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निर्मला अध्याय - 09 in Hindi

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7 K Listens
AuthorSaransh Broadways
Nirmala written by Premchand Narrated by Sarika Rathore Author : Premchad Producer : Saransh Studios Author : Premchand Voiceover Artist : Sarika Rathore
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हूँ । निर्मला अध्याय नौ कृष्णा के विवाह के बाद सुबह चली गई लेकिन निर्मला मई के में ही रह गई । वकील साहब बार बार लिखते थे पर वाहना जाती थी । वहाँ जाने को उसका जीना चाहता था । वहाँ कोई ऐसी चीज थी जो उसे खींच ले जाए । यहाँ माता की सेवा और छोटे भाइयों की देखभाल में उसका समय बडी आनंद से कट जाता था । वकील साहब खुद आती तो शायद वह जाने पर राजी हो जाती है । लेकिन इस विवाह में मोहल्ले की लडकियों ने उसकी बहुत दुर्गत की थी कि बेचारे आने का नाम ही ना लेते थे । सुबह ने भी कई बार पत्र लिखा । पाँच निर्मला ने उससे भी ही ले हवाले किया । आखिर एक दिन सुधारने नौकर को साथ लिया और स्वयं आतंकी जब दोनों गले मिल चुकी तो सुधा ने कहा तो मैं तो वहाँ जाती मानव डर लगता है । निर्मला हाँ, बहन डर तो लगता है बिहार की कई तीन साल में आई अच्छे तो वहाँ उम्र ही खत्म हो जाएगी । फिर कौन बुलाता है और कौन आता है? सुबह आने को क्या हुआ जब की चाहे चलिये आना वहाँ वकील साहब बहुत पे चेंज हो रहे हैं । निर्मला बहुत पीछे रात को शायद नींद आती हूँ सुबह बहन तुम्हारा कलेजा पत्थर का है । उनकी दशा देखकर तरह आता है । कहते थे घर में कोई पूछने वाला नहीं, न कोई लडका न बाला । किसी भी बहलाए जब से दूसरे मकान में उठाए हैं बहुत दुखी रहते हैं । निर्मला लडकी तो ईश्वर के दिए दो दो हैं सुबह उन दोनों की तो बडी शिकायत करते थे जी, आराम तो बात ही नहीं सुनता । तुर्की बुत तुर्की जवाब देता है जहाँ छोटा वहाँ भी उसी के कहने में है । बेचारी बडी लडकी को याद करके होया करते हैं । निर्मला जी आराम तो शरीर था । वहाँ बदमाशी कब से सीख गया? मैं तो कोई बात नहीं डालता था । इशारे पर काम करता था । सुधा क्या जाने बहन सुना कहता है आप ही ने भैया को जहर देकर मार डाला । आप हत्यारे हैं, कई बार तुमसे विवाह करने के लिए ताने दे चुका है । ऐसी ऐसी बातें कहता है कि वकील साहब जो पढते हैं । अरे और तो क्या करूँ । एकदिन पत्थर उठाकर मारने दौडा था । निर्मला ने गंभीर चिंता में पढकर कहा यह लडका तो बडा शैतान निकला । उसे ये किसने कहा कि उसके भाई को उन्होंने जहर दे दिया । सुधा वक्त उम्मीद से ठीक होगा । निर्मला को ये नहीं चिंता पैदा हुई । अगर जिया की यही रंग हैं, अपने बाप से लडने पर तैयार रहता है तो मुझे क्यों दबने लगा वहाँ रात को बडी देर तक इसी फिक्र में डूबी रही । मनसाराम की आज से बहुत याद आई उसके साथ दिल्ली की आराम से कट जाती इस लडकी का । जब अपने पिता के सामने ही वहाँ हाल है तो उनके पीछे उसके साथ कैसे निर्वाह होगा, पर हाथ से निकल ही गया । कुछ ना कुछ कर्ज अभी सिर पर हो गई । आमदनी का ये हाल ईश्वर ही बेडा पाय लगाएगा । अच्छा पहली बार निर्मला को बच्चों की फिक्र पैदा हुई । इस बेचारी का ना जाने क्या हाल होगा । ईश्वर ने ये विपत्ति सिर्फ डाल दी । मुझे तो इस की जरूरत थी । जनवरी लेना था तो किसी भाग्यवान के घर जन्म लेती । बच्चे की छात्र से लिपटी हुई सो रही थी । माता ने उसको और भी चिपटा लिया । मानव कोई उसके हाथ से उसे छीन लिया जाता है । निर्मला के पास ही सुधा की चारपाई दी थी । निर्मला तो चिंतक के सागर में गोता खा रही थी और सुधार मीठी नींद का आनंद उठा रही थी । क्या उसे अपने बालक की फिक्र सताती है? मृत्यु तो बूढे और जवान का भेद नहीं करती । पिनर सुधा को कोई चिंता क्यों नहीं बताती? उसी तो कभी भविष्य की चिंता से उदास नहीं देखा । सहसा सुधार की नींद खुल गई । उसने निर्मला को अभी तक जाते देखा तो बोली अरे अभी तुम सोई नहीं । निर्मला नींद ही नहीं आती । सुबह आंखे बंद कर लो, आप ही नहीं ना जाएगी । मैं तो चारपाई पर आते ही मासी जाती हूँ । वहाँ जाते भी है तो खबर नहीं होती । न जाने मुझे क्यों इतनी नींद आती है । शायद कोई रोग है? निर्मला हाँ, बडा भारी रोग है । इसे रोज रोग कहते हैं । डॉक्टर साहब से कहो दवा शुरू करते हैं । सुबह तो आखिर जाकर क्या सोचूं । कभी कभी मई की की याद आ जाती है तो उस दिन जरा देर में आठ लगती है । निर्मला डॉक्टर साहब क्या नहीं आती । सुबह कभी नहीं । उनकी याद क्यों आएँ? जानती हूँ कि टेनिस खेलकर आए होंगे । खाना खाया होगा और आराम से लेते होंगे । निर्मला लोग सोहनवीर जाग गया । जब तुम जान गई तो भला ये क्यों सोने लगा? सुधर हाँ बहन इसकी अजीब आदत है । मेरे साथ सोता और मेरे साथ ही जाता है । उस जन्म का कोई तपस्वी है । देखो इसकी माथे पर तिलक का कैसा निशान हैं? बाहों पर भी ऐसे ही निशान हैं जरूर कोई तपस्वी हैं । निर्मला तपस्वी लोग तो चंदन तिलक नहीं लगाते । उस जन्म का कोई धुर्त पुजारी होगा । क्यूरे तो कहा का पुजारी था । बता सुधा इसका बिहार में बच्ची से करोंगे । निर्मला चलो बहन गाली देती हूँ । बहन से भी भाई कब क्या होता है सुबह मैं तो करूंगी चाहे कोई कुछ नहीं । ऐसी सुंदर बहू और कहाँ पाऊंगी? जरा देखो तो बहन इसकी देह कुछ करम है क्या मुझको ये मालूम होती है । निर्मला ने सोहन का माथा छूकर कहा नहीं नहीं बेहद गर्म है ये जोर कब आ गया? दूध तो पी रहा है ना । सुधा अभी सोया था तब तो देहर ठंडी थी । शायद सर्दी लग गई । उढाकर सुनाई देती हूँ । सवेरे तक ठीक हो जाएगा । सवेरा हुआ तो सोहन की दशा और भी खराब हो गयी । उसकी नाम बहने लगी और बुखार और भी तेज हो गया । आंखें चढ गयी और से झुक गया । नवा हाथ पैर हिलाता था ना? हस्ता बोलता था । बस चुप चाप पडा था । ऐसा मालूम होता था कि उसी इस वक्त किसी का बोलना अच्छा नहीं लगता । कुछ कुछ खासी भी आने लगी । अब सुधर घबराई निर्मला की भी जाए हुई कि डॉक्टर साहब को बुलाए जाए । लेकिन उसकी बोली माता ने कहा डॉक्टर हकीम साहब का यहाँ कुछ काम नहीं । साफ तो देख रही हूँ कि बच्चे को नजर लग गई है । भला डॉक्टर आकर क्या करेंगे? सुधार अम्माजी पहले यहाँ नजर कौन लगा देगा? अभी तक तो भारतीय गया ही नहीं । माता नजर कोई लगता नहीं बेटा किसी किसी आदमी की डीट पूरी होती है । आप ये आप लग जाती है । कभी कभी माँ बाप तक की नजर लग जाती है । जब से आया है एक बार भी नहीं रोया जो छोटे बच्चों को यही गति होती है । मैं इसे हूँ । व्यक्ति देखकर डेरी थी कि कुछ ना कुछ अनिष्ट होने वाला है । आंखें नहीं देखती हूँ, कितनी चढ गई हैं । यही नजर की सबसे बडी पहचान है । बुरिया, महरी और पडोस की पंडिताइन ने इस कदम को अनुमोदन कर दिया । बस महंगू ने आकर बच्चे का मूड देखा और हस्कर बोला मालकिन ये दीप है और नहीं जरब पतली पतली टीनियां मंगवा दीजिए । भगवान ने चाहा तो संज्ञा तक बच्चा हसने लगेगा । सरकंडे के पांच टुकडे लाए गए । मांगों ने उन्हें बराबर करके एक दूसरे से बांध दिया और कुछ बुदबुदाकर उसी पोले हाथों से पांच बार सोहन का सेल सहलाया । अब क्यों देखा तो पांच तिल्लियां छोटी बडी हो गई थी । सबसिडियां यह को तुम देख कर दंग रह गई । अब नजर में किसी संदेह हो सकता था । महमूद ने फिर बच्चे को पीलिया से सहलाना शुरू किया । अबकी लिया बराबर हो गई । केवल थोडा सांता रह गया । यह सब इस बात का प्रमाण था की नजर का असर थोडा सा और रह गया है । मैं हूँ सबको दिलासा देकर शाम को फिर आने का वायदा करके चला गया । बालक की दशा टीम को और खराब हो गयी । खांसी का जोर हो गया । शाम के समय मैं घूमने आकर फिर तीलियों का तमाशा क्या इस वक्त पांचों तीलियाँ बाॅंटी निश्चित हो गई लेकिन तो हम को सारी रात खास्ते गुजरी । यहाँ तक कि कई बार उसकी आंखें उल्ट गयी । सुधा और निर्मला दोनों ने बैठ कर सब मेरा क्या है रात कुशल से कट गई । अब विद्या माताजी नया रंग लाई महंगू नजर ना उतार सका । इसलिए अब किसी मौलवी से फूट डलवाना जरूरी हो गया । सुबह फिर भी अपने पति को सूचना नदी से की महरी सोहन को एक चादर से लपेटकर एक मस्जिद में ले गई और फुटर वालाई शाम को भी फूट छोडी । परसो हमने सिन्ना उठाया, जहाँ आ गयी सुधारने मन में निश्चय किया कि रात कुशल से बीतेगी तो प्राधन काल पति को तार दूंगी । लेकिन रात कुशल सेना बीतने पाई । आधी रात जाते जाते बच्चा हाथ से निकल गया । सुबह को जीन संबंधी देखते देखते उसके हाथों से चीन गई । वहीं जिसके विवाह का दो दिन पहले विनोद हो रहा था, आज सारे घर को रुला रहे हैं । इस की भोली भाली सूरत देखकर माता की छाती फूल उठती थी । उसी को देखकर राजमाता की छाती फटी जाती हैं । सारा घर सुधा को समझाता था, पर उसके आंसू नाथम देते थे । सबरिना होता था । सबसे बडा दुख इस बात का था कि पति को कौन मूर्तिकला होंगे । उन्हें खबर तक ना दी । रात ही को उतार दिया गया और दूसरे दिन डॉक्टर सिन्हा नौ बजते बजते मोटर पडा पहुंचे । सुधारने उनके आने की खबर पाई तो और भी फूट फूटकर रोने लगी । बालक की जल क्रिया हुई । डॉक्टर साहब कई बार अंदर आए तो सुधर उनकी पास आ गई । उनके सामने कैसी जाएंगे कौन मूड दिखाई । उसने अपनी नादानी से उनके जीवन का रतिन छीन कर दरिया में डाल दिया । अब उसके पास जाती उसकी छाती के टुकडे टुकडे हुए जाते थे । बालक को उसकी गोद में देखकर पति की आखिर चमक उठती थी । बालक हाँ मक्कर पिता की गोद में चला जाता था । माता फिर बुलाती तो पिता की छाती से चिपक जाता था और लाख चुराने दुलारने पर भी बात की । खोजना छोडना था । तब माँ के भी बरामद लम्बी हैं । आज वहाँ किसी गोद में लेकर पति के पास जाएगी । उसकी सुनी गोल्ड देखकर कहीं बच्चे लाकर रोना पडे । पति के समूह जाने की अपेक्षा उसे मार जाना कहीं आसान जान पडता था । वहाँ एक क्षण के लिए भी निर्मला को ना छोड दी थी कि कहीं पति से सामना ना हो जाए । निर्मला ने कहा बहन जो होना था वो हो चुका है । अब उनसे कब तक भागती फिर होगी रही थी को चले जाएंगे । अम्मा कह दी थी । सुधा ने सजल नेत्रों से ताकते हुए कहा कौन मूल्य कर उनकी पास जाऊँ? मुझे तक लग रहा है कि उनके सामने जाते ही मेरा पैर न थर्राने लगे और मैं गिर पडे । निर्मला चलो मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ तो मैं संभाले होंगी । सुना मुझे छोड कर भाग तो नहीं होगी? निर्मला नहीं नहीं भावभूमि नहीं । सुधा मेरा कलेजा तो अभी से उडा आता है । मैं इतना घोल प्रच पाता होने पर भी बैठी हूँ । मुझे यही आश्चर्य हो रहा है । सोहन को वो बहुत प्यार करते थे । बहन जाने । उनकी चित्र की क्या दशा होगी । मैं उन्हें ढांढस क्या दूंगी । आपको रोती रहूंगी । क्या लाठी को चले जाएंगे? नहीं माना । हाँ अम्मा जी तो कहती थी छुट्टी नहीं ली हैं । दोनों सहेलियां मर्दाने कमरे की ओर चली, लेकिन कमरे के द्वार पर पहुंचकर सुधारने निर्मला से विदा कर दिया । अकेले कमरे में दाखिल हुई डॉक्टर साहब घबरा रहे थे कि न जाने सुधा की क्या दशा हो रही है । भारतीय भारतीय की शंकाएं मन में आ रही थी । जाने को तैयार बैठे हैं, लेकिन जीना चाहता था । जीवन शून्य स मालूम होता था । मनी मन खुद चले रहे थे । अगर ईश्वर को इतनी जल्दी यह पदार्थ देकर छीन लेना था तो दिया ये क्यों था? उन्होंने तो कभी संतान के लिए ईश्वर से प्रार्थना की थी । वहाँ आज जनम नि संतान रह सकते थे । पर्सन दान पाकर उसे वंचित हो जाना । उन्हें असहाय जान पडता था कि सचमुच मनुष्य ईश्वर का खिलौना है । यही मानव जीवन का महत्व है । ये हैं केवल बालिकों का घर होना है, जिसके बनने का न कोई तो है न बिगडने का । फिर बालिकों को भी तो आपने घरोंदों से अपनी कागजों की नावों से अपनी लकडी के घोडों से ममता होती है, अच्छे खिलोने का वहाँ जान के पीछे छिपा कर रखते हैं । अगर ईश्वर बालक ही है तो वह विचित्र बालक है । किन्तु बुड्ढी तो ईश्वर का यह रूप स्वीकार नहीं करती । आनंद सृष्टि का करता उद्दंड बालक नहीं हो सकता है । हम उसी उन सारे गुणों से विभूषित करते हैं जो हमारी बुद्धि का पहुंच से बाहर हैं । खिलाडी पन तो सौं महान गुणों में नहीं । क्या हस्ती खेलते बालकों का प्राण हर लेना खेल है क्या ईश्वर ऐसा पे शाची खेल खेलता है? सहसा सुधा दबे पांव कमरे में दाखिल हुई । डॉक्टर साहब उठ खडे हुए और उसके समीप आकर बोले तो कहाँ थी सुबह मैं तुम्हारी राह देख रहा था । सुधा क्या खुसी कमरा तैरता हुआ चंद बडा पति की गर्दन में हाथ डालकर उसके उनकी छाती पर सिर्फ सख्तियां और रोने लगी । लेकिन उस अश्रु प्रवाह में उसे असीम धैर्य और सांत्वना का अनुभव हो रहा था । पति के वक्ष स्थल से लिपटी हुई वहाँ अपने एरिया में एक विचित्र फूर्ति और बाल का संचार होते हुए पार्टी थी मानो पवन से फिर कराता हुआ दीपक अंचल की आड में आ गया हूँ । डॉक्टर साहब ने रमणी के अशोक सिंचित कपोलों को दोनों हाथों में लेकर कहा सुना तो इतना छोटा दिल क्यों करती हूँ? सोहन अपने जीवन में जो कुछ करने आया था, वहाँ कई चुका था । फिर वहाँ क्यों बैठा रहता है? जैसे कोई वृक्ष जनरल प्रकाश से बढता है, लेकिन पवन की प्रभावी झोंको ही से सुदृढ होता है । उसी भर्ती रहने भी दुःख के आघातों ही से विकास पाता है । खुशी के साथ हंसने वाले बहुत मिल जाते हैं । रेंज में जो साथ हुए, वहाँ हमारा सच्चा मित्र हैं । जिन प्रेमियों को साथ रोना नहीं नसीब हुआ, मोहब्बत की मर्जी क्या जाने? सोहन की मृत्यु ने आज हमारे डेट को बिलकुल मिटा दिया । आज ही हमने एक दूसरे का सच्चा स्वरूप देखा, सुना नहीं सकते हुए कहा मैं नजर की धोखे में थी तो उसका मोदी ना देखने पाए, ना जाने इन दिनों उसी इतनी समझ कहाँ से आ गई थी । जब मुझे रोती देखता हूँ तो अपनी केश भूलकर मुस्कुरा देता । तीसरे ही दिन मेरी लाडली की आंख बंद हो गई । कुछ दवा दर्पन भी ना करने पाई । यह कहते कहते हैं सुबह के आंसू फिर बडा है । डॉक्टर सिंहानी उसे सीने से लगाकर करोड से कापटी हुई आवास में कहा ये आज तक कोई ऐसा बालक वृद्ध ना मारा होगा किसी घर वालों की दवा दरपन की फिलहाल सब पूरी हो गई हूँ सुधर निर्मला ने मेरी बडी मदद की । मैं का झपकी भी ले लेती थी पर उसकी आंखें नहीं जबकि रात रात लिए बैठे या टहलती रहती उसके एहसान कभी नाम भूल होगी क्या तुम आज ही जा रहे हूँ? डॉक्टर हाँ, छुट्टी लेने का मौका नहीं था । सिविल सर्जन शिकार खेलने गया हुआ था । सुबह ये सब हमेशा शिकारी खेला करते हैं । डॉक्टर राजाओं को और काम ही क्या है? सुधार मैं तो आज ना जाने दूंगी । डॉक्टर जी तो मेरा भी नहीं चाहता हूँ । सुबह तो मत जाओ, तार दे दो, मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी । निर्मला को भी लेती चल होंगे । चुनाव वहाँ से लौटी तो उसके ही देख का बोझ हल्का हो गया था । पति की प्रेम पोना कोमल वाणी ने उसकी सारे शोक और संताप का हरण कर लिया था । प्रेम में असीम विश्वास है, असीम धैर्य हैं और असीम बाल है । जब हमारे ऊपर कोई बडी विपत्तियां पडती है तो उससे हमें केवल दुखी नहीं होता अमित दूसरों के तानी भी सहने पडते हैं । जनता को हमारे ऊपर टिप्पणियां करने का वस्तु अवसर मिल जाता है जिसके लिए वहाँ हमेशा बेचेन रहती है । मनसाराम क्या मारा मानव समाज को उन पर आवाजे कसमे का बहाना मिल गया बीते कि भारतीय कौन जानी? प्रत्यक्ष बात यह थी कि सब सौतेली माँ की करतूत है । चारों तरफ यही चर्चा थी ईश्वर न करें लडकों को सौतेली माँ से पाला पडेगा, जिसे अपना बना बनाया घर उजाडना हूँ । अपने प्यारे बच्चों की गर्दन पर छुरी फेर नहीं हूँ । वहाँ बच्चों के रहते हुए अपना दूसरा बिहार करें । ऐसा कभी नहीं देखा कि सौत के आने पर घर तबाह ना हो गया हूँ । वहीं बात जो बच्चों पर जान लेता था, सौरभ के आते ही उन्हें बच्चों का दुश्मन हो जाता है । उस की माटी ही बदल जाती है । ऐसी देवी ने जन्म ही नहीं लिया जिसने सौत के बच्चों को अपना समझा हूँ । मुश्किल यह थी कि लोग टिप्पणियों पर संतुष्ट होते थे । कुछ ऐसे सज्जन भी थे जिन्हें जी आराम मोडसिया आराम से विशेष हो गया था । वो दोनों बालकों से बडी सहानुभूति प्रकट करते हैं । यहाँ तक कि दो एक महिलाएं तो उसकी माता के शील और स्वभाव को याद करें । आंसू बहाने लगती थी । आए हाए बेचारी क्या जानती थी कि उसके मारते ही लाडलो की यह दुरदर्शा होगी । अब दूध मक्खन का है को मिलता होगा । जी आराम कहता मिलता क्यों नहीं? महिला कहती मिलता है । अरे बेटा, मिलना भी कई तरीका होता है । पानी वाला दो टके सेर का मंगाकर रख दिया । पीओ चाहे ना पियो, कौन पूछता है नहीं तो बेचारी नौकर से दूध दो हवा कर मंगवाती थी । वहाँ तो चेहरा ही कह देता है दूध की सूरत छिपी नहीं रहती । वहाँ सूरत ही नहीं नहीं जया को अपनी माँ के समय के दूध का स्वाद तो याद था नहीं जो इस आक्षेप का उत्तर देता हूँ और ना उस समय की अपनी सूरत की आती चुप रह जाता । इन शुभांक आंशकाओं का असर भी पडना स्वाभाविक था । जी आराम को अपने घर वालों से चिढ होती जाती थी । मुझे जी मकान नीलामी हो जाने के बाद दूसरे घर से उठाए तो किराए की फिक्र हुई । निर्मला ने मक्खन बंद कर दिया । वहाँ आमदनी ही नहीं रही तो खर्च कैसे रहता । दोनों का हाल अलग कर दिए गए जी आराम को यह कतर विरोध बुरी लगती थी । जब निर्मला माइके चली गई तो मुझे जीने दूध भी वन कर दिया । नवजात कन्या की चिंता अभी से उनके सिर पर सवार हो गई थी । सीआई आमने बिगडकर कहा दूध बंद रहने से तो आपका महल बन रहा होगा । भोजन भी बंद कर दीजिए । मुझे जी दूध पीने का शौक है तो जाकर दोहा क्यों नहीं लाते? पानी के पैसे तो मुझे ना दिए जाएंगे । जी आराम में दूध दोहने जाऊ । कोई स्कूल का लडका देख लेता हूँ । मुझे जी तब कुछ नहीं कह देना । अपने लिए दूर लिये जाता हूँ । दूध लाना कोई चोरी नहीं है । जी आराम चोरी नहीं है । आपको कोई दूध लाते देख ले तो आपको शर्म आएगी । मुझे जी बिलकुल नहीं । मैंने तो इन्हीं हाथों से पानी खींचा है । अनाज ही गठिया लाया हूँ । मेरा बाप लगती नहीं थे जी आराम मेरी बात तो गरीब नहीं । मैं क्यों दो दो हानि जब आखिर आपने कहा को क्यों जवाब दे दिया मुझे जी क्या? तो मैं इतना भी नहीं सोचता कि मेरी आमदनी अब पहली सी नहीं नहीं इतने नादान तो नहीं हूँ जी आराम आखिर आपकी आमदनी क्यों कम हो गयी? मुंशीजी जब तो में अब कल ही नहीं है तो क्या समझाऊं यहाँ जिंदगी से तंग आ गया हूं । मुकदमे कौन ले पर ले भी तो तैयार कौन करें वहाँ दिल ही नहीं रहा । अब तो जिंदगी के दिन पूरे कर रहा हूँ । सारे अरमान लल्लू के साथ चले गए जी आ रहा अपने यहाँ तो ना मुझे जीने चीखकर कहा । अरे अहमद ये ईश्वर की मर्जी थी अपने हाथों कोई अपना गला काटता है जी आराम ईश्वर तो आपका विवाह करने नहीं आया था । मुझे जी अब जब देना कर सके लाल लाल आखे निकाल कर बोले तो आज लडने के लिए कमर बांध कर आए हो । आखिर किस गिरते पर मेरी रोटिया तो नहीं चलाते । जब इस काबिल हो जाना मुझे उपदेश दिया तब मैं सुन लूंगा । अभी तुमको मुझे उपदेश देने का अधिकार नहीं है । कुछ दिनों अदब और तमिल सीखो । तुम मेरे सलाहकार नहीं होगी । मैं जो काम करूँ उसमें तुम से सलाह हूँ । मेरी पैदा की हुई दौलत है उसे । जैसे जाऊँ खर्च कर सकता हूँ तो उनको जबान खोलने का भी हक नहीं है । अगर तुमने मुझसे बेअदबी की तो नतीजा पूरा होगा । जब मनसाराम ऐसा रत्न खोकर मेरे प्राण ना निकले तो तुम्हारे बगैर में मारना जाऊंगा । समझ गए यह कडी फटकार पाकर भी जी आराम । वहाँ से नाटा निशंक भाव से बोला तो आप क्या चाहते हैं कि हमें चाहे कितनी ही तकलीफ थी, मूल्य खोले, मुझे तो ये ना होगा । भाई साहब को अदब और तमीज का जो इनाम मिला उसकी मुझे भूक नहीं । मुझे जहर खाकर प्राण देने की हिम्मत नहीं, ऐसे अदब को दूर से ही दंडवत करता हूँ । मुझे तो मैं इसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती । जी आराम लडके अपने बुजुर्गों की ही नकल करते हैं । मुझे जी का क्रोध शांत हो गया । जियाराम पर उसका कुछ भी असर ना होगा । इसका उन्हें यकीन हो गया । उठकर टहलने चले गए । आज उन्हें सूचना मिल गई कि इस घर का शीघ्र ही सर्वनाश होने वाला है । उस दिन से पिता और पुत्र में किसी ना किसी बात पर रोज ही एक झपट हो जाती थी । मुंशी यूट्यूब तरह देते थे । जियाराम और भी शेर होता जाता था । एक दिन जियाराम ने रुक्मणी से यहाँ तक कह डाला बाप है ये समझकर छोड देता हूँ, नहीं तो मेरे ऐसे ऐसे साथी हैं कि चाहो तो भरे बाजार में पिटवा तो रुकमनी ने मुझे जिसे कह दिया मुझे जीने प्रकट रूप में तो बेपरवाही दिखाई पर उनके मन में शंका सम आ गया । शाम को सैर करना छोड दिया । ये नई चिंता सवार हो गई । इसी वजह से निर्मला को भी ना लाते थे कि शैतान उसके साथ भी यही बर्ताव करेगा । जी आराम एक बार दबी जवान में कह भी चुका था देखो अब की कैसे इस घर में आती है । मुझे जी भी खूब समझ गए थे कि मैं इसका कुछ भी नहीं कर सकता । कोई बाहर का आदमी होता तो उसे पुलिस और कानून के शिंजे में रस्ते । आपने लडकी को क्या करें? सच कहा है आज भी हारता है तो अपने लडको ही से । एक दिन डॉक्टर सिन्हा ने जी आराम को बुलाकर समझाना शुरू किया जी आराम उनका अदम करता था, चुपचाप बैठा सुनता रहा । जब डॉक्टर साहब ने अंत में पूछा आखिर तुम चाहती क्या हो तो वो बोला साफ साफ कह दू बुरा तो नहीं मानेंगे? सिन्हा नहीं जो कुछ तुम्हारे दिल में हूँ । साफ साफ कह दूँ जी आराम तो सुनी जबसे भैया मारे हैं मुझे पिताजी की सूरत देखकर रोज आता है । मुझे ऐसा मालूम होता है कि इन्होंने भैया की हत्या की है और एक दिन मौका पाकर हम दोनों भाइयों की भी हत्या करेंगे । अगर उनकी यह इच्छा ना होती तो ही क्यों करते हैं । डॉक्टर साहब ने बडी मुश्किल से हंसी रोक कर कहा तुम्हारी हत्या करने के लिए उन्हें बिहार करने की क्या जरूरत थी । यह बाद में समझ में नहीं बिना विवाह ये भी तो वह हत्या कर सकते थे । जी आया कभी नहीं । उस वक्त तो उनका दिल्ली को चौथा हम लोगों पर जान देते थे । अब मूड तक नहीं देखना चाहते । उनकी यही इच्छा है कि उन दोनों प्राणियों के सिवा घर में और कोई ना रहे । अब जो लडके होंगे उनकी रास्ते से हम लोगों को हटा देना चाहते हैं । यही उन दोनों आदमियों की दिल्ली मंशा है । हमें तरह तरह की तकलीफ से देकर भगा देना चाहते हैं । इसलिए आजकल मुकदमे नहीं लेते । हम दोनों भाई आज मर जाए तो फिर देखिए कैसी बाहर होती है डॉक्टर अगर तुम्हें भगाना ही होता तो कोई इल्जाम लगाकर घर से निकालना देते जी आराम इसके लिए पहले इसी तैयार बैठूं । डॉक्टर सोनू क्या तैयारी करी हैं जी आराम जब मौका आएगा देख लीजिएगा ये कहकर जी आराम चलता हूँ । डॉक्टर सिन्हा ने बहुत पुकारा पर उसने फिर कर देखा भी नहीं । कई दिन के बाद डॉक्टर साहब की जी आराम से फिर मुलाकात हो गई । डॉक्टर साहब सिनेमा के प्रेमी थे और जियाराम की तो जान ही सिनेमा में बस्ती थी । डॉक्टर साहब ने सिनेमा पर आलोचना करके जी आराम को बातों में लगा लिया और अपने घरेलू भोजन का समय आ गया था । दोनों आदमी साथ ही भोजन करने बैठे जी आराम को वहाँ भोजन बहुत स्वादिष्ट लगा । बोले मेरे यहाँ तो जब से महाराज अलग हुआ, खाने का मजा ही जाता रहा । बुआ जी पक्की वैष्णवी भोजन बनाती है, जबरदस्ती खा लेता हूँ पर खाने की तरफ ताकतें को जी नहीं चाहता । डॉक्टर मेरे यहाँ तो जब घर में खाना पडता है तो इससे कहीं स्वादिष्ट होता है । तुम्हारी बुआ जी प्याज लैंड सुनना छोटी होंगी जी आराम खान साहब उबाल कर रख देती हैं । लाला जी को इसकी परवाह ही नहीं कि कोई खाता है या नहीं । इसलिए तो महाराज को अलग क्या है? अगर रुपये नहीं है तो गहने कहाँ से बनते हैं? डॉक्टर ये बात नहीं है जी आराम उनकी आमदनी से छूट बहुत कम हो गई हैं तो उन्हें बहुत दिख करते हूँ जी आराम महरोनी दिख करता हूँ । मुझे कसम ले लीजिए जो कभी उनसे बोलता भी हूँ मुझे बदनाम करने का उन्होंने बेडा उठा लिया है । बे सब बेवजह पीछे पडे रहते हैं । यहाँ तक कि मेरे दोस्तों से भी उन्हें चिढ है । आपकी सोचिए दोस्तों के बैठ गए, कोई जिंदा रह सकता है । मैं कोई लुच्चा नहीं हूँ कि लुट चुकी सहमत रखूँ । मगर आप दोस्तों ही के पीछे मुझे रोज बताया करते हैं । कल तो मैंने साफ कह दिया मेरे दोस्त घर आएंगे । किसी को अच्छा लगे या बुरा ज नाम कोई हूँ, हर वक्त की धौंस नहीं रह सकता । डॉक्टर मुझे तो भाई उनपर बडी दया आती है । ये है जमाना उनके आराम करने का था । एक तो बुढापा, उसपर जवान बेटे का शौक । स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं । ऐसा आदमी क्या कर सकता है? वहाँ जो कुछ थोडा बहुत करते हैं वही बहुत है । तुम अभी और कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपनी आज से तो उन्हें प्रसन्न रख सकती हूँ । बोर्डों को प्रसन्न करना बहुत कठिन काम नहीं । यकीन मानो तुम्हारा हस्कर बोलना ही उन्हें खुश करने को काफी है । इतना पूछने में तुम्हारा क्या खर्च होता है? बाबू जी अभी तबियत कैसी है? वहाँ तुम्हारी ये उद्दंडता देखकर मन ही मन घूरते रहते हैं । मैं तुमसे सच कहता हूँ । कई बार हो चुके हैं । उन्होंने मान लो शादी करने में । कल थी कि इसी वहाँ भी स्वीकार करते हैं । लेकिन तुम अपने कर्तव्य से क्यों मूर्ति हूँ? वहाँ तुम्हारे पिता है तो मैं उनकी सेवा करनी चाहिए । एक बात भी ऐसी मुझसे नहीं निकालना चाहिए जिससे उन का दिल दुखे । उन्हें ये ख्याल करने का मौका ही क्यों दें कि सब मेरी कमाई खाने वाले हैं । बाद पूछने वाला कोई नहीं । मेरी उम्र तुमसे कई ज्यादा है जी आराम पर आज तक मैंने अपने पिताजी को किसी बात का जवाब नहीं दिया । वहाँ आज भी मुझे डाटते हैं । सिर झुकाकर सुन लेता हूँ । जानता हूँ वह जो कुछ कहते हैं मेरे भले ही को कहते हैं । माता पिता से बढकर हमारा हितेषी और कौन हो सकता है उसकी ऋण से कौन मुक्त हो सकता है जी आराम बैठ रोता रहा । अभी उसके सद्भावों का संपूर्ण लो अपना हुआ था । अपनी दुर्जनता उसे साफ नजर आ रही थी । इतनी गिलानी उसे बहुत दिनों से आई थी । रोक डॉक्टर साहब से कहा मैं बहुत लज्जित हो, दूसरों के बहकाने में आ गया । अब आप मेरी जरा भी शिकायत ना सुनेंगे । अब पिताजी से मेरे अपराध शमा कर दीजिए । मैं सच कुछ बडा अभागा हूँ । उन्हें मैंने बहुत सताया, उनसे कहिए मेरे अपराध शमा करते नहीं में मुंह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊंगा । टू मरूंगा डॉक्टर साहब अपनी उपदेश कुशलता पर फुलेना समय जी आराम को गले लगाकर विदा किया । जी आराम घर पहुंचा तो ग्यारह बज गए थे । मुझे जी भोजन करें अभी बाहर आए थे उसे देखते ही बोले जानते हूँ कि बजे हैं बारह का वक्त है जी । आराम ने बडी नम्रता से कहा । डॉक्टर सिन्हा मिल गए, उनके साथ उनके घर तक चला गया । उन्होंने खाने के लिए जिद्द भी मजबूरन खाना पडा । इसी से देर हो गयी । मुझे जी डॉक्टर सिन्हा से टुकडे होने गए होंगे या और कोई काम था जी आराम की नम्रता का चौथा बाग उड गया । बोला दुख होने की मेरी आदत नहीं है मुझे जरा भी नहीं तुम्हारे मुंबई तो जवानी नहीं मुझ से जो लोग तुम्हारी बातें करते हैं, बहुत बडा करते होंगे । जी आराम और दिनों की मैं नहीं कहता हूँ । लेकिन आज डॉक्टर सिन्हा की यहाँ मैंने कोई बात ऐसी नहीं जो इस वक्त आपके सामने ना कर सकूँ । मुझे जी बडी खुशी की बात है । बेहद खुशी हुई । आज से गुरुदीक्षा ले ली है क्या? जी आई एम की नम्रता का एक चतुर स्टार्ट और गायब हो गया । सिर उठाकर बोला आदमी बिना गुरुदीक्षा लिए हुए भी अपनी बुराइयों पर लज्जित हो सकता है । अपना सुधर करने के लिए गुरु पन कोई जरूरी चीज नहीं मुझे जी अब तो लुच्चे ना जमा होंगे । जी आराम आप किसी को लोचा क्यों कहते हैं? जब तक ऐसा कहने के लिए आपके पास कोई प्रमाण नहीं । मुझे तुम्हारे दो सब लुच्चे लफंगे हैं । एक भी भला आदमी नहीं । मैं तुमसे कई बार कह चुका हूँ कि उन्हें यहाँ मध्य जमा किया करो । पर तुमने सुना नहीं । आज में आखिरी बार कह देता हूँ कि अगर तुमने उन शहीदों को जमा किया तो मुझे पुलिस की सहायता लेनी पडेगी । जी आराम की नम्रता का एक चतुर, शोष और गायब हो गया । भडकाकर बोला, अच्छी बात है, पुलिस की सहायता लीजिए देखी क्या करती हैं? मेरी दोस्तों में आधे से ज्यादा पुलिस के अफसरों ही के बेटे हैं । जब आप ही मेरा सुधर करने पर तुले हुए हैं तो मैं व्यर्थ क्यों कष्ट उठाओ? ये कहता हुआ जी आराम अपने कमरे में चला गया और एक्शन के बाद हारमोनियम के मीठे स्वरों की आवाज बाहर आने लगी हूँ ।

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Sound Engineer

Voice Artist

Nirmala written by Premchand Narrated by Sarika Rathore Author : Premchad Producer : Saransh Studios Author : Premchand Voiceover Artist : Sarika Rathore
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