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द बॉय हू लव्ड -63 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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सत्रह दिसंबर उन्नीस सौ निन्यानवे जैसा कि हमेशा होता है माँ के लिए कोई रास्ता कभी रात नहीं रहता हूँ । आज सुबह जब माने नींद से जगह कर मुझे कपडे बदलने को कहा तो मैं पहुँच गया की कोई चक्कर हो गया है । हम जल्दी से ज्यादा बहुत दी के घर पहुंचे । माने घंटी बजाई और किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो झट से बस स्टॉप की और लडकी ज्यादा और बहुत ही ऑफिस जाने के लिए अपने साथियों के साथ खडे बस का इंतजार कर रहे थे तो अचानक वहाँ को देखकर चौक माँ आप इधर कैसे माने । बहुत ही का हाथ पकडा और सबके सामने ही उन्हें अपनी और खींचने लगी । वहाँ क्या कर रही हैं? वह शर्मिंदा से हो गए । मैंने कोई जवाब नहीं दिया उन्हें बस डॉक्टर टूर खींचने गई । ऑफिस की बस आ गई थी और सभी देख रहे थे कि प्रेग्नेंट युवती को उसके अस्त व्यस्त भी देखने वाली साथ अपने साथ खींचे ले जा रही थी । मैं डॉक्टर ने आवाज दी और बस के बाहर हादसे धम धम करने लगा । सभी साथ ही बस में चढकर दादा और ताऊजी के आने की प्रतीक्षा करने लगे । ज्यादा उन्होंने जाने को कहा और इशारा किया कि सब ठीक है और उसके बाद वो माँ और बहुत ही की और लडके हाँ क्या हो गया मैंने बहुत ही का हाथ अपनी फॅमिली मुझे पता है मुझे पता है ये बेंगलोर गयी थी । हम सब ने मिलकर मुझे छूट कहा जो हाँ बकवास मत कर अनिर्वान है । मुझे तुम्हारे झूठ से कोई मतलब नहीं । पर तुम मेरे नाती को नुकसान पहुंचा रहे हो और बोली शांत रहे । हाँ ज्यादा और बहुत ही को घसीटकर है । एक बंगाली डॉक्टर के पास ले गए और फिर से सारे स्कैन करवाए । माँ के कठोर शब्दों और आंसुओं की धार के आगे बहुत ही की एक न चली । उन्होंने बहुत ही का हाथ ऐसे पकडकर रखा मानो वोट कर कहीं भागने वाली है । जब सारे स्कैन सही आए तभी माँ के चेहरे की कठोरता कुछ काम नहीं है । डॉक्टर ने बहुत ही से पूरा आराम करने को कहा और कहा कि उन्हें बिना इजाजत के सफर नहीं करना चाहिए । मुझे लगा कि शायद महीने डॉक्टर वैसा करने को कहा होगा । घर लौटकर माने दादा और बहुत ही को अपने आगे पूरे आधा घंटा बिठाए रखा हूँ । फिर बोली दोनों ही इतने बडे नहीं हूँ कि बच्चे को खोने का दर्द को समझ सको, पूरी देखती रही ताकि दोनों उनके शब्दों को अच्छी तरह समझ लेंगे । उसके बाद हम घर वापस लौट आए । रास्ते में माने में राहत उसी तरह कसकर पकडा । इससे बहुत ही का पकडा था । मैं देख रही हूँ कि तेरे साथ क्या हो रहा है । वो लडकी तो छोड गई है ना? नहीं हो । बहुत मासूम है तो दुनिया के रंग नहीं जानता । मुझे लगता है कि लडकियां सीधी होती है और वो इतनी नादान भी नहीं होती । तेरे साथ क्या क्या मुझे छोड गई । कुल मिलाकर अपना परिवार ही साथ में बताता है । समझ आया ही वैसी नहीं है । मैंने कहा मैं उसे नहीं तुझे जानती हूँ । पर याद रखना हम तेरे माँ बाबा हैं । अब हमेशा तेरे साथ रहेंगे तो कौन कह सकता है कि तेरी बहुत ही जाकर अपने माँ बाप और भाइयों से नहीं मिली होगी । परिवार सदा आपके साथ रहता है । क्या हम दादा को वापस नहीं लाएंगे? उसकी कॉल के बिना एक और दिन व्यतीत हो गया

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मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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