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पच्चीस दिसंबर छह घंटे तक बॉल्कनी में खडे होने पर माँ बाबा की फटकार के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा । मैंने माँ और बहुत ही की डॉक्टर विजिट पर साथ जाने से इंकार कर दिया । एक बार बहुत ही की डॉक्टर के पास और फिर माँ की चुनी जी डॉक्टर के पास । फिर मैंने दादा बहुत ही और माँ बाबा के साथ डिनर करने से भी मना कर दिया । उसमें भी फुल तमाशा हुआ । बहुत ही घर में खाना बनाना चाहती थी और माँ को ये मंजूर नहीं था । शायद उन्हें लगता था कि कहीं उनके इस अधिकार क्षेत्र पर बहुत ही का कब जाना हो जाए । क्या ये बहुत ही के धर्म की वजह से था या उन्हें बहुत ही की सेहत की चिंता थी । आखिर में माँ की जीत हुई जैसा की होता है और उन्होंने जो खाना खाया वो भी धरकर बेस्वाद था । मुझे अब ग्रामी का इंतजार करना बंद कर रहना चाहिए । मैं भी बॉलकनी में खडा क्या कर रहा हूँ और कोई और भी मेरे साथ प्रतीक्षा कर रहा है तो केवल उसके लिए है । मेरा ये मानना है मुझे लगता है कि ये भी कोई जश्न है । रिकाॅल वो भी बॉलकनी के कोने में दुबकी है जैसे सुबह देखा था । शाम तक उसकी आखिर प्यार, मायूसी और गुस्से से भर उठे । मेरी आंखों की तरह करें मेरी क्रिसमस
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