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द बॉय हू लव्ड -66 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -66 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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पच्चीस दिसंबर छह घंटे तक बॉल्कनी में खडे होने पर माँ बाबा की फटकार के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा । मैंने माँ और बहुत ही की डॉक्टर विजिट पर साथ जाने से इंकार कर दिया । एक बार बहुत ही की डॉक्टर के पास और फिर माँ की चुनी जी डॉक्टर के पास । फिर मैंने दादा बहुत ही और माँ बाबा के साथ डिनर करने से भी मना कर दिया । उसमें भी फुल तमाशा हुआ । बहुत ही घर में खाना बनाना चाहती थी और माँ को ये मंजूर नहीं था । शायद उन्हें लगता था कि कहीं उनके इस अधिकार क्षेत्र पर बहुत ही का कब जाना हो जाए । क्या ये बहुत ही के धर्म की वजह से था या उन्हें बहुत ही की सेहत की चिंता थी । आखिर में माँ की जीत हुई जैसा की होता है और उन्होंने जो खाना खाया वो भी धरकर बेस्वाद था । मुझे अब ग्रामी का इंतजार करना बंद कर रहना चाहिए । मैं भी बॉलकनी में खडा क्या कर रहा हूँ और कोई और भी मेरे साथ प्रतीक्षा कर रहा है तो केवल उसके लिए है । मेरा ये मानना है मुझे लगता है कि ये भी कोई जश्न है । रिकाॅल वो भी बॉलकनी के कोने में दुबकी है जैसे सुबह देखा था । शाम तक उसकी आखिर प्यार, मायूसी और गुस्से से भर उठे । मेरी आंखों की तरह करें मेरी क्रिसमस

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Voice Artist

मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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