गई सी आराम, क्रोध और शोभ से कातर हो उठा । वहाँ कौन मूल लेकर लौटाने जाए? बनिया साफ कह देगा । मैं नहीं लौटाता तब बहुत क्या करेगा? आस पास के दस पांच बनी और सडक पर चलने वाले आदमी खडे हो जायेंगे । उन सभों के सामने से लज्जित होना पडेगा । बाजार में यू ही कोई बनियां उसे जल्दी सौदा नहीं देता । वहाँ किसी दुकान पर खडा होने नहीं पाता । चारों और से उसी पर लताड पडेगी । उसने मन ही मन झुंझलाकर कहा पडा रहेगी मैं लौटाने न जाऊंगा । मातृहीन बालक के सामने दुखी दीन प्राणी संसार में दूसरा नहीं होता और सारे दुख हुई जाते हैं । बालक को माता याद आई । अम्मा होती तो क्या आज मुझे ये सब सहना पडता भैया चले गए । मैं अकेले यह विपत्ति सहने के लिए क्यों बचा रहा? सी आराम की आंखों में आंसू की झडी लग गयी । उसकी शौक कातर कंठ से एक गहरे निश्वास के साथ मिले हुए ये शब्द निकल आए । अब हाँ तो मुझे भूल क्यों गई? क्यों नहीं बुला लेती । सहसा निर्मला फिर कमरे की तरफ आई । उसने समझौता सियाराम चला गया होगा । उसे बैठा देखा तो उससे से बोली तो अभी तक बैठी हूँ, आखिर खाना कब बनेगा? सीआर आमने आंखे पोर्ट डाले । बोला मुझे स्कूल जाने में देर हो जाएगी । निर्मला एक दिन देर हो जाएगी तो कौन है? रेस है, ये भी तो घर का काम है । सी आराम । रोज तो यही धंडा लगा रहता है । कभी वक्त पर स्कूल नहीं पहुंचता । घर पर भी पडने का वक्त नहीं मिलता । कोई सौदा दो चार बार लौटाए बिना नहीं जाता । डाट तो मुझ पर पडती है । शर्मिंदा तो मुझे होना पडता है आपको क्या? निर्मला हाँ मुझे क्या? मैं तो तुम्हारी दुश्मन टेहरी अपना होता तब तो उसे दुख होता । मैं ईश्वर से मनाया करती हूँ कि तू पढ लिख ना सबको मुझे सारी बुराइयां ही बुराइयाँ हैं । तुम्हारा कोई कसूर नहीं । विमाता का नाम ही बुरा होता है । अपनी माँ विश्व खिलाए तो अमृत हैं । मैं अमृतसर पिलाओ तो विश हो जाएगा तुम लोगों के कारण मैं मिट्टी में मिल गई रोती रोधी उम्र कर जाती है । मालूम ही नहीं हुआ कि भगवान ने किस लिए जन्म दिया था और तुम्हारी समझ में मैं बिहार कर रही हूँ तो मैं बताने में मुझे बडा मजा आता है । भगवान भी नहीं पूछते कि सारी विपत्ति का अंत हो जाता । ये कहते कहते हैं निर्मला की आंखे भर आई । अंदर चली गई सी आराम उसको रोते देखकर सहम उठा । गिलानी तो नहीं आई, पर शंका हुई कि न जाने कौन सा दंड मिले । चुपके से हांडी उठा ली और घी लौटाने चला । इस तरह जैसे कोई कुत्ता किसी नए गांव में जाता है । उसे देखकर साधारण बुद्धि का मनुष्य भी अनुमान कर सकता था कि वहाँ अनाथ हैं सीयाराम जियो । जो आगे बढता था, आने वाले संग्राम के भय से उसकी हिंदी गति बढती जाती थी । उसने निश्चय क्या बनने जीना लौटाया तो वहीं छोडकर चला आएगा । झक मारकर बनी आप ही बुलाएगा बनिया को डांटने के लिए भी उसने शब्द सोच लीजिए, वहाँ जायेगा क्यों साहूजी आंखों में धूल झोंकते हो दिखाते हो चोखा मान और देते हो रद्दी मान पर्व निश्चय करने पर भी उसके पैर आगे बहुत धीरे धीरे उठते थे वहाँ ये ना चाहता था बनिया उसे आता हुआ देखें । बहुत अक्समात थी । उसके सामने बहुत जाना चाहता था । इसलिए वह चक्कर काटकर दूसरी गली से बनने की दुकान पर गया । बनी नहीं, उसे देखते हैं कहाँ? हम ने कह दिया था कि हमें सौदा वापस नहीं लेंगे । वो लोग कहा था कि नहीं । सी आराम ने बिगडकर कहा । तुमने वहाँ ये कहा दिया जो दिखाया था दिखाया एक मार दिया । दूसरा मान लौटा होगी कैसे नहीं क्या कुछ राहजनी है? साह इससे क्यों खागी बाजार में निकल आए तो जरीब आना दो उठालो हांडी और दो चार दुकान देखा हूँ सी आराम हमें इतनी फुर्सत नहीं है, अपना ही लौटा लो । शाह जी नहीं लौटेगा बनने की दुकान पर एक जटाधारी साधु बैठा हुआ कि तमाशा देख रहा था । उठकर सियाराम के पास आया और हांडी का गी सूनकर बोला बच्चा ही तो बहुत अच्छा मालूम होता है साहब । सनी शाह पाकर कहा बाबा जी हम लोग तो आप भी इनको घटिया माल नहीं देती । खराब माल क्या जाने सुनने ग्राहकों को क्या दिया जाता है? साधु गीले जा । बच्चा बहुत अच्छा है । सियाराम रो पडा जी को बुरा सिद्ध करने के लिए उसके पास अब क्या प्रमाण था? बोला । वहीं तो कहती है ये अच्छा नहीं लौटा हूँ । मैं तो कहता था कि ये अच्छा है । साधु कौन कहता है साह इसकी अम्मा कहती होगी । कोई सौदा उनकी मन ही नहीं भरता है । बिचारे लडके को बार बार दौडाया करती हैं । सौतेली माँ है ना अपनी माँ हो तो कुछ ख्याल भी करेंगे । साधु ने सियाराम को साडी नेत्रों से देखा मानो उसे त्राण देने के लिए उनका हिंदी विफल हो रहा है । तब करुणेश्वर से बोले तुम्हारी माता का स्वर्गवास हुए कितने दिन हुए? बच्चा सियाराम छठा साल है । साधु तो तो उस वक्त बहुत ही छोटे रहे होंगे । भगवान् तुम्हारी लीला कितनी विचित्र हैं । इस दूधमुहे मालक को तुमने मात्र प्रेम से वंचित कर दिया । बडा अनर्थ करते हो भगवान छह साल का बालक और राक्षसी विमाता के पानी ले पडे । धन्य हो गया नहीं थी साहब जी बालक पर दया करूँ कि लौटा लो नहीं तो इसकी माता इसी घर में रहने ना देगी । भगवान की इच्छा से तुम्हारा गी जल्दी बिक जाएगा । मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा । साहब जी ने रूपये वापस ना कि आखिर लडके को फिर भी लेने आना ही पडेगा । ना जाने दिन में कितनी बार चक्कर लगाने पडे और किस जाली से पाला पडेगा । उसके दुकान में योगी सबसे अच्छा था । वहाँ सी आराम दिल से सोच रहा था बाबा जी कितने दयालु हैं । उन्होंने सिफारिश ना की होती तो साहब जी क्यों अच्छा जी देते सी आराम ही लेकर चला तो बाबा जी भी उसके साथ ही रास्ते में मीठी मीठी बातें करने लगे । बच्चा मेरी माता भी मुझे तीन साल का छोडकर परलोक सिधार ई थी । तभी से मातृविहीन बालकों को देखता हूँ तो मेरा ही देर पडने लगता है । सियाराम ने पूछा आपके पिताजी ने भी दूसरा विवाह कर लिया था । साथ हूँ हाँ बच्चा नहीं तो आज साधु होता हूँ । पहले तो पिताजी भी वाहना करते थे । मुझे बहुत प्यार करते थे । फिर न जाने क्यों मन बदल गया । विवाह कर लिया । साधु हूँ । कटु वचन मुझसे नहीं निकालना चाहिए । पर मेरी विमान जितनी भी सुंदर थी, उतनी ही कठोर थी । मुझे दिनभर खाने को ना देती । रोता तोमर की पिताजी की आंखे भी फिर गई । उन्हें मेरी सूरत से घृणा होने लगी । मेरा रोना सुनकर मुझे पीटने लगते को मैं एक दिन घर से निकल खडा हुआ । सी आराम के मन में भी घर से निकल भागने का विचार कई बार हुआ था । इस समय भी उसके मन में यही विचार उठ रहा था । वहीं उत्सुकता से बोला घर से निकलकर आप कहाँ गए? बाबू जी ने हस्कर कहा उसी दिन मेरे सारे कष्टों का अंत हो गया । जिस दिन घर के मो बंधन से छोटा और भर मन से निकला हूँ, उसी दिन मानो मेरा उद्दार हो गया । दिन भर में एक पुल के नीचे बैठा रहा । संध्या समय मुझे एक महात्मा मिल गए । उनके स्वामी परमानंद जी था । वे बाल ब्रह्मचारी थे । मुझ पर उन्होंने दया की और अपने साथ रख लिया । उनके साथ मैं देश देशांतरों में घूमने लगा । बडे अच्छे होगी थी । मुझे भी उन्होंने योगविद्या सिखाई । अब तो मेरे को इतना अभ्यास हो गया है कि जब इच्छा होती है, माता जी के दर्शन कर लेता हूँ, उनसे बात कर लेता हूँ । सीआर आमने विस्फारित नेत्रों से देखकर पूछा, आप की माता का तो देहांत हो चुका था । साधु तो क्या हुआ? बच्चा योगविद्या में बहुत शक्ति हैं । जिस मृत आत्मा को चाहे पुनाली सियाराम मैं योगविद्या सीख लो तो मुझे भी माताजी के दर्शन होंगे । साधु अवश्य अब बिहार से सब कुछ हो सकता है । हाँ योग्य गुरु चाहिए । योग से बडी बडी सिद्धियां प्राप्त हो सकती है । जितना धन चाहूँ पल मात्र में मांग सकती हूँ, कैसे ही बीमारी हो, उस की औषधि बता सकते हो । सी आराम आपका स्थान कहा साधु बच्चा मेरा कोई स्थान कहीं नहीं है । देश देशांतरों में जमता फिरता हूँ । अच्छा बच्चा तुम जाओ । मैं जरा स्नान ध्यान करेंगे, जाऊंगा सीयाराम चलिए मैं भी उसी तरह चलता हूँ । आपके दर्शन से जी नहीं भरा साधू नहीं बच्चा तो पाठशाला जाने की टीवी हो रही है सी आराम फिर आपकी दर्शन कब होंगे? साधु कभी आ जाऊंगा । बच्चा तुम्हारा घर कहाँ है? सियाराम प्रसन्न होकर बोला हूँ चलिए का मेरे घर बहुत नजदीक है । आपकी बडी कृपा होगी सी आराम कदम बढाकर आगे आगे चलने लगा । कितना प्रसन्न था मानव सोने की गठरी लिये जाता हूँ । घर के सामने पहुंचकर बोला आइए बैठे कुछ साधू नहीं, बच्चा बैठेगा नहीं तो फिर कल परसों किसी समय आ जाऊंगा । यही तुम्हारा घर है । सी आराम । कल केस वक्त आइयेगा साधु निश्चित नहीं कह सकता, किसी समय आ जाऊंगा । साधु आगे बढे तो थोडी ही दूर पर उन्हें दूसरा साधु मिला । उसका नाम था हरिहरानंद । परमानंद ने पूछा कहाँ कहा कि सैर की कोई शिकार फसल हरिहरानंद ईधर चारों तरफ घुमाया । कोई शिकार ना मिला । एक आद मिला भी तो मेरी हंसी उडाने लगा परमानंद मुझे तो एक मिलता हुआ जान पडता है भर जाए तो जानू हरिहरानंद तो यही कहा करते हूँ जो आता है दो एक दिन के बाद निकल भागता है परमानंद अबकी ना भागेगा देख लेना इसकी माँ मर गई है । बाप ने दूसरा विवाह कर लिया है । माँ भी सताया करती है । घर से उबा हुआ है । हरिहरानंद खूब अच्छी तरह यही तार की सबसे अच्छी है । पहले इसका पता लगा लेना चाहिए कि मोहल्ले में किन किन घरों में विमाता आएँ हैं । उन्हें घरों में पन्ना डालना चाहिए । निर्मला ने बिगडकर कहा इतनी देर कहां लगाई? सी आराम ने डी टाई से कहा रास्ते में एक जगह हो गया था । निर्मला ये तो मैं नहीं कहती पर जानते हूँ कि बच गए हैं । दस कभी के बच गए । बाजार कुछ दूर भी तो नहीं है । सीयाराम कुछ दूर नहीं, दरवाजे ही पर तो हैं । निर्मला सीधे से क्यों नहीं बोलते? ऐसा बिगड रहे हो जैसे मेरा ही कोई काम करने गए हो । सी आराम तो व्यर्थ की बकवास क्यों करती है? लिया सौदा लौटाना क्या आसान काम है । बनी से घंटों इज्जत करनी पडी ये तो कहूँ एक बाबा जी ने कह सुनकर पेरवा दिया नहीं तो किसी तरह फेरता रास्ते में कहीं एक मिनट बिना रुका सीधा चला हूँ । निर्मला जी के लिए गए गए तो ग्यारह बजे लौटे हो । लकडी के लिए जाओगे तो सांझी कर दोगे तुम्हारे बाबूजी बिना खाये ही चले गए तो में इतनी देर लगानी थी तो पहले ही क्यों ना कह दिया जाते ही लकडी के लिए सियाराम अब अपने को संभालना सका । झल्लाकर बोला लकडी किसी और से मंगाई मुझे स्कूल जाने को देर हो रही है । निर्मला खाना खाओगे सी आराम ना रखा हुआ । निर्मला मैं खाना बनाने को तैयार हूँ । हाँ, लकडी लाने नहीं जा सकती । सी आराम भूमि को क्यों नहीं भेज दी? निर्मला भूमि का लाया सौदा तो मैं कभी देखा नहीं है । सी आराम तो मैं इस वक्त ना जाऊंगा । निर्मला मुझे दोष ना देना सी आराम । कई दिनों से स्कूल नहीं गया था । बाजार हट के मारे उसे किताबें देखने का समय ही ना मिलता था । स्कूल जाकर झिडकियां खान से बेंच पर खडे होने या पूछे टोपी देने की सेवा और क्या मिलता? वहाँ घर से किताबें लेकर चलता, पर शहर के बाहर जाकर किसी व्यक्ति की चाय में बैठा रहता । जब परिजनों की कवायद देखता तीन बजे घर से लौटाता । आज भी वह घर से चला, लेकिन बैठने में उसका जीना लगा । उस पर आते अलग चल रही थी । हाँ, अब उसे रोटियों के भी लाले पड गए । दस बजे क्या खाना ना बन सकता था । माना कि बाबूजी चले गए थे क्या मेरे लिए घर में दो चार पैसे भी नहीं थे । अब होती तो इस तरह दिन कुछ खाये भी आने देती । मेरा कोई नहीं रहा । सी आराम का मन बाबा जी के दर्शन के लिए व्याकुल हो उठा । उसने सोचा इस वक्त वह कहाँ मिलेंगे? कहाँ चल कर देखो उनकी मनोहर वाणी उनकी उत्साहप्रद सांत्वना उसके मन को खींचने लगी । उसने आतुर होकर कहा मैं उनके साथ ही क्यों ना चला गया? घर पर मेरे लिए क्या रखा था वहाँ । आज यहाँ से चला तो घर ना जाकर सीधा घी वाले सहायता की दुकान पर गया । शायद बाबा जी से वहाँ मुलाकात हो जाएगी । पर वहाँ बाबाजी नाथ बडी देर तक खडा खडा लौट आया । घर आकर बैठा ही था कि निर्मला ने आकर कहा आज देर का हालांकि सवेरे खाना नहीं बना । क्या इस वक्त भी उपवास होगा? जाकर बाजार से कोई तरकारी लाओ सी आराम ने झल्लाकर कहा । दिन भर का भूखा चला आता हूँ । कुछ पीने पाने तक को लाये नहीं । ऊपर से बाजार जाने का हुक में दे दिया । मैं नहीं जाता बाजार किसी का नौकर नहीं हूँ । आगे रोड गया ही तो खिलाती हूँ या और कुछ ऐसी रोटियाँ जहाँ मेहनत करूंगा वहीं मिल जाएगी । जब मंजूरी ही करनी है तो आपकी न करूंगा जाइए । मेरे लिए खाना मत बनाइएगा । निर्मला आवाक रह गई । लडकी को आज क्या हो गया और दिन तो चुटकी से जाकर काम कर लाता था । आजकल ट्यूरिया बदल रहा है । अब भी उसको ये ना सूजी कीसी आराम को दो चार पैसे कुछ खाने के देते । उसका स्वभाव इतना अपन हो गया था । बोली घर का काम करना तो मंजूरी नहीं कहलाती । इसी तरह मैं भी कहते हैं कि मैं खाना नहीं पकाती । तुम्हारे बाबूजी कह दे कि कचहरी नहीं जाता तो क्या हूँ? बताओ नहीं जाना चाहते तो मत जाऊँ । भूमि से बंगाल होंगी । मैं क्या जानती थी कि तुम्हें बजाय जाना बुरा लगता है । नहीं तो बला से ढेले की चीज पैसे में आती तो मैं ना बेच दी । लोग आज से कान पकडती हूँ । सी आराम दिल में कुछ लज्जित हुआ, पर बाजार में आ गया । उसका ध्यान बाबा जी की ओर लगा हुआ था । अपने सारे दुखों का अंत और जीवन की सारी आशाएं उसे बाबा जी का आशीर्वाद में मालूम होती थी । उन्हें की शरण जाकर उसका ये आधारहीन जीवन सार्थक होगा । यूएस के समय वह अधीर हो गया । सारा बाजार छान मारा, लेकिन बाबा जी का कहीं बताना मिला दिन भर का भूखा प्यासा वहाँ अभूत बालक दुखते हुए दिल को हाथों से दबाये । आशा और भय की मूर्ति बना । दुकानों, गलियों और मंदिरों में उस आश्रम को खोजना फिरता था जिसके बिना उसे अपना जीवन दूसरा हो रहा था । एक बार मंदिर के सामने उसे कोई साधु खडा दिखाई दिया । उसने समझा वही है । हर्षोल्लास से वह फूल था । दौडा और साधु के पास खडा हो गया । पर ये कोई और ये महात्मा थे । निराश होकर आगे बढ गया । धीरे धीरे सडकों पर सन्नाटा सा छा गया । घरों के द्वार बंद होने लगे । सडकों की पटरियों पर और गलियों में बस घंटे या बोरे बिछा बिछाकर भारत की प्रजा सुख निद्रा में मग्न होने लगी । लेकिन सी आराम घर ना लौटा । उस घर से उसका दिल फट गया था, जहाँ किसी को उससे प्रेम ना था । यहाँ वह किसी प्रायश्चित की भर्ती पडा हुआ था । केवल इसीलिए की उसे और कहीं शरण नहीं थी । इस वक्त भी उसके घर न जाने को किसी चिंता होगी । बाबू जी भोजन करके लेते होंगे । अम्माजी भी आराम करने जा रही होंगी । किसी ने मेरे कमरे की ओर झांककर देखा बिना होगा । हाँ बुआ जी घबरा रही होंगी । वहाँ अभी तक मेरी रह देखती होंगी । जब तक मैं ना जाऊंगा, भोजन न करेंगे । रुक्मणी की याद आती ही सी आराम घर की और चल दिया । वहाँ अगर और कुछ नहीं कर सकती थी तो कम से कम उसे गोद में चिमटा कर रोती थी । उसके बाहर से आने पर हाथ मूत होने के लिए पानी तो रख देती थी । संसार में सभी बालक दूध की कुल्लू नहीं करते हैं । सभी सोने के कोर नहीं खाते । कितनों के पेट पर भोजन भी नहीं मिलता । पर घर से विरक्त वही होते हैं जो मातृसमा ऐसे वंचित है सी आराम घर की ओर चलाई कि सहसा बाबा परमानंद एक गली से आते दिखाई दिए । सी आराम में जाकर उनका हाथ पकड लिया । परमानंद ने चौकर पूछा, बच्चा तुम यहाँ कहा? सीयाराम ने बात बनाकर कहा एक दोस्त से मिलने आया था । आप का स्थान यहाँ से कितनी दूर हैं? परमानंद हम लोग तो आज यहाँ से जा रहे हैं । बच्चा हरिद्वार की यात्रा है । सियाराम ने हतोत्साह होकर कहा क्या आज ही चले जाइयेगा? परमानंद हाँ, बच्चा अब लौट कराऊंगा तो दर्शन दूंगा । सी आराम ने काट कंट्री से कहा मैं भी आपके साथ चल होगा । परमानंद मेरे साथ तुम्हारे घर के लोग जाने देंगे । सियाराम घर के लोगों को मेरी क्या परिवार हैं? इसके आगे सी आराम और कुछ कहना सका । उसके अश्रुपूरित नेत्रों ने उसकी करुना था, उसे कहीं विस्तार के साथ सुना दी जितनी उसकी वाणी कर सकती थी । परमानंद ने बालक को कंट्री से लगाकर कहा अच्छा बच्चा तेरी इच्छा हो तो चल साधु संतों की संगती का आनंद उठा । भगवान की इच्छा होगी तो तेरी इच्छा पूरी होगी । डालने पर मंडराता हुआ पक्षी अंत में दाने पर गिर पडा । उसके जीवन का अंत पिंजरे में होगा । ये अब याद की छोडी के पहले ये कौन जानता है?

Details

Sound Engineer

Voice Artist

Nirmala written by Premchand Narrated by Sarika Rathore Author : Premchad Producer : Saransh Studios Author : Premchand Voiceover Artist : Sarika Rathore
share-icon

00:00
00:00