Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
द बॉय हू लव्ड -53 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -53 in Hindi

Share Kukufm
245 Listens
AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
Read More
Transcript
View transcript

तीन अक्तूबर । उसने जब ये बात कही तो ऐसा लगा मानो ये तो बहुत ही सहज सी बात हो । पेशा हमें उनसे मिलने जाना ही होगा । तो कल मैं और हमें रात एक बजे दादा और बहुत ही से मिलने गए । तुम्हें क्या लगता है वो लोग जाग रहे होंगे । उसने पूछा वो जाग रहे थे और दोनों में देखकर हैरान रह गए । हमें और बहुत ही ऐसे गले लगी जैसे कोई पुरानी बिछुडी स क्या हो? वापस में हाथ हमें बात करने लगी । यह बिक्करजीत लगा क्योंकि वो उसकी नहीं मेरी बहुत दी थी । मैंने बहुत ही और बहने दोनों के लिए खुद को वजह से महसूस किया और उनके इस तरह घुलने मिलने पर अच्छा भी लगा । दादा ने हमारे बढता हूँ पर गुस्सा और तारीख दोनों जाहिर किए और रात को दिल्ली सेफ नहीं टाइप लेक्चर पिलाया । फिर वह पूछने लगे कि हम कहाँ कहाँ जाते हैं? आपके चाहती है? ग्रामीणो बाहर पर हाथ रखकर पूछा । बहुत ही नहीं कहा । हम दोनों चाहते हैं कि एक बेटियाँ पैदा हो । तुम लोग कुछ खाओगे नहीं । भव्य अब आराम करो । मैं प्रेग्नेंट हूं, अपाहिज नहीं हूँ । बहुत ही हंसने लगी और ग्रामीण नहीं भी उनका साथ दिया । बहुत ही नहीं चाय और पकौडों का सुझाव रखा । परदादा ने कहा कि बाहर कुछ खाने चलते हैं । बहुत ही ने मजाक किया कि ज्यादा उनके हाथ का खाता तंग आ गए थे । इसके रोज खुद ही पकाने की जब करते थे बडी हैरानी की बात थी । गांगुली परिवार में तो दादा ने कभी काम को खाद तक नहीं लगाया था । ज्यादा और बहुत ही नहीं टैक्सी और हम दोनों ग्रामी के स्कूटर पर सवार होकर कनॉट प्लेस करसरा कहने गए जहाँ चौबीसों घंटे कडी चावल मिलते थे । ज्यादा कोई देखकर खुशी हुई कि मुझे शहर की काफी जानकारी हो गई थी । दादा और मैंने भूखे बेटियों की तरह खाया और वो आपस में लगातार बातें करती रहीं । उन्हें आपस में इस तरह बातें करते थे । मेरे मन में अलग ही खिचडी पकने लगी । धामी दादा और बहुत ही के पास रहने आ सकती थी । दादा आने वाले दो सालों तक उसके स्कूल का खर्च दे देते हैं और फिर वो कॉलेज पडने जा सकती थी । अच्छी छात्रा होने के कारण उसके ट्यूशन फीस माफ हो जाती की तो बडी अच्छी बात होती है । निःशुल्क माँ को लगता था कि मैं और भूमि सेक्स करते हैं । ये बेहुदी बात थी और दूसरे धामी किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी । मैंने इन काल्पनिक दृश्यों को अपने तक ही रहने दिया । जब जाने की बारी आई तो बहुत दिनों से वायदा लिया कि वह जल्द ही दोबारा मिलने आएगी । हमने से किसी ने भी उन्हें नहीं बताया की ढाणी जल्द ही गुडगांव जाने वाली थी । मेरा भाई हीरा है । हीरा दादा ने बाहर जाते हुए कहा, और मैं धामी ने पूछा तो नहीं तो ऐसे खडा है । दादा ने कहा और हमने पायेगी स्कूटर पर वापस जाते हुए धानी जोर से चिल्लाई । मुझे तुम्हारे दादा और बहुत ही बडे प्यारे लगते हैं । उन्हें देखकर लगता है कि वह मेरे नहीं, तुम्हारे दादा और बहुत ही हैं । हम दोनों चुप हो गए और आने वाले समय की कल्पनाओं में मगर हो गए । मैं मुस्कराया और रियरव्यू मिरर में देखा तो वह भी कॉलेज से मुस्कुरा रही थी ।

Details

Sound Engineer

Voice Artist

मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
share-icon

00:00
00:00