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सात अक्टूबर उन्नीस सौ निन्यानवे आज का दिन अच्छा था । काफी हद तक अविश्वसनीय दादा और बाबा के बीच चली लंबी शीत युद्ध के बाद इसमें कोई झुकने को तैयार नहीं था और एक दूसरे के घर नहीं आना चाहता था । धागा ही नरम पड गए । वो आज घर में थे । वैसे अगर कहूँ कि ये मेरा क्या धारा था तो आपको ये मेरा दिखावा लगेगा और कोई तरीका भी तो नहीं था । मैंने किसी अच्छे सौदेबाज की तरह सारी युक्तियों का पालन किया । लगातार मनाना, इमोशनल ब्लैकमेल, सूजी, आंखें और गुस्सा मेरी और सहित हर तरह का अस्त्र आजमाया गया । आप बाबा से कितने अलग हो? उन्होंने अपनी ओर से पहल की, आपके लिए घर देखा, सब कुछ ठीक करवाया । शायद हम अपने सामने खडे होकर करवाया और आप उनके पास घर तक नहीं जा सकते हैं । बहुत ही अपने चलने के लिए क्यों नहीं? कहते हैं आप कोई भी कदम नहीं बढाएंगे तो हालात कैसे बदलेंगे? झूठे आंसुओं के बाद आंखों में सच्चे वाले आंसू आने ही वाले थे । दादा मान गए । वो घर आए तो मैं चल रहा था बाबा और वह बहुत देर तक टीवी के आगे बैठे रहे और एक दूसरे की और देखा तक नहीं । अब बाप और बेटा नहीं दो पुरुष थे । उनकी ठंडी निगाहें देखकर मेरा मन बैठ गया । जब गांगुली ने कमाल दिखाया, दोनों सीनियर गांगुली यों का मन पिछला और उन्होंने मुस्कुराकर तालियाँ बज जाएगा । प्रो कप्तान होना चाहिए, ज्यादा बोलेंगे । किसी बंगाली को कप्तान देखकर लोग हमें फिरसे मान देने लगेंगे । हमारा खोया हुआ सम्मान लौटाएगा । बाबा ने कहा डिनर की मेज पर बाबा ऐसी कोई बात नहीं की जिसमें बहुत ही का नाम आए । बस एक जगह बोले खर्च कम करूँ और पैसे जो मैंने मेहमान की । किस्मत अच्छी होनी चाहिए । हाँ और मैं ज्यादा के घर गए । हम अपने साथ शिमला पनीर और दो मार्च के कैसे रोल साथ ले गए थे । बहुत ही ने माँ से करार किया की वो जाने से पहले चाहती कर जाएँ । मामा मान गई तो मुझे पता था उन्हें बहुत ही के हाथ की चाय का स्वाद अच्छा लगने लगा था । हालांकि उन्होंने चाय की रेसिपी नहीं पूछे । चाय की पत्तियां थी या कोई और मसाला था, मान अपनी जुबान बंद रखे हैं । हर साल वो तारीफ कर के ये उपाधि बहुत ही के खाते में नहीं डालना चाहती थी । अच्छी चाहे तो केवल वहीं बना सकती थी । मैंने बहुत ही के लिए निक नेम सोच रहा था । जैसे ही मैंने बहुत ही को सुननी बहुत ही कहकर पुकारा तो मानी जोर से सिर पर चपत बीमारी है । बहुत कुछ ही दिन पहले बताया था कि वह सुन्नी मुसलमान थे । सुननी सुन नहीं, जुबान पर बडे मजेदार तरीके से चलता है । मैं उन्हें एक सप्ताह से सुननी बहुत बेहतर पुकार रहा था । बहुत ही को बुरा नहीं लगा और माँ को सहन नहीं हुआ और वो मुझे ऐसा कहना छोडना पडा । मैंने बहुत से पूछा कि क्या वह क्या होना पसंद करती क्योंकि इस्लाम के दूसरी शाखा है । उन्होंने कहा कि वह उसे नहीं चुनते हैं । मैं सुन नहीं रहना ही पसंद करूंगी । किस उनका ऐसा लगा मानो पास से फॉर मुलाकार गुजरी हो क्या? मैंने तो हमेशा से रॉयल या चटर्जी बनना चाहा । रिकॅार्ड लगता है मानो किसी दौलतमंद बंगाली की बात हो रही है जो गोल चलने वाली मेहनत के साथ पॉकेट वॉच भी रखता हूँ । गांगुली पूरा ऍफ लगता है । जब हम घर आए तो बाबा ने कहा कि मैं धामी को फोन कर लूँ । माने तीसरी नजरों से पूरा शायद किसी ऍम की बात होगी । मैंने अपनी सफाई दी । माँ बाबा रात को सो गए तो मैंने रिकॉर्ड कि उसने बताया कि वह अगले सप्ताह घर छोड देगी
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