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हूँ । निर्मला अध्याय तीन निर्मला का विवाह हो गया । ससुराल आ गई । वकील साहब का नाम था मुंशी तोताराम सावले रंग की मोटे ताजे आदमी थी । उम्र तो अभी चालीस से अधिक थी, पर वकालत के कठिन परिश्रम ने सिर के बाल पका दिए थे व्यायाम करने का उन्हें अवकाश ना मिलता था । यहाँ तक कि कभी भी घूमने बिना जाते । इसीलिए तो निकल आई थी । देर के स्कूल होते हुए भी आए दिन कोई न कोई शिकायत रहती थी । मंदिर, गृह और बवासी से तो उनका चिरस्थाई संबंध तीस बहुत खूब फूककर । कदम रखते थे उन के तीन लडके बयान मंजारा सोलह वर्ष का था । मंजिला जी, आराम बारह और सीआरएम सात वर्ष का था । तीनों अंग्रेजी पढते थे । घर में वकील साहब की विधवा बहन के सीमा और कोई औरत थी । वहीं घर की मालकिन थी । उनका नाम था रुक गए और अवस्था पचास के ऊपर की थी । ससुराल में कोई नहीं था । ढाई नीति से कहीं रहती थी तोताराम दंपत्ति विज्ञान में कुशल थे । निर्मला को प्रसन्न रखने के लिए उनमें जो स्वाभाविक कमी थी, उसे वहाँ उपहारों से पूरी करना चाहते थे । ये बीपी बहुत ही मिट वई पुरुष थे, पर निर्मला के लिए कोई न कोई तौफा रोज जाया करते थे । मौके पर धन की परवाह ना करते थे । लडके के लिए थोडा दो जाता था । पर निर्मला के लिए मेरे मोरबे मिठाइयाँ किसी चीज की कमी नहीं थी । अपनी जिंदगी में कभी सैड तलाशी देख लेना गए थे । पर अब छुट्टियों में निर्मला को सिनेमा सर्कस एटर दिखाने ले जाते थे । अपने बहुमूल्य समय का थोडा सा हिस्सा उसके साथ बैठकर ग्रामोफोन बजाने में व्यतीत कर दी थी । लेकिन निर्मला को ना जाने क्यों तोताराम के पास बैठने और हसने बोलने में संकोच होता था । इसका कदाचित यहाँ कारण था की अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका पिता था जिसके सामने वर्ष से झुकाकर देख चुराकर निकलती थी । अब उन की अवस्था का एक आदमी उसका पट्टी था । वो उसे प्रेम की वस्तु नहीं सम्मान की वस्तु समझती थी । उनसे भागती भेज दी । उनको देखते ही उसकी प्रफुल्लता पलायन कर जाती थी । वकील साहब को न कि दंपत्ति । विज्ञान ने सिखाया था कि युवती के सामने खूब प्रेम की बातें करनी चाहिए । दिल निकाल कर रख देना चाहिए । यही उसके वशीकरण का मुख्यमंत्री है । इसीलिए वकील साहब अपनी प्रेम प्रदर्शन में कोई कसर नहीं रखते थे । लेकिन निर्मला को इन बातों से घृणा होती थी । वहीं बातें जिन्हें किसी युवक के मुख से सुनकर उनका हिंदी प्रेम से उन मत हो जाता । वकील साहब के मुँह से निकलकर उसकी ही देख पर शहर के समान आघात करती थी । उनमें रेस ना था, उल्लास ना था । उन मानना था ही देना था की बनावट धोखा था । शुष्क नीरज शब्दाडंबर । उसे इतना और तेल बुरा नहीं लगता । शहर तमाशीन बुरे ना लगते । बनाव सिंगार भी बुरा ना लगता था । बुरा लगता था तो केवल तोताराम के पास बैठना । वहाँ अपना रूप और यौवन उन्हीं न दिखाना चाहती थी, क्योंकि वहाँ देखने वाली आंख इतना थी । वहाँ उन्हें इन दसों का आस्वादन लेने योग्य न समझती थी । काली प्रभात समीर ही कि स्पर्श से खेलती है । दोनों में सामान सारा अस्य है । निर्मला के लिए वहाँ प्रभात समेत कहाँ था? पहला महीना बोल सकते ही तोताराम ने निर्मला को अपना घर जांची बना लिया । कचहरी से आकर दिनभर की कमाई उसी दी देते । उनका ख्याल था कि निर्मला इन रुपये को देखकर होली ना समझ । निर्मला बडी शौक से इस पद का काम अंजाम देती है । एक एक पैसे का हिसाब लिख नहीं । अगर कभी रुपये कम मिलती तो पूछती आज काम क्यों है? गृहस्थी के संबंध में उनसे खूब बातें करती । इन्हीं बातों के लायक वहाँ उनको समझ थी यूँ ही कोई विनोद की बातें उनकी मौसी निकल जाती है, उसका मुख्य लीन हो जाता था । निर्मला जब वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर आईने के सामने खडी होती है और उसमें अपने सौंदर्य की सुषमा पूर्ण आभा देखती तो उसका ही दिया । एक सत्र शुभकामना से तडक उठता था । उस वक्त उसके हिंदी में एक ज्वाला से युक्ति मन में आता । इस घर में आग लगा तो अपनी माता पर क्रोध आता पर सबसे अधिक क्रोध बिचारी । निर अपराध तोताराम पर आता है तो साडी इस तापसे जला करती बाकी स्वार्थ लड्डू, टट्टू परसवार होना कब पसंद करेगा? चाहे उसे पैदल ही क्यों ना चलना पडेगा । निर्मला की दशा उसी बाकी सवार की सीटी वहाँ उस पर सवार होकर उडना चाहती थी । उस उल्लास मई विधेयक गति का आनंद उठाना चाहती थी । टू के किन्ही नानी और मनोतियां खडी करने से क्या आशा होती? संभव था कि बच्चों के साथ हसने खेलने से वह अपनी दशा को थोडी देर के लिए भूल जाती हूँ । कुछ मन हरा हो जाता है लेकिन रुक्मणी देवी लडकों को उसके पास पटक में ना देती । मानो वह कोई पिशाचनी जो नहीं निकल जाएगी । रुक्मणी देवी का सुभाव सारे संसार से निराला था यह पता लगाना कठिन था की वो किस बात से खुश होती थी और किस बात ऍम एक बार जिस बात से खुश हो जाती थी दूसरी बार उसी बाद से जल जाती थी । अगर निर्मला अपने कमरे में बैठी रहती तो कहती ना जाने कहा कि मन हो सीन है अगर वह कोठे पर जा जाती तो महामारियों से बात करती तो छाती पीटने लगती । न इलाज है ना शरब निगोडी ने हया भून खाई । अब क्या कुछ दिनों में बाजार में नाचेगी जब से वकील साहब ने निर्मला के हाथ में रुपये पैसे देने शुरू किए रुकमनी उसकी आलोचना करने पर आरोप हो गई । उन्हें मालूम होता था की अब पहले होने में बहुत थोडी कसर रह गई है । लडकों को बार बार पैसों की जरूरत पडती है । जब तक कुछ स्वामीनी थी उन्हें पहला दिया करती थी अब सीधे निर्मला के पास भेज देती हूँ । निर्मला को लडकों की चटोरापन अच्छा नहीं लगता था । कभी कभी पैसे देने से इंकार कर दी थी । रुक्मणी को अपनी बागबान सर करने का अवसर मिल जाता है । अब तो मालकिन हुई है । लडके कहाँ कोई जिएंगे बिना माँ के बच्चों को कौन पूछे । रुपयों की मिठाइयाँ खा जाते थे । अब ढीले देने को तरफ जाते हैं । निर्मला अगर चिढकर किसी दिन बिना कुछ पूछे ताजे पैसे दे देती तो देवी जी उसकी दूसरी ही आलोचना करती । इन्हें क्या? लडके मारे या जिए इनकी बला से माँ के बिना कौन समझाये कि बेटा बहुत मिठाइयाँ मत खाओ । आई गई तो मेरे सिर जाएंगे नहीं किया । यही तक होता तो निर्मला शायद जब्त कर जाती । पर दी बीजी तो खुफिया पुलिस से सिपाही की भर्ती निर्मला का पीछा करती रहती थी । अगर वह कोठे पर खडी है तो अवश्य ही किसी पर मेघा डाल रही होगी । मेहरी से बात करती है तो अवश्य ही उनकी निंदा कर दी होगी । बाजार से कुछ मंगवा आती है तो अवश्य कोई विलास वस्तु होगी । यहाँ बराबर उसके पत्र पडने की चेष्टा क्या करती हूँ । छिप छिपकर बातें सुना करती । निर्मला उनकी दो दिन तलवार से आपकी रहती थी । यहाँ तक कि उसने एक दिन पति से कहा आप सारा जी जी को समझा दीजिए जो मेरे पीछे पडी रहती हैं । तोता राम ने तेज होकर कहा, तो मैं कुछ कहा है क्या? रोज ही कहती है बाद मुझसे निकालना मुश्किल है । अगर इन्हें इस बात की जलन हो किए हैं । मालकिन क्यों बनी हुई है तो आप उन्हीं को रुपये पैसे दीजिए । मुझे ना चाहिए यह मालकिन बनी रहे । मैं तो केवल कितना चाहती हूँ की कोई मुझे ताने महीने ना दिया करें । ये कहते कहते निर्मला क्या खुसी आंसू बहने लगे । तोताराम को अपने प्रेम दिखाने का ये बहुत ही अच्छा मौका मिला । बोले मैं आज ही उनकी खबर लूंगा । साफ कह दूंगा । मूव बंद करके रहना है तो रहा हूँ नहीं तो अभी राहत लोग इस घर की स्वामिनी वहाँ नहीं है । तुम हो वहाँ केवल तुम्हारी सहायता के लिए हैं । अगर सहायता करने के बदले तुम्हें दिख करती है तो उन्हें यहाँ रहने की जरूरत नहीं । मैंने सोचा था की विधवा है अनाथ है, पाव भराडा खाएगी पडी रहेगी । जब और नौकर चाकर खा रहे हैं तो वो भी तो अपनी बहन नहीं है । लडकों की देखभाल के लिए एक औरत की जरूरत भी थी लख लिया लेकिन इसके यह मानी नहीं की बहुत तुम्हारे ऊपर शासन करे । निर्मला ने फिर कहा लडकों को सिखा देती है कि जाकर माँ से पैसे मांगे । कभी कुछ कभी कुछ लडके आकर मेरी जान खाते हैं । घडी बर्लिन थोडा मुश्किल हो जाता है डांटती हूँ तो वो आंखें लाल पीली करके दौडती है । मुझे समझाती है कि लडकों को देखकर जलती है । ईश्वर जानते होंगे कि मैं बच्चों को कितना प्यार करती हूँ । अच्छा मेरे ही बच्चे तो हैं । मुझे उनसे क्यों जलन होने लगी? तोताराम क्रोध से का बुड्ढे बोले तो मैं जो लडका दिख करें उसे पीट दिया करूँ । मैं भी देखता हूँ कि लौंडे शरीर हो गए हैं । मनसा राम को तो मैं मॉर्निंग हाउस में भेज दूंगा । बाकी दोनों को तो आज ही ठीक किए देता हूँ । उस वक्त दूदाराम का छह ही जा रहे थे । डांट डपट करने का मौका नहीं था । लेकिन का जहरी से लौटे ही उन्होंने घर में रुक्मणी से कहा क्यों बहन तो मैं इस घर में रहना है या नहीं । अगर रहना है शांत हो कर रहा हूँ । ये क्या कि दूसरों का रहना मुश्किल कर दो । रुक्मणी समझ गई की बहु ने अपना बार क्या पर वो दबने वाली और इतना एक तो उम्र में बडी इस पर किसी घर की सेवा में जिंदगी काट दी । इस की मजाल थी उन्हें बेदखल कर दी उन्हें भाई की इस शुद्र डाबर आश्चर्य हुआ । बोली तो क्या लौंडी बनाकर रखोगे लौंडी बना कर रहना है तो इस घर की लॉटरी नाम होंगे अगर तुम्हारी यह इच्छा हो घर में कोई आग लगा दी और मैं खडी देखा करूँ किसी को बे रहा चलते देखो तो चुप सादी लो जो जिसके मन में आये करें मैं मिट्टी की देवी बनी रहा हूँ तो ये मुझ से ना होगा । ये हुआ क्या? जो तो कितना आपे से बाहर हो रहे हो निकल गई सारी बुद्धिमानी कल की लौंडिया चोटी पकडकर नाचने लगी । कुछ पूछना ना ताज ना बस उस ने तार खींचा और तुम कार्ड की सिपाई की तरह तलवार निकालकर खडे हो गए तो सुनता हूँ कि तुम हमेशा खुश निकालती रहती हूँ । बाद बात पर ताने देती हूँ । अगर कुछ सीख देनी हो तो उसे प्यार से मीठे शब्दों में देनी चाहिए । तानों से सीट मिलने के बदले उल्टा और जी जल्दी लगता है रुक्मणी तो तुम्हारी ये मर्जी है की किसी बात में ना बोलो । यही सही फिर ये ना कहना कि तुम घर में बैठी थी, क्यों नहीं सलाह दी जब मेरी बातें जहर लगती है तो मुझे क्या कुछ देने घटा है जो बोलू मसल है नाटो खेती बहुरिया घर मैं भी देखो बहुरिया कैसे घर चलाती है कितनी सी आराम और जियाराम स्कूल से आ गए । आते ही दोनों भाजी के पास जाकर खाने को मांगने लगे । रुकमनी ने कहा, जाकर अपनी नई अम्मा से क्यों नहीं मांगते? मुझे बोलने का बुक में नहीं है तोता । अगर तुम लोगों ने उस घर में कदम रखा तो टांग तोड दूंगा । बदमाशी पर कमर बांदी है जी आराम जरा शोक था । बोला उनको तो कुछ नहीं कहते । हमें को धमकाते हैं । कभी पैसे नहीं देती । सीआर आमने इसका जिनका अनुमोदन क्या कहती हैं । मुझे दिख करोगे तो कान काट लूंगी । कहती है कि नहीं क्या? निर्मला अपने कमरे से बोली । मैंने कब कहा कि तुम्हारे कान कार्ड होंगे? अभी से झूठ बोलने लगी हूँ । इतना सुनना था । तोताराम ने सी आई उनकी दोनों कान पकडकर उठा लिया । लडका जोर से ठीक मार कर रोने लगा । रुकमनी ने दौर कर बच्चे को मुझे जी के हाथ से छुडा लिया और बोली बस रहने भी दो । क्या बच्चे को मार डालो के हाई हाई कान लाल हो गया । सच कहा है नई बीवी पाकर आदमी अंधा हो जाता है अभी से ये हाल है तो इस घर के भगवान ही मालिक है । निर्मला अपनी विजय पर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी, लेकिन जब मुंशीजी ने बच्चे का कान पकडकर उठा लिया तो उस से ना रहा गया । छुडाने को दौडी पर रुकमनी पहले ही पहुंच गयी थी । बोली पहले आग लगा दी अब बुझने दौडी हूँ । जब अपने लडके होंगे तब आप खुल एज पराई पीर क्या जाना? निर्मला खडे तो है पूछ लो ना । मैंने की आग लगा दी । मैंने कितना ये कहा था कि लडके मुझे पैसों के लिए बार बार दिख करते हैं । इसके सेवाएं जो मेरे मुंह से कुछ निकला हूँ तो मेरी आंखें फूट जाएगा तो मैं खुद इन लौंडों की शरारत देखा करता हूँ । अंधा थोडी ही हूँ । तीनों जिद्दी और शरीर हो गए हैं । बडे में आपको तो मैं आज ही हॉस्टल में भेजता हूँ । रुक मैं अब तक तो मैं इन की कोई शरारत ना सूचित । आज आंखें जो इतनी तेज हो गई तो तारा तो मैं नहीं नहीं इतना शोक कर रखा है । ग्रुप नहीं तो मैं ही विश्व की गार्ड हूँ । मेरे ही कारण तुम्हारा घर चौपट हो रहा है । लोग मैं जाती हूँ तुम्हारे लडके हैं । मारो चाहे काटो न बोलूंगी । ये कहकर वहां वहां से चली गई । निर्मला बच्चे को रोते देखकर बिहार होती । उसने उसी छाती से लगा लिया और गोद में लिए हुई अपने कमरे में लाकर उसी चुम कारने लगे । लेकिन बालक और भी सिसक से सबका होने लगा । उसका अभूत ही दी है । इस प्यार में वहाँ मात्र इसमें है ना पाता था जिससे डेलने उसे वंचित कर दिया था । ये वासल लेना था, केवल दया थी । यहाँ वहाँ वस्तु थी जिस पर उसका कोई अधिकार नहीं था जो केवल शिक्षा के रूप में उसी दी जा रही थी । पिता ने पहले भी दो एक बार मारा था जब उसकी मां जीवित थी । लेकिन तब उसकी मां उसे छाती से लगाकर रोती थी । बहुत अब प्रसन्न होकर उसे बोलना छोड देती । यहाँ तक कि वह स्वयं थोडी ही देर के बाद कुछ भूल कर फिर माता के पास दौडा जाता था । शरारत के लिए सजा पाना तो उसकी समझ में आता था लेकिन मार खाने पर चिंकारा जाना उसकी समझ में नहीं आता था । मात्र प्रेम में कठोरता होती थी लेकिन मृदुलता से मिली हुई इस प्रेम करुणा थी पर वह कठोरता ना थी जो आज नेता का ग्रुप संदेश स्वस्थ अंक की परवाह कौन करता है । लेकिन वहीं हम जब किसी वेदना से टपक ने लगता है तो उसे ठेस और धक्के से बचाने का यह नहीं किया जाता है । निर्मला का करुण रोदन बालक को उसके अनाथ होने की सूचना दे रहा था । वहाँ बडी देर तक निर्मला गोद में बैठा रोता रहा और रोते रोते हो गया । निर्मला ने उसे चारपाई पर सुनाना चाहा तो बालक ने सुषुप्तावस्था में अपनी दोनों को मलबा हैं, उसकी गर्दन में डाल दी और ऐसा चिपट गया । मानव नीचे कोई गढा हो शंका और बहन से उसका मुख विकृत हो गया । निर्मला ने फिर बालक को गोद में उठा लिया । चारपाई पर न सुना सके । इस समय बालक को गोद में लिए उसी बहुत दृष्टि हो रही थी जो अब तक कभी ना हुई थी । आज पहली बार उसे आत्म अवेदना हुई जिसके बिना आंख नहीं खुलती अपना कर्तव्य मार्ग नहीं समझता हूँ । वहाँ मार अब दिखाई देने लगा । भाग एक उस दिन आपने प्रगाढ प्रेमियर का सबका प्रमाण देने के बाद मुझे तोता राम को आशा हुई थी कि निर्मला के मर्मस्थल पर मेरा सिक्का चल जाएगा । लेकिन उनकी यहाँ आशा लेशमात्र भी पूरी ना हुई, बल्कि पहले तो वह कभी कभी उनसे हस्कर बोला भी करती थी । अब बच्चों के लालन पालन में व्यस्त रहने लगी । जब घर आती बच्चों को उसके पास बैठे बातें कभी देखते कि उन्हें नहला रही है, कभी कपडे पहना रही हैं, कभी कोई खेल खेला रही है और कभी कोई कहानी कह रही है । निर्मला का कृषि थोडी देर प्रेरणा की और से निराश होकर इस अविलंब ही को गनीमत समझने लगा । बच्चों के साथ हंसने बोलने में उसकी मात्र कल्पना तृप्त होती थी । पति के साथ इसमें बोलने में उसी जो समूह खोज जो अरुण जी तथा जो अनिच्छा होती थी यहाँ तक कि वह उठकर भाग जाना चाहती । उसके बदले बालकों को सच्चे सरल स्नेहल से चित प्रसन्न हो जाता था । पहले मंजर आराम उसके पास आते हुए जीत सकता था लेकिन मानसिक विकास में पांच साल छोटा हॉकी और फुटबॉल ही उसका संसार उसकी कल्पनाओं का मुक्त क्षेत्र था तथा उसकी कामनाओं का हरा भरा भाग था । एक गहरे बदन का छरहरा सुन्दर हसमुख लगनशील बालक था जिसका घर से केवल भोजन बनाता था । बाकी सारे दिन न जाने कहाँ घूमा करता हूँ । निर्मला उसके मुंह से खेल की बातें सुनकर थोडी देर के लिए अपनी चिंताओं को भूल जाती है और जहाँ थी एक बार फिर वही दिन आ जाते जब गुडिया खेलती और उसकी बिहार रचाया करती थी और जिसे अभी थोडे बहुत ही दिन गुजारे थे मुझे तोताराम अन्य एकांत सी मनुष्यों की भर्ती पीछे जीव थी । कुछ दिनों तो वहाँ निर्मला को सैर तमाशे दिखाते रहे, लेकिन जब देखा कि इसका कुछ पल नहीं होता तो फिर एक कान सेवन करने लगे । दिन भर के कठिन मासिक परिश्रम के बाद उनका चित आमोद प्रमोद के लिए लालायित हो जाता है । लेकिन जब अपनी विनोद वाटिका में प्रवेश करते और उसकी स्कूलों को मुरझाया पौधों को सूखा और क्यारियों से धूल उडती हुई देखती तो उनका जी चाहता क्यों ना इस वाटिका को उजाड दूँ? निर्मला उनसे क्यों विरक्त रहती है, इसका रहस्य उनकी समझ में नहीं आता था । दंपत्ति शास्त्र के सारे मंत्रों की परीक्षा कर चुके, पर मनोरथ पूरा ना हुआ । अब क्या करना चाहिए ये उनकी समझ में नहीं आता था । एक दिन वह इसी चिंता में बैठे हुए थे की उनकी सह पार्टी मित्र नयन सूखा राम आकर बैठ गए और सलाम वलाम के बाद मुस्कुराकर बोले आजकल तो खूब गहरी छत दी होगी । नए बीवी का आलिंगन करके जवानी का मजा आ जाता होगा । बडे भाग्यवान हूँ । वहीं टूटी हुई जवानी को मनाने का इससे अच्छा कोई उपाय नहीं कि नया विवाह हो जाए । यहाँ तो जिंदगी बवाल हो रही है । पत्नी जी इस बुरी तरह चलती है कि किसी तरह पिंडी नहीं छोडती । मैं तो दूसरी शादी की फिक्र में हूँ । कहीं डोल हो तो ठीक ठाक कर दो । दस्तूरी में एक दिन तो में उसके हाथ के बने हुए पांच खिला देंगे । तोताराम ने गंभीर भाव से कहा कहीं ऐसी हिमाकत नाकर बैठना नहीं तो बचता होगे लो इंडिया दो लौंडों से ही खुश रहती हैं हम तो अब उस काम के नहीं रहे । सच कहता हूँ मैं तो शादी करके पचता रहा हूँ बुरी बला गले बडी सोचा था तो चार साल और जिंदगी का मजा उठा लो पर उल्टी आ देख गले पडी है ऍम तुम क्या बात करते हो क्लॉडियो को पंजों में लाना क्या मुश्किल बाद है ज्यादा शहर तमाशे दिखा दो उनकी रूपरंग की तारीफ कर दो पर्स रंजन गया तोता यह सब कुछ कर धरकर हार गया । नहीं अच्छा कुछ इतने तेल फूलपत्ती चार्टर्ड कभी वजह चक है तोता । अजी ये सब कर चुका दंपत्ति शास्त्र के सारे मंत्रों का इम्तिहान ले चुका । सब कोरी कहते हैं मैं अच्छा तो अब मेरी सलाह माने, जरा आपकी सूरत बनवा लो । आजकल यहाँ एक बिजली के डॉक्टर आए हुए हैं जो बुढापे के सारे निशान मिटा देते हैं । क्या मजाल कि चेहरे पर एक झोडिया या सिर का बाल पका रहे जाए? ना जाने क्या जादू कर देते हैं कि आदमी का चोला ही बदल जाता है । तोता तीस के लेते हैं मैं तीस तो सुना है शायद पांच सौ रुपए । तोता अजीत पाखंडी होगा । बीस को लूट रहा होगा । कोई रोगन लगाकर दो चार दिन के लिए जरा चेहरा चिकना कर देता होगा । इस टिहरी डॉक्टरों पर तो अपना विश्वास ही नहीं । दस पांच की बात होती तो कहता जरा दिल्लगी सही पांच सौ रुपये बडी रकम है मैं तुम्हारे लिए पांच सौ रुपये कौन बडी बात है । एक महीने की आमदनी है मेरे पास तो भाई पांच सौ रुपये होते तो सबसे पहला काम यही करता । जवानी के एक घंटे की कीमत पांच सौ रुपये से कई ज्यादा हैं । तो अजी कोई संस्थान उसका बताओ कोई फकीरी जडीबूटी जो कि बिना हर फिट करे के रंग चीखा हो जाये । बिजली और रेडियम बडे आदमियों के लिए रहने दो, उन्हीं को मुबारक हो मैं तो फिर रंगीले पन का स्वांग रचा यही डीलर डालाकोट फेंको टन जेब की चुस्त आजकल हो चुन्नट दार पजामा गले में सोने की जंजीर पडी हुई हो । सिर पर जयपुरी साफा बांधा हुआ, आंखों में सूरमा और बालों में ही ना का तेल पडा हुआ तो उनका पिचकना भी जरूरी है । दोहरा कमरबंध बांधे जरूरत तकलीफ तो होगी पर आजकल सर जुटेगी कि जा मिला दूंगा सौ पचास कजली याद कर लो और मौके मौके से शेर पढो बातों में रस भरा हो । ऐसा मालूम हो कि तुम्हें दीन और दुनिया की कोई फिक्र नहीं है । बस जो कुछ है, पेट माही हैं । जवाब मार दी और साहस के काम करने का मौका ढूंढते रहो । रात को झूठमूठ चोर करो । चोर चोर और तलवार लेकर अकेले निकल पडो हाँ जरा मौका देख लेना । ऐसा ना हो कि सचमुच कोई चोर आ जाए और तुम उसके पीछे दौड नहीं तो सारी कलई खुल जाएगी और मुफ्त के उल्लू बाल हो गए । उस वक्त तो जवाब मार दी । इसी में है कि दम साधे खडे रहो जिससे वह समझे कि तुम्हें खबर ही नहीं हुई । लेकिन ज्यूरी चोर भाग खडा हो । तुम भी उछलकर बाहर निकलो और तलवार लेकर कहाँ कहाँ कहते दौडो ज्यादा नहीं एक महीना मेरी बातों का इम्तेहान करके देखें । अगर वहाँ तुम्हारी दम नाम भरने लगे तो जो जुर्माना कहूँ वहाँ दूर तोता राम ने उस वक्त तो यह बातें हंसी में उडा दी । जैसा की एक व्यहवार कुशल मनुष्य को करना चाहिए था । लेकिन इसमें की कुछ बातें उसके मन में बैठ गई । उनका असर पडने में कोई संदेह रहना था । धीरे धीरे रंग बदलने लगे जिसमें लोग घटक ना जाए । पहले बालों से शुरू किया, फिर सूरमे की बारी आई । यहाँ तक जी एक दो महीने में उनका कलेवर ही बदल गया । गजल याद करने का प्रस्ताव तो हास्यपद था, लेकिन वीरता की डींग मारने में कोई हानि । नाथी उस दिन सेवन, रोज अपनी जवाब मर्जी का कोई न कोई प्रसन्न अवश्य छेड देते । निर्मला को संदेह होने लगा कि कहीं इन्हें उन मारकर रोक तो नहीं हो रहा है । जो आदमी मूंग की दाल और मोटे आटे के दो फुल्के खाकर भी नमक सुलेमानी का मोहताज हो, उसकी झेले पन पर उन्माद का संदेह हो तो आश्चर्य ही क्या? निर्मला पर इस पागलपन का और क्या रन जमता । वो उसे उन पर दया आने लगी । क्रोध और घृणा का भाव चाहता रहा । क्रोध और घृणा उन पर होती है जो अपने होश में हो । पागल आदमी तो दया का ही पात्र हैं । वहाँ बहुत बात में उनकी छुट्टिया लेती उनका मजाक उडाती जैसे लोग पागलों के साथ क्या करते हैं? हाँ, इसका ध्यान रखती थी कि वह समझना जाएगा । वहाँ सोचती बेचारी अपने पाप का प्रायश्चित कर रहा है । ये सारा स्वांग केवल इसलिए तो है कि मैं अपना दुख भूल जाऊँ । आखिर भाग्य तो बदल सकता नहीं । इस बिचारे को क्यों जला? एक दिन रात को नौ बजे तोताराम बाकी बने हुए सैर करके लौटे और निर्मला से बोले आज तीन चोरों से सामना हो गया । जरा शिवपुर की तरफ चला गया था । अंधेरा थाई यूरी रेल की सडक के पास पहुंचा तो तीन आदमी तलवार लिए हुए न जाने की घर से निकल पडे । यकीन मानो तीनों काले देव थे । मैं बिल्कुल अकेला पास में सिर्फ ये छडी थी । उधर तीनों तलवार बांधे हुए वो शूट गए । समझ गया कि जिंदगी का यही तक साथ था । मगर मैंने भी सोचा मारता हूँ तो वीरू की मौत क्यों नहीं हूँ? इतने में का आदमी ने ललकारकर कहा रख दी तेरे पास जो कुछ हो और चुपके से चला जाए । मैं छडी संभालकर खडा हो गया और बोला मेरे पास तो सिर्फ यहाँ छडी हैं और इसका मूल्य एक आदमी का सिर है । मेरे मुंह से इतना निकलना था कि तीनों तलवार खींचकर मुझ पर झपट पडे और मैं उनके वारों को छडी पर रोकने लगा । तीनों झल्ला झल्लाकर वार करते थे । घटाकर की आवाज होती थी और मैं बिजली की तरह झटकर उनके तारों को कार्ड देता था । कोई दस मिनट तक तीनों ने खूब कलवार के जोहर दिखाए, पर मुझ पर जेब तक नाई । मजबूरी यही थी कि मेरे हाथ से एक बार मैं भी यदि कहीं तलवार होती तो एक को जीताना छोड ता खैर कहा तक बयान करूँ । उस वक्त मेरे हाथों की सफाई देखने का बिल थी । मुझे खुद आश्चर्य हो रहा था कि ये चपलता मुझे कहाँ से आ गई । जब तीनों ने देखा कि यहाँ दाल नहीं गलने की तो तलवार म्यान में रख ली और पी ठोककर बोले जवान तुमसा वीर आज तक नहीं देखा । हम तीनों तीन सौ पर भारी गांव के गांव ढोल बजाकर लूटते हैं, पर आज तुमने हमें नीचा दिखा दिया । हम तुम्हारा लोहा मान गए । ये कहकर तीनों फिर नजरों से गायब हो गए । निर्मला ने गंभीर भाव से मुस्कुराकर कहा, इस छडी पर तो तलवार के बहुत से निशान बने हुए होंगे । मुझे जी इस शंका के लिए तैयार नहीं थे पर कोई जवाब देना आवश्यकता बोले मैं वारों को बराबर खाली कर देता था । दो चार छोटे छडी पर पडी भी तो उचटती हुई जिससे कोई निशान नहीं पढ सकता था । अभी उनकी मुझसे पूरी बात भी नहीं की थी कि सहसा रुक्मणी देवी बदहवास दौडती हुई आई और हफ्ते हुए बोली तोता है कि नहीं मेरे कमरे में सात निकल आया है । मेरी चारपाई के नीचे बैठा हुआ है । मैं उठकर भागी । मुझे कोई दो कच्छ का होगा । फन निकाल के उपकार रहा है । जरा चलो तो टंडा लेते चलना । तोताराम के चेहरे का रंग उड गया । ऊपर हवाइयां छूटने लगी मगर मन के भावों को छिपाकर बोले सात यहाँ कहा तो मैं धोखा हुआ होगा । कोई रस्सी होगी? रुक्मणी अरे मैंने अपनी आंखों से देखा है । जरा चलकर देख लो ना हैं । मर्द होकर डरती हूँ । मुझे इसी घर से तो निकले लेकिन बरामदे में फिर ठिठक गए । उनकी पावीना उठते थे । कलेजा धडधड कर रहा था । साहब बडा क्रोधी जानवर है । कहीं कार्ड के लिए तो मुफ्त में प्राण से हाथ धोना पडेगा । बोले डरता नहीं हूं । साथ ही तो है शेर तो नहीं मगर साहब पर लाठी नहीं असर कर दी । जाकर किसी को भेजो । किसी के घर से भाला लाए । यह कहकर मुझे जी लगाते हुए बाहर चले गए । मनसाराम बैठक खाना खा रहा था । मुझे जी तो बाहर चले गए । इधर वो खाना छोड अपनी हॉकी का डंडा हाथ में ले । कमरे में घुसी । बडा और तुरंत चारपाई खींचते साफ मस्त था । भागने के बदले निकालकर खडा हो गया । मनसाराम ने चटपट चारपाई की चादर उठाकर साहब के ऊपर फेंक दी और ताबडतोड तीन चार डंडे कसकर जमाएं । साफ चादर के अंदर तडक कर रह गया । तब उसे डंडे पर उठाये हुए बाहर चला । मुझ से कई आदमियों को साथ लिए चले आ रहे थे । मंसाराम को साफ लडका आते देखा तो सहसा उनके मुझसे ठीक निकल पडी । मगर फिर संभल गए और बोले मैं तो आई रहा था तो मैं जल्दी की दे दो । कोई से जाएँ । यह कहकर बहादुरी के साथ रुक्मणी के कमरे के द्वार पर जाकर खडे हो गए और कमरे को खूब देखभाल कर मूंछों पर ताव देते हुए निर्मला के पास जाकर बोले मैं जब तक आउट जाऊँ मनसाराम ने मार डाला । बीस समझ लडका डंडा लेकर दौड पडा । सात हमेशा हाली से मारना चाहिए । यही तो लडकों में अब मैंने ऐसे ऐसे कितने साफ मारे हैं । साहब को खिला खिलाकर मारता हूँ । कितनों को ही मुट्ठी से पकडकर मसल दिया है । रुक्मणी ने कहा चाओ भी देख ले तुम्हारी मर्दानगी अच्छा जाओ मैं डरपोक ही सही, तुमसे कुछ नाम तो नहीं मांग रहा हूँ । जाकर महाराज से कहा खाना निकले मुझे जी तो भोजन करने गए और निर्मला द्वार की चौखट पर खडी सोच रही थी भगवान क्या इन्हें सचमुच कोई भीषण रूप हो रहा है? क्या मेरी दशा आपको और भी तारून बनाना चाहते हो? मैं उनकी सेवा कर सकती हो, सम्मान कर सकती हूँ । अपना जीवन उनके चरणों पर अर्पण कर सकती हूँ, लेकिन वहाँ नहीं कर सकती जो मेरे किए नहीं हो सकता । अवस्था का भेद मिटाना मेरे वर्ष की बात नहीं । अखिलेश मुझे क्या चाहते हैं, समझ गई ये बात पहले ही नहीं समझती थी । नहीं तो इनको क्यों इतना तपस्या करनी पडती? क्यों इतनी स्वांग भरने पडते हैं?
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