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द बॉय हू लव्ड -56 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -56 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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सत्रह नवंबर रहे । मैंने अपने प्यार को ऐसे इंसान के लिए सहेजना चाहा जो दीवाना हो । मैं कहना चाहता था कि मैं किसी को भी तैयार कर सकता हूँ पर ये सब नहीं है । मैं जानता हूँ कि मैं बस उसे प्यार करता हूँ और जो भी हो जाए उसे ही प्यार करता हूँ । माँ बाबा टीवी पर आंखें गडाए बैठे थे । जब मैं ये लिख रहा हूँ तो हजारों लोग मारे जा रहे हैं । माने उलाहना दिया जो आपको विचारे उन लोगों के साथ ऐसा क्यों करेगा जिससे पंजाबियों के साथ हुआ । मैंने कहा मैंने हामी भरी जैसे उनके साथ हुआ । बाबा बोले सारे के सारे चोर हैं, उस प्रॉपर्टी डीलर को ही देख लो । उसने कहा था कि रसोई वॉटरप्रूफ है, रोज रात को टप सकती है । अब कहता है कि दूसरा घर देख लो सोचूँ अरे किस हर एक से हैं । मैं हाँ बाबा की बात से सहमत नहीं । कौन वे कौन हम ये परिभाषाएं बदलती रहती हैं । आज जलमग्न हो रहे ओडिया लोग हमारे अपने हैं और मुस्लिम हमारे नहीं है और वो पंजाबी फॅसने रसोई की छत वॉटरप्रूफ नहीं की वो वो हो गया है और ज्यादा बहुत ही एक मुसलमान । अब वो हमारी बच्ची है और ब्राहमी कौन है? अगर उसे कुछ हो गया तो उसके लिए कौन होने वाला है? मैंने अपने और उसके लिए एक अच्छा भविष्य पानी की कोशिश की और जो भी हो मैं उसमें अपने लिए जगह बना ही लूंगा । मैं ब्रहमी पर नजर बनाए हुए हूँ । रूस बॉल्कनी पर आती है । अब भी उसे देख कर लगता है । उसके जीवन में कुछ भी बुरा नहीं हुआ और इसी से सारी बात साफ हो जाती है तो दुख के साथ इतने लम्बे अरसे से रह रही है कि वो उसके स्वभाव में ही खुल गया है । मैंने उसकी खिडकी के नीचे से कई बार हाथ मिलाया, तख्ती लिखी, उसके कमरे में कंकड मारे और उसने उसने कोई ध्यान नहीं दिया । कल तू दरवान मेरे पीछे भागा । मैं आज फिर उसके घर आ गया । आज मैंने वेदांत को अंदर जाते हुए देखा । मैं स्पष्ट चक्कर लगाने लगा । देखना चाहता था कि वह धामी के साथ बाहर आता है या नहीं । पर कुछ देर बाद वो अकेला ही बाहर आया और से पहले कि मैं उस तक जा पाता । वो अपनी मोटर साइकिल चलाते हुए वहाँ से निकल चुका था । हारकर मैंने उसके घर की घंटी बजा दी । हमें ही बाहर आए । इससे पहले कि मैं कुछ कहता वो बोली हुई बेवकूफी मत करना । मैं अपनी मदद खुद कर सकती हूँ । उसका नाम पुकारा गया । वो चिल्लाई ऍन फिर मेरे ऊपर दरवाजा दे मारा । धर्म से बहुत प्यार करता हूँ । मेरे कहने से पहले ही वह भीतर जा चुकी थी । अब मैं लिखते हुए मनी मनी सोच रहा हूँ कि क्या हुआ होगा क्या? उसे तो बारह मारा गया होगा तो कितनी उदास लग रही है तो उसके दिमाग में कुछ चल रहा है क्या वो भी मुझे चाहती हैं? क्या मैं उसके ताऊ ताई को जान से मार सकता हूँ? मुझे उससे दोबारा मिलने के लिए और कितना इंतजार करना होगा?

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मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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