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द बॉय हू लव्ड -52 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -52 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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एक अक्टूबर आज मैं और माँ, दादा और जो वेदों को लगाने के लिए रेलवे स्टेशन गए । बाबा ने कहा कि उन्हें दुर्गा पूजा कमेटी का कुछ काम देखना है इसलिए वो नहीं सकेंगे । ये एक झूठ था क्योंकि वो एक महीने पहले ही उनके काम के लिए इंकार कर चुके थे । मैंने माँ बाबा को आपस में बातें करते सुना था । उन्होंने कहा कि अगर उनके घर मुस्लिम बहु होगी तो वो अपने दोस्तों के आगे शर्मिंदा महसूस करेंगे । ज्यादा की गाडी तीन घंटे देरी से थे । बार बार देरी के ऐलान के साथ माफी का मुजरा किया जाता । मैंने और माने समय बिताने के लिए ताश खेली । चाय भी और तेल में डूबे पकौडे दिखाएगा । जब तक दादा की गाडी आई मेरे पेट के लिए वो सब संभालना भारी हो गया था । हाँ और मैं बोगी में गए तो दादा और जो पैदा अपने सूटकेसों के साथ इंतजार करते दिखे । बहुत ही मुझे देखते ही मुस्कराई । उनके पुरखे के नीचे से पेट का उभार साफ दिख रहा था । मैंने सब रह ही नहीं अभी सात महा पडे थे । मैंने उनके चेहरे पर वह राणा खोजी जो अक्सर फॅालो लगती है । कहीं सुनी थी बात बहुत ही निर्माण के पैर छूने चाहे तो उन्होंने आधे मन से उन्हें झुकने से पहले ही रोक लिया । हमने सरस्वती विहार के लिए प्रीपेड फॅमिली दादा ने मेरे बाल सहलाकर ध्यानी के बारे में पूछा । किस्मत अच्छी थी कि माँ के कानों में बात नहीं गई । माने कार में बहुत ही को देखते ही रिहर्सल की गई । विनम्रता के साथ अपनी बात कहीं । बाबा व्यस्त थे इसलिए नहीं आए । फिर पेट के उभार को बेहद तुलार से देख रही थी । सोसाइटी के गेट पर एक आदमी हमारा इंतजार कर रहा था । बाबा ने उसे बोल रखा था कि वह तीसरी मंजिल पर सारा सामान छोडकर आएगा तो बहुत सुन्दर है । बहुत ही ने घर देखकर कहा हम दो बैडरूम वाला घर देख रहे थे, पर यहाँ किराया बहुत ज्यादा है । फिर हमें ये दिख गया । मैंने कहा ये तो कमाल है । ज्यादा बोले फ्रिज में दो दिन के लिए खाने पीने का सामान रखा है । अगर कुछ जरूरत होगी तो मैं विश्वास होंगी । अब तुम दोनों आराम करो । मैंने कहा और दादा से बंगाली में बोली बाबा किसी भी समय घर आते होंगे, हमें चलती हूँ क्या? बाबा नहीं आ रहे, ज्यादा ने पूछ लिया । एक सन्नाटा सा छा गया । एक छोटे से अंतराल में बहुत ही के मुख से निकले । बाबा शब्द में सब डूब गया । मैंने माँ को देखा और मनी मान दुआ की कि उन्हें बहुत ही में अपनी नींद दिख जाएगा । वो भी आएंगे । जगह काम में लगे हैं । तुम लोग आराम करो । लंबे सफर से आए हो माने झट से कहा रघु यहीं ठहर और बता क्या आज कल क्या चल रहा है? दादा ने कहा मेरा होमवर्क अधूरा पडा है । मैंने कहा सहारा दिन आवारागर्दी करता है और क्या? मैंने कहा जब मैं जा रहा था तो देखा के दादा और बहुत ही एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे । क्या उन्हें बहुत ही का बेबी बंप देखा? माने ऑटो में बैठते ही पूछा लेखा अभी तो जैसे नन्ना सफल है, कैसे बनाना मेरा होता । फिर वो अपने आप से बोली वैसे मैं बता दूँ । बेटी होगी क्या, उसका नाम नहीं रखेगी । नहीं बिलकुल नहीं । उसका नाम मीनाक्षी होगा । मैं तो बडी क्रिएट हो । मैंने कहा और पाया कि उन पर मेरे व्यंग्य का कोई असर नहीं हुआ । बाबा घर आ चुके थे । उन्होंने अपने लिए चाहे बना ली थी और रसोई कि नाली जाम करके छोडी हुई थी । मान उसे प्लंबर से खोलना चाहा । जब थक गई तो मुझे बुलाया । पानी की बडबडाहट के बीच ही मैंने माँ बाबा को बात करते सुना । मानव ने बताया कि दादा आराम कर रहे हैं । सुबह ठीक थी और उन्हें घर बेहद पसंद आया । तुम मिलने कब जाओगे । मैंने पूछा जब मन करेगा । बाबा ने कहा और सारी बात वहीं खत्म हो गई ।

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मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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