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तीन अक्तूबर । उसने जब ये बात कही तो ऐसा लगा मानो ये तो बहुत ही सहज सी बात हो । पेशा हमें उनसे मिलने जाना ही होगा । तो कल मैं और हमें रात एक बजे दादा और बहुत ही से मिलने गए । तुम्हें क्या लगता है वो लोग जाग रहे होंगे । उसने पूछा वो जाग रहे थे और दोनों में देखकर हैरान रह गए । हमें और बहुत ही ऐसे गले लगी जैसे कोई पुरानी बिछुडी स क्या हो? वापस में हाथ हमें बात करने लगी । यह बिक्करजीत लगा क्योंकि वो उसकी नहीं मेरी बहुत दी थी । मैंने बहुत ही और बहने दोनों के लिए खुद को वजह से महसूस किया और उनके इस तरह घुलने मिलने पर अच्छा भी लगा । दादा ने हमारे बढता हूँ पर गुस्सा और तारीख दोनों जाहिर किए और रात को दिल्ली सेफ नहीं टाइप लेक्चर पिलाया । फिर वह पूछने लगे कि हम कहाँ कहाँ जाते हैं? आपके चाहती है? ग्रामीणो बाहर पर हाथ रखकर पूछा । बहुत ही नहीं कहा । हम दोनों चाहते हैं कि एक बेटियाँ पैदा हो । तुम लोग कुछ खाओगे नहीं । भव्य अब आराम करो । मैं प्रेग्नेंट हूं, अपाहिज नहीं हूँ । बहुत ही हंसने लगी और ग्रामीण नहीं भी उनका साथ दिया । बहुत ही नहीं चाय और पकौडों का सुझाव रखा । परदादा ने कहा कि बाहर कुछ खाने चलते हैं । बहुत ही ने मजाक किया कि ज्यादा उनके हाथ का खाता तंग आ गए थे । इसके रोज खुद ही पकाने की जब करते थे बडी हैरानी की बात थी । गांगुली परिवार में तो दादा ने कभी काम को खाद तक नहीं लगाया था । ज्यादा और बहुत ही नहीं टैक्सी और हम दोनों ग्रामी के स्कूटर पर सवार होकर कनॉट प्लेस करसरा कहने गए जहाँ चौबीसों घंटे कडी चावल मिलते थे । ज्यादा कोई देखकर खुशी हुई कि मुझे शहर की काफी जानकारी हो गई थी । दादा और मैंने भूखे बेटियों की तरह खाया और वो आपस में लगातार बातें करती रहीं । उन्हें आपस में इस तरह बातें करते थे । मेरे मन में अलग ही खिचडी पकने लगी । धामी दादा और बहुत ही के पास रहने आ सकती थी । दादा आने वाले दो सालों तक उसके स्कूल का खर्च दे देते हैं और फिर वो कॉलेज पडने जा सकती थी । अच्छी छात्रा होने के कारण उसके ट्यूशन फीस माफ हो जाती की तो बडी अच्छी बात होती है । निःशुल्क माँ को लगता था कि मैं और भूमि सेक्स करते हैं । ये बेहुदी बात थी और दूसरे धामी किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी । मैंने इन काल्पनिक दृश्यों को अपने तक ही रहने दिया । जब जाने की बारी आई तो बहुत दिनों से वायदा लिया कि वह जल्द ही दोबारा मिलने आएगी । हमने से किसी ने भी उन्हें नहीं बताया की ढाणी जल्द ही गुडगांव जाने वाली थी । मेरा भाई हीरा है । हीरा दादा ने बाहर जाते हुए कहा, और मैं धामी ने पूछा तो नहीं तो ऐसे खडा है । दादा ने कहा और हमने पायेगी स्कूटर पर वापस जाते हुए धानी जोर से चिल्लाई । मुझे तुम्हारे दादा और बहुत ही बडे प्यारे लगते हैं । उन्हें देखकर लगता है कि वह मेरे नहीं, तुम्हारे दादा और बहुत ही हैं । हम दोनों चुप हो गए और आने वाले समय की कल्पनाओं में मगर हो गए । मैं मुस्कराया और रियरव्यू मिरर में देखा तो वह भी कॉलेज से मुस्कुरा रही थी ।
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