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चौबीस दिसंबर उन्नीस सौ निन्यानवे उस स्कूटर पर चुकी हुई थी । कॅश सिर्फ था । मैंने उसे इसी तरह पाया जिससे माँ जैसा महसूस होने लगा । आंखों के पूर्व पर टिके आंसू उससे जबरन हूँ । ऐसे आंसू जो कहते हैं उसे ही गाल पर चांटा रसीद कर दो जिसकी याद में लड रहे थे इस रिश्ते को खत्म करने के लिए एक इंसान कितने लंबे अरसे तक पडता होगा । एक माह, दो महत्व ये सब अनंतकाल तक चलता होगा । मैं इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि मेरे लिए जानना जरूरी है । अगर धामी तीन साल के लिए कहीं चली गई और उसी प्यार के साथ वापस आई तो उसके बाद क्या होगा? बेशन छोडो था तर तर बगैरा होंगी पर क्या उसके बाद हम कह सकेंगे हम तो भला तो सब भला क्योंकि समय तो सापेक्ष है वो फैलता वह सिकुडता रहता है । अब हर रोज मैं उनको ताकने में जितना समय बिताता हूँ वो सहस्राब्दी जितना लगता है खाये उसके स्कूटर के पास जाने तक मतलब को काबू में बढ चुका था और मुस्कुरा रहा था क्योंकि वो अब भी मेरे लिए दुनिया की सबसे बिहारी इंसान भी उसे अपने स्कूटर पार किया और मेरी और दौडेंगे तो मुझे देखकर हंसी और बाहों में भर लिया । मुझे लगा वो पहले से लंबी और भारी हो गई थी । सौरभ सौरभ वो मेरा सारा रोज पिघलने तक लगातार मेरे काम में सौरी सौरी बोलती रही । हम दोनों नैवेद्यम गए । पंद्रह मिनट की दूरी पर स्थित दक्षिण भारतीय राष्ट्र था और और सारी चीजें मंगाने का आग्रह किया । हम उसके पहले वेतन की पार्टी मना रहे थे । जब खा रहा था तो वो खाने से खेल रही थी । बस छोटे छोटे आने वाले को कर रही थी । मैंने उसे बहुत ही की । प्रेग्नेंसी महा बाबा के अजन्में बच्चे के बारे में चिंता और माँ की बहुत ही पर जासूसी के बारे में बताया कि कहीं वो अपने मायके वालों से बात तो नहीं करती । लगा । आधार गर्दन हिलाते रही । सुन तो सब रही थी पर ऐसा लगा जैसे उसे कोई दिलचस्पी ना रही हो । उसे अपनी और से कुछ नहीं कहा । शायद वो वहाँ थी । जी नहीं, मैंने बातों की लगाम उसके हाथों में हमारे और दोस्तों का क्या रहा? कुछ नए दोस्त बन गया । समझ ही नहीं मिलता । मैदान को पैसे नहीं दे पा रही थी इसलिए ऑफिस से आकर घर का काम भी नहीं करती थी । तुम्हारे ताऊ जी के बारे में कुछ बताना था । मैं उनसे मिली थी । मुझे सब पता है । फॅमिली, फॅमिली क्योंकि मैंने पूछा उन्हें पैसे देने पडेंगे । ऍम ऐसा क्या देना था? रघु ऐसे मत हूँ । मैंने अपराधा वेतन उन्हें दे दिया है । ऐसा लगा मानो किसी नाम ऊपर घोषणा ने मारा होगा । तो ऐसा क्यों किया? उन्होंने मुझे पालापोसा है, मेरी पढाई लिखाई और कपडों का खर्च किया है । इतना तो कर ही सकती थी । तुम इतना कर सकती थी कि पुलिस में रपट करवा कर उन्हें थाने भेज दो । उन्हें अपराधा, वेतन देना तो सभी सर बेवकूफी है, मेरे लिए नहीं । मैं तुमसे नहीं रखूँ । हमने फिर से खाने पर ध्यान रमाया । इस बार वो जिस दीवानगी दिखा रही थी, उसे देखकर लग रहा था कि उसके पास बात करने के लिए कुछ नहीं था । हमारे बीच शायद बहुत कुछ बदल गया था । मैं से महसूस कर सकता था । इसे उसके चेहरे पर पढ सकता था और उसके बारे में अपने प्यार को सोचते हुए अपनी बेवकूफी का एहसास होने लगा था । मैंने उसका हाथ थामा था, उसे गले से लगाया था । उम्र कंधे पर सिर रखकर रोई थी और मैंने भी ऐसे ही किया था । पर इस तरह हम जीवन भर के लिए तो नहीं बनें । भले ही मैंने ऐसा कितना भी होना चाहता हूँ । एक इंसान के तौर पर वो बदल सकती थी और मैं भी बदल सकता था । पर हमारे लिए संभव था कि हम किसी और को पसंद करने लगेंगे तथा किसी ऐसे इंसान को परखना गलत होगा तो किसी इंसान को वैसा ही प्यार न दे पा रहा हूँ जैसा पहले देता था । हो सकता है कि नियम मुझ पर भी लागू होते हो । अब वो इंसान नहीं रही थी, जिसे मैंने चाहत हो, उसकी आंखों सुनी थी । मुस्कान झूठी थी । आलिंगन में पहले जैसी गर्माहट नहीं थी और भले ही हमारे बीच एक मैच की दूरी थी, पर लगता था मानो हम पहले कभी मिले ही ना हो । मैं यानी को खो चुका था । जल्दी वो अपनी दुनिया और नए संसार में हो जाएगी और मैं अपनी अधूरी सोच और प्यार के साथ खिला रहे जाऊंगा । जब गुडगांव जाने लगी तो उसने कहा था कि वह शायद मुझ से मिलने आएगा । कल उसने कहा था मैंने हमें बडी उसी झंड से प्रतीक्षा करना भी शुरू कर दिया था ।
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