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नाज़ुक बंधन भाग - 02 in Hindi

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4 K Listens
AuthorSaransh Broadways
'सुहाग रात' शब्द 'सौभाग्य रात' से बना है किंतु विवाह के बाद प्रथम मिलन की रात सबके लिए तो सौभाग्य लेकर नहीं आती नमिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ| writer: पूर्णिमा केडिया Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Purnima Kediya
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अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद सास ने नमिता का उतरा हुआ चेहरा देखा । उसका माता छूकर बोली नहीं तो मैं तो तेज बुखार है । चाहूँ तो सोचा हूँ मैं डॉक्टर को बनवाती हूँ । वहाँ के कहने पर अनिल डॉक्टर को लेकर आया । डॉक्टर ने कहा को विशेष बात नहीं है । मौसम के परिवर्तन से ठंड लग गई है । उसने कुछ दवाई लिखी, अंग्रेजी दवा लेकर आया । उसने ही नमिता को दवा खाने के लिए दी । साफ पानी रखकर जानबूझ कर बाहर चली गई थी । शायद रसोई में जाकर व्यस्त हो गई । दवा खाकर नमिता पूरा लेट गयी । अनिल कुर्सी खींचकर बैठ के समीप ले आया और उस पर बैठ गया । उसने दफ्तर से छुट्टी ले ली थी । नविता को अच्छा लगा । उसने आंखे बंद कर ली और लेटी रही । अचानक अनीस बोला क्यों अपने आप को मार रही हो तो दूसरा विवाह क्यों नहीं कर लेती? उस ने सुना पर सोचा हूँ दूसरा व्यवहार आप इस विषय पर तो उसने पहले कभी सोचा ही नहीं । मनी मनी फंसी एक विवाह करके तो बहुत छुपा लिया । अब दूसरा यहाँ और कौन सा सुख पाना बाकी रह गया है । पर मुझे कुछ नहीं । हाँ हमारी तो रही है । वो अपने आप को और क्या कर रही है या नहीं । काम उसे बहुत बडा सच निकला है । अनिल कस्टमर फिर उसके कानों में भूल जा रहे हो । पढी लिखी हूँ देखने में भी अच्छी हो हमारा दूसरा विभाग होना ज्यादा काटे नहीं है । नमिता के वोटों पर एक व्यंग भरी हंसी उभर आए । आंखों में कुछ नहीं भी ठहराई । उसने पैरों पर बडा कम्बल गले तक खींच लिया और मुंह फेरकर लेट गए । मन में अनिल के प्रश्नों के कई कई उत्तर करते रहे हैं । बडी चिंता हो रही है । मेरी अरे नहीं समझ जाते तो मुझे बिहानी हो गए थे । जाओ जाओ अपनी सुमिता की जनता करो । मेरी चिंता की कोई जरूरत नहीं है । मैं स्वयं खेल होंगे अपने आप को । पर सारे जवाब मन में ही घुमड दे रहे हैं वो उसे बाहर आने का प्रयास किसी ने नहीं किया । न जाने कब उसे दिन लग गए । अब कब अनिरुद्ध कर चला गया । जागी तो जी उसे हल्का लगा । इसी समय सांस में आकर से शुभ सूचना दी । देवर के विवाह का दिन तय हो जाने की तो हर्षित होते हैं । कोई तो हम उम्र ही मिलेगी । उसे अपना खाली समय बांटने के लिए । विवाह की बातचीत कई दिनों से चल रही थी । लडका लडकी देखने दिखाने का काम भी पहले ही हो चुका था । बस विवाह का दिन तय होना बाकी था । नलिन के विभाग में नमिता फलीफूली थे । दौड दौड कर विभाग के कार्य निपटाए । उस रात को रात समझा नहीं इनको दिन उसका यह साहब एक कार्ड न केवल साल बल्कि विभाग में आए मेहमान भी चकित रह जाते हैं । उसके ऊपर तो सब उसकी प्रशंसा करते हैं तो उसके जाते ही सब कानाफूसी करने लगते है । पति एक रहती घर पर नहीं रुकता हूँ पर एक का सब की लडकी है और कभी सवाल तक बात नहीं लाती है । पहले घर की लडकी है कोई दूसरी होती तो अभी तक छोड छाड कर भाग गयी होती है । वो आठ वोट से सब कुछ सुनती मनी मान हस्ती कहाँ जाएगी वो भागकर कहाँ जाएगी? भारतीय नारी के लिए अपनी व्यवस्था के पास से निकल भागने की सामर्थ्य शक्ति है । आखिर कहाँ है मायके में तो वह जन्म से ही निर्माण रहती है । बात बात पर यही तो कहा जाता है लडकियाँ पढाई होती हैं उन्हें पढाई घर जाना है इस पर आए घर को अपना मानकर रहना ही तो लडकी की हवाई है अधिकांश भारतीय नारियां आज भी ससुराल अपने कर्तव्य की राह पर चलकर वो अपने प्रतिकुल और पत्र को दोनों को जगल क्या रखना चाहती है । सहसराव से महादेवी की पंक्तियां हुआ मैं नीर भरी दुख की बदली परिचय इतना इतिहास है उमडी कल थी मिट आज चलें नारी नीर भरी दुख की बदली ही तो है उसका जन्म लेना और विवाह होना यही तो उसका इतिहास है । नमिता का भी यही इतिहास है । माइटी के उस घर में वो बदली की तरह बडी थी और ससुराल के घर में फॅमिली जाएगी । यही उसकी नियति है और नियति की अक्सर किसने बांचे हैं? कौन पड सकता है उसकी आदर्श लिपि को? देवरानी के आते ही उस घर के मुख्य भाषा भी मुखर होने लगी । पाओ में घुस वाली पायजेब पहनें । मौके पर बडा सा टीका लगाए जब घर में इधर उधर डोलती तो घुंगरू छमछम बचते सास नहीं बहु के चारों और डोलती नमिता को रसोई घर अब और अधिक प्रिय हो गया । बच्चा हुआ समय वो अपने शोध प्रबंध को समर्पित कर दी । अभी कभी उसे अच्छा लगता साथ सब उसके आगे पीछे नहीं मान जाती है । उसे पढने लिखने में अधिक स्वतंत्रता महसूस होती है । अच्छा ही है कि वह देवरानी में रवि रहती है । लेकिन कभी कभी नमिता अपने आपको बहुत एकाकी अनुभव कर दी । तब वो रसोई में चार चीजें अधिक बनाती । कमरे में आकर चार पृष्ठ अधिक लिखती । कभी कभी देवरानी, अचला आकर छेडती वहाँ पर आप दीदी अब कितना पढती लिखती है, कितनी कॉपियां करेंगी? कितना मोटा पोथा तैयार कीजिएगा । फॅमिली डिग्रियां लेकर क्या करेंगी? उस सब कुछ सुनती और मुस्कुराती रहेगी अचला को अपने कमरे में बैठाती, सॉफ्ट इलाइची खिलाती उसके मायके की बातें पूछती लिखते पढते! जब वो भी उपजाति तो अच्छा के कमरे में जा पहुंचती तो पीहर से लाये काजू, किशमिश, अखरोट मेरे उसे जेठानी का स्वागत करती पर छेडने से वहाँ भी बात नहीं आती । पैसे दीदी भैया के बिना आपका मन कैसे लगता है? आप राहत कैसे बताती हैं? नमिता का जी छोड जाता की लडकी है कि आप सांस के सामने भी वह जो ना सो बोल पाती, उसकी चटपटी चुलबुली बातें नमिता को छू नहीं । पास तो हस्ती तो बस मंत्री मंत्री उसकी सरस पाते हैं । जब नमिता में नीरज सृजन करने लगती है तो कोई न कोई बहाना बनाकर वहाँ से उठ जाते हैं तो उसे भी वो अक्सर अकेले ही जूझती अच्छा वो अक्सर ये कहकर भगा देती की नई पहुँचे । ज्यादा काम नहीं करवाना चाहिए । लेकिन जब तापसी दिनों से बार बार चेताया, शोध प्रबंध उसे नियत अवधि में ही पूरा कर लेना चाहिए । अब उसने रसोई की और कम और शोध कार्य कि और अधिक ध्यान देना प्रारंभ किया । अच्छा भी धीरे धीरे चौका चुना संभालने लग गई । तापसी दीदी के यहाँ उसका आना जाना बढ चुका था । प्रबंध नियम से बहुत कम समय में पूर्ण हो गया । तापसी निधि के एक परिचित व्यक्ति ने उसे कंप्यूटर टाइप करके स्पाइरल बाइडिंग करवाकर किताब का सुंदर रूप दे दिया । यही नहीं, उस सीडी में भी सुरक्षित कर दिया, जिस दिन उस शोध प्रबंध विश्वविद्यालय में जमा करके आई । मंदिर बहुत भारी भारी हो गया । लगा जैसे अपनी कोई प्रिय वस्तु किसी को दे डाली हो । उसी के दो वर्षों का संघर्ष है । उसकी अनगिनत रातों का जागरण उस शोध प्रबंध में समझाया था । तापसी दीदी ने बताया था, अभी काफी समय लगेगा । शोधप्रबंध परीक्षकों के पास भेजा जाएगा । वो उसका अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट भेजेंगे । तब कहीं मौके की परीक्षा का आयोजन होगा । उन्होंने आश्वासन दिया था कि सब ठीक ठाक हो जाएगा । फिर भी नमिता का दिल धडक रहा था कि उसे सफलता मिलेगी या नहीं । एक खाली पाॅप कचोटता था । चोट प्रबंध के साथ मान उसकी व्यस्तता भी विदा हो गई थी । फिर वो खाली खाली सी हो गई । फिर उसे तापसी दीदी के पास जाना पडा । उन के पुस्तकालय से उठी सारे उपन्यास ले आई । उन्हें पडने में उसने अपने आप को फिर से व्यस्त कर लिया । इस खूब से छुटकारा पाने का उसे एक और सहारा मिल गया । उसकी छोटी बहन संचिता का व्यवहार था । मायके से फोन आया था । बहुत दिनों से वहाँ नहीं गई थी । उन तो वहाँ से अक्सर आते थे, लेकिन वह स्वयं ही मना कर देती है । पता नहीं पढाई में अपनी व्यस्तता के कारण या फिर किसी और कारण से । पर इस बार तो अपने को रोक नहीं सकी । मन जाने के लिए उछलने खडा यू तो अनिल भी साली के विभाग में निमंत्रित था तो उसने जाने से साफ इंकार कर दिया । माँ बाप के लाख समझाने पर भी यही कहता रहा । उसे दफ्तर से छुट्टी नहीं मिलेगी । आज कल बहुत बहुत कम है । आप है । नमिता के लिए ही बहन के विभाग में सम्मिलित हुई । सब बार बार उससे अनिल के संबंध में पूछ रहे थे । वो उत्तर देते देते थक गई परिवार, पडोस, रिश्तेदारों और विभाग में सम्मिलित होने वाले करीब करीब हर व्यक्ति के यही तो सवाल थे क्यों नहीं आए भी ऐसा के जरूरी काम था साली के विवाह में तो नहीं चाहिए । नमिता ने तंग आकर अंत में प्रश्नों का उत्तर ही देना बंद कर दिया तो जवाब उसकी बहनों को देना पडा । अमिता को लगा जैसे सब उसकी जडें खोदने पर चले हैं । विभाग की धूम धाम में भी उसे कोई रस नहीं आ रहा था । विवाह लगाया जाने वाला एक ही बार बार उसके मांस को चल छोड देता था ये दे वो जब हम चली जाये बेटी बाबुल की थी उडाओ जगह उड जाए चिडिया वन वन कि बांधों जट्टू बन जाए गैया खूंटे की आम बाबुल की बेटी वन वन की चिडिया ही तो है जिससे जहाँ उडा दिया जाए वहीं उठना पडेगा । जिस खूंटे से वो उसे बांदे उसी पति रूपये छोटे से उसे बंद कर रहना होगा । उसे लगा वो भी घायल है । खूंटे से बंधी हुई उनकी से उसे कुछ लेना देना नहीं फिर भी उसे जिंदगी भर डोलना है । खूंटे के इर्द गिर्द गायिकी और भारतीय नारी की नियति एक ही तो है । विभाग के समय गीत ये गाया जाता है या कोई अन्य किंतु नमिता के कानों में तो यही गीत गूंजता रहा । यहाँ संपन्न हो गया । समझता विदा हुई और मेहमान भी एक दिन माने । एक अंत मुझसे पूछे लिया । हमने सुना है कि दामाद जी का कहीं और आना जाना है । कहीं सचिन, अमिता, नमिता मोहन रह गई । यहाँ तक भी बात पहुंच गई । मैंने आगे पूछा क्या घर पर कभी नहीं रुकते हूँ? उसने सपने मुस्कराते, अपने झूठ को छुपाने का प्रयास किया । कर रखते हैं तो अभी तक भी बच्चा क्यों नहीं हुआ? फॅमिली तो उसका जो पकडने आ रहा है । अचानक उसे उपाय सुझाव बोली । डॉक्टर ने कहा है मुझे कुछ एक ही बच्चा नहीं हो सकता । क्यों? क्या कमी है तो मैं तो डॉक्टर ही जाने । अच्छा हम यहाँ भी तुम्हारी जांच करवाएंगे । अब नमिता दोबारा चौकी बचाव का उपाय सोचने लगी पर कुछ नहीं सूझा । दूसरे दिन मैं उसे अस्पताल लेकर जाने की तैयारी करने लगी तो उसे सच उगलना बडा उससे कहा नहीं जा रहा था । पर उस ने कहा मुझे अच्छा नहीं हो सकता क्योंकि मेरी उनसे कुछ संबंध नहीं । ये सुनकर मांस तब रह गई उनकी आंखों से आंसू बहने लगे । थोडी देर आंसू बहा लेने के बाद शांत हो गई और आंचल से अपनी आंखें पहुंच की भी बोली । भरत ससुराल भी मन कैसे लगता है तो हंस पडी मन लगाने के लिए क्या एक वही हैं? फॅस है, देवरानी है । उनके साथ मतलब जाता है हाँ, लेकिन इन सब लोगों को सब कैसे मालूम हुआ? छुट्टी नहीं मिलती है । वहाँ के पहले भी तुम लोगों को सब पता था । हाँ, फिर होने लगी सकती हुई बोली नहीं मिट्टी, अच्छे घर और कमाओ वर्ग के लालच में तुम्हारे पिताजी ने बहुत जल्दबाजी में तुम्हारा विभाग कर दिया तो बहुत पछता रहे हैं । लेकिन हो सकता है अब तो बंद गए सो ही मोटी छोटी के लिए । तो इसीलिए सब कुछ देख सुनकर क्या है? पर तुम तो कुमारी की कुमारी ही रह गई । किसी तरह तुम्हारी गोद भर जाती तो चीनी का सहारा हो जाता है । उसका भी मन कर रहा था की माँ की गोद में भूल छुपाकर फूटकर रोए और उसने अपने आप को संयत कर लिया । मायके से विदा हुई तो फिर वहीं ससुराल का घर वही दीवारें अचला की गोद भरने वाली थी । उसकी इच्छानुसार उसे नित नई चीजें बनाकर खिलाई जाती हैं । नमिता ने भी शुभ काम में अपने सहयोग दिया, वो भी अच्छा की मनपसंद वस्तुएं बना बनाकर से परोसती । साथ ससुर, देवर सभी अचला की खातिर करने लगे । अमिता के मन में एशिया की भावना जाते हैं तो वो स्पीच को अंकुर आने से पहले ही कुछ डालती है । उस दिन वो चला के लिए मूंग की दाल के चीजें बनाने के लिए रसोई में रखी मिक्सी से मूंग की दाल पी रही थी । मनोहर बाबू ने कुछ पके आम लाकर में इस पर रख दिए तो मिक्सी बनकर आश्चर्य बोल पडी है इस मौसम में पकौडे यहाँ तो सब मुस्कुराकर बोले चला का मन था इसलिए खोज खासकर बडी मुश्किल समझ पाए हैं । समीर बेटी साथ पुरानी गाडियों से भावी शिशु के लिए कंधे सी रही थी । उन्हें शायद नमिता के चेहरे पर इंशा दिखाई थी तो बोल पडी तुमको सकती हूँ चाहती हूँ । अभी तक अपने पति को वश में कर लेती और एक दो बेटे बेटियों की मां बन जाती । ससुर चुपचाप चले गए । नमिता का सर हमने लगा वाॅकर सोचा है तो उसने अपना वो धन को भी उस काम बना लिया था और मोहन मिक्सी चलाती रही । सोचती रही पता नहीं सांस उसे गलत समझ रही है या फिर उनकी बडी बहुत से पोते पोती प्राप्त करने की इच्छा ही व्यंग्यबाण बनकर फट रही है । सांस के शब्द चाहती तो अभी तक अपने पति को वर्ष में कर लेती । उसके कानों में मिक्सी के स्वर्ग के साथ साथ पूछते रहे । फिर मन में प्रश्न को बडा क्या मिल कोई गाय है जिससे वो वर्ष में कर लेंगे । लगा गाय तो वो स्वाद ही है । इसे अनजाने में ही कुछ नियमों ने अनिल जबान दिया । फिर उसके कानों में पहन के विभाग में सुना । लोग की पूजा लगा । यहाँ घूमते ही की रसोई में जाकर उसने चले भी बनाए और अपनी भरी हुई आंखों का पानी बहाकर जी भी कुछ हल्का कर लिया । जब चला को चीजे खिला रही थी तो हमेशा की तरह मजाक का माहौल था । रात को तापसी दीदी का फोन आया । दो सप्ताह बाद उसकी मौके परीक्षा होगी । इस बीच में अपना शोध प्रबंध पडती रहे क्योंकि परीक्षितगढ उसी से संबंधित प्रश्न पूछेंगे मन में कर रही थी और ऊपर से आश्वस्त सी वो अपना शुभ प्रबंध पडती रही । देखते देखते दो सप्ताह बीत गए । मौके की हुई और वो उत्तरी घोषित कर दी गई । उसकी पसंद का अस्सी बोल रहे हैं परीक्षाफल की कॉपी, मिठाई का डब्बा और एक साल फोन लेकर जब घर पहुंची तो सबसे बहुत प्रसन्न हुए । सांस भी हरशद होठी अनिल तो घर में था ही नहीं । मैंने कहा कितनी से मिठाई से क्या होगा? भाभी आपको तो ढेर सारी मिठाई लानी चाहिए । नमिता हस्ती पर जब अपने कमरे में गए तो अच्छा भी उसके पीछे पीछे गई । मैं इस पर से उस पर शोध प्रबंध उठाकर कुर्सी पर बैठी नमिता के गोद में डालती हुई बोली सही बात की संतान है और संतान का पास क्या करेंगे? हस्ती हुई अच्छा चली गई । नमिता सोचती रही कितना बडा सच उगल दिया है चलाने । उसका विचार भूल ही तो उसकी संतान है । एक अद्भुत आनंद उमर आया । उसके चारों चलाने पुत्र को जन्म दिया । नमिता तो नहीं ना । शिशु बहुत प्रिय लगा । उसने उसका नाम नील रख दिया । घर में सभी को नमिता का दिया इनाम बहुत पसंद आया । पूरे परिवार का वो मानो खिलाना था । उसके दादा दादी और माता पिता तो उस पर जान छिडकते ही । घर पर कभी न रुकने वाला अनिल भी घंटों रोककर उसके साथ खिला कर पा । अमिता को पता नहीं क्यों एक व्यर्थता का बोर्ड होता लगता है जिससे वो कोई मेरा ठीक है । इसमें न कोई फल फूल है, न कोई ऊपर, कभी कभी मन की शांति बहुत बढ जाती तो खुद को कमरे में बंद कर लेती । खुद से सवाल जवाब करती रहती । मन शांत हो जाता है । तब बाहर निकल थी । घर के काम काज में भी अब उसका उतना मान नहीं रहा था । पत्र पत्र कहाँ पडने में ही आजकल उसका अधिक समय बीतता । दैनिक समाचारपत्र तो ससुर उसके लिए भिजवा नहीं करते । अब कोई नई बात देख रही थी कि अनिल भी कई तरह की पत्रिकाएं लाकर कमरे में रख जाता । शायद इस प्रकार उसके प्रति मूंग संवेदना व्यक्त करता । पठन सामग्री नमिता की कमजोरी थी । अनिल कहे उपकार उसने भी मूड भाव से ग्रहण कर लिया । पत्रिकाएं तो वह दिनभर पडती ही । अखबारों में नौकरी के कॉलम भी हाँ आजकल गौर से देखा कर दी । समय धीरे धीरे आगे बढ रहा था, उसकी हूँ निरंतर बढती जा रही थी तो सामाजिक सा नहीं रहता । प्रकृति परिवर्तनशील है तो मैं सवा एक जैसी नहीं रहती है । इसमें से लोग में ग्रीष्म के बाद पावस के बादल बढते या नंबर से । लेकिन पतझड के उपरांत वसंत के स्वागत के लिए विपक्ष नवीन पल्लवों के वक्त तो पहन ही लेते हैं । रात को जिस आंगन में कडाके की सर्दी पडती है, घर से निकल जाने पर वहाँ जाने में लोग घबराते हैं । सुबह उसी आने में गुनगुनी धूप मुस्कराकर उनकी प्रार्थना करती है । आखिर नमिता केश उसको होठों पर भी एक दिन हर्ष के मुस्कान खेलो भी लंबी प्रतीक्षा के बाद मनोनुकूल विज्ञापन उसने अखबार में देख लिया । उसी शहर के एक महाविद्यालय में फिजिकल कैमिस्ट्री के एक लेक्चरार की आवश्यकता थी तो आपके हाथों से उसने आवेदन पत्र लिखा और अपनी मार्कशीट और सर्टिफिकेट की प्रतिनिधियों के साथ भेज दिया । तापसी दीदी को भी फोन करके सब कुछ बदला दिया, पर हो रहा था । कई कई अनुभवी लोग भी आवेदन कर सकते हैं । तो फिर भला उसे कौन पूछेगा? उसका तो शायद सक्षात्कार के लिए भी बुला बनाए । नौकरी मिले या ना मिले, केवल सक्षात्कार के लिए ही बुलावा आ जाए तो कितना बढता रहेगा । कम से कम साक्षात्कार का तो अनुभव होगा । जिस निष्कर्ष की जटिलता के संबंध में वो सुनती आई है, जाने भी तो आखिर वह है क्या? घर में संबंध उसने किसी को कुछ नहीं बताया था । अच्छा किसी को पता भी कैसे चलता? तापसी दीदी को फोन भी उसने एकांत पाकर ही किया था । लोगों ने पता नहीं कैसी कैसी पैर भी लगा रखी होगी । उसका सहारा तो एक तापसी दीदी ही थी । उसने सोचा साक्षात्कार के लिए बुलावा आ दी जाए तो वो घर में किसी को बताएगी नहीं, क्योंकि उसने उन्हें अपना सेल नंबर ही दिया है । कहीं असफल रही तो उपहास का पात्र बन जाएगी और साक्षात्कार का फोन आएगा । सबको पता चल ही जाएगा क्योंकि घर में बिना बताए तो साक्षात्कार नहीं दिया जा सकता । यू तो नमिता के मायके से कभी कबार फोन आते रहते थे । कुछ दिन पहले जब मृदुल ने फोन पर बताया कि संचिता दीदी खुशखबरी सुनने वाली हैं । अब हम जल्दी मौसी का पद पाने वाली हैं । सुनकर नमिता को खुशी तो जरूर हुई थी, पर मैं जाने क्यों मन भारी भारी भी हुआ । आया था । अच्छा मैं उस दिन बार बार पूछा था क्योंकि आज आप दास दास क्यों हैं? हरिओमदास कहाँ हूँ? कहकर हसने की चेष्टा करते हुए उसने बात डाल दी । कुछ भी नहीं बताया कि कहीं चला उसे ईशान उन्हें समझ ले । बस उसके नील से खेलती रही । आजकल नहीं नहीं, उसके तनावभरे क्षणों का साथ ही था । उसके उत्साह बडी किलकारियों में अपनी चिंताओं को डुबोई रखती अचला नहीं । उसे नील को सौंप कर स्वयं निश्चिंत होकर सहकारियों में डूबी रहती हूँ तो सभी नील से खेलते थे । पर नमिता की समिति में ही उसके दिन का अधिकांश सा बीतता । दोनों बहुओं पर गृहस्ती का भार डालकर सांस भी अब अपने शरीर को आराम देती । कई दिन बीतने पर जब उसको फोन नहीं आया तो झुंझला उठे । मगर फिर भी प्रतीक्षा जारी रहे हैं और एक दिन आकर उसके पास फोन आया तो कुछ संतोष हुआ । ट्यूशन खुशखबरी भी कि अब मामा बन गया है । अच्छा समझता नहीं । पुत्री को जन्म दिया है । नमिता को बेहद प्रसन्नता हुई । शायद पीयूष को मामा बनने का बहुत शौक था । चलो उस की इच्छा तो पूरी हुई । उसने तभी अपने मोबाइल से स्वच्छता को बधाई दी । इसी तरह दिन बीतते गए तो जिस फोन का उसे इंतजार था, वो नहीं आया । नंदिता को लगा कि अब साक्षात्कार हेतु निमंत्रण नहीं मिलेगा । फिर भी रजय के किसी कोने में आशा का एक नन्द सितारा तब तक आ रहा था । इसके प्रकाश में उस सपनों के रंग बिरंगे चित्र भी बनाती । अगर साक्षात्कार के लिए फोन आ ही जाए तो उसे उसमें सफलता भी मिल जाए । तो क्या उसे नौकरी के लिए घर से अनुमति मिलेगी? सात सौ और कहीं नौकरी के नाम से ही बदल गए तो नौकरी तो नहीं कर पाएगी । ऊपर से गुस्से की हमारे उनका प्रेम भरा व्यवहार भी बदल जाएगा । अब वो क्या करेंगी तो घर में रहना और मुश्किल हो जाएगा क्योंकि उन्हीं का यही प्रेम तो उसे इस घर में रहने के लिए बाध्य कर रहा है । नाना फोन नौकरी का नाम भी नहीं लेगी पर चुपके से सक शताब्दी आएगी पर बुलावा तब ना वो भी शेख चिल्ली की तरह कल्पना के घरोंदे बना बनाकर कहाँ से कहाँ तक पहुंच जाती है । उसे खुद पर हंसी आने लगती है । बहुत दिनों के बाद देवर ने कचौरियों कि फरमाइश की पहले वो मांग को माध्यम बनाकर फरमाइश करता था तो अब अचला को माध्यम बनाकर वो दिन का खाना खा रहा था । अच्छा परोस रही थी नमिता समीर भी नील को लिए बैठी थी । वो चला से बोला खाना तो तुम अच्छा बनाती हो लेकिन धाबी जैसी कचौरियां तो मैं नहीं बनानी आती । अचला हस्ती हुई बोली अरे सीधे क्यों नहीं कहते कि आज शाम को भाभी के हाथ की कचौरियां खाने का मन है । वो हंसने लगा और नमिता भी । हसमुख की अचला तो हमेशा हस्ती रहती है । खाने का काम समाप्त होते ही अचला कचौरियों की तैयारियों में जुट गई । नलिन के आने से पहले ही उसकी कचौडियां तैयार खूब स्वाद लेकर उन्हें खाने लगा । उसकी सराहना का भी अपना ही ढंग था । अच्छा को संबोधित करते हुए बोला तो भी तो ऐसी कचौरियां बनानी सात जन्मों में भी नहीं आ सकती । अरे भाई, कोशिश करो कुछ सीखने की । बीवी जैसी बनने के लिए तो सात जन भी थोडे हैं । लेकिन दीदी अभी सिखाया तो कचौरी बनाने तो इसी जन्म में सीख जाउंगी । अपने स्वाभाव अनुसार बोलती बोलती वहाँ उसी की फुलझडी भी छोड दी जा रही थी । नमिता भी हंस पडी । नील को बोर्ड में लेकर बैठे । दादी माँ भी हम छुट्टी कितने में मनोहर बाबू आते दिखाई दिए । नमिता ने सोचा कि उन्हें भी कचौरी के लिए पूछेगी । एक है कि याद आया पिछली बार जांच के बाद डॉक्टर नहीं । उन्हें तली हुई चीजें खाने के लिए एकदम मना कर दिया है । तो मन मसोसकर रह गई । काम से निपटकर वो जैसे ही अपने कमरे में पहुंची तो उसका सेल बज उठा । सक्षात्कार का निमंत्रण मिलेगा की आशा तो मन में थी ही मगर अब समस्या घरवालों को बताने की थी । उसने हिम्मत जुटाई और ससुर जी के पास जाकर बोली । शहर के महाविद्यालय में एक लेक्चरर की जगह खाली है । पिछले दिनों मैंने वहीं आवेदन पत्र दे दिया था । आज वहाँ से सक्षात्कार के लिए कौन आई है? साक्षात्कार कब है जी परसों इतना सुनते ही सांस बीच में बोल पडी क्या? बहुत नौकरी करने जाएगी नमिता का जैसे पूरा शरीर का बुड्ढा दिन तो आशा के विपरीत ससुर जी ने कहा मिल जाएगी तो कर लेगी । इसमें हर्ज क्या है? बहु का मन भी लगा रहेगा और उसकी पढाई लिखाई भी कम आ जाएगी । नमिता का मन हुआ जाकर ससुर जी के चरण झूले उसके रोते हुए मन को एक नए ही प्रकार की शक्ति प्राप्त हो गई । नौकरी मिले या ना मिले ससुर जी की अनुमति तो मिल गई । मनोहर बाबू ने नलिन की ओर मुड कर कहा छुट्टी ले लो । आप भी को साक्षात्कार के लिए ले जा रहा नहीं । मैं स्वयं चली जाऊंगी । नमिता नहीं बढता से कहा अपने आत्मविश्वास पर उसे स्वयं आश्चर्य हो रहा था । अच्छा ठीक है कहकर ससुरजी चले गए । उसके मन में नया ही उत्साह भर गया । अचला ने उसके सामने कचौरियों की प्लेट लाकर रखती दोबारा खो दीदी अब तो आप प्रोफेसर बन जाएंगे । नमिता हस्ती भी कहा देखो क्या होता है उसका जी खबर आने लगा । पता नहीं साक्षात्कार भी क्या क्या पूछा जाएगा । एक से काबिल आएंगे शायद उसे नौकरी ना मिले । अचला ने सास के सामने पहले ही कचौरियों की प्लेट लाकर रखती थी कचौरियां खाती हुई सांस न जाने किस चिंतन मिली थी नौकरी की बात पर शायद भीतर से खुश नहीं थी किंतु ससुर जी की बातों का विरोध करने की भी उनकी आदत नहीं थी । देवर सहजभाव से हसते हुए अपनी कचोरियाँ समाप्त करके जा चुके थे । नमिता सोचने लगी मैं सब की प्रतिक्रियाओं की क्यों परवाह करूँ? जो होगा देखा जाएगा । अरे पहले साक्षात्कार तो देखा रहा हूँ शिक्षक कर के लिए जब वो महाविद्यालय पहुंची तो उसका सिर चकराने लगा । इतनी भीड मात्र कुछ पदों के लिए पता नहीं किन योग्य व्यक्तियों को एक साथ मिलेंगे । नमिता तो नहीं ही प्राप्त कर सकेंगी । फिसिकल केमिस्ट्री में तो एक ही था और उम्मीदवार थे पचासों महिला और पुरुष । उनमें से कुछ चेहरे जाने पहचाने से लग रहे थे । कुछ तो फॅमिली के साथ थे । कुछ से उसका परिचय शोध कार करते वक्त विश्वविद्यालय में ही हो गया था । कई लोग पीएचडी भी कर चुके थे तो अधिकांश लोग एनएसी ही थे । जो लोग साक्षत्कार जा रहे थे उसने उनसे पूछा कैसे प्रश्न पूछे जा रहे हैं । पता चला कि जो लोग पीएचडी कर चुके हैं, उनसे अधिकांश प्रश्न उनके शोध विषय से संबंधित ही पूछे जाते हैं । नमिता आश्वस्त हुई छोड विषय से संबंधित प्रश्नों के उत्तर तो दे ही देगी । एमएससी के विशेष प्रश्न पत्र से संबंधित प्रश्न भी पूछे जा रहे थे । देखें तो कितने प्रश्नों का उत्तर दे पाएगी और कितनों के नहीं । तापसी दीदी ने उसे समझाया था कि किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम हो तो उस उत्तर के संबंध नहीं । अपनी अनभिज्ञता स्वीकार करते हुए छमा मांग लेनी चाहिए । बिना जानकारी के उल्टा सीधा उत्तर देने से यही बेहतर है । सोचते ही सोचते, उसका भी बुलावा पहुंचा । घर पैदल से वो अंदर पहुंची । विशेषज्ञों की अनुमति लेकर वो उनके समक्ष बैठी । अभिवादन तो पहले ही कर चुकी थी । उसके सामने पांच पुरुष और दो महिलाएं थे । वो सब बारी बारी से उससे प्रश्न पूछते जा रहे थे और वो उत्तर देती जा रही थी । एक बार तापसी दीदी का बदला हुआ सूत्र भी काम में लाना पडा । कितने ही प्रश्न पूछे गए से न केवल शोर संबंधी एवं विशेष प्रश्न पत्र संबंधी । अब तो फिजिकल कैमिस्ट्री के अन्य आयामों से भी पता नहीं कैसे उसे सब याद आता रहा और वो बोलती रही । बाहर निकली तो पसीना बह रहा था । तीन चार दिनों के बाद शाम को वो रसोई में अपना मन रमा रही थी कि अचानक साल बजा तापसी दीदी का फोन था । चकला बेलन छोडकर फोन सुनने लगे जो कुछ सुना आश्चर्यचकित कर देने वाला था । नियुक्ति के लिए जो तालिका बनी उसमें पहला ना उसका था । पहला नाम, उसका उसका नाम सबसे ऊपर ये कैसे हो गया । आश्चर्य और खुशी के दामन ने उसकी रात आधी सोते हुए और आधी चाहते में भी थी । सुबह महाविद्यालय का चपरासी नियुक्ति पत्र लेकर आया तो सारे घर में समाचार खुल गया । ससुरजी रसगुल्ले का डब्बा लेकर आए । अच्छा नहीं सबसे पहले उसी के मुॅह हो जाएगा और उससे ये हो । आवास नहीं था तो सोच रही थी कल से उसे महाविद्यालय में अपना कार्यभार संभालना है । कौनसे कपडे पहनकर जाएगी । वो कपडों की अलमारी खोलकर बैठ गए । बहुत भरी साडी तो अच्छी नहीं रहेगी और बहुत हल्की भी नहीं । आखिरकार एक सूची कडाई की हुई साडी उसने निकली ख्याल आया इतने दिन चुन चुनकर पहनेगी अब रोज तो महाविद्यालय जाना है ही जाना है छूटकर एक सहमंत्री उठी बदन में नहीं जाने कैसा होगा? वहाँ का माहौल कैसे होंगे? सब लोग उसने जाने की सुरक्षा को पढाना है । क्या पढाना है ऐसे होंगे उसके छात्र का बडा पाएगी उन्हें नहीं । कक्षा में जाकर कुछ नहीं बोल पाई तो तब क्या होगा उसका हृदय का आपने लगा दर्शन अमन को सांत्वना दी । सक्षात्कार में जब इतने लोगों के सामने बोल सकें तो कक्षा में क्यों नहीं बोल पाएगी? दूसरे जब टैक्सी से उतरकर महाविद्यालय की और जा रही थी उसके पांव आगे नहीं बढ रहे थे । कहीं साथ ही प्राध्यापकगण उसका उपहास तो नहीं करेंगे तो और भास्कर ने योग्य तो उसमें कोई बात नहीं डरते । डरते उसमें स्टाफ रूम में प्रवेश किया । वहाँ लम्बी में इसके चारों और कुर्सियों पर शिक्षक शिक्षिकाएं विराजमान थे । कोई लिखने पढने में लगा था तो कोई बातचीत में उसको किसी ने कुछ कहने पूछने का साहस नहीं हुआ । वो चुप जहाँ पे एक कोने में खडे रहे हैं । अचानक एक शिक्षक ने पूछा आपको किस से मिलना है? उसने समीप जाकर अपनी नियुक्ति की बात बता दी । शिक्षक ने मुस्कराकर कहा मैं भी आप ही का विषय पढाता हूँ । मेरा नाम राजीवलोचन है चले अन्य लोगों से भी आपका परिचय करवा लूँ । फिर राजीव जी ने खडे होकर उच्च स्वर में कहा ये है हमारे कॉलेज परिवार की नई सदस्या डॉक्टर नमिता बजाज । नमिता ने हाथ जोडकर सबसे नमस्ते कहा । उत्तर में अन्य लोगों ने भी हाथ छोडे । राजीव और एक महिला प्राध्यापिका के बीच में एक खाली कुर्सी बडी थी । महिला प्राध्यापिका ने हाथ से संकेत किया कि वह कुर्सी पर जा बैठीं । राजीव ने बताया ये है हमारी विभागध्यक्ष । डॉक्टर श्रावणी भट्टाचार्य । नमिता ने उन्हें उन्हें नमस्कार । क्या बोली मैं समय सारिणी आपको बात दें दूंगी । आप पहले अपनी ज्वाइनिंग रिपोर्ट लिख कर प्राचार्य साहब को दिखाइए । तापसी दीदी के निर्देश पर वह जॉइनिंग रिपोर्ट घर से ही तैयार करके लाई थी । जॉइनिंग रिपोर्ट लेकर वह प्राचार्य के कमरे में पहुंची । वही कमरा था जिसमें उसने साक्षात्कार दिया था । प्राचार्य अपनी कुर्सी पर बैठे उन पर किसी से बात कर रहे थे । उसे देखकर पहने का संकेत क्या । फोन रखते ही नमिता ने अपना ज्वाइनिंग रिपोर्ट उनके सामने रख दी । उन्होंने ज्वाइनिंग रिपोर्ट पर सरसरी निगाह डालकर ओके कर दिया है । अपना चश्मा ठीक करते हुए बोले ऐसा लग रहा है यहाँ नमिता खबर आई क्या बोलेंगे तो बोली ठीक लग रहा है । यहाँ बहुत राजनीति चलती है । प्रसाधन रहेगा हूँ ही चलती है । कहाँ हो सकता हूँ आपके स्टाफ रूम में और कहाँ ऍफ रूम में? खान मैं मैं भी तो स्टाफ रूम का हिस्सा हूँ । उसने अपने आप से कहा । प्राचार्य महोदय को जी धन्यवाद कहकर वापस स्टाफ रूम में चली आई । सोचती रही कि कौन करता है यहाँ राजनीति कैसी राजनीति स्टाफ रूम में चार और नए लोगों से उसका परिचय करवाया गया । वो भी उसी दिन । विद्यार्थियों को पढाने का नया कार्यभार अपने कंधों पर वहन कर रहे थे । उन के विषय भिन्न थे आपने विभाग में राजीवलोचन उसे भला आदमी लगा वही उसने पुस्तकालय ले गया । वहाँ पुस्तकालयाध्यक्ष से उसका परिचय करवाकर उसे पुस्तकें दिलवाई । श्रामणी दीदी ने उसे समय सारणी दे दी । दूसरे दिन सबसे कक्षाएं लेनी थी । घर जाकर होता लक्षण तैयार करने में जुट गई । फिर भी मंदिर भाषण के था । पता नहीं आ पाएंगी या नहीं । नमिता कक्षा के समय से काफी पहले ही महाविद्यालय पहुंच गई । अपने वक्तव्य को उसने कई संक्षिप्त सूत्रों में एक कागज पर नोट कर लिया था । उन सूत्रों को बार बार देखकर वह नहीं याद कर लेना चाहती थी ताकि कागज बिना देखे ही पढा सके । घंटे लगने पर विभागध्यक्ष राजीव से कहा कि वह नमिता को क्लासरूम दिखा दे । राजीव के प्रश्नों का अनुमान से उत्तर देती हुई वो क्लासरूम की और जा रही थी । रजय का कम्पन पडता जा रहा था । हो रही थी यदि छात्र छात्राओं के बीच जाकर कुछ बोल ही नहीं पाई तो नहीं, ऐसा नहीं हो सकता हूँ । उसने अपने आप को संभाला । तू कब जा रही है? टूटने पर विश्वास हो रही है । नहीं नहीं उसे हौसला रखना ही होगा । हिम्मत बंधते ही उसका ध्यान राजीव की बातों की और गया अभी तक जो अर्थ पर ध्यान दिए बिना ही वहाँ कर रही थी । राजीव कह रहा था विद्यार्थियों का ध्यान बांधे रखने के लिए आवश्यक है कि आप भी हस्ती हंसाती रहें । गलियारे में आगे आगे कुछ छात्र भी जा रहे थे था । राजीव धीमी आवाज में बोल रहा था । नमिता ध्यान लगाकर सुन रही थी । पहली कक्षा बहुत महत्वपूर्ण होती है । आप इस कक्षा में जम गयी तो समझ लीजिए जिंदगी भर के लिए जम गयी । देखिए क्या होता है, होना क्या है जो होगा अच्छा ही होगा । बस आप नर्वस मत हुई है । हाँ, यदि छात्र शोर मचाया तो आप खूब तेज आवाज में बोलिए । इतनी तेज आवाज में डाटकर बोलिए । उनका शोर तब कर रहे जाएंगे । काटना भी पडेगा । छात्रों को यह एहसास हो जाने दे की पढाई के समय कब पकडना आपको बिल्कुल बर्दाश्त नहीं मैं जरा भी चूचा करे तो अब तुरंत रोक दें । आज ही नहीं हर साल जब नहीं छात्र छात्राएं आए तो आपको यही सूत्र अपनाना पडेगा तो आपके ही सूत्र अपनाते हैं फॅस पडेगी हाँ ये सब को करना ही पडता है । एक बार डांटने में शक्ति तो अवश्य रखती है और फिर पूरे घंटे आराम से पढाया जा सकता है । जी धन्यवाद फिर प्रसून तक लोग चुप चाप ही चले ऍम मंच पर चढकर उसने अपना पाॅल पुस्तक गरीबी से मेज पर रख दिए । सामने लगभग चालीस छात्र छात्राओं की भीड उसकी और उत्सुकता से देख रही थी । मंच पर उसके निकट खडे राजीवलोचन ने खास अंदाज में उसके और विद्यार्थियों के बीच की दूरी होता है । क्या आज आप लोगों के लिए बहुत खुशी का दिन है । आपके समक्ष आपकी नई प्राध्यापिका डॉक्टर नमिता बच्चा इनकी विद्वता और नम्रता का परिचय तो इनके लेक्चर से मिल जाएगा । अच्छा मैं चलता हूँ । अब आप लोग अपने परिचय का क्षेत्र विस्तृत कीजिए । राजीव के जाते ही सामने की बेंच पर बैठे कुछ विद्यार्थियों ने पूछा कि वह क्या पढाएंगे और किस किस दिन उनकी कक्षा लेंगे । नमिता ने बता दिया और फिर उपस् थिति लेकर अपना लेक्चर प्रारंभ कर दिया । बिना रुके वो बोलती ही गई, बोलती ही गई । छात्र छात्राएं भी बीच में बिना कुछ बोले सुन रहे थे । जब ठंडी लगी उसका ध्यान टूटा । क्लासरूम से जब बाहर निकली उसके पांव धरती पर नहीं पढ रहे थे । उसे लग रहा था वो कोई नई ही नमिता है । मुट्ठी में दबे लेक्चर के सूत्र लिखे कागज के टुकडे को उसने कैलरी के कोने में रखे कूडेदान में फेंक दिया । एक नया आत्मविश्वास उसमें जहाँ पडा था, स्टाफ रूम में जाकर उसमें रोमांस अपना पसीना पहुंचा । चेहरे पर प्रसन्नता के भाव लिए उसने में इस पर रखे अखबारों में से एक उठा लिया और पडने लगी । कैसा लगा इसी समय विभागध्यक्ष ने आकर धीरे से पूछा बहुत अच्छा तो पूरे आत्मविश्वास से बोली चाहूँगी कि बैठ कर कुछ पडने लगी और लोग भी बैठ कर पढ लिख रहे थे । कुछ बातें भी कर रहे थे । नमिता की एक क्लास खाली थी । उसके बाद उसे अगली क्लास में प्रति वर्ष के विद्यार्थियों को पढाना था । अभी तो वह द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को पढा कराई थी । अब उसे किसी प्रकार का भय नहीं लग रहा था । घंटे लगने पर राजीव जी आपका हुआ आया ऍम हाथ में था । शायद वो कक्षा लेकर आया था । यहाँ को फाइनल ईयर की कक्षा तक छोडा हूँ । उसने रजिस्टर मेज पर रखते हुए पूछा नहीं नहीं मैं स्वयं चली जाऊँ । वो उठ खडी हुई हैं । इस बार वो स्वयं विद्यार्थियों को अपना परिचय दे सकेंगे । इतनी हिम्मत आ गई थी उसमें क्लास रूम में जाकर विद्यार्थियों को अपना नाम बताते हुए उसने अपना लेक्चर शुरू कर दिया । विद्यार्थी मंत्रमुग्ध होकर से सुन रहे थे । अंत में उपस्थिति लेने लगी तो उसे लगाकर फिर से छोटी सी बच्ची बन गई हैं और अपने स्कूल की कक्षा में गिनती का अभ्यास कर रही हैं । स्कूल की छोटी कक्षा के अंतिम घंटे में सबको पंक्तिबद्ध खडे होकर गिनती का अभ्यास करना पडता था । पहले शिक्षक बोलते हैं और फिर वो सब वो सामूहिक गिनती थी । कितना आनंद आता था यहाँ वो अकेली ही गिनती पड रही थी । छात्र छात्राएं जी हाँ जी हाँ उपस् थित क्या यस मैडम की हुंकार लगाते जा रहे थे और रजिस्टर के रिक्त खाने भर्ती जा रही थी । कहाँ वह बचपन का सरस सजीव गिनती और कहाँ यांत्रिक करना? और पढाने में तो कितना आनंद आया । लगा जैसे उसके भीतर भरा हुआ कोई कुमार बाहर निकल रहा हूँ । हलकी महसूस कर रही थी । अगले दिन उसने तृतीय वर्ष और प्रथम वर्ष की कक्षाएं आपको लगभग सभी विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य से प्रभावित कर चुकी थी । उसे अपनी नस नस में खुशी का बहुत हो रहा था । बता रही थी उसकी वाणी की मधुरिमा का परिणाम था या भावों की गरिमा का । उसे किसी भी कक्षा में किसी प्रकार की परेशानी नहीं उठानी पडी । सुबह आठ बजे घर से निकलती है और शाम को चार बजे घर लौट आते हैं । पहले दिन घर लौटने पर उसने अपने आप को काफी थका थका महसूस किया था और दूसरे दिन ऐसी थकावट भी नहीं लगी । आते ही फैसला ने पूछा तेजी आपने चाय बना दूँ? नहीं नहीं अभी कोई जल्दी नहीं । जब बाबू जी देवर जी और सबके लिए चाय बना होगी तभी मैं अपील होंगे । कहकर वो भी अच्छा के साथ नाचना बनाने के काम में जुट गई । अच्छा तो बार बार मना कर दी रही कि अभी आप थक कराई हैं, आराम कीजिए लेकिन वो नहीं माने । राष्ट्रीय का काम समाप्त करके वो अपने कमरे में जाकर दूसरे दिन के लिए लेक्चर तैयार करने लगी । अनिल कमरे में आकर शिंगार मेज के दर्पण के सामने अपने बाद समाज में लगा प्रेमिका के घर जाने की तैयारी ये तो रोज ही कर कार्यक्रम है नहीं बात किया है उसी प्रकार अलग थलग भाव से मेज पड चुकी लिखती रहेगी बचाना पति उसके समीप आ खडा हुआ देश पर रखी उसकी पुस्तकों में एक के पृष्ठ प्रस्तावा बोला सुना है तुम नौकरी करने लगी हो हाँ नमिता निकल अब लोग कर रहा हूँ मैं नौकरी करने की क्या जरूरत है? किस बात की कमी है तो मैं घर से बाहर नौकरी करने जाओगे । समीर यह कर वो हल्के से मुस्करा नहीं । अनिल थोडी देर खडा रहा हूँ । शायद उसे प्रतीक्षा थी कि नमिता कुछ और बोलेगी । पर नमिता भरी मुस्कान लिए आपने लिखने के काम में टूट गयी । वो निराश डॉक्टर लौट गया । अनिल कर चले जाने के बाद नमिता ने सहजभाव से अपना लेखन कार्य पूरा किया और फिर काम में जुट गई है ।

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'सुहाग रात' शब्द 'सौभाग्य रात' से बना है किंतु विवाह के बाद प्रथम मिलन की रात सबके लिए तो सौभाग्य लेकर नहीं आती नमिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ| writer: पूर्णिमा केडिया Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Purnima Kediya
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