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अच्छा निर्मला अध्याय साथ जो कुछ होना था हो गया । किसी की कुछ नहीं चली । डॉक्टर साहब निर्मला की देखो ऐसी रक्त निकालने की चीज तक कर ही रहे थे कि मनसाराम अपने उज्ज्वल चरित्र की अंतिम झलक दिखाकर इस भ्रम लोग से विदा हो गया । कदाचित इतनी देर तक उसके प्राण निर्मला ही की राह देख रहे थे । उसे निष्कलंक सिद्ध किए बिना वो देखो कैसे त्याग देता है? अब उनका उद्देश्य पूरा हो गया । मुझे जी को निर्मला के निर्दोष होने का विश्वास हो गया, पर कब जब बाहर से तीन निकल चुका था जब मुसाफिर में रकाब में पाव डाल लिया था । पुत्रशोक में मुंशी जी का जीवन भार स्वरूप हो गया उस दिन से फिर उनके होटों पर हसीना आई यह जीवन अब उन्हें वेयर के साथ जान पडता था । कचहरी जाती, मगर मुकदमों की पैरवी करने के लिए नहीं, केवल दिल बहलाने के लिए घंटे दो घंटे में वहाँ से निपटाकर चले आते हैं । खाने बैठे तो स्कोर मोमिना जाता । निर्मला अच्छी से अच्छी चीज पकाती, पर मुझे जी दो चार कोर्से अधिक नहीं खा सकते । ऐसा जान पडता है की कोर मोरसिंह निकल आता हैं । मनसा राम के कमरे की ओर जाते ही उनका हिंदी टू टू हो जाता था, जहां उनकी आशाओं का दीपक चलता रहता था । वहाँ अब अंधकार छाया हुआ है । उनके दो पुत्र अब भी थी लेकिन दूध देती हुई गाय मर गई तो बच्चियाँ का क्या भरोसा । जब फूलने फलने वाला वृक्ष गिर पडा । मैंने नन्ने पौधों से के आशा यू तो जवान बूढे सभी मरत है । लेकिन दुख इस बात का था कि उन्होंने स्वयं लडकी की जान ली । जिस काम बाद याद आ जाती है तो ऐसा मालूम होता था कि उनकी छाती फट जाएगी । मानव ही दिया बाहर निकल पडेगा । निर्मला को पति से सच्ची सहानुभूति थी । जहाँ तक हो सकता था वहाँ उनको प्रसन्न रखने का जिक्र रखती थी और भूलकर भी पिछली बातें जवान पढना लाती थी । मुझे भी उससे मनसाराम की कोई चर्चा करते शर्माते थे । उनकी कभी कभी ऐसी इच्छा होती है कि एक बार निर्मला से अपने मन के सारे भाव खोलकर कह दूँ । लेकिन लडकियाँ लोग लेती थी । इस पार्टी उन्हें सांत्वना भी ना मिलती थी जो अपनी व्यथा कह डालने से दूसरों को अपने गम में शरीक कर लेने से प्राप्त होती है । माओवाद बाहर निकलकर अंदर ही अंदर अपना विश्व लाता जाता था । तीन दिन देह खुलती जाती थी । इधर कुछ दिनों से मुझे जी और उन डॉक्टर साहब में जिन्होंने मनसाराम की दवा की थी, याराना हो गया था । बिचारे कभी कभी आकर मुझे जी को समझाया करते हैं । कभी कभी अब के हाथ हवा खिलाने के लिए खींच ले जाते हैं । उनकी भी दो चार बार निर्मला से मिलने आई थी । निर्मला भी कई बार उनके घर गयी थी । मगर वहाँ से जब लौटी तो कई दिन तक उदास रहती है । उस दंपत्ति का सुखमय जीवन देखकर उसे अपनी दशा पर दुख हुए बिना ना रहता था । डॉक्टर साहब को कुल दो सौ रुपये मिलते थे पर इतने में ही दोनों आनंद की जीवन व्यतीत कर देते थे । घर में केवल एक महरी थी गृहस्ती का बहुत सारा काम को अपने ही हाथों करना पडता था । कहने भी उसकी देह पर बहुत कम थे । पर उन दोनों में वहाँ प्रीव् था जो धन की ट्रेन के बराबर पर वहाँ नहीं करता । पुरुष को देखकर स्त्री का चेहरा ही लगता था । स्त्री को देख कर पुरूष निहाल हो जाता था । निर्मला कि घर में धन इससे कई अधिक था । आभूषणों से उनकी दिए फटी पडती थी । घर का कोई काम उसे अपने हाथ से न करना पडता था, पर निर्मला संपन्न होने पर भी अधिक दुखी थी और सुधार विपिन होने पर भी सुखी सुधर के पास कोई ऐसी वस्तु थी जो निर्मला के पास नहीं थी, जिसके सामने उसे अपना वैभव कुछ जान पडता था । यहाँ तक कि वहाँ सुधा के घर गहने पहनकर चाहते शर्म आती थी । एक दिन निर्मला डॉक्टर साहब की घर आई तो उसे बहुत उदास देखकर सुना ने पूछा बहन बहुत उदास हो वकील साहब की तबियत तो अच्छी है ना नहीं मिला क्या कहूँ? सुधा उनकी दशा दिन दिन खराब होती जाती है । कुछ कहते नहीं बनता । ना जाने ईश्वर को क्या मंजूर है? सुधार हमारे बाबू जी तो कहते हैं कि उन्हें कई जलवायु बदलने के लिए जाना जरूरी है, नहीं तो कोई बहन कर रोक खडा हो जाएगा । कई बार वकील साहब से कह भी चुके हैं पर वहाँ यही कह दिया करते हैं कि मैं तो बहुत अच्छी तरह हूँ । मुझे कोई शिकायत नहीं । आज तुम कहना निर्मला जब डॉक्टर साहब की नहीं सुना तो मेरी सुनेंगे । यह कहते कहते निर्मला की आंखे डबडबा गई और जो शंका इधर महीनों से उसके हिंदी को टिकल करती रहती थी, मुझ से निकल पडी । अब तक उससे कुछ शंका को छिपाया था, पर अब नहीं पा सकी । बोली बहन मुझे लक्षण कुछ अच्छे नहीं मालूम होते । तीखी भगवान क्या करते हैं? सुधा तुम आज उनसे खूब जोर देकर कहना कि कहीं जलवायु बदलने चाहिए । दो चार महीने बाहर रहने से बहुत सी बातें भूल जाएंगे । मैं समझती हूँ शायद मकान बदलने से भी उन का शोक कुछ कम हो जाएगा । तुम कहीं बाहर जा भी नहीं होगी । यहाँ कौन सा महीना है? निर्मला आठवाँ महीना बीत रहा है यह चिंता दो मुझे और भी मारे डालती है मैंने तो इसके लिए ईश्वर सिंह भी प्रार्थना नहीं थी । यहाँ फलांग मेरे सिर न जाने क्यों पडती है । मैं बडी अभागिनी हूँ पहन विवाह की एक महीने पहले पिताजी का देहांत हो गया । उनके मारते ही मेरे सिर शनीचर सवार हुए । जहाँ पहले विवाह की बातचीत पक्की हुई थी, उन लोगों ने आंखे फेमली बेचारी अम्मा को हारकर मेरा विवाह यहाँ करना पडा । अब छोटी बहन का विवाह होने वाला है देखी उसकी नाव किस घट जाती है । सुधार जहाँ पहले विवाह की बातचीत हुई थी उन लोगों ने इंकार क्यों कर क्या निर्मला यह तो वही जानें । पिता जी ना रहे तो सोने की गठरी कौन देता है? सुधर यह तो नीचता है कहा की रहने वाले थे निर्मला लखनऊ के नाम याद नहीं आबकारी के कोई बडे अवसर थे सुधारने गंभीर भाव से पूछा और उनका लडका क्या करता था? निर्मला कुछ नहीं कहीं पडता था पर बडा होनहार था । सुधारने से नीचा करके कहा उसने अपने पिता से कुछ नहीं कहा था । वहाँ तो जवान था, अपने बाप को दबाना सकता था । निर्मला अब ये मैं क्या जानूँ? बहन सोने की कंट्री किसी प्यारी नहीं होती । जो पंडित मेरे यहाँ से संदेश लेकर गया था, उसने तो कहा था कि लडका ही इंकार कर रहा है । लडकी की मां अलबत्ता देवीरूपा थी । उसमें पुत्र और पति दोनों को ही समझाया पर उसकी कुछ ना चली । सुधा मैं तो उस लडके को पार्टी तो खूब आडे हाथ लेती । निर्मला मेरे भाग्य में जो लिखा था, वहाँ हो चुका बिचारी । कृष्णा पर न जाने क्या बीतेगी । संध्या समय निर्मला ने जाने के बाद जब डॉक्टर साहब बाहर से आए तो सुबह ने कहा क्यों जी तो उस आदमी को क्या कहोगे जो एक जगह विवाद ठीक कर लेने बाद फिर लोग वर्ष किसी दूसरी जगह डॉक्टर सिंहानी सी की ओर कुतुल से देख कर कहा ऐसा नहीं करना चाहिए और क्या सुधा यहाँ क्यों नहीं कहते कि ये घोर नीचता है? पहले सिरे का कमीनापन है । सिन्हा हाँ, ये कहने में भी मुझे इंकार नहीं सुना । किसका अपराध बढा है वर्ष या वल्कि पिता का सिना की समझ में अभी तक नहीं आया कि सुधा के इस प्रश्नों का आशय किया है जिसमें ऐसे बोले जैसी स्थिति हो । अगर वहाँ पिता का गेम हो तो पिता का ही अपराध समझो । सुधार अधीन होने पर भी क्या जवान आदमी का अपना कोई कर्तव्य नहीं है? अगर उसे अपने लिए नए कोर्ट की जरूरत हो तो वहाँ पिता की विरोध करने पर भी उसे रो धोकर बनवा लेता है । क्या ऐसे महत्व के विषय में वह अपनी आवास पिता के कानों तक नहीं पहुंचा सकता? यहाँ कहो कि वहाँ और उसका पिता दोनों अपराधी हैं परन्तु वहाँ अधिक बूढा आदमी सोचता है मुझे तो सारा खर्च संभालना पडेगा । कन्या पक्ष से जितना एट सकूँ उतना ही अच्छा । मगर वर्ग का धर्म है कि यदि वहाँ स्वार्थ के हाथों बिल्कुल बिक नहीं गया है तो अपने आत्मबल का परिचय दें । अगर ऐसा नहीं करता हूँ तो मैं कहूँगी कि वहाँ लो भी हैं और कायर भी । दुर्भाग्य वर्ष ऐसा ही कहानी मेरा पति हैं और मेरी समझ में नहीं आता कि किन शब्दों में उसका तिरस्कार करूँ । सिंहानी हिचकी जाते हुए कहा तो वह दूसरी बात थी । लेन देन का कार्य नहीं था । बिलकुल दूसरी बात थी कन्या के पिता का देहांत हो गया था । ऐसी दशा में हम लोग क्या करते हैं? यहाँ भी सुनने में आया था की कन्या में कोई अहम है । बहुत बिलकुल दूसरी बात थी । मगर तुम से ये कथा किसने कहीं सुधर के हैं । दो की वहाँ कन्या खानी थी । याकूब बडी थी या नाइन के पेट की थी यहाँ भ्रष्ट थी । इतनी कसर क्यों छोड दी भला? सुनो तो उस कन्या में क्या ऐप था? सिन्हा मैं देखा तो था नहीं । सुनने में आया था कि उसमें कोई ऐप है । सुधार सबसे बडा आप यही था कि उसके पिता का स्वर्गवास हो गया था और वहाँ कोई लम्बी चौडी रकम ना दे सकती थी । इतना स्वीकार करते क्यों झेंपते हूँ मैं कुछ तुम्हारे कान तो काटना लूंगी । अगर दो चार पिक रे कहूँ तो इस कान से सुनकर उस कान से उडा देना । ज्यादा चीज चपड करूँ तो छडी से कम ले सकती हूँ और चार डंडे ही से ठीक रहती है । अगर उस कन्या में कोई ऐसा था तो मैं कहूंगी लक्ष्मी भी बेहद नहीं तुम्हारी खोटी थी बस और क्या? तो मैं तो मेरे पल्ले पडना था । सिन्हा तुमसे किसने कहा कि वहाँ ऐसी थी वैसी थी जैसे तुमने किसी से सुनकर मान लिया । सुधा मैंने सुन कर नहीं मान लिया । अपनी आंखों देखा, ज्यादा बखान क्या करूँ? मैंने ऐसी सुंदर स्त्री कभी नहीं देखी थी । सिंहानी व्यक्त होकर पूछा क्या हुआ यही कहीं सच बताऊँ उसे कहाँ देखा? क्या तुम्हारे घर आई थी? सुबह? हाँ मेरे घर में आई थी और एक बार नहीं कई बार आ चुकी है । मैं भी उसके यहाँ कई बार जा चुकी हूँ । वकील साहब की बीवी वही कमियाँ हैं जिससे आप ने ऐबों की कारण त्याग दिया । सिन्हा सच सुधा बिल्कुल सच । आज अगर उसे मालूम हो जाएँ की आप वहीं महापुरूष हैं तो शायद फिर इस घर में कदम ना रखें । ऐसी सुशीला, घर के कामों में ऐसी निपूर्ण और ऐसी परम सुन्दरी स्त्री इस शहर में दो ही चार होंगे तो मेरा बखान करते हो । मैं उसकी लांडी बनने के योग्य भी नहीं होगा । घर में ईश्वर का दिया हुआ सब कुछ है । मगर जब प्राणी ही मेल का नहीं तो और सब रहकर क्या करेगा । धन्य है उसकी तहरीर होगी । उस बूढे खूसट वकील के साथ जीवन के दिन काट रही है । मैंने तो कब का जहर खा लिया होता है । मगर मन की व्यथा कहने से ही थोडी प्रकट होती है । हस्ती है बोलती है गहने कपडे पहनती हैं पर रोया रोया जाया करता है । सिन्हा वकील साहब की खूब शिकायत करती होंगी । सुबह शिकायत क्यों करेंगे? क्या हवा उसके पति नहीं है संसार में अब उसके लिए जो कुछ है, बकील जहाँ वहाँ बुड्ढे हो या होगी पर है तो उसकी स्वानी कुलवंती स्त्रियां पति की निंदा नहीं करती । यहाँ कुछ टाओ का काम है । वहाँ उनकी दशा देखकर घूरती है । परमू से कुछ नहीं कहती । सिन्हा इन वकील साहब को क्या सूजी थी जो इस उम्र में बिहार करने चले? सुधार ऐसे आदमी न हो तो गरीब कुमारियों की नाव कौन पार लगाए हैं और तुम्हारे साथ ही बिना भारी गठित लिए बात नहीं करते तो फिर बेचारी या किसके घर जाएंगे? तुमने ये बडा भारी अन्याय किया है और तुम्हें इसका प्रायश्चित करना पडेगा । ईश्वर उसका सुहाग अमर करें । लेकिन वकील साहब को कहीं कुछ हो गया तो बेचारी का जीवन ही नष्ट हो जाएगा । आज तो वह बहुत रोती थी । तुम लोग से छूट बडे निर्दयी हो । मैं तो अपने सोहन का विवाह किसी गरीब लडकी से करूंगी । डॉक्टर साहब ने ये पिछला वाक्य नहीं सुना । वहाँ घोर चिंता में पड गए । उनके मन में यहाँ प्रश्न उठ उठ कर उन्हें जिकल करनी लगा । कहीं वकील साहब को कुछ हो गया तो आज उन्हें अपने स्वार्थ का बहन कर स्वरूप दिखाई दिया । वास्तव में यह उन्हीं का अपराधा । अगर उन्होंने पिता से जोर देकर कहा होता हूँ कि मैं और कहीं भी वाहन करूंगा तो क्या वहाँ उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह कर दी थी? सहसा सुधा ने कहा कहूँ तो कल निर्मला से तुम्हारी मुलाकात करा दू वहाँ भी जरा तुम्हारी सूरत देखने वहाँ कुछ बोलेगी तो नहीं पर कदाचित एक दृष्टि से वहाँ तुम्हारा इतना तिरस्कार कर देगी । सिटिंग कबीना भूल सक होगे बोलो कल मिला तो तुम्हारा बहुत संक्षिप्त परिचय करा दूंगी । सिन्हा ने कहा नहीं सुना तुम्हारे हाथ जोडता हूँ कहीं ऐसा गजब न करना नहीं तो सच कहता हूँ घर छोड कर भाग जाऊंगा । सुधर चुका काटा बोया है उसका फल खाते क्यों इतना डरते हो जिसकी गर्दन पर कतार चलाई है, जरा उसे तडफ टीवी तो देखो मेरे दादा जी ने पांच हजार देना अभी छोटे भाई की विवाह में पांच छह हजार और मिल जाएंगे । फिर तुम्हारे बराबर धनी संसार में कोई दूसरा ना होगा । ग्यारह हजार बहुत होते हैं वहाँ पे बाकि ग्यारह हजार उठा उठा कर रखने लगे तो महीनों लग जाए । अगर लडकी उडाने लगे तो पीढियों तक चले कहीं से बात हो रही है या नहीं । इस परिहार से डॉक्टर साहब इतना जीते हैं कि सिर्फ तक ना उठा सके । उन का सारा वाकचातुर्य गायब हो गया । नहीं सम्मू निकल आया मानो मार पड गई हूँ । इसी वक्त किसी ने डॉक्टर साहब को बाहर से पुकारा । बिचारे जान लेकर भागे थ्री कितनी परिहास कुशल होती है इसका आज परिचय मिल गया रात को डॉक्टर साहब शायद करते हुए सुबह से बोले निर्मला की तो कोई बहन है ना सुबह हाँ, आज उसकी चर्चा तो कर दी थी । इसकी चिंता अभी से सवार हो रही है । अपने ऊपर तो जो कुछ भी इतना था बीत चुका बहन की फिक्र में बडी हुई थी माँ के पास तो और भी कुछ नहीं रहा मजबूरन किसी ऐसे ही बूढे बाबा के गले वहाँ निमट दी जाएगी । सिन्हा निर्मला तो अपनी माँ की मदद कर सकती है । सुधारने तीक्ष्ण स्वर में कहा तुम भी कभी कभी बिलकुल बेसिरपैर की बातें करने लगते हो । निर्मला बहुत करेगी तो दो चार सौ रुपये दे देगी और क्या कर सकती हैं? वकील साहब का ये हाल हो रहा है । उसे अभी बाहर सी उम्र काटते हैं । फिर कौन जाने उनके घर का क्या हाल है? इधर छह महीने से बेचारी घर बैठे हैं । रुपये आकाश से थोडी ही बढते हैं । दस बीस हजार होंगे भी तो बैंक में होंगे । कुछ निर्मला के पास तो रखे ना होंगे । हमारा दो सौ रुपये महीने का खर्च है तो क्या इनका चार सौ रुपए महीने का भी न होगा? सुधा को तो नींद आ गई, पर डॉक्टर साहब बहुत देर तक करवट बदलते रहे । फिर कुछ सोच कर उठे और मेज पर बैठकर एक पत्र लिखने लगे । भाग दो दोनों बात एक ही साथ हुई । निर्मला नहीं कन्या को जन्म दिया । कृष्णा का विवाह निश्चित हुआ और मुझे तोताराम का मकान नीलाम हो गया । कन्या का जन्म तो साधारण बात थी । यद्यपि निर्मला की दृष्टि में यहाँ उसके जीवन की सबसे महान घटना थी । लेकिन शीर्ष दोनों घटनाएं असाधारण थी । कृष्णा का विवाह ऐसे संपन्न घराने में क्यों कई ठीक हुआ । उसकी माता के पास तो दहेज के नाम दो कौडी भी नहीं थी । और इधर बूढे सीना साहब जो अब पेंशन लेकर घर आ गए थे । बिरादरी महालो भी मशहूर थे । वहाँ अपने पुत्र का विभाग ऐसे दरिद्र घराने में करने को कैसे राजी हुए? किसी को सहसा विश्वास नहीं आता था । इससे भी बडी आश्चर्य के बाद मुझे जी के मकान का नीलाम होना था । लोग मुझे जी को अगर लखपति नहीं तो बडा आदमी अवश्य समझते थे । उनका मकान कैसे नीलाम हुआ? बात ये है थी कि मुझे जी ने एक महाजन से कुछ रुपये कर्ज लेकर एक गांव में रखने को रखा था । उन्हें आशा थी कि साल आज साल में यह रूपये पांच देंगे । फिर दस पांच साल में उस गांव पर कमसा कर लेंगे । वहाँ जमींदार असल और सूत के कुल रुपये अदा करने में असमर्थ हो जाएगा । इसी भरोसे पर मुझे जी ने यह मामला किया था । गांव बहुत बडा था । चार पांच सौ रुपये नफा होता था लेकिन मन की सोची मन ही में रह गई । मुझे भी दिल को बहुत समझाने पर भी कचहरी ना जा सके । पुत्रशोक ने उनमें कोई काम करने की शक्ति ही नहीं छोडी । कौन ऐसा है दी शून्य पिता है जो पुत्र की गर्दन पर तलवार चलाकर बातचीत को शांत कर ले । महाजन के पास जब साल भर तक सूचना पहुंचाने और ना उसके बार बार बुलाने पर मुझे भी उसके पास गए । यहाँ तक कि पिछली बार उन्होंने साफ साफ कहीं दिया की हम किसी के गुलाम नहीं है । साहू जी जो चाहे करें । तब साहू जी को गुस्सा आ गया । उसने नाल इश्क कर दी । मुझे जी पैरवी करने भी नहीं गए । एक आई डिग्री हो गई । यहाँ घर में रुपये कहाँ रखे थे । इतने ही दिनों में मुझे जी की साख भी उठ गई थी । वहाँ रुपये का कोई प्रबंध ना कर सके । आखिर मकान नीलाम पर चढ गया । निर्मला सौर में थी । यह खबर सुनी तो कलेजा संसा हो गया । जीवन में कोई सुखना होने पर भी धनाभाव की चिंताओं से मुक्त थी । धन मानव जीवन में अगर सर्व प्रधान वस्तु नहीं तो वहाँ उसके बहुत निकट की वस्तु अवश्य है । अब और अभावों के साथ बहुत चिंता भी उसके सिर सवार हुई । उसे ढाई द्वारा कहना भेजा । मेरे सब गहने बेचकर घर को बचा लीजिए । लेकिन मुझे जी ने यह प्रस्ताव किसी तरह स्वीकारना किया । उस दिन से मुझे जी और भी चिंताग्रस्त रहने लगे । जिस धन का सुख भोगने के लिए उन्होंने विवाह किया था । वहाँ अब अतीत की स्मृति मात्र था । वहाँ मारे गिलानी के अब निर्मला को अपना मूड अपना दिखा सकते । उन्हें अब उस अन्याय का अनुमान हो रहा था जो उन्होंने निर्मला के साथ किया था और कन्या के जन्म ने तो रही सही कसर भी पूरी कर दी । सर्वनाशी कर डाला दिन सौर से निकलकर निर्मला नवजात शिशु को गोद लिए पति के पास गई । वहाँ इस अभाव में भी इतनी प्रसन्न थी, मानो उसे कोई चिंता ही नहीं है । पालिका को ही दे से लगाकर वहाँ अपनी सारी चिंताएं भूल गई थी । शिशु के विकसित और हर्ष प्रदीप नेत्र को देखकर उसका हिंदी प्रफुल्लित हो रहा था । मातृत्व के इस उद्दार में उसके सारे कलेश विलीन हो गए थे । वहाँ शिशु को पति की गोद में देकर निहाल हो जाना चाहती थी । लेकिन मुझे जी कन्या को देखकर सहम उठे । गोद लेने के लिए उनका हिंदूबहुल सा नहीं, पर उन्होंने एक पर उसे करूण नेत्रों से देखा और फिर सिर झुका लिया । शिशु की सूरत मनसाराम से बिल्कुल मिलती थी । निर्मला ने उसके मन का भाव और ही समझा । उसने शत गुरी स्नेहा से लडकी को हिंदी से लगा लिया । मानो उनसे कह रही है, अगर तुम इसके बोर्ड से दब जाते हो तो आज से मैं इस पर तुम्हारा साया भी नहीं पढी होंगी । चीस रतन को मैंने इतनी तपस्या के बाद पाया है । उसका निरादर करते हुए तुम्हारा है दे फट नहीं था । वहाँ उसी शन शिशु को गोद से चिपकाते हुए अपने कमरे में चली आई और देर तक रोती रही । उसमें पति का इस उदासीनता को समझने की ज्यादा बीचेस रानी की नहीं तो शायद वहाँ उन्हें इतना कठोर न समझती । उसके सिर पर उत्तरदायित्व का इतना बडा भार कहा था, जो उसके पति पडा पडा । वहाँ सोचने की चेष्टा करती तो क्या इतना भी उसकी समझ लेना था मुंशी जी को एक ही शहर में अपनी भूल मालूम हो गयी । माता कहे दिया प्रेम में इतना अनुरूप रहता है कि भविष्य की चिंताएं और बाधाएं उसी जरा भी बहन बीत नहीं करती । उसे अपने अंत करण में एक अलोकिक शक्ति का अनुभव होता है जो बाधाओं को उनके सामने परास्त कर देती है । मुझे इसी दौडे हुए घर में आएगा और शिशु को गोद में लेकर बोले मुझे याद आती है मनसा भी ऐसा ही था । बिल्कुल ऐसा ही । निर्मला दादी से भी तो यही कहती है । मुझे बिल्कुल वहीं बडी बडी आंखें और लाल लाल होठ है । ईश्वर ने मुझे मेरा मनसाराम इस रूप में दे दिया । वहीं माता है वही मूवी । वहीं हाथ पांव ईश्वर तुम्हारी लीला अपार है । सहसा रुक्मणी भी यहाँ गई । मुझे जी को देखते ही बोली देखो बाबू मनसाराम है कि नहीं वहीं आया है । कोई लाख रहे मैं सामान्य साफ मनसाराम है । साल भर के लगभग ही भी तो गया मुझे बहन एक के एक अंग तो मिलता है । बस भगवान ने मुझे मेरा मनसाराम दे दिया । क्यों? तो मंजर ही है छोडकर जाने का नाम नहीं लेना । नहीं फिर खींच लाऊंगा कैसे निष्ठुर होकर भागे थे । आंखे पकडे लाया की नहीं बस कह दिया अब मुझे छोड के जाने का नाम ना लेना । देखते हैं कैसे टुकुर टुकुर ताक रही है । उसी क्षण मुंशीजी ने फिर से अभिलाषाओं का भवन बनाना शुरू कर दिया । मोहन ने उन्हें फिर संसार की और खींचा । मानव जीवन ऍम अंगूर है पर तेरी कल्पनाएं कितनी दीर्घायु । वहीं तोताराम संसार से विलुप्त हो रहे थे जो रात दिन मृत्यु का आवाहन किया करते थे । तीन की का सहारा बाकर तक पर पहुंचने के लिए पूरी शक्ति से हाथ पांव मार रहे हैं । मगर तिनके का सहारा पाकर कोई तटपर पहुंचा है हूँ ।
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