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नाज़ुक बंधन भाग - 03 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
'सुहाग रात' शब्द 'सौभाग्य रात' से बना है किंतु विवाह के बाद प्रथम मिलन की रात सबके लिए तो सौभाग्य लेकर नहीं आती नमिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ| writer: पूर्णिमा केडिया Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Purnima Kediya
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परिश्रम जीवन पुष्य का पराग है तो पारिश्रमिक है उसकी सुगंध । परिश्रम से तन मन खिल जाता है तो पारिश्रमिक से वो मैं उठता है । अगले महीने जब नमिता को वेतन मिला उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा हूँ । अपनी पूरी योजना के अनुसार अपनी सहकर्मिणी मधुमिता को लेकर वो बाजार गई । वहाँ स्माॅल की एक साडी ससुर के लिए सफारी सूट का कपडा, सील के लिए खिलौने, अच्छा के लिए दादर पर्स और अन्य सबके लिए मिठाई का डब्बा लिया । जबसे उसने अध्ययन कार्य प्रारम्भ किया था सांस कुछ गंभीर ही रहती थी तो आज साडी देखते ही उनकी गंभीरता का आवरण टूट पडा । वो पहले की तरह हस हस कर नमिता से बातें करने लगी । चलाने पास देखा उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा नहीं के साथ किलकारियां भर रहा था । शाम को ससुर जी जब घर आए तो नमिता ने सूट के कपडे के साथ साथ हूँ । बचे हुए पांच सौ के नोटों में से कुछ तो उनके सामने रखती है । यह देखकर मुस्कराए । सूट का कपडा तो बहुत अच्छा है । मैं जरूर ऍम रुपयों का मैं क्या करूँ । इन्हें तो बैंक में जमा करती हूँ । भविष्य में तुम्हारे ही काम आएंगे । नवैतानि चुपचाप पैसे उठाकर पास में रखें और दूसरे दिन बैंक में अपना खाता खोलकर जमा कर दिए । दूसरे दिन कॉलेज में लंच ब्रेक के वक्त जब अपना टेंशन खोल रही थी तो उस पर बस अचला का स्मरण हुआ हूँ । कितनी नहीं भाव से उसके लिए खाना बनाकर टिफन में रखती थी । सप्ताह की किस दिन नमिता कितने बजे महाविद्यालय जाएगी आएगी योजना को अच्छी तरह हो गया था । नमिता के तैयार होने से पहले ही उसका टिफिन उसके मैच पढना कर रख लेती हूँ । आज तो मंगल है अब जल्दी घर लौट आएंगे इसलिए थोडा सा खाना रखा है । क्या कहती है शुक्रवार देर से घर आएंगी । इससे ज्यादा पराठे रख दिए हैं । उसका दिया हुआ थोडा खाना भी नमिता के लिए अधिक हो जाता था । फिर अधिक का तो कहना ही क्या । वो और मधुमिता साथ बैठकर खाना खाया कर दी । मधुमिता कंप्यूटर साइंस की प्राध्यापिका थी । उसकी नियुक्ति भी नमिता के साथ ही हुई थी । सुभाव था तो में मित्रता स्थापित हो गई थी । दोनों मिल बांटकर अपना ऍम खाती हूँ । राजीवलोचन भी अक्सर साथ आकर बैठता । कभी ऍम साथ रहता हूँ कभी नहीं कहता । आज तो कैसी हो गई तभी कहता । आज तो मेरा आता ही गिला हो गया । गुस्से से मैंने खाना ही नहीं बनाना आता । उठाकर फेंक दिया और गैस के ऊपर पानी डाल दिया । उसकी ना समझी बडी बातों पर दोनों को हंसी आ जाती है । दोनों ही अपने अपने टिफिन उसके आगे बढाती । वो नाना करता भी थोडा बहुत खा ही लेता हूँ । उसके अपने टिफिन में अक्सर ही की वस्तु रहती है । जहन लगी पावरोटी अमिता कहती मुझे जहाँ लगी पावरोटी बहुत अच्छी लगती है और वह एक दो टुकडे ले लेती है । मधुमिता को शायद पावरोटी उतनी पसंद है । धीरे धीरे राजीव रोजी उनके साथ बैठने लगा । आपने दे फिर निकाल कर मेज पर रखता । नाम था उसका डब्बा खोलकर एक दो टुकडे पावरोटी आपने डब्बे में रखते हैं और आपने कब देगा? फिर खाना उसके डब्बे में डाल देती है । मधुमिता को अदला बदली शायद उतनी पसंद नहीं थी । उसका टिफिन में खुल के और आलू की सब्जी रहती है । ममता के आग्रह पर कभी कभी वह लिमिटेड से थोडा आचार या फिर कभी कोई और चीज पहले उसके अनुरोध पर नमिता देश की सब्जी चकली थी । मधुमिता की एक आदत थी वो ये कि अपने से संबंधित बातें तो हूँ कह के टाल जाना होगा । पर दूसरों के जीवन रहस्य खुद खोदकर पूछना नमिता के बारे में तो पूछती ही थी, राजीव की जिंदगी के बारे में भी उसके मुंह से उगलवा लेती थी । धीरे धीरे नमिता जान गई । राजीव भी कम तूफान से नहीं गुजरा है । जहाँ बचाने के बाद ही वो अविवाहित था और पत्नी के होते हुए भी मधुर सच जीवन जी रहा था । उससे उन दोनों के सामने वहाँ की गठरी खोली बैठा । शिक्षा प्रेमी राजीव चाहता था शिक्षिका पत्नी उसने अपने मन की बात अपने माता पिता को बता दी दी थी तो पिता चाहते थे दहेज भी मोटी रकम हूँ जबकि राजीव को बिना दहेज विभाग करने की चाहते है । माँ को मध्यस्थ बनाकर उसने पिता को समझाने का प्रयास किया । पता अपनी बात पर अडे रहे । उनका कहना था कि जब उन्होंने अपनी बेटियों के विवाह में दहेज दिया है तो खिला बेटे के बिहार में क्यों न लें । पिता की इच्छा के विपरीत नजीब कुछ नहीं करवाया । अच्छी पढी लिखी लडकियों के रिश्ते चलते रहे । अंत में शादी तय हो गई । एक ऊंचे घराने में माता पिता ने लडकी देखी थी । उससे लडकी देखने को कहा गया तो उसने ये प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया । क्योंकि आपने लडकी क्यों नहीं देखिए । नमिता पूछ बैठे हैं राजीव फंसा । जब माँ बाप की मर्जी से ही विवाह होना था तो मैं बीच में क्यों पडता है? तो वहाँ तो आपका होना था । मधुमिता बोली उसके चेहरे पर पीडा उभर आई । बोला आप लोग नहीं जानती हमारे समाज में माता पिता पुत्र के लिए जीवन संगिनी नहीं घूमते । वो तो खोजते हैं अपने घर के लिए । लक्ष्मी लक्ष्मी के दोनों अर्थ समझ कर नमिता को मन ही मन ही आ गई है । उस पर कुछ नहीं बोली । राजीव इतना दुखी लग रहा था कि नमिता या मधुमिता उससे और कुछ नहीं पूछ पाएंगे । लंच ब्रेक भी समाप्त हो रहा था । घंटे लगने ही वाली थी । अभी मेरी क्लास है क्या कर राजीव चला गया वो दोनों भी उठ खडी हुई । राजीव के भीतर जीवन की खिडकी खुली ही रह गई । कॉलेज भी परीक्षाएं चल रही थी । छात्र छात्राएं तो लिखने में डूबे रहते हैं तो शिक्षक शिक्षिकाएं उनका पहला देते थे थे परेशान हो जाते हैं । पढने वाले तो तेजी से कदम चलाते तो चोरी की ताक में रहने वाले अपने दांवपेच बडा नहीं । नमिता लाख प्रयत्न करके भी किसी की चोरी नहीं पड पाई । पर मधुमिता जाने किस विद्या के प्रभाव के परीक्षार्थियों के चेहरे पढ लेती थी । वो जिसे उठाकर तलाशी देती उसी के पास दो चार चिट पुर्जे मिलेगी जाते । नमिता तो एक दिन और भी बेवकूफी कर बैठी । एक लडकी ने उससे कहा कि वह बीमार है, बैठ कर नहीं लिख पाएगी । उसके लिए लेटकर लिखने का प्रबंध कर दिया जाए तो अच्छा हो । सात के निरीक्षक शिक्षक शिक्षिकाएं मना कर रहे थे, लेकिन अमिता के आग्रह पर उसके लिए दरिये तक की की व्यवस्था की गई । नंदिता नहीं एक और उसके लिए दरी तकिया लगवा दिया । उस पर निभा रखने की जिम्मेदारी भी नमिता पर यहाँ पडी । परीक्षा के उस कमरे का चक्कर लगाती हुई बीच बीच में उस पर नजर डाल देते हैं । शुरू के दो घंटे तो कुछ पता नहीं चला । तीसरे घंटे में उसे कुछ संदेह हुआ । उसने देखा लडकी कभी कोई दवा तकिये के नीचे रखती है तो कभी कोई दवा निकालती हैं । कभी कोई दवाब वेरोवाल में रखती हैं । अमिताभ को निर्णय लेने में देर नहीं लगी । उस लडकी से रुमाल मांगा । वो देने में आनाकानी करने लगी । इसमें दवा है दीदी और कुछ नहीं तो मुझे वो माल दोना नाॅट कर कहा और रुमाल उसके हाथ से ले लिया । पूरे रोमान में छोटे छोटे अक्षरों में संभावित प्रश्नों के उत्तर सूत्ररूप में लिखे हुए थे । फिर उसमें क्या उठाया । उसके नीचे भी दवाओं के साथ कुछ पर्चियां पडी हुई थी । नमिता ने उससे कॉपी ले ली । लिखे हुए उत्तरों से पडसियों को मिलाया गया । बहुत कुछ मिल रहा था । नमिता कॉपी, पर्चियां और रोमान लेकर पर ये शिक्षकों के पास जा पहुंची । शिक्षकों ने लडकी को परीक्षा से निष्कासित करने का निर्णय लिया होने लगी । उसके रोने के इस हथियार से नमिता और अन्य कुछ शिक्षक शिक्षिकाएं पहुँच गए । लडकी द्वारा छमा मांग ले जाने पर उसे एक नई कॉपी दे दी गई । परीक्षा समाप्त होने में अब केवल आधा पौन घंटा ही शेष रह गया था । इतने कम समय में वो एक खास प्रश्न का उत्तर ही लिख पाई । चोरी करके उसने अपने ही पांव पर कुल्हाडी मार ली थी । प्रारम्भ से ही यदि उसने अपने मन से प्रश्नों का उत्तर लिखे होते तो कुछ भी पहले पडा होता है । उस आधार पर शायद उत्तर इन्होने लायक अंक ले आती है तो अब वो भी संभव नहीं था । दूरी वाली कॉफी नमिता के पास उसे पढकर नमिता ने अंदाजा लगा लिया था छात्रा उतनी बुरी नहीं है । उस की लिखावट सुंदर थी और भाषा शैली भी बहुत प्रसिद्ध नहीं । यदि उस लडकी ने दूरी पर भरोसा न करके थोडी सी मेहनत की होती तो बहुत अच्छा आंकडा सकती थी । लेकिन जिनके मुझे एक बार चोरी का खून लग जाता है वो पढाई में ध्यान ना लगाकर चोरी करने के नए नए तरीके खोजने में अपनी बुद्धि खर्च करते हैं । बाद के पत्रों में वो लडकी घबराई, घबराई रहती, निगरानी भी उस पर कडी रखी जाती है । परीक्षा की समाप्ति पर नमिता उसकी कॉपी जरूरत कर देखती है और पार्टी किसने सभी प्रश्नों के उत्तर लिखे हैं और वो अधिकांश कहा सही भी है । अन्य छात्र छात्राएं तो पहले चोरी करते पकडे गए पर आप जिन्हें चोरी करने की छूट नहीं मिल पा रही थी उनकी कॉपियां भी नमिता बीच बीच में देखती है और पार्टी उन्होंने बिना चोरी किए भी कोई उत्तर बहुत बुरे नहीं देखे हैं । हाँ जिन्होंने एकदम भी पढाई नहीं की है उन्होंने या तो अधिकांश प्रश्नों के उत्तर गलत लिखे हैं या फिर लिखे ही नहीं है । नमिता ने एक निष्कर्ष निकाला, कुछ विद्यार्थियों को चोरी की लत लग जाती है । पढने लिखने में वो सभी मंदबुद्धि नहीं होते । चोरी का आसरा छोडकर वो थोडा सा परिश्रम करें तो अच्छे विद्यार्थियों की श्रेणी में आ सकते हैं । नमिता और मधुमिता दोनों ही राजीव की कहानी आगे जानने के लिए उत्सुक थे तो परीक्षा के बाद सब अपने अपने घर जाकर खाना खाते हैं ना साथ बैठकर खा पाते और नहीं कहानी सुन पाते हैं । कुछ दिनों बाद नमिता और मधुमिता को मनचाहा अवसर मिल ही गया । पहले दिन में एक ही प्रश्नपत्र की परीक्षा हुआ करती फिर दो दो प्रश्नपत्रों की परीक्षा होने लगी । प्रथम पत्र सुबह नौ बजे से बारह बजे तक होता तो दूसरा दिन में दो से पांच बजे तक । पहले प्रश्नपत्र कि कॉपियाँ जमा करते करते समय बारह बज जाते हैं । दूसरे प्रश्नपत्र के लिए उन्हें पौने दो बजे परीक्षा विभाग में उपर सपना पडता है । बीच के डेढ घंटों में वे तीनों पूर्व साथ बैठकर खाने लगे । मौका देखकर एक दिन मत बता ने पूछा आपकी पत्नी कहाँ रहती है अपने मायके में क्यों? अमिता ने पूछा हूँ उस सब एक लंबी कहानी है । राजीव हस्तिया फिर बोला, सुनना चाहती हैं तो सुनिए दोनों सुनती रही राजीव सुनाता रहा मेरी पत्नी का नाम है । शोभना नाम के अनुरूप सुंदर तो नहीं है पर असुंदर भी नहीं है । तो ऐसी सुंदरता होती है मन की तो शायद उसमें नहीं है । पढाई लिखाई कुछ खास नहीं किए । स्कूल तक की बडी है कॉलेज नहीं गई । पैसे लक्ष्मी की कृपा हो और सरस्वती की कृपा न हो तो भी चल जाता है । तो लक्ष्मी का अगर अपने को भी नष्ट करता है और दूसरों को भी क्यों क्या हुआ? मधुमिता ने प्रश्न किया । नमिता चुपचाप सुन रही थी, राजी बोलता गया । उसे बहुत धवन था । वो मायके सिर्फ टीवी ए सी सबकुछ लाये क्या बहुत अमीर है । शोभना जी के मायके वाले बहुत अमीर तो नहीं है । अपना मकान है, कोयले का बिजनेस करते हैं, कमाते खाते हैं मेरे पिता जी की फरमाइश पर उन्हें नगद रुपयों के साथ ही सामान भी देना पडा । छोडना बात बात पर ये दिखाती रहती है । घर में जो कुछ भी सुख सुविधा आई है उसी के साथ आई है और हम लोग क्या थे? उनका ऐसा व्यवहार आपके साथ था । ये आपके माता पिता के विचार मेरे ही साथ था । उन से तो कुछ नहीं कहती थी । क्या आप उन्हें एक बार भी अपने साथ यहाँ नहीं लाए? इस बार प्रश्न अमिता ने किया । लाने की बात पर ही तो सब कुछ हुआ क्या हुआ? मैं चाहता था कि वो अपने दहेज का सामान यहाँ ना लाए । मैं अपने परिश्रम की कमाई पर विश्वास करता हूँ । धीरे धीरे मैं भी फ्रेश टीवी आदि खरीदी लेता और वह सब कुछ वहीं से ले आने पर पडी हुई थी । वहाँ से ले आने में शायद आपके माता पिता को भी खतरा होता हो सकता था क्योंकि वो उन वस्तुओं को बहुत शौक और गर्व से प्रयोग में लेते थे । जबकि मुझे उन वस्तुओं को हाथ लगाने में भी अपराध का बोर्ड होता था । आप बहुत सिद्धांतवादी है । मधुमिता बोली और धारू थी । नमिता ने जोडा हो सकता है वो हजार फिर बोला मुझे बहुत अफसोस होता है कि मैं दहेज के बाजार नहीं विकास हूँ । मैंने अपने पिता का विरोध क्यों नहीं किया? नमिता बोली पर अपने अपने विचारों और भावनाओं का सौदा नहीं क्या काम है आपकी पत्नी आपके साथ नहीं आए हैं? मधुमिता ने प्रश्न चला ना? उसका कहना था की फ्रिज के पानी के बिना उसकी प्यास नहीं । मुझे टीवी और विश्व के बिना भी उसका मन नहीं लगता हूँ । फिर की सब चीजें मैं तुरंत नहीं खरीद सकता था । अगर वो नहीं आई मैं भी वहाँ नहीं गया हूँ । चार वर्ष बीत का इन सब बातों को सुना है वो अपने मायके में रहने लगी है । बुलाने पर भी सुना नहीं आती हूँ । आप फिर मिले नहीं, उनसे ना अपने माता पिता के पास जाते होंगे । नमिता ने पूछा कहीं नहीं जाता हूँ, मैं तो वैसे ही रहता हूँ । फिर हस दिया आगे बोला हूँ और कुछ मत पूछेगा । मैं वाकई बहुत थक गया हूँ । उसके बाद कुछ दिनों तक इस विषय पर और कोई चर्चा नहीं हो पाई । जब दो विपरीत लिंग के व्यक्ति अक्सर मिलने लगते हैं । लोग समझे कि आप में चलने लगते हैं । ऐसी संदेह से बचने के लिए नमिता मधुमिता को अपने साथ लगती थी । राजीव के साथ बैठकर रंच खाना हो या कैंटीन में चाय पीनी हो वो मधुमिता को अपने साथ लगाये रखते हैं । फिर भी लोग बातें बनाने से बाज नहीं आए । पहले महाविद्यालय में कानाफूसी होती रही, फिर बाहर भी चर्चा चलने लगी । लोग मधुमिता से कुर्वीत पुलिस कर पूछते नहीं नमिता और राजीव का कुछ चक्कर तो नहीं चल रहा है । मधुमिता कहती नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है । फिर भी लोगों को विश्वास नहीं होता । वो सब कुछ नमिता को बता देती है । जिसमें पूछा तो कल उसने पहले ममता को क्रोध आता था । फिर हसी आने लगी । उसमें कोशिश की । राजीव के साथ अधिक मिले । चले नहीं । पर ऐसा हो नहीं पाया । वो और मधुमिता अकेले ही खाने बैठ जाते हैं तो राजीव मानना मान मैं तेरा मेहमान की तरफ । बीच में आप बैठता, कैंटीन में चाय पीने बैठती तब यही हाल होता ना समझ और सीधे साधे राजू वो समझाए भी तो क्या समझाए अंतिम उसमें कैंटीन में चाय पीना बहुत कम कर दिया । चाय पीने के लिए वो ऐसे मौके तलाशती जब वो और मधुमिता खाडी रहती और राजीव अपनी कक्षाएं लेता रहता हूँ । ऐसा मौका किसी किसी दिन ही मिल पाता हूँ । घर जाकर वो अक्सर अचला के हाथ की चाय देंगे तो वो हमेशा ही नमिता के कॉलेज जाने पर चाय के लिए पूछती थी । पर पहले तो नमिता प्राय नहीं कह दिया करती थी लेकिन अब वो अक्सर खाकर रचना को मानो बेहद खुशी मिल जाती । मना करने पर भी वो चाय के साथ कुछ नाश्ता भी ले आती है । दिन बीत रहे हैं पर नमिता को डर था कि कहीं वो चर्चा कर सकता पहुंच जाएगा । उसके साथ ससुर सुनेंगे तो क्या कहेंगे? देवर देवरानी क्या कहेंगे? तब क्या चला उसका उतना सम्मान कर पाएगी । अब तो आते ही अच्छा उसकी गोद में नील को बिठा देती रहती हैं । आप आती है तो मेरा सर हल्का होता है, नहीं तो ये मुझे किए रहना है । नमिता को नील की सबसे पानी अच्छी लगती । उन्होंने ना शिशु उसके जीवन में नया उत्साह भर देता । रक्षा में तो विज्ञान पढाती, सुब पढाती, राजीव भी विज्ञान पर बहस कर उसका माथा काम नहीं खाता । उसके हर विषय पर अपने ही सिद्धांत और विचार थे । लेकिन नील से खेलते समय कोई सब कुछ भूल जाती । नहीं । नील कभी उसके सर के बाल खींचता तो कभी कान की बाली । खिलाडियों में उसे कोई रूचि नहीं थी । उसे तो खेलने के लिए चाहिए । लोहा लगता झाडू जब पाला दी नीचे उतरते ही वो अपने मनोरंजन की कुछ न कुछ वस्तु ढूंढ रहा था । वस्तु चाहे गंदी गंदी हो या अच्छी से अच्छी उसके मुंबई जाने रखती है । उस दिन नमिता अपने कमरे में कुर्सी पर नील को गोद में लिया बैठी थी । मेज पर बडी उसकी कलम को उठाकर अपना आहार बना रहा था । उसी समय अनिल ने कमरे में प्रवेश किया । नमिता ने सोचा और उसकी तरह श्रंगार में इसके सामने आकर बाद हमारे गा जूते पहने जाने पर चलेगा । अपनी महबूबा के हर बहुत होगा तो नील को उसकी गोल से लेकर थोडी देर खेल देगा । इस कर्मियां कुछ लिखती पडती रहेगी या फिर पढने लिखने का दिखावा करती रहे हैं । कभी अनिल अधिक देर तक मिल से खेलता रह जाता तो वो उठकर रसोई की और चल रही थी । उसके उपर स्थिति में तो वहाँ अधिक देर नहीं बैठ पाते हैं । लेकिन आज अनिल न तो शानदार मैच के सामने गया नहीं नील को लिया । पर उसके सामने खराब क्रोध भरी नजर सोचे देखता रहा । उस समझ नहीं पाई कि वह से इस तरह से क्यों देख रहा है । यहाँ तो दोनों में बातें भी होती थी शब्दों के माध्यम से कम नजर के माध्यम से ही थोडी बहुत तो ये क्रोध भरी नजर पहली बार उस पर पडी थी तथा इसका तब पर वो नहीं समझ पाई । उस से तो वो कुछ पूछ नहीं पाई लेकिन नजर शायद पूछ रही थी । अनिल नाम उत्तर बोला इसके साथ राष्ट्रीयता चलती है । फॅमिली के साथ रहती हो सब सुना है मैंने हो बदनामी करो मेरी नमिता का खून खौल उठा वो लगभग ठीक से बडी । पति सारी रात बाहर रहे तो बदनामी नहीं होती और पत्नी किसी से बात भी कर ले तो राष्ट्रीय कहलाती है । उसकी आंखों से भी आठ बसने लगे तो फिर बोली मुझे भी तो अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक है । आखिर घुट घुटकर कब तक रहूंगी? नहीं चलाया । यही करना है तो चली जाओ मेरे घर चले जाओ, उसी के साथ रहूँ । उस क्षण भर तो हत्प्रभ सी हो गई । फिर हंसी इस घर से मेरा रिश्ता हब के कारण जुडा हुआ है । ये गलत नहीं । मन से निकाल दीजिए । घर के कुछ अन्य लोगों के सामने संबंध में बनी हुई । मैं इसीलिए वर्षों से इस घर में रह रही हूँ तो ये लोग चाहेंगे क्या? मैं चाहूंगी? इस तरह से चलता हूँ आपके आदेश या निर्देश नहीं । इस शोर को सुनकर नील घबरा गया और उन्हें लगा नमिता खडी होकर से हिलाकर चुप कराने लगे और वो चुप नहीं हुआ । वो उसे लेकर बाहर चली आई । अनिल अंगारों भरी नजर सौ से थोडा सा ही रह गया तो बालकनी में डील को टहलाती रही । थोडी देर में अनिल को कमरे से निकलते देखा । फिर वो कमरे में चली आई । बिस्तर पर बैठकर कंधे से जब के नील को गोद में लेटाया तो देखा कि वह हो चुका है । उसने उसे धीरे धीरे स्तर पर चला लिया और चादर उडाकर किनारे अपना अकेला तकिया रख दिया ताकि वह गिरे नहीं । एक और वो लेट गयी सोचती रही तू रह रही है वो इस घर में कौन है उसका प्रयास तो आपने है सास और देवर देवरानी नींद सभी तो ये सारे संबंधों पति के कारण होते हैं । जब पति ही अपना नहीं तो ये सब उसके आपने कैसे हुए तब तक वो इस घर में रह पाएगी । आखिर कपडा आज अनिल ने उंगली उठाई कर उसके माँ बाप उठाएंगे । परसों कोई और क्या करें? कहाँ जाए? वो सारे के सारे प्रश्न से हो रहे थे । उत्तर की एक चंदारी तक कहीं दिखाई नहीं दे रही थी । नींद से आने लगी । क्या चला पहुंचे । अरे दीदी ऍम ना कर दे रही, घर देगा तो कर देगा तो मुस्कुराकर बैठे हैं । खाना कब खायेंगे? सब ने खा लिया । केवल आप और आपके लाडले देवर बाकी हैं । अच्छा नील को भूत मिली थी । बोली मैं नहीं खाऊंगा चला मैं खाना मत रखना, क्यों छेड कराया गया? दवा दूँ नहीं रहने दो तीन आ जाएगी तो अपने आप ठीक हो जाएगा । अच्छा नील को लेकर चली गई । वो दरवाजा बंद करके हो गई । उस दिन के बाद से अपना घर कराने वाला ये घर नमिता को बेगाना सा लगने लगा । अब उसका जी कहीं लगता नहीं घर में ना हमारा विद्यालय में अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी । मन मस्तिष्क में मुझे बता से उसने कह दिया था उसके लिए कोई किराये का घर मुझे एक दिन तापसी दीदी से भी जा कर के आई । अपने घर के आस पास कोई घर उसके लिए भी तलाश राजीवलोचन से भी कहना चाहता लेकिन कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई तो ढूंढ देगा । कितने उल्टी सीधी प्रश्न पूछेगा और सब को पता चल जाएगा कि वह अलग रहना चाहती है तो फिर न जाने ऐसी किसी बातें बनाएंगे । इस उठते मन को लगाने के लिए पुस्तकालय से ढेरों पन्यास ले आई । पुस्तकों जब हुई रहती है तो भाई तू बातें छोटे से दिमाग को छुट्टी मिल जाती है । उससे आपको वहाँ विद्यालय से आकर एक उपन्यास पडने में हुई थी जिसका सेल बज उठा । बहुत दिन के बाद पिताजी का फोन सुनकर मन खुशी से भर गया । उन्होंने कहा था की शुचिता की सगाई हो गई है । विभाग नवंबर में हैं । वो आने के लिए छुट्टी ले ले तो उसकी नौकरी के संबंध में भी सबको पता चल गया है । कुछ बातें बिना बताए भी पंख लगाकर उडा करती है और न जाने कितनी कितनी दूर पहुंच जाती है । ऍम अब इस वातावरण से कुछ दिनों के लिए बाहर जा सकेगी । इसी बात से उसका मन खुश हो गया । पिताजी ने कहा था उनकी बेटी अपने पैरों पर खडी हो गई है । उन सब के लिए प्रसन्नता गौरव की बात है । साथ ही ये भी कहा था यदि वह बिहार से कुछ दिन पहले आ सके तो तैयारियों में हाथ बंटाकर माँ का बोझ भी हल्का कर सकेंगे । नमिता ने निर्णय ले लिया । वो कुछ दिन पहले ही जाएगी । सास ससुर भी उसके जाने के प्रस्ताव को सहज स्वीकार कर लिया । बस आपत्ति थी तो केवल अचला हो कि अब मील को कौन रखेगा । इस बीच कॉलेज में दशहरे की छुट्टियाँ हो गई । नमिता ने बैंक से पैसे निकालकर महा पिताजी और भाई बहनों के लिए कपडे खरीदे थे । मधुमिता भी उसके साथ खरीदारी का लुत्फ उठाती रही । जब मायके पहुंची उसे कुछ नवीनता का एहसास हुआ । प्राध्यापिका बन जाने से सब की नजर में उसका मूल्य बढ गया था । मैंने कहा बेटी तूने अपनी जिंदगी संभाल नहीं । पिताजी ने कहा विद्या ध्यान से बढकर और कोई दम नहीं । बेटी विद्या को बांधते रहना ही उसकी सबसे बडी उपयोगिता है । विश वाला मैं आजकल अपने कॉलेज के साथ ही पर खूब प्रॉब्लम आता हूँ । मेरी दीदी भी कॉलेज में लग रहा है । नमिता ने उसकी पीठ पर धौल जमाते वहाँ पे पगले, ये भी कोई जॉब काटने की बात है । जिस दिन तो इंजीनियर बनेगा उस दिन रॉक जमाना बहनों के मन में आवश्यक उठाती संख्यता तो कुछ दिनों पूर्व भी अपनी ससुराल से आ गई थी । बोली हम लोगों की जिंदगी तो बस घर गृहस्ती चलाते और बाल बच्चे पालते ही बीत जाएगी । नमिता ने मुस्कराकर उसके बच्चे को गोद में ले लिया । अरे मैं भी तब शादी के पिंजरे में कैद होने जा रही हूँ । शुचिता बोली छवि पिंजरा हैं क्या? कोशिश करो तो शादी के बाद भी अपना विकास कर सकती हूँ । सबको तुम्हारे जैसे सास ससुर तो नहीं मिल सकते । दे दी तीसरी बहन अभिनेता बोली छोटी मृदुला भी अपनी राय प्रकट करने में पीछे नहीं । नहीं नहीं मैं तो अपनी पढाई लिखाई पूरी करके अपने पांवों पर खडे होने के बाद ही शादी करूंगी । ले नहीं । शुचिता बोली विजेता की शादी होते ही पिताजी तेरे लिए लडका खोजेंगे, देख लेना । मृदुला हस्ती अभी तो तुम्हारी शादी होगी । फिर विंता देवी के लिए खोजबीन होगी फिर उस की शादी फिर मेरे लिए खोजबीन तब तक मैं पढ कर निकल जाउंगी । नौकरी तो मुझे बडी दीदी दिलवा ही देंगे । हाँ दीदी नमिता मुस्कराकर रहेंगे । आज पडोस की महिलाएं भी अब उसके जीवन से अधिक उसकी नौकरी में रूचि ले रही थी । नमिता ने आश्वस्त था की सांस ली चलो उनकी तैयार करो ना से तो बच गई । फिर भी कुछ महिलाएं सीधे या फिर कानाफूसी के रूप में उसके जीवन की बखिया उधेड थी और उसकी नौकरी को भी उसके जीवन की विडंबना मानती । नमिता सबकुछ सुनती सहती और आपने मुस्कान के आवरण चलेंगे । उनकी सहानुभूति के बाद खेलते रही नहीं । छुट्टियों में जब बढ की वो अपने बेटे रमेश के बेहद का बहुत में अपने आई तो वो कर रही थी । उन से भी कुछ वैसी ही सहानुभूति मिलेगी तो बुआ ने तो आते ही उसकी तारीफों के पुल भागने शुरू कर दिए । फूफा जी बीस की प्रशंसा कर रहे थे बुआ फूफा जी दोनों का आग्रह था कि वो रमेश के विधा में उनकी शहर जरूर आये । तीन दिन हुआ वहाँ रही । एक दिन उन्होंने पूछा क्या तू अपने कॉलेज के राजीवलोचन को जानती है? नमिता चौखूटी क्या उन तक भी किस्सा पहुंच गया क्यों? उसने पूछा उनसे हमारे पडोस की लडकी का क्या हुआ था पर बिचारी को छोड रखा है । नमिता को भरोसा हुआ कि चलो राजीव नमिता का नाम अभी उतना नहीं जुडा है पर वो राजीव की पत्नी के बारे में अधिक जानने के लिए उत्साह कोर्ट हैं । होली बहुत जानती हूँ । राजीव को उसकी पत्नी कैसी है? अच्छी है । सभी तरह से ठीक है बचार्इ रूपरंग में चरित्र स्वभाव में पढना जाने बेचारी को क्यों छोड रखा है? कहीं और तो ध्यान नहीं है । राजीव का नहीं तो कहते कहते हो न जाने क्यों आप उठी । अब तो बिचारे ने संतोष कर लिया है । फिर भी मन में आज बाकी है कि कब से बुलाएगा या नहीं भी बुलाया । कौन जाने वो भी तेरी तरह पढ लिखकर अपने पांव पर खडी हो जाती तो यू गोल गुल कर तो नहीं करती । नमिता तो हम दुखी हो गया । न जाने क्यों चौकडियों की व्यथा कथा से क्या घूम फिर कर बातें उसके जीवन से जुड जाती थी । इसलिए उसने बुआ को आश्वासन दिया कि वह रमेश के विभाग में जरूर आएगी । तो आश्वासन देकर भी क्या वो रमेश के में सम्मिलित हो पाई । छुट्टियाँ दीपावली और छठ तक चली । मायके में दीपावली मनाते । समय से बार बार अपना बचपन याद आने लगा । कैसे वो सब पहन भाई पटाखे फुलझडियों के लिए आपस में झगडा करते हैं । इस बार उसने अपने पैसों से ढेड जी आतिशबाजियां मंगवाकर भाई बहनों में बांटे । छुट्टी भी जाने पर कॉलेज में फिर अपना कार्यभार संभालना पडा । वहाँ जब भी राजीव से मिलती छोडना के संबंध में सब कुछ बता देने को जी चाहता हूँ, लेकिन तो चाहकर भी तो कुछ कह नहीं पाई था । मधुमिता को उसने सब कुछ बता दिया था । मधुमिता ना बार बार कहा था कि वह बुआ के यहाँ जरूर जाए और शोभना को निकट सिलते कराए तो रमेश की शादी में उसे छुट्टी नहीं मिल पाई क्योंकि उस समय विभागाध्यक्ष भी छुट्टी लेकर पिछले विवाह में सम्मिलित होने के लिए गई थी । शूचिता के विभाग में जाने के लिए उसको छुट्टी मिल गई । यही उसके लिए पर्याप्त था । इस विभाग बुआ से उसकी फिर भेंट हुई । उसने बुआ को आश्वासन दिया कि रमेश के विवाह में वो नहीं आ पाई तो क्या हुआ । कभी ना कभी बुआ के यहाँ अवश्य आएगी । फिर वही कॉलेज वही नमिता, पढाई परीक्षा परीक्षाफल सिलसिला चलता रहा हर कॉॅलेज ये काम भी चलता रहा किंतु घर भी उसे अपना घर सा नहीं लगता । किराये का घर ढूंढ रही थी तो ये भी इतना आसान नहीं था । मधुमिता के साथ जाकर चुप चाप उसने कई घर देखे भी तो कहीं भी मकान अनुकूल नहीं लगा । कहीं किराया ज्यादा था तो कहीं मकानमालिकों का व्यवहार ही मन को नहीं भाया । आपसी दीदी भी इस दिशा में कुछ विशेष नहीं कर पाए । नमिता को लगा कि दिल्ली जैसे बडे शहर में तो आवाज की समस्या बडी जटिल है । आर कर उसका घर देखने का काम धीमा पड गया हूँ । उसे लगने लगा कि अनिल के ना चाहते हुए भी उसी के घर में रहना ही शायद नमिता की नियति है । दिन सप्ताह महीने इन आयामों में रूपायित होता हुआ समय बीतता जा रहा था । किन्तु दिल्ली विश्वविद्यालय की परीक्षाएं समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी । सारी गर्मी की छुट्टियां इन परीक्षाओं में करते करते ही बीत गई । छुट्टी के बाद अध्यापन और निरीक्षण कार्य साफ साथ चलते रहे । चाहती तो निरीक्षण कार्य के लिए अपनी कक्षाएं किसी और को भी दे सकती थी । सभी तो ऐसा कर रहे थे । ऐसा ही निर्देश भी था वो आपने विभाग के अन्य लोगों के निरीक्षण कार्य के दिन उन की कक्षाएं ले लेती हूँ तो अपनी कक्षाएं यथा सम्भव किसी को नहीं देती । मधुमिता कभी कभी चढकर कहती मर जाओगी । तीन मेहनत करके राजीव भी कई बार कहता कि वह नमिता की कक्षाएं ले लेगा तो वो नहीं मानती । लेकिन मधुमिता ने उसको एक दिन पकडे लिया तो बोर नहीं होती । एक जगह रहते रहते धूमल आती हूँ चलेगी मेरे साथ । मैं एक सेमिनार के लिए बाहर जा रही हूँ । कहाँ दिन बाद वहाँ तो मेरी बुआ रहती हैं तो चल वहाँ से मिलाना हुआ नहीं ठहरेंगे । अच्छा हो गया । अरे हाँ, राजीव की पत्नी भी नहीं रहती है । उस से भी मिल लेंगे । देखा जाएगा तो उसी से मिलने के लोग में मुझे अपने साथ ही जा रही है । हाँ और क्या दोनों हंसने लगी? नमिता को प्रसन्न थी कि वह गोवा से किया गया अपना आने का वायदा भी पूरा कर पाएगी । साथ ही कॉलेज और घर की एक तरह की जिंदगी से कुछ दिन छुट्टी पाने की भी खुशी थी । उसकी छुट्टियाँ बाकी थी । चार दिनों का अवकाश से आसानी से मिल गया हुआ उसे देखकर बहुत खुश हुई । बातों ही बातों में सारा बंद कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला । तब तक मतलब दादी अपनी प्रायोगिक परीक्षाओं से नहीं पटाई । शाम को वो चाय पीने बैठी तो मधुमिता पूछ बैठी हूँ जी पूरा जीव की पत्नी शोभना जी आप के पडोस में रहती है ना हूँ । मैं तो भूल ही गई थी । तुम दोनों मिलोगे ना उससे तो कल चलेंगे । ठीक है । नमिता ने भी मौन स्वीकृति जल्दी दूसरे दिन जब शोबरा के घर पहुंची तो पता चला कि वह घर के पीछे बने गार्डन में है । उसकी माँ के साथ तीनों गार्डन में पहुंची । कई सौ मीटर जमीन में अच्छा खासा बगीचा था । एक और थोडे बडे पेड थे तो दूसरी और साग सब्जी लगी हुई थी । किनारे कुछ फूलों के पौधे भी थे । नीम के पेड के विशाल डाल पर छोडना पडा हुआ था जिसपर दो स्त्रियां बैठी थी और उन दो लडकियाँ उनके पीछे खडी झूले ले रही थी । नमिता को लगा कि उनमें से ही कोई शोभना होगी लेकिन नहीं पास पडी चौकी पर लडकियों का एक झुंड बैठा हुआ था । सब सामूहिक रूप से सावन के गीत गा रही थी । वही नहीं इशारा किया तो नमिता ने देखा कि शोभना सबसे दूर चौकी के कोने पर चुप चाप बैठी है । एक हल्के रंग की साडी पहने हैं । माथे पर कुमकुम केटीके के ऊपर चंदन का टीका है । गले पर भी थोडा चंदन लगा है । मांग में सिंदूर की लंबी सी देखा है । उसकी माँ बोली देख उससे मिलने को बनाया है । उसने सिर उठाकर देखा और उसी तरह चुप चाप बैठी रही । उसके निकट जा बैठी । चौकी पर बैठी अन्य लडकियाँ उठकर झूले की और बडी उन सबके मुंह में श्रावणी तीज की जीत के बोलते और चेहरे पर सामने मस्ती पर शोभना इस तरह खामोश बैठी थी कि कहीं कुछ हो ही नहीं रहा । चल रहा था साडी पार्टी माँ मेरे पीहर की मायड मकई हो वीर ना भेज की हाँ मेरे पीहर की साडी फट गई है ले सके वहाँ से जाकर कहना कि भाई को मुझे लिवाने भेजेगी । गाने वाली उन्हें जिन्होंने से ढक रखा था वो निसंदेह बहुत ही होंगी । उनके स्वर में कुछ दर्द खुला था । लडकियों के स्वर में संगीत का उल्लास पूंछ रहा था पर वो ससुराल में एक आधी सावन बिता पाई जिससे हर समय मायके में ही रहना है । मायके के ही वस्त्र पहनते हैं वो मायके के वस्त्र फट जाने का दुखभरा गीत गाती भी तो कैसे उसके मन में न जाने कैसे गीत गूंज रहे थे । वही बोली ये मेरी भतीजी है और ये है उसकी सहेली । दोनों उसी कॉलेज में पढाती हैं । दिल्ली में छोड उन्होंने हाथ जोडे बोली कुछ नहीं बस प्रश्नवाचक नजर से उनकी और देखा । उसकी माँ ने पूछा आप हमारे दामाजी को जानती हैं? मधुमिता बोली कैसी हूँ कुछ कहा है उन्होंने अच्छी हैं कहाँ तो कुछ नहीं । दरअसल हमने उन्हें यहाँ आने के बारे में नहीं बताया तो फिर चुप्पी छा गई । झूले पर महिलाओं का झूलना जारी था कि पूछता रहा तू दाल भाटी यहाँ मेरे पीहर की मायड ना कहीं हुए वीर ना भेजेगी । झूला रुका पहले वाली महिलाएं उत्तराई फिर कुछ लडकियाँ झूले पर जा बैठी । छोडना जी आप भी झोलियां ना । मधुमिता बोली नहीं कहता शोभना उठ बैठी बोली हाँ मैन के लिए चाय ला रही हूँ । वो चली गई । उसके माँ बोली पता नहीं क्यों टूट गए हैं । दामाद जी ये बेचारी तो अनब्याही रही न कुमारी कितना कहती हो तुम बीजू लो हंसो खेलो परिषद तो चुप रहने का रोक लग गया है । हमने पूछा दूसरा वहाँ कर दी और उसके लिए भी राजी नहीं । लडकी का दूसरा क्या करना तो आसान नहीं जमता । मनी मनाना चाहिए । ये समाज में लडकी का एक बार वहाँ करना ही का मुश्किल नहीं है । वहाँ दूसरे की कौन कहे एक और उसकी ठुकराई हुए इस तरी तो भारतीय समाज में झूठी पत्तल की तरह हो जाती है । उसका दूसरा यहाँ शोभना चाहे बना कर ले आई । साथ में नमकीन और गुजिया भी थी । खाते समय नमिता ने पूछा तो पता चला कि झूला झूलने वालियों में से कुछ छोडना कि भाजियाँ थे और कुछ उसकी पहने शेष बहनों की सखियाँ हो जाने लगी । शोभना की माँ बोली अभी तो होगी ना जाने से पहले फिर एक बार आना हो जा रही थी और जीत पूछ रहा था । आॅल टूटी एम मेरे पीहर की छोडना के मन में कौन सा ही पूंछ रहा होगा । उसकी तो मायके नहीं, ससुराल की पायल टूट गयी थी । गीत की नायिका मायर को संदेश भेजने के लिए आकुल पर क्या? शोभना अपने जीवन से जुडकर टूटे हुए और टूटकर भी जुडे हुए साजन को कोई संदेश नहीं भेजना चाहती । जाने के पहले दिन शाम को बुआ बोली राखी के पांच दिन रह गए हैं । यहाँ के बाजार काफी धूमधाम से सकें, चलो घूम आएँ । नमिता की कोई विशेष इच्छा नहीं थी जाने की किंतु मधुमिता की खातिर उसे भी जाना पडा । बाजार से लौट रही थी तो घर के सभी पहुंचते पहुंचते बुआ जी वाली छोडना से मिलने चलोगी । इस बार मधुमिता से पहले नमिता नहीं हाँ कर दी । अपने घर के बगीचे में छोडना ने झूला आकर्षक अंदाज में सजाया था । ऊपर रंगीन कागजों की कलात्मक झालरे लगी हुई थी । नीचे विभिन्न रंगों की रंगोली सजी थी । कहीं खिलोनों के हाथ सजे हुए थे तो कहीं गुड्डे गुड्डियां तो कहीं बातों के तीन बन्दर । आज शोभना उतनी प्रसन्न थी जितनी उस दिन छोले पर झूलने वाली लडकियाँ सावन के गीत उस दिन वो नहीं जा पाई थी और आज बहनों के साथ मिलकर गीत को बुला रही थी । उन्हें देख कर थोडा मुस्कराई । नमिता को लगा उसकी जीवन डोर भी शायद अभी जोर से गुड गई है । उसकी जिंदगी में अब राजीव के लिए कोई स्थान है या नहीं । यहाँ आया भूत ने बताया था कि राजीव की उन्हें प्राप्ति के लिए उस ने क्या क्या नहीं किया । कहाँ राजीव द्वारा बतलाई हुई वह घमंड नहीं विलासिनी, जिद्दी, नारी और कहाँ? ये सादगी संपन्न छोडना चलते हुए शोभना की माँ बुआ जी से कहा कल ये लोग जा रही हैं अच्छा तुम लोग राजीव जी से मिलोगी उसी मिलते हैं । मधुमिता बोली तो बातों से पूछ होगी बताइए लडकी का अपराध क्या है? कुछ बताया तो हमने हम से कोई गलती हो गई है । छोडना के पिता और उसके भाई कई बार उनके पास गए और उन्होंने इन की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया । घंटों उनके पास बैठकर निराश लौट आए । बस इतना कहा इधर उसके साथ निभाव नहीं हो सकता । सुना है कि अपने माँ बाप से भी नहीं मिलते । वो भी रोते रहते हैं । पहले तो शोभना अपनी ससुराल जाती थी पर अब वहाँ भी नहीं जाती है । इसे लगता है की सास ससुर के दुख का कारण भी यही है । आखिर कोई इतना तो बताएं लडकी का कसूर क्या है? बाहर से कुछ और महिलाओं ने ढूंढने के लिए घर में प्रवेश किया । अशोक ना की माँ चुप हो गई । बुआ जी नमिता और मधुमिता भी जाने के लिए उठ खडे हुए । देखा छोडना की आंखों में उसके चेहरे पर एक तरह से हराया था । शायद माँ के वाक्य स्टिक कानों में नहीं पड गए थे ।

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'सुहाग रात' शब्द 'सौभाग्य रात' से बना है किंतु विवाह के बाद प्रथम मिलन की रात सबके लिए तो सौभाग्य लेकर नहीं आती नमिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ| writer: पूर्णिमा केडिया Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Purnima Kediya
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