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निर्मला अध्याय चार उस दिन से निर्मला का रंग ढंग बदलने लगा । उसने अपने को कर्तव्य पर मिटा देने का निश्चय कर दिया । अब तक निराशा के संताप में उसने कर्तव्य पर ध्यान ही नहीं दिया था । उसके हिंदी में विपल्लव की वाला सीन बहती रहती थी, जिसकी असहायक वेदना ने उसे सर्बिया हिंसा कर रखा था । अब उस वेदना का वेट शांत होने लगा । उसी ज्ञात हुआ कि मेरे लिए जीवन का कोई आनंद नहीं । उसका स्वप्ने देख गए । क्यों इस जीवन को नष्ट करूँ? संसार में सब के सब प्राणी सुख सेंस ही पर तो नहीं होते । मैं भी ुनिया भागों में से हूँ । मुझे भी विधाता ने दुख की कंट्री ढोने के लिए चुना है । वहाँ पूछ सिर से उतर नहीं सकता । उसे फेंकना भी चाहूँ तो नहीं फेंक सकती । उस कठिन बाहर से चाहे आंखों में अंधेरा छा जाएंगे, चाहे गर्दन टूट रे लगे, चाहे पैर उठाना दस्तूर हो जाए, लेकिन वह गठीली धोनी ही पडेगी । उम्र भर का कैदी कहाँ तक रोयेगा । रोई भी तो कौन देखता है । किसी उस पर दया आती है । रोने से काम में हर्ज होने के कारण उसे और यातनाएं ही तो सहनी पडती है । दूसरे दिन वकील साहब कचहरी से आए तो देखा निर्मला की साहसी मूर्ति अपने कमरे की द्वार पर खडी है । वहाँ निकलने छवि देखकर उनकी आंखें तृप्त हो गयी । आज बहुत दिनों के बाद उन्हें कमल खिला हुआ दिखलाई दिया । कमरे में एक बडा सा आइना दीवार में लटका हुआ था । उस पर एक पर्दा पडा रहता था । आज उसका पर्दा उठा हुआ था । वकील साहब ने कमरे में कदम रखा तो शीशे पडने कहाँ पडी अपनी सूरत साफ साफ दिखाई थी । उनके हे देर में चोट लग गयी । दिन भर के परिश्रम से मुख्य कान्ति मलीन हो गई थी । भारतीय भारतीय की पोष्टिक पद्धार्थ खाने पर भी कालू की झूरिया साफ दिखाई दे रही थी तो उन कसी होने पर भी किसी मोजूद घोडे की भर्ती बाहर निकली हुई थी । आईने के ही सामने चिंता दूसरी ओर ताक की हुई निर्मला भी खडी हुई थी । दोनों सूरतों में कितना अंतर था । एक रतन जटिल विशाल भवन दूसरा टूटा फूटा खानदान वहाँ उस आईने की और न देख सके अपनी ही ना व्यवस्था । उनके लिए असाही थी । वहाँ आईने के सामने से हट गए । उन्हें अपनी सूरत से घना होने लगी । फिर इस रूपवती कामिनी का उसे रहना करना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी । निर्मला की ओर ताकनी का भी उन्हें साहस ना हुआ । उसकी यह अनुपम छवि उनके ही धक्का शूल बन गई । निर्मला ने कहा अच्छा इतनी तीर कहां लगाई? दिन भर रहा । देखते देखते आंखें फूट जाती है । तोता राम ने खिडकी की ओर ताकतें हुई जवाब दिया । मुकदमों के मारे दम मारने की छुट्टी नहीं मिलती । अभी एक मुकदमा और था, लेकिन मैं सिर दर्द का बहाना करके भाग खडा हुआ । नहीं मिला तो क्यों इतने मुकदमे लेते हूँ । काम कुछ नहीं करना चाहिए । जितना आराम से हो सके । प्राण देकर थोडी ही काम किया जाता है । मत लिया करो बहुत मुकदमे । मुझे रुपयों का लालच नहीं तो तुम आराम से रहूँ की तो रुपये बहुत मिलेंगे । तोताराम वहीं आती हुई लक्ष्मी भी तो नहीं ठुकराई जाती । निर्मला लक्ष्मी अगर रख और मास की भेंट लेकर आती है तो उसका न आना ही अच्छा । मैं धन की भूख ही नहीं हूँ । इस वक्त मनसाराम भी स्कूल से लौटा । टूट में चलने के कारण मुख पर पसीने की बूंदें आई हुई थी । गोरे मुखडे पर खून की लाली दौड रही थी । आंखों से ज्योति से निकलती मालूम होती थी । द्वार पर खडा होकर बोला अम्माजी लाइये । कुछ खाने का निकली चला खेलने जाना है । निर्मला जाकर गिलास से पानी लाये और एक तश्तरी में कुछ मेरे रखकर मंसाराम को दिए । मनसाराम जब खाकर चलने लगा तो निर्मला ने पूछा कब तक हो गई मान जा रहा हूँ, कह नहीं सकता हूँ । गोरों के साथ हॉकी का मैच है । बारह यहाँ से बहुत दूर है । निर्मला ही जल्द आना । खाना ठंडा हो जाएगा तो का होगी । मुझे भूख नहीं । मनसाराम ने निर्मला की ओर फॅसने है । भाव से देख कर कहा मुझे देर हो जाए तो समझ लीजिए गा वहीं खा रहा हूँ । मेरे लिए बैठने की जरूरत नहीं । वहाँ चला गया तो निर्मला बोली पहले तो घर में आते ही नहीं थी । मुझे बोलते शर्माते थे । किसी चीज की जरूरत होती तो बाहर से ही मंगा भेजते हैं । जब से मैंने बुलाकर कहा तब से आने लगे हैं । तोताराम ने कुछ चिढकर कहा, यह तुम्हारे पास खाने पीने की चीजें मांगने क्यों आता है? दीदी से क्यों नहीं कहता? निर्मला ने ये बात प्रशंसा पाने की लोग से कही थी । वही दिखाना चाहती थी कि मैं तुम्हारे लडकों को कितना चाहती हूँ । यह कोई बनावटी प्रेम ना था । उसी लडकों से सचमुच नहीं था । उसके चरित्र में अभी तक बाल भाव भी प्रधान था उसमें वहीं उत्सुकता, वही चंचलता । वहीं विनोदप्रियता विधमान थी और बालकों के साथ उसकी बाल वृत्तियां प्रस्फुटित होती थी । पत्नी सुलभ एशिया अभी तक उसके मन में उदय नहीं हुई थी । लेकिन पति के प्रसन्न होने के बाद ना वो सिकोडने का आशय न समझकर बोली मैं क्या जानूँ, उनसे क्यों नहीं मांगते हैं? मेरे पास आते हैं तो दुत्कार नहीं देते हैं । अगर ऐसा करूँ तो यही होगा कि लडकों को देखकर जलती है । मुझे जीने इसका कुछ जवाब नहीं दिया । लेकिन आज उन्होंने मुश्किलों से बात नहीं सीधे मनसाराम के पास गए और उसका इम्तेहान लेने लगे । यहाँ जीवन में पहला ये अवसर था की उन्होंने मनसाराम किसी लडके को शिक्षा नदी के विषय में इतनी दिलचस्पी दिखाई हूँ । उन्हें अपने काम से सिर उठाने की फुर्सत ही ना मिलती थी । उन्हें इन विषयों को पढे हुए हैं । चालीस वर्ष के लगभग हो गए थे । तब से उनकी और आग अपना उठाई थी वहाँ कानूनी पुष्टि को और पत्रों के सिवा और कुछ पढते ही नहीं थी । इसका समय ही ना मिलता हूँ । पर आज उन्हीं विषयों में मनसा राम की परीक्षा लेने लगे । मनसाराम जहीन था और इसके साथ ही मेहनती भी था । खेल में भी टीम का कैप्टन होने पर भी वहाँ क्लास में प्रथम रहता था । जिस पार्ट को एक बार देख लेता पत्थर की लकी हो जाती थी । मुझे जी को उतावली में ऐसे मार्मिक ऑपरेशन तो मुझे नहीं जिनके उत्तर देने में चतुर लडके को भी कुछ सोचना पडता और ऊपरी प्रश्नों को मनसाराम ने छुट्टियों में उडा दिए । कोई सिपाही अपने शत्रु परवार खाली जाते देखकर जैसे झल्ला, झल्लाकर और भी तेजी से पार करता है । उसी भर्ती मनसाराम के जवाबों को सुन सुन कर वकील साहब भी चलाते थे । वह कोई ऐसा प्रश्न करना चाहते थे जिसका जवाब मनसाराम से न बन पडे । देखना चाहते थे कि इसका कमजोर पहलू कहा है । यह देखकर अपनी संतोष ना हो सकता था कि बहुत क्या करता है । वहाँ ये देखना चाहते थे कि वह क्या नहीं कर सकता । कोई अब बेस्ट परीक्षक मनसाराम ही कमजोरियों को आसानी से दिखा देता । पर वकील साहब अभी आधी शताब्दी की भोली हुई शिक्षा के आधार पर कितने सफल कैसे होते हैं । अंत में उन्हें अपना गुस्सा उतारने के लिए कोई बहाना ना मिला तो बोले नए देखता हूँ तुम सारे दिन इधर उधर मटर गस्ती क्या करते हो? मैं तुम्हारे चरित्र को तुम्हारी बुद्धि से बढकर समझता हूँ और तुम्हारा यू आवारा घूमना मुझे कभी गवारा नहीं हो सकता । मनसाराम ने निर्भिकता से कहा में शाम को एक घंटा खेलने के लिए जाने की सेवा दिनभर कहीं नहीं जाता । अब अम्मा बुआ जी से पूछ ले, मुझे खुद इस तरह घूमना पसंद नहीं । हाँ खेलने के लिए हेड मास्टर साहब से आग्रह करके बुलाते हैं तो मजबूरी जाना पडता है । अगर आपको मेरा खेलना जाना पसंद नहीं है तो कल सेना जाऊंगा । मुझे ही नहीं देखा की बातें दूसरी ही रुक पर जा रही हैं । तो तीव्र सफर में बोले इस बात का इत्मिनान क्यों कर रहे हो कि खेलने के सिवा कही नहीं घूमने जाती । मैं बराबर शिकायतें सुनता हूँ । मनसाराम ने उत्तेजित होकर कहा कि महाशिया ने आपसे शिकायत की है जरा मैं भी तो सुनु वकील कोई भी हो इससे तुम से कोई मतलब नहीं है । तो में इतना विश्वास होना चाहिए कि मैं झूठा आक्षेप नहीं करता । मंजारा अगर मेरे सामने कोई आकर कह दे कि मैंने इन्हें कहीं घूमते देखा है तो मोना दिखाओ वकील किसी को ऐसी क्या गरज पडी है कि तुम्हारी मूड पर तुम्हारी शिकायत करे और तुम से बैर मूल्य तुम अपने दो चार साथियों को लेकर उसके घर की खपरेल फोडते । फिर मुझे इस किस्म की शिकायत एक आदमी ने नहीं कई आदमियों ने की है और कोई वजह नहीं है कि मैं अपने दोस्तों की बात पर विश्वास ना करूँ । मैं चाहता हूँ कि तुम स्कूल ही में रहा करो । मनसाराम ने वो गिराकर कहा मुझे वहाँ रहने में कोई आपत्ति नहीं है । जब से कहीं ही चला जाऊँ वकील तुमने मोटू लडका लिया क्या वहाँ रहना अच्छा नहीं लगता, ऐसा मालूम होता है । मानव वहाँ जाने के बहस से तुम्हारी नानी मारी जा रही है । अखिल बात किया है वहाँ तो क्या तकलीफ होगी? मनसाराम छात्रा लिया में रहने के लिए उत्सुक नहीं था लेकिन जब मुझे जी ने यह बात कह दी और इसका कारण पूछा तो वह अपनी जीप मिटाने के लिए प्रसन्नचित होकर बोला मुख्य लडका हूँ मेरे लिए जैसे बोर्डिंग हाउस तकलीफ भी कोई नहीं और हो भी तो उसे सह सकता हूँ । मैं कल से चला जाऊंगा । हाँ, अगर जगह खाली हुई तो मजबूरी है । मुझे इसी वक्त ली थी । समझ गए कि लोहंडा कोई ऐसा बहाना ढूंढ रहा है जिसमें मुझे वहाँ जाना भी ना पडे और कोई इल्जाम भी सिर्फ पढना आए । बोली सब लडकों के लिए जगह है, तुम्हारे लिए ही जगह ना होगी । मन सारा कितने ही लडकों को जगह नहीं मिली और वे बाहर किराये के मकानों में पडे हुए हैं । अभी बोर्डिंग हाउस में एक लडके का नाम कट गया था तो पचास अर्जियां उस जगह के लिए आई थी । वकील साहब ने ज्यादा तर्क वितर्क करना उचित नहीं समझा । मंसाराम को कल तैयार रहने की आज्ञा देकर अपनी बग्गी तैयार कराई और शहर करने चले गए । इधर कुछ दिनों से शाम को प्रायर सैर करने चले जाया करते थे । किसी अनुभवी प्राणी ने बताया था की दीर्घ जीवन के लिए इससे बढकर कोई मंत्री नहीं है । उनकी जाने के बाद मनसाराम आकर रुक्मणी से बोला बुआजी बाबू जी मुझे कल से स्कूल में रहने को कहा है । रुकमनी ने विस्मित होकर पूछा क्यों मन सारा नहीं क्यों जाना? कहने लगे कि तुम यहाँ आवारों की तरह इधर उधर फिर आप करते हो । रुक्मणी तूने कहा नहीं कि मैं कहीं नहीं जाता । मंजारा कहाँ? क्यों नहीं । मगर जब माने भी जो नहीं तुम्हारी नहीं । अम्मा जी की कृपा होगी और क्या मंजारा नहीं । बुआ जी मुझे उन पर संदेह नहीं है । वहाँ बेचारी भूल से कभी कुछ नहीं कहती । कोई चीज मांगने जाता हूँ तो तुरंत उठाकर दे देती है । रुक नहीं तो ये रियल चरित्र क्या जाने? यह उन्हीं की लगाई हुई आग है । एक मैं जाकर पूछती हूँ रुक्मणी झल्लाई हुई निर्मला के पास जा पहुंची उसे आडे हाथों लेने का । कार्टून में का सीट ने का तानों से छेडने का जो लाने का सूचक सर । वह हाथ से न जाने देती थी । निर्मला उनका आदर करती थी । उनसे दबती थी । उनकी बातों का जवाब लगना देती थी । वहाँ जाती थी कि ये सिखावन की बातें कहे । जहाँ में बोलू वहाँ सुधारें, सब कामों की देख रेख कर दी रहे । पर रुक्मिनी उससे तनी ही रहती थी । निर्मला चारपाई से उठकर बोले आइए दीदी बैठिये । रुकमनी ने खडे खडे कहा मैं पूछती हूँ क्या तुम सब को घर से निकालकर अकेले ही रहना चाहती हूँ? निर्मला ने कातर भाव से कहा क्या हुआ दे दीजिए । मैंने किसी से कुछ नहीं कहा । रुक्मणी मंसाराम को घर से निकले देती हूँ । तीस पर कहती हो, मैं तो किसी से कुछ नहीं कहा । क्या तुम से इतना भी देखा नहीं जाता? निर्मला दीदी थी तुम्हारे चरणों को छूकर कहती हूँ, मुझे कुछ नहीं मालूम हूँ । मेरी आंखें फूट जाएगा । अगर उसके विषय में वो टक खोला होगा । रुक्मणी क्यों व्यर्थ कसमें खाती हूँ अब तक? तोताराम कभी लडके से नहीं बोलते थे एक हफ्ते के लिए मनसाराम ननिहाल चला गया था तो इतने घबरा है कि खुद जाकर लिवाल आए । अब इसी मंसाराम को घर से निकालकर स्कूल में रखे देते हैं । अगर लडके का बाल भी बांका हुआ तो तुम जान होगी । वो कभी बाहर नहीं रहा उसे ना खाने की सूद रहती है न पहनने की । जहाँ बैठना वही हो जाता है । कहने को तो जवान हो गया पर सुभाव बालको साहेब स्कूल में उसकी मरन हो जाएगी । वहाँ किसी एक रहे हैं कि इसमें खाया है या नहीं कहाँ कपडे उतारे कहाँ सो रहा है जब घर में कोई पूछने वाला नहीं तो बाहर कौन पूछेगा मैंने तुम्हें चेता दिया आगे तुम जानो तुम्हारा काम जाने ये कह कल रूपडी वहाँ से चली । वकील साहब सैर करके लौटी । निर्मला ने तुरंत ये विषय छेड दिया । मनसाराम से वहाँ आजकल थोडी अंग्रेजी पडती थी । उसकी चले जाने पर फिर उसके पडने का हर्जाना होगा । दूसरा कौन बढाएगा? वकील साहब को अब तक ये बात नामालूम थी । निर्मला ने सोचा था कि जब कुछ अभ्यास हो जाएगा तो वकील साहब को एक दिन अंग्रेजी में बातें करके चकित कर दूंगी । कुछ थोडा सा ज्ञान तो उसे अपने भाईयों से ही हो गया था । अब नियमित रूप से पढ रही थी । वकील साहब की छाती पर साहब सा लौट गया हो या बदलकर बोले कब से बढा रहा है तुम्हें मुझे तुम ने कभी नहीं कहा । निर्मल नानी उनका ये रूप केवल एक बार देखा था जब उन्होंने सी आराम को मारते मारते बेदम कर दिया था । वही रूप और भी विकराल बनकर आज उसे फिर दिखाई दिया । सहमती हुई बोली उनके पढने में तो इससे कोई हाइस नहीं होता हूँ । मैं उसी वक्त उनसे पडती हूँ । जब उन्हें फुर्सत रहती है । पूछ लेती हूँ कि तुम्हारा हाइट होता हो तो बहुत जब खेलने जाने लगते हैं तो दस मिनट के लिए रोक लेती हूँ । मैं तो खुद चाहती हूँ की उनका नुकसान ना हूँ । बात कुछ थी मगर वकील साहब हटा से होकर चारपाई पर गिर पडे और माथे पर हाथ रखकर चिंता में मगर हो गए । उन्होंने जितना समझा था बात उससे कहीं अधिक पड गई थी । उन्हें अपनी ऊपर क्रोध आया । मैंने पहले ही क्यों ना इस लौंडे को बाहर रखने का प्रबंध किया । आजकल जो ये महारानी इतनी खुश दिखाई देती है इसका रहस्य अब समझ में आया पहले कभी कवर इतना सजा सजाया ना रहता बनाओ चुनाव बिना करती थी पर अब देखता हूँ गाया पलट सी हो गयी है । जी में तो आया की इसी वक्त चलकर मंसाराम को निकाल दे लेकिन स्पोर्ट वृद्धि ने समझाया की इस अवसर पर क्रोध की जरूरत नहीं । कहीं इससे भाग लिया तो गजब ही हो जाएगा । हाँ जरा इसके मनोभावों को टटोलना चाहिए । बोले तो मैं जानता हूँ कि तुम्हें दो चार मिनट बढाने से उसका हाइट नहीं होता । लेकिन हमारा लडका है अपना काम न करने का । उसे एक बहाना तो मिल जाता है । कल अगर फेल हो गया तो साफ कह देगा । मैं तो दिन भर पढाता रहता था । मैं तुम्हारे लिए कोई मिस नौकर रख दूंगा । कुछ ज्यादा खर्चना होगा तो तुमने मुझे पहले कहा ही नहीं ये तो भला क्या पढाता होगा? दो चार शब्द बताकर भाग जाता होगा । इस तरह तो मैं कुछ भी नहीं आएगा । निर्मला ने तुरंत इस आक्षेप का खंडन किया । नहीं ये बात तो नहीं वहाँ मुझे दिल लगाकर पढाते हैं और उनकी शैली भी कुछ ऐसी है कि पढने में मन लगता है । आप एक दिन चले उनको समझाना देखिए । मैं तो समझती हूँ कि मिस इतने ध्यान से ना बढाएगी । मुंशीजी अपनी प्रश्न कुशलता परमोच्च । ऊपर ताव देते हुए बोले दिन में एक ही बार पढाता है या कई बार? निर्मला अब भी इन प्रश्नों का आशियाना समझे । बोली पहले तो शाम को बढा देते थे । अब कई दिनों से एक बार आकर लिखना भी देख लेते हैं । वहाँ तो कहते हैं कि मैं अपने क्लास में सबसे अच्छा हूँ । अभी परीक्षा में इन्ही को प्रथम स्थान मिला था । फिर आप कैसे समझते हैं कि उनका पडने में जी नहीं लगता । मैं इसलिए और भी कहती हूँ कि बीवी समझेंगे इसी नहीं आग लगाई है मुफ्त में मुझे ताने सुनने पडेंगे । अभी जरा ही देर हुई धमका कर गई हैं । मुझे जीने दिल में कहा खूब समझता हूँ तुम कल की छोकरी होकर मुझे चलाने चलिए डी डी का सहारा लेकर अपना मतलब पूरा करना चाहती हैं । बोले मैं नहीं समझता बोर्डिंग का नाम सुनकर क्यों लौंडे की नानी पडती है और लडकी खुश होते हैं कि अब अपने दोस्तों में रहेंगे । ये उल्टा हो रहा है । अभी कुछ दिन पहले तक की दिल लगाकर पडता था । ये उसी मेहनत का नतीजा है कि अपने क्लास में सबसे अच्छा है । लेकिन इधर कुछ दिनों में इसी सैर सपाटे का चस्का पड चला है । अगर अभी से रोकथाम ना कि कहीं तो पीछे करते धरते ना बन पडेगा तुम्हारे लिए में मिस रक्त होगा । दूसरे दिन मुंशीजी प्रातकाल कपडे लगाते पहन कर बाहर निकले । दीवानखाने में कई मोर्केल बैठे हुए थे । इनमें एक राजा साहब थे जिनसे मुझे जी को कई हजार सालाना महंता ना मिलता था मगर मुझे जी उन्हें वही बैठे छोड दस मिनट में आने का वादा करके बग्गी पर बैठकर स्कूल के हेडमास्टर के यहाँ जा पहुंचे । हेडमास्टर साहब बडे सज्जन पुरुष थे । वकील साहब का बहुत आदर सत्कार क्या पर उनके यहाँ एक लडकी की भी जगह खाली ना थी । सभी कमरे भरे हुई थी । इंस्पेक्टर साहब की कडी ताकि थी कि मुफ्फसिल के लडकों को जगह देकर तब शहर के लडकों को दिया जाए । इसीलिए यदि कोई जगह खाली भी हुई तो मंसाराम को जगह न मिल सकेगी । क्योंकि कितने ही बाहरी लडकों की प्रार्थना पत्र रखी हुई थी । मुझे जी वकील थी । रात तीन ऐसे प्राणियों से साबित का रहता था जो लोग वर्ष असंभव का भी संभव असाध्य को भी साध्य बना सकते हैं । समझे शायद कुछ दे दिलाकर काम निकल जाए । दफ्तर क्लर्क से ढंग की कुछ बातचीत करनी चाहिए । पर उसने हस्कर कहा मुझे जी इसका चेहरी नहीं स्कूल है । हेड मास्टर साहब के कानों में इसकी भनक भी पड गई तो जाने से बाहर हो जायेंगे और मंसाराम को खडे खडे निकाल देंगे । संभव है अफसरों से शिकायत करते बिचारी । मुंशीजी अपना समूह लेकर रह गए । दस बजते बजते झील आए हुए घर लौटे । मनसाराम उसी वक्त घर से स्कूल जाने को निकला । मुझे जीने कठोर नेत्र से उसे देखा मानो वहाँ उनका शत्रु हो और घर में चले गए । इसके बाद दस बारह दिनों तक वकील साहब का यही नियम रहा कि कभी सुबह कभी शाम किसी न किसी स्कूल के हेडमास्टर से मिलते और मंसाराम को बोर्डिंग हाउस में दाखिल करने की चेष्टा करते हैं । पर किसी स्कूल में क्या कहना है? सभी जगहों से कोरा जवाब मिल गया । अब दो ही उपाय थे या तो मंसाराम को अलग किराये के मकान में रख दिया जाए । किसी दूसरी स्कूल में बढती करा दिया जाएगा । ये दोनों बातें आसान थी । वो फसल के स्कूलों में जगह अक्सर खाली रहती थी । लेकिन अब मुझे जी का शंकित विधेयक कुछ हो गया था । उस दिन से उन्होंने मंसाराम को कभी घर में जाते ना देखा । यहाँ तक कि अब खेलने बिना जाता था । स्कूल जाने के पहले और आने के बाद बराबर अपने कमरे में बैठा रहता । गर्मी के दिन थे । खुले हुए मैदान में भी देर से पसीने की धारें निकलती थी । लेकिन मनसाराम अपने कमरे से बाहर नहीं निकल रहा । उसका आज पर स्वाभिमान आवारा बनके आक्षेप से मुक्त होने के लिए विकल हो रहा था । वहाँ अपने आचरण से इस कलंक को मिटा देना चाहता था । एक दिन मुझे से बैठे भोजन कर रहे थे कि मंजर आप भी नहाकर खाने आया । मुंशी ने इधर उसे महीनों से नंगे बदलना देखा था । आज उस पर निगाह पडी तो होश उड गए । हड्डियों का ढांचा सामने खडा था । मुख् पर अब भी ब्रह्मचार्य का तेज था पर देहद धुलकर काटा हो गई थी । पूछा आजकल तुम्हारी तबियत अच्छी नहीं है क्या कितने दुबले क्यूँ? मनसाराम ने धोती छोडकर कहा तब भी तो बिल्कुल अच्छी है मुझे जी फिर इतने दुर्बल क्यों? मंच आराम दुर्बल तो नहीं हूँ मैं इससे ज्यादा मोटा कब था मुझे जी वह आधी देवी नहीं रही और कहते हो में दुर्बल नहीं हूँ । क्यों दीदी ये ऐसा ही था । रुक्मणी आंगन में खडी तुलसी को जल चढा रही थी बोली दुबला की होगा अब तो बहुत अच्छी तरह लालन पालन हो रहा है मैं गवारे थी लडकों को खिलाना पिलाना नहीं जानती थी खोमचा खिला खिलाकर इनकी आदत बिगाड देती थी अब तक पढी लिखी गृहस्ती के कामों में चतुर औरत पान की तरफ से रही है । नाम दुबला हो उसका दुश्मन मुझे जी डी डी तो बडी अन्याय करती हूँ । तुमसे किसने कहा कि लडकों को बिगाड रही हो जो काम दूसरों के कि हो सके पुत्र खुद करना चाहिए यहाँ नहीं कि घर से कोई नाता नरक हो छोटी खुद लडकी है वहाँ लडकों की देख रेख क्या करेंगे तुम्हारा काम है । रुक्मणी जब तक अपना समझती थी कर दी थी जब तुमने गैस समझ लिया तो मुझे क्या पडी है कि मैं तुम्हारे गले से चिपके पूछूँ कि दिन से दूर नहीं दिया जाके एक कमरे में देखा नाश्ते के लिए जो मिठाई भेजी गई थी वह पडी सड रही है । मालकिन समझती है मैंने तो खाने का सामान रख दिया । कोई न खाए तो क्या मैं मुंबई डाल दो तो भैया किसी तरह लडके पलते होंगे जिन्होंने कभी लाड प्यार का सुख नहीं देखा । तुम्हारे लडके बराबर पान की तरफ फेरे जाते रहे हैं । अब अनाथों की तरह रहकर सुखी नहीं रह सकते हैं । मैं तो बात साफ कहती हूँ । बुरा मान करी, कोई क्या कर लेगा । उस पर सुनती हूँ कि लडकों को स्कूल में रखने का प्रबंध कर रहे हैं । बिचारे को घर में आने तक की मनाई है । मेरे पास आते भी रहता है और फिर मेरे पास रखा ही क्या रहता है, जो जाकर खिलाऊंगी । इतने में मनसाराम दो फुल्के खाकर उठ खडा हुआ । मुंशी ने पूछा क्या दो ही फुल्के तो लिए थे अभी बैठे एक मिनट से ज्यादा नहीं हुआ । तुमने खाया क्या? दो ही फुल्की तो लिए थे । मनसाराम ने सकुचाते हुए कहा । दाल और सरकारी भी तो थी । ज्यादा खा जाता हूँ तो गला जलने लगता है । खट्टी डकारें आने लगती है । मुझे जी भोजन करके उठे तो बहुत चिंतित थे । अगर यही दुबला होता गया तो उसे कोई बहन कर रोक पकड लेगा । उन्हें रुक्मणी पर इस समय बहुत रो रहा रहा था । उन्हें यही जलन है कि मैं घर की मालकिन नहीं, ये नहीं समझती कि मुझे घर की मालकी बनने का क्या अधिकार है । जिसे रूपये का हिस्सा अब तक नहीं आता वहाँ घर की स्वामिनी कैसे हो सकती है । बनी तो थी साल भर तक माल की एक पाई की बचत होती थी । इस आमदनी में रूपकला दो ढाई सौ रुपये बचा लेती थी । इनकी राज में वही आमदनी खर्च को भी पूरा ना पडती थी । कोई बात नहीं लाड प्यार ने इन लडकों को चौपट कर दिया । इतने बडे बडे लडको को इस की क्या जरूरत की जब कोई खिलाये तो खाये इन्हें तो खुद अपनी फिक्र करनी चाहिए । मुझे जीत दिनभर उसी उधेडबुन में पडे रहेंगे । दो चार मित्रों से भी जिक्र किया । लोगों ने कहा उसके खेलकूद में बाधा ना डालिए । अभी से उसे कैद ना की थी । खुली हवा में चरित्र भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है । जितना बंद कमरे में कुसंगत से जरूर बचाइए । मगर यह नहीं कि उसे घर से निकलने ही ना दीजिए । युवावस्था में एक कांड वास चरित्र के लिए बहुत हानिकारक है । मुंशी को जब अपनी गलती मालूम हुई, घर लौटकर मनसाराम के पास गए, वहाँ भी स्कूल से आया था और बिना कपडे उतारे एक किताब सामने खुल कर सामने खिडकी की ओर ताक रहा था । उसकी दृष्टि एक भिखारन पर लगी हुई थी जो आपने बालक को गोद में लिए भिक्षा मांग रही थी । माता की गोद में बैठा ऐसा प्रसन्न था । मानव किसी राजसिंहासन पर बैठा हूँ । मनसाराम उस बालक को देखकर रो पडा । यहाँ बालक क्या मुझसे अधिक सुखी नहीं । इस एंट विश्व में ऐसी कौन सी वस्तु है जिससे वहाँ इस कूद के बदले पाकर प्रसन्न हो ईश्वर भी ऐसी वस्तु की शक्ति नहीं कर सकते? ईश्वर ऐसे बालकों को जन्म ही क्यों देते हो? जिनके भाग्य में मात्र वियोग का दुख भोगना बडा आज मुझसा अभागा संसार में और कौन हैं? किसी मेरे खाने पीने की मरने जीने की सुध हैं अगर मैं आज मर भी चाहूँ तो किसके दिल को चोट लगेगी पिता को अब मुझे रुलाने में मजा आता है । वहाँ मेरी सूरत भी नहीं देखना चाहते हैं । मुझे घर से निकाल देने की तैयारियाँ हो रही हैं वहाँ माता तो तुम्हारा लाडला बेटा आज आवारा कहा जा रहा है । वहीं पिताजी, जिनके हाथ में तुमने हम तीनों भाइयों के हाथ पकडाए थे, आज मुझे आवारा और बदमाश कह रहे हैं नई उस योग्य भी नहीं की इस घर में रह सकते ये सोचते सोचते मनसाराम अपार वेदना से फूट फूटकर रोने लगा । उसी समय तोताराम कमरे में आकर खडे हो गए । मनसाराम ने चटपटा पूछ डाले और सिर झुकाकर खडा हो गया । मुझे जी ने शायद पहली बार उसके कमरे में कदम रखा था । मंच आराम का दिल धडधड करने लगा कि देखिए आज के आप बताती है । मुझे जी ने उसे रोते देखा तो एक्शन के लिए उनका वात्सल्य घोर निद्रा से चौक पडा और घबराकर बोले क्यों रोती की हो बेटा? किसी ने कुछ कहा । मनसाराम ने बडी मुश्किल से उम्र के हुए आशु को रोककर कहा जी नहीं रोता तो नहीं हूँ मुझे जी तुम्हारी अम्मा ने तो कुछ नहीं कहा । मनसाराम जी नहीं, वो तो मुझे बोलती ही नहीं । मुझे जी क्या करू? बेटा शादी तो इसीलिए की थी कि बच्चों को माँ मिल जाएगी । लेकिन वहाँ आशा पूरी नहीं हुई तो क्या बिल्कुल नहीं बोलती? मनसाराम जी नहीं, इधर महीनों से नहीं बोली । मुझे जी विचित्र स्वभाव की औरत है । मालूम ही नहीं होता कि क्या चाहती है । मैं जानता उसका ऐसा मिजाज होगा तो कभी शादी न करता हूँ । रूस एक ना एक बात लेकर उठ खडी होती है । उसी ने मुझसे कहा था कि ये दिनभर ना जाने कहाँ गायब रहता है ना उसकी दिल की बात क्या जानता था । समझा तो कुसंगत में पढकर शायद दिनभर घूमा करते हूँ । कौन ऐसा पिता है जिसे अपने प्यारे पुत्र को आवारा फिफ्टी देखकर जान जानता हूँ । इसलिए मैंने तुम्हें बॉर्डिंग हाउस में रखने का निश्चय किया था । बस और कोई बात नहीं थी । बेटा में तुम्हारा खेलना को न बन नहीं करना चाहता था । तुम्हारी यह दशा देखकर मेरे दिल के टुकडे हो जाते हैं । कल मुझे मालूम हुआ मैं भ्रम था तो शौक से खेलो । सुबह शाम मैदान में निकल जाया करो । ताजी हवा से तो में लाभ होगा । जिस चीज की जरूरत हो मुझसे कहूँ उनसे कहने की जरूरत नहीं समझ लो कि वह घर में है ही नहीं । तुम्हारी माता छोड कर चली गई तो मैं तो हूँ । बालक का सरल निष्कपट दे दिया । पृथ्वी प्रेम से पुलकि ठोठा मालूम हुआ कि साक्षात भगवान खडे हैं ने राष्ट्रीय और शोर से विफल होकर उसने मन में पिता को निष्ठुर और न जाने क्या क्या समझ रखा । विमाता से उसे कोई गिनाना था । अब उसी ज्ञात हुआ कि मैंने अपने देवतुल्य पिता के साथ कितना अन्याय किया है । फिर भक्ति की एक तरह से हिंदी में उठे और वहाँ पिता के चरणों पर सिर्फ चक्कर शोरे लगा । मुझे जी करुना से बेहद हो गए जिस पुत्र कुशन भर आंखों से दूर देखकर उनका हृद्य जगह होता था । जिसकी शीट, बुद्धि और चरित्र का अपने पराए सभी बखान करते थे, उसी के प्रति उसका ही दिये इतना कठोर क्यों हो गया? अपने ही प्रिय पुत्र को शत्र समझने लगे हैं । उसको निर्वासन देने को तैयार हो गए । निर्मला पुत्र और पिता के बीच में दीवार बनकर खडी थी । निर्मला को अपनी और खींचने के लिए पीछे हटना पडता था और पिता तथा पुत्र में अंतर बढता जाता था । पलट अच्छी दशा हो गई है कि अपने अभिन्न पुत्र उन्हें इतना झंड करना पड रहा है । आज बहुत सोचने के बाद एक एक ऐसी युक्ति सूची है जिससे आशा हो रही है कि वह निर्मला को बीस से निकाल कर अपने दूसरे बाजू को अपनी तरफ खींच लेंगे । उन्होंने उस युक्ति का आरंभिक कर दिया है लेकिन इसमें अभिष्ट सिद्ध होगा या नहीं इसे कौन जानता है । जिस दिन से तोताराम ने निर्मला के बहुत मिनट समाजवाद करने पर भी मंसाराम को बोर्डिंग हाउस में भेजने का निश्चित किया था उसी दिन से उसने मनसाराम से पढना छोड दिया । यहाँ तक कि बोलती बिना थी उसी स्वामी की इस अविश्वासपूर्ण तत्पर्ता का कुछ कुछ आभास हो गया था तो वो इतना शक्ति में जांच ईश्वर ही घर की लाज रखी । इनके मन में ऐसी ऐसी दुर्भावनाएं भरी हुई हैं मुझे यह इतनी गई गुजरी समझते हैं यह बातें सोच सोच कर वह कई दिन रोती रही । तब उसने सूचना शुरू किया इन्हें ऐसा संदेह हो रहा है । मुझे ऐसी कौन सी बात है जो इनकी आंखों में खटक आती हैं । बहुत सोचने पर भी उसे अपने में कोई ऐसी बात नजर ना आई तो क्या उसका मनसाराम से पढना उससे हसना बोलना ही इन का संदेह का कारण है? तो फिर मैं पढना छोड होंगे । बूंद कर भी मनसाराम से ना बोलोगी उसकी सूरत ना देख होंगी । लेकिन ये है तपस्या । उसे असाध्य जान पड गई थी । मनसाराम से हसने बोलने में उसकी विलासी कल्पना उत्तेजित भी होती थी और तरफ भी उसे बातें करते हुए उसे उपाय सुख का अनुभव होता था जिसे वह शब्दों से प्रकट ना कर सकती थी । वहाँ सेना कि उसके मन में छाया बिना थी वो स्वप्ने में भी मनसाराम से कलुषित प्रेम कहने की बात नहीं सोच सकती थी । प्रत्येक प्राणी को अपने हमजोलियों के साथ फसने बोलने की जो एक नैसर्गिक प्रश्न होती है, उसी की छपती का ये एक अज्ञात साधन था । अब अतिरिक्त कृष्णा निर्मला के हिंदी में दीपक कि भारतीय चलने लगे । रह रहकर उसका मन किसी अज्ञात वेदना से विफल हो जाता । खोई हुई किसी अज्ञात वस्तु की खोज में इधर उधर घूमती भेज थी, जहाँ बैठती वहाँ बैठे ही रह जाती है । किसी काम में जीना लगता हाँ जब मुझे जी आ जाते हैं, वहाँ अपनी सारी तृष्णाओं को निराशा में डुबाकर उनसे मुस्कुराकर इधर उधर की बातें करने लगती हैं । कई जब मुझे कि भोजन करके कचेहरी चले गए तो रुकमनी ने निर्मला को खूब तानों से छेडा जानती तो थी कि हाँ बच्चों का पालन पोषण करना पडेगा तो क्यों घरवालों से नहीं कह दिया कि वहाँ मेरा विवाह ना करूँ । वहाँ जाती जहाँ पुरुषों के सिवा और कोई ना होता वहीं यह बनाओ चुनाव और छवि देख कर खुश होता है अपने भाग्य को सराहता यहाँ बूढा आदमी, तुम्हारे रंग रूप हम वहाँ पर क्या लगता होगा इसमें इन्हीं बालको की सेवा करने के लिए तुम से विवाह किया है, भोगविलास के लिए नहीं । वहाँ बडी देर घाव पर नमक छिडका आती रही । पर निर्मला ने छूट सकता कि वहाँ अपनी सफाई तो पेश करना चाहती थी पर न कर सकती थी । अगर कहीं की मैं वही कर रही हूँ जो मेरे स्वामी की इच्छा है तो घर का भंडाफोड लगता है । अगर वहाँ अपनी भूल स्वीकार करके उसका सुधार करती है तो यह है कि उसका न जाने के परिणाम वहीँ यू बडी स्पष्ट वादिनी थी । सत्य कहने में उसे संकोच या भरना होता था लेकिन इस नाजुक मौके पर उसे चुप्पी साधनी पडी । इसके सिवा दूसरा उपाय ना था । वह देखती थी । मनसाराम बहुत विरक्त और उदास रहता है । यहाँ भी देखती थी कि वहाँ दिन दिन दुर्बल होता जाता है । लेकिन उसकी वाणी और कर्म दोनों ही पर मोहर लगी हुई थी । क्यों के घर चोरी हो जाने से उसकी जो दशा होती है, वहीं दशा इस समय निर्मला की हो रही थी । भाग दो जब कोई बाद हमारी आशा के विरुद्ध होती हैं तभी दुःख होता है । मनसा राम को निर्मला से कभी इस बात की आशा थी कि वे उसकी शिकायत करेंगे । इसीलिए उसी घोर वेदना हो रही थी । आपका क्यों मेरी शिकायत करती हैं? क्या चाहती हैं यही ना कि वहाँ मेरे पति की कमाई खाता है । इसके पढाने लिखाने में रुपये खर्च होते हैं, कपडा पहनता है । उनकी यही इच्छा होगी कि यहाँ घर में ना रहे । मैंने ना रहने से उनके रूपये बच्चे जाएंगे । वहाँ मुझसे बहुत प्रसन्नचित रहती हैं । कभी महीने उनके मूल से कटु शब्द नहीं सुनी । क्या ये सब कौशल है? हो सकता है चिडिया को जाल में फंसाने के पहले शिकारी धानी भी खेलता है । मैं नहीं जानता था कि दाने के नीचे जाल है । यहाँ मार्च इसलिए है, केवल मेरे निर्वासित की भूमिका है । अच्छा मेरे यहाँ रहना क्यों बुरा लगता है जो उन का पति हैं? क्या मेरे पिता नहीं है? क्या पिता पुत्र का संबंध स्त्री पुरुष के संबंध से कुछ काम करना है? अगर मुझे उनके संपूर्ण आधिपत्य से एशिया नहीं होती, वहाँ जो चाहे करें । मैं वो नहीं खोल सकता । तो मुझे एक अमूल भर भूमि भी देना नहीं चाहती । अब पक्के महल में रहकर क्यों मुझे वृक्ष की छाया में बैठा नहीं देख सकती । हम वहाँ समझती होंगी की यहाँ बडा होकर मेरे पति की संपत्ति का स्वामी हो जाएगा । इसीलिए अभी से निकाल देना अच्छा है । उनको कैसे विश्वास दिला हूँ कि मेरी और से यह शंकर ना करें । उन्हें क्यों कर बताऊँ कि मनसाराम विश्व खाकर प्रांत दे देगा । इसके पहले की उनका अहित करें । उसे चाहे कितनी कठिनाइयां सहनी पडे वहाँ उनके ही देकर शूल ना बनेगा । यूसुफ पिताजी ने मुझे चैनल दिया है और अब भी मुझ पर उनका सेहत कम नहीं है । लेकिन क्या मैं इतना भी नहीं जानता हूँ कि जिस दिन पिताजी ने उनसे विवाह किया उसी दिन उन्होंने हमें अपने ही देश से बाहर निकाल दिया । अब हम अनाथों की भर्ती यहाँ पडे रह सकते हैं । इस घर पर हमारा कोई अधिकार नहीं है । कदाचित् पूर्व संस्कारों के कारण जहाँ अन्य अनाथों से हमारी दशा कुछ अच्छी है, पर है अनार थी काम उसी दिन अनाथ हुए जिस दिन अम्माजी पर लोग सिधारी जो कुछ कसर रह गई थी, वहाँ इस विवाह पूरी कर दी । मैं तो खुद पहले इनसे विशेष संबंध न रखता था । अगर उन्हीं दिनों पिताजी से मिली शिकायत की होती तो शायद मुझे इतना दुखना होता । मैं तो उस आघात के लिए तैयार बैठा था । संसार में क्या में मजदूरी भी नहीं कर सकता । लेकिन बुरे वक्त में इन्होंने चोट की । हिंसक पशुओं भी आदमी को गाफिल पाकर ही चोट करते हैं । इसीलिए मेरी आवभगत होती थी खाना खाने के लिए उठने में जरा भी देर हो जाती थी तो बुलावे पर भुलावे आते थे । जलपान के लिए प्राधन हलवा बनाया जाता था । बार बार पूछा जाता था । रुपयों की जरूरत नहीं है इसीलिए वह सौ रुपये की खडी मंगाई थी । मगर क्या इन्हें दूसरी शिकायत सूची जो मुझे आवारा का, आखिर उन्होंने मेरी क्या आवारगी देगी? यहाँ कह सकती थी कि इसका मन पढने लिखने में नहीं लगता । एक ना एक चीज के लिए नीति रुपये मांगता रहता है । यही एक बात तो नहीं क्यों सोची? शायद इसलिए कि यही सबसे कठोर आघात है जो मुझ पर कर सकती हैं । पहले ही बार इन्होंने मुझ पर अगिनि बान चला दिया जिससे कहीं शरण ने नहीं इसीलिए ना कि वहाँ पिता की नजरों से गिर जाए । मुझे बोर्डिंग हाउस में रखने का तो एक बहाना था । उद्देश्य यह था कि इसे दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया जाएगा । दो चार महीनों के बाद खर्च वर्स्ट देना बंद कर दिया जाए । फिर चाहे मरे हैं जी अगर में जानता कि यह प्रेरणा इनकी और से हुई हैं तो कहीं जगह ना रहने पर भी जगह निकाल लेता । नौकरों की कोठरियों में तो जगह मिल जाती । बरामदे में पडे रहने के लिए बहुत जगह मिल जाती । अब सवेरे है । जब स्नेहा नहीं रहा तो केवल पेट भरने के लिए यहाँ पडे रहना बेहद आई है । ये मेरा घर नहीं इस घर में पैदा हुआ हूँ, नहीं खेला हूँ । पर ये अब मेरा नहीं । पिताजी भी मेरे पिता नहीं, मैं उनका पुत्र हो । पर वहाँ मेरे पिता नहीं है । संसार के सारे ना देश नहीं लेकिन आते हैं । जहाँ नहीं नहीं वहाँ कुछ नहीं खाएँ । अम्माजी तो कहाँ हो? यह सोचकर मनसाराम रोने लगा । जियो जियो मात्र स्नेहा की पूर्व स्मृतियां जागृत होती थी । उसकी आंसू उम्र के आते थे । बहुत कई बार अम्मा अम्मा प्रकार उठा मानवः खडी सुन रही हैं मातृहीन ता के दुःख का । आज उसे पहली बार अनुभव हुआ । वहाँ आत्माभिमान था, साहसी था । पर अब तक सुख की गोद में लालन पालन होने के कारण वहाँ इस समय अपने आप को निराधार समझ रहा था । रात के दस बच गए थे मुझे ये आज कहीं दावत खाने गए हुए थे । दो बार महरी मंसाराम को भोजन करने के लिए बुलाने आ चुकी थी । मनसाराम पिछली बार उसी झुँझलाकर कह दिया था । मुझे भूख नहीं है । कुछ नहीं खाऊंगा बार बार आकर सिर पर सवार हो जाती है । इसलिए जब निर्मला ने उसे फिर उसी काम के लिए भेजना चाहा तो वहाँ आ गई । बोली बहुत ही वो मेरे बुलाने से न देंगे । निर्मला आएंगे । क्यों नहीं जाकर कहते खाना ठंडा हुआ जाता है । दो चार कोर खाले मेहरी मैं सब कह के हार गई नहीं आती । निर्मला तो नहीं ये कहा था कि वहां बैठी हुई है । मेहरी नहीं । बहुत जी यू तो मैंने नहीं कहा झूठ क्यों बोला? निर्मला अच्छा तो जाकर यह कह देना । बहुत बैठे तुमारी राह देख रही हैं तो ना खाओगे तो वहाँ रसोई उठाकर सो रहेंगी । मेरी होंगी सुन अब की और चली जा ना यहाँ पे तो गोद में उठा लाना होंगी ना? भूसी कोर्दी गई पर एक ही शहर में आकर बोले अरे बहुत ही वो तो रो रहे हैं । किसी ने कुछ कहा है क्या? निर्मला इस तरह चौक कर उठी और दो तीन पक आगे चली । मानो किसी माता ने अपने बेटे के कोई में गिर पडने की खबर पाई हो । फिर वो ठिठक गई और भूमि से बोली हो रहे हैं तो उन्हें पूछा नहीं क्यों रो रही हैं? भूमि नहीं पहुँची तो मैंने नहीं पूछा क्यों क्यों बोलूँ वहाँ हो रहे हैं? इस निस्तब्ध रात्रि में अकेले बैठे हुए हो रहे हैं । माता की याद आई होगी । कैसे जाकर उन्हें समझाऊँ हैं? कैसे समझाऊं यहाँ तो ठीक के नाक करती है । ईश्वर तुम साक्षी हो । अगर मैंने उन्हें भूल से भी कुछ कहा हूँ तो वह मेरे गए आए तो मैं क्या करूँ? कहाँ दिल में समझते होंगे की किसी ने पिताजी से मेरी शिकायत की होगी । कैसे? विश्वास दिला हूँ कि मैंने कभी तुम्हारे विरुद्ध एक क्षमताएं मुझसे नहीं निकाला । अगर मैं ऐसे देवकुमार के से चरित्र रखने वाले युवक का बुरा जीतू तो मुझ से बढकर राक्षसी संसार में न होगी । निर्मला देखती थी कि मनसाराम का स्वास्थ्य दिन दिन बिगडता जाता है । वह दिन दिन दुर्बल होता जाता है । उसके मुख्य निर्मल कांति तीन दिन मलीन होती जाती है । उसका साहस, बदन संकुचित होता जाता है । इसका कारण भी उसे छिपाना था, पर वह इस विषय में अपने स्वामी से कुछ नहीं कह सकती थी । यह सब देख देख कर उसका ही देव विधेयक होता रहता था, पर इसकी जबान ना खुल सकती थी । वहाँ कभी कभी मन में झुंझलाहट थी कि मनसाराम क्यों जरा सी बात पर इतना शोध करता है? क्या इनके अवारा कहने से वहाँ हमारा हो गया? मेरी और बात है । एक जरा सशक्त मेरा सर्वनाश कर सकता है, पर उसे ऐसी बातों की इतनी क्या परवाह उसकी जी में प्रबल इच्छा हुई कि चल कर उन्हें चुप करा हूँ और लाकर खाना खिला दो । बिचारी रात भर रूके पडे रहेंगे भाई । मैं इस उपद्रव की जड हूँ । मेरे आने की पहले इस घर में शांति का राज्य था । पिता बालकों पर चान देता था । बालक पिता को प्यार करते थे । मेरे आते ही सारी बाधाएं आखिरी हुई । खाण्ड क्या होगा? भगवान ही जाने । भगवान मुझे मौत भी नहीं देते हैं । बिचारा अकेले भूखा पडा है । उस वक्त भी मुझे छोटा करके उठ गया था और उसका आहर ये क्या है? कितना खाता है । उतना तो साल दो साल के बच्चे खा जाते हैं । निर्मला चली पति की इच्छा के विरुद्ध चली सुनाते हुए उसका पुत्र होता था । उसी को मनाने जाते उसका हिंदी कम रहा था । उसने पहले रुक्मणी की कमरे की और देखा । भोजन करके बे खबर हो रही थी । भीड बाहर कमरे की ओर गई । वहाँ सन्नाटा था । मुंशी जी अभिनायक थे । ये सब देखभाल कर वहाँ मनसाराम के कमरे के सामने जा पहुंची । कमरा खुला हुआ था । मनसाराम एक पुस्तक सामने रखी । बीच पर से झुकाए बैठा हुआ था । मानव शोक और चिंता की सजीव मोड देती हूँ । निर्मला ने पुकारना चाहा पर उसके कंट्री से आवाज जा निकली सहसा मनसाराम ने सिर उठाकर द्वार की और देखा । निर्मला को देखकर अंधेरे में पहचान नहीं सका । चौकर बोला कौन निर्मला काटते हुए सर? मैं कहा मैं तो वो भोजन करने क्यों नहीं चल रहे हो? कितनी रात गयी? मनसाराम नेमो फेरकर कहा मुझे भूख नहीं । निर्मला यह तो मैं तीन बार महंगी से सुन चुकी हूँ । मान सारा तो चौथी बार मेरे मुझे सुन लीजिए । निर्मला शाम को भी तो कुछ नहीं खाया था । वो क्यों नहीं लगी? मनसाराम ने व्यंग की हसी हस्कर कहा बहुत भूख लगेगी तो आएगा कहाँ से? यह कहते कहते मनसाराम ने कमरे का द्वार बंद करना चाहिए । लेकिन निर्मला किवाडों को हटाकर कमरे में चली आई और मनसाराम का हाथ पकड सजल नेत्र से विनय मधुर स्वर में बोली मेरे कहने से चलकर थोडा सा खालो तुम ना खाओगे तो मैं भी जाकर सोर होंगे । दो ही गोरखाना खा लेना । क्या मुझे रात भर को मारना चाहती हूँ । मंशाराम सोच में पड गया । अभी भोजन नहीं किया । मेरे इंतजार में बैठे नहीं । यह दुनिया बाद जिलिया और विनय की देवी है । एशिया और मंगल की मायावी नी मोडती उसे अपनी माता का स्मरण हुआ । आया जफर रूठ जाता था तो वह भी इसी तरह मनाने आया करती थी । और जब तक वरना जाता था, वहाँ से ना आउट थी । वहाँ इस विनय को अस्वीकार न कर सका । बोला, मेरे लिए आपको इतना कष्ट हुआ, इसका मुझे खेद है । मैं जानता हूँ कि आप मेरे इंतजार में भूख ही बैठी हैं तो तभी खा आया होता । निर्मला नी तिरस्कार भाव से कहा, ये तुम कैसे समझ सकते थे कि तुम होगी और मैं खाकर सो रही होंगी । क्या विमाता का नाता होने से ही मैं ऐसी स्वार्थ नहीं हो जाऊंगी? सहसा मैदानी कमरे में मुझे जी के खास ने की आवाज आई । ऐसा मालूम हुआ कि वहाँ मनसाराम के कमरे की और आ रहे हैं । निर्मला के चेहरे का रंग उड गया । वहाँ तुरंत कमरे से निकल गई और भीतर जाने का मौका न पाकर कठोर स्वर में बोली मैं लांडी नहीं हूँ की थी । रात तक किसी के लिए रसोई के द्वार पर बैठी रहूँ । जिसे न खाना हो वो पहले कह दिया करें । मुझे जीने निर्मला को वहाँ खडे देखा । यहाँ अनर्थ यहाँ क्या करने आ गई? बोले यहाँ क्या कर रही हूँ? निर्मला ने कर्कश स्वर में कहा क्या कर रही हूँ, अपने भाग्य को रो रही हूँ । बस सारी बुराइयों की जड मैं ही हूँ, कोई इधर उठा है कोई उधर मुंह फुलाए खडा है । किस किस को मनाओ और कहाँ तक मनाओ? मुंशी से कुछ चकित होकर बोले बात किया है निर्मला भोजन करने नहीं जाते हैं और क्या बात है । दस दफे मेहरी को भेजा आखिर आप दौडाई इन्हें तो इतना कह देना आसान है मुझे भूख नहीं यहाँ तो घर भर की लांडी हूँ । सारी दुनिया मूख्य कालिख पोतने को तैयार है । किसी को भूख ना हो पर कहने वालों को ये कहने से कौन रूकेगा की पिशाचिनी किसी को खाना नहीं देती । मुझे किसी ने मंच आराम से कहा खाना क्यों नहीं खा लेते? जी जानती हूँ क्या वक्त हैं? मनसा राम स्तंभित सा खडा था । उसके सामने एक ऐसा रहस्य हो रहा था जिसका मार मैं कुछ भी ना समझ सकता था । जिन मित्रों में एक्शन पहले विनय के आंसू भरे हुए थे, उनमें अकस्मात एशिया की ज्वाला कहाँ से आ गई? जिन अधरों से एक्शन पहले सुधा वृष्टि हो रही थी, उनमें से विश्व प्रवाह क्यों होने लगा? उसी अर्थ चेतरा की दशा में बोला मुझे भूख नहीं है, मुझे जीने गुड कर कहा क्यों भूख नहीं है । भूख नहीं थी तो शाम को क्यों नहीं पहला दिया? तुम्हारी भूख के इंतजार में कौन सारी रात बैठा रहेगा तो मैं पहले तो ये आदत अनाथी । रूठना कब से सीख लिया जाकर खालो मनसा जी नहीं मुझे जरा भी भूख नहीं । तोता राम ने डांट पीसकर कहा । अच्छी बात है । जब भूख लगे तब खाना हूँ । ये कहते हुए वहाँ अंदर चले गए । निर्मला भी उनके पीछे ही चली गई । मुझे जीतू लेट चले गए । उसे जाकर रसोई उठाती और कुल लाकर पान खा मुस्कुराती हुई यहाँ पहुंची । मुझे जी ने पूछा खाना खा लिया ना निर्मला क्या करती किसी के लिए अंजल छोड दूंगी मुझे जी किसी न जाने क्या हो गया है । कुछ समझ में नहीं आता । दिन दिन घूमता चला जाता है । दिनभर उसी कमरे में पडा रहता है । निर्मला कुछ ना बोले । वहाँ चिंता के अपार सागर में डुबकियाँ खा रही थी । मनसाराम ने मेरे भाव परिवर्तन को देखकर दिल में क्या क्या समझा होगा? क्या उनके मन में ये ऑपरेशन उठा होगा की पिताजी को देखते ही इसकी त्योरियां क्यों बदल गई? इसका कारण भी क्या उसे समझ में आ गया होगा? बिचारा खाने आ रहा था तब तक के महाशय ना जाने कहाँ से फट पडे इस रहस्य को से कैसे समझाओ, समझाना संभव भी हैं । मैं किस विपति में फस गई । सवेरे वहाँ उठकर घर के काम धंधे में लगी । सहसा नौ बजे भंगी ने आकर कहा मनसा बाबू तो आपने कागज पत्तर सकता पर लाद रहे हैं होंगे । मैंने पूछा तो बोले अब स्कूल में ही रहूंगा । मनसाराम प्रातःकाल उठकर अपने स्कूल के हेडमास्टर साहब के पास गया था और आपने रहने का प्रबंध कराया था । हेड मास्टर साहब ने पहले तो कहा यहाँ जगह नहीं है तो उसे पहले के कितने ही लडकों के प्रार्थना पत्र पडे हुए हैं । लेकिन जब मनसाराम ने कहा मुझे जगह ना मिलेगी तो कदाचित या पढना ना हो सके और में इम्तेहान में शरीक ना हो सकता हूँ तो हेड मास्टर साहब को हार माननी पडी । मनसाराम की प्रथम श्रेणी में पास होने की आशा थी । अध्यापक को विश्वास था कि वहाँ कुछ शाला की खीर थी को उज्वल करेगा । हेड मास्टर साहब ऐसे लडकों को कैसे छोड सकते थे । उन्होंने अपने दफ्तर का कमरा खाली कर दिया । इसलिए मनसाराम वहाँ से आते हैं । अपना सामान पर लादने लगे । मुझे जी ने कहा अभी ऐसी क्या जल्दी है? दो चार दिन में चले जाना मैं चाहता हूँ तुम्हारे लिए कोई अच्छा सा रसोइया ठीक कर दो । मनसाराम वहाँ का रसोइयां बहुत अच्छा भोजन पकाता है । मुझे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना ऐसा ना हो कि पडने के पीछे स्वास्थ्य खो बैठे । मन सारा वहाँ नौ बजे के बाद कोई पडने नहीं पाता और सबको नियम के साथ खेलना पडता है । मुझे जी बिस्तर क्यों छोड देते हूँ होगे किस पर मनसाराम कम्बल लिये जाता हूँ । बिस्तर जरूरत नहीं मुझे जी कहा जब तक तुम्हारा सामान रख रहा है जाकर कुछ खालो याद भी तो कुछ नहीं खाया था । मनसाराम वही खा लूंगा । रसोइये से भोजन बनाने को कहाँ आया हूँ यहाँ खाने लगूंगा तो तेरह होगी घर में जी आराम और सी आराम में भाई के साथ जाने की जिद कर रहे थे । निर्मला उन दोनों को बहला रही थी । बेटा वहाँ छोटे नहीं रहते, सब काम अपने ही हाथ से करना पडता है । एक का एक रुकमनी ने आकर कहा तुम्हारा वजह कहा दिया है महाराष्ट्र लडके ने रात भी कुछ नहीं खाया । इस वक्त भी बिना खाये पीए चला जा रहा है और तुम लडकों के लिए बातें कर रही हूँ । उसको जानती नहीं हूँ । ये समझ लो कि वह स्कूल नहीं जा रहा है । बनवास ले रहा है, लौटकर फिर आएगा । यह उन लडकों में नहीं है जो खेल में मार भूल जाते हैं । बाद उसके दिल पर पत्थर की लकीर हो जाती है । निर्मला ने कातर स्वर में कहा, क्या करूँ डीडीजी वहाँ किसी कि सुनते ही नहीं । आप जरा जाकर बुला लें । आपके बुलाने से आ जाएंगे । रुक्मणी आखिर हुआ क्या? जिस पर भागा जाता है । घर से उसका जी कभी उजाडना होता था । उसे तो अपने घर के सिवा और कहीं अच्छा ही नहीं लगता था । तुम ने उसे कुछ कहा होगा या उसकी कुछ शिकायत की होगी? क्यों अपने लिए काटे बोल रही हूँ । रानी घर को मिट्टी में मिलाकर चैन से ना बैठने पाओगी । निर्मला ने रोकर कहा मैंने उसने कुछ कहा हो तो जबान कर जाए । हाँ, सौतेली माँ होने के कारण बदनाम तो हुई । आपके हाथ छोडती हूँ, जरा जाकर उन्हें बुला लाइए । रुक्मणी तीव्र स्वर में कहा तो क्यों नहीं बुलाना थी क्या छोटी हो जाओगी? अपना होता तो इसी बेटी रहती है । निर्मला की दशा उस पंखहीन पक्षी की तरह हो रही थी जो सबको अपनी और आते देखकर छोडना चाहता है पर पूरी नहीं सकता हूँ । कुछ चलता है और फिर पडता है । पाक फडफडाकर रह जाता है उसका ही दिया । अंदर ही अंदर तडप रहा था पर बाहर ना जा सकती थी । इतने में दोनों लडके आकर बोले, भैयाजी चले गए । निर्मला मूर्ति वक्त खडी रही । मानव संज्ञाहीन हो गई हूँ । चले गए घर में आए तक नहीं । मुझसे मिले तक नहीं चले गए । मुझे इतनी रहना मैं उनकी कोई ना सही । उनकी भुआ तो थी । उनसे मिलने आना चाहिए था । मैं यहाँ भी ना अंदर कैसे कदम रखते हैं । मैं देख ली थी ना, इसलिए चले गए ।
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